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'''कर्णदेव''' अथवा 'लक्ष्मीकर्ण' (1040 से 1070 ई.) [[कलचुरी वंश]] का शासक था। वह [[गांगेयदेव विक्रमादित्य|गांगेय देव]] का पुत्र था और उसके बाद सिंहसानारूढ़ हुआ।
गांगेय देव के बाद उसका पुत्र कर्ण देव अथव लक्ष्मी कर्ण सिंहसानारूढ़ हुआ। उसने चालुक्य नरेश भीम के साथ मिल कर मालवा के परमार वंश के शासक भोज को परास्त किया। कलिंग विजय के उपरान्त उसने 'त्रिकलिंगाधिपति' की उपाधि धारण की । चन्देल नरेश कीर्तिवर्मन से पराजित होने पर उसकी शक्ति कमजोर हो गई और यही से कलचुरी साम्राज्य लड़खड़ाने लगा, जिसका अन्त चन्देल शासक त्रैलोक्य वर्मन ने विजयसिंह को परास्त करके त्रिपुरी को अपने राज्य में मिलाकर कर दिय। कर्णदेव एवं विजयसिंह के मध्य कुछ अन्य कलचुरी शासक यशःकर्ण, गयकर्ण, नरसिंह, जयसिंह आदि थे।


*उसने [[चालुक्य वंश|चालुक्य]] नरेश भीम के साथ मिलकर [[मालवा]] के [[परमार वंश]] के शासक [[भोज]] को परास्त किया।
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*कर्णदेव एवं विजयसिंह के मध्य कुछ अन्य कलचुरी शासक यश:कर्ण, गयकर्ण, नरसिंह, जयसिंह आदि थे।


 
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11:02, 5 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

कर्णदेव अथवा 'लक्ष्मीकर्ण' (1040 से 1070 ई.) कलचुरी वंश का शासक था। वह गांगेय देव का पुत्र था और उसके बाद सिंहसानारूढ़ हुआ।

  • उसने चालुक्य नरेश भीम के साथ मिलकर मालवा के परमार वंश के शासक भोज को परास्त किया।
  • कलिंग विजय के उपरान्त कर्णदेव ने 'त्रिकलिंगाधिपति' की उपाधि धारण की थी।
  • चन्देल नरेश कीर्तिवर्मन से पराजित होने पर उसकी शक्ति कमज़ोर हो गई और यही से कलचुरी साम्राज्य लड़खड़ाने लगा, जिसका अन्त चन्देल शासक त्रैलोक्य वर्मन ने विजयसिंह को परास्त करके त्रिपुरी को अपने राज्य में मिलाकर कर दिय।
  • कर्णदेव एवं विजयसिंह के मध्य कुछ अन्य कलचुरी शासक यश:कर्ण, गयकर्ण, नरसिंह, जयसिंह आदि थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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