"तैल चालुक्य": अवतरणों में अंतर
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*वाकपतिराज मुञ्ज ने छः बार चालुक्य राज्य पर चढ़ाई की, और छठी बार उसे बुरी तरह से परास्त किया था। | *वाकपतिराज मुञ्ज ने छः बार चालुक्य राज्य पर चढ़ाई की, और छठी बार उसे बुरी तरह से परास्त किया था। | ||
*पर सातवीं बार जब उसने दक्षिणापथ में विजय यात्रा की, तो [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] के तट पर घनघोर युद्ध हुआ, जिसमें मुञ्ज तैलप के हाथ पड़ गया, और चालुक्य राज ने उसका घात कर अपनी पुरानी पराजयों का प्रतिशोध लिया। | *पर सातवीं बार जब उसने दक्षिणापथ में विजय यात्रा की, तो [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] के तट पर घनघोर युद्ध हुआ, जिसमें मुञ्ज तैलप के हाथ पड़ गया, और चालुक्य राज ने उसका घात कर अपनी पुरानी पराजयों का प्रतिशोध लिया। |
10:32, 13 मार्च 2011 का अवतरण
- तैल चालुक्य द्वितीय चालुक्य राजवंश का प्रतिष्ठापक था।
- उसकी राजधानी कल्याणी थी।
- 972 ई. के आसपास उसने अन्तिम राष्ट्रकूट राजा कर्क द्वितीय को परास्त किया।
- तैल द्वारा प्रतिष्ठापित राजवंश ने 1119 ई. तक शासन किया।
- कल्याणी के अपने सामन्त राज्य को राष्ट्रकूटों की अधीनता से मुक्त कर तैलप ने मान्यखेट पर आक्रमण किया।
- परमार राजा सीयक हर्ष राष्ट्रकूटों की इस राजधानी को तहस-नहस कर चुका था, पर उसने दक्षिणापथ में स्थायी रूप से शासन करने का प्रयत्न नहीं किया था। वह आँधी की तरह आया था, और मान्यखेट को उजाड़ कर आँधी की ही तरह वापस लौट गया था।
- अब जब तैलप ने उस पर आक्रमण किया, तो राष्ट्रकूट राजा कर्क (करक) उसका मुक़ाबला नहीं कर सका।
- राष्ट्रकूट राज्य का अन्त हो गया, और तैलप के लिए दिग्विजय का मार्ग निष्कंटक हो गया।
- विजय यात्रा करते हुए तैलप ने सबसे पूर्व लाट देश (दक्षिणी गुजरात) की विजय की, और फिर कन्नड़ देश को परास्त किया।
- कन्नड़ के बाद सुदूर दक्षिण में चोल राज्य पर चढ़ाई की गई।
- पर तैलप के सबसे महत्त्वपूर्ण युद्ध परमार राजा वाकपतिराज मुञ्ज के साथ हुए।
- परमार वंश के महत्त्वाकांक्षी राजा दक्षिणापथ को अपनी विजयों का उपयुक्त क्षेत्र मानते थे।
- सीयक हर्ष ने भी पहले मान्यखेट को ही अपनी महत्त्वाकांक्षाओं का शिकार बनाया था।
- वाकपतिराज मुञ्ज ने छः बार चालुक्य राज्य पर चढ़ाई की, और छठी बार उसे बुरी तरह से परास्त किया था।
- पर सातवीं बार जब उसने दक्षिणापथ में विजय यात्रा की, तो गोदावरी के तट पर घनघोर युद्ध हुआ, जिसमें मुञ्ज तैलप के हाथ पड़ गया, और चालुक्य राज ने उसका घात कर अपनी पुरानी पराजयों का प्रतिशोध लिया।
- इस प्रकार अपने कुल के गौरव का पुनरुद्धार कर 24 वर्ष के शासन के बाद 967 ई. में तैलप की मृत्यु हो गई।
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