"हे हरि! कवन जतन भ्रम भागै -तुलसीदास": अवतरणों में अंतर
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देखत, सुनत, बिचारत यह मन, निज सुभाउ नहिं त्यागै॥1॥ | देखत, सुनत, बिचारत यह मन, निज सुभाउ नहिं त्यागै॥1॥ | ||
भक्ति, ज्ञान वैराग्य सकल साधन यहि लागि उपाई। | भक्ति, ज्ञान वैराग्य सकल साधन यहि लागि उपाई। | ||
कोउ भल कहौ देउ कछु कोउ असि बासना | कोउ भल कहौ देउ कछु कोउ असि बासना हृदयते न जाई॥2॥ | ||
जेहि निसि सकल जीव सूतहिं तव कृपापात्र जन जागै। | जेहि निसि सकल जीव सूतहिं तव कृपापात्र जन जागै। | ||
निज करनी बिपरीत देखि मोहि, समुझि महाभय लागै॥3॥ | निज करनी बिपरीत देखि मोहि, समुझि महाभय लागै॥3॥ | ||
जद्यपि भग्न मनोरथ बिधिबस सुख इच्छित | जद्यपि भग्न मनोरथ बिधिबस सुख इच्छित दु:ख पावै। | ||
चित्रकार कर हीन जथा स्वारथ बिनु चित्र | चित्रकार कर हीन जथा स्वारथ बिनु चित्र बनावै॥4॥ | ||
ह्रषीकेस सुनि नाम जाउँ बलि अति भरोस जिय मोरे। | ह्रषीकेस सुनि नाम जाउँ बलि अति भरोस जिय मोरे। | ||
तुलसीदास इन्द्रिय सम्भव दुख, हरे बनहि प्रभु | तुलसीदास इन्द्रिय सम्भव दुख, हरे बनहि प्रभु तोरे॥5॥ | ||
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14:04, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
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हे हरि! कवन जतन भ्रम भागै। |
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