"सोमेश्वर तृतीय": अवतरणों में अंतर
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सोमेश्वर तृतीय कल्याणी के [[चालुक्य वंश]] का आठवाँ शासक था और सातवें शासक [[विक्रमादित्य षष्ठ]] का पुत्र तथा उत्तराधिकरी था। | *सोमेश्वर तृतीय कल्याणी के [[चालुक्य वंश]] का आठवाँ शासक था और सातवें शासक [[विक्रमादित्य षष्ठ]] का पुत्र तथा उत्तराधिकरी था। | ||
[[Category:दक्षिण भारत के साम्राज्य]][[Category: | *1126 ई. में विक्रमादित्य द्वितीय का पुत्र सोमेश्वर तृतीय कल्याणी के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ। ह भी प्रतापी और महत्वाकांक्षी राजा था। | ||
*उसने उत्तरी भारत में विजय यात्राएँ कर [[मगध]] और [[नेपाल]] को अपना वशवर्त्ती बनाया। [[अंग]], [[बंगाल|बंग]], [[कलिंग]] पहले ही [[चालुक्य साम्राज्य]] की अधीनता को स्वीकार कर चुके थे। मगध भी पूर्ववर्त्ती चालुक्य विजेताओं के द्वारा आक्रान्त हो चुका था। | |||
*सोमेश्वर तृतीय ने अपने कुल की शक्ति को बढ़ाकर नेपाल तक भी आक्रमण किए। | |||
* [[सोमेश्वर प्रथम]] के समय से उत्तरी भारत पर और विशेषतया अंग, बंग तथा कलिंग पर दक्षिणापथ की सेनाओं के जो निरन्तर आक्रमण होते रहे, उन्हीं के कारण बहुत से सैनिक व उनके सरदार उन प्रदेशों में स्थिर रूप से बस गए, और उन्हीं से [[बंगाल]] में [[सेन वंश]] एवं [[मिथिला]] में [[नान्यदेव के वंश]] के राज्य स्थापित हुए। इसीलिए इन्हें 'कर्णाट' कहा गया है। | |||
*वह राजशास्त्र, न्याय व्यवस्था, वैद्यक, ज्योतिष, शस्त्रास्त्र, रसायन तथा पिंगल सदृश विषयों पर अनेक ग्रंथों का रचयिता बताया जाता है। | |||
*किन्तु उसकी बहुमुखी प्रतिभा एवं विद्वत्ता उसकी सैन्य संगठन शक्ति में सहायक न हो सकी। | |||
*उसके शासन काल में अधीनस्थ सामंतों ने चालुक्यों की प्रभुत्ता त्यागकर स्वतंत्र शासन करना आरम्भ कर दिया, फलस्वरूप चालुक्य शक्ति का ह्रास होने लगा। | |||
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11:36, 1 अक्टूबर 2010 का अवतरण
- सोमेश्वर तृतीय कल्याणी के चालुक्य वंश का आठवाँ शासक था और सातवें शासक विक्रमादित्य षष्ठ का पुत्र तथा उत्तराधिकरी था।
- 1126 ई. में विक्रमादित्य द्वितीय का पुत्र सोमेश्वर तृतीय कल्याणी के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ। ह भी प्रतापी और महत्वाकांक्षी राजा था।
- उसने उत्तरी भारत में विजय यात्राएँ कर मगध और नेपाल को अपना वशवर्त्ती बनाया। अंग, बंग, कलिंग पहले ही चालुक्य साम्राज्य की अधीनता को स्वीकार कर चुके थे। मगध भी पूर्ववर्त्ती चालुक्य विजेताओं के द्वारा आक्रान्त हो चुका था।
- सोमेश्वर तृतीय ने अपने कुल की शक्ति को बढ़ाकर नेपाल तक भी आक्रमण किए।
- सोमेश्वर प्रथम के समय से उत्तरी भारत पर और विशेषतया अंग, बंग तथा कलिंग पर दक्षिणापथ की सेनाओं के जो निरन्तर आक्रमण होते रहे, उन्हीं के कारण बहुत से सैनिक व उनके सरदार उन प्रदेशों में स्थिर रूप से बस गए, और उन्हीं से बंगाल में सेन वंश एवं मिथिला में नान्यदेव के वंश के राज्य स्थापित हुए। इसीलिए इन्हें 'कर्णाट' कहा गया है।
- वह राजशास्त्र, न्याय व्यवस्था, वैद्यक, ज्योतिष, शस्त्रास्त्र, रसायन तथा पिंगल सदृश विषयों पर अनेक ग्रंथों का रचयिता बताया जाता है।
- किन्तु उसकी बहुमुखी प्रतिभा एवं विद्वत्ता उसकी सैन्य संगठन शक्ति में सहायक न हो सकी।
- उसके शासन काल में अधीनस्थ सामंतों ने चालुक्यों की प्रभुत्ता त्यागकर स्वतंत्र शासन करना आरम्भ कर दिया, फलस्वरूप चालुक्य शक्ति का ह्रास होने लगा।
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