"दादाजी कोंडदेव": अवतरणों में अंतर

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'''दादाजी कोंडदेव''' या 'खोंडदेव' एक [[मराठा]] [[ब्राह्मण]] और महान मराठा नेता [[शिवाजी]] (1627-1680 ई.) के गुरु और अभिभावक थे। उन्होंने अपने शिष्य शिवाजी के मन में बचपन से ही साहस और पराक्रम के उदात्त भाव के साथ-साथ [[प्राचीन भारत]] के महान [[हिन्दू]] वीरों के प्रति श्रद्धा की भावना भरी। कोंडदेव ने [[गाय|गायों]] और ब्राह्मणों को पूज्य बताया था।
'''दादाजी कोंडदेव''' अथवा 'खोंडदेव' [[मराठा]] [[ब्राह्मण]] और प्रसिद्ध महान मराठा नेता [[छत्रपति शिवाजी]] (1627-1680 ई.) के गुरु और अभिभावक थे। प्रारम्भ से ही वीर शिवाजी पर इनका गहरा प्रभाव था। दादाजी कोंडदेव ने अपने शिष्य शिवाजी के मन में बचपन से ही साहस और पराक्रम के उदात्त भाव के साथ-साथ [[प्राचीन भारत]] के महान [[हिन्दू]] वीरों के प्रति श्रद्धा की भावना भरी थी। कोंडदेव ने [[गाय|गायों]] और ब्राह्मणों को पूज्य बताया था।
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==बारामती के हवलदार==
दादाजी कोंडदेव का जन्म [[महाराष्ट्र]] के 'डाउंड' गाँव में हुआ था। सौभाग्यवश शिवाजी के दादा मालोजी राजे भोसले उसी गाँव के पाटिल थे। उन्होंने युवा दादाजी कोंडदेव की ईमानदारी और बुद्धिमत्ता को पहचाना और उन्हें बारामती क्षेत्र का हवलदार नियुक्त कर दिया, जो हाल ही में मालोजी के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में शामिल किया गया था।
====शिवाजी के गुरु====
====शिवाजी के गुरु====
दादाजी कोंडदेव का जन्म [[महाराष्ट्र]] के 'डाउंड' गाँव में हुआ था। सौभाग्यवश शिवाजी के दादा मालोजी राजे भोसले उसी गाँव के पाटिल थे। उन्होंने युवा दादाजी कोंडदेव की ईमानदारी और बुद्धिमत्ता को पहचाना और उन्हें बारामती क्षेत्र का हवलदार नियुक्त कर दिया, जो हाल ही में मालोजी के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में शामिल किया गया था। इस समय शिवाजी की उम्र आठ वर्ष थी, और वे अपने [[पिता]] से [[संस्कृत]] और युद्ध कला के प्रारंभिक गुर सीख चुके थे। दादोजी कोंडदेव ने 1636 ई. से लेकर 1646 ई. तक शिवाजी की शिक्षा और उनकी युद्ध कला को तराशने का कार्य किया। इस दौरान उन्होंने व्यक्तिगत रूप से [[शिवाजी]] को युद्ध कौशल और युद्ध नीति के अनेक गुर सिखाए और इसके अलावा अन्य योग्य शिक्षकों की भी नियुक्ति की, जिनसे उन्होंने तलवारबाजी और घुड़सवारी के गुर सीखे।
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====निधन====
==निधन==
कोंडदेव की दी हुई शिक्षाओं से ही प्रेरित होकर शिवाजी ने [[भारत]] में स्वराज्य स्थापित करने का संकल्प किया। दादाजी खोंडदेव ने शिवाजी के छोटे-से राज्य का शासन सुव्यवस्थित करके उसकी भावी राजस्व प्रणाली की आधारशिला रखी थी। 1647 ई. में दादाजी कोंडदेव की मृत्यु हो गई। उस समय उनकी उम्र 72 साल थी।
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05:33, 5 मई 2014 का अवतरण

दादाजी कोंडदेव अथवा 'खोंडदेव' मराठा ब्राह्मण और प्रसिद्ध महान मराठा नेता छत्रपति शिवाजी (1627-1680 ई.) के गुरु और अभिभावक थे। प्रारम्भ से ही वीर शिवाजी पर इनका गहरा प्रभाव था। दादाजी कोंडदेव ने अपने शिष्य शिवाजी के मन में बचपन से ही साहस और पराक्रम के उदात्त भाव के साथ-साथ प्राचीन भारत के महान हिन्दू वीरों के प्रति श्रद्धा की भावना भरी थी। कोंडदेव ने गायों और ब्राह्मणों को पूज्य बताया था।

बारामती के हवलदार

दादाजी कोंडदेव का जन्म महाराष्ट्र के 'डाउंड' गाँव में हुआ था। सौभाग्यवश शिवाजी के दादा मालोजी राजे भोसले उसी गाँव के पाटिल थे। उन्होंने युवा दादाजी कोंडदेव की ईमानदारी और बुद्धिमत्ता को पहचाना और उन्हें बारामती क्षेत्र का हवलदार नियुक्त कर दिया, जो हाल ही में मालोजी के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में शामिल किया गया था।

शिवाजी के गुरु

इस समय शिवाजी की उम्र आठ वर्ष थी, और वे अपने पिता से संस्कृत और युद्ध कला के प्रारंभिक गुर सीख चुके थे। दादोजी कोंडदेव ने 1636 ई. से लेकर 1646 ई. तक शिवाजी की शिक्षा और उनकी युद्ध कला को तराशने का कार्य किया। इस दौरान उन्होंने व्यक्तिगत रूप से शिवाजी को युद्ध कौशल और युद्ध नीति के अनेक गुर सिखाए और इसके अलावा अन्य योग्य शिक्षकों की भी नियुक्ति की, जिनसे उन्होंने तलवारबाजी और घुड़सवारी के गुर सीखे।

निधन

कोंडदेव की दी हुई शिक्षाओं से ही प्रेरित होकर शिवाजी ने भारत में स्वराज्य स्थापित करने का संकल्प किया। दादाजी खोंडदेव ने शिवाजी के छोटे-से राज्य का शासन सुव्यवस्थित करके उसकी भावी राजस्व प्रणाली की आधारशिला रखी थी। 1647 ई. में दादाजी कोंडदेव की मृत्यु हो गई। उस समय उनकी उम्र 72 वर्ष थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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