"राजेन्द्र प्रथम": अवतरणों में अंतर
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*[[ | *'''राजेन्द्र प्रथम''' (1014-1044ई.) [[राजराज प्रथम]] का पुत्र एवं उत्तराधिकारी 1014 ई. में [[चोल राजवंश]] के सिंहासन पर बैठा। | ||
* | *राजेन्द्र अपने [[पिता]] के समान ही साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का था। | ||
* | *उसकी उपलब्धियों के बारे में सही जानकारी 'तिरुवालंगाडु' एवं 'करंदाइ अभिलेखों' से मिलती है। | ||
* | *अपने विजय अभियान के प्रारम्भ में उसने पश्चिमी [[चालुक्य साम्राज्य|चालुक्यों]], [[पाण्ड्य साम्राज्य|पाण्ड्यों]] एवं [[चेर वंश|चेरों]] को पराजित किया। | ||
* | *इसके बाद लगभग 1017 ई. में सिंहल ([[श्रीलंका]]) राज्य के विरुद्ध अभियान में उसने वहां के शासक महेन्द्र पंचम को परास्त कर सम्पूर्ण सिंहल राज्य को अपने अधिकार में कर लिया। | ||
* | *सिंहली नरेश महेन्द्र पंचम को चोल राज्य में बंदी के रूप में रखा गया। यही पर 1029 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। | ||
*उत्तरी भारत की विजय यात्रा में जिन राज्यों को राजेन्द्र ने आक्रान्त किया, उनमें [[कलिंग]], दक्षिण कोशल, दण्डभुक्ति (बालासोर और मिदनापुर) राढ, पूर्वी बंगाल और गौढ़ के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। | *सिंहल विजय के बाद राजेन्द्र चोल ने उत्तर पूर्वी भारतीय प्रदेशों को जीतने के लिए विशाल हस्ति सेना का इस्तेमाल किया। | ||
*उत्तर-पूर्वी भारत में इस समय [[पाल वंश|पालवंशी]] राजा महीपाल का शासन था। राजेन्द्र ने उसे पराजित किया, और गंगा के तट पर पहुँचकर 'गगैकोंण्ड' की उपाधि धारण की। | *राजेन्द्र प्रथम के सामरिक अभियानों का महत्त्वपूर्ण कारनामा था- उसकी सेनाओं का [[गंगा नदी]] पार कर [[कलिंग]] एवं [[बंगाल]] तक पहुंच जाना। | ||
*कलिंग में चोल सेनाओं ने पूर्वी [[गंग वंश|गंग]] शासक मधुकामानव को पराजित किया। सम्भवतः इस अभियान का नेतृत्व 1022 ई. में विक्रम चोल द्वारा किया गया। | |||
*गंगा घाटी के अभियान की सफलता पर राजेन्द्र प्रथम ने 'गंगैकोण्डचोल' की उपाधि धारण की तथा इस विजय की स्मृति में [[कावेरी नदी|कावेरी]] तट के निकट 'गंगैकोण्डचोल' नामक नई राजधानी का निर्माण करवाया। | |||
*उसने सिंचाई हेतु चोलगंगम नामक एक बड़े तालाब का भी निर्माण करवाया। | |||
*राजेन्द्र प्रथम ने [[अरब सागर]] स्थित सदिमन्तीक नामक द्वीप पर भी अपना अधिकार स्थापित किया। चोल शासक द्वारा यह पश्चिम का सर्वप्रथम अभियान था। | |||
*[[श्रीलंका]] को विजित कर राजेन्द्र ने [[पाण्ड्य साम्राज्य|पाण्ड्य]] तथा [[चेर वंश|चेरों]] को परास्त किया। | |||
*इन राज्यों पर अधिकार करने के पश्चात् उसने अपने पुत्र [[राजाधिराज प्रथम]] को पाण्ड्य प्रदेश का वायसराय (महामण्डलेश्वर) नियुक्त किया तथा उसे चोल पाण्ड्य की उपाधि दी। | |||
*राजेन्द्र प्रथम की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विजय 1025 ई. कडारम के श्रीविजय साम्राज्य के विरुद्ध थी। | |||
*राजेन्द्र प्रथम द्वारा [[बंगाल]] पर आक्रमण निश्चित रूप् से [[तमिलनाडु|तमिल प्रदेश]] द्वारा प्रथम सैनिक अभियान था। | |||
*राजेन्द्र प्रथम ने श्री विजय (शैलेन्द्र) शासक विजयोत्तुंगवर्मन को पराजित कर [[जावा द्वीप|जावा]], [[सुमात्रा]] एवं मलया प्रायद्वीप पर अधिकार कर लिया। | |||
*उसने 'गंगैकोण्डचोल', 'वीर राजेन्द्र', 'मुडिगोंडचोल' आदि उपाधियाँ धारण की थीं। | |||
*महान विद्याप्रेमी होने के कारण ही उसने पंडित चोल की उपाधि ग्रहण की। उसने दो बार अपना दूतमंडल भी [[चीन]] भी भेजा था। | |||
*उत्तरी [[भारत]] की विजय यात्रा में जिन राज्यों को राजेन्द्र ने आक्रान्त किया, उनमें [[कलिंग]], दक्षिण कोशल, दण्डभुक्ति (बालासोर और मिदनापुर) राढ, पूर्वी बंगाल और गौढ़ के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। | |||
*उत्तर-पूर्वी भारत में इस समय [[पाल वंश|पालवंशी]] राजा महीपाल का शासन था। राजेन्द्र ने उसे पराजित किया, और [[गंगा नदी]] के तट पर पहुँचकर 'गगैकोंण्ड' की उपाधि धारण की। | |||
*उत्तरी भारत में स्थायी रूप से शासन करने का प्रयास राजेन्द्र ने नहीं किया। | *उत्तरी भारत में स्थायी रूप से शासन करने का प्रयास राजेन्द्र ने नहीं किया। | ||
*अपने साम्राज्य का विस्तार कर चोलराज्य ने समुद्र पार भी अनेक आक्रमण किए, और पेगू (बरमा) के राज्य को जीत लिया। | *अपने साम्राज्य का विस्तार कर चोलराज्य ने समुद्र पार भी अनेक आक्रमण किए, और पेगू (बरमा) के राज्य को जीत लिया। | ||
*निःसन्देह, राजेन्द्र प्रथम अनुपम वीर और विजेता था। उसकी शक्ति केवल स्थम में ही प्रकट नहीं हुई, नौ-सेना द्वारा उसने समुद्र पार भी विजय यात्राएँ कीं। | *निःसन्देह, राजेन्द्र प्रथम अनुपम वीर और विजेता था। उसकी शक्ति केवल स्थम में ही प्रकट नहीं हुई, नौ-सेना द्वारा उसने समुद्र पार भी विजय यात्राएँ कीं। | ||
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14:00, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
- राजेन्द्र प्रथम (1014-1044ई.) राजराज प्रथम का पुत्र एवं उत्तराधिकारी 1014 ई. में चोल राजवंश के सिंहासन पर बैठा।
- राजेन्द्र अपने पिता के समान ही साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का था।
- उसकी उपलब्धियों के बारे में सही जानकारी 'तिरुवालंगाडु' एवं 'करंदाइ अभिलेखों' से मिलती है।
- अपने विजय अभियान के प्रारम्भ में उसने पश्चिमी चालुक्यों, पाण्ड्यों एवं चेरों को पराजित किया।
- इसके बाद लगभग 1017 ई. में सिंहल (श्रीलंका) राज्य के विरुद्ध अभियान में उसने वहां के शासक महेन्द्र पंचम को परास्त कर सम्पूर्ण सिंहल राज्य को अपने अधिकार में कर लिया।
- सिंहली नरेश महेन्द्र पंचम को चोल राज्य में बंदी के रूप में रखा गया। यही पर 1029 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
- सिंहल विजय के बाद राजेन्द्र चोल ने उत्तर पूर्वी भारतीय प्रदेशों को जीतने के लिए विशाल हस्ति सेना का इस्तेमाल किया।
- राजेन्द्र प्रथम के सामरिक अभियानों का महत्त्वपूर्ण कारनामा था- उसकी सेनाओं का गंगा नदी पार कर कलिंग एवं बंगाल तक पहुंच जाना।
- कलिंग में चोल सेनाओं ने पूर्वी गंग शासक मधुकामानव को पराजित किया। सम्भवतः इस अभियान का नेतृत्व 1022 ई. में विक्रम चोल द्वारा किया गया।
- गंगा घाटी के अभियान की सफलता पर राजेन्द्र प्रथम ने 'गंगैकोण्डचोल' की उपाधि धारण की तथा इस विजय की स्मृति में कावेरी तट के निकट 'गंगैकोण्डचोल' नामक नई राजधानी का निर्माण करवाया।
- उसने सिंचाई हेतु चोलगंगम नामक एक बड़े तालाब का भी निर्माण करवाया।
- राजेन्द्र प्रथम ने अरब सागर स्थित सदिमन्तीक नामक द्वीप पर भी अपना अधिकार स्थापित किया। चोल शासक द्वारा यह पश्चिम का सर्वप्रथम अभियान था।
- श्रीलंका को विजित कर राजेन्द्र ने पाण्ड्य तथा चेरों को परास्त किया।
- इन राज्यों पर अधिकार करने के पश्चात् उसने अपने पुत्र राजाधिराज प्रथम को पाण्ड्य प्रदेश का वायसराय (महामण्डलेश्वर) नियुक्त किया तथा उसे चोल पाण्ड्य की उपाधि दी।
- राजेन्द्र प्रथम की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विजय 1025 ई. कडारम के श्रीविजय साम्राज्य के विरुद्ध थी।
- राजेन्द्र प्रथम द्वारा बंगाल पर आक्रमण निश्चित रूप् से तमिल प्रदेश द्वारा प्रथम सैनिक अभियान था।
- राजेन्द्र प्रथम ने श्री विजय (शैलेन्द्र) शासक विजयोत्तुंगवर्मन को पराजित कर जावा, सुमात्रा एवं मलया प्रायद्वीप पर अधिकार कर लिया।
- उसने 'गंगैकोण्डचोल', 'वीर राजेन्द्र', 'मुडिगोंडचोल' आदि उपाधियाँ धारण की थीं।
- महान विद्याप्रेमी होने के कारण ही उसने पंडित चोल की उपाधि ग्रहण की। उसने दो बार अपना दूतमंडल भी चीन भी भेजा था।
- उत्तरी भारत की विजय यात्रा में जिन राज्यों को राजेन्द्र ने आक्रान्त किया, उनमें कलिंग, दक्षिण कोशल, दण्डभुक्ति (बालासोर और मिदनापुर) राढ, पूर्वी बंगाल और गौढ़ के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
- उत्तर-पूर्वी भारत में इस समय पालवंशी राजा महीपाल का शासन था। राजेन्द्र ने उसे पराजित किया, और गंगा नदी के तट पर पहुँचकर 'गगैकोंण्ड' की उपाधि धारण की।
- उत्तरी भारत में स्थायी रूप से शासन करने का प्रयास राजेन्द्र ने नहीं किया।
- अपने साम्राज्य का विस्तार कर चोलराज्य ने समुद्र पार भी अनेक आक्रमण किए, और पेगू (बरमा) के राज्य को जीत लिया।
- निःसन्देह, राजेन्द्र प्रथम अनुपम वीर और विजेता था। उसकी शक्ति केवल स्थम में ही प्रकट नहीं हुई, नौ-सेना द्वारा उसने समुद्र पार भी विजय यात्राएँ कीं।
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