"फ़तेहगढ़ क़िला, भोपाल": अवतरणों में अंतर
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'''फ़तेहगढ़ क़िला''' [[भोपाल]], [[मध्य प्रदेश]] के ऐतिहासिक स्थानों में से एक है। इस क़िले का निर्माण सन 1726 ई. में | {{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय | ||
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'''फ़तेहगढ़ क़िला''' [[भोपाल]], [[मध्य प्रदेश]] के ऐतिहासिक स्थानों में से एक है। इस क़िले का निर्माण सन 1726 ई. में दोस्त मोहम्मद ख़ान ने अपनी बेगम बीवी फ़तेह के नाम पर करवाया था। क़िले के मग़रबी बुर्ज़ पर एक छोटी-सी मस्जिद भी है, जिसे 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद' कहा जाता है। | |||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
[[राजा भोज]] के शासनकाल के लगभग सात सौ साल बाद सत्रहवीं [[शताब्दी]] की शुरुआत में एक साहसी [[अफ़ग़ान]] [[भोपाल]] आया, जिसका नाम था दोस्त मोहम्मद ख़ान। वह [[अफ़ग़ानिस्तान]] के तिरह के मीर अज़ीज़ का वंशज था और मूल रूप से [[मुग़ल]] [[औरंगज़ेब|बादशाह औरंगज़ेब]] की सेना में भर्ती होने की नीयत से आया था। कुछ दिन उसने [[दिल्ली]] में औरंगज़ेब की सेना में काम भी किया, किन्तु वहाँ एक युवक की हत्या करने के बाद वह फ़रार हो गया। वह भागकर [[मालवा]] आया और उसने [[चन्देरी]] पर सैय्यद बंधुओं के आक्रमण में हिस्सा लिया। बाद में इस लड़ाके ने पैसे लेकर लोगों के लिए लड़ना शुरू कर दिया। इसी सिलसिले में दोस्त मोहम्मद को भोपाल की [[गोंड]] रानी द्वारा बुलवाया गया और रानी ने मदद की एवज़ में उसे बैरसिया परगने का मावज़ा गाँव दे दिया। रानी की मृत्यु के बाद 1722 में दोस्त मोहम्मद ख़ान ने भोपाल पर कब्ज़ा कर लिया। उसने राजा भोज के टूटे हुए क़िले के पास भोपाल की चहारदीवारी बनवाई और इसमें सात दरवाज़े बनवाए, जो हफ्तों के दिनों के नाम से थे। सन 1726 में | [[राजा भोज]] के शासनकाल के लगभग सात सौ साल बाद सत्रहवीं [[शताब्दी]] की शुरुआत में एक साहसी [[अफ़ग़ान]] [[भोपाल]] आया, जिसका नाम था दोस्त मोहम्मद ख़ान। वह [[अफ़ग़ानिस्तान]] के तिरह के मीर अज़ीज़ का वंशज था और मूल रूप से [[मुग़ल]] [[औरंगज़ेब|बादशाह औरंगज़ेब]] की सेना में भर्ती होने की नीयत से आया था। कुछ दिन उसने [[दिल्ली]] में औरंगज़ेब की सेना में काम भी किया, किन्तु वहाँ एक युवक की हत्या करने के बाद वह फ़रार हो गया। वह भागकर [[मालवा]] आया और उसने [[चन्देरी]] पर सैय्यद बंधुओं के आक्रमण में हिस्सा लिया। बाद में इस लड़ाके ने पैसे लेकर लोगों के लिए लड़ना शुरू कर दिया। इसी सिलसिले में दोस्त मोहम्मद को भोपाल की [[गोंड]] रानी द्वारा बुलवाया गया और रानी ने मदद की एवज़ में उसे बैरसिया परगने का मावज़ा गाँव दे दिया। रानी की मृत्यु के बाद 1722 में दोस्त मोहम्मद ख़ान ने भोपाल पर कब्ज़ा कर लिया। उसने राजा भोज के टूटे हुए क़िले के पास भोपाल की चहारदीवारी बनवाई और इसमें सात दरवाज़े बनवाए, जो हफ्तों के दिनों के नाम से थे। सन 1726 में दोस्त मोहम्मद ख़ान ने अपनी बीवी फ़तेह के नाम पर 'फ़तेहगढ़ का क़िला' बनवाया।<ref>{{cite web |url=http://samvadsamay.blogspot.in/2009/03/blog-post_17.html |title= मस्जिदों का शहर, भोपाल|accessmonthday=28 अगस्त |accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= संवाद समय|language= हिन्दी}}</ref> | ||
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क़िले के मग़रबी बुर्ज पर एक मस्जिद भी बनवाई गई थी। इस छोटी-सी मस्जिद में दोस्त और उसके सुरक्षा कर्मी नमाज़ अदा किया करते थे। यह [[एशिया]] की सबसे छोटी मस्जिद के रूप में जानी जाती है और इसका नाम है 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद'। इसका नाम 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद' क्यूँ पड़ा यह कहना बहुत मुश्किल है, क्योंकि ढाई सीढ़ी आज कहीं भी नज़र नहीं आती; लेकिन शायद जब यह बनी होगी, तब ढाई सीढ़ी जैसी कोई संरचना इससे अवश्य जुड़ी रही होगी। इसे [[भोपाल]] की पहली मस्जिद कहते हैं। हालाँकि कुछ लोग आलमगीर मस्जिद को भोपाल की पहली मस्जिद कहते हैं। उनका मानना है कि [[औरंगज़ेब]] का जहाँ-जहाँ से गुज़र हुआ, उसके लिए जगह-जगह आलमगीर मस्जिदें तामीर की गईं और इस लिहाज से इसका नाम पहले आना चाहिए। | क़िले के मग़रबी बुर्ज पर एक मस्जिद भी बनवाई गई थी। इस छोटी-सी मस्जिद में दोस्त और उसके सुरक्षा कर्मी नमाज़ अदा किया करते थे। यह [[एशिया]] की सबसे छोटी मस्जिद के रूप में जानी जाती है और इसका नाम है 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद'। इसका नाम 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद' क्यूँ पड़ा यह कहना बहुत मुश्किल है, क्योंकि ढाई सीढ़ी आज कहीं भी नज़र नहीं आती; लेकिन शायद जब यह बनी होगी, तब ढाई सीढ़ी जैसी कोई संरचना इससे अवश्य जुड़ी रही होगी। इसे [[भोपाल]] की पहली मस्जिद कहते हैं। हालाँकि कुछ लोग आलमगीर मस्जिद को भोपाल की पहली मस्जिद कहते हैं। उनका मानना है कि [[औरंगज़ेब]] का जहाँ-जहाँ से गुज़र हुआ, उसके लिए जगह-जगह आलमगीर मस्जिदें तामीर की गईं और इस लिहाज से इसका नाम पहले आना चाहिए। |
09:20, 28 अगस्त 2015 के समय का अवतरण
फ़तेहगढ़ क़िला, भोपाल
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विवरण | 'फ़तेहगढ़ क़िला' मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल है। यहाँ एक छोटी-सी मस्जिद में दोस्त मोहम्मद ख़ान और उसके सैनिक नमाज़ अदा किया करते थे। |
निर्माण काल | 1726 ई. |
निर्माणकर्ता | दोस्त मोहम्मद ख़ान |
विशेष | दोस्त मोहम्मद ख़ान ने अपनी बीवी फ़तेह के नाम पर 'फ़तेहगढ़ का क़िले' का निर्माण करवाया था। |
अन्य जानकारी | क़िले के मग़रबी बुर्ज पर स्थित छोटी-सी मस्जिद को नाम 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद' कहा जाता है। यह एशिया की सबसे छोटी मस्जिद के रूप में जानी जाती है। |
फ़तेहगढ़ क़िला भोपाल, मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थानों में से एक है। इस क़िले का निर्माण सन 1726 ई. में दोस्त मोहम्मद ख़ान ने अपनी बेगम बीवी फ़तेह के नाम पर करवाया था। क़िले के मग़रबी बुर्ज़ पर एक छोटी-सी मस्जिद भी है, जिसे 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद' कहा जाता है।
इतिहास
राजा भोज के शासनकाल के लगभग सात सौ साल बाद सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में एक साहसी अफ़ग़ान भोपाल आया, जिसका नाम था दोस्त मोहम्मद ख़ान। वह अफ़ग़ानिस्तान के तिरह के मीर अज़ीज़ का वंशज था और मूल रूप से मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की सेना में भर्ती होने की नीयत से आया था। कुछ दिन उसने दिल्ली में औरंगज़ेब की सेना में काम भी किया, किन्तु वहाँ एक युवक की हत्या करने के बाद वह फ़रार हो गया। वह भागकर मालवा आया और उसने चन्देरी पर सैय्यद बंधुओं के आक्रमण में हिस्सा लिया। बाद में इस लड़ाके ने पैसे लेकर लोगों के लिए लड़ना शुरू कर दिया। इसी सिलसिले में दोस्त मोहम्मद को भोपाल की गोंड रानी द्वारा बुलवाया गया और रानी ने मदद की एवज़ में उसे बैरसिया परगने का मावज़ा गाँव दे दिया। रानी की मृत्यु के बाद 1722 में दोस्त मोहम्मद ख़ान ने भोपाल पर कब्ज़ा कर लिया। उसने राजा भोज के टूटे हुए क़िले के पास भोपाल की चहारदीवारी बनवाई और इसमें सात दरवाज़े बनवाए, जो हफ्तों के दिनों के नाम से थे। सन 1726 में दोस्त मोहम्मद ख़ान ने अपनी बीवी फ़तेह के नाम पर 'फ़तेहगढ़ का क़िला' बनवाया।[1]
ढाई सीढ़ी की मस्जिद
क़िले के मग़रबी बुर्ज पर एक मस्जिद भी बनवाई गई थी। इस छोटी-सी मस्जिद में दोस्त और उसके सुरक्षा कर्मी नमाज़ अदा किया करते थे। यह एशिया की सबसे छोटी मस्जिद के रूप में जानी जाती है और इसका नाम है 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद'। इसका नाम 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद' क्यूँ पड़ा यह कहना बहुत मुश्किल है, क्योंकि ढाई सीढ़ी आज कहीं भी नज़र नहीं आती; लेकिन शायद जब यह बनी होगी, तब ढाई सीढ़ी जैसी कोई संरचना इससे अवश्य जुड़ी रही होगी। इसे भोपाल की पहली मस्जिद कहते हैं। हालाँकि कुछ लोग आलमगीर मस्जिद को भोपाल की पहली मस्जिद कहते हैं। उनका मानना है कि औरंगज़ेब का जहाँ-जहाँ से गुज़र हुआ, उसके लिए जगह-जगह आलमगीर मस्जिदें तामीर की गईं और इस लिहाज से इसका नाम पहले आना चाहिए।
मौखिक इतिहास पर विश्वास न कर यदि तथ्यों का विश्लेषण किया जाय तो 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद' को ही भोपाल की पहली मस्जिद कहा जाएगा। यहीं से शुरू होता है भोपाल में मस्जिदें तामीर करवाने का सिलसिला। दोस्त मोहम्मद ख़ान के बाद एक लम्बे समय तक कोई ख़ास निर्माण कार्य नहीं हुआ। बाद में उसके पोते फैज़ मोहम्मद ख़ान ने भोपाल की झील के किनारे 'कमला महल' के पास एक मस्जिद बनवाई, इसे 'मक़बरे वाली मस्जिद' के नाम से जाना जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मस्जिदों का शहर, भोपाल (हिन्दी) संवाद समय। अभिगमन तिथि: 28 अगस्त, 2015।
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