"पशुपतिनाथ मंदिर": अवतरणों में अंतर
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'''पशुपतिनाथ मंदिर''' [[काठमांडू]] ([[नेपाल]]) के पूर्वी हिस्से में [[बागमती नदी]] के तट पर स्थित है। यह मंदिर [[हिन्दू धर्म]] के आठ सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है। नेपाल में यह भगवान [[शिव]] का सबसे पवित्र मंदिर है। मंदिर दुनिया भर के [[हिन्दू]] तीर्थ यात्रियों के अलावा गैर हिन्दू पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी रहा है। यह मंदिर यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल है। | '''पशुपतिनाथ मंदिर''' [[काठमांडू]] ([[नेपाल]]) के पूर्वी हिस्से में [[बागमती नदी]] के तट पर स्थित है। यह मंदिर [[हिन्दू धर्म]] के आठ सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है। नेपाल में यह भगवान [[शिव]] का सबसे पवित्र मंदिर है। मंदिर दुनिया भर के [[हिन्दू]] तीर्थ यात्रियों के अलावा गैर हिन्दू पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी रहा है। यह मंदिर यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल है। | ||
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11:58, 22 जुलाई 2016 का अवतरण
पशुपतिनाथ मंदिर
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विवरण | पशुपतिनाथ मंदिर हिन्दू धर्म के आठ सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है। नेपाल में यह भगवान शिव का सबसे पवित्र मंदिर है। |
राज्य | नेपाल |
निर्माण काल | 400 ईसवी |
मार्ग स्थिति | नेपाल की राजधानी काठमांडू के तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के किनारे पर स्थित। |
कब जाएँ | यहां मई-सितंबर के बीच जाना अच्छा रहता है। |
त्रिभुवन हवाई अड्डा | |
संबंधित लेख | काठमांडू, नेपाल, केदारनाथ, बद्रीनाथ
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अन्य जानकारी | नेपाल में भगवान शिव का यह मंदिर विश्वभर में विख्यात है। इसका असाधारण महत्त्व भारत के अमरनाथ व केदारनाथ से किसी भी प्रकार कम नहीं है। पशुपतिनाथ मंदिर के दक्षिण में 'उन्मत्त भैरव' के दर्शन भैरव उपासकों के लिए बहुत कल्याणकारी है। यह मंदिर यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल है। |
पशुपतिनाथ मंदिर काठमांडू (नेपाल) के पूर्वी हिस्से में बागमती नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के आठ सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है। नेपाल में यह भगवान शिव का सबसे पवित्र मंदिर है। मंदिर दुनिया भर के हिन्दू तीर्थ यात्रियों के अलावा गैर हिन्दू पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी रहा है। यह मंदिर यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल है।
महत्त्व
पशुपतिनाथ मंदिर में आने वाले गैर हिन्दू आगंतुकों को बागमती नदी के दूसरे किनारे से बाहर से मंदिर को देखने की अनुमति है। नेपाल में भगवान शिव का यह मंदिर विश्वभर में विख्यात है। इसका असाधारण महत्त्व भारत के अमरनाथ व केदारनाथ से किसी भी प्रकार कम नहीं है। इस अंतर्राष्ट्रीय तीर्थ के दर्शन के लिए भारत के ही नहीं, अपितु विदेशों के भी असंख्य यात्री और पर्यटक काठमांडू पहुंचते हैं। इस नगर के चारों ओर पर्वत मालाएँ हैं, जिनकी घाटियों में यह नगर अपना पर्वतीय सौंदर्य को बिखेरने के लिए थोड़ी-सी भी कंजूसी नहीं करता।[1]
मंदिर संरचना
प्राचीन समय इस नगर का नाम 'कांतिपुर' था। काठमांडू में बागमती व विष्णुमती नदियों का संगम है। मंदिर का शिखर स्वर्णवर्णी छटा बिखेरता रहता है। इसके साथ ही डमरू और त्रिशूल भी प्रमुख है। मंदिर एक मीटर ऊँचे चबूतरे पर स्थापित है। मंदिर के चारों ओर पशुपतिनाथ जी के सामने चार दरवाज़े हैं। दक्षिणी द्वार पर तांबे की परत पर स्वर्ण जल चढ़ाया हुआ है। बाकी तीन पर चांदी की परत है। मंदिर की संरचना चौकोर आकार की है। मंदिर की दोनों छतों के चार कोनों पर उत्कृष्ट कोटि की कारीगरी से सिंह की आकृति उकेरी गई है। मुख्य मंदिर में महिष रूपधारी भगवान शिव का शिरोभाग है, जिसका पिछला हिस्सा केदारनाथ में है। इस प्रसंग का उल्लेख स्कंदपुराण में भी हुआ है। मंदिर का अधिकतर भाग काष्ठ से निर्मित है। गर्भगृह में पंचमुखी शिवलिंग का विग्रह है, जो अन्यत्र नहीं है। मंदिर परिसर में अनेक मंदिर हैं, जिनमें पूर्व की ओर गणेश का मंदिर है। मंदिर के प्रांगण की दक्षिणी दिशा में एक द्वार है, जिसके बाहर एक सौ चौरासी शिवलिंगों की कतारें हैं।[1]
लिंग विग्रह
पशुपतिनाथ मंदिर के दक्षिण में उन्मत्त भैरव के दर्शन भैरव उपासकों के लिए बहुत कल्याणकारी है। पशुपतिनाथ लिंग विग्रह में चार दिशाओं में चार मुख और ऊपरी भाग में पाँचवाँ मुख है। प्रत्येक मुखाकृति के दाएँ हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएँ हाथ में कमंडल है। प्रत्येक मुख अलग-अलग गुण प्रकट करता है। पहला मुख 'अघोर' मुख है, जो दक्षिण की ओर है। पूर्व मुख को 'तत्पुरुष' कहते हैं। उत्तर मुख 'अर्धनारीश्वर' रूप है। पश्चिमी मुख को 'सद्योजात' कहा जाता है। ऊपरी भाग 'ईशान' मुख के नाम से पुकारा जाता है। यह निराकार मुख है। यही भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख है।
भारतीय पुरोहित
पशुपतिनाथ मंदिर की सेवा आदि के लिए 1747 से ही नेपाल के राजाओं ने भारतीय ब्राह्मणों को आमंत्रित करना शुरू किया। उनकी धारणा थी कि भारतीय ब्राह्माण हिन्दू धर्मशास्त्रों और रीतियों में ज्यादा पारंगत होते हैं। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए 'माल्ला राजवंश' के एक राजा ने एक दक्षिण भारतीय ब्राह्मण को पशुपतिनाथ मंदिर का प्रधान पुरोहित नियुक्त किया था। यही परंपरा आने वाले दिनों में भी रही। दक्षिण भारतीय भट्ट ब्राह्मण ही इस मंदिर के प्रधान पुजारी नियुक्त होते रहे हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 'पशुपतिनाथ मंदिर' (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 8 अक्टूबर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख