"शरद पगारे": अवतरणों में अंतर
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'''शरद पगारे''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sharad Pagare'', जन्म- [[5 जुलाई]], [[1931]]) [[हिंदी साहित्य]] के जाने-माने लेखकों में से एक हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन ही [[इतिहास]] की रूमानी कथाओं के नाम कर दिया है। डॉ. शरद पगारे इतिहास के विद्वान, शोधकर्ता और प्राध्यापक रहे हैं। वरिष्ठ साहित्यकार शरद पगारे को वर्ष [[2020]] में के. के. बिड़ला फाउंडेशन की तरफ से दिये जाने वाले [[व्यास सम्मान]] से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उन्हें वर्ष [[2010]] में आए उनके [[उपन्यास]] 'पाटलीपुत्र की सम्राज्ञी' के लिए दिया गया। | {{सूचना बक्सा साहित्यकार | ||
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5 जुलाई, 1931 को [[मध्य प्रदेश]] के खंडवा में जन्में शरद पगारे [[भारत]] में हिंदी साहित्य के जाने-माने लेखकों में से एक हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन ही इतिहास की रूमानी कथाओं के नाम कर दिया। [[साहित्यकार]] तथा [[इतिहासकार]] डॉ. शरद पगारे शासकीय महाविद्यालय के प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन में संलग्न हैं। शिल्पकर्ण विश्वविद्यालय, बैंकाक में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं।<ref name="pp">{{cite web |url= https://hindi.webdunia.com/my-blog/sharad-pagare-writer-hindi-writer-hindi-sahitya-121070500046_1.html|title=इतिहास की अनसुनी गूंज सुनाता साहित्यकार|accessmonthday=11 सितम्बर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hindi.webdunia.com |language=हिंदी}}</ref> वे मध्य प्रदेश के पहले साहित्यकार हैं, जिन्हें देश के प्रतिष्ठित '[[व्यास सम्मान]] से विभूषित किया गया है। शरद पगारे बताते हैं कि- "साहित्य में उनका कोई पितामह नहीं था, ना ही वे कभी पुरस्कारों की राजनीति में शामिल हुए"। वह कहते हैं कि चूंकि मैं [[इतिहास]] का विद्यार्थी और बाद में इतिहास का ही प्रोफेसर रहा हूं, इसलिए रचना का केंद्र ऐतिहासिक पात्र ही रहे। मैंने पात्र की काया में प्रवेश किया और उनसे संवाद करने की कोशिश की। पात्र काया प्रवेश करके इतिहास में उसके साथ जो अन्याय हुआ वह लिपिबद्ध करने की कोशिश की। | 5 जुलाई, 1931 को [[मध्य प्रदेश]] के खंडवा में जन्में शरद पगारे [[भारत]] में हिंदी साहित्य के जाने-माने लेखकों में से एक हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन ही इतिहास की रूमानी कथाओं के नाम कर दिया। [[साहित्यकार]] तथा [[इतिहासकार]] डॉ. शरद पगारे शासकीय महाविद्यालय के प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन में संलग्न हैं। शिल्पकर्ण विश्वविद्यालय, बैंकाक में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं।<ref name="pp">{{cite web |url= https://hindi.webdunia.com/my-blog/sharad-pagare-writer-hindi-writer-hindi-sahitya-121070500046_1.html|title=इतिहास की अनसुनी गूंज सुनाता साहित्यकार|accessmonthday=11 सितम्बर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hindi.webdunia.com |language=हिंदी}}</ref> वे मध्य प्रदेश के पहले साहित्यकार हैं, जिन्हें देश के प्रतिष्ठित '[[व्यास सम्मान]] से विभूषित किया गया है। शरद पगारे बताते हैं कि- "साहित्य में उनका कोई पितामह नहीं था, ना ही वे कभी पुरस्कारों की राजनीति में शामिल हुए"। वह कहते हैं कि चूंकि मैं [[इतिहास]] का विद्यार्थी और बाद में इतिहास का ही प्रोफेसर रहा हूं, इसलिए रचना का केंद्र ऐतिहासिक पात्र ही रहे। मैंने पात्र की काया में प्रवेश किया और उनसे संवाद करने की कोशिश की। पात्र काया प्रवेश करके इतिहास में उसके साथ जो अन्याय हुआ वह लिपिबद्ध करने की कोशिश की। |
10:29, 11 सितम्बर 2021 के समय का अवतरण
शरद पगारे
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पूरा नाम | शरद पगारे |
जन्म | 5 जुलाई, 1931 |
जन्म भूमि | खंडवा, मध्य प्रदेश |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | इतिहासकार, साहित्यकार |
मुख्य रचनाएँ | पाटलीपुत्र की सम्राज्ञी, गुलारा बेगम, गंधर्व सेन, नारी के रूप, दूसरा देवदास, एक मुट्ठी ममता आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | व्यास सम्मान (2020), विश्वनाथ सिंह पुरस्कार' तथा 'वागीश्वरी पुरस्कार आदि। |
प्रसिद्धि | लेखक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | शरद पगारे ने वृंदावन लाल वर्मा की ऐतिहासिक उपन्यास परंपरा के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी एक किताब 'भारत की श्रेष्ठ एतिहासिक प्रेम कथाएं' है। |
अद्यतन | 15:59, 11 सितम्बर 2021 (IST)
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इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
शरद पगारे (अंग्रेज़ी: Sharad Pagare, जन्म- 5 जुलाई, 1931) हिंदी साहित्य के जाने-माने लेखकों में से एक हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन ही इतिहास की रूमानी कथाओं के नाम कर दिया है। डॉ. शरद पगारे इतिहास के विद्वान, शोधकर्ता और प्राध्यापक रहे हैं। वरिष्ठ साहित्यकार शरद पगारे को वर्ष 2020 में के. के. बिड़ला फाउंडेशन की तरफ से दिये जाने वाले व्यास सम्मान से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उन्हें वर्ष 2010 में आए उनके उपन्यास 'पाटलीपुत्र की सम्राज्ञी' के लिए दिया गया।
परिचय
5 जुलाई, 1931 को मध्य प्रदेश के खंडवा में जन्में शरद पगारे भारत में हिंदी साहित्य के जाने-माने लेखकों में से एक हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन ही इतिहास की रूमानी कथाओं के नाम कर दिया। साहित्यकार तथा इतिहासकार डॉ. शरद पगारे शासकीय महाविद्यालय के प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन में संलग्न हैं। शिल्पकर्ण विश्वविद्यालय, बैंकाक में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं।[1] वे मध्य प्रदेश के पहले साहित्यकार हैं, जिन्हें देश के प्रतिष्ठित 'व्यास सम्मान से विभूषित किया गया है। शरद पगारे बताते हैं कि- "साहित्य में उनका कोई पितामह नहीं था, ना ही वे कभी पुरस्कारों की राजनीति में शामिल हुए"। वह कहते हैं कि चूंकि मैं इतिहास का विद्यार्थी और बाद में इतिहास का ही प्रोफेसर रहा हूं, इसलिए रचना का केंद्र ऐतिहासिक पात्र ही रहे। मैंने पात्र की काया में प्रवेश किया और उनसे संवाद करने की कोशिश की। पात्र काया प्रवेश करके इतिहास में उसके साथ जो अन्याय हुआ वह लिपिबद्ध करने की कोशिश की।
पुरस्कार व सम्मान
- मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल का 'विश्वनाथ सिंह पुरस्कार' तथा 'वागीश्वरी पुरस्कार'
- अंबिका प्रसाद दिव्य पुरस्कार, सागर
- मध्य प्रदेश लेखक संघ, भोपाल का 'अक्षर आदित्य अलंकरण'
- साहित्य मंडल का श्रीनाथ हिंदी भाषा भूषण सम्मान
- मध्य प्रदेश लेखक संघ का भोपाल का 'अक्षर आदित्य अलंकरण'
- निमाड़ लोक साहित्य परिषद का संत सिंघाजी सम्मान
- अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन का 'भारत भाषा भूषण सम्मान'
प्रकाशित कृतियाँ
उपन्यास- गुलारा बेगम, गंधर्व सेन, बेगम जैनाबादी, उजाले की तलाश, पाटलिपुत्र की साम्राज्ञी।
कहानी संग्रह- एक मुट्ठी ममता, संध्या तारा, नारी के रूप, दूसरा देवदास, भारतीय इतिहास की प्रेम कहानियाँ, मेरी श्रेष्ठ कहानियाँ।
नाटक- श्रीराम कला केन्द्र द्वारा बेगम जैनाबादी की नाट्य प्रस्तुति क्षितिज नाम से।[1]
योगदान
शरद पगारे ने वृंदावन लाल वर्मा की ऐतिहासिक उपन्यास परंपरा के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी एक किताब 'भारत की श्रेष्ठ एतिहासिक प्रेम कथाएं' है। शरद पगारे दावा करते हैं कि विश्व साहित्य या किसी भी देश में ऐसी किताब नहीं है, जिसमें सच्चे प्रेम की 16 कहानियां संकलित हो और जिनका एतिहासिक प्रमाण मिलता हो।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1
इतिहास की अनसुनी गूंज सुनाता साहित्यकार (हिंदी) hindi.webdunia.com। अभिगमन तिथि: 11 सितम्बर, 2021। सन्दर्भ त्रुटि:
<ref>
अमान्य टैग है; "pp" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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