"वीर राजेन्द्र": अवतरणों में अंतर

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*[[राजेन्द्र द्वितीय]] के बाद उसका छोटा भाई वीर राजेन्द्र [[चोल साम्राज्य]] का स्वामी बना।
*[[राजेन्द्र द्वितीय]] की मृत्यु के बाद उसका छोटा [[भाई]] '''वीर राजेन्द्र'''<ref> 1064-1070 ई.</ref> गद्दी पर बैठा।
*उसके शासन काल में भी चालुक्यों के साथ निरन्तर युद्ध होते रहे।
*उसने लगभग 1060 ई. में अपने परम्परागत शत्रु [[चालुक्य साम्राज्य|पश्चिमी चालुक्यों]] को ‘'''कुडलसंगमम्'''’ के मैदान में पराजित किया।
*वीर राजेन्द्र के शासन काल में चालुक्यों और चोलों के संघर्ष में चोलों को सफलता मिली, और उसने [[तुंगभद्रा नदी|तुंगभद्रा]] और [[कृष्णा नदी]] के संगम पर चालुक्यराज सोमेश्वर प्रथम को परास्त किया।
*इस विजय के उपलक्ष्य में वीर राजेन्द्र ने [[तुंगभद्रा नदी]] के किनारे एक '''विजयस्तम्भ''' की स्थापना करवाई।
*पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य के ख़िलाफ़ एक अन्य अभियान में कम्पिलनगर को जीतने के उपलक्ष्य में 'करडिग ग्राम' में एक और '''विजयस्तम्भ''' स्थापित करवाया था।
*वीर राजेन्द्र ने [[सोमेश्वर द्वितीय भुवनैकमल्ल|सोमेश्वर द्वितीय]] के छोटे भाई [[विक्रमादित्य षष्ठ]], जो कि सोमेश्वर द्वितीय के विरुद्ध था, के साथ अपनी [[पुत्री]] का [[विवाह]] कर पश्चिमी चालुक्यों के साथ सम्बन्धों के नए अध्याय की शुरुआत की।
*उसने [[सिंहल]]<ref>[[श्रीलंका]]</ref> नरेश विजयबाहु प्रथम के विरुद्ध सैनिक अभियान कर उसे पराजित कर वातगिरि में शरण लेने के लिए बाध्य किया।
*वीर राजेन्द्र के द्वारा कडारम् को जीतने का भी प्रयास किया गया था।
*वीर राजेन्द्र ने ''''राजकेसरी'''' की उपाधि धारण की थी।
 


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11:41, 25 मई 2018 के समय का अवतरण

  • राजेन्द्र द्वितीय की मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई वीर राजेन्द्र[1] गद्दी पर बैठा।
  • उसने लगभग 1060 ई. में अपने परम्परागत शत्रु पश्चिमी चालुक्यों को ‘कुडलसंगमम्’ के मैदान में पराजित किया।
  • इस विजय के उपलक्ष्य में वीर राजेन्द्र ने तुंगभद्रा नदी के किनारे एक विजयस्तम्भ की स्थापना करवाई।
  • पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य के ख़िलाफ़ एक अन्य अभियान में कम्पिलनगर को जीतने के उपलक्ष्य में 'करडिग ग्राम' में एक और विजयस्तम्भ स्थापित करवाया था।
  • वीर राजेन्द्र ने सोमेश्वर द्वितीय के छोटे भाई विक्रमादित्य षष्ठ, जो कि सोमेश्वर द्वितीय के विरुद्ध था, के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर पश्चिमी चालुक्यों के साथ सम्बन्धों के नए अध्याय की शुरुआत की।
  • उसने सिंहल[2] नरेश विजयबाहु प्रथम के विरुद्ध सैनिक अभियान कर उसे पराजित कर वातगिरि में शरण लेने के लिए बाध्य किया।
  • वीर राजेन्द्र के द्वारा कडारम् को जीतने का भी प्रयास किया गया था।
  • वीर राजेन्द्र ने 'राजकेसरी' की उपाधि धारण की थी।


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