"उपमेयोपमा अलंकार": अवतरणों में अंतर
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*भामह, वामन, मम्मट, विश्वनाथ और उद्भट आदि आचार्यों ने इसे स्वतंत्र अलंकार माना है। | *भामह, वामन, [[मम्मट]], विश्वनाथ और उद्भट आदि आचार्यों ने इसे स्वतंत्र अलंकार माना है। | ||
*[[दण्डी]], रुद्रट और भोज आदि आचार्य इसे उपमान के अंतर्गत मानते हैं। | *[[दण्डी]], रुद्रट और भोज आदि आचार्य इसे उपमान के अंतर्गत मानते हैं। | ||
*[[हिंदी भाषा]] के आचार्यों [[मतिराम]], [[भूषण]], [[दास]], [[पद्माकर]] आदि कवियों ने '''उपमेयोपमा अलंकार''' को स्वतंत्र अलंकार माना है। | *[[हिंदी भाषा]] के आचार्यों [[मतिराम]], [[भूषण]], [[दास]], [[पद्माकर]] आदि कवियों ने '''उपमेयोपमा अलंकार''' को स्वतंत्र अलंकार माना है। | ||
*[[देव]] ने 'काव्य रसायन' में इसे [[उपमा अलंकार]] के भेद के रूप में स्वीकार किया है। | *[[देव]] ने 'काव्य रसायन' में इसे [[उपमा अलंकार]] के भेद के रूप में स्वीकार किया है। | ||
*मम्मट के अनुसार 'विपर्यास उपमेयोपमातयो:' | *[[मम्मट]] के अनुसार 'विपर्यास उपमेयोपमातयो:' अर्थात् जहाँ उपमेय और उपमान में परस्पर परिवर्तन प्रतिपादित किया जाए वहाँ उपमेयोपमा अलंकार होता है। इस अलंकार में परस्पर उपमा देने से अन्य उपमानों के निरादर का भाव व्यंजित है, जो इस अलंकार की विशेषता है। | ||
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07:45, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
उपमेय और उपमान को परस्पर उपमान और उपमेय बनाने की प्रक्रिया को उपमेयोपमा अलंकार कहते हैं।
- भामह, वामन, मम्मट, विश्वनाथ और उद्भट आदि आचार्यों ने इसे स्वतंत्र अलंकार माना है।
- दण्डी, रुद्रट और भोज आदि आचार्य इसे उपमान के अंतर्गत मानते हैं।
- हिंदी भाषा के आचार्यों मतिराम, भूषण, दास, पद्माकर आदि कवियों ने उपमेयोपमा अलंकार को स्वतंत्र अलंकार माना है।
- देव ने 'काव्य रसायन' में इसे उपमा अलंकार के भेद के रूप में स्वीकार किया है।
- मम्मट के अनुसार 'विपर्यास उपमेयोपमातयो:' अर्थात् जहाँ उपमेय और उपमान में परस्पर परिवर्तन प्रतिपादित किया जाए वहाँ उपमेयोपमा अलंकार होता है। इस अलंकार में परस्पर उपमा देने से अन्य उपमानों के निरादर का भाव व्यंजित है, जो इस अलंकार की विशेषता है।
- उदाहरण
'तेरो तेज सरजा समत्थ दिनकर सो है,
दिनकर सोहै तेरे तेज के निकरसों।'[1]
तरल नैन तुव बचनसे, स्याम तामरस तार।
स्याम तामरस तारसे, तेरे कच सुकुमार।[2]
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