"भानगढ़": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) (पन्ने को खाली किया) |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) (गोविन्द राम (वार्ता) द्वारा किए बदलाव 525922 को पूर्ववत करें) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय | |||
|चित्र=Bhangarh-Temple.jpg | |||
|चित्र का नाम=भानगढ़ स्थित मंदिर | |||
|विवरण='भानगढ़' [[राजस्थान]] के ऐतिहासिक तथा प्रसिद्ध पर्यटनों स्थलों में से एक है। किसी समय यह स्थान [[राजपूत|राजपूती]] शानो-शौकत का प्रतीक हुआ करता था, किन्तु अब यह खंडहर अवस्था है। | |||
|शीर्षक 1=राज्य | |||
|पाठ 1=[[राजस्थान]] | |||
|शीर्षक 2=स्थिति | |||
|पाठ 2=[[जयपुर]]-[[आगरा]] मार्ग पर 55 कि.मी. की दूरी पर [[दौसा ज़िला|दौसा ज़िले]] से उत्तर की ओर। | |||
|शीर्षक 3=स्थापना | |||
|पाठ 3=1573 ई. | |||
|शीर्षक 4=स्थापक | |||
|पाठ 4=[[भगवानदास|राजा भगवानदास]] | |||
|शीर्षक 5= | |||
|पाठ 5= | |||
|शीर्षक 6= | |||
|पाठ 6= | |||
|शीर्षक 7= | |||
|पाठ 7= | |||
|शीर्षक 8= | |||
|पाठ 8= | |||
|शीर्षक 9= | |||
|पाठ 9= | |||
|शीर्षक 10= | |||
|पाठ 10= | |||
|संबंधित लेख=[[राजस्थान]], [[राजस्थान का इतिहास]], [[कछवाहा राजवंश]], [[आमेर]] | |||
|अन्य जानकारी=स्थानीय लोगों में अब भी यही धारणा चली आ रही है कि भानगढ़ एक शापित स्थान है, लेकिन यह एक शानदार स्थल है, जो पर्यटन की दृष्टि से बेहद खूबसूरत है और इसे अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के तौर पर बढ़ावा दिया जा सकता है। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''भानगढ़''' [[राजस्थान]] के [[अलवर ज़िला|अलवर ज़िले]] में '[[सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान]]' के पास स्थित एक पूरा का पूरा [[खंडहर]] शहर है। भानगढ़ के क़िले को [[आमेर]] के राजा [[भगवानदास]] ने 1573 ई. में बनवाया था। किसी समय यह स्थान [[राजपूत]] आन, बान और शान का प्रतीक हुआ करता था। कहने को यहाँ बाज़ार, गलियाँ, हवेलियाँ, महल, [[कुआँ|कुएँ]] और [[बावड़ी|बावड़िया]] तथा बाग़-बगीचे आदि सब कुछ हैं, लेकिन सब के सब खंडहर हैं। जैसे एक ही रात में सब कुछ उजड़ गया हो। पूरे शहर में एक भी घर या हवेली ऐसी नहीं है, जिस पर छत हो, लेकिन मंदिरों के शिखर आत्ममुग्ध खड़े दिखाई देते हैं। हर दीवार में पड़ी दरारें अतीत के भयावह पंजों से खंरोची हुई लगती हैं। विनाश के इन्हीं चिन्हों ने सदियों से यहाँ की हवाओं में एक अफवाह घोल रखी है कि यह स्थान शापित है और यहाँ भूत-पिशाचों का वास है। | |||
==स्थिति== | |||
[[जयपुर]]-[[आगरा]] मार्ग पर 55 कि.मी. की दूरी पर [[दौसा ज़िला|दौसा ज़िले]] से उत्तर की ओर एक सड़क भानगढ़ की ओर जाती है। लगभग 25 कि.मी. के सफर के बाद इस रास्ते पर 'गोला का बास' से पश्चिम की ओर कुछ कि.मी. एक सड़क भानगढ़ की ओर जाती है।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.pinkcity.com/hi/jaipur-travel/the-bhangarh-castle/|title= भानगढ़, खूबसूरत वर्तमान, रहस्यमयी अतीत|accessmonthday= 12 अक्टूबर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=पिंकसिटी.कॉम |language= हिन्दी}}</ref> | |||
==इतिहास== | |||
भानगढ़ का महल [[आमेर]] के राजा [[भगवानदास]] ने 1573 ई. में बनवाया था। भगवानदास ने पूरी नगर योजना के साथ इस शहर का निर्माण कराया था। बाद में 1605 ई. तक [[माधोसिंह]] ने यहाँ आकर अपना राज जमाया और भानगढ़ को राजधानी बना लिया। [[मानसिंह|राजा मानसिंह]] के भाई माधोसिंह [[अकबर]] के दरबार में [[दीवान]] के ओहदे पर थे। माधोसिंह के तीन पुत्र थे- तेजसिंह, [[छत्रसिंह]] और सुजानसिंह। माधोसिंह के बाद छत्रसिंह भानगढ़ के शासक बने। सन 1630 ई. में एक युद्ध के दौरान युद्ध मैदान में ही छत्रसिंह की मृत्यू हो गई। शासकहीन भानगढ़ की रौनक घटने लगी। तत्पश्चात छत्रसिंह के पुत्र अजबसिंह ने भानगढ़ के पास ही नया नगर बसाया और वहीं रहने लगा। यह नगर अजबगढ़ था। लेकिन अजबसिंह का पुत्र हरिसिंह भानगढ़ में ही रहा। [[मुग़ल|मुग़लों]] के बढ़ते प्रभाव के चलते संरक्षण के लिए हरिसिंह के दो बेटे [[औरंगज़ेब]] के समय [[मुसलमान]] बन गए और भानगढ़ पर राज करने लगे। आमेर के [[कछवाहा वंश|कछवाहा]] शासकों को यह गवारा नहीं था। मुग़लों के कमज़ोर पड़ने पर [[सवाई जयसिंह]] ने सन 1720 ई. में इन्हें मारकर भानगढ़ पर क़ब्ज़ा कर लिया और भानगढ़ को अपनी रियासत में मिला लिया। लेकिन इलाके में पानी की कमी के चलते यह शहर आबाद नहीं रह सका और 1783 ई. के [[अकाल]] ने महल को पूरी तरह उजाड़ दिया। साथ ही वक्त की मार ने इसकी शक्ल भूतहा कर दी। | |||
==किंवदंतियाँ== | |||
भानगढ़ को भूतहा रूपाकार देने में वक्त के साथ-साथ इस महल से जुड़ी किंवदंतियाँ और लोक कथाएँ भी हैं। स्थानीय क्षेत्रवासी और आस-पास के इलाके के लोग अपने बुजुर्गों द्वारा बताए गए सच्चे-झूठे अनुभवों को सत्य कथाओं की तरह प्रचारित करते हैं। इससे लोगों में डर के साथ-साथ भानगढ़ के लिए आकर्षण भी पैदा होता है। इन किंवदंतियों को स्थानीय लोगों ने इतना पुख्ता कर दिया है कि [[राजस्थान]] में "भूतों का भानगढ़" नाम से एक राजस्थानी फ़िल्म का प्रदर्शन भी हो चुका है।<ref name="aa"/> | |||
====तंत्रिक का शाप==== | |||
एक किंवदंति के अनुसार [[अरावली]] की पहाडि़यों में सिंघिया नाम का तांत्रिक अपने तंत्र-[[मंत्र]] और टोटकों के लिए जाना जाता था। कहते हैं कि वह मन ही मन भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती को चाहने लगा और राजकुमारी को प्राप्त करने की कोशिशें करने लगा। राजकुमारी को पाने के लिए उसने सिर में लगाने वाले तेल को अभिमंत्रित कर दिया। कहा जाता है कि रत्नावली भी तंत्र-मंत्र और टोटके करना जानती थी। उसने अपनी शक्ति से तेल के टोटके को पहचान लिया और तेल एक बड़ी शिला पर डाल दिया। शिला तांत्रिक की ओर उड़ चली। चट्टान को अपनी ओर आते देख तांत्रिक बौखला गया।[[चित्र:Bhangarh.jpg|left|thumb|250px|भानगढ़ के [[अवशेष]]]] उसने शिला से कुचलकर मरने से पहले एक और तंत्र किया और शिला को समूचे भानगढ़ को बर्बाद करने का आदेश दिया। चट्टान ने रातों रात भानगढ़ के महल, बाज़ारों और घरों को [[खंडहर]] में तब्दील कर दिया। लेकिन मंदिरों और धार्मिक स्थानों पर तांत्रिक का तंत्र नहीं चला और मंदिरों के शिखर ध्वस्त होने से बच गए। | |||
आस-पास के लोग अब भी यही मानते हैं कि रत्नावती और तांत्रिक के आपसी टकराव के कारण रातों रात हुई मौतों के कारण यह जगह शापित हो गई और आज भी यहाँ उन लोगों की [[आत्मा|आत्माएँ]] विचरण करती हैं। इस किंवदंति ने स्थानीय तांत्रिकों को भी यहाँ तंत्र-कर्म करने के लिए उकसाया और [[भारतीय पुरातत्त्व विभाग|पुरातत्त्व विभाग]] के संरक्षण से पूर्व यहाँ महल के अंदर तांत्रिक क्रियाएं होने के प्रमाण भी मिलते हैं। | |||
==प्रवेश== | |||
[[चित्र:Bhangarh-Fort-Entry.jpg|thumb|250px|भानगढ़ क़िले का प्रवेश द्वार]] | |||
[[अरावली]] की पहाडि़यों से घिरे भानगढ़ में प्रवेश का मार्ग पूर्व में हनुमान गेट से है। यह प्रवेश द्वार शहर की क़िलेबंदी के लिए निर्मित की गई प्राचीर का प्रमुख दरवाज़ा है। उत्तर से दक्षिण की ओर फैली इस प्राचीर में कुल पांच दरवाज़े हैं, जिन्हें 'दिल्ली गेट', 'फुलवारी गेट', 'हनुमान गेट', 'अजमेरी गेट' और 'लाहौरी गेट' के नाम से जाना जाता है। भानगढ़ में मुख्य प्रवेश हनुमान गेट से होता है। गेट के दोनों ओर यहाँ चौकीदारी की बैरकनुमा कोठरियाँ हैं। गेट के दाहिनी ओर [[हनुमान|हनुमानजी]] का प्राचीन मंदिर और तिबारियाँ है। सामने एक पत्थर की सड़क जौहरी बाज़ार से होती हुई महल के परिसर के द्वार तक जाती है। हनुमान गेट के पास ही [[भारतीय पुरातत्त्व विभाग|पुरातत्त्व विभाग]] की ओर से महल परिसर और कस्बे के नक्शे का शैलपट्ट लगाया हुआ है। पट्ट पर कस्बे और महल परिसर में स्थित सभी मुख्य स्थानों का विवरण दिया गया है।<ref name="aa"/> | |||
==शानदार पर्यटन स्थल== | |||
स्थानीय लोगों में अब भी यही धारणा चली आ रही है कि भानगढ़ एक शापित स्थान है, लेकिन यह एक शानदार स्थल है, जो पर्यटन की दृष्टि से बेहद खूबसूरत है और इसे अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के तौर पर बढ़ावा दिया जा सकता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से [[अरावली पर्वत श्रेणी|अरावली]] की गोद में सोया यह शहर महत्वपूर्ण है ही, साथ ही फ़ोटोग्राफ़ी के शौकीन लोगों के लिए भी यहाँ के [[खंडहर]] और प्राकृतिक वातावरण बेमिसाल हैं। '[[भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग]]' ने अपने अधीन लेकर महल और इसके अवशेषों का संरक्षण किया है। वर्तमान में भानगढ़ पर्यटन का खूबसूरत केंद्र बन चुका है। | |||
====हवेलियाँ और अवशेष==== | |||
[[चित्र:Bhangarh-2.jpg|thumb|250px|भानगढ़ क़िले के अवशेष]] | |||
तीन ओर प्राचीर से घिरे इस कस्बे में जगह-जगह हवेलियाँ और [[अवशेष]] दिखाई देते हैं। हनुमान गेट से प्रवेश करने के बाद बायें हाथ से पहाड़ी की ओर एक ठोस रास्ता महल तक जाता है, जिसके दोनों ओर दो मंजिला बिना छत वाली दुकानें हैं। इस बाज़ार को "जौहरी बाज़ार" का नाम दिया गया है। दुकानों के साथ मकानों के भी अवशेष हैं, जो सोलहवीं सदी की नागर शैली में बने दिखाई पड़ते हैं। जौहरी बाज़ार के ही दाहिनी तरफ़ मोड़ों की हवेली, हनुमान मंदिर, तिबारियाँ और पहाड़ी पर निगरानी टॉवर नजर आती है। जबकि बायें हाथ की ओर अजमेरी गेट, लाहौरी गेट, मंगला माता मंदिर, केशोराय मंदिर, पुरोहितजी की हवेली आदि दिखाई पड़ते हैं। | |||
जौहरी बाज़ार पार करने के बाद एक पहाड़ी नाला गुजरता है, जिसके दोनो ओर घनी वृक्षावली है। यहाँ के वृक्ष भी रहस्यमयी ढंग से बल खाए और तुड़े-मुड़े नजर आते हैं। नाले से आगे चलने पर महल परिसर का त्रिपोलिया गेट आता है, जिसके भीतर दूर महल तक ऊंचे-नीचे ढलानों पर शानदार बाग़ और मंदिर, हवेलियाँ, कुंड आदि नजर आते हैं। त्रिपोलिया गेट से अंदर दाहिने हाथ की ओर एक ऊंचे चौरस स्थल पर गोपीनाथजी का मंदिर है। पास ही सामंतों की बड़ी हवेलियाँ भी हैं। महल तक की पगडंडी के बायें हाथ की ओर सोमेश्वर मंदिर और दो कुंड हैं, जहां वर्षभर पहाड़ों से जलधारा आकर मिलती है। महल के मुख्यद्वार से [[अंग्रेज़ी]] के ज़ेड आकार का रास्ता महल के अहाते में जाता है। मुख्यद्वार के बायें हाथ की ओर केवड़ा बाग़ है। कहा जाता है यह महल सात मंजिला था, लेकिन वर्तमान में इसकी तीन मंजिलें ही अस्तित्व मे हैं और छत पर बने भवन और परिसर भी खंडित हैं, जबकि महल के निचले बरामदों और कक्षों में अब भी चमगादड़ों का राज है।<ref name="aa"/> | |||
किंवदंतियाँ, किस्से, [[कहानी|कहानियाँ]] आदि अपने स्थान पर हैं। भानगढ़ को उसकी किस्मत ने उजाड़ बनाया, लेकिन भानगढ़ अपने आप में सोलहवीं सदी में [[इतिहास]] की हलचल और उथल-पुथल को समेटे हुए है। [[भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग|पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग]] इसके अतीत को जानने और निष्कर्ष निकालने पर कार्य कर रहा है। यहाँ भानगढ़ में पर्यटन विभाग या पुरातत्त्व विभाग का कोई कार्यालय नहीं है, लेकिन यहाँ रह रहे चौकीदारों का कहना है कि हम रात-दिन यहीं रहते हैं। हमें ऐसा कोई अनुभव नहीं हुआ है, जिससे यह लगे कि भानगढ़ में किसी प्रकार का डर है। उन्होंने माना कि यहाँ जंगली जानवरों का डर है, इसलिए रात्रि के समय वे पहरे पर कम ही निकलते हैं। सरकार ने भी डर जैसी चीज सिरे से खारिज की है। | |||
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
==वीथिका== | |||
<gallery> | |||
चित्र:Bhangarh-1.jpg|भानगढ़ के [[खंडहर]] | |||
चित्र:Bhangarh-3.jpg|भानगढ़ के अवशेष | |||
चित्र:Bhangarh-Temple-1.jpg|भानगढ़ स्थित एक मंदिर | |||
चित्र:Remainings-of-Bhangarh-Palace.jpg|भानगढ़ महल के [[अवशेष]] | |||
</gallery> | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{राजस्थान के ऐतिहासिक स्थान}}{{राजस्थान के पर्यटन स्थल}} | |||
[[Category:राजस्थान]][[Category:राजस्थान के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:राजस्थान के पर्यटन स्थल]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:इतिहास कोश]] | |||
__INDEX__ | |||
__NOTOC__ |
09:38, 6 अप्रैल 2015 का अवतरण
भानगढ़
| |
विवरण | 'भानगढ़' राजस्थान के ऐतिहासिक तथा प्रसिद्ध पर्यटनों स्थलों में से एक है। किसी समय यह स्थान राजपूती शानो-शौकत का प्रतीक हुआ करता था, किन्तु अब यह खंडहर अवस्था है। |
राज्य | राजस्थान |
स्थिति | जयपुर-आगरा मार्ग पर 55 कि.मी. की दूरी पर दौसा ज़िले से उत्तर की ओर। |
स्थापना | 1573 ई. |
स्थापक | राजा भगवानदास |
संबंधित लेख | राजस्थान, राजस्थान का इतिहास, कछवाहा राजवंश, आमेर |
अन्य जानकारी | स्थानीय लोगों में अब भी यही धारणा चली आ रही है कि भानगढ़ एक शापित स्थान है, लेकिन यह एक शानदार स्थल है, जो पर्यटन की दृष्टि से बेहद खूबसूरत है और इसे अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के तौर पर बढ़ावा दिया जा सकता है। |
भानगढ़ राजस्थान के अलवर ज़िले में 'सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान' के पास स्थित एक पूरा का पूरा खंडहर शहर है। भानगढ़ के क़िले को आमेर के राजा भगवानदास ने 1573 ई. में बनवाया था। किसी समय यह स्थान राजपूत आन, बान और शान का प्रतीक हुआ करता था। कहने को यहाँ बाज़ार, गलियाँ, हवेलियाँ, महल, कुएँ और बावड़िया तथा बाग़-बगीचे आदि सब कुछ हैं, लेकिन सब के सब खंडहर हैं। जैसे एक ही रात में सब कुछ उजड़ गया हो। पूरे शहर में एक भी घर या हवेली ऐसी नहीं है, जिस पर छत हो, लेकिन मंदिरों के शिखर आत्ममुग्ध खड़े दिखाई देते हैं। हर दीवार में पड़ी दरारें अतीत के भयावह पंजों से खंरोची हुई लगती हैं। विनाश के इन्हीं चिन्हों ने सदियों से यहाँ की हवाओं में एक अफवाह घोल रखी है कि यह स्थान शापित है और यहाँ भूत-पिशाचों का वास है।
स्थिति
जयपुर-आगरा मार्ग पर 55 कि.मी. की दूरी पर दौसा ज़िले से उत्तर की ओर एक सड़क भानगढ़ की ओर जाती है। लगभग 25 कि.मी. के सफर के बाद इस रास्ते पर 'गोला का बास' से पश्चिम की ओर कुछ कि.मी. एक सड़क भानगढ़ की ओर जाती है।[1]
इतिहास
भानगढ़ का महल आमेर के राजा भगवानदास ने 1573 ई. में बनवाया था। भगवानदास ने पूरी नगर योजना के साथ इस शहर का निर्माण कराया था। बाद में 1605 ई. तक माधोसिंह ने यहाँ आकर अपना राज जमाया और भानगढ़ को राजधानी बना लिया। राजा मानसिंह के भाई माधोसिंह अकबर के दरबार में दीवान के ओहदे पर थे। माधोसिंह के तीन पुत्र थे- तेजसिंह, छत्रसिंह और सुजानसिंह। माधोसिंह के बाद छत्रसिंह भानगढ़ के शासक बने। सन 1630 ई. में एक युद्ध के दौरान युद्ध मैदान में ही छत्रसिंह की मृत्यू हो गई। शासकहीन भानगढ़ की रौनक घटने लगी। तत्पश्चात छत्रसिंह के पुत्र अजबसिंह ने भानगढ़ के पास ही नया नगर बसाया और वहीं रहने लगा। यह नगर अजबगढ़ था। लेकिन अजबसिंह का पुत्र हरिसिंह भानगढ़ में ही रहा। मुग़लों के बढ़ते प्रभाव के चलते संरक्षण के लिए हरिसिंह के दो बेटे औरंगज़ेब के समय मुसलमान बन गए और भानगढ़ पर राज करने लगे। आमेर के कछवाहा शासकों को यह गवारा नहीं था। मुग़लों के कमज़ोर पड़ने पर सवाई जयसिंह ने सन 1720 ई. में इन्हें मारकर भानगढ़ पर क़ब्ज़ा कर लिया और भानगढ़ को अपनी रियासत में मिला लिया। लेकिन इलाके में पानी की कमी के चलते यह शहर आबाद नहीं रह सका और 1783 ई. के अकाल ने महल को पूरी तरह उजाड़ दिया। साथ ही वक्त की मार ने इसकी शक्ल भूतहा कर दी।
किंवदंतियाँ
भानगढ़ को भूतहा रूपाकार देने में वक्त के साथ-साथ इस महल से जुड़ी किंवदंतियाँ और लोक कथाएँ भी हैं। स्थानीय क्षेत्रवासी और आस-पास के इलाके के लोग अपने बुजुर्गों द्वारा बताए गए सच्चे-झूठे अनुभवों को सत्य कथाओं की तरह प्रचारित करते हैं। इससे लोगों में डर के साथ-साथ भानगढ़ के लिए आकर्षण भी पैदा होता है। इन किंवदंतियों को स्थानीय लोगों ने इतना पुख्ता कर दिया है कि राजस्थान में "भूतों का भानगढ़" नाम से एक राजस्थानी फ़िल्म का प्रदर्शन भी हो चुका है।[1]
तंत्रिक का शाप
एक किंवदंति के अनुसार अरावली की पहाडि़यों में सिंघिया नाम का तांत्रिक अपने तंत्र-मंत्र और टोटकों के लिए जाना जाता था। कहते हैं कि वह मन ही मन भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती को चाहने लगा और राजकुमारी को प्राप्त करने की कोशिशें करने लगा। राजकुमारी को पाने के लिए उसने सिर में लगाने वाले तेल को अभिमंत्रित कर दिया। कहा जाता है कि रत्नावली भी तंत्र-मंत्र और टोटके करना जानती थी। उसने अपनी शक्ति से तेल के टोटके को पहचान लिया और तेल एक बड़ी शिला पर डाल दिया। शिला तांत्रिक की ओर उड़ चली। चट्टान को अपनी ओर आते देख तांत्रिक बौखला गया।
उसने शिला से कुचलकर मरने से पहले एक और तंत्र किया और शिला को समूचे भानगढ़ को बर्बाद करने का आदेश दिया। चट्टान ने रातों रात भानगढ़ के महल, बाज़ारों और घरों को खंडहर में तब्दील कर दिया। लेकिन मंदिरों और धार्मिक स्थानों पर तांत्रिक का तंत्र नहीं चला और मंदिरों के शिखर ध्वस्त होने से बच गए।
आस-पास के लोग अब भी यही मानते हैं कि रत्नावती और तांत्रिक के आपसी टकराव के कारण रातों रात हुई मौतों के कारण यह जगह शापित हो गई और आज भी यहाँ उन लोगों की आत्माएँ विचरण करती हैं। इस किंवदंति ने स्थानीय तांत्रिकों को भी यहाँ तंत्र-कर्म करने के लिए उकसाया और पुरातत्त्व विभाग के संरक्षण से पूर्व यहाँ महल के अंदर तांत्रिक क्रियाएं होने के प्रमाण भी मिलते हैं।
प्रवेश
अरावली की पहाडि़यों से घिरे भानगढ़ में प्रवेश का मार्ग पूर्व में हनुमान गेट से है। यह प्रवेश द्वार शहर की क़िलेबंदी के लिए निर्मित की गई प्राचीर का प्रमुख दरवाज़ा है। उत्तर से दक्षिण की ओर फैली इस प्राचीर में कुल पांच दरवाज़े हैं, जिन्हें 'दिल्ली गेट', 'फुलवारी गेट', 'हनुमान गेट', 'अजमेरी गेट' और 'लाहौरी गेट' के नाम से जाना जाता है। भानगढ़ में मुख्य प्रवेश हनुमान गेट से होता है। गेट के दोनों ओर यहाँ चौकीदारी की बैरकनुमा कोठरियाँ हैं। गेट के दाहिनी ओर हनुमानजी का प्राचीन मंदिर और तिबारियाँ है। सामने एक पत्थर की सड़क जौहरी बाज़ार से होती हुई महल के परिसर के द्वार तक जाती है। हनुमान गेट के पास ही पुरातत्त्व विभाग की ओर से महल परिसर और कस्बे के नक्शे का शैलपट्ट लगाया हुआ है। पट्ट पर कस्बे और महल परिसर में स्थित सभी मुख्य स्थानों का विवरण दिया गया है।[1]
शानदार पर्यटन स्थल
स्थानीय लोगों में अब भी यही धारणा चली आ रही है कि भानगढ़ एक शापित स्थान है, लेकिन यह एक शानदार स्थल है, जो पर्यटन की दृष्टि से बेहद खूबसूरत है और इसे अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के तौर पर बढ़ावा दिया जा सकता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अरावली की गोद में सोया यह शहर महत्वपूर्ण है ही, साथ ही फ़ोटोग्राफ़ी के शौकीन लोगों के लिए भी यहाँ के खंडहर और प्राकृतिक वातावरण बेमिसाल हैं। 'भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग' ने अपने अधीन लेकर महल और इसके अवशेषों का संरक्षण किया है। वर्तमान में भानगढ़ पर्यटन का खूबसूरत केंद्र बन चुका है।
हवेलियाँ और अवशेष
तीन ओर प्राचीर से घिरे इस कस्बे में जगह-जगह हवेलियाँ और अवशेष दिखाई देते हैं। हनुमान गेट से प्रवेश करने के बाद बायें हाथ से पहाड़ी की ओर एक ठोस रास्ता महल तक जाता है, जिसके दोनों ओर दो मंजिला बिना छत वाली दुकानें हैं। इस बाज़ार को "जौहरी बाज़ार" का नाम दिया गया है। दुकानों के साथ मकानों के भी अवशेष हैं, जो सोलहवीं सदी की नागर शैली में बने दिखाई पड़ते हैं। जौहरी बाज़ार के ही दाहिनी तरफ़ मोड़ों की हवेली, हनुमान मंदिर, तिबारियाँ और पहाड़ी पर निगरानी टॉवर नजर आती है। जबकि बायें हाथ की ओर अजमेरी गेट, लाहौरी गेट, मंगला माता मंदिर, केशोराय मंदिर, पुरोहितजी की हवेली आदि दिखाई पड़ते हैं।
जौहरी बाज़ार पार करने के बाद एक पहाड़ी नाला गुजरता है, जिसके दोनो ओर घनी वृक्षावली है। यहाँ के वृक्ष भी रहस्यमयी ढंग से बल खाए और तुड़े-मुड़े नजर आते हैं। नाले से आगे चलने पर महल परिसर का त्रिपोलिया गेट आता है, जिसके भीतर दूर महल तक ऊंचे-नीचे ढलानों पर शानदार बाग़ और मंदिर, हवेलियाँ, कुंड आदि नजर आते हैं। त्रिपोलिया गेट से अंदर दाहिने हाथ की ओर एक ऊंचे चौरस स्थल पर गोपीनाथजी का मंदिर है। पास ही सामंतों की बड़ी हवेलियाँ भी हैं। महल तक की पगडंडी के बायें हाथ की ओर सोमेश्वर मंदिर और दो कुंड हैं, जहां वर्षभर पहाड़ों से जलधारा आकर मिलती है। महल के मुख्यद्वार से अंग्रेज़ी के ज़ेड आकार का रास्ता महल के अहाते में जाता है। मुख्यद्वार के बायें हाथ की ओर केवड़ा बाग़ है। कहा जाता है यह महल सात मंजिला था, लेकिन वर्तमान में इसकी तीन मंजिलें ही अस्तित्व मे हैं और छत पर बने भवन और परिसर भी खंडित हैं, जबकि महल के निचले बरामदों और कक्षों में अब भी चमगादड़ों का राज है।[1]
किंवदंतियाँ, किस्से, कहानियाँ आदि अपने स्थान पर हैं। भानगढ़ को उसकी किस्मत ने उजाड़ बनाया, लेकिन भानगढ़ अपने आप में सोलहवीं सदी में इतिहास की हलचल और उथल-पुथल को समेटे हुए है। पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग इसके अतीत को जानने और निष्कर्ष निकालने पर कार्य कर रहा है। यहाँ भानगढ़ में पर्यटन विभाग या पुरातत्त्व विभाग का कोई कार्यालय नहीं है, लेकिन यहाँ रह रहे चौकीदारों का कहना है कि हम रात-दिन यहीं रहते हैं। हमें ऐसा कोई अनुभव नहीं हुआ है, जिससे यह लगे कि भानगढ़ में किसी प्रकार का डर है। उन्होंने माना कि यहाँ जंगली जानवरों का डर है, इसलिए रात्रि के समय वे पहरे पर कम ही निकलते हैं। सरकार ने भी डर जैसी चीज सिरे से खारिज की है।
|
|
|
|
|
वीथिका
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 भानगढ़, खूबसूरत वर्तमान, रहस्यमयी अतीत (हिन्दी) पिंकसिटी.कॉम। अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर, 2014।
संबंधित लेख