"उत्पल वंश": अवतरणों में अंतर
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*कश्मीर के उत्पल वंश की स्थापना [[अवन्तिवर्मन]] ने की थी। | *कश्मीर के उत्पल वंश की स्थापना [[अवन्तिवर्मन]] ने की थी। करकोट वंश के अंतिम राजा के हाथ से [[अवंतिवर्मन]] ने शासन की बागडोर छीनकर 'उत्पल राजवंश' का आरंभ किया था। | ||
*अवन्तिवर्मन का शासन काल 855 से 883 ई. तक था। | *अवन्तिवर्मन का शासन काल 855 से 883 ई. तक था। | ||
*[[शंकर वर्मन]] ने 885 से 902 ई. तक अवन्तिवर्मन के बाद सिंहासनारूढ़ होकर अपने साम्राज्य विस्तार के अन्तर्गत [[दार्वाभिसार]], [[त्रिगर्त]] एवं गुर्जर को जीता। | *[[शंकर वर्मन]] ने 885 से 902 ई. तक अवन्तिवर्मन के बाद सिंहासनारूढ़ होकर अपने साम्राज्य विस्तार के अन्तर्गत [[दार्वाभिसार]], [[त्रिगर्त]] एवं गुर्जर को जीता। | ||
*[[गोपाल वर्मन]] ने 902 से 904 ई.तक शंकर वर्मन के बाद [[कश्मीर]] पर शासन किया। | *[[गोपाल वर्मन]] ने 902 से 904 ई.तक शंकर वर्मन के बाद [[कश्मीर]] पर शासन किया। | ||
*उत्पल राजवंश के राजाओं में [[अवंतिवर्मन]] और [[शंकर वर्मन]] सर्वाधिक प्रसिद्ध थे। | |||
*इस कुल के अंतिम राजा उन्मत्तावंती के अनौरस पुत्र सूरवर्मन द्वितीय ने केवल कुछ महीने ही राज किया। | |||
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12:14, 1 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
उत्पल वंश (कश्मीर) के हिन्दू राज्य के विषय में कल्हण की 'राजतरंगिणी' से जानकारी मिलती है।
- 800 से 1200 ई. के मध्य कश्मीर में तीन राजवंशों ने शासन किया, जिनका क्रम निम्न प्रकार से था-
- कर्कोटक वंश
- उत्पल वंश
- लोहार वंश
- कश्मीर के उत्पल वंश की स्थापना अवन्तिवर्मन ने की थी। करकोट वंश के अंतिम राजा के हाथ से अवंतिवर्मन ने शासन की बागडोर छीनकर 'उत्पल राजवंश' का आरंभ किया था।
- अवन्तिवर्मन का शासन काल 855 से 883 ई. तक था।
- शंकर वर्मन ने 885 से 902 ई. तक अवन्तिवर्मन के बाद सिंहासनारूढ़ होकर अपने साम्राज्य विस्तार के अन्तर्गत दार्वाभिसार, त्रिगर्त एवं गुर्जर को जीता।
- गोपाल वर्मन ने 902 से 904 ई.तक शंकर वर्मन के बाद कश्मीर पर शासन किया।
- उत्पल राजवंश के राजाओं में अवंतिवर्मन और शंकर वर्मन सर्वाधिक प्रसिद्ध थे।
- इस कुल के अंतिम राजा उन्मत्तावंती के अनौरस पुत्र सूरवर्मन द्वितीय ने केवल कुछ महीने ही राज किया।
- उत्पल वंश का अंत मंत्री प्रभाकरदेव द्वारा हुआ, जिसके बेटे यश:कर को चुनकर ब्राह्मणों ने कश्मीर का राजा बना दिया था।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ओंकारनाथ उपाध्याय, हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2, पृष्ठ संख्या 85