"लाज न आवत दास कहावत -तुलसीदास": अवतरणों में अंतर
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सो आचरन-बिसारि सोच तजि जो हरि तुम कहँ भावत॥1॥ | सो आचरन-बिसारि सोच तजि जो हरि तुम कहँ भावत॥1॥ | ||
सकल संग तजि भजत जाहि मुनि, जप तप जाग बनावत। | सकल संग तजि भजत जाहि मुनि, जप तप जाग बनावत। | ||
मो सम मंद महाखल पाँवर, कौन जतन तेहि | मो सम मंद महाखल पाँवर, कौन जतन तेहि पावत॥2॥ | ||
हरि निरमल, मल ग्रसित ह्रदय, असंजस मोहि जनावत। | हरि निरमल, मल ग्रसित ह्रदय, असंजस मोहि जनावत। | ||
जेहि सर काक बंक बक-सूकर, क्यों मराल तहँ आवत॥३॥ | जेहि सर काक बंक बक-सूकर, क्यों मराल तहँ आवत॥३॥ |
10:04, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण
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लाज न आवत दास कहावत। |
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