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[[14 जून]] को विश्व रक्तदान दिवस घोषित किया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हर साल 14 जून को 'रक्तदान दिवस' मनाया जाता है। वर्ष 1997 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 100 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान नीति की नींव डाली है। वर्ष 1997 में संगठन ने यह लक्ष्य रखा था कि विश्व के प्रमुख 124 देश अपने यहाँ स्वैच्छिक रक्तदान को ही बढ़ावा दें। मकसद यह था कि [[रक्त]] की जरूरत पड़ने पर उसके लिए पैसे देने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए, पर अब तक लगभग 49 देशों ने ही इस पर अमल किया है। तंजानिया जैसे देश में 80 प्रतिशत रक्तदाता पैसे नहीं लेते, कई देशों जिनमें [[भारत]] भी शामिल है, रक्तदाता पैसे लेता है। ब्राजील में तो यह क़ानून है कि आप रक्तदान के पश्चात किसी भी प्रकार की सहायता नहीं ले सकते। ऑस्ट्रेलिया के साथ साथ कुछ अन्य देश भी हैं जहाँ पर रक्तदाता पैसे बिलकुल भी नहीं लेते।  
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;14 जून ही क्यों ?  
|चित्र का नाम=विश्व रक्तदान दिवस प्रतीक चिह्न
बहुत कम लोग जानते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए 14 जून को ही विश्व रक्तदाता दिवस के तौर पर क्यों चुना ! दरअसल कार्ल लेण्डस्टाइनर (जन्म- 14 जून 1868 - मृत्यु- [[26 जून]] 1943) नामक अपने समय के विख्यात ऑस्ट्रियाई जीवविज्ञानी और भौतिकीविद की याद में उनके जन्मदिन के अवसर पर दिन तय किया गया है। वर्ष 1930 में शरीर विज्ञान में [[नोबेल पुरस्कार]] से सम्मानित उपरोक्त मनीषि को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने ख़ून में अग्गुल्युटिनिन की मौजूदगी के आधार पर रक्त का अलग अलग रक्तसमूहों - ए, बी, ओ में वर्गीकरण कर चिकित्साविज्ञान में अहम योगदान दिया।<ref>{{cite web |url=http://humsamvet.org.in/15June09/6.html |title=14 जून : विश्व रक्तदान दिवस... |accessmonthday=14 जून |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=humsamvet.org.in |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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'''विश्व रक्तदान दिवस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''World Blood Donor Day'') [[14 जून]] को घोषित किया गया है। [[विश्व स्वास्थ्य संगठन]] द्वारा हर साल 14 जून को 'रक्तदान दिवस' मनाया जाता है। [[वर्ष]] [[1997]] में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 100 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान नीति की नींव डाली है। वर्ष [[1997]] में संगठन ने यह लक्ष्य रखा था कि विश्व के प्रमुख 124 देश अपने यहाँ स्वैच्छिक रक्तदान को ही बढ़ावा दें। उद्देश्य यह था कि [[रक्त]] की ज़रूरत पड़ने पर उसके लिए पैसे देने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए, पर अब तक लगभग 49 देशों ने ही इस पर अमल किया है। तंजानिया जैसे देश में 80 प्रतिशत रक्तदाता पैसे नहीं लेते, कई देशों जिनमें [[भारत]] भी शामिल है, रक्तदाता पैसे लेता है। ब्राजील में तो यह क़ानून है कि आप रक्तदान के पश्चात् किसी भी प्रकार की सहायता नहीं ले सकते। [[ऑस्ट्रेलिया]] के साथ साथ कुछ अन्य देश भी हैं जहाँ पर रक्तदाता पैसे बिलकुल भी नहीं लेते।  
====14 जून ही क्यों ?====
बहुत कम लोग जानते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए 14 जून को ही विश्व रक्तदाता दिवस के तौर पर क्यों चुना ! दरअसल कार्ल लेण्डस्टाइनर (जन्म- [[14 जून]] [[1868]] - मृत्यु- [[26 जून]] 1943) नामक अपने समय के विख्यात ऑस्ट्रियाई जीवविज्ञानी और भौतिकीविद की याद में उनके जन्मदिन के अवसर पर दिन तय किया गया है। वर्ष [[1930]] में शरीर विज्ञान में [[नोबेल पुरस्कार]] से सम्मानित उपरोक्त मनीषि को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने रक्त में अग्गुल्युटिनिन की मौजूदगी के आधार पर रक्त का अलग अलग रक्त समूहों - ए, बी, ओ में वर्गीकरण कर चिकित्सा विज्ञान में अहम योगदान दिया।<ref>{{cite web |url=http://humsamvet.org.in/15June09/6.html |title=14 जून : विश्व रक्तदान दिवस... |accessmonthday=14 जून |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=humsamvet.org.in |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
==भारत में रक्तदान की स्थिति==
==भारत में रक्तदान की स्थिति==
[[Image:drop-globe-man.jpg|विश्व रक्तदान दिवस प्रतीक चिन्ह|thumb|200px]]
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के तहत [[भारत]] में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की ज़रूरत है लेकिन उपलब्ध 75 लाख यूनिट ही हो पाता है। यानी क़रीब 25 लाख यूनिट रक्त के अभाव में हर साल सैंकड़ों मरीज़ दम तोड़ देते हैं। राजधानी [[दिल्ली]] में आंकड़ों के मुताबिक़ यहां हर साल 350 लाख रक्त यूनिट की आवश्यकता रहती है, लेकिन स्वैच्छिक रक्तदाताओं से इसका महज 30 फीसदी ही जुट पाता है। जो हाल दिल्ली का है वही शेष भारत का है। यह अकारण नहीं कि भारत की आबादी भले ही सवा अरब पहुंच गयी हो, रक्तदाताओं का आंकड़ा कुल आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं पहुंच पाया है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में कुल रक्तदान का केवल 59 फीसदी रक्तदान स्वेच्छिक होता है। जबकि राजधानी दिल्ली में तो स्वैच्छिक रक्तदान केवल 32 फीसदी है। दिल्ली में 53 ब्लड बैंक हैं पर फिर भी एक लाख यूनिट रक्त की कमी है। वहीं दुनिया के कई सारे देश हैं जो इस मामले में भारत को काफ़ी पीछा छोड़ देते हैं। मालूम हो हाल में राजशाही के जोखड़ से मुक्त होकर गणतंत्र बने [[नेपाल]] में कुल रक्त की ज़रूरत का 90 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान से पूरा होता है तो [[श्रीलंका]] में 60 फीसदी, थाईलेण्ड में 95 फीसदी, इण्डोनेशिया में 77 फीसदी और अपनी निरंकुश हुकूमत के लिए चर्चित [[बर्मा]] में 60 फीसदी हिस्सा रक्तदान से पूरा होता है।<ref>{{cite web |url=http://baaljagat.blogspot.com/2009/06/blog-post_7028.html |title=रक्तदान की महत्ता समझनी होगी|accessmonthday=14 जून |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=baaljagat.blogspot.com|language=[[हिन्दी]] }}</ref>
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के तहत भारत में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत है लेकिन उपलब्ध 75 लाख यूनिट ही हो पाता है। यानी क़रीब 25 लाख यूनिट ख़ून के अभाव में हर साल सैंकड़ों मरीज़ दम तोड़ देते हैं। राजधानी [[दिल्ली]] में आंकड़ों के मुताबिक यहां हर साल 350 लाख रक्त यूनिट की आवश्यकता रहती है, लेकिन स्वैच्छिक रक्तदाताओं से इसका महज 30 फीसदी ही जुट पाता है। जो हाल दिल्ली का है वही शेष भारत का है। यह अकारण नहीं कि भारत की आबादी भले ही सवा अरब पहुंच गयी हो, रक्तदाताओं का आंकड़ा कुल आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं पहुंच पाया है।  
विशेषज्ञों के अनुसार भारत में कुल रक्तदान का केवल 59 फीसदी रक्तदान स्वेच्छिक होता है। जबकि राजधानी दिल्ली में तो स्वैच्छिक रक्तदान केवल 32 फीसदी है। दिल्ली में 53 ब्लड बैंक हैं पर फिर भी एक लाख यूनिट ख़ून की कमी है। वहीं तीसरी दुनिया के कई सारे देश हैं जो इस मामले में भारत को काफ़ी पीछा छोड़ देते हैं। मालूम हो हाल में राजशाही के जोखड़ से मुक्त होकर गणतंत्र बने नेपाल में कुल रक्त की जरूरत का 90 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान से पूरा होता है तो श्रीलंका में 60 फीसदी, थाईलेण्ड में 95 फीसदी, इण्डोनेशिया में 77 फीसदी और अपनी निरंकुश हुकूमत के लिए चर्चित बर्मा में 60 फीसदी हिस्सा रक्तदान से पूरा होता है।<ref>{{cite web |url=http://baaljagat.blogspot.com/2009/06/blog-post_7028.html |title=रक्तदान की महत्ता समझनी होगी|accessmonthday=14 जून |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=baaljagat.blogspot.com|language=[[हिन्दी]] }}</ref>
 
==रक्तदान को लेकर विभिन्न भ्रांतियाँ==
==रक्तदान को लेकर विभिन्न भ्रांतियाँ==
रक्त की महिमा सभी जानते हैं। रक्त से आपकी ज़िंदगी तो चलती ही है साथ ही कितने अन्य के जीवन को भी बचाया जा सकता है। दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में अभी भी बहुत से लोग यह समझते हैं कि रक्तदान से शरीर कमज़ोर हो जाता है और उस रक्त की भरपाई होने में महिनों लग जाते हैं। इतना ही नहीं यह गलतफहमी भी व्याप्त है कि नियमित ख़ून देने से लोगों की रोगप्रतिकारक क्षमता कम होती है और उसे बीमारियां जल्दी जकड़ लेती हैं। यहाँ भ्रम इस कदर फैला हुआ है कि लोग रक्तदान का नाम सुनकर ही सिहर उठते हैं। भला बताइए क्या इससे पर्याप्त मात्रा में रक्त की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है?
रक्त की महिमा सभी जानते हैं। [[रक्त]] से आपकी ज़िंदगी तो चलती ही है साथ ही कितने अन्य के जीवन को भी बचाया जा सकता है। दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र [[भारत]] में अभी भी बहुत से लोग यह समझते हैं कि रक्तदान से शरीर कमज़ोर हो जाता है और उस रक्त की भरपाई होने में महिनों लग जाते हैं। इतना ही नहीं यह ग़लतफहमी भी व्याप्त है कि नियमित रक्त देने से लोगों की रोगप्रतिकारक क्षमता कम होती है और उसे बीमारियां जल्दी जकड़ लेती हैं। यहाँ भ्रम इस क़दर फैला हुआ है कि लोग रक्तदान का नाम सुनकर ही सिहर उठते हैं। भला बताइए क्या इससे पर्याप्त मात्रा में रक्त की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है? विश्व रक्तदान दिवस समाज में रक्तदान को लेकर व्याप्त भ्रांति को दूर करने का और रक्तदान को प्रोत्साहित करने का काम करता है। भारतीय रेडक्रास के राष्ट्रीय मुख्यालय के ब्लड बैंक की निदेशक डॉ. वनश्री सिंह के अनुसार देश में रक्तदान को लेकर भ्रांतियाँ कम हुई हैं पर अब भी काफ़ी कुछ किया जाना बाकी है।  
 
==रक्तदान के सम्बन्ध में चिकित्सा विज्ञान==
विश्व रक्तदान दिवस समाज में रक्तदान को लेकर व्याप्त भ्रांति को दूर करने का और रक्तदान को प्रोत्साहित करने का काम करता है। भारतीय रेडक्रास के राष्ट्रीय मुख्यालय के ब्लड बैंक की निदेशक डॉ. वनश्री सिंह के अनुसार देश में रक्तदान को लेकर भ्रांतियाँ कम हुई हैं पर अब भी काफ़ी कुछ किया जाना बाकी है।  
[[चित्र:raktdan.jpg|रक्तदान जीवनदान|thumb|300px]]
 
*आमजन को यह पता होना चाहिए कि मनुष्य के शरीर में रक्त बनने की प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है और रक्तदान से कोई भी नुकसान नहीं होता बल्कि यह तो बहुत ही कल्याणकारी कार्य है जिसे जब भी अवसर मिले संपन्न करना ही चाहिए।
==रक्तदान के सम्बन्धा में चिकित्सा विज्ञान==
*रक्तदान के सम्बन्ध में चिकित्सा विज्ञान कहता है, कोई भी स्वस्थ्य व्यक्ति जिसकी उम्र 16 से 60 साल के बीच हो, जो 45 किलोग्राम से अधिक वजन का हो और जिसे जो एचआईवी, हेपाटिटिस बी या हेपाटिटिस सी जैसी बीमारी न हुई हो, वह रक्तदान कर सकता है।  
आम जन को यह पता होना चाहिए कि मनुष्य के शरीर में रक्त बनने की प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है और रक्तदान से कोई भी नुकसान नहीं होता बल्कि यह तो बहुत ही कल्याणकारी कार्य है जिसे जब भी अवसर मिले संपन्न करना ही चाहिए।
* एक बार में जो 350 मिलीग्राम रक्त दिया जाता है, उसकी पूर्ति शरीर में चौबीस घण्टे के अन्दर हो जाती है और गुणवत्ता की पूर्ति 21 दिनों के भीतर हो जाती है। दूसरे, जो व्यक्ति नियमित रक्तदान करते हैं उन्हें [[हृदय]] सम्बन्धी बीमारियां कम परेशान करती हैं।  
 
* रक्त की संरचना ऐसी है कि उसमें समाहित लाल रक्त कोशिकाएँ तीन माह में (120 दिन) स्वयं ही मर जाते हैं, लिहाज़ा प्रत्येक स्वस्थ्य व्यक्ति तीन माह में एक बार रक्तदान कर सकता है। जानकारों के मुताबिक़ आधा लीटर रक्त तीन लोगों की जान बचा सकता है।  
रक्तदान के सम्बन्धा में चिकित्सा विज्ञान कहता है, कोई भी स्वस्थ्य व्यक्ति जिसकी उम्र 16 से 60 साल के बीच हो, जो 45 किलोग्राम से अधिक वजन का हो और जिसे जो एचआईवी, हेपाटिटिस बी या सी जैसी बीमारी न हुई हो, वह रक्तदान कर सकता है। एक बार में जो 350 मिलीग्राम रक्त दिया जाता है, उसकी पूर्ति शरीर में चौबीस घण्टे के अन्दर हो जाती है और गुणवत्ता की पूर्ति 21 दिनों के भीतर हो जाती है। दूसरे, जो व्यक्ति नियमित रक्तदान करते हैं उन्हें हृदयसम्बन्धी बीमारियां कम परेशान करती हैं। तीसरी अहम बात यह है कि हमारे रक्त की संरचना ऐसी है कि उसमें समाहित रेड ब्लड सेल तीन माह में स्वयं ही मर जाते हैं, लिहाजा प्रत्येक स्वस्थ्य व्यक्ति तीन माह में एक बार रक्तदान कर सकता है। जानकारों के मुताबिक आधा लीटर ख़ून तीन लोगों की जान बचा सकता है। डाक्टरों के मुताबिक रक्तदान के बारे में कुछ बातें गौरतलब हैं, एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि रक्त का लम्बे समय तक भण्डारणा नहीं किया जा सकता है।  
* चिकित्सकों के मुताबिक़ रक्त का लम्बे समय तक भण्डारण नहीं किया जा सकता है।
 
==पेशेवर रक्तदानकर्ता==
==पेशेवर रक्तदानकर्ता==
आज ब्लड बैंकों में कई पेशेवर डोनर्स जब-तब रक्त बेचते हैं। तमाम शराबी, ड्रगिस्ट अपनी लत की भूख मिटाने के लिए थोड़े से पैसे की खातिर कई-कई बार रक्त बेचते हैं। इनमें से अधिकांश गंभीर रोगों से भी ग्रस्त होते है। अब ऐसा रक्त किसी को चढ़ा दिया जाए तो स्वाभाविक है कि वह बचने की बजाय बेमौत मारा जाएगा। लेकिन होता ऐसा ही है। आज भी दिल्ली, मुंबई सहित कई बड़े शहरों में ऐसे रक्तदाता मिल जाएँगे जो कि चंद रुपयों के लिए अपना रक्त बेच देते हैं। इनमें से अधिकांश का रक्त दूषित होता है या उन्होंने दो चार दिन के भीतर ही रक्त दिया रहता है। जरूरत पड़ने पर व्यक्ति इनसे रक्त तो ले लेता है, परंतु बाद में उसे इसके परिणाम भुगतने पड़ते हैं।
आज ब्लड बैंकों में कई पेशेवर रक्तदाता जब-तब रक्त बेचते हैं। तमाम शराबी, ड्रगिस्ट अपनी लत की भूख मिटाने के लिए थोड़े से पैसे की खातिर कई-कई बार रक्त बेचते हैं। इनमें से अधिकांश गंभीर रोगों से भी ग्रस्त होते है। अब ऐसा रक्त किसी को चढ़ा दिया जाए तो स्वाभाविक है कि वह बचने की बजाय बेमौत मारा जाएगा। लेकिन होता ऐसा ही है। आज भी [[दिल्ली]], [[मुंबई]] सहित कई बड़े शहरों में ऐसे रक्तदाता मिल जाएँगे जो कि चंद रुपयों के लिए अपना रक्त बेच देते हैं। इनमें से अधिकांश का रक्त दूषित होता है या उन्होंने दो चार दिन के भीतर ही रक्त दिया रहता है। ज़रूरत पड़ने पर व्यक्ति इनसे रक्त तो ले लेता है, परंतु बाद में उसे इसके परिणाम भुगतने पड़ते हैं।
 
==रक्तदानकर्ता==
==रक्तदानकर्ता==
[[Image:blood donars.jpg|विश्व रक्तदान दिवस पर रक्तदान करते रक्तदानकर्ता|thumb|350px]]
वैसे रक्तदान को लेकर विभिन्न ग़लतफहमियों का शिकार लोगों के लिए सुरेश कामदास, जिनकी उम्र फिलवक़्त 75 साल है, एक जीता जागता जवाब हैं। [[1962]] से शुरू करके वर्ष [[2000]] तक वह 150 बार रक्तदान कर चुके हैं। यह अकारण नहीं कि वर्ष [[2012]] के [[जून]] माह में विश्व रक्तदान दिवस (14 जून) पर वे उन गिनेचुने लोगों में शामिल थे, जिन्हें सम्मानित किया गया। वैसे अब चूंकि डाक्टरों ने खुद उन्हें रक्त देने से मना किया है, उन्होंने अपने स्तर पर एक अलग किस्म की प्रचार मुहिम हाथ में ली है, लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करने की।  
वैसे रक्तदान को लेकर विभिन्न गलतफहमियों का शिकार लोगों के लिए सुरेश कामदास, जिनकी उम्र फिलवक़्त 75 साल है, एक जीता जागता जवाब हैं। 1962 से शुरू करके वर्ष 2000 तक वह 150 बार रक्तदान कर चुके हैं। यह अकारण नहीं कि बीते जून माह में विश्व रक्तदान दिवस (14 जून) पर वे उन गिनेचुने लोगों में शामिल थे, जिन्हें सम्मानित किया गया। वैसे अब चूंकि डाक्टरों ने खुद उन्हें रक्त देने से मना किया है, उन्होंने अपने स्तर पर एक अलग किस्म की प्रचार मुहिम हाथ में ली है, लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करने की।  
[[चित्र:Blood-Donation.jpg|thumb|250px|left|रक्तदान करते रक्तदानकर्ता, [[रामटेक]]]]
 
वैसे सुरेश कामदास जैसे लोग अकेले नहीं हैं जिन्होंने रक्तदान के प्रचार का बीड़ा उठाया है। रामपुरा फुल एक छोटासा क़स्बा है जो वहां की मण्डी के लिए मशहूर है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि [[पंजाब]] के भटिण्डा शहर के इस कस्बे में आज से लगभग तीस साल पहले एक अलग किस्म के संगठित प्रयास की नींव पड़ी, जिसका प्रभाव न केवल समूचे ज़िले में बल्कि आसपास की अन्य मण्डियों में भी पहुंचा है। और इसका ताल्लुक किसी लेन-देन से नहीं है बल्कि एक अलग किस्म के दान से है, जिसके बारे में शेष हिन्दोस्तां के लोग बहुत उत्साहित नहीं रहते हैं। दरअसल आम हिन्दोस्तानी भले ही रक्तदान करने से हिचकते हों, लेकिन भटिण्डा में आज दस हज़ार से अधिक स्वैच्छिक रक्तदानकर्ता हैं जो नियमित तौर पर रक्तदान करते हैं। रक्तदान के लिए लोगों के इस बढ़ते उत्साह का ही परिणाम है आम तौर पर अपनी क्षमता से कम रक्त संग्रहित कर सकने वाले ब्लड बैंकों की देशभर की स्थिति के विपरीत यहां के ब्लड बैंकों को अपने यहां एकत्रित रक्त को आसपास के शहरों - फरीदकोट, [[पटियाला]] के मेडिकल कॉलेजों में भेजना पड़ता है।
वैसे सुरेश कामदास जैसे लोग अकेले नहीं हैं जिन्होंने रक्तदान के प्रचार का बीड़ा उठाया है। रामपुरा फुल एक छोटासा कस्बा है जो वहां की मण्डी के लिए मशहूर है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि पंजाब के भटिण्डा शहर के इस कस्बे में आज से लगभग तीस साल पहले एक अलग किस्म के संगठित प्रयास की नींव पड़ी, जिसका प्रभाव न केवल समूचे ज़िले में बल्कि आसपास की अन्य मण्डियों में भी पहुंचा है। और इसका ताल्लुक किसी लेन-देन से नहीं है बल्कि एक अलग किस्म के दान से है, जिसके बारे में शेष हिन्दोस्तां के लोग बहुत उत्साहित नहीं रहते हैं। दरअसल आम हिन्दोस्तानी भले ही रक्तदान करने से हिचकते हों, लेकिन भटिण्डा में आज दस हज़ार से अधिक स्वैच्छिक रक्तदानकर्ता हैं जो नियमित तौर पर रक्तदान करते हैं। रक्तदान के लिए लोगों के इस बढ़ते उत्साह का ही परिणाम है आम तौर पर अपनी क्षमता से कम रक्त संग्रहित कर सकनेवाले ब्लड बैंकों की देशभर की स्थिति के विपरीत यहां के ब्लड बैंकों को अपने यहां एकत्रित ख़ून को आसपास के शहरों - फरीदकोट, पटियाला के मेडिकल कॉलेजों में भेजना पड़ता है।
 
टाईम्स आफ इण्डिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि रक्तदान के बारे में व्याप्त तमाम मिथकों के टूटने के बाद लोगों में इसे लेकर इतना उत्साह का वातावरण रहता है कि लोग शादी के मण्डप के बाहर रक्तदान शिविर रखते हैं या किसी श्रध्दांजलि सभा के स्थान पर रक्तदान शिविर का आयोजन करते हैं। रक्तदान को अभियान के तौर पर लेने के रामपुर फुल के इस प्रयास की शुरूआत आम भाषा में साधारण कहे जानेवाले व्यक्ति ने की थी, जिनका नाम था हज़ारीलाल बन्सल। बताया जाता है कि उनकी बेटी किसी गम्भीर बीमारी से पीड़ित थी और रक्त की अचानक जरूरत पड़ी। अन्तत: ख़ून का इन्तज़ाम किसी तरह हुआ और बेटी बच भी गयी, लेकिन इस छोटी सी घटना ने गोया हज़ारीलाल के जीवन को एक नया मकसद प्रदान किया और वह रक्तदान की महत्ता लोगो को बताने के काम में जुटे और लोग भी जुड़ते गए। अन्त में, क्या आनेवाले 14 जून को आप रक्तदान को लेकर उन्हीं मिथकों के ग़ुलाम बने रहेंगे या बगल ब्लड बैंक में जाकर डाक्टर से कहेंगे कि मैं अब तैयार हूं इस महादान के लिए।


सोनीपत हरियाणा के गबरुद्दीन 163 बार ख़ून दे चुके हैं। उन्होंने बताया कि उनके जीवन का ध्येय रक्त देकर लोगों की सहायता करना है। रेडक्रास में रक्त देने आए दिल्ली के सरस्वती विहार के पंकज शर्मा पिछले कई सालों से स्वेच्छा से यह काम करते आ रहे है। उनका कहना है कि लोगों को रक्तदान की महत्ता समझनी होगी। यह महादान है।
टाईम्स ऑफ़ इण्डिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि रक्तदान के बारे में व्याप्त तमाम मिथकों के टूटने के बाद लोगों में इसे लेकर इतना उत्साह का वातावरण रहता है कि लोग शादी के मण्डप के बाहर रक्तदान शिविर रखते हैं या किसी श्रद्धांजलि सभा के स्थान पर रक्तदान शिविर का आयोजन करते हैं। रक्तदान को अभियान के तौर पर लेने के रामपुर फुल के इस प्रयास की शुरुआत आम भाषा में साधारण कहे जाने वाले व्यक्ति ने की थी, जिनका नाम था हज़ारीलाल बंसल। बताया जाता है कि उनकी बेटी किसी गम्भीर बीमारी से पीड़ित थी और रक्त की अचानक ज़रूरत पड़ी। अन्तत: रक्त का इन्तज़ाम किसी तरह हुआ और बेटी बच भी गयी, लेकिन इस छोटी सी घटना ने हज़ारीलाल के जीवन को एक नया मकसद प्रदान किया और वह रक्तदान की महत्ता लोगो को बताने के काम में जुटे और लोग भी जुड़ते गए। अन्त में, क्या आने वाले 14 जून को आप रक्तदान को लेकर उन्हीं मिथकों के ग़ुलाम बने रहेंगे या बगल ब्लड बैंक में जाकर डाक्टर से कहेंगे कि मैं अब तैयार हूं इस महादान के लिए।


[[सोनीपत]] [[हरियाणा]] के गबरुद्दीन 163 बार रक्त दे चुके हैं। उन्होंने बताया कि उनके जीवन का ध्येय रक्त देकर लोगों की सहायता करना है। रेडक्रास में रक्त देने आए [[दिल्ली]] के सरस्वती विहार के पंकज शर्मा पिछले कई सालों से स्वेच्छा से यह काम करते आ रहे है। उनका कहना है कि लोगों को रक्तदान की महत्ता समझनी होगी। यह महादान है।
==रक्तदान के लिए जागरूकता==
==रक्तदान के लिए जागरूकता==
[[Image:raktdan.jpg|रक्तदान जीवनदान|thumb|300px]]
[[चित्र:blood donars.jpg|विश्व रक्तदान दिवस पर रक्तदान करते रक्तदानकर्ता|thumb|350px]]
सभ्यता के विकास की दौड़ में मनुष्य भले ही कितना आगे निकल जाए, पर जरूरत पड़ने पर आज भी एक मनुष्य दूसरे को अपना रक्त देने में हिचकिचाता है। रक्तदान के प्रति जागरूकता लाने की तमाम कोशिशों के बावजूद मनुष्य को मनुष्य का ख़ून ख़रीदना ही पड़ता है। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि कई दुर्घटनाओं में रक्त की समय पर आपूर्ति न होने के कारण लोग असमय मौत के मुँह में चले जाते हैं।
सभ्यता के विकास की दौड़ में मनुष्य भले ही कितना आगे निकल जाए, पर ज़रूरत पड़ने पर आज भी एक मनुष्य दूसरे को अपना रक्त देने में हिचकिचाता है। रक्तदान के प्रति जागरूकता लाने की तमाम कोशिशों के बावजूद मनुष्य को मनुष्य का रक्त ख़रीदना ही पड़ता है। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि कई दुर्घटनाओं में रक्त की समय पर आपूर्ति न होने के कारण लोग असमय मौत के मुँह में चले जाते हैं। रक्तदान के प्रति जागरूकता जिस स्तर पर लाई जाना चाहिए थी, उस स्तर पर न तो कोशिश हुई और न लोग जागरूक हुए। [[भारत]] की बात की जाए तो अब तक देश में एक भी केंद्रीयकृत रक्त बैंक की स्थापना नहीं हो सकी है जिसके माध्यम से पूरे देश में कहीं पर भी रक्त की ज़रूरत को पूरा किया जा सके। टेक्नोलॉजी में हुए विकास के बाद निजी तौर पर वेबसाइट्स के माध्यम से ब्लड बैंक व स्वैच्छिक रक्तदाताओं की सूची को बनाने का कार्य आरंभ हुआ। इसमें थोड़ी-बहुत सफलता भी मिली, लेकिन संतोषजनक हालात अभी नहीं बने।
 
रक्तदान के प्रति जागरूकता जिस स्तर पर लाई जाना चाहिए थी, उस स्तर पर न तो कोशिश हुई और न लोग जागरूक हुए। भारत की बात की जाए तो अब तक देश में एक भी केंद्रीयकृत रक्त बैंक की स्थापना नहीं हो सकी है जिसके माध्यम से पूरे देश में कहीं पर भी ख़ून की जरूरत को पूरा किया जा सके। टेक्नोलॉजी में हुए विकास के बाद निजी तौर पर वेबसाइट्स के माध्यम से ब्लड बैंक व स्वैच्छिक रक्तदाताओं की सूची को बनाने का कार्य आरंभ हुआ। इसमें थोड़ी-बहुत सफलता भी मिली, लेकिन संतोषजनक हालात अभी नहीं बने।
 
डॉ.वनश्री कहती हैं कि रेडक्रास में 85 फीसद रक्तदान स्वैच्छिक होता है और इसे 95 फीसद तक करने की कार्ययोजना है। सरकार और विभिन्न संगठनों को ब्लड कैंप और मोबाइल कैंप लगा कर लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करना चाहिए। लोगों को बताना होगा कि रक्तदान का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं बल्कि यह आपको लोगों की जान बचाने वाला सुपरहीरो बनाता है।
 
जागरुक लोगों को इस दिशा में सोचना होगा कि कैसे देश की अधिकांश आबादी को रक्तदान की महिमा समझाई जाए ताकि वे वक्त-हालात को समझ सकें और जब भी जरूरत हो इस परोपकारी कृत्य से पीछे ना हटें।


एड्स के बाद जागरूकता -- अस्सी के दशक के बाद रक्तदान करते समय काफ़ी सावधानी बरती जाने लगी है। रक्तदाता भी खुद यह जानकारी लेता है कि क्या रक्तदान के दौरान सही तरीके के चिकित्सकीय उपकरण प्रयोग किए जा रहे हैं। वैसे एड्स के कारण जहाँ जागरूकता बढ़ी, वहीं आम रक्तदाता के मन में भय भी बैठा है। इससे भी रक्तदान के प्रति उत्साह में कमी आई। इसका फ़ायदा कई ऐसे लोगों ने उठाया जिनका काम ही रक्त बेचना है।
डॉ. वनश्री कहती हैं कि रेडक्रास में 85 फीसदी रक्तदान स्वैच्छिक होता है और इसे 95 फीसदी तक करने की कार्ययोजना है। सरकार और विभिन्न संगठनों को ब्लड कैंप और मोबाइल कैंप लगा कर लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करना चाहिए। लोगों को बताना होगा कि रक्तदान का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं बल्कि यह आपको लोगों की जान बचाने वाला सुपरहीरो बनाता है। जागरुक लोगों को इस दिशा में सोचना होगा कि कैसे देश की अधिकांश आबादी को रक्तदान की महिमा समझाई जाए ताकि वे वक्त-हालात को समझ सकें और जब भी ज़रूरत हो इस परोपकारी कृत्य से पीछे ना हटें।


एड्स के बाद जागरूकता -- अस्सी के दशक के बाद रक्तदान करते समय काफ़ी सावधानी बरती जाने लगी है। रक्तदाता भी खुद यह जानकारी लेता है कि क्या रक्तदान के दौरान सही तरीके के चिकित्सकीय उपकरण प्रयोग किए जा रहे हैं। वैसे एड्स के कारण जहाँ जागरूकता बढ़ी, वहीं आम रक्तदाता के मन में भय भी बैठा है। इससे भी रक्तदान के प्रति उत्साह में कमी आई। इसका फ़ायदा कई ऐसे लोगों ने उठाया जिनका काम ही रक्त बेचना है।


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*[http://humsamvet.org.in/15June09/6.html 14 जून : विश्व रक्तदान दिवस के अवसर पर, रक्तदान से आप भी घबराते हैं क्या ?]
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10:04, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

विश्व रक्तदान दिवस
विश्व रक्तदान दिवस प्रतीक चिह्न
विश्व रक्तदान दिवस प्रतीक चिह्न
विवरण विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हर साल 14 जून को 'विश्व रक्तदान दिवस' मनाया जाता है।
तिथि 14 जून
उद्देश्य रक्त की ज़रूरत पड़ने पर उसके लिए पैसे देने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए, पर अब तक लगभग 49 देशों ने ही इस पर अमल किया है।
शुरुआत सन् 1997
अन्य जानकारी रक्तदान के सम्बन्ध में चिकित्सा विज्ञान कहता है, कोई भी स्वस्थ्य व्यक्ति जिसकी उम्र 16 से 60 साल के बीच हो, जो 45 किलोग्राम से अधिक वजन का हो और जिसे जो एचआईवी, हेपाटिटिस बी या हेपाटिटिस सी जैसी बीमारी न हुई हो, वह रक्तदान कर सकता है।

विश्व रक्तदान दिवस (अंग्रेज़ी: World Blood Donor Day) 14 जून को घोषित किया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हर साल 14 जून को 'रक्तदान दिवस' मनाया जाता है। वर्ष 1997 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 100 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान नीति की नींव डाली है। वर्ष 1997 में संगठन ने यह लक्ष्य रखा था कि विश्व के प्रमुख 124 देश अपने यहाँ स्वैच्छिक रक्तदान को ही बढ़ावा दें। उद्देश्य यह था कि रक्त की ज़रूरत पड़ने पर उसके लिए पैसे देने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए, पर अब तक लगभग 49 देशों ने ही इस पर अमल किया है। तंजानिया जैसे देश में 80 प्रतिशत रक्तदाता पैसे नहीं लेते, कई देशों जिनमें भारत भी शामिल है, रक्तदाता पैसे लेता है। ब्राजील में तो यह क़ानून है कि आप रक्तदान के पश्चात् किसी भी प्रकार की सहायता नहीं ले सकते। ऑस्ट्रेलिया के साथ साथ कुछ अन्य देश भी हैं जहाँ पर रक्तदाता पैसे बिलकुल भी नहीं लेते।

14 जून ही क्यों ?

बहुत कम लोग जानते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए 14 जून को ही विश्व रक्तदाता दिवस के तौर पर क्यों चुना ! दरअसल कार्ल लेण्डस्टाइनर (जन्म- 14 जून 1868 - मृत्यु- 26 जून 1943) नामक अपने समय के विख्यात ऑस्ट्रियाई जीवविज्ञानी और भौतिकीविद की याद में उनके जन्मदिन के अवसर पर दिन तय किया गया है। वर्ष 1930 में शरीर विज्ञान में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित उपरोक्त मनीषि को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने रक्त में अग्गुल्युटिनिन की मौजूदगी के आधार पर रक्त का अलग अलग रक्त समूहों - ए, बी, ओ में वर्गीकरण कर चिकित्सा विज्ञान में अहम योगदान दिया।[1]

भारत में रक्तदान की स्थिति

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के तहत भारत में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की ज़रूरत है लेकिन उपलब्ध 75 लाख यूनिट ही हो पाता है। यानी क़रीब 25 लाख यूनिट रक्त के अभाव में हर साल सैंकड़ों मरीज़ दम तोड़ देते हैं। राजधानी दिल्ली में आंकड़ों के मुताबिक़ यहां हर साल 350 लाख रक्त यूनिट की आवश्यकता रहती है, लेकिन स्वैच्छिक रक्तदाताओं से इसका महज 30 फीसदी ही जुट पाता है। जो हाल दिल्ली का है वही शेष भारत का है। यह अकारण नहीं कि भारत की आबादी भले ही सवा अरब पहुंच गयी हो, रक्तदाताओं का आंकड़ा कुल आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं पहुंच पाया है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में कुल रक्तदान का केवल 59 फीसदी रक्तदान स्वेच्छिक होता है। जबकि राजधानी दिल्ली में तो स्वैच्छिक रक्तदान केवल 32 फीसदी है। दिल्ली में 53 ब्लड बैंक हैं पर फिर भी एक लाख यूनिट रक्त की कमी है। वहीं दुनिया के कई सारे देश हैं जो इस मामले में भारत को काफ़ी पीछा छोड़ देते हैं। मालूम हो हाल में राजशाही के जोखड़ से मुक्त होकर गणतंत्र बने नेपाल में कुल रक्त की ज़रूरत का 90 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान से पूरा होता है तो श्रीलंका में 60 फीसदी, थाईलेण्ड में 95 फीसदी, इण्डोनेशिया में 77 फीसदी और अपनी निरंकुश हुकूमत के लिए चर्चित बर्मा में 60 फीसदी हिस्सा रक्तदान से पूरा होता है।[2]

रक्तदान को लेकर विभिन्न भ्रांतियाँ

रक्त की महिमा सभी जानते हैं। रक्त से आपकी ज़िंदगी तो चलती ही है साथ ही कितने अन्य के जीवन को भी बचाया जा सकता है। दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में अभी भी बहुत से लोग यह समझते हैं कि रक्तदान से शरीर कमज़ोर हो जाता है और उस रक्त की भरपाई होने में महिनों लग जाते हैं। इतना ही नहीं यह ग़लतफहमी भी व्याप्त है कि नियमित रक्त देने से लोगों की रोगप्रतिकारक क्षमता कम होती है और उसे बीमारियां जल्दी जकड़ लेती हैं। यहाँ भ्रम इस क़दर फैला हुआ है कि लोग रक्तदान का नाम सुनकर ही सिहर उठते हैं। भला बताइए क्या इससे पर्याप्त मात्रा में रक्त की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है? विश्व रक्तदान दिवस समाज में रक्तदान को लेकर व्याप्त भ्रांति को दूर करने का और रक्तदान को प्रोत्साहित करने का काम करता है। भारतीय रेडक्रास के राष्ट्रीय मुख्यालय के ब्लड बैंक की निदेशक डॉ. वनश्री सिंह के अनुसार देश में रक्तदान को लेकर भ्रांतियाँ कम हुई हैं पर अब भी काफ़ी कुछ किया जाना बाकी है।

रक्तदान के सम्बन्ध में चिकित्सा विज्ञान

रक्तदान जीवनदान
  • आमजन को यह पता होना चाहिए कि मनुष्य के शरीर में रक्त बनने की प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है और रक्तदान से कोई भी नुकसान नहीं होता बल्कि यह तो बहुत ही कल्याणकारी कार्य है जिसे जब भी अवसर मिले संपन्न करना ही चाहिए।
  • रक्तदान के सम्बन्ध में चिकित्सा विज्ञान कहता है, कोई भी स्वस्थ्य व्यक्ति जिसकी उम्र 16 से 60 साल के बीच हो, जो 45 किलोग्राम से अधिक वजन का हो और जिसे जो एचआईवी, हेपाटिटिस बी या हेपाटिटिस सी जैसी बीमारी न हुई हो, वह रक्तदान कर सकता है।
  • एक बार में जो 350 मिलीग्राम रक्त दिया जाता है, उसकी पूर्ति शरीर में चौबीस घण्टे के अन्दर हो जाती है और गुणवत्ता की पूर्ति 21 दिनों के भीतर हो जाती है। दूसरे, जो व्यक्ति नियमित रक्तदान करते हैं उन्हें हृदय सम्बन्धी बीमारियां कम परेशान करती हैं।
  • रक्त की संरचना ऐसी है कि उसमें समाहित लाल रक्त कोशिकाएँ तीन माह में (120 दिन) स्वयं ही मर जाते हैं, लिहाज़ा प्रत्येक स्वस्थ्य व्यक्ति तीन माह में एक बार रक्तदान कर सकता है। जानकारों के मुताबिक़ आधा लीटर रक्त तीन लोगों की जान बचा सकता है।
  • चिकित्सकों के मुताबिक़ रक्त का लम्बे समय तक भण्डारण नहीं किया जा सकता है।

पेशेवर रक्तदानकर्ता

आज ब्लड बैंकों में कई पेशेवर रक्तदाता जब-तब रक्त बेचते हैं। तमाम शराबी, ड्रगिस्ट अपनी लत की भूख मिटाने के लिए थोड़े से पैसे की खातिर कई-कई बार रक्त बेचते हैं। इनमें से अधिकांश गंभीर रोगों से भी ग्रस्त होते है। अब ऐसा रक्त किसी को चढ़ा दिया जाए तो स्वाभाविक है कि वह बचने की बजाय बेमौत मारा जाएगा। लेकिन होता ऐसा ही है। आज भी दिल्ली, मुंबई सहित कई बड़े शहरों में ऐसे रक्तदाता मिल जाएँगे जो कि चंद रुपयों के लिए अपना रक्त बेच देते हैं। इनमें से अधिकांश का रक्त दूषित होता है या उन्होंने दो चार दिन के भीतर ही रक्त दिया रहता है। ज़रूरत पड़ने पर व्यक्ति इनसे रक्त तो ले लेता है, परंतु बाद में उसे इसके परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

रक्तदानकर्ता

वैसे रक्तदान को लेकर विभिन्न ग़लतफहमियों का शिकार लोगों के लिए सुरेश कामदास, जिनकी उम्र फिलवक़्त 75 साल है, एक जीता जागता जवाब हैं। 1962 से शुरू करके वर्ष 2000 तक वह 150 बार रक्तदान कर चुके हैं। यह अकारण नहीं कि वर्ष 2012 के जून माह में विश्व रक्तदान दिवस (14 जून) पर वे उन गिनेचुने लोगों में शामिल थे, जिन्हें सम्मानित किया गया। वैसे अब चूंकि डाक्टरों ने खुद उन्हें रक्त देने से मना किया है, उन्होंने अपने स्तर पर एक अलग किस्म की प्रचार मुहिम हाथ में ली है, लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करने की।

रक्तदान करते रक्तदानकर्ता, रामटेक

वैसे सुरेश कामदास जैसे लोग अकेले नहीं हैं जिन्होंने रक्तदान के प्रचार का बीड़ा उठाया है। रामपुरा फुल एक छोटासा क़स्बा है जो वहां की मण्डी के लिए मशहूर है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि पंजाब के भटिण्डा शहर के इस कस्बे में आज से लगभग तीस साल पहले एक अलग किस्म के संगठित प्रयास की नींव पड़ी, जिसका प्रभाव न केवल समूचे ज़िले में बल्कि आसपास की अन्य मण्डियों में भी पहुंचा है। और इसका ताल्लुक किसी लेन-देन से नहीं है बल्कि एक अलग किस्म के दान से है, जिसके बारे में शेष हिन्दोस्तां के लोग बहुत उत्साहित नहीं रहते हैं। दरअसल आम हिन्दोस्तानी भले ही रक्तदान करने से हिचकते हों, लेकिन भटिण्डा में आज दस हज़ार से अधिक स्वैच्छिक रक्तदानकर्ता हैं जो नियमित तौर पर रक्तदान करते हैं। रक्तदान के लिए लोगों के इस बढ़ते उत्साह का ही परिणाम है आम तौर पर अपनी क्षमता से कम रक्त संग्रहित कर सकने वाले ब्लड बैंकों की देशभर की स्थिति के विपरीत यहां के ब्लड बैंकों को अपने यहां एकत्रित रक्त को आसपास के शहरों - फरीदकोट, पटियाला के मेडिकल कॉलेजों में भेजना पड़ता है।

टाईम्स ऑफ़ इण्डिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि रक्तदान के बारे में व्याप्त तमाम मिथकों के टूटने के बाद लोगों में इसे लेकर इतना उत्साह का वातावरण रहता है कि लोग शादी के मण्डप के बाहर रक्तदान शिविर रखते हैं या किसी श्रद्धांजलि सभा के स्थान पर रक्तदान शिविर का आयोजन करते हैं। रक्तदान को अभियान के तौर पर लेने के रामपुर फुल के इस प्रयास की शुरुआत आम भाषा में साधारण कहे जाने वाले व्यक्ति ने की थी, जिनका नाम था हज़ारीलाल बंसल। बताया जाता है कि उनकी बेटी किसी गम्भीर बीमारी से पीड़ित थी और रक्त की अचानक ज़रूरत पड़ी। अन्तत: रक्त का इन्तज़ाम किसी तरह हुआ और बेटी बच भी गयी, लेकिन इस छोटी सी घटना ने हज़ारीलाल के जीवन को एक नया मकसद प्रदान किया और वह रक्तदान की महत्ता लोगो को बताने के काम में जुटे और लोग भी जुड़ते गए। अन्त में, क्या आने वाले 14 जून को आप रक्तदान को लेकर उन्हीं मिथकों के ग़ुलाम बने रहेंगे या बगल ब्लड बैंक में जाकर डाक्टर से कहेंगे कि मैं अब तैयार हूं इस महादान के लिए।

सोनीपत हरियाणा के गबरुद्दीन 163 बार रक्त दे चुके हैं। उन्होंने बताया कि उनके जीवन का ध्येय रक्त देकर लोगों की सहायता करना है। रेडक्रास में रक्त देने आए दिल्ली के सरस्वती विहार के पंकज शर्मा पिछले कई सालों से स्वेच्छा से यह काम करते आ रहे है। उनका कहना है कि लोगों को रक्तदान की महत्ता समझनी होगी। यह महादान है।

रक्तदान के लिए जागरूकता

विश्व रक्तदान दिवस पर रक्तदान करते रक्तदानकर्ता

सभ्यता के विकास की दौड़ में मनुष्य भले ही कितना आगे निकल जाए, पर ज़रूरत पड़ने पर आज भी एक मनुष्य दूसरे को अपना रक्त देने में हिचकिचाता है। रक्तदान के प्रति जागरूकता लाने की तमाम कोशिशों के बावजूद मनुष्य को मनुष्य का रक्त ख़रीदना ही पड़ता है। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि कई दुर्घटनाओं में रक्त की समय पर आपूर्ति न होने के कारण लोग असमय मौत के मुँह में चले जाते हैं। रक्तदान के प्रति जागरूकता जिस स्तर पर लाई जाना चाहिए थी, उस स्तर पर न तो कोशिश हुई और न लोग जागरूक हुए। भारत की बात की जाए तो अब तक देश में एक भी केंद्रीयकृत रक्त बैंक की स्थापना नहीं हो सकी है जिसके माध्यम से पूरे देश में कहीं पर भी रक्त की ज़रूरत को पूरा किया जा सके। टेक्नोलॉजी में हुए विकास के बाद निजी तौर पर वेबसाइट्स के माध्यम से ब्लड बैंक व स्वैच्छिक रक्तदाताओं की सूची को बनाने का कार्य आरंभ हुआ। इसमें थोड़ी-बहुत सफलता भी मिली, लेकिन संतोषजनक हालात अभी नहीं बने।

डॉ. वनश्री कहती हैं कि रेडक्रास में 85 फीसदी रक्तदान स्वैच्छिक होता है और इसे 95 फीसदी तक करने की कार्ययोजना है। सरकार और विभिन्न संगठनों को ब्लड कैंप और मोबाइल कैंप लगा कर लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करना चाहिए। लोगों को बताना होगा कि रक्तदान का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं बल्कि यह आपको लोगों की जान बचाने वाला सुपरहीरो बनाता है। जागरुक लोगों को इस दिशा में सोचना होगा कि कैसे देश की अधिकांश आबादी को रक्तदान की महिमा समझाई जाए ताकि वे वक्त-हालात को समझ सकें और जब भी ज़रूरत हो इस परोपकारी कृत्य से पीछे ना हटें।

एड्स के बाद जागरूकता -- अस्सी के दशक के बाद रक्तदान करते समय काफ़ी सावधानी बरती जाने लगी है। रक्तदाता भी खुद यह जानकारी लेता है कि क्या रक्तदान के दौरान सही तरीके के चिकित्सकीय उपकरण प्रयोग किए जा रहे हैं। वैसे एड्स के कारण जहाँ जागरूकता बढ़ी, वहीं आम रक्तदाता के मन में भय भी बैठा है। इससे भी रक्तदान के प्रति उत्साह में कमी आई। इसका फ़ायदा कई ऐसे लोगों ने उठाया जिनका काम ही रक्त बेचना है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 14 जून : विश्व रक्तदान दिवस... (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) humsamvet.org.in। अभिगमन तिथि: 14 जून, 2011।
  2. रक्तदान की महत्ता समझनी होगी (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) baaljagat.blogspot.com। अभिगमन तिथि: 14 जून, 2011।

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