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'''मैत्रक वंश''' [[भारत का इतिहास|भारतीय इतिहास]] में प्रसिद्ध शासनकर्ता राजवंशों में से एक। पांचवीं से आठवीं [[शताब्दी]] तक [[गुजरात]] और [[सौराष्ट्र]] (काठियावाड) में इसका शासन था। मैत्रक शासक धार्मिक संस्थानों के | '''मैत्रक वंश''' [[भारत का इतिहास|भारतीय इतिहास]] में प्रसिद्ध शासनकर्ता राजवंशों में से एक। पांचवीं से आठवीं [[शताब्दी]] तक [[गुजरात]] और [[सौराष्ट्र]] (काठियावाड) में इसका शासन था। मैत्रक शासक धार्मिक संस्थानों के महान् संरक्षक थे। उनका राज्य [[बौद्ध धर्म]] का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारत ज्ञानकोश, खण्ड-4|लेखक=इंदु रामचंदानी|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=437|url=}}</ref> | ||
*इस वंश का संस्थापक भट्टारक एक सेनापति था, जिसने [[गुप्त वंश]] के पतन का लाभ उठाकर स्वयं को गुजरात और सौराष्ट्र का शासक घोषित कर दिया और [[बल्लभीपुर गुजरात|वल्लभी]]<ref>आधुनिक 'वल'</ref> को अपनी राजधानी बनाया। | *इस वंश का संस्थापक भट्टारक एक सेनापति था, जिसने [[गुप्त वंश]] के पतन का लाभ उठाकर स्वयं को गुजरात और सौराष्ट्र का शासक घोषित कर दिया और [[बल्लभीपुर गुजरात|वल्लभी]]<ref>आधुनिक 'वल'</ref> को अपनी राजधानी बनाया। | ||
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*मैत्रक वंश का शासन [[मालवा]] ([[मध्य प्रदेश]]) और [[राजस्थान]] में भी फैल गया था, लेकिन बाद में मैत्रकों को [[दक्कन सल्तनत|दक्कन]] के [[चालुक्य वंश|चालुक्यों]] और [[कन्नौज]] के शासक [[हर्षवर्धन|हर्ष]] से पराजित होना पड़ा। | *मैत्रक वंश का शासन [[मालवा]] ([[मध्य प्रदेश]]) और [[राजस्थान]] में भी फैल गया था, लेकिन बाद में मैत्रकों को [[दक्कन सल्तनत|दक्कन]] के [[चालुक्य वंश|चालुक्यों]] और [[कन्नौज]] के शासक [[हर्षवर्धन|हर्ष]] से पराजित होना पड़ा। | ||
*हर्ष की मृत्यु के बाद मैत्रक फिर से उठ खड़े हुए, लेकिन 712 से [[सिंध]] में स्थापित हो चुके [[अरब|अरबों]] ने अंतिम मैत्रक राजा शिलादित्य चतुर्थ को मार डाला और 780 में उनकी राजधानी को ध्वस्त कर दिया। | *हर्ष की मृत्यु के बाद मैत्रक फिर से उठ खड़े हुए, लेकिन 712 से [[सिंध]] में स्थापित हो चुके [[अरब|अरबों]] ने अंतिम मैत्रक राजा शिलादित्य चतुर्थ को मार डाला और 780 में उनकी राजधानी को ध्वस्त कर दिया। | ||
*भट्टारक और उसके उत्तराधिकारी धार्मिक संस्थानों के | *भट्टारक और उसके उत्तराधिकारी धार्मिक संस्थानों के महान् संरक्षक थे। उनका राज्य [[बौद्ध धर्म]] का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था और परंपरागत रूप से माना जाता है कि पांचवीं [[शताब्दी]] में [[वल्लभी]] में ही [[श्वेताम्बर|श्वेतांबर जैन]] नियमावली सूत्रबद्ध की गई। | ||
11:15, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
मैत्रक वंश भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध शासनकर्ता राजवंशों में से एक। पांचवीं से आठवीं शताब्दी तक गुजरात और सौराष्ट्र (काठियावाड) में इसका शासन था। मैत्रक शासक धार्मिक संस्थानों के महान् संरक्षक थे। उनका राज्य बौद्ध धर्म का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था।[1]
- इस वंश का संस्थापक भट्टारक एक सेनापति था, जिसने गुप्त वंश के पतन का लाभ उठाकर स्वयं को गुजरात और सौराष्ट्र का शासक घोषित कर दिया और वल्लभी[2] को अपनी राजधानी बनाया।
- हालांकि आरंभिक मैत्रक राजा तकनीकी रूप से गुप्त शासकों के सामंत थे; लेकिन वास्तव में वे स्वतंत्र थे।
- शक्तिशाली शिलादित्य प्रथम (लगभग छठी शताब्दी) के शासन काल में यह वंश बहुत प्रभावशाली हो गया था।
- मैत्रक वंश का शासन मालवा (मध्य प्रदेश) और राजस्थान में भी फैल गया था, लेकिन बाद में मैत्रकों को दक्कन के चालुक्यों और कन्नौज के शासक हर्ष से पराजित होना पड़ा।
- हर्ष की मृत्यु के बाद मैत्रक फिर से उठ खड़े हुए, लेकिन 712 से सिंध में स्थापित हो चुके अरबों ने अंतिम मैत्रक राजा शिलादित्य चतुर्थ को मार डाला और 780 में उनकी राजधानी को ध्वस्त कर दिया।
- भट्टारक और उसके उत्तराधिकारी धार्मिक संस्थानों के महान् संरक्षक थे। उनका राज्य बौद्ध धर्म का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था और परंपरागत रूप से माना जाता है कि पांचवीं शताब्दी में वल्लभी में ही श्वेतांबर जैन नियमावली सूत्रबद्ध की गई।
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