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'''विश्व जल दिवस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''World Water Day'') प्रत्येक वर्ष [[22 मार्च]] को मनाया जाता है। आज विश्व में [[जल]] का संकट कोने-कोने में व्याप्त है। लगभग हर क्षेत्र में विकास हो रहा है। दुनिया औद्योगीकरण की राह पर चल रही है, किंतु स्वच्छ और रोग रहित जल मिल पाना कठिन हो रहा है। विश्व भर में साफ़ जल की अनुपलब्धता के चलते ही जल जनित रोग महामारी का रूप ले रहे हैं। कहीं-कहीं तो यह भी सुनने में आता है कि अगला विश्व युद्ध जल को लेकर होगा। इंसान जल की महत्ता को लगातार भूलता गया और उसे बर्बाद करता रहा, जिसके फलस्वरूप आज जल संकट सबके सामने है। विश्व के हर नागरिक को पानी की महत्ता से अवगत कराने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र ने "विश्व जल दिवस" मनाने की शुरुआत की थी।
==जल दिवस का प्रारम्भ==
'विश्व जल दिवस' मनाने की शुरुआत [[संयुक्त राष्ट्र]] ने वर्ष [[1992]] के अपने अधिवेशन में [[22 मार्च]] को की थी। 'विश्व जल दिवस' की अंतरराष्ट्रीय पहल 'रियो डि जेनेरियो' में 1992 में आयोजित 'पर्यावरण तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन' (यूएनसीईडी) में की गई थी, जिस पर सर्वप्रथम [[1993]] को पहली बार 22 मार्च के दिन पूरे विश्व में 'जल दिवस' के मौके पर जल के संरक्षण और रख-रखाव पर जागरुकता फैलाने का कार्य किया गया।
====संकल्प का दिन====
'22 मार्च' यानी कि 'विश्व जल दिवस', पानी बचाने के संकल्प का दिन है। यह दिन जल के महत्व को जानने का और पानी के संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत होने का दिन है। आँकड़े बताते हैं कि विश्व के 1.5 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। प्रकृति इंसान को जीवनदायी संपदा जल एक चक्र के रूप में प्रदान करती है, इंसान भी इस चक्र का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। चक्र को गतिमान रखना प्रत्येक व्यक्ति की ज़िम्मेदारी है। इस चक्र के थमने का अर्थ है, जीवन का थम जाना। प्रकृति के ख़ज़ाने से जितना पानी हम लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है। हम स्वयं पानी का निर्माण नहीं कर सकते। अतः प्राकृतिक संसाधनों को दूषित नहीं होने देना चाहिए और पानी को व्यर्थ होने से भी बचाना चाहिए। '''22 मार्च का दिन यह प्रण लेने का दिन है कि हर व्यक्ति को पानी बचाना है।'''
[[चित्र:Save-Water.jpg|thumb|left|जल]]
==जल ही जीवन==
[[जल]] ही जीवन है, जल के बिना जीवन की कल्पना अधूरी है। सब लोग इस तथ्य को भली-भाँति जानते हैं कि [[जल]] कितना महत्त्वपूर्ण है। लेकिन यह सब बातें हम तब भूल जाते हैं, जब अपनी पानी से भरी टंकी के सामने मुँह धोते हुए पानी को बर्बाद करते रहते हैं। हम कई लीटर मूल्यवान पानी अपनी कीमती कार को नहलाने में या फिर स्वयं भी काफ़ी देर तक नहाने में बर्बाद कर देते हैं। किताबी दुनिया और किताबी ज्ञान को हममें से बहुत कम ही असल ज़िंदगी में उतार पाते हैं और इसी का नतीजा है कि आज [[भारत]] और विश्व के सामने पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है। धरातल पर तीन चौथाई पानी होने के बाद भी पीने योग्य पानी एक सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है। उस सीमित मात्रा के पानी का इंसान ने अंधाधुध दोहन किया है। नदी, तालाबों और झरनों को पहले ही हम कैमिकल की भेंट चढ़ा चुके हैं, जो बचा हुआ है, उसे अब हम अपनी अमानत समझ कर अंधाधुंध खर्च कर रहे हैं। लोगों को पानी खर्च करने में कोई हर्ज भी नहीं, क्यूंकि अगर घर के नल में पानी नहीं आता तो वह पानी का टैंकर आदि मंगवा लेते हैं। किंतु हालात हर जगह एक जैसे नहीं होते हैं।
[[चित्र:Women-get-Water.jpg|thumb|300px|पानी लेकर आती महिलाएँ]]
==भारत में जल संकट==
यदि हम भारत की बात करें तो देखेंगे कि एक तरफ [[दिल्ली]], [[मुंबई]] जैसे महानगर हैं, जहाँ पानी की किल्लत तो है, किंतु फिर भी यहाँ पानी की समस्या विकराल रूप में नहीं है। लेकिन देश के कुछ ऐसे राज्य भी हैं, जहाँ आज भी कितने ही लोग साफ़ पानी के अभाव में या फिर रोग जनित गन्दे पानी से दम तोड़ रहे हैं। [[राजस्थान]], [[जैसलमेर]] और अन्य रेगिस्तानी इलाकों में पानी आदमी की जान से भी ज़्यादा कीमती है। पीने का पानी इन इलाकों में बड़ी कठिनाई से मिलता है। कई-कई किलोमीटर चल कर इन प्रदेशों की महिलाएँ पीने का पानी लाती हैं। इनकी ज़िंदगी का एक अहम समय पानी की जद्दोजहद में ही बीत जाता है।
==महत्त्वपूर्ण तथ्य==
जल के विषय में एक नहीं बल्कि कई चौंका देने वाले तथ्य सामने आये हैं। विश्व में और विशेष रूप से [[भारत]] में पानी किस प्रकार नष्ट होता है, इस विषय में जो तथ्य सामने आए हैं, उस पर जागरूकता से ध्यान देकर हम पानी के अपव्यय को रोक सकते हैं। अनेक तथ्य ऐसे हैं, जो हमें आने वाले ख़तरे से तो सावधान करते ही हैं, दूसरों से प्रेरणा लेने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं। पानी के महत्व व इसके अनजाने स्रोतों की जानकारी भी इनसे मिलती है। निम्नलिखित कुछ तथ्य ध्यान देने योग्य हैं-
[[चित्र:Tap-and-Water.jpg|thumb|left|200px|नल से आता पानी]]
*[[मुंबई]] में रोज़ वाहन धोने में ही 50 लाख लीटर पानी खर्च हो जाता है।
*[[दिल्ली]], [[मुंबई]] और [[चेन्नई]] जैसे महानगरों में पाइप लाइनों के वॉल्व की ख़राबी के कारण रोज़ 17 से 44 प्रतिशत पानी बेकार बह जाता है।
*इज़राइल में औसतन मात्र 10 सेंटीमीटर [[वर्षा]] होती है। इस वर्षा से वह इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह उसका निर्यात कर सकता है। दूसरी ओर [[भारत]] में औसतन 50 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होने के बावजूद अनाज की कमी बनी रहती है।
*पिछले 50 वर्षों में पानी के लिए 37 भीषण हत्याकांड हुए हैं।
*भारतीय नारी पीने के पानी के लिए रोज ही औसतन 4 मील {{मील|मील=4}} सफ़र पैदल ही तय करती है।
*जल जनित रोगों से विश्व में हर [[वर्ष]] 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है।
*हमारे [[पृथ्वी ग्रह]] का 70% से अधिक हिस्सा जल से भरा है, जिस पर एक अरब 40 घन किलो लीटर पानी है। परन्तु, जल की इस विशाल मात्रा में मीठे जल की मात्रा काफ़ी कम है। इसमें से 97.3 प्रतिशत पानी [[समुद्र]] में है, जो खारा है, शेष 2.7% मीठा जल है। इसका 75.2 फीसदी भाग ध्रुवीय क्षेत्रों में तथा 22.6 फीसदी भूमि जल के रूप में है। इस जल का शेष भाग [[झील|झीलों]], नदियों, [[कुआँ|कुओं]], वायुमंडल में, नमी के रूप में तथा हरे पेड़-पौधों में उपस्थित होता है। इनमें से उपयोग में आने वाला जल का हिस्सा थोड़ा है, जो नदियों, झीलों, तथा भूमि जल के रूप में मौजूद होता है। इस पानी का 60वाँ हिस्सा खेती और उद्योग कारखानों में खपत होता है। बाकी का 40वाँ हिस्सा हम पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपड़े धोने एवं साफ़-सफ़ाई में खर्च करते हैं। दुनिया में उपस्थित मीठे जल की एक प्रतिशत मात्रा<ref>पृथ्वी पर पाए जाने वाले कुल जल की मात्रा का 007%</ref> हमारे सीधे उपयोग के लिए उपलब्ध है।
*प्रत्येक व्यक्ति को कहीं भी प्रतिदिन 30 से 50 लीटर स्वच्छ तथा सुरक्षित जल की आवश्यकता होती है और इसके बावजूद 884 मिलियन लोगों को सुरक्षित जल उपलब्ध नहीं है।
*दुनिया भर में प्रत्येक वर्ष 1,500 घन किलोमीटर गंदे जल का निर्माण होता है। भले ही गंदगी तथा गंदे जल को[[ऊर्जा]] तथा सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जा सकता हैं, पर ऐसा होता नहीं है। विकासशील देशों में 80 फीसदी कचरों को बिना शुद्ध किये हीं निष्कासित कर दिया जाता है, क्योंकि उनमें इसके लिए कोई नियम तथा संसाधन उपलब्ध नहीं है।
[[चित्र:Water-Pollution-2.jpg|thumb|300px|[[जल प्रदूषण]]]]
*यदि ब्रश करते समय नल खुला रह गया है, तो पाँच मिनट में क़रीब 25 से 30 लीटर पानी बरबाद होता है।
*नहाने के टब में नहाते समय 300 से 500 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामान्य रूप से नहाने में 100 से 150 लीटर पानी खर्च होता है।
*विश्व में प्रति 10 व्यक्तियों में से 2 व्यक्तियों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पाता है।
*प्रति वर्ष 3 अरब लीटर बोतल पैक पानी मनुष्य द्वारा पीने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
*नदियाँ पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं। जहाँ एक ओर नदियों में बढ़ते [[प्रदूषण]] रोकने के लिए विशेषज्ञ उपाय खोज रहे हैं, वहीं कल कारखानों से बहते हुए रसायन उन्हें भारी मात्रा में दूषित कर रहे हैं। ऐसी अवस्था में जब तक क़ानून में सख्ती नहीं बरती जाती, अधिक से अधिक लोगों को दूषित पानी पीने का समय आ सकता है।
*[[पृथ्वी]] पर पैदा होने वाली सभी वनस्पतियाँ से हमें पानी मिलता है।
*[[आलू]] में और [[अनन्नास]] में 80 प्रतिशत और टमाटर में 15 प्रतिशत पानी होता है।
*पीने के लिए मानव को प्रतिदिन 3 लीटर और पशुओं को 50 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।
*एक लीटर [[गाय]] का [[दूध]] प्राप्त करने के लिए 800 लीटर पानी खर्च करना पड़ता है। एक किलो [[गेहूँ]] उगाने के लिए एक हज़ार लीटर और एक किलो [[चावल]] उगाने के लिए चार हज़ार लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इस प्रकार [[भारत]] में 83 प्रतिशत पानी खेती और सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://hindi.indiawaterportal.org/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5-%E0%A4%9C%E0%A4%B2-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B8 |title=विश्व जल दिवस |accessmonthday=22 मार्च |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) |language=हिंदी }}</ref>
==बारिश के पानी का महत्त्व==
[[चित्र:Rain-Water-Harvesting.jpg|thumb|250px|बारिश के जल का संचयन]]
विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या तथा औद्योगिक विकास ने भी [[प्रदूषण]] में बढ़ोतरी की है, जिससे अब स्वच्छ जल की मांग और भी बढ़ गई है। मानव तथा पर्यावरण दशा, पेय जल तथा [[कृषि]] जल की वर्तमान और भविष्य की उपलब्धता खतरे में है। इसके बावजूद [[जल प्रदूषण]] एक प्रभावशाली मुद्दा नहीं बन पा रहा है। आज का समय बहुत महत्त्वपूर्ण है, जब प्रत्येक व्यक्ति को [[वर्षा]] का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करनी चाहिए। बारिश की एक-एक बूँद कीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है कि पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा। पहले कहा गया था कि हमारा देश वह देश है, जिसकी गोदी में हज़ारों नदियाँ खेलती थीं, किंतु आज वे नदियाँ हज़ारों में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं। वे सब नदियाँ कहाँ गई, कोई नहीं बता सकता। नदियों की बात छोड़ दी जाये तो हमारे गाँव-मोहल्लों से तालाब आज गायब हो गए हैं। इनके रख-रखाव और संरक्षण के विषय में बहुत कम कार्य किया गया है।
====जागरुकता की आवश्यकता====
पानी का महत्व [[भारत]] के लिए कितना है, यह हम इसी बात से जान सकते हैं कि हमारी [[भाषा]] में पानी पर आधारित कई मुहावरे और लोकोक्तियाँ हैं। विज्ञान और पर्यावरण के ज्ञान से मानव ने जो प्रगति की है, उसे प्रकृति संरक्षण में लगाना भी ज़रूरी है। पिछले सालों में [[तमिलनाडु]] ने वर्षा जल का संरक्षण करके जो मिसाल क़ायम की है, उसे सारे देश में विकसित करने की आवश्यकता है। ऐसा नहीं है कि पानी की समस्या से हम जीत नहीं सकते। अगर सही ढ़ंग से पानी का सरंक्षण किया जाए और जितना हो सके पानी को बर्बाद करने से रोका जाए तो इस समस्या का समाधान बेहद आसान हो जाएगा। लेकिन इसके लिए जरुरत है- जागरुकता की। एक ऐसी जागरुकता की, जिसमें छोटे से छोटे बच्चे से लेकर बड़े-बूढ़े भी पानी को बचाना अपना धर्म समझें।


जल ही जीवन है, जल के बिना जीवन की कल्पना अधूरी है। हम सब जानते हैं हमारे लिए जल कितना महत्वपूर्ण है। लेकिन यह सब बातें हम तब भूल जाते हैं जब अपनी टंकी के सामने मुंह धोते हुए पानी को बर्बाद करते रहते हैं और तब जब हम कई लीटर मूल्यवान पानी अपनी कीमती कार को नहलाने में बर्बाद कर देते हैं। किताबी दुनिया और किताबी ज्ञान को हममें से बहुत कम ही असल जिंदगी में उतार पाते हैं और इसी का नतीजा है कि आज भारत और विश्व के सामने पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है।
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
धरातल पर तीन चौथाई पानी होने के बाद भी पीने योग्य पानी एक सीमित मात्रा में ही है। उस सीमित मात्रा के पानी का इंसान ने अंधाधुध दोहन किया है। नदी, तालाबों और झरनों को पहले ही हम कैमिकल की भेंट चढ़ा चुके हैं, जो बचा खुचा है उसे अब हम अपनी अमानत समझ कर अंधाधुंध खर्च कर रहे हैं। और लोगों को पानी खर्च करने में कोई हर्ज भी नहीं क्यूंकि अगर घर के नल में पानी नहीं आता तो वह पानी का टैंकर मंगवा लेते हैं। सीधी सी बात है पानी की कीमत को आज भी आदमी नहीं समझ पाया है क्यूंकि सबको लगता है आज अगर यह नहीं है तो कल तो मिल ही जाएगा।
 
पर हालात हर जगह एक जैसे कहां होते हैं? अगर हम भारत की बात करें तो देखेंगे कि एक तरफ दिल्ली, मुंबई जैसे महानगर हैं जहां पानी की किल्लत तो है पर फिर भी यहां पानी की समस्या विकराल रुप में नहीं है। यहां पानी के लिए जिंदगी दांव पर नहीं लगती पर देश के कुछ ऐसे राज्य भी हैं जहां आज तक जिंदगियां पानी की वजह से दम तोड़ती नजर आती हैं। राजस्थान, जैसलमेर और अन्य रेगिस्तानी इलाकों में पानी आदमी की जान से भी ज़्यादा कीमती है। पीने का पानी इन इलाकों में बड़ी कठिनाई से मिलता है। कई कई किलोमीटर चल कर इन प्रदेशों की महिलाएं पीने का पानी लाती हैं। इनकी जिंदगी का एक अहम समय पानी की जद्दोजहद में ही बीत जाता है।
 
पानी की इसी जंग को खत्म करने और इसके प्रभाव को कम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 1992 के अपने अधिवेशन में 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रुप में मनाने का निश्चय किया। विश्व जल दिवस की अंतरराष्ट्रीय पहल 'रियो डि जेनेरियो' में 1992 में आयोजित पर्यावरण तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCED) में की गई। जिस पर सर्वप्रथम 1993 को पहली बार 22 मार्च के दिन पूरे विश्व में जल दिवस के मौके पर जल के संरक्षण और रखरखाव पर जागरुकता फैलाने का कार्य किया गया।
 
22 मार्च याने विश्व जल दिवस। पानी बचाने के संकल्प का दिन। पानी के महत्व को जानने का दिन और पानी के संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत होने का दिन। आँकड़े बताते हैं कि विश्व के 1.5 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। प्रकृति जीवनदायी संपदा जल हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है, हम भी इस चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। चक्र को गतिमान रखना हमारी ज़िम्मेदारी है, चक्र के थमने का अर्थ है, हमारे जीवन का थम जाना। प्रकृति के ख़ज़ाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है। हम स्वयं पानी का निर्माण नहीं कर सकते अतः प्राकृतिक संसाधनों को दूषित न होने दें और पानी को व्यर्थ न गँवाएँ यह प्रण लेना आज के दिन बहुत आवश्यक है।
 
पानी के बारे में एक नहीं, कई चौंकाने वाले तथ्य हैं। विश्व में और विशेष रुप से भारत में पानी किस प्रकार नष्ट होता है इस विषय में जो तथ्य सामने आए हैं उस पर जागरूकता से ध्यान देकर हम पानी के अपव्यय को रोक सकते हैं। अनेक तथ्य ऐसे हैं जो हमें आने वाले ख़तरे से तो सावधान करते ही हैं, दूसरों से प्रेरणा लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और पानी के महत्व व इसके अनजाने स्रोतों की जानकारी भी देते हैं।
 
* मुंबई में रोज़ वाहन धोने में ही 50 लाख लीटर पानी खर्च हो जाता है।
* दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे महानगरों में पाइप लाइनों के वॉल्व की खराबी के कारण रोज़ 17 से 44 प्रतिशत पानी बेकार बह जाता है।
* इज़राइल में औसतन मात्र 10 सेंटी मीटर वर्षा होती है, इस वर्षा से वह इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह उसका निर्यात कर सकता है। दूसरी ओर भारत में औसतन 50 सेंटी मीटर से भी अधिक वर्षा होने के बावजूद अनाज की कमी बनी रहती है।
* पिछले 50 वर्षों में पानी के लिए 37 भीषण हत्याकांड हुए हैं।
* भारतीय नारी पीने के पानी के लिए रोज ही औसतन चार मील पैदल चलती है।
* पानीजन्य रोगों से विश्व में हर वर्ष 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है।
* हमारे पृथ्वी ग्रह का 70% से अधिक हिस्सा जल से भरा है। जिस पर 1 अरब 40 घन किलो लीटर पानी है। परन्तु, जल की इस विशाल मात्रा में मीठे जल की मात्रा काफी कम है। इसमें से 97.3 प्रतिशत पानी समुद्र में है, जो खारा है, शेष 2.7% मीठा जल है। इसका 75.2 फीसदी भाग ध्रुवीय क्षेत्रों में तथा 22.6 फीसदी भूमि जल के रूप में है। इस जल का शेष भाग झीलों, नदियों, कुओं, वायुमंडल में, नमी के रूप में तथा हरे पेड़-पौधों में उपस्थित होता है। इनमें से उपयोग में आने वाला जल का हिस्सा थोड़ा है, जो नदियों, झीलों, तथा भूमि जल के रूप में मौजूद होता है। इस पानी का 60वाँ हिस्सा खेती और उद्योग कारखानों में खपत होता है। बाकी का 40वाँ हिस्सा हम पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपड़े धोने एवं साफ़-सफ़ाई में खर्च करते हैं। दुनिया में उपस्थित मीठे जल की 1% मात्रा (पृथ्वी पर पाए जाने वाले कुल जल की मात्रा का 007%) हमारे सीधे उपयोग के लिए उपलब्ध है।
* हमें कहीं भी प्रतिदिन 30 से 50 लीटर स्वच्छ तथा सुरक्षित जल की आवश्यकता होती है और इसके बावजूद 884 मिलियन लोगों को सुरक्षित जल उपलब्ध नहीं है।
* दुनियाभर में प्रत्येक वर्ष 1,500 घन किलोमीटर गंदे जल का निर्माण होता है। भले ही गंदगी तथा गंदे जल का ऊर्जा तथा सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जा सकता हैं, पर ऐसा होता नहीं है। विकासशील देशों में 80 फीसदी कचरों को बिना शुद्ध किये हीं निष्कासित कर दिया जाता है, क्योंकि उनमें इसके लिए कोई नियम तथा संसाधन उपलब्ध नहीं है।
 
* यदि ब्रश करते समय नल खुला रह गया है, तो पाँच मिनट में करीब 25 से 30 लीटर पानी बरबाद होता है।
* बाथ टब में नहाते समय 300 से 500 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामान्य रूप से नहाने में 100 से 150 लीटर पानी खर्च होता है।
* विश्व में प्रति 10 व्यक्तियों में से 2 व्यक्तियों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पाता है।
* प्रति वर्ष 3 अरब लीटर बोतल पैक पानी मनुष्य द्वारा पीने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
* नदियाँ पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं। जहाँ एक ओर नदियों में बढ़ते प्रदूषण रोकने के लिए विशेषज्ञ उपाय खोज रहे हैं वहीं कल कारखानों से बहते हुए रसायन उन्हें भारी मात्रा में दूषित कर रहे हैं। ऐसी अवस्था में जब तक कानून में सख्ती नहीं बरती जाती, अधिक से अधिक लोगों को दूषित पानी पीने का समय आ सकता है।
* पृथ्वी पर पैदा होने वाली सभी वनस्पतियाँ से हमें पानी मिलता है।
* आलू में और अनन्नास में 80 प्रतिशत और टमाटर में 15 प्रतिशत पानी है।
* पीने के लिए मानव को प्रतिदिन 3 लीटर और पशुओं को 50 लीटर पानी चाहिए।
* 1 लीटर गाय का दूध प्राप्त करने के लिए 800 लीटर पानी खर्च करना पड़ता है, एक किलो गेहूँ उगाने के लिए 1 हज़ार लीटर और एक किलो चावल उगाने के लिए 4 हज़ार लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इस प्रकार भारत में 83 प्रतिशत पानी खेती और सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है।
 
वहीं जनसंख्या तथा औद्योगिक विकास ने प्रदूषण में बढ़ोतरी की है जिससे अब स्वच्छ जल की मांग और भी बढ़ गई है। मानव तथा पर्यावरण दशा, पेय जल तथा कृषि जल की वर्तमान और भविष्य की उपलब्धता खतरे में है, इसके बावजूद जल प्रदूषण एक प्रभावशाली मुद्दा नहीं बन पा रहा है।
 
समय आ गया है जब हम वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करें। बारिश की एक-एक बूँद कीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा। पहले कहा गया था कि हमारा देश वह देश है जिसकी गोदी में हज़ारों नदियाँ खेलती थी, आज वे नदियाँ हज़ारों में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं। कहाँ गई वे नदियाँ, कोई नहीं बता सकता। नदियों की बात छोड़ दो, हमारे गाँव-मोहल्लों से तालाब आज गायब हो गए हैं, इनके रख-रखाव और संरक्षण के विषय में बहुत कम कार्य किया गया है।
 
पानी का महत्व भारत के लिए कितना है यह हम इसी बात से जान सकते हैं कि हमारी भाषा में पानी के कितने अधिक मुहावरे हैं। आज पानी की स्थिति देखकर हमारे चेहरों का पानी तो उतर ही गया है, मरने के लिए भी अब चुल्लू भर पानी भी नहीं बचा, अब तो शर्म से चेहरा भी पानी-पानी नहीं होता, हमने बहुतों को पानी पिलाया, पर अब पानी हमें रुलाएगा, यह तय है। सोचो तो वह रोना कैसा होगा, जब हमारी आँखों में ही पानी नहीं रहेगा? वह दिन दूर नहीं, जब सारा पानी हमारी आँखों के सामने से बह जाएगा और हम कुछ नहीं कर पाएँगे।
 
लेकिन कहा है ना कि आस का दामन कभी नहीं छूटना चाहिए तो ईश्वर से यही कामना है कि वह दिन कभी न आए जब इंसान को पानी की कमी हो।
 
लेकिन कहा है ना कि आस का दामन कभी नहीं छूटना चाहिए तो ईश्वर से यही कामना है कि वह दिन कभी न आए जब इंसान को पानी की कमी हो। विज्ञान और पर्यावरण के ज्ञान से मानव ने जो प्रगति की है उसे प्रकृति संरक्षण में लगाना भी ज़रूरी है। पिछले सालों में तमिलनाडु ने वर्षाजल संरक्षण कर जो मिसाल कायम की है उसे सारे देश में विकसित करने की आवश्यकता है।
 
ऐसा नहीं है कि पानी की समस्या से हम जीत नहीं सकते। अगर सही ढ़ंग से पानी का सरंक्षण किया जाए और जितना हो सके पानी को बर्बाद करने से रोका जाए तो इस समस्या का समाधान बेहद आसान हो जाएगा। लेकिन इसके लिए जरुरत है जागरुकता की। एक ऐसी जागरुकता की जिसमें छोटे से छोटे बच्चे से लेकर बड़े बूढ़े भी पानी को बचाना अपना धर्म समझें। आप पानी को बचाने के लिए कौन से कदम उठाते हैं? आपका एक छोटा सा प्रयास कईयों की प्यास बुझा सकता है, तो लिखिए अपने टिप्स, सलाह और कार्य जिनसे आपको लगता है पानी बचाया जा सकता है।
 
वर्ष 2010 का विषय है, 'स्वस्थ विश्व हेतु स्वच्छ जल'।
 
वर्ष 2011 के विश्व जल दिवस का विषय 'शहरों के लिए पानी' – शहरीकरण की प्रमुख भावी चुनौतियों को उजागर करता है। शहरीकरण के कारण अधिक सक्षम जल प्रबंधन और बढ़िया पेय जल और सैनिटेशन की जरूरत पड़ती है। लेकिन शहरों के सामने यह एक गंभीर समस्या है। शहरों की बढ़ती आबादी और पानी की बढ़ती मांग से कई दिक्कतें खड़ी हो गई हैं। जिन लोगों के पास पानी की समस्या से निपटने के लिए कारगर उपाय नहीं है उनके लिए मुसीबतें हर समय मुंह खोले खड़ी हैं। कभी बीमारियों का संकट तो कभी जल का अकाल, एक शहरी को आने वाले समय में ऐसी तमाम समस्याओं से रुबरु होना पड़ सकता है।
 
वर्ष 2009 का विश्व जल दिवस ‘साझे का पानी, अवसरों में साझेदारी‘, विषय के रूप में मनाया जा रहा है। यह विषय इस बात को रेखांकित करता है कि सीमा पार के जल संसाधन किस प्रकार एकता को प्रोत्साहित कर सकते हैं। संसार भर में कम से कम 300 अंतर्राष्ट्रीय जल समझौते मौजूद हैं, कुछ जल समझौते ऐसे पक्षों के बीच हैं जो अन्य बातों को लेकर अकसर लड़ते ही रहते हैं। यह समझौते साझे के पानी के साधनों की संभाव्यता को द्रशाते हैं। ये समझौते आपसी विश्वास और शांति को किस प्रकार प्रस्फुटित कर सकते हैं, राजनीतिक इच्छा, एक उदार नीति का ढांचा, मजबूत आपसी रिश्ते हमें इस नींव पर निर्माण करने में सहायक होंगी जो सबके हित में है।
 
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
 
*[http://www.unwater.org/worldwaterday आधिकारिक वेबसाइट]
*[http://www.unwater.org/ unwater]
*[http://www.un.org/en/events/waterday/ world water day]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
{{महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय दिवस}}
[[Category:नया पन्ना दिसंबर-2011]]
[[Category:अंतरराष्ट्रीय दिवस]][[Category:महत्त्वपूर्ण दिवस]][[Category:विज्ञान कोश]]
 
__INDEX__
__INDEX__
[[Category:महत्त्वपूर्ण_दिवस]]

05:32, 22 मार्च 2018 के समय का अवतरण

विश्व जल दिवस
विश्व जल दिवस
विश्व जल दिवस
विवरण विश्व के हर नागरिक को पानी की महत्ता से अवगत कराने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र ने "विश्व जल दिवस" मनाने की शुरुआत की थी।
मनाने की तिथि 22 मार्च
शुरुआत 1992
संकल्प यह दिन जल के महत्व को जानने का और पानी के संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत होने का दिन है।
अन्य जानकारी आज भारत और विश्व के सामने पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है। धरातल पर तीन चौथाई पानी होने के बाद भी पीने योग्य पानी एक सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है।
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विश्व जल दिवस (अंग्रेज़ी: World Water Day) प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को मनाया जाता है। आज विश्व में जल का संकट कोने-कोने में व्याप्त है। लगभग हर क्षेत्र में विकास हो रहा है। दुनिया औद्योगीकरण की राह पर चल रही है, किंतु स्वच्छ और रोग रहित जल मिल पाना कठिन हो रहा है। विश्व भर में साफ़ जल की अनुपलब्धता के चलते ही जल जनित रोग महामारी का रूप ले रहे हैं। कहीं-कहीं तो यह भी सुनने में आता है कि अगला विश्व युद्ध जल को लेकर होगा। इंसान जल की महत्ता को लगातार भूलता गया और उसे बर्बाद करता रहा, जिसके फलस्वरूप आज जल संकट सबके सामने है। विश्व के हर नागरिक को पानी की महत्ता से अवगत कराने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र ने "विश्व जल दिवस" मनाने की शुरुआत की थी।

जल दिवस का प्रारम्भ

'विश्व जल दिवस' मनाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1992 के अपने अधिवेशन में 22 मार्च को की थी। 'विश्व जल दिवस' की अंतरराष्ट्रीय पहल 'रियो डि जेनेरियो' में 1992 में आयोजित 'पर्यावरण तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन' (यूएनसीईडी) में की गई थी, जिस पर सर्वप्रथम 1993 को पहली बार 22 मार्च के दिन पूरे विश्व में 'जल दिवस' के मौके पर जल के संरक्षण और रख-रखाव पर जागरुकता फैलाने का कार्य किया गया।

संकल्प का दिन

'22 मार्च' यानी कि 'विश्व जल दिवस', पानी बचाने के संकल्प का दिन है। यह दिन जल के महत्व को जानने का और पानी के संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत होने का दिन है। आँकड़े बताते हैं कि विश्व के 1.5 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। प्रकृति इंसान को जीवनदायी संपदा जल एक चक्र के रूप में प्रदान करती है, इंसान भी इस चक्र का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। चक्र को गतिमान रखना प्रत्येक व्यक्ति की ज़िम्मेदारी है। इस चक्र के थमने का अर्थ है, जीवन का थम जाना। प्रकृति के ख़ज़ाने से जितना पानी हम लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है। हम स्वयं पानी का निर्माण नहीं कर सकते। अतः प्राकृतिक संसाधनों को दूषित नहीं होने देना चाहिए और पानी को व्यर्थ होने से भी बचाना चाहिए। 22 मार्च का दिन यह प्रण लेने का दिन है कि हर व्यक्ति को पानी बचाना है।

जल

जल ही जीवन

जल ही जीवन है, जल के बिना जीवन की कल्पना अधूरी है। सब लोग इस तथ्य को भली-भाँति जानते हैं कि जल कितना महत्त्वपूर्ण है। लेकिन यह सब बातें हम तब भूल जाते हैं, जब अपनी पानी से भरी टंकी के सामने मुँह धोते हुए पानी को बर्बाद करते रहते हैं। हम कई लीटर मूल्यवान पानी अपनी कीमती कार को नहलाने में या फिर स्वयं भी काफ़ी देर तक नहाने में बर्बाद कर देते हैं। किताबी दुनिया और किताबी ज्ञान को हममें से बहुत कम ही असल ज़िंदगी में उतार पाते हैं और इसी का नतीजा है कि आज भारत और विश्व के सामने पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है। धरातल पर तीन चौथाई पानी होने के बाद भी पीने योग्य पानी एक सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है। उस सीमित मात्रा के पानी का इंसान ने अंधाधुध दोहन किया है। नदी, तालाबों और झरनों को पहले ही हम कैमिकल की भेंट चढ़ा चुके हैं, जो बचा हुआ है, उसे अब हम अपनी अमानत समझ कर अंधाधुंध खर्च कर रहे हैं। लोगों को पानी खर्च करने में कोई हर्ज भी नहीं, क्यूंकि अगर घर के नल में पानी नहीं आता तो वह पानी का टैंकर आदि मंगवा लेते हैं। किंतु हालात हर जगह एक जैसे नहीं होते हैं।

पानी लेकर आती महिलाएँ

भारत में जल संकट

यदि हम भारत की बात करें तो देखेंगे कि एक तरफ दिल्ली, मुंबई जैसे महानगर हैं, जहाँ पानी की किल्लत तो है, किंतु फिर भी यहाँ पानी की समस्या विकराल रूप में नहीं है। लेकिन देश के कुछ ऐसे राज्य भी हैं, जहाँ आज भी कितने ही लोग साफ़ पानी के अभाव में या फिर रोग जनित गन्दे पानी से दम तोड़ रहे हैं। राजस्थान, जैसलमेर और अन्य रेगिस्तानी इलाकों में पानी आदमी की जान से भी ज़्यादा कीमती है। पीने का पानी इन इलाकों में बड़ी कठिनाई से मिलता है। कई-कई किलोमीटर चल कर इन प्रदेशों की महिलाएँ पीने का पानी लाती हैं। इनकी ज़िंदगी का एक अहम समय पानी की जद्दोजहद में ही बीत जाता है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

जल के विषय में एक नहीं बल्कि कई चौंका देने वाले तथ्य सामने आये हैं। विश्व में और विशेष रूप से भारत में पानी किस प्रकार नष्ट होता है, इस विषय में जो तथ्य सामने आए हैं, उस पर जागरूकता से ध्यान देकर हम पानी के अपव्यय को रोक सकते हैं। अनेक तथ्य ऐसे हैं, जो हमें आने वाले ख़तरे से तो सावधान करते ही हैं, दूसरों से प्रेरणा लेने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं। पानी के महत्व व इसके अनजाने स्रोतों की जानकारी भी इनसे मिलती है। निम्नलिखित कुछ तथ्य ध्यान देने योग्य हैं-

नल से आता पानी
  • मुंबई में रोज़ वाहन धोने में ही 50 लाख लीटर पानी खर्च हो जाता है।
  • दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे महानगरों में पाइप लाइनों के वॉल्व की ख़राबी के कारण रोज़ 17 से 44 प्रतिशत पानी बेकार बह जाता है।
  • इज़राइल में औसतन मात्र 10 सेंटीमीटर वर्षा होती है। इस वर्षा से वह इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह उसका निर्यात कर सकता है। दूसरी ओर भारत में औसतन 50 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होने के बावजूद अनाज की कमी बनी रहती है।
  • पिछले 50 वर्षों में पानी के लिए 37 भीषण हत्याकांड हुए हैं।
  • भारतीय नारी पीने के पानी के लिए रोज ही औसतन 4 मील

(लगभग 6.4 कि.मी.) सफ़र पैदल ही तय करती है।

  • जल जनित रोगों से विश्व में हर वर्ष 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है।
  • हमारे पृथ्वी ग्रह का 70% से अधिक हिस्सा जल से भरा है, जिस पर एक अरब 40 घन किलो लीटर पानी है। परन्तु, जल की इस विशाल मात्रा में मीठे जल की मात्रा काफ़ी कम है। इसमें से 97.3 प्रतिशत पानी समुद्र में है, जो खारा है, शेष 2.7% मीठा जल है। इसका 75.2 फीसदी भाग ध्रुवीय क्षेत्रों में तथा 22.6 फीसदी भूमि जल के रूप में है। इस जल का शेष भाग झीलों, नदियों, कुओं, वायुमंडल में, नमी के रूप में तथा हरे पेड़-पौधों में उपस्थित होता है। इनमें से उपयोग में आने वाला जल का हिस्सा थोड़ा है, जो नदियों, झीलों, तथा भूमि जल के रूप में मौजूद होता है। इस पानी का 60वाँ हिस्सा खेती और उद्योग कारखानों में खपत होता है। बाकी का 40वाँ हिस्सा हम पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपड़े धोने एवं साफ़-सफ़ाई में खर्च करते हैं। दुनिया में उपस्थित मीठे जल की एक प्रतिशत मात्रा[1] हमारे सीधे उपयोग के लिए उपलब्ध है।
  • प्रत्येक व्यक्ति को कहीं भी प्रतिदिन 30 से 50 लीटर स्वच्छ तथा सुरक्षित जल की आवश्यकता होती है और इसके बावजूद 884 मिलियन लोगों को सुरक्षित जल उपलब्ध नहीं है।
  • दुनिया भर में प्रत्येक वर्ष 1,500 घन किलोमीटर गंदे जल का निर्माण होता है। भले ही गंदगी तथा गंदे जल कोऊर्जा तथा सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जा सकता हैं, पर ऐसा होता नहीं है। विकासशील देशों में 80 फीसदी कचरों को बिना शुद्ध किये हीं निष्कासित कर दिया जाता है, क्योंकि उनमें इसके लिए कोई नियम तथा संसाधन उपलब्ध नहीं है।
जल प्रदूषण
  • यदि ब्रश करते समय नल खुला रह गया है, तो पाँच मिनट में क़रीब 25 से 30 लीटर पानी बरबाद होता है।
  • नहाने के टब में नहाते समय 300 से 500 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामान्य रूप से नहाने में 100 से 150 लीटर पानी खर्च होता है।
  • विश्व में प्रति 10 व्यक्तियों में से 2 व्यक्तियों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पाता है।
  • प्रति वर्ष 3 अरब लीटर बोतल पैक पानी मनुष्य द्वारा पीने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
  • नदियाँ पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं। जहाँ एक ओर नदियों में बढ़ते प्रदूषण रोकने के लिए विशेषज्ञ उपाय खोज रहे हैं, वहीं कल कारखानों से बहते हुए रसायन उन्हें भारी मात्रा में दूषित कर रहे हैं। ऐसी अवस्था में जब तक क़ानून में सख्ती नहीं बरती जाती, अधिक से अधिक लोगों को दूषित पानी पीने का समय आ सकता है।
  • पृथ्वी पर पैदा होने वाली सभी वनस्पतियाँ से हमें पानी मिलता है।
  • आलू में और अनन्नास में 80 प्रतिशत और टमाटर में 15 प्रतिशत पानी होता है।
  • पीने के लिए मानव को प्रतिदिन 3 लीटर और पशुओं को 50 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।
  • एक लीटर गाय का दूध प्राप्त करने के लिए 800 लीटर पानी खर्च करना पड़ता है। एक किलो गेहूँ उगाने के लिए एक हज़ार लीटर और एक किलो चावल उगाने के लिए चार हज़ार लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इस प्रकार भारत में 83 प्रतिशत पानी खेती और सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है।[2]

बारिश के पानी का महत्त्व

बारिश के जल का संचयन

विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या तथा औद्योगिक विकास ने भी प्रदूषण में बढ़ोतरी की है, जिससे अब स्वच्छ जल की मांग और भी बढ़ गई है। मानव तथा पर्यावरण दशा, पेय जल तथा कृषि जल की वर्तमान और भविष्य की उपलब्धता खतरे में है। इसके बावजूद जल प्रदूषण एक प्रभावशाली मुद्दा नहीं बन पा रहा है। आज का समय बहुत महत्त्वपूर्ण है, जब प्रत्येक व्यक्ति को वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करनी चाहिए। बारिश की एक-एक बूँद कीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है कि पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा। पहले कहा गया था कि हमारा देश वह देश है, जिसकी गोदी में हज़ारों नदियाँ खेलती थीं, किंतु आज वे नदियाँ हज़ारों में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं। वे सब नदियाँ कहाँ गई, कोई नहीं बता सकता। नदियों की बात छोड़ दी जाये तो हमारे गाँव-मोहल्लों से तालाब आज गायब हो गए हैं। इनके रख-रखाव और संरक्षण के विषय में बहुत कम कार्य किया गया है।

जागरुकता की आवश्यकता

पानी का महत्व भारत के लिए कितना है, यह हम इसी बात से जान सकते हैं कि हमारी भाषा में पानी पर आधारित कई मुहावरे और लोकोक्तियाँ हैं। विज्ञान और पर्यावरण के ज्ञान से मानव ने जो प्रगति की है, उसे प्रकृति संरक्षण में लगाना भी ज़रूरी है। पिछले सालों में तमिलनाडु ने वर्षा जल का संरक्षण करके जो मिसाल क़ायम की है, उसे सारे देश में विकसित करने की आवश्यकता है। ऐसा नहीं है कि पानी की समस्या से हम जीत नहीं सकते। अगर सही ढ़ंग से पानी का सरंक्षण किया जाए और जितना हो सके पानी को बर्बाद करने से रोका जाए तो इस समस्या का समाधान बेहद आसान हो जाएगा। लेकिन इसके लिए जरुरत है- जागरुकता की। एक ऐसी जागरुकता की, जिसमें छोटे से छोटे बच्चे से लेकर बड़े-बूढ़े भी पानी को बचाना अपना धर्म समझें।


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पृथ्वी पर पाए जाने वाले कुल जल की मात्रा का 007%
  2. विश्व जल दिवस (हिंदी) इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी)। अभिगमन तिथि: 22 मार्च, 2013।

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