"कृष्ण जन्माष्टमी": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Krishna-Janamashthmi-Mathura-1.jpg|[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]<br /> Krishna Birth Place, Mathura|thumb|250px]]
{{कृष्ण जन्माष्टमी विषय सूची}}
भगवान [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के जन्मोत्सव का दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। [[कृष्ण जन्मभूमि]] पर देश–विदेश से लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती हें और पूरे दिन व्रत रखकर नर-नारी तथा बच्चे रात्रि 12 बजे मन्दिरों में [[अभिषेक]] होने पर पंचामृत ग्रहण कर व्रत खोलते हैं। कृष्ण जन्म स्थान के अलावा [[द्वारिकाधीश मन्दिर मथुरा|द्वारकाधीश]], [[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|बिहारीजी]] एवं अन्य सभी मन्दिरों में इसका भव्य आयोजन होता हैं , जिनमें भारी भीड़ होती है।
{{सूचना बक्सा त्योहार
==भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य उत्सव==  
|चित्र=Krishna-birth2.jpg
{{main|कृष्ण संदर्भ}}
|चित्र का नाम= कृष्ण जन्म के समय भगवान विष्णु
[[चित्र:Makhanchor.jpg|thumb||left|150px|माखनचोर कृष्ण<br /> Makhanchor Krishna]]
|अन्य नाम =जन्माष्टमी
|अनुयायी = [[हिंदू]], भारतीय, प्रवासी भारतीय
|उद्देश्य = भगवान [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] इस दिन [[पृथ्वी]] पर अवतरित हुए थे, इसीलिए इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं।
|प्रारम्भ = पौराणिक काल
|तिथि=[[भाद्रपद]] [[मास|माह]] की [[कृष्ण पक्ष]] की [[अष्टमी]]
|उत्सव =कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव सम्पूर्ण [[ब्रजमण्डल]] में, घर–घर में, मन्दिर–मन्दिर में मनाया जाता है। अधिकतर लोग [[व्रत]] रखते हैं और रात को बारह बजे ही 'पंचामृत या फलाहार' ग्रहण करते हैं। [[फल]], मिष्ठान, वस्त्र, बर्तन, खिलौने और [[रुपया|रुपये]] लुटाए जाते हैं। जिन्हें प्रायः सभी श्रद्धालु लूटकर धन्य होते हैं।
|अनुष्ठान =जन्माष्टमी के अवसर पर मन्दिरों को अति सुन्दर ढंग से सजाया जाता है तथा मध्यरात्रि को [[प्रार्थना]] की जाती है। [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] की मूर्ति बनाकर उसे एक पालने में रखा जाता है तथा उसे धीरे–धीरे हिलाया जाता है। लोग सारी रात [[भजन]] गाते हैं और [[आरती]] करते हैं।
|धार्मिक मान्यता =
|प्रसिद्धि =
|संबंधित लेख=[[कृष्ण]], [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]], [[द्वारिकाधीश मन्दिर मथुरा|द्वारिकाधीश]], [[बांके बिहारी मन्दिर|बांके बिहारी]], [[वृन्दावन]]
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=प्रत्येक भारतीय [[भागवत पुराण]] में लिखित 'श्रीकृष्णावतार की कथा' से परिचित हैं। श्रीकृष्ण की बाल्याकाल की शरारतें जैसे- माखन व [[दही]] चुराना, जन्माष्टमी व्रत नोंक–झोंक, तरह - तरह के खेल, [[इन्द्र]] के विरुद्ध उनका हठ (जिसमें वे [[गोवर्धन]] पर्वत अपनी अँगुली पर उठा लेते हैं, ताकि गोकुलवासी अति वर्षा से बच सकें), सर्वाधिक विषैले [[कालिय नाग|कालिया नाग]] से युद्ध व उसके हज़ार फनों पर नृत्य, उनकी लुभा लेने वाली [[बाँसुरी]] का स्वर, [[कंस]] द्वारा भेजे गए गुप्तचरों का विनाश, ये सभी प्रसंग भावना प्रधान व अत्यन्त रोचक हैं।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
'''कृष्ण जन्माष्टमी''' भगवान [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] का जन्मोत्सव है। योगेश्वर कृष्ण के [[गीता|भगवद्गीता]] के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी को [[भारत]] में ही नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना [[अवतार]] [[भाद्रपद]] [[माह]] की [[कृष्ण पक्ष]] की [[अष्टमी]] को मध्यरात्रि में [[कंस]] का विनाश करने के लिए [[मथुरा]] में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन [[पृथ्वी]] पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है।
==जन्मोत्सव==
भगवान [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के जन्मोत्सव का दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। [[कृष्ण जन्मभूमि]] पर देश–विदेश से लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और पूरे दिन व्रत रखकर नर-नारी तथा बच्चे रात्रि 12 बजे मन्दिरों में [[अभिषेक]] होने पर [[पंचामृत]] ग्रहण कर व्रत खोलते हैं। [[कृष्ण जन्मभूमि]] के अलावा [[द्वारिकाधीश मन्दिर मथुरा|द्वारकाधीश]], [[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|बिहारीजी]] एवं अन्य सभी मन्दिरों में इसका भव्य आयोजन होता है, जिनमें भारी भीड़ होती है।[[चित्र:Makhanchor.jpg|thumb||left|150px|[[कृष्ण|माखनचोर कृष्ण]]]]
==विष्णु के आठवें अवतार==
{{main|कृष्ण|कृष्ण संदर्भ}}
भगवान श्रीकृष्ण [[विष्णु|विष्णुजी]] के आठवें [[अवतार]] माने जाते हैं। यह श्रीविष्णु का [[सोलह कला|सोलह कलाओं]] से पूर्ण भव्यतम अवतार है। [[श्रीराम]] तो राजा [[दशरथ]] के यहाँ एक राजकुमार के रूप में अवतरित हुए थे, जबकि श्रीकृष्ण का प्राकट्य आततायी [[कंस]] के कारागार में हुआ था। श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को [[रोहिणी नक्षत्र]] में [[देवकी]] व [[वसुदेव|श्रीवसुदेव]] के पुत्ररूप में हुआ था। कंस ने अपनी मृत्यु के भय से बहिन देवकी और वसुदेव को कारागार में क़ैद किया हुआ था।
[[चित्र:Krishna Birth Place Mathura-13.jpg|[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]|thumb|left|220px]]
कृष्ण जन्म के समय घनघोर [[वर्षा]] हो रही थी। चारों तरफ़ घना अंधकार छाया हुआ था। श्रीकृष्ण का अवतरण होते ही वसुदेव–देवकी की बेड़ियाँ खुल गईं, कारागार के द्वार स्वयं ही खुल गए, पहरेदार गहरी निद्रा में सो गए। वसुदेव किसी तरह श्रीकृष्ण को उफनती [[यमुना नदी|यमुना]] के पार [[गोकुल]] में अपने मित्र [[नंद|नन्दगोप]] के घर ले गए। वहाँ पर नन्द की पत्नी [[यशोदा]] को भी एक कन्या उत्पन्न हुई थी। वसुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को ले गए। कंस ने उस कन्या को पटककर मार डालना चाहा। किन्तु वह इस कार्य में असफल ही रहा। श्रीकृष्ण का लालन–पालन यशोदा व नन्द ने किया। बाल्यकाल में ही श्रीकृष्ण ने अपने मामा के द्वारा भेजे गए अनेक राक्षसों को मार डाला और उसके सभी कुप्रयासों को विफल कर दिया। अन्त में श्रीकृष्ण ने आतातायी कंस को ही मार दिया। श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का नाम ही जन्माष्टमी है। गोकुल में यह त्योहार 'गोकुलाष्टमी' के नाम से मनाया जाता है।
[[चित्र:Krishna-Birth-Place-Mathura-7.jpg|thumb|250px|जन्माष्टमी के अवसर पर श्रद्धालुओं की भीड़, [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
===='''भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य उत्सव'''====
*भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने [[अर्जुन]] को कायरता से वीरता, विषाद से प्रसाद की ओर जाने का दिव्य संदेश [[गीता|श्रीमदभगवदगीता]] के माध्यम से दिया।  
*भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने [[अर्जुन]] को कायरता से वीरता, विषाद से प्रसाद की ओर जाने का दिव्य संदेश [[गीता|श्रीमदभगवदगीता]] के माध्यम से दिया।  
*[[कालिय नाग|कालिया नाग]] के फन पर नृत्य किया, विदुराणी का साग खाया और [[गोवर्धन|गोवर्धन पर्वत]] को उठाकर गिरिधारी कहलाये।  
*[[कालिय नाग|कालिया नाग]] के फन पर नृत्य किया, विदुराणी का साग खाया और [[गोवर्धन|गोवर्धन पर्वत]] को उठाकर गिरिधारी कहलाये।  
*समय पड़ने पर उन्होंने [[दुर्योधन]] की जंघा पर [[भीम]] से प्रहार करवाया, [[शिशुपाल]] की गालियाँ सुनी, पर क्रोध आने पर सुदर्शन चक्र भी उठाया।  
*समय पड़ने पर उन्होंने [[दुर्योधन]] की जंघा पर [[भीम (पांडव)|भीम]] से प्रहार करवाया, [[शिशुपाल]] की गालियाँ सुनी, पर क्रोध आने पर [[सुदर्शन चक्र]] भी उठाया।  
*अर्जुन के सारथी बनकर उन्होंने [[पांडव|पाण्डवों]] को [[महाभारत]] के संग्राम में जीत दिलवायी।  
*अर्जुन के सारथी बनकर उन्होंने [[पांडव|पाण्डवों]] को [[महाभारत]] के संग्राम में जीत दिलवायी।  
*सोलह कलाओं से पूर्ण वह भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने मित्र धर्म के निर्वाह के लिए गरीब [[सुदामा]] के पोटली के कच्चे चावलों को खाया और बदले में उन्हें राज्य दिया।  
*सोलह कलाओं से पूर्ण वह भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने मित्र धर्म के निर्वाह के लिए ग़रीब [[सुदामा]] के पोटली के कच्चे [[चावल|चावलों]] को खाया और बदले में उन्हें राज्य दिया।  
*उन्हीं परमदयालु प्रभु के जन्म उत्सव को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
*उन्हीं परमदयालु प्रभु के जन्म उत्सव को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।


==अवतार==
===='''शास्त्रों के अनुसार'''====
{{main|कृष्ण}}
श्रावण (अमान्त) कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कृष्ण जन्माष्टमी या जन्माष्टमी व्रत एवं उत्सव प्रचलित है, जो [[भारत]] में सर्वत्र मनाया जाता है और सभी व्रतों एवं उत्सवों में श्रेष्ठ माना जाता है। कुछ [[पुराण|पुराणों]] में ऐसा आया है कि यह भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इसकी व्याख्या इस प्रकार है कि 'पौराणक वचनों में मास पूर्णिमान्त है तथा इन मासों में कृष्ण पक्ष प्रथम पक्ष है।' [[पद्म पुराण]] <ref>[[पद्म पुराण]] (3|13</ref> , [[मत्स्य पुराण]]  <ref> मत्स्य पुराण(56</ref> , [[अग्नि पुराण]] <ref> अग्नि पुराण(183</ref>  में कृष्ण जन्माष्टमी के माहात्म्य का विशिष्ट उल्लेख है।
भगवान श्रीकृष्ण [[विष्णु]]जी के आठवें अवतार माने जाते हैं। यह श्रीविष्णु का सोलह कलाओं से पूर्ण भव्यतम अवतार है। श्री[[राम]] तो राजा [[दशरथ]] के यहाँ एक राजकुमार के रूप में अवतरित हुए थे, जबकि श्रीकृष्ण का प्राकट्य आततायी [[कंस]] के कारागार में हुआ था। श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में [[देवकी]] [[वसुदेव|श्रीवसुदेव]] के पुत्ररूप में हुआ था। कंस ने अपनी मृत्यु के भय से बहिन देवकी और वसुदेव को कारागार में क़ैद किया हुआ था।
*[[ छान्दोग्य उपनिषद|छान्दोग्योपनिषद]] <ref> छान्दोग्योपनिषद(3|17|6</ref>  में आया है कि [[कृष्ण]] [[देवकी]] पुत्र ने घोर आंगिर से शिक्षाएँ ग्रहण कीं। कृष्ण नाम के एक वैदिक कवि थे, जिन्होंने [[अश्विनीकुमार|अश्विनों]] से प्रार्थना की है <ref>ऋग्वेद 8|85|3</ref>।
[[चित्र:Krishna-birth2.jpg|thumb|[[कृष्ण]] जन्म के समय भगवान [[विष्णु]]<br />God Vishnu at the Time of Krishna's Birth]]
*अनुक्रमणी ने ऋग्वेद <ref>ऋग्वेद 8|86-87</ref> को कृष्ण आंगिरस का माना है।  
कृष्ण जन्म के समय घनघोर वर्षा हो रही थी। चारों तरफ़ घना अंधकार छाया हुआ था। श्रीकृष्ण का अवतरण होते ही वसुदेव–देवकी की बेड़ियाँ खुल गईं, कारागार के द्वार स्वयं ही खुल गए, पहरेदार गहरी निद्रा में सो गए। वसुदेव किसी तरह श्रीकृष्ण को उफनती [[यमुना नदी|यमुना]] के पार [[गोकुल]] में अपने मित्र [[नंद|नन्दगोप]] के घर ले गए। वहाँ पर नन्द की पत्नी [[यशोदा]] को भी एक कन्या उत्पन्न हुई थी। वसुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को ले गए। कंस ने उस कन्या को पटककर मार डालना चाहा। किन्तु वह इस कार्य में असफल ही रहा। श्रीकृष्ण का लालन–पालन यशोदा व नन्द ने किया। बाल्यकाल में ही श्रीकृष्ण ने अपने मामा के द्वारा भेजे गए अनेक राक्षसों को मार डाला और उसके सभी कुप्रयासों को विफल कर दिया। अन्त में श्रीकृष्ण ने आतातायी कंस को ही मार दिया। श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का नाम ही जन्माष्टमी है। गोकुल में यह त्योहार 'गोकुलाष्टमी' के नाम से मनाया जाता है।
*[[जैन]] परम्पराओं में कृष्ण 22वें तीर्थकर [[नेमिनाथ तीर्थंकर|नेमिनाथ]] के समकालीन माने गये हैं और जैनों के प्राक्-इतिहास के 63 महापुरुषों के विवरण में लगभग एक तिहाई भाग कृष्ण के सम्बन्ध में ही है।
*[[महाभारत]] में [[कृष्ण]] जीवन भरपूर हैं। महाभारत में वे यादव राजकुमार कहे गये हैं, वे [[पाण्डव|पाण्डवों]] के सबसे गहरे मित्र थे, बड़े भारी योद्धा थे, राजनीतिज्ञ एवं दार्शनिक थे। कतिपय स्थानों पर वे परमात्मा माने गये हैं और स्वयं [[विष्णु]] कहे गये हैं। [[महाभारत शान्ति पर्व]] <ref>महाभारत शान्ति पर्व, 47|28</ref>; [[द्रोण पर्व महाभारत|द्रोण पर्व]] <ref>महाभारत द्रोण पर्व, 146|67-68</ref>; कर्ण पर्व <ref>[[महाभारत कर्ण पर्व]], 87|74</ref>; [[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]] <ref>महाभारत वन पर्व, 49|20</ref>; [[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्म पर्व]] <ref>महाभारत भीष्म पर्व, 21|13-15</ref>। [[युधिष्ठिर]] <ref>महाभारत द्रोण पर्व, 149|16-33</ref>, [[द्रौपदी]]<ref>महाभारत वन पर्व, 263|8-16</ref> एवं [[भीष्म]] <ref>महाभारत अनुशासन पर्व, 167|37-45</ref> ने कृष्ण के विषय में प्रशंसा के गान किये हैं। [[हरिवंश पुराण|हरिवंश]], [[विष्णु पुराण|विष्णु]], [[वायु पुराण|वायु]], [[भागवत पुराण|भागवत]] एवं [[ब्रह्म वैवर्त पुराण|ब्रह्मवैवर्त पुराण]] में कृष्ण लीलाओं का वर्णन है जो [[महाभारत]] में नहीं पाया जाता है।
*[[पाणिनि]] <ref>पाणिनी(4|3|98</ref> से प्रकट होता है कि इनके काल में कुछ लोग 'वासुदेवक' एवं 'अर्जुनक' भी थे, जिनका अर्थ है क्रम से वासुदेव एवं अर्जुन के भक्त।
*[[पतंजलि]] के महाभाष्य के वार्तिकों में कृष्ण सम्बन्धी व्यक्तियों एवं घटनाओं की ओर संकेत है, यथा वार्तिक संहिता <ref>वार्तिक संहिता 6 (पाणिनि 3|1|26</ref> में [[कंस]] तथा [[बलि]] के नाम; वार्तिक संहिता <ref>वर्तिका सं0 2 (पाणिनि 3|1|138</ref> में 'गोविन्द'; एवं पाणिनी <ref>पाणिनी 3|2|21</ref> के वार्तिक में वासुदेव एवं कृष्ण। पंतजलि में '[[सत्यभामा]]' को 'भामा' भी कहा गया है। 'वासुदेववर्ग्य:' <ref>वार्तिक 11, पा0 4|2|104</ref>, ऋष्यन्धकवृष्णिकुरुभ्यश्च' <ref>पा0 4|1|114</ref> में, [[उग्रसेन राजा|उग्रसेन]] को [[अंधक]] कहा गया है एवं वासुदेव तथा [[बलराम|बलदेव]] को [[विष्णु]] कहा गया है, आदि शब्द आये हैं।
*अधिकांश विद्वानों ने [[पंतजलि]] को ई. पू. दूसरी शताब्दी का माना है। कृष्ण कथाएँ इसके बहुत पहले की हैं। [[आदि पर्व महाभारत|आदि पर्व]] <ref>महाभारत, आदि पर्व (1|256</ref> एवं [[सभा पर्व महाभारत|सभा पर्व]] <ref>महाभारत, सभा पर्व (33|10-12</ref> में कृष्ण को वासुदेव एवं परमब्रह्म एवं विश्व का मूल कहा गया है।
[[चित्र:Krishna-Birth-Place-Mathura-2.jpg|thumb|left|250px|[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
*ई. पू. दूसरी या पहली शताब्दी के घोसुण्डी [[अभिलेख]] <ref>एपि. इण्डि., 16, पृ. 25-27; 31, पृ. 198</ref> एवं इण्डियन ऐण्टीक्वेरी, <ref>इण्डियन ऐण्टीक्वेरी 61 पृ. 203</ref> में कृष्ण को 'भागवत एवं सर्वेश्वर' कहा गया है। यही बात नागाघाट अभिलेखों, ई. पू. 200 ई. में भी है। बेसनगर के 'गरुणध्वज' अभिलेख में वासुदेव को 'देव-देव' कहा गया है। ये प्रमाण सिद्ध करते हैं कि ई. पू. 500 के लगभग उत्तरी एवं मध्य [[भारत]] में वासुदेव की पूजा प्रचलित थी।
*श्री आर. जी. भण्डारकर कृत 'वैष्णविज्म, शैविज्म' <ref>श्री आर. जी. भण्डारकर कृत 'वैष्णविज्म, शैविज्म' आदि (पृ0 1–45</ref>, जहाँ पर [[वैष्णव सम्प्रदाय]] एवं इसकी प्राचीनता के विषय में विवेचन उपस्थित किया गया है। यह आश्चर्यजनक है कि कृष्ण जन्माष्टमी पर लिखे गये मध्यकालीन ग्रन्थों में [[भविष्य पुराण|भविष्य]], भविष्योत्तर, [[स्कन्द पुराण|स्कन्द]], विष्णुधर्मोत्तर, नारदीय एवं [[ब्रह्म वैवर्त पुराण|ब्रह्म वैवर्त]] पुराणों से उद्धरण तो लिये हैं, किन्तु उन्होंने उस [[भागवत पुराण]] को अछूता छोड़ रखा है जो पश्चात्कालीन मध्य एवं वर्तमानकालीन वैष्णवों का 'वेद' माना जाता है। भागवत में कृष्ण जन्म का विवरण संदिग्ध एवं साधारण है। वहाँ पर ऐसा आया है कि समय काल सर्वगुणसम्पन्न एवं शोभन था, दिशाएँ स्वच्छ एवं गगन निर्मल एवं उडुगण युक्त था, वायु सुखस्पर्शी एवं गंधवाही था और जब जनार्दन ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया तो अर्धरात्रि थी तथा अन्धकार ने सबको ढक लिया था।<ref>अथ सर्वगुणोपेत: काल: परमशोभन:। यर्ह्येवाजनजन्मर्क्ष शान्तर्क्षग्रहतारकम्।। दिश: प्रसेदुर्गगनं विर्मललोडुगणोदयम्।....ववौ वायु:सुखस्पर्श: पुण्यगन्धवह: शुचि:।...निशीथे तम उदभते जायमाने जनार्दने। देवक्यां देवरूपिण्याँ विष्णु: सर्वगृहाश्य:।। भागवत पुराण 10|3|1-2, 4, 8। यहाँ 'अजनजन्मक्षँ' शब्द का प्रयोग का अर्थ, लगता है, जिसका जन्म नक्षत्र वह 'रोहिणी' है जिसका प्रजापति (अजन) देवता है। दूसरे एवं चौथे श्लोकों में रघुवंश (3|14) के पद 'दिश: प्रसेदुर्मरुतो ववु: सुखा: की ध्वनि फूट रही है।</ref>
[[चित्र:Radha-Krishna-3.jpg|thumb|[[राधा]]-[[कृष्ण]]]]
*भविष्योत्तर पुराण <ref> भविष्योत्तर पुराण(44|1-69</ref>  में [[कृष्ण]] द्वारा 'कृष्णजन्माष्टमी व्रत' के बारे में [[युधिष्ठिर]] से स्वयं कहलाया गया है–'मैं वासुदेव एवं देवकी से भाद्र कृष्ण अष्टमी को उत्पन्न हुआ था, जबकि सूर्य [[सिंह राशि]] में था, चन्द्र [[वृषभ राशि]] में था और [[नक्षत्र]] [[रोहिणी नक्षत्र|रोहिणी]] था'<ref> भविष्योत्तर पुराण(74-75 श्लोक</ref>। जब श्रावण के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र होता है तो वह तिथि जयन्ती कहलाती है, उस दिन उपवास करने से सभी पाप जो बचपन, युवावस्था, वृद्धावस्था एवं बहुत से पूर्वजन्मों में हुए रहते हैं, कट जाते हैं। इसका फल यह है कि यदि [[श्रावण]] कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी हो तो न यह केवल जन्माष्टमी होती है, किन्तु जब श्रावण की कृष्णाष्टमी से रोहिणी संयुक्त हो जाती है तो जयन्ती होती है।
[[चित्र:Krishna-Birth-Place-Mathura-3.jpg|thumb|250px|left|रासलीला, [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
==जन्माष्टमी व्रत==
'जन्माष्टमी व्रत' एवं 'जयन्ती व्रत' एक ही हैं या ये दो पृथक् व्रत हैं। कालनिर्णय <ref>कालनिर्णय (पृ0 209</ref> ने दोनों को पृथक् व्रत माना है, क्योंकि दो पृथक् नाम आये हैं, दोनों के निमित्त (अवसर) पृथक् हैं (प्रथम तो कृष्णपक्ष की अष्टमी है और दूसरी रोहिणी से संयुक्त कृष्णपक्ष की अष्टमी), दोनों की ही विशेषताएँ पृथक् हैं, क्योंकि जन्माष्टमी व्रत में शास्त्र में उपवास की व्यवस्था दी है और जयन्ती व्रत में उपवास, दान आदि की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त जन्माष्टमी व्रत नित्य है (क्योंकि इसके न करने से केवल पाप लगने की बात कही गयी है) और जयन्ती व्रत नित्य एवं काम्य दोनों ही है, क्योंकि उसमें इसके न करने से न केवल पाप की व्यवस्था है प्रत्युत करने से फल की प्राप्ति की बात भी कही गयी है। एक ही श्लोक में दोनों के पृथक् उल्लेख भी हैं। [[हेमाद्रि]], मदनरत्न, [[निर्णयसिन्धु]] आदि ने दोनों को भिन्न माना है। निर्णयसिन्धु <ref>निर्णयसिन्धु(पृ0 126</ref> ने यह भी कहा है कि इस काल में लोग जन्माष्टमी व्रत करते हैं न कि जयन्ती व्रत। किन्तु जयन्तीनिर्णय <ref>जयन्तीनिर्णय(पृ0 25</ref> का कथन है कि लोग जयन्ती मनाते हैं न कि जन्माष्टमी। सम्भवत: यह भेद [[उत्तर भारत|उत्तर]] एवं [[दक्षिण भारत]] का है। <br />
[[वराह पुराण]] एवं [[हरिवंश पुराण|हरिवंश]] में दो विरोधी बातें हैं। प्रथम के अनुसार कृष्ण का जन्म [[आषाढ़]] [[शुक्ल पक्ष]] [[द्वादशी]] को हुआ था। हरिवंश के अनुसार कृष्ण जन्म के समय [[अभिजित नक्षत्र]] था और विजय मुहूर्त था। सम्भवत: इन उक्तियों में प्राचीन परम्पराओं की छाप है। मध्यकालिक निबन्धों में जन्माष्टमी व्रत के सम्पादन की तिथि एवं काल के विषय में भी कुछ विवेचन मिलता है <ref>काल निर्णय, पृ0 215-224</ref>; कृत्यतत्त्व <ref>कृत्यतत्वपृ0 438-444</ref>; तिथितत्व,<ref>तिथितत्त्व पृ0 47-51</ref>। समयमयूख <ref>समयमयूख(50-51</ref> एवं निर्णय सिंधु <ref>निर्णय सिंधु(पृ0 128-130</ref> में इस विषय में निष्कर्ष दिये गये हैं।
[[चित्र:Krishna-2.jpg|thumb|left|बंसी बजाते हुए  [[कृष्ण]]]]
=='''जन्माष्टमी मनाने का समय निर्धारण'''==
[[चित्र:Krishna-Janmbhumi-Mathura-5.jpg|thumb|200px|[[श्रीकृष्ण]], [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
सभी पुराणों एवं जन्माष्टमी सम्बन्धी ग्रन्थों से स्पष्ट होता है कि कृष्णजन्म के सम्पादन का प्रमुख समय है 'श्रावण कृष्ण पक्ष की अष्टमी की अर्धरात्रि' (यदि पूर्णिमान्त होता है तो भाद्रपद मास में किया जाता है)। यह तिथि दो प्रकार की है–
# बिना रोहिणी नक्षत्र की तथा
#रोहिणी नक्षत्र वाली।
*निर्णयामृत <ref>निर्णयामृत(पृष्ठ 56-58</ref> में 18 प्रकार हैं, जिनमें 8 शुद्धा तिथियाँ, 8 विद्धा तथा अन्य 2 हैं (जिनमें एक अर्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र वाली तथा दूसरी रोहिणी से युक्त नवमी, बुध या मंगल को)। *तिथितत्त्व <ref>तिथितत्व(पृष्ठ (54</ref> से संक्षिप्त निर्णय इस प्रकार हैं– 'यदि 'जयन्ती' (रोहिणीयुक्त अष्टमी) एक दिन वाली है, तो उसी दिन उपवास करना चाहिए, यदि जयन्ती न हो तो रोहिणी युक्त अष्टमी को होना चाहिए, यदि रोहिणी से युक्त दो दिन हों तो उपवास दूसरे दिन ही किया जाता है, यदि रोहिणी नक्षत्र न हो तो उपवास अर्धरात्रि में अवस्थित अष्टमी को होना चाहिए या यदि अष्टमी अर्धरात्रि में दो दिन वाली हो या यदि वह अर्धरात्रि में न हो तो उपवास दूसरे दिन किया जाना चाहिए। यदि जयन्ती बुध या मंगल को हो तो उपवास महापुण्यकारी होता है और करोड़ों व्रतों से श्रेष्ठ माना जाता है जो व्यक्ति बुध या मंगल से युक्त जयन्ती पर उपवास करता है, वह जन्म-मरण से सदा के लिए छुटकारा पा लेता है।'
==कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?==
[[पंचांग]] के अनुसार [[भाद्रपद]] माह के [[कृष्ण पक्ष]] की [[अष्टमी]] [[तिथि]] की शुरुआत [[6 सितंबर]] [[2023]] को दोपहर 03 बजकर 37 मिनट से हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन [[7 सितंबर]] 2023 शाम 04 बजकर 14 मिनट पर होगा। कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा मध्य रात्रि की जाती है, इसलिए इस साल भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव 6 सितंबर 2023, बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का 5250 वां जन्मोत्सव मनाया जाएगा।<ref name="pp">{{cite web |url= https://www.amarujala.com/photo-gallery/spirituality/festivals/krishna-janmashtami-2023-date-time-puja-vidhi-shubh-muhurat-janmashtami-kab-hai-2023-07-18?pageId=5|title=6 या 7 सितंबर, कब है कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व? जानें सही तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त|accessmonthday=05 सितंबर|accessyear=2023 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=amarujala.com |language=हिंदी}}</ref>
;पूजा मुहूर्त
6 सितंबर 2023, दिन बुधवार को रात 11 बजकर 57 मिनट से 12 बजकर 42 मिनट के बीच जन्माष्टमी की पूजा की जाएगी। कान्हा का जन्म रोहिणी नक्षत्र में मध्य रात्रि में हुआ था। 6 सितंबर को रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत सुबह 09 बजकर 20 मिनट से हो रही है। अगले दिन 7 सितंबर को सुबह 10 बजकर 25 मिनट पर इसका समापन हो जाएगा। वहीं जन्माष्टमी व्रत का पारण 7 सितंबर को सुबह 6 बजकर 2 मिनट या शाम 4 बजकर 14 मिनट के बाद किया जा सकेगा।
;गृहस्थ और वैष्णव संप्रदाय के लिए जन्माष्टमी की तिथि
गृहस्थ और [[वैष्णव संप्रदाय]] के लोग अलग-अलग दिन कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं। ऐसे में 6 सितंबर 2023 को गृहस्थ जीवन वाले लोग और 7 सितंबर 2023 को वैष्णव संप्रदाय के लोग कान्हा का जन्मोत्सव मना सकते हैं।


==ज्योतिष के अनुसार ==
==जन्माष्टमी व्रत में प्रमुख कृत्य एवं विधियाँ==
*ज्योतिष के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी  
{{main|कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा}}
#रोहिणी नक्षत्र योग से रहित हो, तो 'केवला' कहलाती है और  
जन्माष्टमी व्रत में प्रमुख कृत्य है उपवास, कृष्ण पूजा, जागरण (रात का जागरण, स्तोत्र पाठ एवं कृष्ण जीवन सम्बन्धी कथाएँ सुनना) एवं [[पारण]] करना।
#नक्षत्र से युक्त हो तथा अर्धरात्रि हो, सोम या बुधवार अष्टमी तिथि से संयुक्त हो, तो वह 'जयन्ती' कहलाती है।
*तिथितत्त्व <ref>तिथितत्व(पृ0 42-47</ref>, समयमयूख <ref>समयमयूख(पृ0 52-57</ref>, कालतत्वविवेक <ref>कालतत्वविवेक(पृ0 52-56</ref>, व्रतराज <ref>व्रतराज(पृ0 274-277</ref>, धर्मसिन्धु <ref>धर्मसिन्धु(पृ0 68-69</ref> ने भविष्योत्तर पुराण <ref>भविष्योत्तर पुराण(अभ्यास 55</ref> के आधार पर जन्माष्टमी व्रत विधि पर लम्बे-लम्बे विवेचन उपस्थित किये हैं।
*जन्म–जन्मांतरों के संचित पुण्य से ऐसा योग आता है।
[[चित्र:Vasudev-Krishna.jpg|thumb|left|बाल [[कृष्ण]] को [[यमुना]] पार ले जाते [[वसुदेव]]]]
==श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव==
===='''व्रत विधि'''====
[[चित्र:Krishna-Mandapam.jpg|thumb|220px|[[गोवर्धन]] पर्वत उठाते हुए [[कृष्ण]]]]
व्रत के दिन प्रात: व्रती को [[सूर्य]], सोम (चन्द्र), यम, काल, दोनों सन्ध्याओं (प्रात: एवं सायं), पाँच भूतों, दिन, क्षपा (रात्रि), पवन, दिक्पालों, भूमि, आकाश, खचरों (वायु दिशाओं के निवासियों) एवं देवों का आह्वान करना चाहिए, जिससे वे उपस्थित हों।<ref>सूर्य: सोमो यम: सन्ध्ये भूतान्यह: क्षपा। पवनो दिक्पतिर्भूमिराकाशं खचरामरा:। ब्राह्मं शासनमास्थाय कल्पध्वमिह सन्निधिम्।। तिथितत्त्व (पृ 45) एवं समयमयूख (पृ0 52)। </ref> उसे अपने हाथ में जलपूर्ण ताम्र पात्र रखना चाहिए, जिसमें कुछ फल, पुष्प, अक्षत हों और मास आदि का नाम लेना चाहिए और संकल्प करना चाहिए– 'मैं कृष्णजन्माष्टमी व्रत कुछ विशिष्ट फल आदि तथा अपने पापों से छुटकारा पाने के लिए करूँगा।' तब वह वासुदेव को सम्बोधित कर चार मंत्रों का पाठ करता है, जिसके उपरान्त वह पात्र में जल डालता है। उसे देवकी के पुत्रजनन के लिए प्रसूति-गृह का निर्माण करना चाहिए, जिसमें जल से पूर्ण शुभ पात्र, आम्रदल, पुष्पमालाएँ आदि रखना चाहिए, अगरु जलाना चाहिए और शुभ वस्तुओं से अलंकरण करना चाहिए तथा षष्ठी देवी को रखना चाहिए। गृह या उसकी दीवारों के चतुर्दिक देवों एवं गन्धर्वों के चित्र बनवाने चाहिए (जिनके हाथ जुड़े हुए हों), [[वसुदेव|वासुदेव]] (हाथ में तलवार से युक्त), [[देवकी]], [[नन्द]], [[यशोदा]], [[गोपी|गोपियों]], कंस-रक्षकों, [[यमुना नदी]], [[कालियादह|कालिया नाग]] तथा [[गोकुल]] की घटनाओं से सम्बन्धित चित्र आदि बनवाने चाहिए। प्रसूति गृह में परदों से युक्त बिस्तर तैयार करना चाहिए।


[[चित्र:Krishna-Birth-Place-Mathura-7.jpg|thumb|220px|जन्माष्टमी के अवसर पर श्रद्धालुओं की भीड़, [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
===='''संकल्प और प्राणप्रतिष्ठा'''====
*देश भर के श्रद्धालु जन्माष्टमी पर्व को बड़े भव्य तरीक़े से एक महान पर्व के रूप में मनाते हैं।  
व्रती को किसी नदी (या तालाब या कहीं भी) में [[तिल]] के साथ दोपहर में स्नान करके यह संकल्प करना चाहिए– 'मैं कृष्ण की पूजा उनके सहगामियों के साथ करूँगा।' उसे सोने या चाँदी आदि की कृष्ण प्रतिमा बनवानी चाहिए, प्रतिमा के गालों का स्पर्श करना चाहिए और मंत्रों के साथ उसकी प्राण प्रतिष्ठा करनी चाहिए। उसे मंत्र के साथ देवकी व उनके शिशु श्री कृष्ण का ध्यान करना चाहिए तथा [[वसुदेव]], [[देवकी]], [[नन्द |नन्द]], [[यशोदा]], [[बलराम|बलदेव]] एवं चण्डिका की पूजा स्नान, [[धूप]], गंध, [[नैवेद्य]] आदि के साथ एवं मंत्रों के साथ करनी चाहिए। तब उसे प्रतीकात्मक ढंक से जातकर्म, नाभि छेदन, षष्ठीपूजा एवं नामकरण संस्कार आदि करने चाहिए। तब चन्द्रोदय (या अर्धरात्रि के थोड़ी देर उपरान्त) के समय किसी वेदिका पर अर्ध्य देना चाहिए, यह अर्ध्य रोहिणी युक्त चन्द्र को भी दिया जा सकता है, अर्ध्य में शंख से जल अर्पण होता है, जिसमें पुष्प, कुश, चन्दन लेप डाले हुए रहते हैं। यह सब एक मंत्र के साथ में होता है। इसके उपरान्त व्रती को चन्द्र का नमन करना चाहिए और दण्डवत झुक जाना चाहिए तथा वासुदेव के विभिन्न नामों वाले श्लोकों का पाठ करना चाहिए और अन्त में प्रार्थनाएँ करनी चाहिए।<ref>भूमि पर गिर प्रणाम करते समय का एक मंत्र यह है- 'शरणं तु प्रपद्येहं सर्वकामार्थसिद्धये। प्रणमामि सदा देवं वासुदेवं जगत्पतिम्।।' समयमयूख (पृ0 54)। दो प्रार्थनामंत्र ये हैं- 'त्राहि माँ सर्वदु:खघ्न रोगशोकार्णवाद्धरे। दुर्गतांस्त्रायसे विष्णो ये स्मरन्ति सकृत् सकृत्। सोऽहं देवातिदुर्वृत्रस्त्राहि माँ शोकसागरात्। पुष्कराक्ष निमग्नोऽहं मायाविज्ञानसागरे ।। समयमयूख।</ref>
[[चित्र:Krishna-Janmbhumi-Mathura-2.jpg|thumb|[[श्रीकृष्ण]], [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
 
===='''रात्रि जागरण और प्रात: पूजन'''====
व्रती को रात्रि भर कृष्ण की प्रशंसा के स्रोतों, पौराणिक कथाओं, गानों एवं नृत्यों में संलग्न रहना चाहिए। दूसरे दिन प्रात: काल के कृत्यों के सम्पादन के उपरान्त, कृष्ण प्रतिमा का पूजन करना चाहिए, ब्राह्मणों को भोजन देना चाहिए, [[सोना]], [[गौ]], वस्त्रों का दान, 'मुझ पर कृष्ण प्रसन्न हों' शब्दों के साथ करना चाहिए। उसे
<poem>
यं देवं देवकी देवी वसुदेवादजीजनत्।
भौमस्य ब्रह्मणों गुप्त्यै तस्मै ब्रह्मात्मने नम:।।
सुजन्म-वासुदेवाय गोब्राह्मणहिताय च।
शान्तिरस्तु शिव चास्तु॥'
</poem> का पाठ करना चाहिए तथा कृष्ण प्रतिमा किसी ब्राह्मण को दे देनी चाहिए और [[पारण]] करने के उपरान्त व्रत को समाप्त करना चाहिए <ref>समयमयूख, पृ0 55; तिथितत्व, पृ0 43</ref>।
[[चित्र:Radha-Krishna-Janmbhumi-Mathura-1.jpg|thumb|220px|left|[[राधा]]-[[कृष्ण]], [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
विधि के अन्तरों के लिए धर्मसिन्धु<ref> धर्मसिन्धु (पृ0 68-69</ref>में आया है कि शूद्रों को वैदिक मंत्र छोड़ देने चाहिए, किन्तु वे पौराणिक मंत्रों एवं गानों का सम्पादन कर सकते हैं। 'समयमयूख' एवं 'तिथितत्व' में वैदिक मंत्रों के प्रयोग का स्पष्ट संकेत नहीं मिलता।
 
*मध्यकालिक निबन्धों में जन्माष्टमी व्रत के प्रमुख उद्देश्य के विषय में चर्चा उठायी गयी है। कुछ लोगों के मत से उपवास एवं पूजा दोनों ही प्रमुख हैं <ref>भविष्य पुराण, समयमयूख, पृ0 46; हे0, कालनिर्णय, पृ0 131 में उद्धृत</ref>।
*समयमयूख ने व्याख्या के उपरान्त निष्कर्ष निकाला है कि उपवास केवल 'अंग' है, किन्तु पूजा ही प्रमुख है। किन्तु तिथितत्त्व ने भविष्य पुराण एवं मीमांसा सिद्धान्तों के आधार पर कहा है कि उपवास ही प्रमुख है और पूजा केवल 'अंग' अर्थात् केवल सहायक तत्त्व है।<ref>हारीत वेंकटनाथकृत 'दशनिर्णयी' का एक अंश 'जयन्तीनिर्णय', जिसमें इस विषय का विशद विवेचन दिया गया है।</ref>
 
===='''पारण'''====
प्रत्येक व्रत के अन्त में [[पारण]] होता है, जो व्रत के दूसरे दिन प्रात: किया जाता है। जन्माष्टमी एवं जयन्ती के उपलक्ष्य में किये गये उपवास के उपरान्त पारण के विषय में कुछ विशिष्ट नियम हैं। [[ब्रह्मवैवर्त पुराण]], [[कालनिर्णय]]<ref>कालनिर्णय, पृ0 226</ref> में आया है कि–'जब तक अष्टमी चलती रहे या उस पर रोहिणी नक्षत्र रहे तब तक पारण नहीं करना चाहिए; जो ऐसा नहीं करता, अर्थात् जो ऐसी स्थिति में पारण कर लेता है वह अपने किये कराये पर ही पानी फेर लेता है और उपवास से प्राप्त फल को नष्ट कर लेता है। अत: तिथि तथा नक्षत्र के अन्त में ही पारण करना चाहिए।<ref>नारद पुराण (काल निर्णय, पृ0 227; तिथि तत्व, पृ0 52), अग्नि पुराण, तिथितत्त्व एवं कृत्यतत्त्व (पृ0 441) आदि।</ref>
 
===='''उद्यापन एवं पारण में अंतर'''====
पारण के उपरान्त व्रती 'ओं भूताय भूतेश्वराय भूतपतये भूतसम्भवाय गोविन्दाय नमो नम:' नामक मंत्र का पाठ करता है। कुछ परिस्थितियों में पारण रात्रि में भी होता है, विशेषत: वैष्णवों में, जो व्रत को नित्य रूप में करते हैं न कि काम्य रूप में। 'उद्यापन एवं पारण' के अर्थों में अन्तर है। [[एकादशी]] एवं जन्माष्टमी जैसे व्रत जीवन भर किये जाते हैं। उनमें जब कभी व्रत किया जाता है तो पारण होता है, किन्तु जब कोई व्रत केवल एक सीमित काल तक ही करता है और उसे समाप्त कर लेता है तो उसकी परिसमाप्ति का अन्तिम कृत्य है उद्यापन।
[[चित्र:Krishna-Birth-Place-Mathura-6.jpg|thumb|250px|left|दुग्धाभिषेक,[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
 
==कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव==
*देश भर के श्रद्धालु जन्माष्टमी पर्व को बड़े भव्य तरीक़े से एक महान् पर्व के रूप में मनाते हैं।  
*सभी कृष्ण मन्दिरों में अति शोभावान महोत्सव मनाए जाते हैं।  
*सभी कृष्ण मन्दिरों में अति शोभावान महोत्सव मनाए जाते हैं।  
*विशेष रूप से यह महोत्सव [[वृन्दावन]], [[मथुरा]] ([[उत्तर प्रदेश]]), [[द्वारका]] ([[गुजरात]]), गुरुवयूर ([[केरल]]), उडृपी ([[कर्नाटक]]) तथा [[इस्कॉन मंदिर वृन्दावन|इस्कॉन]] के मन्दिरों में होते हैं।  
*विशेष रूप से यह महोत्सव [[वृन्दावन]], [[मथुरा]] ([[उत्तर प्रदेश]]), [[द्वारका]] ([[गुजरात]]), गुरुवयूर ([[केरल]]), उडृपी ([[कर्नाटक]]) तथा [[इस्कॉन मंदिर वृन्दावन|इस्कॉन]] के मन्दिरों में होते हैं।  
*श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव सम्पूर्ण मण्डल में, घर–घर में, मन्दिर–मन्दिर में मनाया जाता है।  
*श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव सम्पूर्ण [[ब्रजमण्डल]] में, घर–घर में, मन्दिर–मन्दिर में मनाया जाता है। अधिकतर लोग [[व्रत]] रखते हैं और रात को बारह बजे ही '[[पंचामृत]] या फलाहार' ग्रहण करते हैं।  
*अधिकतर लोग व्रत रखते हैं और रात को बारह बजे ही 'पंचामृत या फलाहार' ग्रहण करते हैं।  
*मथुरा के जन्मस्थान में विशेष आयोजन होता है। सवारी निकाली जाती है। दूसरे दिन नन्दोत्सव मन्दिरों में दधिकाँदों होता है।  
*मथुरा के जन्मस्थान में विशेष आयोजन होता है। सवारी निकाली जाती है। दूसरे दिन नन्दोत्सव में मन्दिरों में दधिकाँदों होता है।  
*फल, मिष्ठान, वस्त्र, बर्तन, खिलौने और रुपये लुटाए जाते हैं। जिन्हें प्रायः सभी श्रद्धालु लूटकर धन्य होते हैं।  
*फल, मिष्ठान, वस्त्र, बर्तन, खिलौने और रुपये लुटाए जाते हैं। जिन्हें प्रायः सभी श्रद्धालु लूटकर धन्य होते हैं।  
*[[गोकुल]], [[नन्दगाँव]], [[वृन्दावन]] आदि में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बड़ी धूम–धाम होती है।
*[[गोकुल]], [[नन्दगाँव]], [[वृन्दावन]] आदि में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बड़ी धूम–धाम होती है।
[[चित्र:Krishna-birth.jpg|कंस कारागार, [[मथुरा]] में कृष्ण का जन्म|thumb|220px]]
===='''छबीले का छप्पन भोग'''====
श्रीकृष्ण आजीवन सुख तथा विलास में रहे, इसलिए जन्माष्टमी को इतने शानदार ढंग से मनाया जाता है। इस दिन अनेक प्रकार के मिष्ठान बनाए जाते हैं। जैसे लड्डू, चकली, पायसम ([[खीर]]) इत्यादि। इसके अतिरिक्त [[दूध]] से बने पकवान, विशेष रूप से मक्खन (जो श्रीकृष्ण के बाल्यकाल का सबसे प्रिय भोजन था), श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है। तरह–तरह के फल भी अर्पित किए जाते हैं। परन्तु लगभग सभी लोग लड्डू या खीर बनाना व श्रीकृष्ण को अर्पित करना श्रेष्ठ समझते हैं। विभिन्न प्रकार के पकवानों का भोजन तैयार किया जाता है तथा उसे श्रीकृष्ण को समर्पित किया जाता है।


==छबीले का छप्पन भोग==
===='''श्रीकृष्ण के विग्रह की भव्य सज्जा'''====
श्रीकृष्ण आजीवन सुख तथा विलास में रहे, इसलिए जन्माष्टमी को इतने शानदार ढंग से मनाया जाता है। इस दिन अनेक प्रकार के मिष्ठान बनाए जाते हैं। जैसे लड्डू, चकली, पायसम (खीर) इत्यादि। इसके अतिरिक्त दूध से बने पकवान, विशेष रूप से मक्खन (जो श्रीकृष्ण के बाल्यकाल का सबसे प्रिय भोजन था), श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है। तरह–तरह के फल भी अर्पित किए जाते हैं। परन्तु लगभग सभी लोग लड्डू या खीर बनाना व श्रीकृष्ण को अर्पित करना श्रेष्ठ समझते हैं। विभिन्न प्रकार के पकवानों का भोजन तैयार किया जाता है तथा उसे श्रीकृष्ण को समर्पित किया जाता है।
[[चित्र:Krishna-Birth-Place-Janamashthmi-Mathura-1.jpg|thumb|left|250px|[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
==प्रभु श्रीकृष्ण के विग्रह की भव्य सज्जा==
[[चित्र:Krishna-Janmbhumi-Mathura-4.jpg|thumb|आकर्षक वस्त्रों से सजे [[श्रीकृष्ण]]]]
पूजा कक्ष में जहाँ श्रीकृष्ण का विग्रह विराजमान होता है, वहाँ पर आकर्षक रंगों की रंगोली चित्रित की जाती है। इस रंगोली को 'धान के भूसे' से बनाया जाता है। घर की चौखट से पूजाकक्ष तक छोटे–छोटे पाँवों के चित्र इसी सामग्री से बनाए जाते हैं। ये प्रतीकात्मक चिह्न भगवान श्रीकृष्ण के आने का संकेत देते हैं। मिट्टी के दीप जलाकर उन्हें घर के सामने रखा जाता है। बाल श्रीकृष्ण को एक झूले में भी रखा जाता है। पूजा का समग्र स्थान पुष्पों से सजाया जाता है।  
पूजा कक्ष में जहाँ श्रीकृष्ण का विग्रह विराजमान होता है, वहाँ पर आकर्षक रंगों की रंगोली चित्रित की जाती है। इस रंगोली को 'धान के भूसे' से बनाया जाता है। घर की चौखट से पूजाकक्ष तक छोटे–छोटे पाँवों के चित्र इसी सामग्री से बनाए जाते हैं। ये प्रतीकात्मक चिह्न भगवान श्रीकृष्ण के आने का संकेत देते हैं। मिट्टी के दीप जलाकर उन्हें घर के सामने रखा जाता है। बाल श्रीकृष्ण को एक झूले में भी रखा जाता है। पूजा का समग्र स्थान पुष्पों से सजाया जाता है।  
==मध्यरात्रि को पूजा–अनुष्ठान==
===='''मध्यरात्रि को पूजा–अनुष्ठान'''====
जन्माष्टमी के अवसर पर मन्दिरों को अति सुन्दर ढंग से सजाया जाता है तथा मध्यरात्रि को प्रार्थना की जाती है। [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] की मूर्ति बनाकर उसे एक पालने में रखा जाता है तथा उसे धीरे–धीरे से हिलाया जाता है। लोग सारी रात भजन गाते हैं तथा आरती की जाती है। आरती तथा बालकृष्ण को भोजन अर्पित करने के बाद सम्पूर्ण दिन के उपवास का समापन किया जाता है।
जन्माष्टमी के अवसर पर मन्दिरों को अति सुन्दर ढंग से सजाया जाता है तथा मध्यरात्रि को प्रार्थना की जाती है। [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] की मूर्ति बनाकर उसे एक पालने में रखा जाता है तथा उसे धीरे–धीरे से हिलाया जाता है। लोग सारी रात भजन गाते हैं तथा आरती की जाती है। [[आरती]] तथा बालकृष्ण को भोजन अर्पित करने के बाद सम्पूर्ण दिन के उपवास का समापन किया जाता है।
==ब्रजभूमि में जन्माष्टमी महोत्सव==  
===='''ब्रजभूमि में जन्माष्टमी महोत्सव'''====
[[चित्र:Krishna-Birth-Place-Janamashthmi-Mathura-2.jpg|thumb|250px|[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
*[[ब्रज|ब्रजभूमि]] महोत्सव अनूठा व आश्चर्यजनक होता है।  
*[[ब्रज|ब्रजभूमि]] महोत्सव अनूठा व आश्चर्यजनक होता है।  
*सबसे पवित्रतम स्थान तो [[मथुरा]] को ही माना जाता है, और मथुरा में भी एक सुन्दर मन्दिर को जिसमें ऐसा विश्वास है कि यही वह स्थान है, जहाँ पर श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।  
*सबसे पवित्रतम स्थान तो [[मथुरा]] को ही माना जाता है, और मथुरा में भी एक सुन्दर मन्दिर को जिसमें ऐसा विश्वास है कि यही वह स्थान है, जहाँ पर श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।  
*ऐसा अनुमान है कि सात लाख लोगों से भी अधिक श्रद्धालु मथुरा व आस–पास के इलाक़ों से इस स्थान पर पूजा–अर्चना के लिए आते हैं।  
*ऐसा अनुमान है कि सात लाख लोगों से भी अधिक श्रद्धालु मथुरा व आस–पास के इलाक़ों से इस स्थान पर पूजा–अर्चना के लिए आते हैं।  
==श्रीकृष्ण जन्मभूमि मन्दिर==
==कृष्ण जन्मभूमि मन्दिर==
{{main|कृष्ण जन्मभूमि}}
{{main|कृष्ण जन्मभूमि}}
[[चित्र:Vasudev-Krishna.jpg|thumb|बाल [[कृष्ण]] को [[यमुना]] पार ले जाते [[वसुदेव]]<br />Vasudev Carring Krishna away from Yamuna]]
*यह मन्दिर भक्तों का मुख्य आकर्षण केन्द्र है।  
*यह मन्दिर भक्तों का मुख्य आकर्षण केन्द्र है।  
*सैकड़ों भक्तगण ओजस्वी प्रवचनों को क्लोज़ सर्किट व टी. वी. की सहायता से मन्दिर के प्रत्येक कोने से देख व सुन सकते हैं।  
*सैकड़ों भक्तगण ओजस्वी प्रवचनों को क्लोज़ सर्किट व टी. वी. की सहायता से मन्दिर के प्रत्येक कोने से देख व सुन सकते हैं।  
पंक्ति 53: पंक्ति 133:
*अर्धरात्रि होती है, सभी श्रद्धालु उच्च स्वर में बोलते हैं - श्रीकृष्ण भगवान की जय।  
*अर्धरात्रि होती है, सभी श्रद्धालु उच्च स्वर में बोलते हैं - श्रीकृष्ण भगवान की जय।  
*छोटी सी मूर्ति श्वेत वस्त्र से ढंककर ऊँचे स्थान पर रख दी जाती है, ताकि सभी भक्तगण दर्शन कर सकें।
*छोटी सी मूर्ति श्वेत वस्त्र से ढंककर ऊँचे स्थान पर रख दी जाती है, ताकि सभी भक्तगण दर्शन कर सकें।
 
[[चित्र:Krishna-Birth-Place-Janamashthmi-Mathura-3.jpg|left|thumb|250px|[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
==दही-हांडी समारोह==
===='''दही-हांडी समारोह'''====
इसमें एक मिट्टी के बर्तन में दही, मक्खन, शहद, फल इत्यादि रख दिए जाते हैं। इस बर्तन को धरती से 30 – 40 फुट ऊपर टाँग दिया जाता है। युवा लड़के–लड़कियाँ इस पुरस्कार को पाने के लिए समारोह में हिस्सा लेते हैं। ऐसा करने के लिए युवा पुरुष एक–दूसरे के कन्धे पर चढ़कर पिरामिड सा बना लेते हैं। जिससे एक व्यक्ति आसानी से उस बर्तन को तोड़कर उसमें रखी सामग्री को प्राप्त कर लेता है। प्रायः रुपयों की लड़ी रस्से से बाँधी जाती है। इसी रस्से से वह बर्तन भी बाँधा जाता है। इस धनराशि को उन सभी सहयोगियों में बाँट दिया जाता है, जो उस मानव पिरामिड में भाग लेते हैं।  
इसमें एक [[मिट्टी]] के बर्तन में [[दही]], मक्खन, [[शहद]], [[फल]] इत्यादि रख दिए जाते हैं। इस बर्तन को धरती से 30 – 40 फुट ऊपर टाँग दिया जाता है। युवा लड़के–लड़कियाँ इस पुरस्कार को पाने के लिए समारोह में हिस्सा लेते हैं। ऐसा करने के लिए युवा पुरुष एक–दूसरे के कन्धे पर चढ़कर पिरामिड सा बना लेते हैं। जिससे एक व्यक्ति आसानी से उस बर्तन को तोड़कर उसमें रखी सामग्री को प्राप्त कर लेता है। प्रायः रुपयों की लड़ी रस्से से बाँधी जाती है। इसी रस्से से वह बर्तन भी बाँधा जाता है। इस धनराशि को उन सभी सहयोगियों में बाँट दिया जाता है, जो उस मानव पिरामिड में भाग लेते हैं।  
==कृष्णावतार==
===='''कृष्णावतार'''====
प्रत्येक भारतीय [[भागवत पुराण]] में लिखित 'श्रीकृष्णावतार की कथा' से परिचित हैं। श्रीकृष्ण की बाल्याकाल की शरारतें जैसे - माखन व दही चुराना, चरवाहों व ग्वालिनियों से उनकी नोंक–झोंक, तरह - तरह के खेल, [[इन्द्र]] के विरुद्ध उनका हठ (जिसमें वे [[गोवर्धन]] पर्वत अपनी अँगुली पर उठा लेते हैं, ताकि गोकुलवासी अति वर्षा से बच सकें), सर्वाधिक विषैले कालिया नाग से युद्ध व उसके हज़ार फनों पर नृत्य, उनकी लुभा लेने वाली [[बाँसुरी]] का स्वर, [[कंस]] द्वारा भेजे गए गुप्तचरों का विनाश - ये सभी प्रसंग भावना प्रधान व अत्यन्त रोचक हैं।
प्रत्येक भारतीय [[भागवत पुराण]] में लिखित 'श्रीकृष्णावतार की कथा' से परिचित हैं। श्रीकृष्ण की बाल्याकाल की शरारतें जैसे - माखन व दही चुराना, चरवाहों व ग्वालिनियों से उनकी नोंक–झोंक, तरह - तरह के खेल, [[इन्द्र]] के विरुद्ध उनका हठ (जिसमें वे [[गोवर्धन]] पर्वत अपनी अँगुली पर उठा लेते हैं, ताकि गोकुलवासी अति वर्षा से बच सकें), सर्वाधिक विषैले कालिया नाग से युद्ध व उसके हज़ार फनों पर नृत्य, उनकी लुभा लेने वाली [[बाँसुरी]] का स्वर, [[कंस]] द्वारा भेजे गए गुप्तचरों का विनाश - ये सभी प्रसंग भावना प्रधान व अत्यन्त रोचक हैं।
==आस्था के केंद्र==
[[चित्र:Krishna-Birth-Place-Janamashthmi-Mathura-5.jpg|thumb|250px|[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
===='''आस्था के केंद्र'''====
श्रीकृष्ण युगों-युगों से हमारी आस्था के केंद्र रहे हैं। वे कभी [[यशोदा]] मैया के लाल होते हैं तो कभी [[ब्रज]] के नटखट कान्हा और कभी [[गोपी|गोपियों]] का चैन चुराते छलिया तो कभी [[विदुर]] पत्नी का आतिथ्य स्वीकार करते हुए सामने आते हैं तो कभी [[अर्जुन]] को [[गीता]] का ज्ञान देते हुए। कृष्ण के रूप अनेक हैं और वह हर रूप में संपूर्ण हैं। अपने भक्त के लिए हँसते-हँसते [[गांधारी]] के शाप को शिरोधार्य कर लेते हैं।
श्रीकृष्ण युगों-युगों से हमारी आस्था के केंद्र रहे हैं। वे कभी [[यशोदा]] मैया के लाल होते हैं तो कभी [[ब्रज]] के नटखट कान्हा और कभी [[गोपी|गोपियों]] का चैन चुराते छलिया तो कभी [[विदुर]] पत्नी का आतिथ्य स्वीकार करते हुए सामने आते हैं तो कभी [[अर्जुन]] को [[गीता]] का ज्ञान देते हुए। कृष्ण के रूप अनेक हैं और वह हर रूप में संपूर्ण हैं। अपने भक्त के लिए हँसते-हँसते [[गांधारी]] के शाप को शिरोधार्य कर लेते हैं।
[[चित्र:Krishna-Birth-Place-Mathura-4.jpg|thumb|250px|रासलीला, [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]|left]]
==श्रीमदभगवदगीता==
==श्रीमदभगवदगीता==
{{main|गीता}}
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[[पांडव|पाण्डवों]] के रक्षक के रूप में, [[महाभारत|कुरुक्षेत्र युद्ध]] में [[अर्जुन]] के रथ के सारथी बने श्रीकृष्ण की उदारता तथा उनका दिव्यसंदेश, शाश्वत व सभी युगों के लिए उपयुक्त है। शोकग्रस्त व व्याकुल अर्जुन को श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया यह दिव्यसंदेश ही गीता में लिखा है। 'धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः' इस श्लोकांश से [[गीता|भगवद् गीता]] का प्रारंभ होता है। गीता मनुष्य के मनोविज्ञान को समझाने, समझने का आधार ग्रंथ है। हमारी संस्कृति के दो ध्रुव हैं- एक है [[राम|श्रीराम]] और दूसरे ध्रुव है [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]]। राम अनुकरणीय हैं और कृष्ण चिंतनीय। भारतीय चिंतन कहता है पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ जीवन है, वह [[विष्णु]] का अवतरण है। सभी छवियाँ महाकाल की [[महेश]] की, और जन्म लेने को आतुर सारी की सारी स्थितियाँ [[ब्रह्मा]] की हैं। ऊर्जा के उन्मेष के यही तीन ढंग हैं चाहे तो हम इस सारे विषय को पावन 'त्रिमूर्ति' भी कह सकते हैं।
[[पांडव|पाण्डवों]] के रक्षक के रूप में, [[महाभारत|कुरुक्षेत्र युद्ध]] में [[अर्जुन]] के रथ के सारथी बने श्रीकृष्ण की उदारता तथा उनका दिव्यसंदेश, शाश्वत व सभी युगों के लिए उपयुक्त है। शोकग्रस्त व व्याकुल अर्जुन को श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया यह दिव्यसंदेश ही गीता में लिखा है। 'धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः' इस श्लोकांश से [[गीता|भगवद् गीता]] का प्रारंभ होता है। गीता मनुष्य के मनोविज्ञान को समझाने, समझने का आधार ग्रंथ है। हमारी संस्कृति के दो ध्रुव हैं- एक है [[राम|श्रीराम]] और दूसरे ध्रुव है [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]]। राम अनुकरणीय हैं और कृष्ण चिंतनीय। भारतीय चिंतन कहता है पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ जीवन है, वह [[विष्णु]] का अवतरण है। सभी छवियाँ महाकाल की [[महेश]] की, और जन्म लेने को आतुर सारी की सारी स्थितियाँ [[ब्रह्मा]] की हैं। ऊर्जा के उन्मेष के यही तीन ढंग हैं चाहे तो हम इस सारे विषय को पावन 'त्रिमूर्ति' भी कह सकते हैं।
==आनंद का संगम==
[[चित्र:Radha-1.jpg|thumb|विरहिणी [[राधा]]]]
इसी परम तत्व का ज्ञान श्रीकृष्ण ने आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व [[कुरुक्षेत्र]] के मैदान में, हताश अर्जुन को दिया था। गीता श्रीकृष्ण का भावप्रवण हृदय ग्रंथ है। इस पूरे विराट में जो नीलिमा समाई है और लगातार जो स्वर ध्वनि सुनाई पड़ती है, वह श्रीकृष्ण की वंशी है। उन्हें सत्-चित् आनंद का संगम माना गया है, सत् सब तरफ भासमान है चित् मौन और आनंद अप्रकट है, जिस प्रकार दूध में मक्खन छिपा रहता है, उसी प्रकार श्रीकृष्ण की शरण में गया आदमी, आनंद से पुलकित हो जाता है। कृष्ण भी कुछ ऐसे करुण हृदय हैं कि डूबकर पुकारो तो पलभर में, कृतकृत्य कर देते हैं। श्रीकृष्ण 'रसेश्वर' भी हैं और 'योगेश्वर' भी हैं।  
===='''आनंद का संगम'''====
 
इसी परम तत्त्व का ज्ञान श्रीकृष्ण ने आज से पाँच हज़ार वर्ष पूर्व [[कुरुक्षेत्र]] के मैदान में, हताश [[अर्जुन]] को दिया था। गीता श्रीकृष्ण का भावप्रवण हृदय ग्रंथ है। इस पूरे विराट में जो नीलिमा समाई है और लगातार जो स्वर ध्वनि सुनाई पड़ती है, वह श्रीकृष्ण की वंशी है। उन्हें सत्-चित् आनंद का संगम माना गया है, सत् सब तरफ भासमान है चित् मौन और आनंद अप्रकट है, जिस प्रकार दूध में मक्खन छिपा रहता है, उसी प्रकार श्रीकृष्ण की शरण में गया आदमी, आनंद से पुलकित हो जाता है। कृष्ण भी कुछ ऐसे करुण हृदय हैं कि डूबकर पुकारो तो पलभर में, कृतकृत्य कर देते हैं। श्रीकृष्ण 'रसेश्वर' भी हैं और 'योगेश्वर' भी हैं। कृष्ण, जिसके जन्म से पूर्व ही उसके मार देने का ख़तरा है। अंधेरी रात, कारा के भीतर, एक बच्चे का जन्म, जिसे जन्म के तत्काल बाद अपनी माँ से अलग कर दिया जाता है। जन्म के छ: दिन बाद पूतना (पूतना का अर्थ है पुत्र विरोधन नारी) जिसके पयोधर ज़हरीलें हैं, उसे मारने का प्रयत्न करती है।
कृष्ण, जिसके जन्म से पूर्व ही उसके मार देने का ख़तरा है। अंधेरी रात, कारा के भीतर, एक बच्चे का जन्म, जिसे जन्म के तत्काल बाद अपनी माँ से अलग कर दिया जाता है। जन्म के छ: दिन बाद पूतना (पूतना का अर्थ है पुत्र विरोधन नारी) जिसके पयोधर जहरीलें हैं, उसे मारने का प्रयत्न करती है।
[[चित्र:Krishna-Birth-Place-Janamashthmi-Mathura-8.jpg|thumb|250px|रासलीला, [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]|left]]
 
===='''जन नायक'''====
==जन नायक==
[[मथुरा]] नगरी पर [[कंस]] का शासन था। कंस ने अपने पिता [[उग्रसेन राजा|उग्रसेन]] को सत्ता हथियाने के लोभ में, जेल में डाल दिया था। कृष्ण ने देखा मथुरावासी कंस को अपनी कमाई का अंश, दूध-दही के रूप में दे देते हैं, तब उन्होंने इसका विरोध किया। प्रजा ने कृष्ण की बात समझी और कंस को खाद्य सामग्री पहुँचाना बंद कर दिया। यह कृष्ण का जननायक का रूप है। कंस इस बाधा से भड़क उठा और मल्ल युद्ध के बहाने उसने कृष्ण को उनके भाई [[बलराम]] सहित मथुरा बुलाकर मार डालने की योजना बनाई। कृष्ण की आयु उस समय बारह वर्ष रही होगी। कृष्ण भी असाधारण थे। वे अपने भाई ([[बलराम]]) के साथ मथुरा गए और कंस का वध किया और अनुकूल परिस्थितियाँ होते हुए भी, राजसिंहासन पर स्वयं न बैठकर कारागार में क़ैद कंस के पिता उग्रसेन को राजसिंहासन पर बैठाया और फिर [[वृन्दावन]] भी छोड़ दिया।
[[मथुरा]] नगरी पर [[कंस]] का शासन था। कंस ने अपने पिता [[उग्रसेन]] को सत्ता हथियाने के लोभ में, जेल में डाल दिया था। कृष्ण ने देखा मथुरावासी कंस को अपनी कमाई का अंश, दूध-दही के रूप में दे देते हैं, तब उन्होंने इसका विरोध किया। प्रजा ने कृष्ण की बात समझी और कंस को खाद्य सामग्री पहुँचाना बंद कर दिया। यह कृष्ण का जननायक का रूप है। कंस इस बाधा से भड़क उठा और मल्ल युद्ध के बहाने उसने कृष्ण को उनके भाई [[बलराम]] सहित मथुरा बुलाकर मार डालने की योजना बनाई। कृष्ण की आयु उस समय बारह वर्ष रही होगी। कृष्ण भी असाधारण थे। वे अपने भाई के साथ (बलराम) मथुरा गए और कंस का वधकिया और अनुकूल परिस्थितियाँ होते हुए भी, राजसिंहासन पर स्वयं न बैठकर कारागार में क़ैद कंस के पिता उग्रसेन को राजसिंहासन पर बैठाया और फिर [[वृन्दावन]] भी छोड़ दिया।  
[[चित्र:Krishna-Birth-Place-Janamashthmi-Mathura-6.jpg|thumb|250px|[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
==कुरुक्षेत्र के मैदान में==
===='''कुरुक्षेत्र के मैदान में'''====
श्री कृष्ण के विराट व्यक्तित्व कुरुक्षेत्र के मैदान में प्रकट होता है। कृष्ण ने प्रयत्न किया था कि युद्ध न हो। फिर युद्ध स्वीकार किया और युद्ध से पूर्व एक और निर्णय लिया- कि मेरी सेना [[दुर्योधन]] के साथ लड़ेगी। मैं अकेला [[पांडव|पांडवों]] की ओर रहूँगा। ऐसा विरोधी निर्णय कृष्ण ही ले सकते थे। इसी से कहा जाता है कि कृष्ण अनुकरणीय नहीं, चिंतनीय हैं। उनके हर कार्य के पीछे गहरा प्रतीकार्थ है, जो सामान्य आदमी की समझ से बाहर है।
श्री कृष्ण के विराट व्यक्तित्व कुरुक्षेत्र के मैदान में प्रकट होता है। कृष्ण ने प्रयत्न किया था कि युद्ध न हो। फिर युद्ध स्वीकार किया और युद्ध से पूर्व एक और निर्णय लिया- कि मेरी सेना [[दुर्योधन]] के साथ लड़ेगी। मैं अकेला [[पांडव|पांडवों]] की ओर रहूँगा। ऐसा विरोधी निर्णय कृष्ण ही ले सकते थे। इसी से कहा जाता है कि कृष्ण अनुकरणीय नहीं, चिंतनीय हैं। उनके हर कार्य के पीछे गहरा प्रतीकार्थ है, जो सामान्य आदमी की समझ से बाहर है।
==संसार को अनुशासित करने वाले==
===='''संसार को अनुशासित करने वाले'''====
वृंदावन में कृष्ण ने जैसा नृत्य-संगीत भरा जीवन जिया, उस उत्सवपरक उल्लास भरे बचपन के ठीक विपरीत वही कृष्ण, कुरुक्षेत्र में अर्जुन से यह क्यों कर कह सकें-
[[वृंदावन]] में कृष्ण ने जैसा नृत्य-संगीत भरा जीवन जिया, उस उत्सवपरक उल्लास भरे बचपन के ठीक विपरीत वही कृष्ण, कुरुक्षेत्र में अर्जुन से यह क्यों कर कह सकें-
 
[[चित्र:Krishna-Birth-Place-Janamashthmi-Mathura-4.jpg|left|thumb|250px|[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
'कुरुकर्मेव तस्मात्त्वम्' <ref>(गीता 4/5)</ref> अर्थात कर्म करो। यहाँ वे अर्जुन से युद्ध करने को कह रहे हैं।  
'कुरुकर्मेव तस्मात्त्वम्' <ref>गीता 4/5</ref> अर्थात् कर्म करो। यहाँ वे अर्जुन से युद्ध करने को कह रहे हैं।  
==समग्रता में ही सुंदरता==
===='''समग्रता में ही सुंदरता'''====
अपने यहाँ चार पुरुषार्थ गिनाए गए हैं, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इन चारों का निर्वचन [[ईशावास्योपनिषद]] के प्रथम श्लोक में है। ईश शब्द 'ईंट' धातु से बना हुआ है। मतलब यह है कि जो सभी को अनुशासित करता है या जिसका आधिपत्य सब पर है, वही ईश्वर है। उसे न मानना स्वयं को भी झुठलाना है। जो अपने को नहीं जानता वही ईश्वर को भी नहीं मानता। 'कर्म करते हुए ही सौ वर्षों तक जीवित रहने की इच्छा रखे' ईशावास्य उपनिषद का यह मंत्र हम सब जानते हैं।  'ईशावास्यमिंद सर्वम्', इस मंत्र में तीन पुरुषार्थ के लिए तीन बातें कही गई हैं।   
अपने यहाँ चार [[पुरुषार्थ]] गिनाए गए हैं, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इन चारों का निर्वचन [[ईशावास्योपनिषद]] के प्रथम श्लोक में है। ईश शब्द 'ईंट' धातु से बना हुआ है। मतलब यह है कि जो सभी को अनुशासित करता है या जिसका आधिपत्य सब पर है, वही ईश्वर है। उसे न मानना स्वयं को भी झुठलाना है। जो अपने को नहीं जानता वही ईश्वर को भी नहीं मानता। 'कर्म करते हुए ही सौ वर्षों तक जीवित रहने की इच्छा रखे' ईशावास्य उपनिषद का यह मंत्र हम सब जानते हैं।  'ईशावास्यमिंद सर्वम्', इस मंत्र में तीन पुरुषार्थ के लिए तीन बातें कही गई हैं।   
*मोक्ष पुरुषार्थ के लिए : 'ईशावास्यमिंद सर्वम्।'
*मोक्ष पुरुषार्थ के लिए : 'ईशावास्यमिंद सर्वम्।'
*काम पुरुषार्थ के लिए : 'तेन त्यक्तेन भुंजीथा:।'
*काम पुरुषार्थ के लिए : 'तेन त्यक्तेन भुंजीथा:।'
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*और चौथे धर्म नामक पुरुषार्थ के लिए : कुर्वन्नेवीह कर्माणि
*और चौथे धर्म नामक पुरुषार्थ के लिए : कुर्वन्नेवीह कर्माणि


कृष्ण कर्म की बात कर रहे हैं और साथ ही यह भी कह रहे हैं- 'सर्वधर्मान परित्यज्य', सब धर्म अर्थात् पिता, पुत्र, वाला धर्म छोड़कर जितने शारीरिक, सांसारिक या भौतिक, दैविक राग और रोग हैं वे सारी परिधियाँ पार कर, मैं जो सभी का कर्त्ता और भर्त्ता हूँ, उसकी शरण में आ। तब तू सब पापों से मुक्त, परम स्थिति को पा लेगा।
कृष्ण कर्म की बात कर रहे हैं और साथ ही यह भी कह रहे हैं- 'सर्वधर्मान परित्यज्य', सब धर्म अर्थात् पिता, पुत्र, वाला धर्म छोड़कर जितने शारीरिक, सांसारिक या भौतिक, दैविक राग और रोग हैं वे सारी परिधियाँ पार कर, मैं जो सभी का कर्त्ता और भर्त्ता हूँ, उसकी शरण में आ। तब तू सब पापों से मुक्त, परम स्थिति को पा लेगा।


==वीथिका==
==चित्र वीथिका==
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चित्र:Krishna-Janmbhumi-Mathura-2.jpg|[[श्रीकृष्ण]], [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]] <br />Shri Krishna, Krishna's Birth Place, Mathura
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चित्र:Krishna-birth.jpg|कंस कारागार, [[मथुरा]] में कृष्ण का जन्म <br /> Birth of Krishna in Kansa Karagar, Mathura
चित्र:Krishna-Birth-Place-Janamashthmi-Mathura-9.jpg|[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]
चित्र:Krishna-Janmbhumi-Mathura-5.jpg|[[श्रीकृष्ण]], [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]] <br />Shri Krishna, Krishna's Birth Place, Mathura
चित्र:Krishna-Janamashthmi-Mathura-1.jpg|[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]
चित्र:Krishna-parents.jpg|[[कृष्ण]]-[[बलराम]], [[देवकी]]-[[वसुदेव]] से मिलते हुए, द्वारा- राजा रवि वर्मा<br />Krishna-Balram Meeting Devki-Vasudev
चित्र:Krishna-Janamashthmi-Mathura-2.jpg|कृष्ण जन्माष्टमी, [[मथुरा]]
चित्र:Krishna-Birth-Place-Mathura-2.jpg|[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]<br /> Krishna's Birth Place, Mathura
चित्र:Balakrishna.jpg|श्रीकृष्ण का बाल रूप
चित्र:Krishna-Birth-Place-Mathura-6.jpg|[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]<br /> Krishna's Birth Place, Mathura
चित्र:Krishna-parents.jpg|[[कृष्ण]]-[[बलराम]], [[देवकी]]-[[वसुदेव]] से मिलते हुए, द्वारा- [[राजा रवि वर्मा]]
चित्र:Radha-Krishna-Janmbhumi-Mathura-1.jpg|[[राधा]]-[[कृष्ण]], [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]<br />Radha-Krishna, Krishna's Birth Place, Mathura
चित्र:Krishna-Radha-1.jpg|[[राधा]]-[[कृष्ण]]
चित्र:Krishna-Janamashthmi-Mathura-2.jpg|कृष्ण जन्माष्टमी, [[मथुरा]]<br /> Krishna's Janamashthmi, Mathura
चित्र:Krishna-And-Radha-Near-The-Cowshed.jpg|गौशाला के बाहर कृष्ण और [[राधा]]
चित्र:Krishna-Janmbhumi-Mathura-4.jpg|आकर्षक वस्त्रों से सजे [[श्रीकृष्ण]]
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चित्र:Krishna-Janmbhumi.jpeg|कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]
चित्र:Krishna-Janmbhumi-2.jpeg|कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]
चित्र:Krishna-Janmbhumi-4.jpeg|कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]
चित्र:Krishna-Janmhumi-3.jpeg|कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]
चित्र:Krishna-Janmbhumi-5.jpeg|कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]
चित्र:Krishna-Janmbhumi-6.jpeg|कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==सम्बंधित लिंक==
==संबंधित लेख==
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[[Category:कृष्ण]]
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05:39, 5 सितम्बर 2023 के समय का अवतरण

कृष्ण जन्माष्टमी विषय सूची


कृष्ण जन्माष्टमी
कृष्ण जन्म के समय भगवान विष्णु
कृष्ण जन्म के समय भगवान विष्णु
अन्य नाम जन्माष्टमी
अनुयायी हिंदू, भारतीय, प्रवासी भारतीय
उद्देश्य भगवान श्रीकृष्ण इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे, इसीलिए इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं।
प्रारम्भ पौराणिक काल
तिथि भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी
उत्सव कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव सम्पूर्ण ब्रजमण्डल में, घर–घर में, मन्दिर–मन्दिर में मनाया जाता है। अधिकतर लोग व्रत रखते हैं और रात को बारह बजे ही 'पंचामृत या फलाहार' ग्रहण करते हैं। फल, मिष्ठान, वस्त्र, बर्तन, खिलौने और रुपये लुटाए जाते हैं। जिन्हें प्रायः सभी श्रद्धालु लूटकर धन्य होते हैं।
अनुष्ठान जन्माष्टमी के अवसर पर मन्दिरों को अति सुन्दर ढंग से सजाया जाता है तथा मध्यरात्रि को प्रार्थना की जाती है। श्रीकृष्ण की मूर्ति बनाकर उसे एक पालने में रखा जाता है तथा उसे धीरे–धीरे हिलाया जाता है। लोग सारी रात भजन गाते हैं और आरती करते हैं।
संबंधित लेख कृष्ण, कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा, द्वारिकाधीश, बांके बिहारी, वृन्दावन
अन्य जानकारी प्रत्येक भारतीय भागवत पुराण में लिखित 'श्रीकृष्णावतार की कथा' से परिचित हैं। श्रीकृष्ण की बाल्याकाल की शरारतें जैसे- माखन व दही चुराना, जन्माष्टमी व्रत नोंक–झोंक, तरह - तरह के खेल, इन्द्र के विरुद्ध उनका हठ (जिसमें वे गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठा लेते हैं, ताकि गोकुलवासी अति वर्षा से बच सकें), सर्वाधिक विषैले कालिया नाग से युद्ध व उसके हज़ार फनों पर नृत्य, उनकी लुभा लेने वाली बाँसुरी का स्वर, कंस द्वारा भेजे गए गुप्तचरों का विनाश, ये सभी प्रसंग भावना प्रधान व अत्यन्त रोचक हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद्गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी को भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि में कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है।

जन्मोत्सव

भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। कृष्ण जन्मभूमि पर देश–विदेश से लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और पूरे दिन व्रत रखकर नर-नारी तथा बच्चे रात्रि 12 बजे मन्दिरों में अभिषेक होने पर पंचामृत ग्रहण कर व्रत खोलते हैं। कृष्ण जन्मभूमि के अलावा द्वारकाधीश, बिहारीजी एवं अन्य सभी मन्दिरों में इसका भव्य आयोजन होता है, जिनमें भारी भीड़ होती है।

माखनचोर कृष्ण

विष्णु के आठवें अवतार

भगवान श्रीकृष्ण विष्णुजी के आठवें अवतार माने जाते हैं। यह श्रीविष्णु का सोलह कलाओं से पूर्ण भव्यतम अवतार है। श्रीराम तो राजा दशरथ के यहाँ एक राजकुमार के रूप में अवतरित हुए थे, जबकि श्रीकृष्ण का प्राकट्य आततायी कंस के कारागार में हुआ था। श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकीश्रीवसुदेव के पुत्ररूप में हुआ था। कंस ने अपनी मृत्यु के भय से बहिन देवकी और वसुदेव को कारागार में क़ैद किया हुआ था।

कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा

कृष्ण जन्म के समय घनघोर वर्षा हो रही थी। चारों तरफ़ घना अंधकार छाया हुआ था। श्रीकृष्ण का अवतरण होते ही वसुदेव–देवकी की बेड़ियाँ खुल गईं, कारागार के द्वार स्वयं ही खुल गए, पहरेदार गहरी निद्रा में सो गए। वसुदेव किसी तरह श्रीकृष्ण को उफनती यमुना के पार गोकुल में अपने मित्र नन्दगोप के घर ले गए। वहाँ पर नन्द की पत्नी यशोदा को भी एक कन्या उत्पन्न हुई थी। वसुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को ले गए। कंस ने उस कन्या को पटककर मार डालना चाहा। किन्तु वह इस कार्य में असफल ही रहा। श्रीकृष्ण का लालन–पालन यशोदा व नन्द ने किया। बाल्यकाल में ही श्रीकृष्ण ने अपने मामा के द्वारा भेजे गए अनेक राक्षसों को मार डाला और उसके सभी कुप्रयासों को विफल कर दिया। अन्त में श्रीकृष्ण ने आतातायी कंस को ही मार दिया। श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का नाम ही जन्माष्टमी है। गोकुल में यह त्योहार 'गोकुलाष्टमी' के नाम से मनाया जाता है।

जन्माष्टमी के अवसर पर श्रद्धालुओं की भीड़, कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा

भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य उत्सव

  • भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने अर्जुन को कायरता से वीरता, विषाद से प्रसाद की ओर जाने का दिव्य संदेश श्रीमदभगवदगीता के माध्यम से दिया।
  • कालिया नाग के फन पर नृत्य किया, विदुराणी का साग खाया और गोवर्धन पर्वत को उठाकर गिरिधारी कहलाये।
  • समय पड़ने पर उन्होंने दुर्योधन की जंघा पर भीम से प्रहार करवाया, शिशुपाल की गालियाँ सुनी, पर क्रोध आने पर सुदर्शन चक्र भी उठाया।
  • अर्जुन के सारथी बनकर उन्होंने पाण्डवों को महाभारत के संग्राम में जीत दिलवायी।
  • सोलह कलाओं से पूर्ण वह भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने मित्र धर्म के निर्वाह के लिए ग़रीब सुदामा के पोटली के कच्चे चावलों को खाया और बदले में उन्हें राज्य दिया।
  • उन्हीं परमदयालु प्रभु के जन्म उत्सव को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।

शास्त्रों के अनुसार

श्रावण (अमान्त) कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कृष्ण जन्माष्टमी या जन्माष्टमी व्रत एवं उत्सव प्रचलित है, जो भारत में सर्वत्र मनाया जाता है और सभी व्रतों एवं उत्सवों में श्रेष्ठ माना जाता है। कुछ पुराणों में ऐसा आया है कि यह भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इसकी व्याख्या इस प्रकार है कि 'पौराणक वचनों में मास पूर्णिमान्त है तथा इन मासों में कृष्ण पक्ष प्रथम पक्ष है।' पद्म पुराण [1] , मत्स्य पुराण [2] , अग्नि पुराण [3] में कृष्ण जन्माष्टमी के माहात्म्य का विशिष्ट उल्लेख है।

  • छान्दोग्योपनिषद [4] में आया है कि कृष्ण देवकी पुत्र ने घोर आंगिर से शिक्षाएँ ग्रहण कीं। कृष्ण नाम के एक वैदिक कवि थे, जिन्होंने अश्विनों से प्रार्थना की है [5]
  • अनुक्रमणी ने ऋग्वेद [6] को कृष्ण आंगिरस का माना है।
  • जैन परम्पराओं में कृष्ण 22वें तीर्थकर नेमिनाथ के समकालीन माने गये हैं और जैनों के प्राक्-इतिहास के 63 महापुरुषों के विवरण में लगभग एक तिहाई भाग कृष्ण के सम्बन्ध में ही है।
  • महाभारत में कृष्ण जीवन भरपूर हैं। महाभारत में वे यादव राजकुमार कहे गये हैं, वे पाण्डवों के सबसे गहरे मित्र थे, बड़े भारी योद्धा थे, राजनीतिज्ञ एवं दार्शनिक थे। कतिपय स्थानों पर वे परमात्मा माने गये हैं और स्वयं विष्णु कहे गये हैं। महाभारत शान्ति पर्व [7]; द्रोण पर्व [8]; कर्ण पर्व [9]; वन पर्व [10]; भीष्म पर्व [11]युधिष्ठिर [12], द्रौपदी[13] एवं भीष्म [14] ने कृष्ण के विषय में प्रशंसा के गान किये हैं। हरिवंश, विष्णु, वायु, भागवत एवं ब्रह्मवैवर्त पुराण में कृष्ण लीलाओं का वर्णन है जो महाभारत में नहीं पाया जाता है।
  • पाणिनि [15] से प्रकट होता है कि इनके काल में कुछ लोग 'वासुदेवक' एवं 'अर्जुनक' भी थे, जिनका अर्थ है क्रम से वासुदेव एवं अर्जुन के भक्त।
  • पतंजलि के महाभाष्य के वार्तिकों में कृष्ण सम्बन्धी व्यक्तियों एवं घटनाओं की ओर संकेत है, यथा वार्तिक संहिता [16] में कंस तथा बलि के नाम; वार्तिक संहिता [17] में 'गोविन्द'; एवं पाणिनी [18] के वार्तिक में वासुदेव एवं कृष्ण। पंतजलि में 'सत्यभामा' को 'भामा' भी कहा गया है। 'वासुदेववर्ग्य:' [19], ऋष्यन्धकवृष्णिकुरुभ्यश्च' [20] में, उग्रसेन को अंधक कहा गया है एवं वासुदेव तथा बलदेव को विष्णु कहा गया है, आदि शब्द आये हैं।
  • अधिकांश विद्वानों ने पंतजलि को ई. पू. दूसरी शताब्दी का माना है। कृष्ण कथाएँ इसके बहुत पहले की हैं। आदि पर्व [21] एवं सभा पर्व [22] में कृष्ण को वासुदेव एवं परमब्रह्म एवं विश्व का मूल कहा गया है।
कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा
  • ई. पू. दूसरी या पहली शताब्दी के घोसुण्डी अभिलेख [23] एवं इण्डियन ऐण्टीक्वेरी, [24] में कृष्ण को 'भागवत एवं सर्वेश्वर' कहा गया है। यही बात नागाघाट अभिलेखों, ई. पू. 200 ई. में भी है। बेसनगर के 'गरुणध्वज' अभिलेख में वासुदेव को 'देव-देव' कहा गया है। ये प्रमाण सिद्ध करते हैं कि ई. पू. 500 के लगभग उत्तरी एवं मध्य भारत में वासुदेव की पूजा प्रचलित थी।
  • श्री आर. जी. भण्डारकर कृत 'वैष्णविज्म, शैविज्म' [25], जहाँ पर वैष्णव सम्प्रदाय एवं इसकी प्राचीनता के विषय में विवेचन उपस्थित किया गया है। यह आश्चर्यजनक है कि कृष्ण जन्माष्टमी पर लिखे गये मध्यकालीन ग्रन्थों में भविष्य, भविष्योत्तर, स्कन्द, विष्णुधर्मोत्तर, नारदीय एवं ब्रह्म वैवर्त पुराणों से उद्धरण तो लिये हैं, किन्तु उन्होंने उस भागवत पुराण को अछूता छोड़ रखा है जो पश्चात्कालीन मध्य एवं वर्तमानकालीन वैष्णवों का 'वेद' माना जाता है। भागवत में कृष्ण जन्म का विवरण संदिग्ध एवं साधारण है। वहाँ पर ऐसा आया है कि समय काल सर्वगुणसम्पन्न एवं शोभन था, दिशाएँ स्वच्छ एवं गगन निर्मल एवं उडुगण युक्त था, वायु सुखस्पर्शी एवं गंधवाही था और जब जनार्दन ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया तो अर्धरात्रि थी तथा अन्धकार ने सबको ढक लिया था।[26]
राधा-कृष्ण
  • भविष्योत्तर पुराण [27] में कृष्ण द्वारा 'कृष्णजन्माष्टमी व्रत' के बारे में युधिष्ठिर से स्वयं कहलाया गया है–'मैं वासुदेव एवं देवकी से भाद्र कृष्ण अष्टमी को उत्पन्न हुआ था, जबकि सूर्य सिंह राशि में था, चन्द्र वृषभ राशि में था और नक्षत्र रोहिणी था'[28]। जब श्रावण के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र होता है तो वह तिथि जयन्ती कहलाती है, उस दिन उपवास करने से सभी पाप जो बचपन, युवावस्था, वृद्धावस्था एवं बहुत से पूर्वजन्मों में हुए रहते हैं, कट जाते हैं। इसका फल यह है कि यदि श्रावण कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी हो तो न यह केवल जन्माष्टमी होती है, किन्तु जब श्रावण की कृष्णाष्टमी से रोहिणी संयुक्त हो जाती है तो जयन्ती होती है।
रासलीला, कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा

जन्माष्टमी व्रत

'जन्माष्टमी व्रत' एवं 'जयन्ती व्रत' एक ही हैं या ये दो पृथक् व्रत हैं। कालनिर्णय [29] ने दोनों को पृथक् व्रत माना है, क्योंकि दो पृथक् नाम आये हैं, दोनों के निमित्त (अवसर) पृथक् हैं (प्रथम तो कृष्णपक्ष की अष्टमी है और दूसरी रोहिणी से संयुक्त कृष्णपक्ष की अष्टमी), दोनों की ही विशेषताएँ पृथक् हैं, क्योंकि जन्माष्टमी व्रत में शास्त्र में उपवास की व्यवस्था दी है और जयन्ती व्रत में उपवास, दान आदि की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त जन्माष्टमी व्रत नित्य है (क्योंकि इसके न करने से केवल पाप लगने की बात कही गयी है) और जयन्ती व्रत नित्य एवं काम्य दोनों ही है, क्योंकि उसमें इसके न करने से न केवल पाप की व्यवस्था है प्रत्युत करने से फल की प्राप्ति की बात भी कही गयी है। एक ही श्लोक में दोनों के पृथक् उल्लेख भी हैं। हेमाद्रि, मदनरत्न, निर्णयसिन्धु आदि ने दोनों को भिन्न माना है। निर्णयसिन्धु [30] ने यह भी कहा है कि इस काल में लोग जन्माष्टमी व्रत करते हैं न कि जयन्ती व्रत। किन्तु जयन्तीनिर्णय [31] का कथन है कि लोग जयन्ती मनाते हैं न कि जन्माष्टमी। सम्भवत: यह भेद उत्तर एवं दक्षिण भारत का है।
वराह पुराण एवं हरिवंश में दो विरोधी बातें हैं। प्रथम के अनुसार कृष्ण का जन्म आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वादशी को हुआ था। हरिवंश के अनुसार कृष्ण जन्म के समय अभिजित नक्षत्र था और विजय मुहूर्त था। सम्भवत: इन उक्तियों में प्राचीन परम्पराओं की छाप है। मध्यकालिक निबन्धों में जन्माष्टमी व्रत के सम्पादन की तिथि एवं काल के विषय में भी कुछ विवेचन मिलता है [32]; कृत्यतत्त्व [33]; तिथितत्व,[34]। समयमयूख [35] एवं निर्णय सिंधु [36] में इस विषय में निष्कर्ष दिये गये हैं।

बंसी बजाते हुए कृष्ण

जन्माष्टमी मनाने का समय निर्धारण

श्रीकृष्ण, कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा

सभी पुराणों एवं जन्माष्टमी सम्बन्धी ग्रन्थों से स्पष्ट होता है कि कृष्णजन्म के सम्पादन का प्रमुख समय है 'श्रावण कृष्ण पक्ष की अष्टमी की अर्धरात्रि' (यदि पूर्णिमान्त होता है तो भाद्रपद मास में किया जाता है)। यह तिथि दो प्रकार की है–

  1. बिना रोहिणी नक्षत्र की तथा
  2. रोहिणी नक्षत्र वाली।
  • निर्णयामृत [37] में 18 प्रकार हैं, जिनमें 8 शुद्धा तिथियाँ, 8 विद्धा तथा अन्य 2 हैं (जिनमें एक अर्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र वाली तथा दूसरी रोहिणी से युक्त नवमी, बुध या मंगल को)। *तिथितत्त्व [38] से संक्षिप्त निर्णय इस प्रकार हैं– 'यदि 'जयन्ती' (रोहिणीयुक्त अष्टमी) एक दिन वाली है, तो उसी दिन उपवास करना चाहिए, यदि जयन्ती न हो तो रोहिणी युक्त अष्टमी को होना चाहिए, यदि रोहिणी से युक्त दो दिन हों तो उपवास दूसरे दिन ही किया जाता है, यदि रोहिणी नक्षत्र न हो तो उपवास अर्धरात्रि में अवस्थित अष्टमी को होना चाहिए या यदि अष्टमी अर्धरात्रि में दो दिन वाली हो या यदि वह अर्धरात्रि में न हो तो उपवास दूसरे दिन किया जाना चाहिए। यदि जयन्ती बुध या मंगल को हो तो उपवास महापुण्यकारी होता है और करोड़ों व्रतों से श्रेष्ठ माना जाता है जो व्यक्ति बुध या मंगल से युक्त जयन्ती पर उपवास करता है, वह जन्म-मरण से सदा के लिए छुटकारा पा लेता है।'

कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है?

पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 6 सितंबर 2023 को दोपहर 03 बजकर 37 मिनट से हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन 7 सितंबर 2023 शाम 04 बजकर 14 मिनट पर होगा। कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा मध्य रात्रि की जाती है, इसलिए इस साल भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव 6 सितंबर 2023, बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का 5250 वां जन्मोत्सव मनाया जाएगा।[39]

पूजा मुहूर्त

6 सितंबर 2023, दिन बुधवार को रात 11 बजकर 57 मिनट से 12 बजकर 42 मिनट के बीच जन्माष्टमी की पूजा की जाएगी। कान्हा का जन्म रोहिणी नक्षत्र में मध्य रात्रि में हुआ था। 6 सितंबर को रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत सुबह 09 बजकर 20 मिनट से हो रही है। अगले दिन 7 सितंबर को सुबह 10 बजकर 25 मिनट पर इसका समापन हो जाएगा। वहीं जन्माष्टमी व्रत का पारण 7 सितंबर को सुबह 6 बजकर 2 मिनट या शाम 4 बजकर 14 मिनट के बाद किया जा सकेगा।

गृहस्थ और वैष्णव संप्रदाय के लिए जन्माष्टमी की तिथि

गृहस्थ और वैष्णव संप्रदाय के लोग अलग-अलग दिन कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं। ऐसे में 6 सितंबर 2023 को गृहस्थ जीवन वाले लोग और 7 सितंबर 2023 को वैष्णव संप्रदाय के लोग कान्हा का जन्मोत्सव मना सकते हैं।

जन्माष्टमी व्रत में प्रमुख कृत्य एवं विधियाँ

जन्माष्टमी व्रत में प्रमुख कृत्य है उपवास, कृष्ण पूजा, जागरण (रात का जागरण, स्तोत्र पाठ एवं कृष्ण जीवन सम्बन्धी कथाएँ सुनना) एवं पारण करना।

  • तिथितत्त्व [40], समयमयूख [41], कालतत्वविवेक [42], व्रतराज [43], धर्मसिन्धु [44] ने भविष्योत्तर पुराण [45] के आधार पर जन्माष्टमी व्रत विधि पर लम्बे-लम्बे विवेचन उपस्थित किये हैं।
बाल कृष्ण को यमुना पार ले जाते वसुदेव

व्रत विधि

गोवर्धन पर्वत उठाते हुए कृष्ण

व्रत के दिन प्रात: व्रती को सूर्य, सोम (चन्द्र), यम, काल, दोनों सन्ध्याओं (प्रात: एवं सायं), पाँच भूतों, दिन, क्षपा (रात्रि), पवन, दिक्पालों, भूमि, आकाश, खचरों (वायु दिशाओं के निवासियों) एवं देवों का आह्वान करना चाहिए, जिससे वे उपस्थित हों।[46] उसे अपने हाथ में जलपूर्ण ताम्र पात्र रखना चाहिए, जिसमें कुछ फल, पुष्प, अक्षत हों और मास आदि का नाम लेना चाहिए और संकल्प करना चाहिए– 'मैं कृष्णजन्माष्टमी व्रत कुछ विशिष्ट फल आदि तथा अपने पापों से छुटकारा पाने के लिए करूँगा।' तब वह वासुदेव को सम्बोधित कर चार मंत्रों का पाठ करता है, जिसके उपरान्त वह पात्र में जल डालता है। उसे देवकी के पुत्रजनन के लिए प्रसूति-गृह का निर्माण करना चाहिए, जिसमें जल से पूर्ण शुभ पात्र, आम्रदल, पुष्पमालाएँ आदि रखना चाहिए, अगरु जलाना चाहिए और शुभ वस्तुओं से अलंकरण करना चाहिए तथा षष्ठी देवी को रखना चाहिए। गृह या उसकी दीवारों के चतुर्दिक देवों एवं गन्धर्वों के चित्र बनवाने चाहिए (जिनके हाथ जुड़े हुए हों), वासुदेव (हाथ में तलवार से युक्त), देवकी, नन्द, यशोदा, गोपियों, कंस-रक्षकों, यमुना नदी, कालिया नाग तथा गोकुल की घटनाओं से सम्बन्धित चित्र आदि बनवाने चाहिए। प्रसूति गृह में परदों से युक्त बिस्तर तैयार करना चाहिए।

संकल्प और प्राणप्रतिष्ठा

व्रती को किसी नदी (या तालाब या कहीं भी) में तिल के साथ दोपहर में स्नान करके यह संकल्प करना चाहिए– 'मैं कृष्ण की पूजा उनके सहगामियों के साथ करूँगा।' उसे सोने या चाँदी आदि की कृष्ण प्रतिमा बनवानी चाहिए, प्रतिमा के गालों का स्पर्श करना चाहिए और मंत्रों के साथ उसकी प्राण प्रतिष्ठा करनी चाहिए। उसे मंत्र के साथ देवकी व उनके शिशु श्री कृष्ण का ध्यान करना चाहिए तथा वसुदेव, देवकी, नन्द, यशोदा, बलदेव एवं चण्डिका की पूजा स्नान, धूप, गंध, नैवेद्य आदि के साथ एवं मंत्रों के साथ करनी चाहिए। तब उसे प्रतीकात्मक ढंक से जातकर्म, नाभि छेदन, षष्ठीपूजा एवं नामकरण संस्कार आदि करने चाहिए। तब चन्द्रोदय (या अर्धरात्रि के थोड़ी देर उपरान्त) के समय किसी वेदिका पर अर्ध्य देना चाहिए, यह अर्ध्य रोहिणी युक्त चन्द्र को भी दिया जा सकता है, अर्ध्य में शंख से जल अर्पण होता है, जिसमें पुष्प, कुश, चन्दन लेप डाले हुए रहते हैं। यह सब एक मंत्र के साथ में होता है। इसके उपरान्त व्रती को चन्द्र का नमन करना चाहिए और दण्डवत झुक जाना चाहिए तथा वासुदेव के विभिन्न नामों वाले श्लोकों का पाठ करना चाहिए और अन्त में प्रार्थनाएँ करनी चाहिए।[47]

श्रीकृष्ण, कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा

रात्रि जागरण और प्रात: पूजन

व्रती को रात्रि भर कृष्ण की प्रशंसा के स्रोतों, पौराणिक कथाओं, गानों एवं नृत्यों में संलग्न रहना चाहिए। दूसरे दिन प्रात: काल के कृत्यों के सम्पादन के उपरान्त, कृष्ण प्रतिमा का पूजन करना चाहिए, ब्राह्मणों को भोजन देना चाहिए, सोना, गौ, वस्त्रों का दान, 'मुझ पर कृष्ण प्रसन्न हों' शब्दों के साथ करना चाहिए। उसे

यं देवं देवकी देवी वसुदेवादजीजनत्।
भौमस्य ब्रह्मणों गुप्त्यै तस्मै ब्रह्मात्मने नम:।।
सुजन्म-वासुदेवाय गोब्राह्मणहिताय च।
शान्तिरस्तु शिव चास्तु॥'

का पाठ करना चाहिए तथा कृष्ण प्रतिमा किसी ब्राह्मण को दे देनी चाहिए और पारण करने के उपरान्त व्रत को समाप्त करना चाहिए [48]

राधा-कृष्ण, कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा

विधि के अन्तरों के लिए धर्मसिन्धु[49]में आया है कि शूद्रों को वैदिक मंत्र छोड़ देने चाहिए, किन्तु वे पौराणिक मंत्रों एवं गानों का सम्पादन कर सकते हैं। 'समयमयूख' एवं 'तिथितत्व' में वैदिक मंत्रों के प्रयोग का स्पष्ट संकेत नहीं मिलता।

  • मध्यकालिक निबन्धों में जन्माष्टमी व्रत के प्रमुख उद्देश्य के विषय में चर्चा उठायी गयी है। कुछ लोगों के मत से उपवास एवं पूजा दोनों ही प्रमुख हैं [50]
  • समयमयूख ने व्याख्या के उपरान्त निष्कर्ष निकाला है कि उपवास केवल 'अंग' है, किन्तु पूजा ही प्रमुख है। किन्तु तिथितत्त्व ने भविष्य पुराण एवं मीमांसा सिद्धान्तों के आधार पर कहा है कि उपवास ही प्रमुख है और पूजा केवल 'अंग' अर्थात् केवल सहायक तत्त्व है।[51]

पारण

प्रत्येक व्रत के अन्त में पारण होता है, जो व्रत के दूसरे दिन प्रात: किया जाता है। जन्माष्टमी एवं जयन्ती के उपलक्ष्य में किये गये उपवास के उपरान्त पारण के विषय में कुछ विशिष्ट नियम हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण, कालनिर्णय[52] में आया है कि–'जब तक अष्टमी चलती रहे या उस पर रोहिणी नक्षत्र रहे तब तक पारण नहीं करना चाहिए; जो ऐसा नहीं करता, अर्थात् जो ऐसी स्थिति में पारण कर लेता है वह अपने किये कराये पर ही पानी फेर लेता है और उपवास से प्राप्त फल को नष्ट कर लेता है। अत: तिथि तथा नक्षत्र के अन्त में ही पारण करना चाहिए।[53]

उद्यापन एवं पारण में अंतर

पारण के उपरान्त व्रती 'ओं भूताय भूतेश्वराय भूतपतये भूतसम्भवाय गोविन्दाय नमो नम:' नामक मंत्र का पाठ करता है। कुछ परिस्थितियों में पारण रात्रि में भी होता है, विशेषत: वैष्णवों में, जो व्रत को नित्य रूप में करते हैं न कि काम्य रूप में। 'उद्यापन एवं पारण' के अर्थों में अन्तर है। एकादशी एवं जन्माष्टमी जैसे व्रत जीवन भर किये जाते हैं। उनमें जब कभी व्रत किया जाता है तो पारण होता है, किन्तु जब कोई व्रत केवल एक सीमित काल तक ही करता है और उसे समाप्त कर लेता है तो उसकी परिसमाप्ति का अन्तिम कृत्य है उद्यापन।

दुग्धाभिषेक,कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा

कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव

  • देश भर के श्रद्धालु जन्माष्टमी पर्व को बड़े भव्य तरीक़े से एक महान् पर्व के रूप में मनाते हैं।
  • सभी कृष्ण मन्दिरों में अति शोभावान महोत्सव मनाए जाते हैं।
  • विशेष रूप से यह महोत्सव वृन्दावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश), द्वारका (गुजरात), गुरुवयूर (केरल), उडृपी (कर्नाटक) तथा इस्कॉन के मन्दिरों में होते हैं।
  • श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव सम्पूर्ण ब्रजमण्डल में, घर–घर में, मन्दिर–मन्दिर में मनाया जाता है। अधिकतर लोग व्रत रखते हैं और रात को बारह बजे ही 'पंचामृत या फलाहार' ग्रहण करते हैं।
  • मथुरा के जन्मस्थान में विशेष आयोजन होता है। सवारी निकाली जाती है। दूसरे दिन नन्दोत्सव मन्दिरों में दधिकाँदों होता है।
  • फल, मिष्ठान, वस्त्र, बर्तन, खिलौने और रुपये लुटाए जाते हैं। जिन्हें प्रायः सभी श्रद्धालु लूटकर धन्य होते हैं।
  • गोकुल, नन्दगाँव, वृन्दावन आदि में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बड़ी धूम–धाम होती है।
कंस कारागार, मथुरा में कृष्ण का जन्म

छबीले का छप्पन भोग

श्रीकृष्ण आजीवन सुख तथा विलास में रहे, इसलिए जन्माष्टमी को इतने शानदार ढंग से मनाया जाता है। इस दिन अनेक प्रकार के मिष्ठान बनाए जाते हैं। जैसे लड्डू, चकली, पायसम (खीर) इत्यादि। इसके अतिरिक्त दूध से बने पकवान, विशेष रूप से मक्खन (जो श्रीकृष्ण के बाल्यकाल का सबसे प्रिय भोजन था), श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है। तरह–तरह के फल भी अर्पित किए जाते हैं। परन्तु लगभग सभी लोग लड्डू या खीर बनाना व श्रीकृष्ण को अर्पित करना श्रेष्ठ समझते हैं। विभिन्न प्रकार के पकवानों का भोजन तैयार किया जाता है तथा उसे श्रीकृष्ण को समर्पित किया जाता है।

श्रीकृष्ण के विग्रह की भव्य सज्जा

कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा

पूजा कक्ष में जहाँ श्रीकृष्ण का विग्रह विराजमान होता है, वहाँ पर आकर्षक रंगों की रंगोली चित्रित की जाती है। इस रंगोली को 'धान के भूसे' से बनाया जाता है। घर की चौखट से पूजाकक्ष तक छोटे–छोटे पाँवों के चित्र इसी सामग्री से बनाए जाते हैं। ये प्रतीकात्मक चिह्न भगवान श्रीकृष्ण के आने का संकेत देते हैं। मिट्टी के दीप जलाकर उन्हें घर के सामने रखा जाता है। बाल श्रीकृष्ण को एक झूले में भी रखा जाता है। पूजा का समग्र स्थान पुष्पों से सजाया जाता है।

मध्यरात्रि को पूजा–अनुष्ठान

जन्माष्टमी के अवसर पर मन्दिरों को अति सुन्दर ढंग से सजाया जाता है तथा मध्यरात्रि को प्रार्थना की जाती है। श्रीकृष्ण की मूर्ति बनाकर उसे एक पालने में रखा जाता है तथा उसे धीरे–धीरे से हिलाया जाता है। लोग सारी रात भजन गाते हैं तथा आरती की जाती है। आरती तथा बालकृष्ण को भोजन अर्पित करने के बाद सम्पूर्ण दिन के उपवास का समापन किया जाता है।

ब्रजभूमि में जन्माष्टमी महोत्सव

कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा
  • ब्रजभूमि महोत्सव अनूठा व आश्चर्यजनक होता है।
  • सबसे पवित्रतम स्थान तो मथुरा को ही माना जाता है, और मथुरा में भी एक सुन्दर मन्दिर को जिसमें ऐसा विश्वास है कि यही वह स्थान है, जहाँ पर श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
  • ऐसा अनुमान है कि सात लाख लोगों से भी अधिक श्रद्धालु मथुरा व आस–पास के इलाक़ों से इस स्थान पर पूजा–अर्चना के लिए आते हैं।

कृष्ण जन्मभूमि मन्दिर

  • यह मन्दिर भक्तों का मुख्य आकर्षण केन्द्र है।
  • सैकड़ों भक्तगण ओजस्वी प्रवचनों को क्लोज़ सर्किट व टी. वी. की सहायता से मन्दिर के प्रत्येक कोने से देख व सुन सकते हैं।
  • कई लोग तो दिन से ही मन्दिर में डेरा डाल लेते हैं, ताकि मध्यरात्रि के जन्म समारोह को देख सकें।
  • अर्धरात्रि होती है, सभी श्रद्धालु उच्च स्वर में बोलते हैं - श्रीकृष्ण भगवान की जय।
  • छोटी सी मूर्ति श्वेत वस्त्र से ढंककर ऊँचे स्थान पर रख दी जाती है, ताकि सभी भक्तगण दर्शन कर सकें।
कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा

दही-हांडी समारोह

इसमें एक मिट्टी के बर्तन में दही, मक्खन, शहद, फल इत्यादि रख दिए जाते हैं। इस बर्तन को धरती से 30 – 40 फुट ऊपर टाँग दिया जाता है। युवा लड़के–लड़कियाँ इस पुरस्कार को पाने के लिए समारोह में हिस्सा लेते हैं। ऐसा करने के लिए युवा पुरुष एक–दूसरे के कन्धे पर चढ़कर पिरामिड सा बना लेते हैं। जिससे एक व्यक्ति आसानी से उस बर्तन को तोड़कर उसमें रखी सामग्री को प्राप्त कर लेता है। प्रायः रुपयों की लड़ी रस्से से बाँधी जाती है। इसी रस्से से वह बर्तन भी बाँधा जाता है। इस धनराशि को उन सभी सहयोगियों में बाँट दिया जाता है, जो उस मानव पिरामिड में भाग लेते हैं।

कृष्णावतार

प्रत्येक भारतीय भागवत पुराण में लिखित 'श्रीकृष्णावतार की कथा' से परिचित हैं। श्रीकृष्ण की बाल्याकाल की शरारतें जैसे - माखन व दही चुराना, चरवाहों व ग्वालिनियों से उनकी नोंक–झोंक, तरह - तरह के खेल, इन्द्र के विरुद्ध उनका हठ (जिसमें वे गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठा लेते हैं, ताकि गोकुलवासी अति वर्षा से बच सकें), सर्वाधिक विषैले कालिया नाग से युद्ध व उसके हज़ार फनों पर नृत्य, उनकी लुभा लेने वाली बाँसुरी का स्वर, कंस द्वारा भेजे गए गुप्तचरों का विनाश - ये सभी प्रसंग भावना प्रधान व अत्यन्त रोचक हैं।

कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा

आस्था के केंद्र

श्रीकृष्ण युगों-युगों से हमारी आस्था के केंद्र रहे हैं। वे कभी यशोदा मैया के लाल होते हैं तो कभी ब्रज के नटखट कान्हा और कभी गोपियों का चैन चुराते छलिया तो कभी विदुर पत्नी का आतिथ्य स्वीकार करते हुए सामने आते हैं तो कभी अर्जुन को गीता का ज्ञान देते हुए। कृष्ण के रूप अनेक हैं और वह हर रूप में संपूर्ण हैं। अपने भक्त के लिए हँसते-हँसते गांधारी के शाप को शिरोधार्य कर लेते हैं।

रासलीला, कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा

श्रीमदभगवदगीता

पाण्डवों के रक्षक के रूप में, कुरुक्षेत्र युद्ध में अर्जुन के रथ के सारथी बने श्रीकृष्ण की उदारता तथा उनका दिव्यसंदेश, शाश्वत व सभी युगों के लिए उपयुक्त है। शोकग्रस्त व व्याकुल अर्जुन को श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया यह दिव्यसंदेश ही गीता में लिखा है। 'धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः' इस श्लोकांश से भगवद् गीता का प्रारंभ होता है। गीता मनुष्य के मनोविज्ञान को समझाने, समझने का आधार ग्रंथ है। हमारी संस्कृति के दो ध्रुव हैं- एक है श्रीराम और दूसरे ध्रुव है श्रीकृष्ण। राम अनुकरणीय हैं और कृष्ण चिंतनीय। भारतीय चिंतन कहता है पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ जीवन है, वह विष्णु का अवतरण है। सभी छवियाँ महाकाल की महेश की, और जन्म लेने को आतुर सारी की सारी स्थितियाँ ब्रह्मा की हैं। ऊर्जा के उन्मेष के यही तीन ढंग हैं चाहे तो हम इस सारे विषय को पावन 'त्रिमूर्ति' भी कह सकते हैं।

विरहिणी राधा

आनंद का संगम

इसी परम तत्त्व का ज्ञान श्रीकृष्ण ने आज से पाँच हज़ार वर्ष पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में, हताश अर्जुन को दिया था। गीता श्रीकृष्ण का भावप्रवण हृदय ग्रंथ है। इस पूरे विराट में जो नीलिमा समाई है और लगातार जो स्वर ध्वनि सुनाई पड़ती है, वह श्रीकृष्ण की वंशी है। उन्हें सत्-चित् आनंद का संगम माना गया है, सत् सब तरफ भासमान है चित् मौन और आनंद अप्रकट है, जिस प्रकार दूध में मक्खन छिपा रहता है, उसी प्रकार श्रीकृष्ण की शरण में गया आदमी, आनंद से पुलकित हो जाता है। कृष्ण भी कुछ ऐसे करुण हृदय हैं कि डूबकर पुकारो तो पलभर में, कृतकृत्य कर देते हैं। श्रीकृष्ण 'रसेश्वर' भी हैं और 'योगेश्वर' भी हैं। कृष्ण, जिसके जन्म से पूर्व ही उसके मार देने का ख़तरा है। अंधेरी रात, कारा के भीतर, एक बच्चे का जन्म, जिसे जन्म के तत्काल बाद अपनी माँ से अलग कर दिया जाता है। जन्म के छ: दिन बाद पूतना (पूतना का अर्थ है पुत्र विरोधन नारी) जिसके पयोधर ज़हरीलें हैं, उसे मारने का प्रयत्न करती है।

रासलीला, कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा

जन नायक

मथुरा नगरी पर कंस का शासन था। कंस ने अपने पिता उग्रसेन को सत्ता हथियाने के लोभ में, जेल में डाल दिया था। कृष्ण ने देखा मथुरावासी कंस को अपनी कमाई का अंश, दूध-दही के रूप में दे देते हैं, तब उन्होंने इसका विरोध किया। प्रजा ने कृष्ण की बात समझी और कंस को खाद्य सामग्री पहुँचाना बंद कर दिया। यह कृष्ण का जननायक का रूप है। कंस इस बाधा से भड़क उठा और मल्ल युद्ध के बहाने उसने कृष्ण को उनके भाई बलराम सहित मथुरा बुलाकर मार डालने की योजना बनाई। कृष्ण की आयु उस समय बारह वर्ष रही होगी। कृष्ण भी असाधारण थे। वे अपने भाई (बलराम) के साथ मथुरा गए और कंस का वध किया और अनुकूल परिस्थितियाँ होते हुए भी, राजसिंहासन पर स्वयं न बैठकर कारागार में क़ैद कंस के पिता उग्रसेन को राजसिंहासन पर बैठाया और फिर वृन्दावन भी छोड़ दिया।

कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा

कुरुक्षेत्र के मैदान में

श्री कृष्ण के विराट व्यक्तित्व कुरुक्षेत्र के मैदान में प्रकट होता है। कृष्ण ने प्रयत्न किया था कि युद्ध न हो। फिर युद्ध स्वीकार किया और युद्ध से पूर्व एक और निर्णय लिया- कि मेरी सेना दुर्योधन के साथ लड़ेगी। मैं अकेला पांडवों की ओर रहूँगा। ऐसा विरोधी निर्णय कृष्ण ही ले सकते थे। इसी से कहा जाता है कि कृष्ण अनुकरणीय नहीं, चिंतनीय हैं। उनके हर कार्य के पीछे गहरा प्रतीकार्थ है, जो सामान्य आदमी की समझ से बाहर है।

संसार को अनुशासित करने वाले

वृंदावन में कृष्ण ने जैसा नृत्य-संगीत भरा जीवन जिया, उस उत्सवपरक उल्लास भरे बचपन के ठीक विपरीत वही कृष्ण, कुरुक्षेत्र में अर्जुन से यह क्यों कर कह सकें-

कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा

'कुरुकर्मेव तस्मात्त्वम्' [54] अर्थात् कर्म करो। यहाँ वे अर्जुन से युद्ध करने को कह रहे हैं।

समग्रता में ही सुंदरता

अपने यहाँ चार पुरुषार्थ गिनाए गए हैं, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इन चारों का निर्वचन ईशावास्योपनिषद के प्रथम श्लोक में है। ईश शब्द 'ईंट' धातु से बना हुआ है। मतलब यह है कि जो सभी को अनुशासित करता है या जिसका आधिपत्य सब पर है, वही ईश्वर है। उसे न मानना स्वयं को भी झुठलाना है। जो अपने को नहीं जानता वही ईश्वर को भी नहीं मानता। 'कर्म करते हुए ही सौ वर्षों तक जीवित रहने की इच्छा रखे' ईशावास्य उपनिषद का यह मंत्र हम सब जानते हैं। 'ईशावास्यमिंद सर्वम्', इस मंत्र में तीन पुरुषार्थ के लिए तीन बातें कही गई हैं।

  • मोक्ष पुरुषार्थ के लिए : 'ईशावास्यमिंद सर्वम्।'
  • काम पुरुषार्थ के लिए : 'तेन त्यक्तेन भुंजीथा:।'
  • अर्थ पुरुषार्थ के लिए : 'मागृध: कस्यस्विद् धनम्॥'
  • और चौथे धर्म नामक पुरुषार्थ के लिए : कुर्वन्नेवीह कर्माणि

कृष्ण कर्म की बात कर रहे हैं और साथ ही यह भी कह रहे हैं- 'सर्वधर्मान परित्यज्य', सब धर्म अर्थात् पिता, पुत्र, वाला धर्म छोड़कर जितने शारीरिक, सांसारिक या भौतिक, दैविक राग और रोग हैं वे सारी परिधियाँ पार कर, मैं जो सभी का कर्त्ता और भर्त्ता हूँ, उसकी शरण में आ। तब तू सब पापों से मुक्त, परम स्थिति को पा लेगा।

चित्र वीथिका

वर्ष 2016

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पद्म पुराण (3|13
  2. मत्स्य पुराण(56
  3. अग्नि पुराण(183
  4. छान्दोग्योपनिषद(3|17|6
  5. ऋग्वेद 8|85|3
  6. ऋग्वेद 8|86-87
  7. महाभारत शान्ति पर्व, 47|28
  8. महाभारत द्रोण पर्व, 146|67-68
  9. महाभारत कर्ण पर्व, 87|74
  10. महाभारत वन पर्व, 49|20
  11. महाभारत भीष्म पर्व, 21|13-15
  12. महाभारत द्रोण पर्व, 149|16-33
  13. महाभारत वन पर्व, 263|8-16
  14. महाभारत अनुशासन पर्व, 167|37-45
  15. पाणिनी(4|3|98
  16. वार्तिक संहिता 6 (पाणिनि 3|1|26
  17. वर्तिका सं0 2 (पाणिनि 3|1|138
  18. पाणिनी 3|2|21
  19. वार्तिक 11, पा0 4|2|104
  20. पा0 4|1|114
  21. महाभारत, आदि पर्व (1|256
  22. महाभारत, सभा पर्व (33|10-12
  23. एपि. इण्डि., 16, पृ. 25-27; 31, पृ. 198
  24. इण्डियन ऐण्टीक्वेरी 61 पृ. 203
  25. श्री आर. जी. भण्डारकर कृत 'वैष्णविज्म, शैविज्म' आदि (पृ0 1–45
  26. अथ सर्वगुणोपेत: काल: परमशोभन:। यर्ह्येवाजनजन्मर्क्ष शान्तर्क्षग्रहतारकम्।। दिश: प्रसेदुर्गगनं विर्मललोडुगणोदयम्।....ववौ वायु:सुखस्पर्श: पुण्यगन्धवह: शुचि:।...निशीथे तम उदभते जायमाने जनार्दने। देवक्यां देवरूपिण्याँ विष्णु: सर्वगृहाश्य:।। भागवत पुराण 10|3|1-2, 4, 8। यहाँ 'अजनजन्मक्षँ' शब्द का प्रयोग का अर्थ, लगता है, जिसका जन्म नक्षत्र वह 'रोहिणी' है जिसका प्रजापति (अजन) देवता है। दूसरे एवं चौथे श्लोकों में रघुवंश (3|14) के पद 'दिश: प्रसेदुर्मरुतो ववु: सुखा: की ध्वनि फूट रही है।
  27. भविष्योत्तर पुराण(44|1-69
  28. भविष्योत्तर पुराण(74-75 श्लोक
  29. कालनिर्णय (पृ0 209
  30. निर्णयसिन्धु(पृ0 126
  31. जयन्तीनिर्णय(पृ0 25
  32. काल निर्णय, पृ0 215-224
  33. कृत्यतत्वपृ0 438-444
  34. तिथितत्त्व पृ0 47-51
  35. समयमयूख(50-51
  36. निर्णय सिंधु(पृ0 128-130
  37. निर्णयामृत(पृष्ठ 56-58
  38. तिथितत्व(पृष्ठ (54
  39. 6 या 7 सितंबर, कब है कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व? जानें सही तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त (हिंदी) amarujala.com। अभिगमन तिथि: 05 सितंबर, 2023।
  40. तिथितत्व(पृ0 42-47
  41. समयमयूख(पृ0 52-57
  42. कालतत्वविवेक(पृ0 52-56
  43. व्रतराज(पृ0 274-277
  44. धर्मसिन्धु(पृ0 68-69
  45. भविष्योत्तर पुराण(अभ्यास 55
  46. सूर्य: सोमो यम: सन्ध्ये भूतान्यह: क्षपा। पवनो दिक्पतिर्भूमिराकाशं खचरामरा:। ब्राह्मं शासनमास्थाय कल्पध्वमिह सन्निधिम्।। तिथितत्त्व (पृ 45) एवं समयमयूख (पृ0 52)।
  47. भूमि पर गिर प्रणाम करते समय का एक मंत्र यह है- 'शरणं तु प्रपद्येहं सर्वकामार्थसिद्धये। प्रणमामि सदा देवं वासुदेवं जगत्पतिम्।।' समयमयूख (पृ0 54)। दो प्रार्थनामंत्र ये हैं- 'त्राहि माँ सर्वदु:खघ्न रोगशोकार्णवाद्धरे। दुर्गतांस्त्रायसे विष्णो ये स्मरन्ति सकृत् सकृत्। सोऽहं देवातिदुर्वृत्रस्त्राहि माँ शोकसागरात्। पुष्कराक्ष निमग्नोऽहं मायाविज्ञानसागरे ।। समयमयूख।
  48. समयमयूख, पृ0 55; तिथितत्व, पृ0 43
  49. धर्मसिन्धु (पृ0 68-69
  50. भविष्य पुराण, समयमयूख, पृ0 46; हे0, कालनिर्णय, पृ0 131 में उद्धृत
  51. हारीत वेंकटनाथकृत 'दशनिर्णयी' का एक अंश 'जयन्तीनिर्णय', जिसमें इस विषय का विशद विवेचन दिया गया है।
  52. कालनिर्णय, पृ0 226
  53. नारद पुराण (काल निर्णय, पृ0 227; तिथि तत्व, पृ0 52), अग्नि पुराण, तिथितत्त्व एवं कृत्यतत्त्व (पृ0 441) आदि।
  54. गीता 4/5

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