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*दक्षिण के प्रथम चेर शासक [[उदियनजेरल]] (लगभग 130 ई.) के पुत्र [[नेदुनजेरल आदन]], तथा इसके दूसरे पुत्र शेनगुट्टुवन (लगभग 180 ई.) द्वारा 'पत्तिनी' (पत्नी) पूजा अर्थात् एक आदर्श तथा पवित्र पत्तिनी को देवी रूप में मूर्ति बनाकर पूजे जाने का विशेष महत्त्व वर्णित है। | *दक्षिण के प्रथम चेर शासक [[उदियनजेरल]] (लगभग 130 ई.) के पुत्र [[नेदुनजेरल आदन]], तथा इसके दूसरे पुत्र शेनगुट्टुवन (लगभग 180 ई.) द्वारा 'पत्तिनी' (पत्नी) पूजा अर्थात् एक आदर्श तथा पवित्र पत्तिनी को देवी रूप में मूर्ति बनाकर पूजे जाने का विशेष महत्त्व वर्णित है। | ||
*‘पत्तिनी पूजा’ के लिए पत्थर किसी [[आर्य]] शासक से युद्ध के बाद प्राप्त किया गया और उसे [[गंगा]] में [[स्नान]] कराकर चेर देश में लाया गया। | *‘पत्तिनी पूजा’ के लिए पत्थर किसी [[आर्य]] शासक से युद्ध के बाद प्राप्त किया गया और उसे [[गंगा]] में [[स्नान]] कराकर चेर देश में लाया गया। | ||
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11:28, 27 मार्च 2015 के समय का अवतरण
शेनगुट्टुवन चेर वंश के शासक नेदुनजेरल आदन का पुत्र था।
- दक्षिण के प्रथम चेर शासक उदियनजेरल (लगभग 130 ई.) के पुत्र नेदुनजेरल आदन, तथा इसके दूसरे पुत्र शेनगुट्टुवन (लगभग 180 ई.) द्वारा 'पत्तिनी' (पत्नी) पूजा अर्थात् एक आदर्श तथा पवित्र पत्तिनी को देवी रूप में मूर्ति बनाकर पूजे जाने का विशेष महत्त्व वर्णित है।
- ‘पत्तिनी पूजा’ के लिए पत्थर किसी आर्य शासक से युद्ध के बाद प्राप्त किया गया और उसे गंगा में स्नान कराकर चेर देश में लाया गया।
- शेनगुट्टुवन ने पत्तिनी के संगठन का नेतृत्व अपने हाथ में लिया तथा इस प्रयास में पाण्ड्य एवं चोल देशों का तथा श्रीलंका के समसामयिक शासकों का समर्थन उसे मिला।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गौरवशाली भारतीय वीरांगनाएँ कण्णगी (कन्नगि, कन्नकि) (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 मार्च, 2015।