"रत्नकोश": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
छो (Text replace - "{{वैशेषिक दर्शन}}" to "==सम्बंधित लिंक== {{वैशेषिक दर्शन2}} {{वैशेषिक दर्शन}}") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "==टीका टिप्पणी==" to "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==") |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
*हरिराम तर्कवागीश ने तो रत्नकोश विचार नाम का एक स्वतन्त्र ग्रन्थ भी लिखा है। | *हरिराम तर्कवागीश ने तो रत्नकोश विचार नाम का एक स्वतन्त्र ग्रन्थ भी लिखा है। | ||
*इस प्रकार मूलरूप में उपलब्ध न होने पर भी प्राय: इस ग्रन्थ की चर्चा की जाती है और इसके उद्धरणों का समादरपूर्वक उल्लेख किया जाता है। | *इस प्रकार मूलरूप में उपलब्ध न होने पर भी प्राय: इस ग्रन्थ की चर्चा की जाती है और इसके उद्धरणों का समादरपूर्वक उल्लेख किया जाता है। | ||
==टीका टिप्पणी== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==अन्य लिंक== | ==अन्य लिंक== |
15:08, 15 जून 2010 का अवतरण
तरणिमिश्र विरचित रत्नकोश
- रत्नकोश नामक ग्रन्थ भी अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है।
- इसके लेखक का भी कोई विवरण उपलब्ध नहीं होता, किन्तु कतिपय संदर्भों और आलोचना-प्रसंगों में जैसे कि रुचिदत्त मिश्र ने तत्त्व चिन्तामणि प्रकाश में तथा गदाधर ने शक्तिवाद में रत्नकोशकार का नाम तरणि मिश्र बताया है।
- प्राचीन न्याय-वैशेषिक के अनेक आचार्यों ने इसके अनेक सिद्धान्तों का खण्डन-मण्डन किया है, जिससे यह सिद्ध होता है कि रत्नकोश एक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ था।[1]
- मणिकण्ठ मिश्र (1200 ई.) ने न्यायरत्न में, गंगेशोपाध्याय (1300 ई.) ने तत्त्वचिन्तामणि में तथा द्वितीयवाचस्पति मिश्र (1450) ने तत्त्वालोक में रत्नकोश का उल्लेख किया है।
- हरिराम तर्कवागीश ने तो रत्नकोश विचार नाम का एक स्वतन्त्र ग्रन्थ भी लिखा है।
- इस प्रकार मूलरूप में उपलब्ध न होने पर भी प्राय: इस ग्रन्थ की चर्चा की जाती है और इसके उद्धरणों का समादरपूर्वक उल्लेख किया जाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीनिवास शास्त्री प्रशस्तपाद भाष्य हिन्दी अनुवाद, पृ. 8
अन्य लिंक
सम्बंधित लिंक