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'''लोहार्गल''' [[राजस्थान]] के [[शेखावाटी]] इलाके के [[झुंझुनू ज़िला|झुंझुनू ज़िले]] से 70 कि.मी. दूर [[अरावली पर्वत श्रृंखला|अरावली पर्वत]] की घाटी में बसे उदयपुरवाटी कस्बे से क़रीब दस कि.मी. की दूरी पर स्थित है। लोहार्गल का अर्थ होता है- "जहाँ लोहा गल जाए"। [[पुराण|पुराणों]] में भी इस स्थान का उल्लेख मिलता है। लोहार्गल में पर्यटन की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण स्थल हैं।
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लोहार्गल एक प्राचीन, धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। लोगों की इसके प्रति अटूट आस्था भी है। [[भक्त|भक्तों]] का यहाँ आना-जाना लगा रहता है। लोहार्गल के विषय में कथा है कि जब [[महाभारत]] का युद्ध समाप्त हो गया, तब [[पांडव]] अपने स्वजनों की हत्या के पाप से व्यथित थे। [[श्रीकृष्ण]] के निर्देश पर वह सभी [[तीर्थ स्थल|तीर्थ स्थलों]] के दर्शन करते भटक रहे थे। श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया था कि जिस तीर्थ में तुम्हारे हथियार [[जल]] में गल जायेंगे, वहीं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। घूमते-घूमते पांडव लोहार्गल आये तथा जैसे ही उन्होंने यहाँ के सूर्यकुंड में [[स्नान]] किया उनके सारे हथियार गल गये। उन्होंने इस स्थान की महिमा को समझा और इसे 'तीर्थराज' की उपाधि से विभूषित किया। फिर भगवान [[शिव]] की आराधना कर मोक्ष की प्राप्ति की।<ref name="ab">{{cite web |url=http://kuchhalagsa.blogspot.in/2009/02/blog-post_23.html |title=लोहार्गल |accessmonthday=26 दिसम्बर|accessyear= 2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
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====दर्शनीय स्थल====
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पहले लोहार्गल में केवल [[साधु]]-सन्यासी ही रहा करते थे, पर अब गृहस्थ लोग भी यहाँ रहने लगे हैं। यहाँ एक बहुत विशाल बावड़ी है, जो महात्मा चेतन दास जी ने बनवाई थी। यह [[राजस्थान]] की बड़ी बावड़ियों में से एक है। साथ के पहाड़ पर प्राचीन सूर्यमंदिर बना हुआ है। साथ ही वनखंड़ी जी का मंदिर भी है। कुंड़ के पास ही प्राचीन शिव मंदिर, हनुमान मंदिर तथा पांडव गुफ़ा स्थित है। इनके अलावा चार सौ सीढियाँ चढने पर मालकेतु जी के दर्शन किये जा सकते हैं। यहाँ समय-समय पर मेले लगते रहते हैं। हज़ारों नर-नारी यहाँ आकर कुंड में स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।<ref name="ab"/>
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11:13, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

सूर्यकुण्ड

लोहार्गल राजस्थान के शेखावाटी इलाके के झुंझुनू ज़िले से 70 कि.मी. दूर अरावली पर्वत की घाटी में बसे उदयपुरवाटी कस्बे से क़रीब दस कि.मी. की दूरी पर स्थित है। लोहार्गल का अर्थ होता है- "जहाँ लोहा गल जाए"। पुराणों में भी इस स्थान का उल्लेख मिलता है। लोहार्गल में पर्यटन की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण स्थल हैं।

पौराणिक उल्लेख

लोहार्गल एक प्राचीन, धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। लोगों की इसके प्रति अटूट आस्था भी है। भक्तों का यहाँ आना-जाना लगा रहता है। लोहार्गल के विषय में कथा है कि जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया, तब पांडव अपने स्वजनों की हत्या के पाप से व्यथित थे। श्रीकृष्ण के निर्देश पर वह सभी तीर्थ स्थलों के दर्शन करते भटक रहे थे। श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया था कि जिस तीर्थ में तुम्हारे हथियार जल में गल जायेंगे, वहीं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। घूमते-घूमते पांडव लोहार्गल आये तथा जैसे ही उन्होंने यहाँ के सूर्यकुंड में स्नान किया उनके सारे हथियार गल गये। उन्होंने इस स्थान की महिमा को समझा और इसे 'तीर्थराज' की उपाधि से विभूषित किया। फिर भगवान शिव की आराधना कर मोक्ष की प्राप्ति की।[1]

दर्शनीय स्थल

पहले लोहार्गल में केवल साधु-संन्यासी ही रहा करते थे, पर अब गृहस्थ लोग भी यहाँ रहने लगे हैं। यहाँ एक बहुत विशाल बावड़ी है, जो महात्मा चेतन दास जी ने बनवाई थी। यह राजस्थान की बड़ी बावड़ियों में से एक है। साथ के पहाड़ पर प्राचीन सूर्यमंदिर बना हुआ है। साथ ही वनखंड़ी जी का मंदिर भी है। कुंड़ के पास ही प्राचीन शिव मंदिर, हनुमान मंदिर तथा पांडव गुफ़ा स्थित है। इनके अलावा चार सौ सीढियाँ चढने पर मालकेतु जी के दर्शन किये जा सकते हैं। यहाँ समय-समय पर मेले लगते रहते हैं। हज़ारों नर-नारी यहाँ आकर कुंड में स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 लोहार्गल (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 26 दिसम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख