"ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह": अवतरणों में अंतर

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'''ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह''' [[राजस्थान]] के शहर [[अजमेर]] में प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। इसे 'दरगाह अजमेर शरीफ़' भी कहा जाता है। ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, ख़्वाजा साहब या ख़्वाजा शरीफ़ अजमेर आने वाले सभी धर्मावलम्बियों के लिये एक पवित्र स्थान है। [[मक्का (अरब)|मक्का]] के बाद सभी मुस्लिम तीर्थ स्थलों में इसका दूसरा स्थान हैं। इसलिये इसे '''[[भारत]] का मक्का''' भी कहा जाता हैं।
'''ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह''' [[राजस्थान]] के शहर [[अजमेर]] में प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। इसे 'दरगाह अजमेर शरीफ़' भी कहा जाता है। ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, ख़्वाजा साहब या ख़्वाजा शरीफ़ अजमेर आने वाले सभी धर्मावलम्बियों के लिये एक पवित्र स्थान है। [[मक्का (अरब)|मक्का]] के बाद सभी मुस्लिम तीर्थ स्थलों में इसका दूसरा स्थान हैं। इसलिये इसे '''[[भारत]] का मक्का''' भी कहा जाता हैं।
==निर्माण==
==निर्माण==
ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह का निर्माण 13वीं शताब्दी का माना जाता हैं।
तारागढ की तलहटी में स्थित ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह का निर्माण 1143-1233 ई. माना जाता है। यह मजहबी आस्‍था का प्रमुख केन्‍द्र है। सन 1464 ई. में [[मांडू]] के [[ग़यासुद्दीन ख़िलजी|सुल्तान ग़यासुद्दीन ख़िलजी]] ने इसे पक्‍का करवाया था। [[मुग़ल साम्राज्य|मुग़ल शासन]] के दौरान इसका और विस्‍तार हुआ। यहां [[अकबर]] ने 1570 ई. में 'अकबरी मस्जिद', 'बुलंद दरवाज़ा' एवं 'महफिलखाना' बनवाया। दरगाह के पूर्वी दरवाज़े पर [[शाहजहाँ]] की बेटी [[जहाँआरा बेगम]] द्वारा बनवाया हुआ 'बेगमी दालान' है, जिसकी कारीगरों और नक्‍काशी देखते ही बनती है।<ref>{{cite web |url=http://www.metromirror.com/rajasthan_h/showarticle_raj_h.php?article=rajtourism_h |title=राजस्थान पर्यटन |accessmonthday=19 जनवरी |accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=metromirror.com |language=हिंदी }}</ref>
==वास्तुकला==
==वास्तुकला==
तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित दरगाह शरीफ़ [[वास्तुकला]] की दृष्टि से भी बेजोड़ है। यहाँ ईरानी और हिन्दुस्तानी वास्तुकला का सुंदर संगम दिखता है। दरगाह का प्रवेश द्वार और गुंबद बेहद ख़ूबसूरत है। इसका कुछ भाग [[अकबर]] ने तो कुछ [[जहाँगीर]] ने पूरा करवाया था। माना जाता है कि दरगाह को पक्का करवाने का काम माण्डू के सुल्तान ग़्यासुद्दीन ख़िलजी ने करवाया था। दरगाह के अंदर बेहतरीन नक़्क़ाशी किया हुआ एक चाँदी का कटघरा है। इस कटघरे के अंदर ख़्वाजा साहब की मज़ार है। यह कटघरा [[जयपुर]] के महाराजा [[राजा जयसिंह]] ने बनवाया था। दरगाह में एक ख़ूबसूरत महफिल खाना भी है, जहाँ [[क़व्वाल]] ख़्वाजा की शान में [[कव्वाली]] गाते हैं। दरगाह के आस-पास कई अन्य ऐतिहासिक इमारतें भी स्थित हैं।<ref name="WDH">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/religion/religiousjourney/articles/0710/06/1071006038_1.htm |title=अजमेर की दरगाह शरीफ़ |accessmonthday=2 अप्रॅल |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेब दुनिया हिन्दी |language=हिन्दी }}</ref>
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[[धर्म]] के नाम पर नफरत फैलाने वाले लोगों को ग़रीब नवाज की दरगाह से सबक लेना चाहिए। ख़्वाजा के दर पर [[हिन्दू]] हो या [[मुस्लिम]] या किसी अन्य धर्म को मानने वाले, सभी ज़ियारत करने आते हैं। यहाँ का मुख्य पर्व [[उर्स]] कहलाता है जो [[इस्लाम कैलेंडर]] के [[रज्जब माह]] की पहली से छठी तारीख तक मनाया जाता है। उर्स की शुरुआत बाबा की मजार पर हिन्दू [[परिवार]] द्वारा चादर चढ़ाने के बाद ही होती है।<ref name="WDH"/>
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[[चित्र:Khwaja-Garib-Nawaz-Dargah-4.jpg|thumb|left|ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह]]
[[चित्र:Khwaja-Garib-Nawaz-Dargah-4.jpg|thumb|left|ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह]]
==बड़ी देग-छोटी देग==
अजमेर शरीफ दरगाह में दो 'देग'<ref>छोटे मुँह और बड़े पेट का एक ताँबे का बर्तन जिसमें [[चावल]] आदि पकाये जाते हैं</ref> हैं, इन्हें 'बड़ी देग' और 'छोटी देग' कहा जाता है। बड़ी देग बादशाह जहाँगीर ने पेश की थी, जबकि छोटी देग [[अकबर]] ने। इन देगों में मीठा [[चावल]] बनता है, जिसे ज़रदा कहते हैं; क्योंकि विभिन्न धर्मों के लोग इस दरगाह पर आते हैं, इसलिए ऐसा चावल बनता है, जिसे सब खा सकें। ज़ाफ़रान, मेवा, घी, शक्कर आदि डालकर रात भर इसे पकाया जाता है और दिन में लोगों को बांटा जाता है। ये देग दरगाह का प्रबंधन नहीं चढ़वाता बल्कि अगर किसी की मन्नत पूरी हो जाती है तो वह इसे चढ़वाता है। छोटी देग चढ़वाने में 50 हज़ार रुपए और बड़ी देग चढ़ने में एक लाख रुपए ख़र्च होते हैं। छोटी देग में क़रीब 2400 कि.ग्रा. और बड़ी देग में 2800 कि.ग्रा. चावल पकता है।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.com/hindi/news/story/2007/01/070120_askus_gandhi.shtml |title=अजमेर शरीफ दरगाह|accessmonthday=11 अक्टूबर|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bbc.com |language=हिंदी}}</ref>
==विशेषताएँ==
==विशेषताएँ==
*ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह की ख़ास बात यह भी है कि ख़्वाजा पर हर धर्म के लोगों का विश्वास है। यहाँ आने वाले जायरीन चाहे वे किसी भी मज़हब के क्यों न हों, ख़्वाजा के दर पर [[दस्तक]] देने ज़रूर आते हैं।  
*ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह की ख़ास बात यह भी है कि ख़्वाजा पर हर धर्म के लोगों का विश्वास है। यहाँ आने वाले जायरीन चाहे वे किसी भी मज़हब के क्यों न हों, ख़्वाजा के दर पर [[दस्तक]] देने ज़रूर आते हैं।  

10:06, 11 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह
ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह
ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह
विवरण 'ख़्वाजा साहब' या 'ख़्वाजा शरीफ़' अजमेर आने वाले सभी धर्मावलम्बियों के लिये एक पवित्र स्थान है।
राज्य राजस्थान
ज़िला अजमेर
निर्माता इस दरगाह का कुछ भाग अकबर ने तो कुछ जहाँगीर ने पूरा करवाया था।
निर्माण काल 1143-1233 ई.
प्रसिद्धि यहाँ ईरानी और हिन्दुस्तानी वास्तुकला का सुंदर संगम दिखता है। दरगाह का प्रवेश द्वार और गुंबद बेहद ख़ूबसूरत है।
गूगल मानचित्र
संबंधित लेख मोईनुद्दीन चिश्ती, मक्का, उर्स


अन्य जानकारी ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह की ख़ास बात यह भी है कि ख़्वाजा पर हर धर्म के लोगों का विश्वास है। यहाँ आने वाले जायरीन चाहे वे किसी भी मज़हब के क्यों न हों, ख़्वाजा के दर पर दस्तक देने ज़रूर आते हैं।

ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह राजस्थान के शहर अजमेर में प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। इसे 'दरगाह अजमेर शरीफ़' भी कहा जाता है। ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, ख़्वाजा साहब या ख़्वाजा शरीफ़ अजमेर आने वाले सभी धर्मावलम्बियों के लिये एक पवित्र स्थान है। मक्का के बाद सभी मुस्लिम तीर्थ स्थलों में इसका दूसरा स्थान हैं। इसलिये इसे भारत का मक्का भी कहा जाता हैं।

निर्माण

तारागढ की तलहटी में स्थित ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह का निर्माण 1143-1233 ई. माना जाता है। यह मजहबी आस्‍था का प्रमुख केन्‍द्र है। सन 1464 ई. में मांडू के सुल्तान ग़यासुद्दीन ख़िलजी ने इसे पक्‍का करवाया था। मुग़ल शासन के दौरान इसका और विस्‍तार हुआ। यहां अकबर ने 1570 ई. में 'अकबरी मस्जिद', 'बुलंद दरवाज़ा' एवं 'महफिलखाना' बनवाया। दरगाह के पूर्वी दरवाज़े पर शाहजहाँ की बेटी जहाँआरा बेगम द्वारा बनवाया हुआ 'बेगमी दालान' है, जिसकी कारीगरों और नक्‍काशी देखते ही बनती है।[1]

वास्तुकला

तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित दरगाह शरीफ़ वास्तुकला की दृष्टि से भी बेजोड़ है। यहाँ ईरानी और हिन्दुस्तानी वास्तुकला का सुंदर संगम दिखता है। दरगाह का प्रवेश द्वार और गुंबद बेहद ख़ूबसूरत है। इसका कुछ भाग अकबर ने तो कुछ जहाँगीर ने पूरा करवाया था। माना जाता है कि दरगाह को पक्का करवाने का काम माण्डू के सुल्तान ग़्यासुद्दीन ख़िलजी ने करवाया था। दरगाह के अंदर बेहतरीन नक़्क़ाशी किया हुआ एक चाँदी का कटघरा है। इस कटघरे के अंदर ख़्वाजा साहब की मज़ार है। यह कटघरा जयपुर के महाराजा राजा जयसिंह ने बनवाया था। दरगाह में एक ख़ूबसूरत महफिल खाना भी है, जहाँ क़व्वाल ख़्वाजा की शान में कव्वाली गाते हैं। दरगाह के आस-पास कई अन्य ऐतिहासिक इमारतें भी स्थित हैं।[2]

धार्मिक सद्‍भाव की मिसाल

धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले लोगों को ग़रीब नवाज की दरगाह से सबक लेना चाहिए। ख़्वाजा के दर पर हिन्दू हो या मुस्लिम या किसी अन्य धर्म को मानने वाले, सभी ज़ियारत करने आते हैं। यहाँ का मुख्य पर्व उर्स कहलाता है जो इस्लाम कैलेंडर के रज्जब माह की पहली से छठी तारीख तक मनाया जाता है। उर्स की शुरुआत बाबा की मजार पर हिन्दू परिवार द्वारा चादर चढ़ाने के बाद ही होती है।[2]

ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह

बड़ी देग-छोटी देग

अजमेर शरीफ दरगाह में दो 'देग'[3] हैं, इन्हें 'बड़ी देग' और 'छोटी देग' कहा जाता है। बड़ी देग बादशाह जहाँगीर ने पेश की थी, जबकि छोटी देग अकबर ने। इन देगों में मीठा चावल बनता है, जिसे ज़रदा कहते हैं; क्योंकि विभिन्न धर्मों के लोग इस दरगाह पर आते हैं, इसलिए ऐसा चावल बनता है, जिसे सब खा सकें। ज़ाफ़रान, मेवा, घी, शक्कर आदि डालकर रात भर इसे पकाया जाता है और दिन में लोगों को बांटा जाता है। ये देग दरगाह का प्रबंधन नहीं चढ़वाता बल्कि अगर किसी की मन्नत पूरी हो जाती है तो वह इसे चढ़वाता है। छोटी देग चढ़वाने में 50 हज़ार रुपए और बड़ी देग चढ़ने में एक लाख रुपए ख़र्च होते हैं। छोटी देग में क़रीब 2400 कि.ग्रा. और बड़ी देग में 2800 कि.ग्रा. चावल पकता है।[4]

विशेषताएँ

  • ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह की ख़ास बात यह भी है कि ख़्वाजा पर हर धर्म के लोगों का विश्वास है। यहाँ आने वाले जायरीन चाहे वे किसी भी मज़हब के क्यों न हों, ख़्वाजा के दर पर दस्तक देने ज़रूर आते हैं।
  • दरगाह में अंदर सफ़ेद संगमरमरी शाहजहांनी मस्जिद, बारीक कारीगरी युक्त बेगमी दालान, जन्नती दरवाज़ा और 2 अकबरकालीन देग हैं। इन देगों में काजू, बादाम, पिस्ता, इलायची, केसर के साथ चावल पकाया जाता है और ग़रीबों में बाँटा जाता है।
  • ख़्वाजा साहब की पुण्य तिथि पर प्रतिवर्ष रज्जब के पहले दिन से छठे दिन तक यहाँ उर्स का आयोजन किया जाता हैं।
  • दरगाह का मुख्य धरातल सफ़ेद संगमरमर का बना हुआ है। इसके ऊपर एक आकर्षक गुम्बद हैं, जिस पर सुनहरा कलश हैं।
  • मज़ार पर मखमल की गिलाफ़ चढी हुई हैं। इसके चारों ओर परिक्रमा के स्थान पर चांदी के कटघरे बने हुए हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राजस्थान पर्यटन (हिंदी) metromirror.com। अभिगमन तिथि: 19 जनवरी, 2017।
  2. 2.0 2.1 अजमेर की दरगाह शरीफ़ (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 2 अप्रॅल, 2012।
  3. छोटे मुँह और बड़े पेट का एक ताँबे का बर्तन जिसमें चावल आदि पकाये जाते हैं
  4. अजमेर शरीफ दरगाह (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 11 अक्टूबर, 2017।

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