"स्पर्श -वैशेषिक दर्शन": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
No edit summary |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) छो (श्रेणी:नया पन्ना (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
[[Category:वैशेषिक दर्शन]] | [[Category:वैशेषिक दर्शन]] | ||
[[Category:दर्शन कोश]] | [[Category:दर्शन कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
13:10, 16 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छ: पदार्थों का निर्देश किया और प्रशस्तपाद प्रभृति भाष्यकारों ने प्राय: कणाद के मन्तव्य का अनुसरण करते हुए पदार्थों का विश्लेषण किया।
स्पर्श का स्वरूप
जिस गुण का केवल त्वचा से प्रत्यक्ष होता है, वह स्पर्श कहलाता है। स्पर्श तीन प्रकार का होता है और चार द्रव्यों में रहता हैं- शीत (जल में), उष्ण (तेज़ में) तथा अनुष्णाशीत (पृथ्वी और वायु में)। यह पृथ्वी, जल, तेज़ और वायु में रहता है। नव्य नैयायिक कठिन और सुकुमार को भी स्पर्श का भेद मानते हैं, जबकि प्राचीन नैयायिक उनको संयोग के अन्तर्गत समाविष्ट करते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख