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==राजनीतिक, सियासी (Political)== | ==राजनीतिक, सियासी (Political)== | ||
* चुनाव जनता को राजनीतिक शिक्षा देने का विश्वविधालय | * चुनाव जनता को राजनीतिक शिक्षा देने का विश्वविधालय है। ~ जवाहरलाल नेहरू | ||
==गरीबी, निर्धनता, तंगी (Poverty)== | ==गरीबी, निर्धनता, तंगी (Poverty)== | ||
* कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता | * कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है। ~ चाणक्य | ||
* गरीबों के बहुत से बच्चे होते हैं , अमीरों के | * गरीबों के बहुत से बच्चे होते हैं, अमीरों के सम्बन्धी। ~ एनॉन | ||
* गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र | * गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है। ~ महात्मा गाँधी | ||
* गरीब वह है जिसकी अभिलाषायें बढी हुई | * गरीब वह है जिसकी अभिलाषायें बढी हुई हैं। ~ डेनियल | ||
* निर्धनता से मनुष्य मे लज्जा आती | * निर्धनता से मनुष्य मे लज्जा आती है। लज्जा से आदमी तेजहीन हो जाता है। निस्तेज मनुष्य का समाज तिरस्कार करता है। तिरष्कृत मनुष्य में वैराग्य भाव उत्पन्न हो जाते हैं और तब मनुष्य को शोक होने लगता है। जब मनुष्य शोकातुर होता है तो उसकी बुद्धि क्षीण होने लगती है और बुद्धिहीन मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है। ~ वासवदत्ता, मृच्छकटिकम में | ||
==प्रशंसा, बड़ाई (Praise)== | ==प्रशंसा, बड़ाई (Praise)== | ||
* आत्म-प्रशंसा ओछेपन का चिन्ह | * आत्म-प्रशंसा ओछेपन का चिन्ह है। ~ वैस्कल | ||
* जिन्हें कहीं से प्रशंसा नहीं मिलती, वे आत्म-प्रशंसा करते | * जिन्हें कहीं से प्रशंसा नहीं मिलती, वे आत्म-प्रशंसा करते हैं। ~ अज्ञात | ||
* अपनी प्रशंसा के गीत गाना स्वयं को हीन साबित करना | * अपनी प्रशंसा के गीत गाना स्वयं को हीन साबित करना है। | ||
* सच्ची बड़ाई उसी की है, जिसकी शत्रु भी प्रशंसा | * सच्ची बड़ाई उसी की है, जिसकी शत्रु भी प्रशंसा करे। ~ अज्ञात | ||
* जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं | * जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है। ~ महात्मा गांधी | ||
==समस्या, मसला (Problem)== | ==समस्या, मसला (Problem)== | ||
* विपत्ति मनुष्य को विचित्र साथियों से मिलाती | * विपत्ति मनुष्य को विचित्र साथियों से मिलाती है। | ||
* मैं अति प्रतिभाशाली व्यक्ति नहीं हूं, लेकिन में निचित तौर पर अधिक जिज्ञासु हूं और किसी भी समस्या को सुलझाने में अधिक देर तक लगा रहता | * मैं अति प्रतिभाशाली व्यक्ति नहीं हूं, लेकिन में निचित तौर पर अधिक जिज्ञासु हूं और किसी भी समस्या को सुलझाने में अधिक देर तक लगा रहता हूं। ~ अल्बर्ट आइंस्टीन | ||
* आपतियां हमें आत्म-ज्ञान कराती हैं,ये हमें दिखा देती हैं कि हम किस मिट्टी के बने | * आपतियां हमें आत्म-ज्ञान कराती हैं, ये हमें दिखा देती हैं कि हम किस मिट्टी के बने हैं। ~ जवाहरलाल नेहरु | ||
* आपदा ही एक ऐसी स्थिति है,जो हमारे जीवन कि गहराइयों में अन्तर्दृष्टि पैदा करती | * आपदा ही एक ऐसी स्थिति है, जो हमारे जीवन कि गहराइयों में अन्तर्दृष्टि पैदा करती है। ~ विवेकानन्द | ||
* हमारी अधिकतर बाधाएं पिघल जाएंगी, अगर उनके सामने दुबकने की बजाय हम उनसे निडरतापूर्वक निपटने का मानस | * हमारी अधिकतर बाधाएं पिघल जाएंगी, अगर उनके सामने दुबकने की बजाय हम उनसे निडरतापूर्वक निपटने का मानस बनाएं। ~ ओरिसन स्वेट मार्डन | ||
* हम अपनी समस्याओं को उसी सोच के साथ नहीं सुलझा सकतें, जिस सोच के साथ हमने उनका निर्माण किया | * हम अपनी समस्याओं को उसी सोच के साथ नहीं सुलझा सकतें, जिस सोच के साथ हमने उनका निर्माण किया था। ~ अल्बर्ट आइंस्टीन | ||
* इस दुनिया की असली समस्या यह है कि मूर्ख और अड़ियल लोग तो अपने बारे में हमेशा पक्के होते हैं ( कि वे सही हैं ) किंतु बुद्धिमान लोग हमेशा संदेह में रहते हैं ( कि मैं गलत तो नहीं हूं ) | * इस दुनिया की असली समस्या यह है कि मूर्ख और अड़ियल लोग तो अपने बारे में हमेशा पक्के होते हैं (कि वे सही हैं) किंतु बुद्धिमान लोग हमेशा संदेह में रहते हैं (कि मैं गलत तो नहीं हूं)। | ||
* विकट परिस्थितियां ही महापुरुषों का विधालय | * विकट परिस्थितियां ही महापुरुषों का विधालय है। ~ अरस्तू | ||
* आनंद विनोद के सामने कठिनाईयां पिघल जाती | * आनंद विनोद के सामने कठिनाईयां पिघल जाती है। ~ स्वेट मार्डेन | ||
* आपात स्थिति में, मन को डांवाडोल नहीं होने देना | * आपात स्थिति में, मन को डांवाडोल नहीं होने देना चाहिए। ~ महावीर स्वामी | ||
* मुसीबतों से दुखी न् हो, क्योंकि दुखी होना मूर्खों का काम | * मुसीबतों से दुखी न् हो, क्योंकि दुखी होना मूर्खों का काम है। ~ हजरत अली | ||
* विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं | * विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला। ~ मुंशी प्रेमचंद | ||
* जब सपने और इच्छाएं पर्याप्त बड़े होते हैं, परिस्थितियों से कोई फर्क नहीं पड़ता | * जब सपने और इच्छाएं पर्याप्त बड़े होते हैं, परिस्थितियों से कोई फर्क नहीं पड़ता है। | ||
* बेहतर विकल्प के लिए समस्याओं से मुकाबला करना | * बेहतर विकल्प के लिए समस्याओं से मुकाबला करना चाहिए। तभी आप में ‘स्किल’ आते हैं। परेशानियों से डरकर किसी दूसरे का सहारा लेने कि आदत न पाले तो बेहतर है। | ||
==वादा, वचन, प्रतिज्ञा (Promise)== | ==वादा, वचन, प्रतिज्ञा (Promise)== | ||
* शाशक के पास वचन तोड़ने के हमेशा वैधानिक कारण होते | * शाशक के पास वचन तोड़ने के हमेशा वैधानिक कारण होते हैं। ~ मैकियावेली | ||
==अभिमानी, घमंडी, दंभी, गर्व (Proud)== | ==अभिमानी, घमंडी, दंभी, गर्व (Proud)== | ||
* वीर का असली दुश्मन उसका अहंकार | * वीर का असली दुश्मन उसका अहंकार है। ~ अज्ञात | ||
* आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर | * आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर है। ~ प्रेमचन्द | ||
* जिसने गर्व किया, उसका पतन अवश्य हुआ | * जिसने गर्व किया, उसका पतन अवश्य हुआ है। ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती | ||
* मनुष्य जितना छोटा होता है, उसका अंहकार उतना ही बड़ा होता | * मनुष्य जितना छोटा होता है, उसका अंहकार उतना ही बड़ा होता है। ~ वाल्टेयर | ||
* ज्यों-ज्यों अभिमान कम होता है, कीर्ति बढ़ती | * ज्यों-ज्यों अभिमान कम होता है, कीर्ति बढ़ती है। ~ यंग | ||
* जो अहंकारपूर्वक प्रातः जलपान करता है, उसको सायंकाल का भोजन तिरस्कार से मिलता | * जो अहंकारपूर्वक प्रातः जलपान करता है, उसको सायंकाल का भोजन तिरस्कार से मिलता है। ~ फ्रेंकलिन | ||
==सज़ा, दंड (Punishment)== | ==सज़ा, दंड (Punishment)== | ||
* दंड द्वारा प्रजा की रक्षा की जानी चाहिए लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना | * दंड द्वारा प्रजा की रक्षा की जानी चाहिए लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिए। ~ रामायण | ||
==धर्म, मज़हब (Religion)== | ==धर्म, मज़हब (Religion)== | ||
* जो उपकार करे, उसका प्रत्युपकार करना चाहिए, यही सनातन धर्म | * जो उपकार करे, उसका प्रत्युपकार करना चाहिए, यही सनातन धर्म है। ~ वाल्मीकि | ||
* प्रलोभन और भय का मार्ग बच्चों के लिए उपयोगी हो सकता है| लेकिन सच्चे धार्मिक व्यक्ति के दृष्टिकोण में कभी लाभ हानि वाली संकीर्णता नहीं | * प्रलोभन और भय का मार्ग बच्चों के लिए उपयोगी हो सकता है| लेकिन सच्चे धार्मिक व्यक्ति के दृष्टिकोण में कभी लाभ हानि वाली संकीर्णता नहीं होती। ~ आचार्य तुलसी | ||
* मनुष्य की धार्मिक वृत्ति ही उसकी सुरक्षा करती | * मनुष्य की धार्मिक वृत्ति ही उसकी सुरक्षा करती है। ~ आचार्य तुलसी | ||
* धार्मिक व्यक्ति दुःख को सुख में बदलना जानता | * धार्मिक व्यक्ति दुःख को सुख में बदलना जानता है। ~ आचार्य तुलसी | ||
* धार्मिक वृत्ति बनाये रखने वाला व्यक्ति कभी दुखी नहीं हो सकता और धार्मिक वृत्ति को खोने वाला कभी सुखी नहीं हो | * धार्मिक वृत्ति बनाये रखने वाला व्यक्ति कभी दुखी नहीं हो सकता और धार्मिक वृत्ति को खोने वाला कभी सुखी नहीं हो सकता। ~ आचार्य तुलसी | ||
* अहिंसा ही धर्म है, वही जिंदगी का एक रास्ता | * अहिंसा ही धर्म है, वही जिंदगी का एक रास्ता है। ~ महात्मा गांधी | ||
* अभागा वह है, जो संसार के सबसे पवित्र धर्म कृतज्ञता को भूल जाती | * अभागा वह है, जो संसार के सबसे पवित्र धर्म कृतज्ञता को भूल जाती है। ~ जयशंकर प्रसाद | ||
==संकल्प, प्रण (Resolution)== | ==संकल्प, प्रण (Resolution)== | ||
* इस संसार में प्रत्येक वस्तु संकल्प शक्ति पर निर्भर | * इस संसार में प्रत्येक वस्तु संकल्प शक्ति पर निर्भर है। ~ डिजरायली | ||
==सम्मान, प्रतिष्ठा, आदर (Respect)== | ==सम्मान, प्रतिष्ठा, आदर (Respect)== | ||
* आत्म सम्मान की रक्षा, हमारा सबसे पहला धर्म | * आत्म सम्मान की रक्षा, हमारा सबसे पहला धर्म है। ~ प्रेमचन्द | ||
* यदि सम्मान खोकर आय बढती हो, तो उससे निर्धनता श्रेयस्कर | * यदि सम्मान खोकर आय बढती हो, तो उससे निर्धनता श्रेयस्कर है। ~ शेख सादी | ||
* दूसरों का सम्मान करो, लोग तुम्हारा भी सम्मान | * दूसरों का सम्मान करो, लोग तुम्हारा भी सम्मान करेंगे। ~ कन्फ्यूशियस | ||
==क्रांति (Revolution)== | ==क्रांति (Revolution)== | ||
* क्रांति का उदय सदा पीड़ितों के हृदय एवं त्रस्त व्यक्तियों के अन्तःकरण में हुआ करता | * क्रांति का उदय सदा पीड़ितों के हृदय एवं त्रस्त व्यक्तियों के अन्तःकरण में हुआ करता है। ~ अज्ञात | ||
* क्रांति का अर्थ होता है अतीत और भविष्य के बीच एक जबर्दस्त | * क्रांति का अर्थ होता है अतीत और भविष्य के बीच एक जबर्दस्त संघर्ष। ~ फिदेल कास्त्रो | ||
* कुशासन के प्रति विद्रोह करना, ईश्वर की आज्ञा मानना | * कुशासन के प्रति विद्रोह करना, ईश्वर की आज्ञा मानना है। ~ फ्रेंकलिन | ||
* जहां कहीं अन्याय के चरण पड़ते हैं, वहां अंततः विद्रोह का ज्वालामुखी फूटता | * जहां कहीं अन्याय के चरण पड़ते हैं, वहां अंततः विद्रोह का ज्वालामुखी फूटता है। ~ अज्ञात | ||
* 'घूस का च्यवनप्राश खा कर न दीर्घायु बनो, ईमान की मिसाल अब मशाल बनके जल उठी' ~ राजीव चतुर्वेदी | * 'घूस का च्यवनप्राश खा कर न दीर्घायु बनो, ईमान की मिसाल अब मशाल बनके जल उठी'। ~ राजीव चतुर्वेदी | ||
==त्याग, न्योछावर, बलिदान (Sacrifice)== | ==त्याग, न्योछावर, बलिदान (Sacrifice)== | ||
* प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य | * प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है। ~ जयशंकर प्रसाद | ||
* महान त्याग से ही महान कार्य सम्भव | * महान त्याग से ही महान कार्य सम्भव है। ~ स्वामी विवेकानंद | ||
* यश त्याग से मिलता है, धोखाधड़ी से | * यश त्याग से मिलता है, धोखाधड़ी से नहीं। ~ प्रेमचन्द | ||
* अच्छे व्यवहार छोटे-छोटे त्याग से बनते | * अच्छे व्यवहार छोटे-छोटे त्याग से बनते है। ~ एमर्सन | ||
==दुख, उदास, म्लान (Sad)== | ==दुख, उदास, म्लान (Sad)== | ||
* दुःख की उपेक्षा करो, वह कम हो | * दुःख की उपेक्षा करो, वह कम हो जाएगा। ~ सद्गुरु श्रीब्रह्मचेतन्य | ||
* अन्याय सहने वाले से ज्यादा दुःखी, अन्याय करने वाला होता | * अन्याय सहने वाले से ज्यादा दुःखी, अन्याय करने वाला होता है। ~ प्लेटो | ||
* किसी दुःखी व्यक्ति के लिए थोड़ी सहायता, ढेरों उपदेशों से कहीं ज्यादा अच्छी | * किसी दुःखी व्यक्ति के लिए थोड़ी सहायता, ढेरों उपदेशों से कहीं ज्यादा अच्छी है। ~ बुलवर | ||
==विज्ञान (Science)== | ==विज्ञान (Science)== | ||
* धर्म, कला और विज्ञान वास्तव में एक ही वृक्ष की शाखा – प्रशाखाएं | * धर्म, कला और विज्ञान वास्तव में एक ही वृक्ष की शाखा – प्रशाखाएं हैं। ~ अल्बर्ट आइंस्टीन | ||
==शांत, चुप, ख़ामोश (Silent)== | ==शांत, चुप, ख़ामोश (Silent)== | ||
* प्रत्येक स्थान और समय बोलने के योग्य नहीं होते, कभी-कभी मौन रह जाना बुरी बात | * प्रत्येक स्थान और समय बोलने के योग्य नहीं होते, कभी-कभी मौन रह जाना बुरी बात नहीं। | ||
* वाणी का वर्चस्व रजत है किंतु मौन का मूल्य स्वर्ण के समान | * वाणी का वर्चस्व रजत है किंतु मौन का मूल्य स्वर्ण के समान है। | ||
* कभी-कभी मौन रह जाना, सबसे तीखी आलोचना होती | * कभी-कभी मौन रह जाना, सबसे तीखी आलोचना होती है। ~ अज्ञात | ||
* धनुष से छूटा हुआ तीर ओर मुख से निकला हुआ शब्द कभी वापस नहीं | * धनुष से छूटा हुआ तीर ओर मुख से निकला हुआ शब्द कभी वापस नहीं लौटता। ~ अज्ञात | ||
* इसका खेद अनेक बार हुआ कि में बोल क्यों | * इसका खेद अनेक बार हुआ कि में बोल क्यों पड़ा। ~ पाइथोगोरस | ||
* बोलने में समझदारी से काम लेना, वाक्पटुता से अच्छा | * बोलने में समझदारी से काम लेना, वाक्पटुता से अच्छा है। ~ बेकन | ||
* थोड़ा पढ़ना और अधिक सोचना, कम बोलना और अधिक सुनना, यही बुद्धिमान बनने का उपाय | * थोड़ा पढ़ना और अधिक सोचना, कम बोलना और अधिक सुनना, यही बुद्धिमान बनने का उपाय है। | ||
* जो झुकना जानता है, दुनिया उसे उठाती है, जो केवल अकड़ना जानता है, दुनिया उसे उखाड़ फेंकती | * जो झुकना जानता है, दुनिया उसे उठाती है, जो केवल अकड़ना जानता है, दुनिया उसे उखाड़ फेंकती है। | ||
* खामोश रहो या ऐसी बात कहो जो ख़ामोशी से बेहतर | * खामोश रहो या ऐसी बात कहो जो ख़ामोशी से बेहतर हो। ~ पाइथोगोरस | ||
* मौन बातचीत की एक महान् कला | * मौन बातचीत की एक महान् कला है। ~ हैजलिट | ||
* तुम्हे प्रत्येक का उपदेश सुनना चाहिए जबकि अपना उपदेश कुछ ही व्यक्तियों को | * तुम्हे प्रत्येक का उपदेश सुनना चाहिए जबकि अपना उपदेश कुछ ही व्यक्तियों को दो। | ||
* जितना दिखाते हो उससे ज्यादा तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना | * जितना दिखाते हो उससे ज्यादा तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए। | ||
17:45, 1 अक्टूबर 2011 का अवतरण
मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।
- महात्मा गांधी
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National Anthem =
मेरे पृष्ट पर आप का स्वागत है !
मेरा पसंदीदा चित्र संग्रह |
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शोध क्षेत्र |
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भारतवर्ष में कॉवर के त्योहार का बहुत ज़्यादा महत्व है। इस तौहार में आमलोग भगवन शिव की भक्ति में डुबकर कॉवर उठाते है। इन कॉवर उठाने वाले शिव भक्तो को कॉवरिया कहते है। यह त्योहार हिन्दी कैलेण्डर के अनुसार श्रावण ( सावन ) के महीने में पड़ता है। कॉवर के इस त्योहार में शिव भक्त एक निश्चित स्थान से गेरुआ वस्त्र धारण कर कन्धे पर कॉवर लेकर और कॉवर में गंगाजल रखकर उठाते है तथा कई किलोमीटर की नंगे पैर पैदल यात्रा करके एक निश्चित स्थान के शिव मंदिर में आकर भगवन शिव और माता पर्वती पर गंगाजल चढाते है। यह गंगाजल का अभिषेक श्रद्धा और विश्वास के महापर्व शिव रात्रि के दिन होता है। कॉवर का त्योहार भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है लेकिन विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, उत्तराँचल, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली, पश्चिम बंगाल के राज्यों में मनाया जाता है।
आषाढ़ी पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर तीर्थनगरी में गंगा स्नान करने व गुरु पूजन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, यूपी, दिल्ली के कोने-कोने से आज पूर्णिमा स्नान के साथ ही कस्बे में एक माह तक चलने वाला कॉवर मेला प्रारम्भ हो जाएगा। मकर संकंराति के अवसर पर बरमान से बांदकपुर भगवान भोलेशंकर के चरणों में जल चढ़ाने के लिए जा रहे कावडिय़ों का गुरुवार को तालसेमरा में संतश्री १०८ सीताराम महराज बादकपुर जाकर भगवान भोलेशंकर के चरणों में अर्पित करते हैं। कॉवरियों द्वारा यह सारी यात्रा पैदल ही की जाती है। स्वागत करने वालों में लक्ष्मीनारायण जारोलिया, पप्पू जारोलिया, हरदास पटेल, अशोक पटेल आदि शामिल हैं। बेवर: महाशिव रात्रि के पावन पर्व पर काबड़ियों ने फर्रुखाबाद से जल भरकर विभिन्न शिवालयों में चढ़ाकर मन्नत मांगी तो कुछ काबड़ियों ने भोलेनाथ से पुन: जल लेकर आने का वादा किया। श्रद्धा और विश्वास के महापर्व शिव रात्रि के दिन भोले बाबा के भक्तों ने घटिया घाट, श्रंगीरामपुर से जल भरकर पूरे मनोयोग के साथ पैदल चलकर कॉवर धारण कर मंछना, मैनपुरी हजारी मंदिर सरसईनावर में शिवालयों पर जल चढ़ाया। कॉबड़ियों की टोली, भोले तेरी बम बम बम भोले के जयकारे लगाते हुए चल रहे थे। कॉबरधारी पुनीत दुबे, रानू शाक्य, पुष्पेन्द्र राठौर, शोभाराम, मुन्ना सिंह, मूलचन्द्र ने बताया कि कॉवर धारण करना कठिन व्रत है। जिसमें बहुत से नियमों का पालन करना अनिवार्य है। भक्त जन होते हैं। एक तो ऐसे जिनकी मन्नत भोले बाबा पूरी कर चुके होते है तथा दूसरे जल चढ़ाकर मन्नत मांगकर पुन: आने का वादा करते है। जल भरकर दूध वाले वृक्षों के नीचे से चलना सर्वथा मना है। भोले नाथ बड़े दयालू है। जो भी शिवलिंग पर पूजा अर्चन कर जल चढ़ता है भोले नाथ उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। हम लोग लगभग 75 किमी पैदल चलकर जल चढ़ाएंगे। सर्वविदित है कि श्रावण के महीने में कॉवर चढ़ाना बेहद पुनीत माना जाता है। सच्ची भक्ति भावना से जो भी भोले बाबा के नाम की कॉवर चढ़ाता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। रांची, तैयार हो जाइए, बाबा भोले नाथ की पूजा में लीन होने के लिए। भगवान शिव का प्रसन्न करने के लिए। उनका जलाभिषेक करने का महीना आ गया है। भगवान शंकर को खुश करने का विशेष महीना श्रावण ( सावन ) आषढ खत्म होते ही शनिवार कृष्ण पक्ष 16 जुलाई से शुरु हो जायेगा। सावन की पहली सोमवारी 18 जुलाई को है। अगले सप्ताह से शुरु होने वाले सावन को लेकर शिवालयों और अन्य मंदिरों में विशेष तैयारियां की जा रही है। देवघर स्थित प्रसिध्द श्रावणी मेले की तैयारियों को भी अंतिम रुप दिया जा रहा है। इधर, राजधानी रांची स्थित पहाड़ी मंदिर में भी सावन महीने को लेकर विशेष तैयारियां की गयी है। मंदिर को आकर्षक तरीके से संजाने-संवारने का काम चल रहा है। खूंटी स्थित अमरेश्वरधाम में भी तैयारियों को अंतिम रुप दिया जा रहा है। इस सावन में चार सोमवारी अगस्त को चौथी सोमवारी पडेगी। धार्मिक मान्यता है कि सावन की सोमवारी बाबा भोलेनाथ को जल चढाने से बाबा की असीम कृपा भक्तों को मिलती है। श्रध्दालु भक्त बाबा को जल चढाने के लिए कॉवर लेकर मिलो पैदल भी चलते हैं। सबसे अधिक भक्तों की भीड बाबा की नगरी देवघर पहुँचती है। वहीं कई श्रध्दालु भक्त वाराणसी और तारकेश्वर (पश्चिम बंगाल) आदि सावन सात्विक होने का महीना सावन सात्विक हो कर बाबा की आराधना की विशेष महत्व है। मत्स्यपुराण के मुताबिक सावन में मछली को अंडा होता है यानि एक नये प्राणी का आगमन । इसी वजह से सावन में मछली खाने से लोग परहेज करते हैं। वहीं सावन माह में लहसून-प्याज को भी त्याग करते हैं। संजने लगी हैं कांवर की दुकानें सजने लगी हैं कॉवर की दुकानें, गेरुवा वस्त्र की सिलाई और नये स्टोक की बिक्री के लिए तैयार पूरे ज़िलों एवं ग्रामीण क्षेत्रों तक बाबा भोले की नगरी देवघर जाने की तैयारी के लिए श्रध्दालु भक्त कॉवर की ख़रीदारी करते हैं ऐसे में नये स्टोक आ चुके हैं। इस सप्ताह बिक्री परवान पर होगी वहीं गेरुवा वस्त्र की नये स्टोक भी दुकानों में पहुँच चुके है। लोग वस्त्रों के अलावा झोले टॉर्च आदि की ख़रीदारी में लग गये हैं। | ||||||||||||
संस्कृत सुभाषित एवं सूक्तियाँ हिन्दी में अर्थ सहित----
(१) न राज्यं न च राजासीत् , न दण्डो न च दाण्डिकः । स्वयमेव प्रजाः सर्वा , रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥ ( न राज्य था और ना राजा था , न दण्ड था और न दण्ड देने वाला । स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी ॥ ) (२) रत्नं रत्नेन संगच्छते । ( रत्न , रत्न के साथ जाता है ) (३) गुणः खलु अनुरागस्य कारणं , न बलात्कारः । ( केवल गुण ही प्रेम होने का कारण है , बल प्रयोग नहीं ) (४) निर्धनता प्रकारमपरं षष्टं महापातकम् । ( गरीबी दूसरे प्रकार से छठा महापातक है । ) (५) अपेयेषु तडागेषु बहुतरं उदकं भवति । ( जिस तालाब का पानी पीने योग्य नहीं होता , उसमें बहुत जल भरा होता है । ) (६) अङ्गुलिप्रवेशात् बाहुप्रवेश: | ( अंगुली प्रवेश होने के बाद हाथ प्रवेश किया जता है । ) (७) अति तृष्णा विनाशाय. ( अधिक लालच नाश कराती है । ) (८) अति सर्वत्र वर्जयेत् । ( अति ( को करने ) से सब जगह बचना चाहिये । ) (९) अजा सिंहप्रसादेन वने चरति निर्भयम्. ( शेर की कृपा से बकरी जंगल मे बिना भय के चरती है । ) (१०) अतिभक्ति चोरलक्षणम्. ( अति-भक्ति चोर का लक्षण है । ) (११) अल्पविद्या भयङ्करी. ( अल्पविद्या भयंकर होती है । ) (१२) कुपुत्रेण कुलं नष्टम्. ( कुपुत्र से कुल नष्ट हो जाता है । ) (१३) ज्ञानेन हीना: पशुभि: समाना:. ( ज्ञानहीन पशु के समान हैं । ) (१४) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे गर्दभी ह्यप्सरा भवेत्. ( सोलह वर्ष की होने पर गदही भी अप्सरा बन जाती है । ) (१५) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्. ( सोलह वर्ष की अवस्था को प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरण करना चाहिये । ) (१६) मधुरेण समापयेत्. ( मिठास के साथ ( मीठे वचन या मीठा स्वाद ) समाप्त करना चाहिये । ) (१७) मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना. ( हर व्यक्ति अलग तरह से सोचता है । ) (१८) शठे शाठ्यं समाचरेत् । ( दुष्ट के साथ दुष्टता का वर्ताव करना चाहिये । ) (१९) सत्यं शिवं सुन्दरम्. ( सत्य , कल्याणकारी और सुन्दर । ( किसी रचना/कृति या विचार को परखने की कसौटी ) ) (२०) सा विद्या या विमुक्तये. ( विद्या वह है जो बन्धन-मुक्त करती है । ) (२१) त्रियाचरित्रं पुरुषस्य भग्यं दैवो न जानाति कुतो नरम् । ( स्त्री के चरित्र को और पुरुष के भाग्य को भगवान् भी नहीं जानता , मनुष्य कहाँ लगता है । ) (२२) कामासक्त व्यक्ति की कोई चिकित्सा नहीं है। - नीतिवाक्यामृत-३।१२
जनम होत नंगे भये, चौपायों की चाल, न वाणी न वाक्य थे पशुवत पाये शरीर। धीरे धीरे बदल गये चौपायों से बन इंसान। वाक्य और वाणी मिली वस्त्र पहन कर हुये बने महान। जाति बनी और ज्ञान बढ़ा तो बॉंट दिया फिर इंसान। अंत समय नंगे फिर भये, गये सब वेद शास्त्र और ज्ञान।।
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वृक्ष तथा विभिन्न वनस्पतियां धारती पर हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी हैं। भारतीय संस्कृति में भी प्राचीन समय से ही वृक्षो तथा वनस्पतियों को पूजनीय माना जाता रहा हैं। विभिन्न वनस्पतियां हमारे स्वास्थ्य की रक्षा में भी सहायक सिद्ध होती हैं। ऐसा ही एक छोटा परन्तु बहुत महत्त्वपूर्ण पौधा तुलसी है। तुलसी को हजारों वर्षों से विभिन्न रोगों के इलाज के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जा रहा हैं। आयुर्वेद में भी तुलसी तथा उसके विभिन्न औषधीय प्रयोगों का विशेष स्थान हैं। आपके आंगन में लगा छोटा सा तुलसी का पौधा, अनेक बीमारियो का इलाज करने के आचर्यजनक गुण लिए हुए होता हैं।
सर्दी के मौसम में खांसी जुकाम होना एक आम समस्या हैं। इनसे बचे रहने का सबसे सरल उपाय है तुलसी की चाय। तुलसी की चाय बनाने के लिए, तुलसी की दस पन्द्रह ग्राम ताजी पत्रितयां लें और धो कर कुचल लें। फिर उसे एक कप पानी में डालें उसमें पीपला मूल, सौंठ, इलायची पाउड़र तथा एक चम्मच चीनी मिला लें, इस मिश्रण को उबालकर बिना छाने सुबह गर्मा-गर्म पीना चाहिये। इस प्रकार की चाय पीने से शरीर में चुस्ती स्फूर्ति आती है और भूख बढ़ती हैं। जिन लोगों को सर्दियों में बारबार चाय पीने की आदत है। उनके लिए तुलसी की चाय बहुत लाभदायक होगी। जो न केवल उन्हें स्वास्थ्य लाभ देगी अपितु उन्हें साधारण चाय के हानिकारक प्रभावो से भी बचाएगीं। सर्दी, जवर, अरूचि, सुस्ती, दाह, वायु तथा पित्त संबंधी विकारों को दूर करने के लिए भी तुलसी की औषधीय रचना और अपना महत्व हैं। इसके लिए तुलसी की दस पन्द्रह ग्राम ताजी धुली पत्तियों को लगभग 150 ग्राम पानी में उबाल लें। जब लगभग आधा या चौथाई पानी ही शेष रह जाए। तो उसमें उतनी ही मात्रा में दूध तथा जरूरत के अनुसार मिश्री मिला लें। यह अनेक रोगों को तो दूर करता ही है साथ ही क्षुधावर्धक भी होता हैं। इसी विधि के अनुसार काढ़ा बनाकर उसमें एक दो इलायची का चूर्ण और दस पन्द्रह सुधामूली डालकर सर्दियों में पीना बहुत लाभकारी होता हैं। इसमें शारीरिक पुष्टता बढ़ती हैं। तुलसी के पत्ते का चूर्ण बनाकर मर्तबान में रख लें, जब भी चाय बनाएं तो दस पन्द्रह ग्राम इस चूर्ण का प्रयोग करें यह चाय ज्वर, दमा, जुकाम, कफ तथा गले के रोगों के लिए बहुत लाभकारी हैं। तुलसी का काढ़ा बनाने के लिए तीन चार काली मिर्च के साथ तुलसी की सात आठ पत्रितयों को रगड़ लें और अच्छी तरह मिलाकर एक गिलास द्रव तैयार करें इक्कीस दिनों तक सुबह लगातार ख़ाली पेट इस काढ़े का सेवन करने से मस्तिष्क की गर्मी दूर होती है और उसे शांति मिलती हैं। क्योंकि यह काढ़ा हृदयोत्तेजक होता है, इसलिए यह हृदय को पुष्ट करता है और हृदय संबंधी रोगों से बचाव करता हैं। एसिडिटी संधिवात मधुमेह, स्थूलता, खुजली, यौन दुर्बलता, प्रदाह आदि अनेक बीमारियों के उपचार के लिए तुलसी की चटनी बनाई जा सकती हैं। इसके लिए लगभग दस-दस ग्राम धानिया, पुदिना लें उसमें थोड़ा सा लहसुन अदरख, सेंधा नमक, खजूर का गुड़, अंकुरित मेथी, अंकुरित चने, अंकुरित मूग, तिल और लगभग पांच ग्राम तुलसी के पत्ते मिलाकर महीन पीस लें। अब इसमें एक नींबू का रस और लगभग पन्द्रह ग्राम नारियल की छीन डाले। इस चटनी को रोटी के साथ या साग में मिलाकर खाया जा सकता हैं। चटनी से कैल्शियम, पोटेशियम, गंधाक, आयरन, प्रोटीन तथा एन्जाइम आदि हमारे शरीर को प्राप्त होते हैं। एक बात ध्यान रखें कि यह चटनी दो घांटे तक ही अच्छी रहती है। अत: इसका प्रयोग सदा ताजा बनाकर ही करें दो घांटे के बाद इसके गुण में परिवर्तन आ जाता हैं। इस चटनी को कभी फ्रिज में नहीं रखें। शीतऋतु में तुलसी का पाक भी एक गुणकारी औषधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता हैं। इसके लिए तुलसी के बीजों को निकाल कर आटे जैसा बारीक पीस लें अब लगभग 125 ग्राम चने के आटे में मोयन के लिए देसी घी व थोड़ा सा दूध डालकर उसे लोहे या पीतल की कड़ाही में घी डालकर धीमी आंच पर भूनें। बाद में लगभग 125 ग्राम खोआ डालकर, उसे भूनें इसके बात उसमें बादाम की गिरि व तुलसी के बीजों का चूर्ण मिला लें। जब लाल हो जाए, तो इसमें इलायची व काली मिर्च ड़ालकर इस मिश्रण को तुरंत उतार लें। अब मिश्री की चाशनी में केसर डालकर, इस मिश्रण को उसमें डाल दें और अच्छी तरह मिलाएं, गाढ़ा होने पर थाली में ठंड़ा कर टुकड़े करें सर्दी में प्रतिदिन 20 से 100 ग्राम मात्रा दूध के साथ खाने से बल वीर्य बढ़ता हैं। इससे पेट के रोग वातजन्य रोग, शीघ्रपतन, कामशीलता, मस्तिष्क की कमज़ोरी, पुराना जुकाम, कफ आदि में बहुत लाभ होता हैं। अरिष्ट आसव बनाने के लिए 100 ग्राम बबूल की छाल को लगभग डेढ़ किलो पानी में तब तक उबालें जब तक कि पानी एक चौथाई न हो जाएं। अब इसे छानकर इसमें लगभग अस्सी ग्राम तुलसी का चूर्ण, पांच सौ ग्राम गुड़, 10 ग्राम पीपल तथा 80 ग्राम आंवले के फूल मिला दें। काली मिर्च, जायफल, दालचीनी,ाीतलचीनी, नागकेसर, तमालपत्र तथा छोटी इलायचीं, | ||||||||||||
;टैगोर व मदर टेरेसा की जयंती पर विशेष डाक टिकट व ट्रेन
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विभिन्न क्षेत्रों भारत में प्रथम
6. फील्ड मार्शल- S.H.F.J. मानेकशा 9. वायसराय एक्जिक्यूटिव कौंसिल के प्रथम भारतीय सदस्य- एस. पी. सिन्हा 26. भारत में निर्मित प्रथम भारतीय फिल्म (silent film)- राजा हरिश्चन्द्र, 1913 में 27. भारत में निर्मित प्रथम भारतीय फिल्म (silent film) के निर्माण कर्ता- दादा साहेब फाल्के 28. प्रथम भारतीय रंगीन फिल्म- किशन कन्हैया (1937) 29. सिनेमास्कोप फिल्म- कागज के फूल (1959) 30. लाइफ टाइम अचिवमेंट के ऑस्कर पुरस्कार विजेता- सत्यजीत राय (1992) 31. बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइन ऑस्कर विजेता- भानु अथैया (1982) 39. किसी विधानसभा की प्रथम महिला अध्यक्ष- श्रीमती शन्नो देवी 45. ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतने वाली प्रथम भारोत्तोलक- कर्णम मल्लेश्वरी देवी (सिडनी, 2000) 46. शतरंज में प्रथम विश्व चैम्पियन भारतीय - विश्वनाथन आनंद 49. दलित वर्ग से प्रथम लोकसभा अध्यक्ष- G. M. C. बालयोगी 51. भारत की प्रथम महिला एयर वाईस मार्शल- पी. बंदोपाध्याय 59. प्रथम विश्व सुन्दरी (मिस वर्ड)- कु. रीता फारिया 62. अंतरराष्ट्रीय महिला क्रिकेट में 100 विकेट लेने वाली प्रथम महिला- डायना एडुलजी | ||||||||||||
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विषय सूची
योग्यता, कौशल (Ability)
सलाह, परामर्श, मशवरा (Advice)
क्रोध, ग़ुस्सा, ताव (Anger)
सौंदर्य, सुंदरता, शबाब (Beauty)
पुस्तक, किताब, ग्रंथ (Book)
परिवर्तन, बदलना, अस्थिर (Change)
चरित्र, स्वभाव, ख़ासियत (Character)
दया, सहानुभूति, मेहरबानी (Compassion)
प्रतियोगिता, मुक़ाबला (Competition)
आत्मविश्वास, निश्चय (Confidence)
साहस, हिम्मत, पराक्रम (Courage)
कायर (Coward)
सृजन, रचना, निर्माण (Creation)
मृत्यु, अंत, ख़तम, नाश (Death)
अनुशासन, आत्मसंयम (Discipline)
दान, चंदा (Donation)
सपना, ख़याल (Dream)
कर्तव्य, धर्म, फर्ज़ (Duty)
शिक्षा (Education)
दुश्मन, शत्रु, विरोधी (Enemy)
बुराई, दुष्ट (Evil)
डर, भय, ख़ौफ़ (Fear)
दोस्ती, मित्रता, मैत्री (Friendship)
मज़ाकिया, अजीब (Funny)
भगवान, प्रभु, अल्लाह (God)
भलाई, साधुता, भद्रता (Goodness)
सुख, आनंद, ख़ुशी (Happiness)
घृणा, नफ़रत, द्वेष (Hate)
स्वास्थ्य, सेहत (Health)
दिल, ह्रदय (Heart)
इतिहास, प्राचीन (History)
घर, कुटुंब, निवास (Home)
ईमानदारी, सच्चाई (Honesty)
मनुष्य, मानव (Human)
अन्याय, बेइंसाफी (Injustice)
प्रेरणादायक (Inspirational)
अपमान, तिरस्कार (Insult)
बुद्धिमान, मनीषी (Intelligent)
यात्रा, सैर (Journey)
न्याय, इंसाफ (Justice)
ज्ञान, विद्या, बोध (Knowledge)
भाषा, बोली (Language)
आलस्य, आलस (Laziness)
नेतृत्व, अगुआई, संचालन (Leadership)
सीखना, जानना, प्राप्त करना (Learn)
झूठ, असत्य, चालबाज़ी (Lie)
जीवन, प्राण (Life)
सुनना, श्रवण, ध्यान देना (Listen)
प्यार, प्रेम, मुहब्बत (Love)
भाग्य, तक़दीर, मुकद्द (Luck)
स्मृति, याद, स्मरणशक्ति (Memory)
ग़लती, भूल, दोष (Mistake)
नम्रता, विनयशीलता (Modesty)
धन, मुद्रा, स्र्पये, माल (Money)
मां, जननी, माता (Mother)
प्रेरक, उत्तेजित करना (Motivational)
प्रकृति, क़ुदरत (Nature)
नव वर्ष, नया साल (New Year)
अवसर, मौक़ा (Opportunity)
धैर्य, सब्र, सहनशीलता (Patience)
शांति, अमन, चैन (Peace)
व्यक्तिगत, निजी, आत्म (Personal)
राजनीतिक, सियासी (Political)
गरीबी, निर्धनता, तंगी (Poverty)
प्रशंसा, बड़ाई (Praise)
समस्या, मसला (Problem)
वादा, वचन, प्रतिज्ञा (Promise)
अभिमानी, घमंडी, दंभी, गर्व (Proud)
सज़ा, दंड (Punishment)
धर्म, मज़हब (Religion)
संकल्प, प्रण (Resolution)
सम्मान, प्रतिष्ठा, आदर (Respect)
क्रांति (Revolution)
त्याग, न्योछावर, बलिदान (Sacrifice)
दुख, उदास, म्लान (Sad)
विज्ञान (Science)
शांत, चुप, ख़ामोश (Silent)
मुसकान, मुसकुराहट (Smile)
आत्मा, रूह (Soul)
अध्ययन, पढ़ना (Study)
सफलता, विजय (Success)
प्रतिभा, योग्यता, कौशल (Talent)
लक्ष्य, योजना, गंतव्य (Target)
शिक्षक, अध्यापक, उस्ताद, गुरु (Teacher)
सोच, ख़याल, विचार, मत (Thinking)
समय, काल, वक़्त (Time)
विश्वास, यक़ीन, भरोसा (Trust)
सच, सत्य, साँच (Truth)
समझना, सुबोध (Understanding)
एकता, योग, मेल (Unity)
विजेता, विजय, जीत (Winner)
अक़्लमंद, चतुर, होशियार (Wise)
महिला, स्री (Woman)
काम, कार्य, कृत्य (Work)
चिंता, आकुलता (Worry)
युवा, जवानी (Youth)
Other Quotes
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ओ३म् (ॐ) नाम में हिन्दू, मुस्लिम या ईसाइ जैसी कोई बात नहीं है। यह सोचना कि ओ३म् किसी एक धर्म की निशानी है, ठीक बात नहीं, अपितु यह तो तब से चला आया है जब कोई अलग धर्म ही नहीं बना था। बल्कि ओ३म् तो किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है। यह तो अच्छाई, शक्ति, ईश्वर भक्ति और आदर का प्रतीक है। उदाहरण के लिए अगर हिन्दू अपने सब मन्त्रों और भजनों में इसको शामिल करते हैं तो ईसाई और यहूदी भी इसके जैसे ही एक शब्द आमेन का प्रयोग धार्मिक सहमति दिखाने के लिए करते हैं। मुस्लिम इसको आमीन कह कर याद करते हैं, बौद्ध इसे ओं मणिपद्मे हूं कह कर प्रयोग करते हैं। सिख मत भी इक ओंकार अर्थात एक ओ३म के गुण गाता है। अंग्रेज़ी का शब्द omni, जिसके अर्थ अनंत और कभी ख़त्म न होने वाले तत्त्वों पर लगाए जाते हैं (जैसे omnipresent, omnipotent) भी वास्तव में इस ओ३म् शब्द से ही बना है। इतने से यह सिद्ध है कि ओ३म् किसी मत, मज़हब या सम्प्रदाय से न होकर पूरी इंसानियत का है। ठीक उसी तरह जैसे कि हवा, पानी, सूर्य, ईश्वर, वेद आदि सब पूरी इंसानियत के लिए हैं न कि केवल किसी एक सम्प्रदाय के लिए।
यजुर्वेद [2/13, 40/15, 17] ऋग्वेद [1/3/7] आदि स्थानों पर तथा इसके अलावा गीता और उपनिषदों में ओ३म् का बहुत गुणगान हुआ है। मांडूक्य उपनिषद तो इसकी महिमा को ही समर्पित है।
वैदिक साहित्य इस बात पर एकमत है कि ओ३म् ईश्वर का मुख्य नाम है। योग दर्शन [1/27, 28] में यह स्पष्ट है। यह ओ३म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है - अ, उ, म । प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है। जैसे अ से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है। उ से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है। म से अनंत, अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है। ये तो बहुत थोड़े से उदाहरण हैं जो ओ३म् के प्रत्येक अक्षर से समझे जा सकते हैं। वास्तव में अनंत ईश्वर के अनगिनत नाम केवल इस ओ३म् शब्द में ही आ सकते हैं, और किसी में नहीं। वास्तव में हरेक ध्वनि हमारे मन में कुछ भाव उत्पन्न करती है। सृष्टि की शुरूआत में जब ईश्वर ने ऋषियों के हृदयों में वेद प्रकाशित किये तो हरेक शब्द से सम्बंधित उनके निश्चित अर्थ ऋषियों ने ध्यान अवस्था में प्राप्त किये। ऋषियों के अनुसार ओ३म् शब्द के तीन अक्षरों से भिन्न भिन्न अर्थ निकलते हैं, जिनमें से कुछ ऊपर दिए गए हैं। ऊपर दिए गए शब्द-अर्थ सम्बन्ध का ज्ञान ही वास्तव में वेद मन्त्रों के अर्थ में सहायक होता है और इस ज्ञान के लिए मनुष्य को योगी अर्थात ईश्वर को जानने और अनुभव करने वाला होना चाहिए। परन्तु दुर्भाग्य से वेद पर अधिकतर उन लोगों ने कलम चलाई है जो योग तो दूर, यम नियमों की परिभाषा भी नहीं जानते थे। सब पश्चिमी वेद भाष्यकार इसी श्रेणी में आते हैं। तो अब प्रश्न यह है कि जब तक साक्षात ईश्वर का प्रत्यक्ष ना हो तब तक वेद कैसे समझें ? तो इसका उत्तर है कि ऋषियों के लेख और अपनी बुद्धि से सत्य असत्य का निर्णय करना ही सब बुद्धिमानों को अत्यंत उचित है। ऋषियों के ग्रन्थ जैसे उपनिषद्, दर्शन, ब्राह्मण ग्रन्थ, निरुक्त, निघंटु, सत्यार्थ प्रकाश, भाष्य भूमिका इत्यादि की सहायता से वेद मन्त्रों पर विचार करके अपने सिद्धांत बनाने चाहियें और इसमें यह भी है कि पढने के साथ साथ यम नियमों का कड़ाई से पालन बहुत जरूरी है। वास्तव में वेदों का सच्चा स्वरुप तो समाधि अवस्था में ही स्पष्ट होता है, जो कि यम नियमों के अभ्यास से आती है। व्याकरण मात्र पढने से वेदों के अर्थ कोई भी नहीं कर सकता। वेद समझने के लिए आत्मा की शुद्धता सबसे आवश्यक है। उदाहरण के लिए संस्कृत में गो शब्द का वास्तविक अर्थ है गतिमान। इससे इस शब्द के बहुत से अर्थ जैसे पृथ्वी, नक्षत्र आदि दिखने में आते हैं। परन्तु मूर्ख और हठी लोग हर स्थान पर इसका अर्थ गाय ही कहते हैं और मंत्र के वास्तविक अर्थ से दूर हो जाते हैं। वास्तव में किसी शब्द के वास्तविक अर्थ के लिए उसके मूल को जानना जरूरी है, और मूल बिना समाधि को जाना नहीं जा सकता। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि हम वेद का अभ्यास ही न करें। किन्तु अपने सर्व सामर्थ्य से कर्मों में शुद्धता से आत्मा में शुद्धता धारण करके वेद का अभ्यास करना सबका कर्त्तव्य है। यह शब्द अर्थ सम्बन्ध योगाभ्यास से स्पष्ट होता जाता है। परन्तु कुछ उदाहरण तो प्रत्यक्ष ही हैं। जैसे म से ईश्वर के पालन आदि गुण प्रकाशित होते हैं। पालन आदि गुण मुख्य रूप से माता से ही पहचाने जाते हैं। अब विचारना चाहिए कि सब संस्कृतियों में माता के लिए क्या शब्द प्रयोग होते हैं। संस्कृत में माता, हिन्दी में माँ, उर्दू में अम्मी, अंग्रेज़ी में मदर, मम्मी, मॉम आदि, फ़ारसी में मादर, चीनी भाषा में माकुन इत्यादि, सो इतने से ही स्पष्ट हो जाता है कि पालन करने वाले मातृत्व गुण से म का और सभी संस्कृतियों से वेद का कितना अधिक सम्बन्ध है। एक छोटा बच्चा भी सबसे पहले इस म को ही सीखता है और इसी से अपने भाव व्यक्त करता है। इसी से पता चलता है कि ईश्वर की सृष्टि और उसकी विद्या वेद में कितना गहरा सम्बन्ध है। यम नियम -- यम नियमों का अभ्यास इसका सबसे बड़ा साधन है, यम व नियम संक्षेप से नीचे दिए जाते हैं।
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परिवर्तन , संभावना , गति , क्रिया प्रतिक्रिया | ||||||||||||
A | Aa |
B | Bb |
C | Cc |
D | Dd |
E | Ee |
मुझे हिन्दुस्तानी, हिन्दू और हिन्दी भाषी होने का गर्व है | |