"ओसियां जोधपुर": अवतरणों में अंतर

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'''ओसियां''' [[राजस्थान]] के [[जोधपुर|जोधपुर नगर]] से 32 मील {{मील|मील=32}} उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित है। यहाँ 9वीं शती से 12वीं शती ई. तक के स्थापत्य की सुन्दर कृतियां मिलती हैं। प्राचीन देवालयों में [[शिव]], [[विष्णु]], [[सूर्य]], [[ब्रह्मा]], [[अर्धनारीश्वर]], हरिहर, नवग्रह, [[कृष्ण]], तथा महिषमर्दिनी देवी आदि के मन्दिर उल्लेखनीय हैं।
'''ओसियां''' [[राजस्थान]] के [[जोधपुर|जोधपुर नगर]] से 32 मील {{मील|मील=32}} उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित है। यहाँ 9वीं शती से 12वीं [[शती]] ई. तक के स्थापत्य की सुन्दर कृतियां मिलती हैं। प्राचीन देवालयों में [[शिव]], [[विष्णु]], [[सूर्य]], [[ब्रह्मा]], [[अर्धनारीश्वर]], हरिहर, नवग्रह, [[कृष्ण]], तथा महिषमर्दिनी देवी आदि के मन्दिर उल्लेखनीय हैं।
==अन्य नाम==
==अन्य नाम==
स्थानीय प्राचीन [[अभिलेख|अभिलेखों]] से सूचित होता है कि ओसियां के कई नाम [[मध्य काल]] तक प्रचलित थे, जो हैं- 'उकेश', 'उपकेश', 'अकेश' आदि। किंवदंती है कि इसको प्राचीन काल में 'मेलपुरपत्तन' तथा 'नवनेरी' भी कहते थे। 'ओसवाल' जैनों का मूल स्थान ओसियां ही है।
स्थानीय प्राचीन [[अभिलेख|अभिलेखों]] से सूचित होता है कि ओसियां के कई नाम [[मध्य काल]] तक प्रचलित थे, जो हैं- 'उकेश', 'उपकेश', 'अकेश' आदि। किंवदंती है कि इसको प्राचीन काल में 'मेलपुरपत्तन' तथा 'नवनेरी' भी कहते थे। 'ओसवाल' जैनों का मूल स्थान ओसियां ही है।
==दर्शनीय स्थल==
==दर्शनीय स्थल==
आठवीं से दसवीं [[शताब्दी]] तक [[राजस्थान]] में मंदिर स्थापत्य की एक 'महामारू शैली' का विकास हुआ था। इस [[शैली]] ने [[जैन धर्म|जैन]] और [[वैष्णव]] परम्परा को सैकड़ों सुंदर मंदिर तथा देवालय दिये हैं। ओसियां के जैन मंदिर भी इसी शैली के जीवंत प्रमाण हैं। ओसियां में भगवान महावीर के मुख्य जैन मंदिर के अतिरिक्त और भी कई मंदिर हैं, जिनमें भगवान [[शिव]], [[विष्णु]], [[सूर्य देव|सूर्य]], [[ब्रह्मा]], [[अर्द्धनारीश्वर]], हरिहर, नवग्रह, दिक्पाल, [[श्रीकृष्ण]], पिप्पलाद माता एवं सचिया माता आदि उल्लेखनीय हैं। इन मंदिरों का वास्तुशिल्प, पत्थर पर खुदाई और प्रतिमा निर्माण, प्रत्येक वस्तु दर्शनीय हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=धरोहर राजस्थान सामान्य ज्ञान|लेखक=कुँवर कनक सिंह राव|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=पिंक सिटी पब्लिशर्स, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=डी-158|url=}}</ref>
आठवीं से दसवीं [[शताब्दी]] तक [[राजस्थान]] में मंदिर स्थापत्य की एक ''''महामारू शैली'''' का विकास हुआ था। इस [[शैली]] ने [[जैन धर्म|जैन]] और [[वैष्णव]] परम्परा को सैकड़ों सुंदर मंदिर तथा देवालय दिये हैं। ओसियां के जैन मंदिर भी इसी शैली के जीवंत प्रमाण हैं। ओसियां में [[भगवान महावीर]] के मुख्य जैन मंदिर के अतिरिक्त और भी कई मंदिर हैं, जिनमें भगवान [[शिव]], [[विष्णु]], [[सूर्य देव|सूर्य]], [[ब्रह्मा]], [[अर्द्धनारीश्वर]], हरिहर, नवग्रह, दिक्पाल, [[श्रीकृष्ण]], पिप्पलाद माता एवं सचिया माता आदि उल्लेखनीय हैं। इन मंदिरों का वास्तुशिल्प, पत्थर पर खुदाई और प्रतिमा निर्माण, प्रत्येक वस्तु दर्शनीय हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=धरोहर राजस्थान सामान्य ज्ञान|लेखक=कुँवर कनक सिंह राव|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=पिंक सिटी पब्लिशर्स, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=डी-158|url=}}</ref>
====गुप्तकालीन शिल्प====
====गुप्तकालीन शिल्प====
ओसियां की कला पर [[गुप्तकालीन कला और स्थापत्य]] का पर्याप्त प्रभाव दिखाई देता है। [[ग्राम]] के अंदर जैन [[तीर्थंकर]] [[महावीर]] का एक सुन्दर मन्दिर है, जिसे [[वत्सराज]] (770-800 ई.) ने बनवाया था। यह परकोटे के भीतर स्थित है। इसके तोरण अतीव भव्य हैं तथा स्तंभों पर तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं। यहीं एक स्थान पर '[[संवत]] 1075 [[आषाढ़]] सुदि 10 आदित्यवार स्वातिनक्षत्रे' यह लेख उत्कीर्ण है और सामने [[विक्रम संवत्]] 1013 की एक प्रशस्ति भी एक शिला पर खुदी है, जिससे ज्ञात होता है कि यह मंदिर [[प्रतिहार साम्राज्य|प्रतिहार]] नरेश वत्सराज के समय में बना था तथा 1013 वि. सं.<ref>= 956 ई.</ref> में इसके मंडप का निर्माण हुआ था।
ओसियां की कला पर [[गुप्तकालीन कला और स्थापत्य]] का पर्याप्त प्रभाव दिखाई देता है। [[ग्राम]] के अंदर जैन [[तीर्थंकर]] [[महावीर]] का एक सुन्दर मन्दिर है, जिसे [[वत्सराज]] (770-800 ई.) ने बनवाया था। यह परकोटे के भीतर स्थित है। इसके तोरण अतीव भव्य हैं तथा स्तंभों पर तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं। यहीं एक स्थान पर '[[संवत]] 1075 [[आषाढ़]] सुदि 10 आदित्यवार स्वातिनक्षत्रे' यह लेख उत्कीर्ण है और सामने [[विक्रम संवत्]] 1013 की एक प्रशस्ति भी एक शिला पर खुदी है, जिससे ज्ञात होता है कि यह मंदिर [[प्रतिहार साम्राज्य|प्रतिहार]] नरेश वत्सराज के समय में बना था तथा 1013 वि. सं.<ref>= 956 ई.</ref> में इसके मंडप का निर्माण हुआ था।
[[चित्र:Osiyan.jpg|thumb|left|200px|मन्दिर, ओसियां]]
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निकटवर्ती पहाड़ी पर एक और मंदिर विशाल परकोटे से घिरा हुआ दिखलाई पड़ता है। यह 'सचिया देवी' या [[शिलालेख|शिलालेखों]] की 'सच्चिकादेवी' से संबधित है, जो महिषमर्दिनी देवी का ही एक रूप है। यह भी जैन मंदिर है। मूर्ति पर एक लेख 1234 वि. सं. का भी है, जिससे इसका [[जैन धर्म]] से संबंध स्पष्ट हो जाता है। इस काल में इस देवी की [[पूजा]] [[राजस्थान]] के [[जैन धर्म|जैन सम्प्रदाय]] में अन्यत्र भी प्रचलित थी। इस विषय का ओसियां नगर से संबंधित एक वादविवाद, जैन [[ग्रंथ]] 'उपकेश गच्छ पट्टावलि' में वर्णित है।<ref>उपकेश-ओसियां का संस्कृत रूप है</ref> इसी मंदिर के निकट कई छोटे-बड़े देवालय है। इसके दाईं ओर सूर्य मंदिर के बाहर अर्धनारीश्वर शिव की मूर्ति, सभा-मंडप की छत में वंशीवादक तथा गोवर्धन [[कृष्ण]] की मूर्तियां उकेरी हुई हैं। गोवर्धन-लीला की यह मूर्ति [[राजस्थानी कला]] की अनुपम कृति मानी जा सकती है।
निकटवर्ती पहाड़ी पर एक और मंदिर विशाल परकोटे से घिरा हुआ दिखलाई पड़ता है। यह 'सचिया देवी' या [[शिलालेख|शिलालेखों]] की 'सच्चिकादेवी' से संबंधित है, जो महिषमर्दिनी देवी का ही एक रूप है। यह भी जैन मंदिर है। मूर्ति पर एक लेख 1234 वि. सं. का भी है, जिससे इसका [[जैन धर्म]] से संबंध स्पष्ट हो जाता है। इस काल में इस देवी की [[पूजा]] [[राजस्थान]] के [[जैन धर्म|जैन सम्प्रदाय]] में अन्यत्र भी प्रचलित थी। इस विषय का ओसियां नगर से संबंधित एक वादविवाद, जैन [[ग्रंथ]] 'उपकेश गच्छ पट्टावलि' में वर्णित है।<ref>उपकेश-ओसियां का संस्कृत रूप है</ref> इसी मंदिर के निकट कई छोटे-बड़े देवालय है। इसके दाईं ओर सूर्य मंदिर के बाहर अर्धनारीश्वर शिव की मूर्ति, सभा-मंडप की छत में वंशीवादक तथा गोवर्धन [[कृष्ण]] की मूर्तियां उकेरी हुई हैं। गोवर्धन-लीला की यह मूर्ति [[राजस्थानी कला]] की अनुपम कृति मानी जा सकती है।
====प्रतिमाएँ====
====प्रतिमाएँ====
ओसियां से जोधपुर जाने वाली सड़क पर दोनों ओर अनेक प्राचीन मंदिर हैं। इनमें त्रिविक्रमरूपी विष्णु, नृसिंह तथा हरिहर की प्रतिमाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। कृष्ण-लीला से संबंधित भी अनेक मूर्तियां हैं।
ओसियां से जोधपुर जाने वाली सड़क पर दोनों ओर अनेक प्राचीन मंदिर हैं। इनमें त्रिविक्रमरूपी विष्णु, नृसिंह तथा हरिहर की प्रतिमाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। कृष्ण-लीला से संबंधित भी अनेक मूर्तियां हैं।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
*ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 119-120| विजयेन्द्र कुमार माथुर |  वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
<references/>
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==संबंधित लेख==
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ओसियां जोधपुर
सचिया माता मन्दिर, ओसियां
सचिया माता मन्दिर, ओसियां
विवरण 'ओसियां' राजस्थान का एक प्रसिद्ध धार्मिक तथा दर्शनीय स्थल है, जो अपने प्राचीन मंदिरों आदि के लिए बहुत प्रसिद्ध है।
राज्य राजस्थान
ज़िला जोधपुर
अन्य नाम 'उकेश', 'उपकेश', 'अकेश', 'मेलपुरपत्तन' तथा 'नवनेरी'।
संबंधित लेख हिन्दू धर्म, जैन धर्म, तीर्थंकर, महावीर
अन्य जानकारी ओसियां से जोधपुर जाने वाली सड़क पर दोनों ओर अनेक प्राचीन मंदिर हैं। इनमें त्रिविक्रमरूपी विष्णु, नृसिंह तथा हरिहर की प्रतिमाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। कृष्णलीला से संबंधित भी अनेक मूर्तियां हैं।

ओसियां राजस्थान के जोधपुर नगर से 32 मील (लगभग 51.2 कि.मी.) उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित है। यहाँ 9वीं शती से 12वीं शती ई. तक के स्थापत्य की सुन्दर कृतियां मिलती हैं। प्राचीन देवालयों में शिव, विष्णु, सूर्य, ब्रह्मा, अर्धनारीश्वर, हरिहर, नवग्रह, कृष्ण, तथा महिषमर्दिनी देवी आदि के मन्दिर उल्लेखनीय हैं।

अन्य नाम

स्थानीय प्राचीन अभिलेखों से सूचित होता है कि ओसियां के कई नाम मध्य काल तक प्रचलित थे, जो हैं- 'उकेश', 'उपकेश', 'अकेश' आदि। किंवदंती है कि इसको प्राचीन काल में 'मेलपुरपत्तन' तथा 'नवनेरी' भी कहते थे। 'ओसवाल' जैनों का मूल स्थान ओसियां ही है।

दर्शनीय स्थल

आठवीं से दसवीं शताब्दी तक राजस्थान में मंदिर स्थापत्य की एक 'महामारू शैली' का विकास हुआ था। इस शैली ने जैन और वैष्णव परम्परा को सैकड़ों सुंदर मंदिर तथा देवालय दिये हैं। ओसियां के जैन मंदिर भी इसी शैली के जीवंत प्रमाण हैं। ओसियां में भगवान महावीर के मुख्य जैन मंदिर के अतिरिक्त और भी कई मंदिर हैं, जिनमें भगवान शिव, विष्णु, सूर्य, ब्रह्मा, अर्द्धनारीश्वर, हरिहर, नवग्रह, दिक्पाल, श्रीकृष्ण, पिप्पलाद माता एवं सचिया माता आदि उल्लेखनीय हैं। इन मंदिरों का वास्तुशिल्प, पत्थर पर खुदाई और प्रतिमा निर्माण, प्रत्येक वस्तु दर्शनीय हैं।[1]

गुप्तकालीन शिल्प

ओसियां की कला पर गुप्तकालीन कला और स्थापत्य का पर्याप्त प्रभाव दिखाई देता है। ग्राम के अंदर जैन तीर्थंकर महावीर का एक सुन्दर मन्दिर है, जिसे वत्सराज (770-800 ई.) ने बनवाया था। यह परकोटे के भीतर स्थित है। इसके तोरण अतीव भव्य हैं तथा स्तंभों पर तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं। यहीं एक स्थान पर 'संवत 1075 आषाढ़ सुदि 10 आदित्यवार स्वातिनक्षत्रे' यह लेख उत्कीर्ण है और सामने विक्रम संवत् 1013 की एक प्रशस्ति भी एक शिला पर खुदी है, जिससे ज्ञात होता है कि यह मंदिर प्रतिहार नरेश वत्सराज के समय में बना था तथा 1013 वि. सं.[2] में इसके मंडप का निर्माण हुआ था।

मन्दिर, ओसियां

निकटवर्ती पहाड़ी पर एक और मंदिर विशाल परकोटे से घिरा हुआ दिखलाई पड़ता है। यह 'सचिया देवी' या शिलालेखों की 'सच्चिकादेवी' से संबंधित है, जो महिषमर्दिनी देवी का ही एक रूप है। यह भी जैन मंदिर है। मूर्ति पर एक लेख 1234 वि. सं. का भी है, जिससे इसका जैन धर्म से संबंध स्पष्ट हो जाता है। इस काल में इस देवी की पूजा राजस्थान के जैन सम्प्रदाय में अन्यत्र भी प्रचलित थी। इस विषय का ओसियां नगर से संबंधित एक वादविवाद, जैन ग्रंथ 'उपकेश गच्छ पट्टावलि' में वर्णित है।[3] इसी मंदिर के निकट कई छोटे-बड़े देवालय है। इसके दाईं ओर सूर्य मंदिर के बाहर अर्धनारीश्वर शिव की मूर्ति, सभा-मंडप की छत में वंशीवादक तथा गोवर्धन कृष्ण की मूर्तियां उकेरी हुई हैं। गोवर्धन-लीला की यह मूर्ति राजस्थानी कला की अनुपम कृति मानी जा सकती है।

प्रतिमाएँ

ओसियां से जोधपुर जाने वाली सड़क पर दोनों ओर अनेक प्राचीन मंदिर हैं। इनमें त्रिविक्रमरूपी विष्णु, नृसिंह तथा हरिहर की प्रतिमाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। कृष्ण-लीला से संबंधित भी अनेक मूर्तियां हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 119-120| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार


  1. धरोहर राजस्थान सामान्य ज्ञान |लेखक: कुँवर कनक सिंह राव |प्रकाशक: पिंक सिटी पब्लिशर्स, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: डी-158 |
  2. = 956 ई.
  3. उपकेश-ओसियां का संस्कृत रूप है

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