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*शंकर मिश्र ने उपस्कार में धर्म के लक्षण का निरूपण करते हुए किसी वृत्तिकार के आशय को उद्धृत किया है। | |||
*शंकर मिश्र ने जिस वृत्ति क उल्लेख किया, वह भारद्वाज कृत वृत्ति है। | *शंकर मिश्र ने जिस वृत्ति क उल्लेख किया, वह भारद्वाज कृत वृत्ति है। | ||
*यह विचार [[न्यायकन्दली]] की भूमिका में श्रीविन्ध्येश्वरी प्रसाद शास्त्री ने भी व्यक्त किया है। | *यह विचार [[न्यायकन्दली]] की भूमिका में श्रीविन्ध्येश्वरी प्रसाद शास्त्री ने भी व्यक्त किया है। | ||
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*भारद्वाज उद्योतकर का गोत्रनाम था। | *भारद्वाज उद्योतकर का गोत्रनाम था। | ||
*उद्योतकर का समय 600 शती ई. माना जाता है। | *उद्योतकर का समय 600 शती ई. माना जाता है। | ||
==संबंधित लेख== | |||
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05:06, 16 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
उद्योतकर रचित भारद्वाजवृत्ति
- शंकर मिश्र ने उपस्कार में धर्म के लक्षण का निरूपण करते हुए किसी वृत्तिकार के आशय को उद्धृत किया है।
- शंकर मिश्र ने जिस वृत्ति क उल्लेख किया, वह भारद्वाज कृत वृत्ति है।
- यह विचार न्यायकन्दली की भूमिका में श्रीविन्ध्येश्वरी प्रसाद शास्त्री ने भी व्यक्त किया है।
- न्यायवार्तिक के रचयिता उद्योतकर का वैशेषिक में भी समान अधिकार था।
- वैशेषिक के रूप में भी उद्योतकर की ख्याति है।
- तत्कालीन अपव्याख्यानों से उद्विग्न होकर ही सम्भवत: उद्योतकर न यह वृत्ति लिखी थी।
- न्यायवार्तिक में वैशेषिक सूत्र का यत्र तत्र पर्याप्त उल्लेख है। अत: ऐसा प्रतीत होता है कि उद्योतकर भारद्वाज ने ही यह वृत्ति लिखी होगी।
- भारद्वाज उद्योतकर का गोत्रनाम था।
- उद्योतकर का समय 600 शती ई. माना जाता है।
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