"गंगा नदी": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[चित्र:Haridwar.jpg|300px|thumb|गंगा नदी, [[हरिद्वार]]<br />Ganga River, Haridwar]]  
[[चित्र:Haridwar.jpg|300px|thumb|गंगा नदी, [[हरिद्वार]]<br />Ganga River, Haridwar]]  
[[भारत]] की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी गंगा, जो भारत और बांग्लादेश में मिलाकर 2,510 किमी की दूरी तय करती हुई [[उत्तरांचल]] में [[हिमालय]] से लेकर [[बंगाल की खाड़ी]] के [[सुंदरवन]] तक विशाल भू भाग को सींचती है, देश की प्राकृतिक संपदा ही नहीं, जन जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। 2,071 कि.मी तक भारत तथा उसके बाद [[बांग्लादेश]] में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। 100 फीट (31 मी) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ और देवी के रूप में की जाती है। अपने सौंदर्य और महत्त्व के कारण एक ओर जहाँ [[पुराण और साहित्य में गंगा|पुराण और साहित्य में इसका उल्लेख]] बार बार मिलता है, वहीं विदेशी साहित्य में भी गंगा नदी के प्रति प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णनों की कमी नहीं।
[[भारत]] की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी गंगा, उत्तर [[भारत]] के मैदानों की विशाल नदी है। गंगा भारत और बांग्लादेश में मिलकर 2,510 किलोमीटर की दूरी तय करती हुई [[उत्तरांचल]] में [[हिमालय]] से निकलकर [[बंगाल की खाड़ी]] में भारत के लगभग एक-चौथाई भूक्षेत्र को अपवाहित करती है तथा अपने बेसिन में बसे विराट जनसमुदाय के जीवन का आधार बनती है। जिस गंगा के मैदान से होकर यह प्रवाहित होती है, वह इस क्षेत्र का हृदय स्थल है, जिसे हिन्दुस्तान कहते हैं। यहाँ तीसरी सदी में [[अशोक|अशोक महान]] के साम्राज्य से लेकर 16वीं सदी में स्थापित [[मुग़ल साम्राज्य]] तक सारी सभ्यताएँ विकसित हुईं। गंगा नदी अपना अधिकांश सफ़र भारतीय इलाक़े में ही तय करती है, लेकिन उसके विशाल डेल्टा क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा [[बांग्लादेश]] में है। गंगा के प्रवाह की सामान्यत: दिशा उत्तर-पश्चिमोत्तर से दक्षिण-पूर्व की तरफ है और डेल्टा क्षेत्र में प्रवाह आमतौर से दक्षिण मुखी है।


इस नदी में [[मछली|मछलियों]] तथा [[सर्प|सर्पों]] की अनेक प्रजातियाँ तो पाई ही जाती हैं मीठे पानी वाले दुर्लभ [[गंगा डाल्फ़िन|डालफिन]] भी पाए जाते हैं। यह [[कृषि]], [[पर्यटन]], साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बाँध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से संबंधित ज़रूरतों  को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में [[बैक्टीरियोफेज]] नामक [[विषाणु]] होते हैं, जो [[जीवाणु|जीवाणुओं]] व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस असीमित शुद्धीकरण क्षमता और सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसका प्रदूषण रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवंबर, 2008 में [[भारत]] सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी<ref>{{cite web |url= http://www.bihartodayonline.com/2008/11/jagran-yahoo-report_04.html|title= गंगा को भारत की राष्ट्रीय नदी |accessmonthday=[[नवंबर]]|accessyear=[[2008]]|format= एचटीएम|publisher= बिहार टुडे|language=}}</ref><ref>{{cite web |url= http://www.voanews.com/hindi/archive/2008-11/2008-11-04-voa24.cfm|title= गंगा -भारत की राष्ट्रीय नदी |accessmonthday=[[4 नवंबर]]|accessyear=[[2008]]|format= एचटीएम|publisher= वॉयस ऑफ अमेरिका|language=}}</ref> तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (1600 किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग- को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है।<ref>{{cite book |last= |first=|title= समकालीन भारत |year=अप्रॅल 2003 |publisher=राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद |location=नई दिल्ली |id= |page=247-248 |accessday= 23|accessmonth= जून|accessyear= 2009}}</ref>
भारतीय [[भाषा|भाषाओं]] में तथा अधिकृत रूप से गंगा नदी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके अंग्रेज़ीकृत नाम ‘द गैजिज़’ से ही जाना जाता है। गंगा सहस्राब्दियों से [[हिन्दू|हिन्दुओं]] की पवित्र तथा पूजनीय नदी रही है। अपने अधिकांश मार्ग में गंगा एक चौड़ी व मंद धारा है और विश्व के सबसे ज़्यादा उपजाऊ और घनी आबादी वाले इलाक़ों से होकर बहती है। इतने महत्व के बावज़ूद इसकी लम्बाई 2,510 किलोमीटर है, जो एशिया या विश्व स्तर की तुलना में कोई बहुत ज़्यादा नहीं है।


==उद्गम==
गंगा की धारा, जो पहाड़ों में मंदाकिनी और [[अलकनन्दा नदी|अलकनन्दा]] की धाराओं के सम्मिलन से बनती है, हिमालय में अत्यन्त क्षीण है और [[हरिद्वार]] के ऊपर कनखल के समीप उत्तरी मैदान में प्रशस्त होकर बहती है और बरसात में उसके [[जल]] का [[वेग]] भयावह हो उठता है। गंगा नदी देश की प्राकृतिक संपदा ही नहीं, जन जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। 2,071 किलोमीटर तक भारत तथा उसके बाद [[बांग्लादेश]] में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। 100 फीट (31 मीटर) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ और देवी के रूप में की जाती है। अपने सौंदर्य और महत्त्व के कारण एक ओर जहाँ [[पुराण और साहित्य में गंगा|पुराण और साहित्य में इसका उल्लेख]] बार बार मिलता है, वहीं विदेशी साहित्य में भी गंगा नदी के प्रति प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णनों की कमी नहीं।
गंगा नदी की प्रधान शाखा भागीरथी है जो कुमायूँ में हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री [[हिमनद]] से निकलती है।<ref name="टीडीआईएल"/> गंगा के इस उद्गम स्थल की ऊँचाई 3140 मीटर है। यहाँ गंगा जी को समर्पित एक मंदिर भी है। [[गंगोत्री]] तीर्थ, शहर से 19 कि.मी. उत्तर की ओर 3892 मी.(12,770 फी.) की ऊँचाई पर इस हिमनद का मुख है। यह हिमनद 25 कि.मी. लंबा व 4 कि.मी. चौड़ा और लगभग 40 मी. ऊँचा है। इसी ग्लेशियर से भागीरथी एक छोटे से गुफानुमा मुख पर अवतरित होती है। [[चित्र:Gaumukh-Gangotri-Glacier.jpg|thumb|250px|left|[[गंगोत्री]] हिमनद में [[गौमुख]]<br />Gomukh in Gangotri Himnad]] इसका जल स्रोत 5000 मी. ऊँचाई पर स्थित एक बेसिन है। इस बेसिन का मूल पश्चिमी ढलान की संतोपंथ की चोटियों में है। गौमुख के रास्ते में 3600 मी. ऊँचे चिरबासा ग्राम से विशाल गोमुख हिमनद के दर्शन होते हैं। इस हिमनद में [[नंदा देवी पर्वत]], [[कामत पर्वत]] एवं [[त्रिशूल पर्वत]] का हिम पिघल कर आता है। यद्यपि गंगा के आकार लेने में अनेक छोटी धाराओं का योगदान है लेकिन 6 बड़ी और उनकी सहायक 5 छोटी धाराओं का भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्त्व अधिक है। [[अलकनंदा नदी]] की सहायक नदी [[धौली]], [[विष्णु गंगा]] तथा [[मंदाकिनी]] है। [[धौली|धौली गंगा]] का [[अलकनंदा]] से [[विष्णु प्रयाग]] में संगम होता है। यह 1372 मी. की ऊँचाई पर स्थित है। फिर 2805 मी. ऊँचे [[नंद प्रयाग]] में अलकनन्दा का [[नंदाकिनी नदी]] से संगम होता है। इसके बाद [[कर्ण प्रयाग]] में अलकनन्दा का कर्ण गंगा या पिंडर नदी से संगम होता है। फिर [[ऋषिकेश]] से 139 कि.मी. दूर स्थित [[रुद्र प्रयाग]] में अलकनंदा [[मंदाकिनी]] से मिलती है। इसके बाद भागीरथी व अलकनन्दा 1500 फीट पर स्थित [[देव प्रयाग]] में संगम करती हैं यहाँ से यह सम्मिलित जल-धारा गंगा नदी के नाम से आगे प्रवाहित होती है। इन पांच प्रयागों को सम्मिलित रूप से [[पंच प्रयाग]] कहा जाता है।<ref name="टीडीआईएल">{{cite web |url= http://tdil.mit.gov.in/coilnet/ignca/utrn0078.htm|title= उत्तरांचल-एक परिचय|accessmonthday=[[28 अप्रॅल]]|accessyear=[[2008]]|format= एचटीएम|publisher= टीडीआईएल|language=}}</ref> इस प्रकार 200 कि.मी. का संकरा पहाड़ी रास्ता तय करके गंगा नदी [[ऋषिकेश]] होते हुए प्रथम बार मैदानों का स्पर्श [[हरिद्वार]] में करती है।


भारत की विशाल नदी गंगा में [[मछली|मछलियों]] तथा [[सर्प|सर्पों]] की अनेक प्रजातियाँ तो पाई ही जाती हैं और मीठे पानी वाले दुर्लभ [[गंगा डाल्फ़िन|डालफिन]] भी पाए जाते हैं। यह [[कृषि]], [[पर्यटन]], साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बाँध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से संबंधित ज़रूरतों  को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में [[बैक्टीरियोफेज]] नामक [[विषाणु]] होते हैं, जो [[जीवाणु|जीवाणुओं]] व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस असीमित शुद्धीकरण क्षमता और सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसका प्रदूषण रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवंबर, 2008 में [[भारत]] सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी<ref>{{cite web |url= http://www.bihartodayonline.com/2008/11/jagran-yahoo-report_04.html|title= गंगा को भारत की राष्ट्रीय नदी |accessmonthday=[[नवंबर]]|accessyear=[[2008]]|format= एचटीएम|publisher= बिहार टुडे|language=}}</ref><ref>{{cite web |url= http://www.voanews.com/hindi/archive/2008-11/2008-11-04-voa24.cfm|title= गंगा -भारत की राष्ट्रीय नदी |accessmonthday=[[4 नवंबर]]|accessyear=[[2008]]|format= एचटीएम|publisher= वॉयस ऑफ अमेरिका|language=}}</ref> तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (1600 किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग- को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है।<ref>{{cite book |last= |first=|title= समकालीन भारत |year=अप्रॅल 2003 |publisher=राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद |location=नई दिल्ली |id= |page=247-248 |accessday= 23|accessmonth= जून|accessyear= 2009}}</ref>
==पतितपावनी==
भारत की पावन नदी, जिसकी जलधारा में स्नान से पापमुक्ति और जलपान से शुद्धि होती है। यह प्रसिद्ध नदी, [[हिमाचल प्रदेश]] में [[गंगोत्री]] से निकलकर [[मध्यदेश]] से होती हुई [[पश्चिम बंगाल]] के परे गंगासागर में मिलती है। गंगा की घाटी संसार की उर्वरतम घाटियों में से एक है और [[सरयू नदी|सरयू]], [[यमुना नदी|यमुना]], [[सोन नदी|सोन]] आदि अनेक नदियाँ उससे आ मिलती हैं। उसकी घाटी भारतीय सभ्यता के विकास में अन्यतम रही हैं। गंगा को [[संस्कृति|भारतीय संस्कृति]] में विशिष्ट योगदान के कारण ही उसे असाधारण महिमा मिली है, जिससे वह ‘पतितपावनी’ कहलाती है।
[[ऋग्वेद]] के नदीसूक्त में गंगा की स्तुति हुई है और [[पुराण|पुराणों]] ने उसकी महिमा का अनन्त बखान किया है। गंगा की धारा, जो पहाड़ों में मंदाकिनी और [[अलकनन्दा नदी|अलकनन्दा]] की धाराओं के सम्मिलन से बनती है, हिमालय में अत्यन्त क्षीण है और [[हरिद्वार]] के ऊपर कनखल के समीप उत्तरी मैदान में प्रशस्त होकर बहती है और बरसात में उसके [[जल]] का [[वेग]] भयावह हो उठता है।
==भौतिक विशेषताएँ==
====भू-आकृति====
गंगा का उद्गम दक्षिणी [[हिमालय]] में [[तिब्बत]] सीमा के भारतीय हिस्से से होता है। इसकी पाँच आरम्भिक धाराओं [[भागीरथी नदी|भागीरथी]], अलकनन्दा, मंदाकिनी, धौलीगंगा तथा पिंडर का उद्गम [[उत्तराखण्ड]] क्षेत्र, जो [[उत्तर प्रदेश]] का एक संभाग था (वर्तमान उत्तरांचल राज्य) में होता है। दो प्रमुख धाराओं में बड़ी अलकनन्दा का उद्गम हिमालय के [[नंदा देवी पर्वत|नंदा देवी शिखर]] से 48 किलोमीटर दूर तथा दूसरी भागीरथी का उद्गम हिमालय की गंगोत्री नामक [[हिमनद]] के रूप में 3, 050 मीटर की ऊँचाई पर बर्फ़ की गुफ़ा में होता है। गंगोत्री हिन्दुओं का एक तीर्थ स्थान है। वैसे गंगोत्री से 21 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व स्थित गोमुख को गंगा का वास्तविक उद्गम स्थल माना जाता है।
गंगा नदी की प्रधान शाखा भागीरथी है जो कुमायूँ में हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री [[हिमनद]] से निकलती है।<ref name="टीडीआईएल"/> गंगा के इस उद्गम स्थल की ऊँचाई 3140 मीटर है। यहाँ गंगा जी को समर्पित एक मंदिर भी है। [[गंगोत्री]] तीर्थ, शहर से 19 किलोमीटर उत्तर की ओर 3892 मीटर (12,770 फीट) की ऊँचाई पर इस हिमनद का मुख है। यह हिमनद 25 किलोमीटर लंबा व 4 किलोमीटर चौड़ा और लगभग 40 मीटर ऊँचा है। इसी ग्लेशियर से भागीरथी एक छोटे से गुफ़ानुमा मुख पर अवतरित होती है। [[चित्र:Gaumukh-Gangotri-Glacier.jpg|thumb|250px|left|[[गंगोत्री]] हिमनद में [[गौमुख]]<br />Gomukh in Gangotri Himnad]] इसका जल स्रोत 5000 मीटर ऊँचाई पर स्थित एक बेसिन है। इस बेसिन का मूल पश्चिमी ढलान की संतोपंथ की चोटियों में है। गौमुख के रास्ते में 3600 मीटर ऊँचे चिरबासा ग्राम से विशाल गोमुख हिमनद के दर्शन होते हैं। इस हिमनद में [[नंदा देवी पर्वत]], [[कामत पर्वत]] एवं [[त्रिशूल पर्वत]] का हिम पिघल कर आता है।  [[अलकनंदा नदी]] की सहायक नदी [[धौली]], [[विष्णु गंगा]] तथा [[मंदाकिनी]] है। [[धौली|धौली गंगा]] का [[अलकनंदा]] से [[विष्णु प्रयाग]] में संगम होता है। यह 1372 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। फिर 2805 मीटर ऊँचे [[नंद प्रयाग]] में अलकनन्दा का [[नंदाकिनी नदी]] से संगम होता है। इसके बाद [[कर्ण प्रयाग]] में अलकनन्दा का कर्ण गंगा या पिंडर नदी से संगम होता है। फिर [[ऋषिकेश]] से 139 किलोमीटर दूर स्थित [[रुद्र प्रयाग]] में अलकनंदा [[मंदाकिनी]] से मिलती है। इसके बाद भागीरथी व अलकनन्दा 1500 फीट पर स्थित [[देव प्रयाग]] में संगम करती हैं यहाँ से यह सम्मिलित जल-धारा गंगा नदी के नाम से आगे प्रवाहित होती है। इन पांच प्रयागों को सम्मिलित रूप से [[पंच प्रयाग]] कहा जाता है।<ref name="टीडीआईएल">{{cite web |url= http://tdil.mit.gov.in/coilnet/ignca/utrn0078.htm|title= उत्तरांचल-एक परिचय|accessmonthday=[[28 अप्रॅल]]|accessyear=[[2008]]|format= एचटीएम|publisher= टीडीआईएल|language=}}</ref> इस प्रकार 200 कि.मी. का संकरा पहाड़ी रास्ता तय करके गंगा नदी [[ऋषिकेश]] होते हुए प्रथम बार मैदानों का स्पर्श [[हरिद्वार]] में करती है।
देव प्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी का संगम होने के बाद यह गंगा के रूप में दक्षिण हिमालय से [[ऋषिकेश]] के निकट बाहर आती है और [[हरिद्वार]] के बाद मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है। हरिद्वार भी हिन्दुओं का तीर्थ स्थान है। नदी के प्रवाह में मौसम के अनुसार आने वाले थोड़े बहुत परिवर्तन के बावज़ूद इसके जल की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि तब होती है, जब इसमें अन्य सहायक नदियाँ मिलती हैं तथा यह अधिक वर्षा वाले इलाक़े में प्रवेश करती है। एक तरफ [[अप्रॅल]] से [[जून]] के बीच हिमालय में पिघलने वाली बर्फ़ से इसका पोषण होता है, वहीं दूसरी ओर [[जुलाई]] से [[सितम्बर]] के बीच का मानसून इसमें आने वाली बाढ़ों का कारण बनता है। उत्तर प्रदेश राज्य में इसके दाहिने तट की सहायक नदियाँ, यमुना राजधानी [[दिल्ली]] होते हुए [[इलाहाबाद]] में गंगा में शामिल होती है तथा टोन्स नदी है, जो [[मध्य प्रदेश]] के [[विंध्याचल पर्वत|विंध्याचल]] से निकलकर उत्तर की तरफ़ प्रवाहित होती है और शीघ्र ही गंगा में शामिल हो जाती हैं। उत्तर प्रदेश में बाईं तरफ़ की सहायक नदियाँ [[रामगंगा नदी|रामगंगा]], [[गोमती नदी|गोमती]] तथा [[घाघरा नदी|घाघरा]] हैं।
इसके बाद गंगा [[बिहार]] राज्य में प्रवेश करती है, जहाँ इसकी मुख्य सहायक नदियाँ हिमालय क्षेत्र की तरफ़ से  [[गंडक नदी|गंडक]], [[गंडक नदी|बूढ़ी गंडक]], [[कोसी नदी|कोसी]] तथा घुघरी हैं। दक्षिण की तरफ़ से इसकी मुख्य सहायक नदी [[सोन नदी|सोन]] है। यहाँ से यह नदी राजमहल पहाड़ियों का चक्कर लगाती हुई दक्षिण-पूर्व में फरक्का तक पहुँचती है, जो इस डेल्टा का सर्वोच्च बिन्दु है। यहाँ से गंगा भारत में अन्तिम राज्य [[पश्चिम बंगाल]] में प्रवेश करती है, जहाँ उत्तर की तरफ़ से इसमें महानंदा मिलती है (समूचे पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में स्थानीय आबादी गंगा को [[पद्मा नदी|पद्मा]] कहकर पुकारती है)। गंगा के डेल्टा की सुदूर पश्चिमी शाखा [[हुगली नदी|हुगली]] है, जिसके तट पर महानगर [[कोलकाता]] (भूतपूर्व कलकत्ता) बसा हुआ है। स्वयं हुगली में पश्चिम से आकर उसकी दो सहायक नदियाँ [[दामोदर नदी|दामोदर]] व रूपनारायण शामिल होती हैं। बांग्लादेश में ग्वालंदो घाट के निकट गंगा में विशाल [[ब्रह्मपुत्र नदी|ब्रह्मपुत्र]] शामिल होती है (इन दोनों के संगम के 241 किलोमीटर पहले तक इसे फिर यमुना के नाम से बुलाया जाता है)। गंगा और ब्रह्मपुत्र की संयुक्त धारा ही पद्मा कहलाने लगती है और चाँदपुर के निकट वह मेघना में शामिल हो जाती है। इसके बाद यह विराट जलराशि अनेक प्रवाहों में विभाजित होकर [[बंगाल की खाड़ी]] में समा जाती है। बांग्लादेश की राजधानी ढाका धालेश्वदी नदी की सहायक नदी बूढ़ी गंगा के तट पर स्थित है। जिन नदी शाखाओं से गंगा का डेल्टा बनता है, उसकी हुगली और मेघना के अलावा अन्य शाखाएँ पश्चिम बंगाल में जलांगी और बांग्लादेश में मातागंगा, भैरब, काबाडक, गराई-मधुमती तथा अरियल खान हैं।
*डेल्टा क्षेत्र में स्थित गंगा की सभी सहायक नदियाँ और शाखाएँ मौसम में परिवर्तनों के कारण अक्सर अपना रास्ता बदल लेती हैं। ये परिवर्तन इधर, विशेषकर 1750 ई. के बाद से ज़्यादा होने लगे हैं। ब्रह्मपुत्र 1785 ई. तक मैमनसिंह शहर के पास से बहती थी, अब यह वहाँ से 64 किलोमीटर पश्चिम में गंगा में मिलती है।
*गंगा तथा ब्रह्मपुत्र की नदी घाटियों से बहकर आई हुई गाद से बने डेल्टा का क्षेत्रफल 60,000 वर्ग किलोमीटर है तथा उसका निर्माण [[मिट्टी]], रेत तथा [[खड़िया]] की क्रमिक परतों से हुआ है। यहाँ पर सड़ी-गली वनस्पति (पीट) लिग्नाइट (भूरे कोयले) की परतें भी उन इलाक़ों में मिलती हैं, जहाँ पहले घने वन हुआ करते थे। डेल्टा में नहरों के आसपास बाद में प्राकृतिक रूप से बहुत-सा खादर भी जमा हुआ है।
*गंगा डेल्टा की दक्षिणी सतह का निर्माण तेज़ गति से तथा तुलनात्मक रूप से हाल में बहकर आई गाद की भारी मात्रा से हुआ है। पूरब में समुद्र की तरफ़ इसी गाद के कारण बड़ी तेज़ी से नए-नए भूक्षेत्र (नदी द्वीप) बनते जा रहे हैं, जिन्हें ‘चार’ कहते हैं। वैसे डेल्टा का पश्चिमी समुद्री तट 18वीं सदी के बाद से लगभग अपरिवर्तित है।
*पश्चिम बंगाल की नदियों का प्रवाह बहुत धीमा है और उनसे काफ़ी कम पानी समुद्र में प्रवाहित होता है। बांग्लादेशी डेल्टा क्षेत्र में नदियाँ चौड़ी तथा गतिमान हैं और उनमें पानी विपुल मात्रा में बहता है। ये नदियाँ अनेक संकरी पहाड़ियों से परस्पर जुड़ी हुई हैं।
*वर्षा ऋतु (जून से [[अक्टूबर]]) में इस इलाक़े में कृत्रिम रूप से निर्मित उच्चभूमि पर बसाए गए गाँव कई फ़ीट पानी में डूब जाते हैं। इस मौसम में इन बस्तियों के बीच आवागमन का एकमात्र साधन नौकाएँ ही होती हैं।
*समूचे डेल्टा क्षेत्र का समुद्रतटीय इलाक़ा दलदली है। यह पूरा क्षेत्र सुन्दरवन कहलाता है और [[भारत]] व [[बांग्लादेश]], दोनों ने इसे संरक्षित क्षेत्र घोषित कर रखा है।
*इस डेल्टा के कुछ हिस्सों में जंगली वनस्पतियों तथा धान से निर्मित पीट की परतें हैं। अनेक प्राकृतिक खाइयों (बिलों) में उस पीट के बनने की क्रिया जारी है। जिसका उपयोग स्थानीय किसान खाद, सुखाकर घरेलू तथा औद्योगिक ईधन के रूप में करते हैं।
====जलवायु====
गंगा के बेसिन में इस उपमहाद्वीप की विशालतम नदी प्रणाली स्थित है। यहाँ [[जल]] की आपूर्ति मुख्यत: [[जुलाई]] से [[अक्टूबर]] के बीच दक्षिण-पश्चिमी मानसून तथा अप्रॅल से जून के बीच ग्रीष्म ऋतु के दौरान पिघलने वाली [[हिमालय]] की बर्फ़ से होती है। नदी के बेसिन में मानसून के उन कटिबंधीय तूफ़ानों से भी वर्षा होती है, जो जून से अक्टूबर के बीच बंगाल की खाड़ी में पैदा होते हैं। [[दिसम्बर]] और [[जनवरी]] में बहुत कम मात्रा में वर्षा होती है। औसत वार्षिक वर्षा बेसिन के पश्चिमी सिरे में 760 मिलीमीटर से लेकर पूर्वी सिरे पर 2,286 मिलीमीटर के बीच होती है ([[उत्तर प्रदेश]] में गंगा के ऊपरी कछार में जहाँ औसत वर्षा 762 से 1,016 मिलीमीटर होती है, वहीं बिहार के मध्यवर्ती मैदान में यह औसत 1,016 से 1,524 मिलीमीटर तथा डेल्टा क्षेत्र में 1,524 से 2,540 मिलीमीटर के बीच है)। डेल्टा क्षेत्र में मानसून के प्रारम्भ ([[मार्च]] से [[मई]]) तथा मानसून के अन्त ([[सितम्बर]] से [[अक्टूबर]]) में ज़ोरदार चक्रवाती समुद्री तूफ़ान आते हैं। इनसे काफ़ी बड़ी मात्रा में मानव जीवन, सम्पत्ति, फ़सलों तथा पशुओं का नुक़सान होता है। ऐसा ही एक भीषण विनाशकारी तूफ़ान [[नवम्बर]], [[1970]] में आया था, जिसमें कम से कम दो लाख और अधिक से अधिक पाँच लाख लोगों की मौत हुई थी।
चूँकि गंगा के मैदान में उतार-चढ़ाव लगभग न के बराबर है, अत: नदी प्रवाह की गति धीमी है। [[दिल्ली]] में [[यमुना नदी]] से लेकर बंगाल की खाड़ी के 1,609 किलोमीटर के सम्पूर्ण फ़ासले में भूतल की ऊँचाई में मात्र 213 मीटर की कमी आती है। गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान का कुल विस्तार 7,77,000 वर्ग किलोमीटर है। इस मैदान में मिट्टी की सतह, जो कहीं-कहीं 1,829 मीटर से भी ज़्यादा है, सम्भवत: 10 हज़ार वर्ष से अधिक पुरानी नहीं है।
====वनस्पति====
गंगा-यमुना के इलाक़े में कभी घने जंगल हुआ करते थे। ऐतिहासिक ग्रन्थों से पता चलता है कि 16वीं और 17वीं सदी तक यहाँ जंगली [[हाथी]], गौर, [[बारहसिंगा]], गैंडा, [[बाघ]] तथा [[सिंह|शेर]] का शिकार होता था। गंगा के सम्पूर्ण बेसिन से वहाँ की मूल प्राकृतिक वनस्पतियाँ लुप्त हो गई हैं और वहाँ अब लगातार बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए व्यापक रूप में खेती की जाती है। हिरन, जंगली सूअर, जंगली बिल्लियाँ तथा कुछ भेड़िए, भालू, सियार और लोमड़ी को छोड़कर जंगली जानवर बहुत कम हैं। डेल्टा के सुन्दरवन इलाक़े में बंगाल टाइगर (शेर), मगरमच्छ तथा दलदली हिरन अब भी मिल जाते हैं। नदियों में, ख़ासतौर से डेल्टा क्षेत्र में मछलियाँ विपुल मात्रा में पाई जाती हैं और स्थानीय निवासियों के भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ पर मैना, तोता, कौआ, चील, तीतर और मुर्ग़ाबी जैसे पक्षियों की भी कई क़िस्में पाई जाती हैं। जाड़े के मौसम में बत्तख़ और चाहा पक्षी ऊँचे हिमालय को पार करके दक्षिण में पानी से घिरे क्षेत्रों की तरफ़ प्रवास करते हैं। बंगाल के इलाक़े में आमतौर से पाई जाने वाली मछलियों में फ़ेदर बैक (नोटोप्टेरिडी), वॉकिंग कैटफ़िश, गोरामि (एनाबैंटिडी) तथा मिल्कफ़िश (चैनिडी), बार्ब (सिप्राइनिडी) आदि प्रमुख हैं।
====जनजीवन====
गंगा के बेसिन के निवासी नृजातीय रूप से मिश्रित मूल के हैं। पश्चिम और मध्य बेसिन में वे मूलत: [[आर्य]] पूर्वजों की सन्तान थे। बाद में तुर्क, [[मंगोल]], अफ़ग़ानी, फ़ारसी तथा अरब लोग पश्चिम से आय और अंतमिश्रित हो गए। पूरब और दक्षिण, ख़ासतौर से बंगाल के इलाक़े में तिब्बती, बर्मी तथा विविध नस्ल के पहाड़ी लोग भी मिलते हैं। इनसे भी बाद में आने वाले यूरोपीय लोग यहाँ न तो बसे और न ही स्थानीय लोगों के साथ [[विवाह]] सम्बन्ध बनाये।
==गंगा का मैदान==
==गंगा का मैदान==
[[चित्र:Garwhal-Gangotri-Waterfall.jpg|thumb|180px|[[गंगोत्री]] झरना, [[गढ़वाल]]<br />Gangotri Waterfall, Garhwal]]
[[चित्र:Garwhal-Gangotri-Waterfall.jpg|thumb|180px|[[गंगोत्री]] झरना, [[गढ़वाल]]<br />Gangotri Waterfall, Garhwal]]
हरिद्वार से लगभग 800 कि.मी. मैदानी यात्रा करते हुए [[गढ़मुक्तेश्वर]],सोरों, [[फर्रुखाबाद]], [[कन्नौज]], [[बिठूर]], [[कानपुर]] होते हुए गंगा इलाहाबाद (प्रयाग) पहुँचती है। यहाँ इसका संगम [[यमुना नदी|यमुना]] नदी से होता है। यह संगम स्थल हिन्दुओं का एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। इसे तीर्थराज प्रयाग कहा जाता है। इसके बाद हिन्दू धर्म की प्रमुख मोक्षदायिनी नगरी [[काशी]] ([[वाराणसी]]) में गंगा एक वक्र लेती है, जिससे यह यहाँ उत्तरवाहिनी कहलाती है। यहाँ से [[मीरजापुर]], [[पटना]], [[भागलपुर]] होते हुए [[पाकुर]] पहुँचती है। इस बीच इसमें बहुत-सी सहायक नदियाँ, जैसे [[सोन नदी|सोन]], [[गंडक नदी|गंडक]], [[घाघरा नदी|घाघरा]], [[कोसी नदी|कोसी]] आदि मिल जाती हैं। [[भागलपुर]] में [[राजमहल]] की पहाड़ियों से यह दक्षिणवर्ती होती है। पश्चिम बंगाल के [[मुर्शिदाबाद ज़िला|मुर्शिदाबाद ज़िले]] के गिरिया स्थान के पास गंगा नदी दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है-भागीरथी और पद्मा। [[भागीरथी नदी]] गिरिया से दक्षिण की ओर बहने लगती है जबकि पद्मा नदी दक्षिण-पूर्व की ओर बहती [[फरक्का बैराज]] ([[1974]] निर्मित) से छनते हुई बंगला देश में प्रवेश करती है। यहाँ से गंगा का डेल्टाई भाग शुरू हो जाता है। मुर्शिदाबाद शहर से हुगली शहर तक गंगा का नाम भागीरथी नदी तथा हुगली शहर से मुहाने तक गंगा का नाम [[हुगली नदी]] है। गंगा का यह मैदान मूलत: एक भू-अभिनति गर्त है जिसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय पर्वतमाला निर्माण प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग 6-4 करोड़ वर्ष पहले हुआ था। तब से इसे हिमालय और प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ लाए हुए अवसादों से पाट रही हैं। इन मैदानों में जलोढ़ की औसत गहराई 1000 से 2000 मीटर है। इस मैदान में नदी की प्रौढ़ावस्था में बनने वाली अपरदनी और निक्षेपण स्थलाकॄतियाँ, जैसे- बालू-रोधका, विसर्प, गोखुर झीलें और गुंफित नदियाँ पाई जाती हैं।<ref>{{cite web |url= http://vimi.wordpress.com/2009/02/22/bharat_sanrachana/|title=भारत की भौतिक संरचना|accessmonthday=[[22 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=पर्यावरण के विभिन्न घटक|language=}}</ref>
गंगा, इलाहाबाद (प्रयाग) हरिद्वार से लगभग 800 किलोमीटर मैदानी यात्रा करते हुए [[गढ़मुक्तेश्वर]],सोरों, [[फर्रुखाबाद]], [[कन्नौज]], [[बिठूर]], [[कानपुर]] होते हुए पहुँचती है। यहाँ इसका संगम [[यमुना नदी|यमुना]] नदी से होता है। यह संगम स्थल हिन्दुओं का एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। इसे तीर्थराज प्रयाग कहा जाता है। इसके बाद हिन्दू धर्म की प्रमुख मोक्षदायिनी नगरी [[काशी]] ([[वाराणसी]]) में गंगा एक वक्र लेती है, जिससे यह यहाँ उत्तरवाहिनी कहलाती है। यहाँ से [[मीरजापुर]], [[पटना]], [[भागलपुर]] होते हुए [[पाकुर]] पहुँचती है। इस बीच इसमें बहुत-सी सहायक नदियाँ, जैसे [[सोन नदी|सोन]], [[गंडक नदी|गंडक]], [[घाघरा नदी|घाघरा]], [[कोसी नदी|कोसी]] आदि मिल जाती हैं। [[भागलपुर]] में [[राजमहल]] की पहाड़ियों से यह दक्षिणवर्ती होती है। पश्चिम बंगाल के [[मुर्शिदाबाद ज़िला|मुर्शिदाबाद ज़िले]] के गिरिया स्थान के पास गंगा नदी दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है-भागीरथी और पद्मा। [[भागीरथी नदी]] गिरिया से दक्षिण की ओर बहने लगती है जबकि पद्मा नदी दक्षिण-पूर्व की ओर बहती [[फरक्का बैराज]] ([[1974]] निर्मित) से छनते हुई बंगला देश में प्रवेश करती है। यहाँ से गंगा का डेल्टाई भाग शुरू हो जाता है। मुर्शिदाबाद शहर से हुगली शहर तक गंगा का नाम भागीरथी नदी तथा हुगली शहर से मुहाने तक गंगा का नाम [[हुगली नदी]] है। गंगा का यह मैदान मूलत: एक भू-अभिनति गर्त है जिसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय पर्वतमाला निर्माण प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग 6-4 करोड़ वर्ष पहले हुआ था। तब से इसे हिमालय और प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ लाए हुए अवसादों से पाट रही हैं। इन मैदानों में जलोढ़ की औसत गहराई 1000 से 2000 मीटर है। इस मैदान में नदी की प्रौढ़ावस्था में बनने वाली अपरदनी और निक्षेपण स्थलाकॄतियाँ, जैसे- बालू-रोधका, विसर्प, गोखुर झीलें और गुंफित नदियाँ पाई जाती हैं।<ref>{{cite web |url= http://vimi.wordpress.com/2009/02/22/bharat_sanrachana/|title=भारत की भौतिक संरचना|accessmonthday=[[22 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=पर्यावरण के विभिन्न घटक|language=}}</ref>
 
गंगा के मैदान में अनेक नगर बसे, जिनमें मुख्य रूप से रूड़की, [[सहारनपुर]], [[मेरठ]], आगरा (मशहूर मक़बरे [[ताजमहल]] का शहर), [[मथुरा]] (भगवान [[श्रीकृष्ण]] की जन्मस्थली के रूप में पूजनीय), [[अलीगढ़]], कानपुर, [[बरेली]], [[लखनऊ]], [[इलाहाबाद]], [[वाराणसी]] (पवित्र शहर बनारस), [[पटना]], [[भागलपुर]], राजशाही, मुर्शिदाबाद, बर्दवान (वर्द्धमान), कलकत्ता, हावड़ा, ढाका, खुलना और बारीसाल उल्लेखनीय हैं। डेल्टा क्षेत्र में कलकत्ता और उसके उपनगर हुगली के दोनों किनारों पर लगभग 80 किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं व भारत के जनसंख्या, व्यापार तथा उद्योग को दृष्टि से सबसे घने बसे हुए इलाक़ों में गिने जाते हैं।
 
ऐतिहासिक रूप से गंगा के मैदान से ही हिन्दुस्तान का हृदय स्थल निर्मित है और वही बाद में आने वाली विभिन्न सभ्यताओं का पालना बना। [[अशोक]] के ई. पू. के साम्राज्य का केन्द्र पाटलिपुत्र ([[पटना]]), बिहार में गंगा के तट पर बसा हुआ था। महान [[मुग़ल साम्राज्य]] के केन्द्र दिल्ली और [[आगरा]] भी गंगा के बेसिन की पश्चिमी सीमाओं पर स्थित थे। सातवीं सदी के मध्य में [[कानपुर]] के उत्तर में गंगा तट पर स्थित [[कन्नौज]], जिसमें अधिकांश उत्तरी भारत आता था, हर्ष के सामन्तकालीन साम्राज्य का केन्द्र था। मुस्लिम काल के दौरान, यानी 12वीं सदी से [[मुसलमान|मुसलमानों]] का शासन न केवल मैदान, बल्कि बंगाल तक फैला हुआ था। डेल्टा क्षेत्र के ढाका और [[मुर्शिदाबाद]] मुस्लिम सत्ता के केन्द्र थे। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने 17वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुगली के तट पर कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) की स्थापना करने के बाद धीरे-धीरे अपने पैर गंगा की घाटी में फैलाए और 19वीं सदी के मध्य में दिल्ली तक जा पहुँचे।


गंगा की इस घाटी में एक ऐसी सभ्यता का उद्भव और विकास हुआ जिसका प्राचीन इतिहास अत्यन्त गौरवमयी और वैभवशाली है। जहाँ ज्ञान, धर्म, अध्यात्म व सभ्यता-संस्कृति की ऐसी किरण प्रस्फुटित हुई जिससे न केवल भारत बल्कि समस्त संसार आलोकित हुआ। पाषाण या प्रस्तर युग का जन्म और विकास यहाँ होने के अनेक साक्ष्य मिले हैं। इसी घाटी में [[रामायण]] और [[महाभारत]] कालीन युग का उद्भव और विलय हुआ। [[शतपथ ब्राह्मण]], [[पंचविश ब्राह्मण]], [[गौपथ ब्राह्मण]], [[ऐतरेय आरण्यक]], [[कौशितकी आरण्यक]], [[सांख्यायन आरण्यक]], [[वाजसनेयी संहिता]] और [[महाभारत]] इत्यादि में वर्णित घटनाओं से उत्तर वैदिककालीन गंगा घाटी की जानकारी मिलती है। प्राचीन [[मगध महाजनपद ]] का उद्भव गंगा घाटी में ही हुआ जहाँ से गणराज्यों की परंपरा विश्व में पहली बार प्रारंभ हुई। यहीं भारत का वह स्वर्ण युग विकसित हुआ जब [[मौर्य वंश|मौर्य]] और [[गुप्त वंश|गुप्त]] वंशीय राजाओं ने यहाँ शासन किया।
गंगा की इस घाटी में एक ऐसी सभ्यता का उद्भव और विकास हुआ जिसका प्राचीन इतिहास अत्यन्त गौरवमयी और वैभवशाली है। जहाँ ज्ञान, धर्म, अध्यात्म व सभ्यता-संस्कृति की ऐसी किरण प्रस्फुटित हुई जिससे न केवल भारत बल्कि समस्त संसार आलोकित हुआ। पाषाण या प्रस्तर युग का जन्म और विकास यहाँ होने के अनेक साक्ष्य मिले हैं। इसी घाटी में [[रामायण]] और [[महाभारत]] कालीन युग का उद्भव और विलय हुआ। [[शतपथ ब्राह्मण]], [[पंचविश ब्राह्मण]], [[गौपथ ब्राह्मण]], [[ऐतरेय आरण्यक]], [[कौशितकी आरण्यक]], [[सांख्यायन आरण्यक]], [[वाजसनेयी संहिता]] और [[महाभारत]] इत्यादि में वर्णित घटनाओं से उत्तर वैदिककालीन गंगा घाटी की जानकारी मिलती है। प्राचीन [[मगध महाजनपद ]] का उद्भव गंगा घाटी में ही हुआ जहाँ से गणराज्यों की परंपरा विश्व में पहली बार प्रारंभ हुई। यहीं भारत का वह स्वर्ण युग विकसित हुआ जब [[मौर्य वंश|मौर्य]] और [[गुप्त वंश|गुप्त]] वंशीय राजाओं ने यहाँ शासन किया।
पंक्ति 30: पंक्ति 62:
==बाँध एवं नदी परियोजनाएँ==
==बाँध एवं नदी परियोजनाएँ==
गंगा नदी पर निर्मित अनेक बाँध भारतीय जन-जीवन तथा अर्थ व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनमें प्रमुख हैं फ़रक्का बाँध, टिहरी बाँध, तथा भीमगोडा बाँध। फ़रक्का बांध (बैराज) भारत के [[पश्चिम बंगाल]] प्रान्त में स्थित गंगा नदी पर बनाया गया है। इस बाँध का निर्माण [[कोलकाता]] बंदरगाह को गाद (सिल्ट) से मुक्त कराने के लिये किया गया था जो कि 1950 से 1960 तक इस बंदरगाह की प्रमुख समस्या थी। कोलकाता [[हुगली नदी]] पर स्थित एक प्रमुख बंदरगाह है। ग्रीष्म ऋतु में हुगली नदी के बहाव को निरंतर बनाये रखने के लिये गंगा नदी के जल के एक बड़े हिस्से को फ़रक्का बाँध के द्वारा हुगली नदी में मोड़ दिया जाता है। गंगा पर निर्मित दूसरा प्रमुख बाँध [[टिहरी बाँध]] टिहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है जो [[उत्तराखंड]] प्रान्त के [[टिहरी ज़िला|टिहरी]] ज़िले में स्थित है। यह बाँध गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई 261 मीटर है जो इसे विश्व का पाँचवाँ सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। इस बाँध से 2400 मेगावाट विद्युत उत्पादन, 270,000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर-प्रदेश एवं उत्तरांचल को उपलब्ध कराना प्रस्तावित है। तीसरा प्रमुख बाँध भीमगोडा बाँध [[हरिद्वार]] में स्थित है जिसको सन 1840 में अंग्रेजो ने गंगा नदी के पानी को विभाजित कर ऊपरी गंगा नहर में मोड़ने के लिये बनवाया था। यह नहर हरिद्वार के भीमगोडा नामक स्‍थान से गंगा नदी के दाहिने तट से निकलती है। प्रारम्‍भ में इस नहर में जलापूर्ति गंगा नदी में एक अस्‍थायी बॉंध बनाकर की जाती थी। वर्षाकाल प्रारम्‍भ होते ही अस्‍थायी बॉंध टूट जाया करता था तथा मानसून अवधि में नहर में पानी चलाया जाता था। इस प्रकार इस नहर से केवल रबी की फ़सलों की ही सिंचाई हो पाती थी। अस्‍थायी बॉंध निर्माण स्‍थल के डाउनस्‍ट्रीम में वर्ष 1978-1984 की अवधि में भीमगोडा बैराज का निर्माण करवाया गया। इसके बन जाने के बाद ऊपरी गंगा नहर प्रणाली से खरीफ की फ़सल में भी पानी दिया जाने लगा।
गंगा नदी पर निर्मित अनेक बाँध भारतीय जन-जीवन तथा अर्थ व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनमें प्रमुख हैं फ़रक्का बाँध, टिहरी बाँध, तथा भीमगोडा बाँध। फ़रक्का बांध (बैराज) भारत के [[पश्चिम बंगाल]] प्रान्त में स्थित गंगा नदी पर बनाया गया है। इस बाँध का निर्माण [[कोलकाता]] बंदरगाह को गाद (सिल्ट) से मुक्त कराने के लिये किया गया था जो कि 1950 से 1960 तक इस बंदरगाह की प्रमुख समस्या थी। कोलकाता [[हुगली नदी]] पर स्थित एक प्रमुख बंदरगाह है। ग्रीष्म ऋतु में हुगली नदी के बहाव को निरंतर बनाये रखने के लिये गंगा नदी के जल के एक बड़े हिस्से को फ़रक्का बाँध के द्वारा हुगली नदी में मोड़ दिया जाता है। गंगा पर निर्मित दूसरा प्रमुख बाँध [[टिहरी बाँध]] टिहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है जो [[उत्तराखंड]] प्रान्त के [[टिहरी ज़िला|टिहरी]] ज़िले में स्थित है। यह बाँध गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई 261 मीटर है जो इसे विश्व का पाँचवाँ सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। इस बाँध से 2400 मेगावाट विद्युत उत्पादन, 270,000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर-प्रदेश एवं उत्तरांचल को उपलब्ध कराना प्रस्तावित है। तीसरा प्रमुख बाँध भीमगोडा बाँध [[हरिद्वार]] में स्थित है जिसको सन 1840 में अंग्रेजो ने गंगा नदी के पानी को विभाजित कर ऊपरी गंगा नहर में मोड़ने के लिये बनवाया था। यह नहर हरिद्वार के भीमगोडा नामक स्‍थान से गंगा नदी के दाहिने तट से निकलती है। प्रारम्‍भ में इस नहर में जलापूर्ति गंगा नदी में एक अस्‍थायी बॉंध बनाकर की जाती थी। वर्षाकाल प्रारम्‍भ होते ही अस्‍थायी बॉंध टूट जाया करता था तथा मानसून अवधि में नहर में पानी चलाया जाता था। इस प्रकार इस नहर से केवल रबी की फ़सलों की ही सिंचाई हो पाती थी। अस्‍थायी बॉंध निर्माण स्‍थल के डाउनस्‍ट्रीम में वर्ष 1978-1984 की अवधि में भीमगोडा बैराज का निर्माण करवाया गया। इसके बन जाने के बाद ऊपरी गंगा नहर प्रणाली से खरीफ की फ़सल में भी पानी दिया जाने लगा।
==अर्थव्यवस्था==
====सिंचाई====
सिंचाई के लिए गंगा के पानी का उपयोग, चाहे बाढ़ का पानी हो या फिर नहरों का, पुरातन काल से ही प्रचलित है। इस तरह की सिंचाई का उल्लेख धर्मग्रन्थों तथा 2,000 से भी ज़्यादा वर्ष पहले लिखे [[पुराण|पुराणों]] में मिलता है। चौथी सदी में [[यूनान]] से भारत आए राजदूत [[मेगस्थनीज़]] ने यहाँ सिंचाई के उपयोग का उल्लेख किया है। 12वीं सदी से मुस्लिम काल में सिंचाई प्रणाली बहुत विकसित थी और [[मुग़ल]] बादशाहों ने बाद में बहुत सी नहरों का निर्माण किया। बाद में ब्रिटिश शासकों ने सिंचाई प्रणाली का और भी विस्तार किया।
उत्तर प्रदेश और [[बिहार]] स्थित गंगा घाटी के [[कृषि]] क्षेत्रों को सिंचाई नहरों की प्रणाली से बहुत लाभ हुआ है। ख़ासतौर से इस विकसित सिंचाई प्रणाली के कारण [[गन्ना]], कपास और तिलहन जैसी नक़दी फ़सलों की पैदावार में वृद्धि सम्भव हुई। पुरानी नहरें मुख्यत: गंगा-यमुना के दौआब इलाक़े में हैं। ऊपरी गंगा नहर [[हरिद्वार]] से शुरू होती है और अपनी सहायक नहरों सहित 9,524 किलोमीटर लम्बी है। निचली गंगा नहर की लम्बाई अपनी सहायक नहरों सहित 8,238 किलोमीटर है और यह नरोरा से प्रारम्भ होती है। [[शारदा नहर]] से उत्तर प्रदेश में [[अयोध्या]] की भूमि सींची जाती है। गंगा के उत्तर में भूमि की ऊँचाई अधिक होने से नहरों के द्वारा सिंचाई करना कठिन होने के कारण भूमिगत जल पम्प द्वारा खींचकर सतह पर लाया जाता है। उत्तर प्रदेश और बिहार के काफ़ी बड़े इलाक़े में हाथ से खोदे हुए [[कुआँ|कुओं]] से निकली नहरों के द्वारा सिंचाई की जाती है।
[[बांग्लादेश]] में गंगा-कबाडाक योजना मुख्यत: सिंचाई के लिए ही है और उसमें खुलना, जेशोर और कुश्तिया ज़िलों के वे हिस्से आते हैं, जो डेल्टा के कमज़ोर हिस्से हैं, जहाँ नदियों का मार्ग गाद और घनी झाड़ियों के कारण अवरुद्ध हो चुका है। इस इलाक़े में कुल वार्षिक वर्षा सामान्यत: 1,524 मिलीमीटर से कम होती है तथा शीत ऋतु तुलनात्मक रूप से शुष्क रहती है। यहाँ की सिंचाई प्रणाली भी नहरों तथा भूमिगत जल खींचने वाले विद्युतचालित उपकरणों पर आधारित है।
====नौकायन====
प्राचीन काल में गंगा और इसकी कुछ सहायक नदियाँ, ख़ासतौर से पूरब में, नौकायन के उपयुक्त थीं। मेगस्थनीज़ के अनुसार, चौथी शताब्दी ई. पू. में गंगा और इसकी प्रमुख सहायक नदियों में नौकायन होता था। गंगा के बेसिन में अंतर्देशीय नदी नौकायन 14वीं शताब्दी तक भी फल-फूल रहा था। 19वीं सदी के आते-आते सिंचाई तथा नौकायन के लिए उपयुक्त नहरों की जल परिवहन प्रणाली के प्रमुख मार्ग बन चुके थे। पैंडल स्टीमरों के आगमन से अंतर्देशीय परिवहन में भी जो क्रान्ति आई, उससे बंगाल और बिहार के नील उद्योग को बहुत बढ़ावा मिला। गंगा में कलकत्ता से इलाहाबाद और उससे आगे यमुना में आगरा तक तथा उधर [[ब्रह्मपुत्र नदी|ब्रह्मपुत्र]] तक नियमित स्टीमर सेवाएँ चलने लगीं।
19वीं सदी के मध्य में रेलमार्गों के बनने से बड़े पैमाने पर जल परिवहन में गिरावट शुरू हो गई। सिंचाई हेतु पानी बहुत अधिक मात्रा में खींच लिए जाने से भी नौकायन विपरीत रूप से प्रभावित हुआ। अब तो नौकायन केवल इलाहाबाद के आसपास के मध्य गंगा बेसिन तक ही सीमित होकर रह गया है, जिसमें से अधिकांश देसी नौकाओं पर आधारित हैं।
पश्चिम बंगाल तथा बांग्लादेश अब भी [[जूट]], घास, [[चाय]], अनाज तथा अन्य कृषि और ग्रामीण उत्पादों के परिवहन के लिए जलमार्गों पर निर्भर हैं। बांग्लादेश में चालना, खुलना, बारीसाल, चाँदपुर, नारायणगंज, ग्वालंदो घाट, सिरसागंज, भैरव बाज़ार तथा फेंचूगंज और भारत में कोलकाता, गोलपाड़ा, [[धुबुरी]] और डिब्रूगढ़ प्रमुख नदी बंदरगाह हैं। [[1947]] में भारत के विभाजन से बड़े दूरगामी परिवर्तन हुए। कलकत्ता से [[असम]] तक अंतर्देशीय जलमार्गों के द्वारा पहले बड़े पैमाने पर होने वाला व्यापार लगभग बन्द ही हो गया।
बांग्लादेश में अंतर्देशीय जल परिवहन की ज़िम्मेदारी अंतर्देशीय जल परिवहन प्राधिकरण की है। भारत में अंतर्देशीय जलमार्गों का नीति निर्धारण केन्द्रीय अंतर्देशीय जल परिवहन मण्डल (सेंट्रल वॉटर ट्रांसपोर्ट बोर्ड) करता है। लेकिन राष्ट्रीय जलमार्गों की व्यापक प्रणाली का विकास एवं रख-रखाव अंतर्देशीय जलमार्ग (इनलैंड वॉटरवेज़ अथॉरिटी) प्राधिकरण करता है। गंगा के बेसिन में इलाहाबाद से लेकर हल्दिया तक लगभग 1,607 किलोमीटर लम्बा जलमार्ग इस प्रणाली में शामिल है।
डेल्टा के मुख पर भारत की सीमा के ठीक भीतर फ़रक्का बाँध का निर्माण बांग्लादेश और भारत के बीच विवाद का कारण बन गया है। भारत का कहना है कि गाद के जमने तथा खारा पानी घुस आने की वजह से कोलकाता बंदरगाह का पतन हो गया है। कोलकाता की स्थिति में सुधार के लिए खारे पानी को निकालकर और जलस्तर को बढ़ाकर भारत ने फ़रक्का बैराज से गंगा को मोड़कर ताज़ा पानी हासिल करने की कोशिश की है। अब एक बड़ी नहर द्वारा पानी [[भागीरथी नदी]] में लाया जाता है, जो कोलकाता से परे [[हुगली नदी]] में समाहित होता है।
बांग्लादेश का कहना है कि नदियों के तटवर्ती देशों की परस्पर समृद्धि के लिए यह ज़रूरी है कि अंतर्देशीय नदियों के पानी पर उनका संयुक्त नियंत्रण होना चाहिए। सिंचाई, नौकायन तथा खारे पानी की रोकथाम के लिए गंगा का पानी बांग्लादेश में भी उतना ही आवश्यक है, जितना भारत के लिए। बांग्लादेश के अनुसार, फ़रक्का बाँध ने उसे पानी के एक ऐसे बहुमूल्य स्रोत से वंचित कर दिया है, जो कि उसकी समृद्धि के लिए आवश्यक है। दूसरी तरफ़ [[भारत]] गंगाजल की समस्या के बारे में द्विपक्षीय रवैया अपनाये जाने के पक्ष में है। दोनों देशों के बीच कई अंतरिम समझौते हुए हैं, लेकिन अभी तक इस विवाद का कोई स्थायी हल नहीं निकल पाया है। भारत के असम में ब्रह्मपुत्र के पानी को बांग्लादेश से होकर एक नहर द्वारा गंगा में मोड़ने के प्रस्ताव के जवाब में बांग्लादेश ने सुझाया है कि पूर्वी [[नेपाल]], पश्चिम बंगाल होते हुए एक नहर बांग्लादेश तक बनाई जाए। किसी भी प्रस्ताव को सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। [[1987]] तथा [[1988]] में बांग्लादेश में आई प्रलयंकारी बाढ़ों, जिसमें 1988 की बाढ़ उस देश के इतिहास की सर्वाधिक विनाशकारी बाढ़ थी, इसको देखते हुए विश्व बैंक ने इस क्षेत्र के लिए अब बाढ़ नियंत्रण की एक दूरगामी योजना बनाई है।
====पनबिजली योजना====
गंगा की लगभग 130 लाख किलोवाट की अनुमानित जलविद्युत क्षमता का 2/5 हिस्सा भारत में तथा शेष नेपाल में है। इस क्षमता में से कुछ का दोहन भारत ने [[चंबल नदी|चंबल]] और रिहंद नदियों द्वारा किया है।
गंगा का मैदान दुनिया की सबसे घनी आबादी वाला तथा उपजाऊ इलाक़ों में से एक है। चूँकि इस मैदानी क्षेत्र में अवरोध न के बराबर है, इसीलिए गंगा की धारा अधिकांश इलाक़े में चौड़ी व धीमी गति से प्रवाहित है। उसके कुल अपवाह बेसिन का 9,75,900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल, यानी भारत के कुल क्षेत्र का लगभग चौथाई हिस्सा है और उस पर लगभग 50 करोड़ की आबादी निर्भर करती है। इस बेसिन की भूमि पर गहन खेती होती है। गंगा प्रणाली की जलापूर्ति आंशिक रूप से जुलाई से अक्टूबर के बीच होने वाली मानसून की वर्षा और अप्रॅल से जून के बीच [[हिमालय]] पर गर्मी से पिघलने वाली बर्फ़ पर निर्भर करती हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप का यह विस्तृत उत्तर-मध्य खण्ड, जिसे उत्तर भारतीय मैदान भी कहा जाता है, पश्चिम में ब्रह्मपुत्र नदी घाटी और गंगा के डेल्टा से लेकर [[सिंधु नदी|सिंधु नदी घाटी]] तक फैला हुआ है। इस इलाक़े में इस उपमहाद्वीप के सबसे समृद्ध और सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं। इस मैदान का अधिकांश हिस्सा गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के द्वारा पूर्व में सिंध नदी द्वारा पश्चिम में बहकर लाई गई कछारी मिट्टी से बना हुआ है। मैदान के पूर्वी हिस्सों में कम बारिश या सर्दियाँ शुष्क होती हैं। किन्तु मानसून की वर्षा इतनी अधिक होती है कि बड़े-बड़े इलाक़ों में दलदल या उथली झीलें बन जाती हैं। ज्यों-ज्यों पश्चिम की ओर बढ़ते हैं, यह मैदान शुष्क होता चला जाता है और अन्त में थार के रेगिस्तान में बदल जाता है।


== प्रदूषण एवं पर्यावरण ==  
== प्रदूषण एवं पर्यावरण ==  
पंक्ति 37: पंक्ति 92:
==धार्मिक महत्त्व==
==धार्मिक महत्त्व==
[[भारत]] की अनेक धार्मिक अवधारणाओं में गंगा नदी को [[गंगा देवी|देवी]] के रूप में निरुपित किया गया है। बहुत से पवित्र [[तीर्थस्थल]] गंगा नदी के किनारे पर बसे हुये हैं जिनमें [[वाराणसी]] और [[हरिद्वार]] सबसे प्रमुख हैं। गंगा नदी को भारत की पवित्र नदियों में सबसे पवित्र माना जाता है एवं यह मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सारे [[पाप|पापों]] का नाश हो जाता है।<ref>{{cite web |url= http://hbash.blogspot.com/2008/11/blog-post.html |title=भारत की मुख्य नदियाँ|accessmonthday=[[21 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=हिन्दी ब्लाग|language=}}</ref> मरने के बाद लोग गंगा में अपनी राख विसर्जित करना [[मोक्ष]] प्राप्ति के लिये आवश्यक समझते हैं, यहाँ तक कि कुछ लोग गंगा के किनारे ही प्राण विसर्जन या [[अंतिम संस्कार]] की इच्छा भी रखते हैं। [[चित्र:Kumbh mela.jpg|thumb|280px|[[कुम्भ मेला]], [[इलाहाबाद]]<br /> Kumb Fair, Allahabad]]
[[भारत]] की अनेक धार्मिक अवधारणाओं में गंगा नदी को [[गंगा देवी|देवी]] के रूप में निरुपित किया गया है। बहुत से पवित्र [[तीर्थस्थल]] गंगा नदी के किनारे पर बसे हुये हैं जिनमें [[वाराणसी]] और [[हरिद्वार]] सबसे प्रमुख हैं। गंगा नदी को भारत की पवित्र नदियों में सबसे पवित्र माना जाता है एवं यह मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सारे [[पाप|पापों]] का नाश हो जाता है।<ref>{{cite web |url= http://hbash.blogspot.com/2008/11/blog-post.html |title=भारत की मुख्य नदियाँ|accessmonthday=[[21 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=हिन्दी ब्लाग|language=}}</ref> मरने के बाद लोग गंगा में अपनी राख विसर्जित करना [[मोक्ष]] प्राप्ति के लिये आवश्यक समझते हैं, यहाँ तक कि कुछ लोग गंगा के किनारे ही प्राण विसर्जन या [[अंतिम संस्कार]] की इच्छा भी रखते हैं। [[चित्र:Kumbh mela.jpg|thumb|280px|[[कुम्भ मेला]], [[इलाहाबाद]]<br /> Kumb Fair, Allahabad]]
इसके घाटों पर लोग [[पूजा]] अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं। गंगाजल को पवित्र समझा जाता है तथा समस्त संस्कारों में उसका होना आवश्यक है। पंचामृत में भी गंगाजल को एक अमृत माना गया है। अनेक पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा संबंध है। उदाहरण के लिए [[मकर संक्राति]], [[कुम्भ मेला|कुंभ]] और [[गंगा दशहरा]] के समय गंगा में नहाना या केवल दर्शन ही कर लेना बहुत महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। इसके तटों पर अनेक प्रसिद्ध मेलों का आयोजन किया जाता है और अनेक प्रसिद्ध मंदिर गंगा के तट पर ही बने हुए हैं। महाभारत के अनुसार मात्र प्रयाग में माघ मास में गंगा-यमुना के संगम पर तीन करोड़ दस हज़ार तीर्थों का संगम होता है। ये तीर्थ स्थल सम्पूर्ण भारत में सांस्कृतिक एकता स्थापित करते हैं।<ref>{{cite book |last=सिंह|first=डॉ. राजकुमार  |title=विचार विमर्श|year=जुलाई  |publisher=सागर प्रकाशन|location=मथुरा |id= |page=13-23  |accessday=22 |accessmonth=जून|accessyear=2009 }}</ref>  गंगा को लक्ष्य करके अनेक भक्ति ग्रंथ लिखे गए हैं। जिनमें श्रीगंगासहस्रनामस्तोत्रम्<ref>{{cite web |url= http://www.pustak.org/bs/home.php?bookid=6127|title= श्रीगंगासहस्त्रनामस्तोत्रम|accessmonthday=[[22 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=भारतीय साहित्य संग्रह|language=}}</ref>  और आरती<ref>{{cite web |url= http://bhavishyawani.mywebdunia.com/2009/02/25/gangaji_ki_aarti.html|title= श्रीगंगाजी की आरती|accessmonthday=[[22 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=वेबदुनया|language=}}</ref> सबसे लोकप्रिय हैं। अनेक लोग अपने दैनिक जीवन में श्रद्धा के साथ इनका प्रयोग करते हैं। गंगोत्री तथा अन्य स्थानों पर गंगा के मंदिर और मूर्तियाँ भी स्थापित हैं जिनके दर्शन कर श्रद्धालु स्वयं को कृतार्थ समझते हैं। [[उत्तराखंड]] के [[पंच प्रयाग]] तथा [[प्रयाग]]राज जो इलाहाबाद में स्थित है गंगा के वे प्रसिद्ध संगम स्थल हैं जहाँ वह अन्य नदियों से मिलती हैं। ये सभी संगम धार्मिक दृष्टि से पूज्य माने गए हैं।
इसके घाटों पर लोग [[पूजा]] अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं। गंगाजल को पवित्र समझा जाता है तथा समस्त संस्कारों में उसका होना आवश्यक है। पंचामृत में भी गंगाजल को एक अमृत माना गया है। अनेक पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा संबंध है। उदाहरण के लिए [[मकर संक्राति]], [[कुम्भ मेला|कुंभ]] और [[गंगा दशहरा]] के समय गंगा में नहाना या केवल दर्शन ही कर लेना बहुत महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। इसके तटों पर अनेक प्रसिद्ध मेलों का आयोजन किया जाता है और अनेक प्रसिद्ध मंदिर गंगा के तट पर ही बने हुए हैं। महाभारत के अनुसार मात्र प्रयाग में माघ मास में गंगा-यमुना के संगम पर तीन करोड़ दस हज़ार तीर्थों का संगम होता है। ये तीर्थ स्थल सम्पूर्ण भारत में सांस्कृतिक एकता स्थापित करते हैं।<ref>{{cite book |last=सिंह|first=डॉ. राजकुमार  |title=विचार विमर्श|year=जुलाई  |publisher=सागर प्रकाशन|location=मथुरा |id= |page=13-23  |accessday=22 |accessmonth=जून|accessyear=2009 }}</ref>  गंगा को लक्ष्य करके अनेक भक्ति ग्रंथ लिखे गए हैं। जिनमें श्रीगंगासहस्रनामस्तोत्रम्<ref>{{cite web |url= http://www.pustak.org/bs/home.php?bookid=6127|title= श्रीगंगासहस्त्रनामस्तोत्रम|accessmonthday=[[22 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=भारतीय साहित्य संग्रह|language=}}</ref>  और आरती<ref>{{cite web |url= http://bhavishyawani.mywebdunia.com/2009/02/25/gangaji_ki_aarti.html|title= श्रीगंगाजी की आरती|accessmonthday=[[22 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=वेबदुनया|language=}}</ref> सबसे लोकप्रिय हैं। अनेक लोग अपने दैनिक जीवन में श्रद्धा के साथ इनका प्रयोग करते हैं। गंगोत्री तथा अन्य स्थानों पर गंगा के मंदिर और मूर्तियाँ भी स्थापित हैं जिनके दर्शन कर श्रद्धालु स्वयं को कृतार्थ समझते हैं। [[उत्तराखंड]] के [[पंच प्रयाग]] तथा [[प्रयाग]]राज जो इलाहाबाद में स्थित है गंगा के वे प्रसिद्ध संगम स्थल हैं जहाँ वह अन्य नदियों से मिलती हैं। ये सभी संगम धार्मिक दृष्टि से पूज्य माने गए हैं।


==पौराणिक प्रसंग==
गंगा नदी का धार्मिक महत्व सम्भवत: विश्व की किसी भी अन्य नदी से ज़्यादा है। आदिकाल से ही यह पूजी जाती रही है और आज भी [[हिंदू|हिन्दुओं]] के लिए यह सबसे पवित्र नदी है। इसे देवी स्वरूप माना जाता है। एक किंवदन्ती के अनुसार, महान तपस्वी [[भगीरथ]] की प्रार्थना पर देवी गंगा को स्वयं भगवान [[विष्णु]] ने इस धरती पर भेजा। लेकिन गंगा जिस [[वेग]] से धरती पर अवतरित हुईं, उससे उनके मार्ग में आने वाली हर वस्तु के जलप्लावित होने का ख़तरा था। इसीलिए भगवान [[शिव]] ने पहले ही उन्हें अपनी जटाओं में लपेटकर उनके वेग को नियंत्रित और शान्त किया। मुक्ति चाहने वाले उसके बाद ही उसमें स्नान कर पाए। हिन्दुओं के तीर्थस्थल वैसे तो समूचे उपमहाद्वीप में फैल हुए हैं, तथापि गंगा तट पर बसे तीर्थ हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। इनमें प्रमुख हैं, इलाहाबाद में गंगा और यमुना का संगम, जहाँ एक निश्चित अन्तराल पर जनवरी-फ़रवरी में [[कुम्भ मेला]] आयोजित होता है। इस अनुष्ठान के समय लाखों तीर्थयात्री गंगा में स्नान करते हैं। पवित्र स्नान की दृष्टि से अन्य तीर्थ हैं, [[वाराणसी]], [[काशी]] और [[हरिद्वार]]। कलकत्ता में [[हुगली नदी]] भी पवित्र मानी जाती है। तीर्थयात्रा की दृष्टि से गंगा तट पर [[गंगोत्री]] और [[अलकनन्दा नदी|अलकनन्दा]] और [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] का संगम भी महत्वपूर्ण है। हिन्दू अपने मृतकों की भस्म एवं अस्थियाँ यह मानते हुए यहाँ विसर्जित करते हैं कि ऐसा करने से मृतक सीधे स्वर्ग में जाता है। इसीलिए गंगा के तट पर कई स्थानों पर शवदाह हेतु विशेष घाट बने हुए हैं।
<div style=font-size:80%;>[[गंगा के पौराणिक प्रसंग|गंगा के पौराणिक प्रसंग विस्तार में]]</div>
 
गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं।  मिथकों के अनुसार [[ब्रह्मा]] ने [[विष्णु]] के पैर के पसीने की बूँदों से गंगा का निर्माण किया। [[त्रिमूर्ति]] के दो सदस्यों के स्पर्श के कारण यह पवित्र समझा गया।  एक अन्य कथा के अनुसार राजा [[सगर]] ने जादुई रूप से साठ हज़ार पुत्रों की प्राप्ति की।<ref name="इंडिया वाटर">{{cite web |url= http://hindi.indiawaterportal.org/?q=content/गंगा|title=गंगा - इंडिया वाटर पोर्टल |accessmonthday= जून 14 |accessyear= 2009|last= |first= |authorlink= |coauthors= |date= |year= |month= |format= |work= |publisher= इंडिया वाटर पोर्टल |pages= |language=|archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref> [[चित्र:Ganga-River-Varanasi-2.jpg|thumb|250px|left|गंगा नदी, [[वाराणसी]]<br /> Ganga River, Varanasi]] एक दिन राजा सगर ने देवलोक पर विजय प्राप्त करने के लिये एक [[यज्ञ]] किया। यज्ञ के लिये [[घोड़ा]] आवश्यक था जो ईर्ष्यालु [[इंद्र]] ने चुरा लिया था। सगर ने अपने सारे पुत्रों को घोड़े की खोज में भेज दिया अंत में उन्हें घोड़ा [[पाताल]] लोक में मिला जो एक [[ऋषि ]] के समीप बँधा था। सगर के पुत्रों ने यह सोच कर कि ऋषि ही घोड़े के गायब होने की वजह हैं उन्होंने ऋषि का अपमान किया। [[तपस्या]] में लीन ऋषि ने हज़ारों वर्ष बाद अपनी आँखें खोली और उनके क्रोध से सगर के सभी साठ हज़ार पुत्र जल कर वहीं भस्म हो गये।<ref>{{cite web |url= http://forum.spiritualindia.org/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%A5-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%97%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE-t16004.0.html|title= भगीरथ और गंगा|accessmonthday= |accessyear= |last= |first= |authorlink= |coauthors= |date= 14 |year=2009 |month=जून |format=एच.टी.एम.एल |work= |publisher= स्पिरिचुअल इण्डिया|pages= |language=|archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref> सगर के पुत्रों की आत्माएँ भूत बनकर विचरने लगीं क्योंकि उनका [[अंतिम संस्कार]] नहीं किया गया था। सगर के पुत्र [[अंशुमान]] ने आत्माओं की मुक्ति का असफल प्रयास किया और बाद में अंशुमान के पुत्र दिलीप ने भी। [[भगीरथ]] राजा दिलीप की दूसरी पत्नी के पुत्र थे। उन्होंने अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार किया। उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रण किया जिससे उनके अंतिम संस्कार कर, राख को गंगाजल में प्रवाहित किया जा सके और भटकती आत्माएं [[स्वर्ग]] में जा सकें। भगीरथ ने [[ब्रह्मा]] की घोर तपस्या की ताकि गंगा को पृथ्वी पर लाया जा सके।  [[ब्रह्मा]] प्रसन्न हुये और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिये तैयार हुये और गंगा को पृथ्वी पर और उसके बाद पाताल में जाने का आदेश दिया ताकि सगर के पुत्रों की आत्माओं की [[मुक्ति]] संभव हो सके। तब गंगा ने कहा कि मैं इतनी ऊँचाई से जब पृथ्वी पर गिरूँगी, तो पृथ्वी इतना वेग कैसे सह पाएगी? तब भगीरथ ने भगवान [[शिव]] से निवेदन किया, और उन्होंने अपनी खुली जटाओं में गंगा के वेग को रोक कर, एक लट खोल दी, जिससे गंगा की अविरल धारा [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर प्रवाहित हुई। वह धारा भगीरथ के पीछे-पीछे [[गंगा सागर]] संगम तक गई, जहाँ सगर-पुत्रों का उद्धार हुआ। शिव के स्पर्श से गंगा और भी पावन हो गयी और पृथ्वी वासियों के लिये बहुत ही श्रद्धा का केन्द्र बन गयीं। पुराणों के अनुसार स्वर्ग में गंगा को [[मन्दाकिनी नदी|मन्दाकिनी]] और पाताल में [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] कहते हैं। इसी प्रकार एक पौराणिक कथा राजा शांतनु और गंगा के विवाह तथा उनके सात पुत्रों के जन्म की है।
गंगा पुनीततम नदी है और इसके तटों पर हरिद्वार, कनखल, [[प्रयाग]] एवं काशी जैसे परम प्रसिद्ध तीर्थ अवस्थित हैं। प्रसिद्ध नदीसूक्त<ref>([[ऋग्वेद]] 10, 75, 5-6)</ref> में सर्वप्रथम गंगा का ही आह्वान किया गया है। [[ऋग्वेद]]<ref>[[ऋग्वेद]] (6|45|31)</ref> में ‘गंगय’ शब्द आया है जिसका सम्भवत: अर्थ है ‘गंगा पर वृद्धि करता हुआ।’<ref>अधि बृबु: पणीनां वर्षिष्ठे मूर्धन्नस्थात्। उरु:कक्षो न गाङग्य:।। [[ऋग्वेद]] (6|45|31)। अन्तिम पद का अर्थ है ‘गंगा के तटों पर उगी हुई घास या झाड़ी के समान।’</ref> [[शतपथ ब्राह्मण]]<ref>[[शतपथ ब्राह्मण]] (13|5|4|11 एवं 13)</ref> एवं [[ऐतरेय ब्राह्मण]] <ref>[[ऐतरेय ब्राह्मण]] (39, 9)</ref> में गंगा एवं यमुना के किनारे पर भरत दौष्यंति की विजयों एवं यज्ञों का उल्लेख हुआ है। शतपथ ब्राह्मण<ref>[[शतपथ ब्राह्मण]] (13, 5, 4,11 एवं 13)</ref> में एक प्राचीन गाथा का उल्लेख है- ‘नाडपित् पर अप्सरा शकुन्तला ने भरत को गर्भ में धारण किया, जिसने सम्पूर्ण [[पृथ्वी]] को जीतने के उपरान्त [[इन्द्र]] के पास [[यज्ञ]] के लिए एक सहस्र से अधिक अश्व भेजे।’ [[महाभारत]]<ref>[[महाभारत]] (अनुशासन. 26|26-103)</ref> एवं [[पुराण|पुराणों]]<ref>[[पुराण]]  ([[नारद पुराण|नारदीय]], उत्तरार्ध, अध्याय 38-45 एवं 51|1-48; [[पद्म पुराण]] 5|60|1-127; अग्नित्र अध्याय 110; [[मत्स्य पुराण]], अध्याय 180-185; पद्म पुराण, आदिखण्ड, अध्याय 33-37)</ref> में गंगा की महत्ता एवं पवित्रीकरण के विषय में सैकड़ों प्रशस्तिजनक श्लोक हैं। [[स्कन्द पुराण]]<ref>[[स्कन्द पुराण]] (काशीखण्ड, अध्याय 33-37)</ref> में गंगा के एक सहस्र नामों का उल्लेख है। यहाँ पर उपर्युक्त ग्रन्थों में दिये गये वर्णनों का थोड़ा अंश भी देना सम्भव नहीं है। अधिकांश भारतीयों के मन में गंगा जैसी नदियों एवं हिमालय जैसे पर्वतों के दो स्वरूप घर कर बैठे हैं-
#भौतिक
#आध्यात्मिक
विशाल नदियों के साथ दैवी जीवन की प्रगाढ़ता संलग्न हो ही जाती है। टायलर ने अपने ग्रन्थ ‘प्रिमिटिव कल्चर’<ref>प्रिमिटिव कल्चर (द्वितीय संस्करण, पृष्ठ 477)</ref> में लिखा है- <blockquote>‘जिन्हें हम निर्जीव पदार्थ कहते हैं, यथा नदियाँ, पत्थर, वृक्ष, अस्त्र-शस्त्र आदि। वे जीवित, बुद्धिशाली हो उठते हैं, उनसे बातें की जाती हैं, उन्हें प्रसन्न किया जाता है और यदि वे हानि पहुँचाते हैं तो उन्हें दण्डित भी किया जाता है।’</blockquote> गंगा के महात्म्य एवं उसकी तीर्थयात्रा के विषय में पृथक-पृथक ग्रन्थ प्रणीत हुए हैं। यथा- गणेश्वर (1350 ई.) का गंगापत्तलक, मिथिला के राजा पद्मसिंह की रानी विश्वासदेवी की [[गंगावाक्यावली]], गणपति की [[गंगाभक्तितरंगिणी (गणपति)|गंगाभक्तितरंगिणी]] एवं वर्धमान की [[गंगाकृत्यविवेक]]। इन ग्रन्थों की तिथियाँ इस महाग्रन्थ के अन्त में दी हुई हैं।
====वन पर्व====
{{मुख्य|वन पर्व महाभारत}}
[[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]]<ref>[[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]] (अध्याय 85)</ref> ने गंगा की प्रशस्ति में कई श्लोक<ref>[[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]] (श्लोक 88-97)</ref> दिये हैं, जिनमें से कुछ का अनुवाद इस प्रकार है- "जहाँ भी कहीं स्नान किया जाए, गंगा [[कुरुक्षेत्र]] के बराबर है। किन्तु कनखल की अपनी विशेषता है और प्रयाग में इसकी परम महत्ता है। यदि कोई सैकड़ों पापकर्म करके [[गंगाजल]] का अवसिंचन करता है तो गंगाजल उन दुष्कृत्यों को उसी प्रकार जला देता है, जिस प्रकार से [[अग्नि]] ईधन को जला देती है। [[सत युग]] में सभी स्थल पवित्र थे, [[त्रेता युग]] में [[पुष्कर]] सबसे अधिक पवित्र था, [[द्वापर युग]] में कुरुक्षेत्र एवं [[कलियुग]] में गंगा। नाम लेने पर गंगा पापी को पवित्र कर देती है। इसे देखने से सौभाग्य प्राप्त होता है। जब इसमें स्नान किया जाता है या इसका [[जल]] ग्रहण किया जाता है तो सात पीढ़ियों तक कुल पवित्र हो जाता है। जब तक किसी मनुष्य की अस्थि गंगा जल को स्पर्श करती रहती है, तब तक वह स्वर्गलोक में प्रसन्न रहता है। गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है और केशन के समान कोई देव। वह देश जहाँ गंगा बहती है और वह तपोवन जहाँ पर गंगा पाई जाती है, उसे सिद्धिक्षेत्र कहना चाहिए, क्योंकि वह गंगातीर को छूता रहता है।"
====अनुशासन पर्व====
{{मुख्य|अनुशासन पर्व महाभारत}}
[[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]]<ref> [[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]] (36|26, 30-31)</ref> में आया है कि वे [[महाजनपद|जनपद]] एवं देश, वे [[पर्वत]] एवं [[आश्रम]], जिनसे होकर गंगा बहती है, पुण्य का फल देने में महान हैं। वे लोग, जो जीवन के प्रथम भाग में पापकर्म करते हैं, यदि गंगा की ओर जाते हैं तो परम पद प्राप्त करते हैं। जो लोग गंगा में स्नान करते हैं उनका फल बढ़ता जाता है। वे पवित्रात्मा हो जाते हैं और ऐसा पुण्यफल पाते हैं जो सैकड़ों वैदिक यज्ञों के सम्पादन से भी नहीं प्राप्त होता।


[[श्रीमद्भागवदगीता|भगवदगीता]] में भगवान [[श्रीकृष्ण]] ने कहा है कि धाराओं में मैं गंगा हूँ।<ref>(स्रोतसामस्मि जाह्नवी, 10|31)</ref> मनु<ref>मनु (8|92)</ref> ने साक्षी को सत्योच्चारण के लिए जो कहा है उससे प्रकट होता है कि [[मनुस्मृति]] के काल में गंगा एवं [[कुरुक्षेत्र]] सर्वोच्च पुनीत स्थल थे।<ref>यमो वैवस्वतो देवो यस्तवैष हृदि स्थित:। तेन चेदविवादस्ते मा गंगा मा कुरून्गम:।। मनु (8|92)।</ref>
==पौराणिक महत्त्व==
गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। कुछ पुराणों ने गंगा को मन्दाकिनी के रूप में स्वर्ग में, गंगा के रूप में पृथ्वी पर और भोगवती के रूप में पाताल में प्रवाहित होते हुए वर्णित किया है।<ref>([[पद्म पुराण]] 6|267|47)</ref> [[विष्णु पुराण|विष्णु]] आदि पुराणों ने गंगा को [[विष्णु]] के बायें पैर के अँगूठे के नख से प्रवाहित माना है।<ref>वामपादाम्बुजांगुष्ठनखस्रोतोविनिर्गताम्। विष्णोर्बभर्ति यां भक्त्या शिरसाहनिंशं ध्रुव:।। [[विष्णु पुराण]] (2|8|109); कल्पतरु (तीर्थ, पृष्ठ 161) ने ‘शिव:’ पाठान्तर दिया है। ‘नदी सा वैष्णवी प्रोक्ता विष्णुपादसमुदभवा।’ [[पद्म पुराण]]  (5|25|188)।</ref> कुछ पुराणों में ऐसा आया है कि [[शिव]] ने अपनी जटा से गंगा को सात धाराओं में परिवर्तित कर दिया, जिनमें तीन (नलिनी, ह्लदिनी एवं पावनी) पूर्व की ओर, तीन (सीता, चक्षुस एवं [[सिन्धु नदी|सिन्धु]]) पश्चिम की ओर प्रवाहित हुई और सातवीं धारा [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] हुई ([[मत्स्य पुराण]] 121|38-41; [[ब्रह्माण्ड पुराण]] 2|18|39-41 एवं 1|3|65-66)। [[कूर्म पुराण]] (1|46|30-31) एवं [[वराह पुराण]] (अध्याय 82, गद्य में) का कथन है कि गंगा सर्वप्रथम सीता, [[अलकनंदा नदी|अलकनंदा]], सुचक्ष एवं भद्रा नामक चार विभिन्न धाराओं में बहती है। अलकनंदा दक्षिण की ओर बहती है, भारतवर्ष की ओर आती है और सप्तमुखों में होकर समुद्र में गिरती है।<ref>तथैवालकनंदा च दक्षिणादेत्य भारतम्। प्रयाति सागरं भित्त्वा सप्तभेदा द्विजोत्तम:।। [[कूर्म पुराण]] (1|46|31)।</ref> [[ब्रह्माण्ड पुराण]] (73|68-69) में गंगा को विष्णु के पाँव से एवं शिव के जटाजूट में अवस्थित माना गया है।
एक दूसरे पौराणिक आख्यान के अनुसार गंगा [[हिमालय]] और मैना की पुत्री तथा उमा की भगिनी थीं। महाभारत की एक कथा उसे कुरुराज [[शान्तनु]] की पत्नी और [[भीष्म]] की माता बताती है। जिसमें भीष्म का दूसरा नाम गांगेय भी है। गंगा का सम्बन्ध [[कार्तिकेय]] के मातृत्व से भी है। [[हिंदू|हिन्दुओं]] के जितने तीर्थ इस नदी के तीर पर हैं, उतने कहीं पर नहीं और उसकी पवित्रता का प्रभाव तो भारतीयों पर इतना गहरा पड़ा कि उन्होंने अनेक दूसरी नदियों के नाम भी गंगा रख दिये। जहाँ-जहाँ भारतीय संस्कृति का विस्तार हुआ, वहाँ-वहाँ गंगा की पवित्रता का विविध रूप से उल्लेख हुआ। गंगा की मकर पर आरूढ़ चँवर अथवा कलश धारिणी मूर्तियाँ भी गुप्तकाल में बनने लगी थीं।<ref>([[महाभारत]], [[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]], अध्याय 12, 42, 47, 83-88, 90, 93, 95, 99, 107-109 आदि।)</ref>
[[पुराण|पुराणों]] के अनुसार विवद्गंगा, [[आकाशगंगा नदी|आकाशगंगा]] अथवा स्वर्गगंगा विष्णु के अँगूठे से निकली हैं, जिसका पृथ्वी पर अवतरण [[भगीरथ]] के स्तवन से [[कपिल मुनि]] द्वारा भस्मीकृत [[राजा सगर]] के 60,000 [[पुत्र|पुत्रों]] की अस्थियों को पवित्र करने के लिए हुआ। भगीरथ के साथ इसी संयोग के कारण गंगा का दूसरा नाम भागीरथी पड़ा। पौराणिक परम्परा है कि स्वर्ग से उतरने के कारण गंगा अत्यन्त कुपित हो उठी थीं और उसके कोप के कारण [[पृथ्वी]] पर उसकी धारा पड़ते ही उनके बहकर नष्ट हो जाने के भय से [[शिव]] ने अपनी जटा में उसे समेट लिया, जिससे उनकी जटाओं में उलझ जाने के कारण धारा पृथ्वी पर सीधी नहीं पड़ी और गंगा की गति मन्द हो गई। इसी सम्बन्ध में शिव का एक नाम गंगाधर भी पड़ा। गंगा का अवतरण तपस्वी जह्नु के यज्ञ के लिए घातक हुआ, जिससे क्रुद्ध होकर उस तापस ने गंगा को पी डाला और प्रार्थना के बाद उसने [[कान]] से गंगा की धारा निकाल दी, जिससे वह जाह्नवी कहलाई हैं।
[[चित्र:Ganga-River-Varanasi-2.jpg|thumb|250px|left|गंगा नदी, [[वाराणसी]]<br /> Ganga River, Varanasi]]
====विष्णु पुराण====
{{मुख्य|विष्णु पुराण}}
[[विष्णु पुराण]]<ref>[[विष्णु पुराण]] (2|8|120-121)</ref> ने गंगा की प्रशस्ति इस प्रकार की है- जब इसका नाम श्रवण किया जाता है, जब कोई इसके दर्शन की अभिलाषा करता है, जब यह देखी जाती है या स्पर्श की जाती है या जब इसका जल ग्रहण किया जाता है या जब कोई उसमें डुबकी लगाता है या जब इसका नाम लिया जाता है (या इसकी स्तुति की जाती है) तो गंगा दिन-प्रतिदिन प्राणियों को पवित्र करती है। जब सहस्रों योजन दूर रहने वाले लोग गंगा नाम का उच्चारण करते हैं, तो तीन जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।<ref>श्रुताभिलषिता दृष्टा स्पृष्टा पीतावगाहिता। या पावयति भूतानि कीर्तिता च दिने दिने।। गंगा गंगेति यैनमि योजनानां शतेष्वपि। स्थितैरुच्चारितं हन्ति पापं जन्मत्रयार्जितम्।। [[विष्णु पुराण]] (2|8|120-121); [[गंगावाक्यावली]] (पृष्ठ 110), तीर्थचि. (पृष्ठ 202), [[गंगाभक्तितरंगिणी (गणपति)|गंगाभक्तितरंगिणी]] (पृष्ठ 9)। दूसरा श्लोक [[पद्म पुराण]] (6|21|8 एवं 23|12) एवं [[ब्रह्माण्ड पुराण]] (175|82) में कई प्रकार से पढ़ा गया है, यथा- गंगा........यो ब्रूयाद्योजनानां शतैरपि। मुच्यते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति।। पद्य पुराण (1|31|77) में आया है......शतैरपि। नरो न नरकं याति किं तया सदृशं भवेत्।।</ref>
====भविष्य पुराण====
{{मुख्य|भविष्य पुराण}}
भविष्य पुराण में भी ऐसा ही आया है।<ref>दर्शनार्त्स्शनात्पानात् तथा गंगेति कीर्तनात्। स्मरणदेव गंगाया: सद्य: पापै: प्रमुच्यते।। [[भविष्य पुराण]] (तीर्थचि. पृष्ठ 198; [[गंगावाक्यावली]] पृष्ठ 12 एवं [[गंगाभक्तितरंगिणी (गणपति)|गंगाभक्तितरंगिणी]] पृष्ठ 9)। प्रथम पाद [[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]] (26|64) एवं [[अग्नि पुराण]] (110|6) में आया है। गच्छंस्तिष्ठञ् जपन्ध्यायन् भुञ्जञ् जाग्रत स्वपन् वदन्। य: स्मरेत् सततं गंगां सोऽपि मुच्येत बन्धनात्।। [[स्कन्द पुराण]] (काशीखण्ड, पूर्वार्ध 27|37) एवं [[नारदीय पुराण]] (उत्तर, 39|16-17)।</ref> [[मत्स्य पुराण|मत्स्य]], [[कूर्म पुराण|कूर्म]], [[गरुड़ पुराण|गरुड़]] एवं [[पद्म  पुराण|पद्म]] पुराणों का कहना है कि गंगा में पहुँचना सब स्थानों में सरल है, केवल गंगाद्वार ([[हरिद्वार]]), [[प्रयाग]] एवं वहाँ जहाँ यह समुद्र में मिलती है, पहुँचना कठिन है। जो लोग यहाँ पर स्नान करते हैं, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है और जो लोग यहाँ पर मर जाते हैं, वे पुन: जन्म नहीं पाते हैं।<ref>सर्वत्र सुलभा गंगा त्रिषु स्थानेषु दुर्लभा। गंगाद्वारे प्रयागे च गंगासागरसंगमे।। तत्र स्नात्वा दिवं यान्ति ये मृतास्तेऽपुनर्भवा:।। [[मत्स्य पुराण]] (106|54);[[कूर्म पुराण]] (1|37|34); [[गरुड़ पुराण]] (पूर्वार्ध, 81|1-2); [[पद्म  पुराण]] (5|60|120)। [[नारदीय पुराण]] (40|26-27) में ऐसा पाठान्तर है- ‘सर्वत्र दुर्लभा गंगा त्रिषु स्थानेषु चाधिका। गंगाद्वारे.......संगमे।। एषु स्नाता दिवं.......र्भवा:।।’</ref>
====नारद पुराण====
{{मुख्य|नारद पुराण}}
नारद पुराण का कथन है कि गंगा सभी स्थानों में दुर्लभ है, किन्तु तीन स्थानों पर अत्यधिक दुर्लभ है। वह व्यक्ति जो चाहे या अनचाहे गंगा के पास पहुँच जाता है और मर जाता है, स्वर्ग जाता है और नरक नहीं देखता।<ref>([[मत्स्य पुराण]] 107|4)</ref>
====कूर्म पुराण====
{{मुख्य|कूर्म पुराण}}
कूर्म पुराण का कथन है कि गंगा [[वायु पुराण]] द्वारा घोषित स्वर्ग, अन्तरिक्ष एवं पृथ्वी में स्थित 35 करोड़ पवित्र स्थलों के बराबर है और वह उनका प्रतिनिधित्व करती है।<ref>तिस्र: कोट्योर्धकोटी च तीर्थानां वायुरब्रवीत्। दिवि भुव्यन्तरिक्षे च तत्सर्व जाह्नवी स्मृता।। [[कूर्म पुराण]] (1|39|8); [[पद्म पुराण]] (1|47|7 एवं 5|60|59); [[मत्स्य पुराण]] (102|5, तानि ते सन्ति जाह्नवि)।</ref>
====पद्म पुराण====
{{मुख्य|पद्म पुराण}}
पद्मपुराण ने प्रश्न किया है- ‘बहुत धन के व्यय वाले [[यज्ञ|यज्ञों]] एवं कठिन तपों से क्या लाभ, जब कि सुलभ रूप से प्राप्त होने वाली एवं स्वर्ग मोक्ष देने वाली गंगा उपस्थित है!’ नारदीय पुराणों में भी आया है-‘आठ अंगों वाले योग, तपों एवं यज्ञों से क्या लाभ? गंगा का निवास इन सभी से उत्तम है।’<ref>किं यज्ञैर्बहुवित्ताढ्यै: किं तपोभि: सुदुष्करै:। स्वर्ग्मोक्षप्रदा गंगा सुखसौभाग्यपूजिता।। [[पद्म पुराण]] (5|60|39); किमष्टांगेन योगेन किं तपोभि: किमध्वरै:। वास एव हि गंगायां सर्वतोपि विशिष्यते।। [[नारदीय पुराण]] (उत्तर, 38|38); तीर्थचि. (पृष्ठ 194, गंगायां ब्रह्मज्ञानस्य कारणम्); [[प्रायश्चित्ततत्त्व]] (पृष्ठ 494)।</ref>
पद्मपुराण<ref>[[पद्म पुराण]] (सृष्टि. 60|65)</ref> में आया है कि [[विष्णु]] सभी देवों का प्रतिनिधित्व करते हैं और गंगा विष्णु का। इसमें गंगा की प्रशस्ति इस प्रकार की गई है-‘[[पिता]], [[पति]], मित्रों एवं सम्बन्धियों के व्यभिचारी, पतित, दुष्ट, चाण्डाल एवं गुरुघाती हो जाने पर या सभी प्रकार के पापों एवं द्रोहों से संयुक्त होने पर क्रम से [[पुत्र]], पत्नियाँ, मित्र एवं सम्बन्धि उनका त्याग कर देते हैं, किन्तु गंगा उन्हें परित्यक्त नहीं करती<ref> ([[पद्म पुराण]], सृष्टिखण्ड, 60|25-26)।’</ref>
====मत्स्य पुराण====
{{मुख्य|मत्स्य पुराण}}
मत्स्य पुराण<ref>[[मत्स्य पुराण]] (104|14-15)</ref> के दो श्लोक यहाँ वर्णन के योग्य हैं- "पाप करने वाला व्यक्ति भी सहस्रों योजन दूर रहता हुआ गंगा स्मरण से परम पद प्राप्त कर लेता है। गंगा के नाम-स्मरण एवं उसके दर्शन से व्यक्ति क्रम से पापमुक्त हो जाता है एवं सुख पाता है। उसमें स्नान करने एवं जल के पान से वह सात पीढ़ियों तक अपने कुल को पवित्र कर देता है।" काशीखण्ड<ref>काशीखण्ड (27|69)</ref> में ऐसा आया है कि गंगा के तट पर सभी काल शुभ हैं, सभी देश शुभ हैं और सभी लोग दान ग्रहण करने के योग्य हैं।
====वराह पुराण====
{{मुख्य|वराह पुराण}}
वराह पुराण<ref>[[वराह पुराण]] (अध्याय 82)</ref> में गंगा की व्युत्पत्ति ‘गां गता’ (जो पृथ्वी की ओर गई हो) है। पद्मपुराण<ref>[[पद्म पुराण]](सृष्टि खण्ड, 60|64-65)</ref> ने गंगा के विषय में निम्न मूलमंत्र दिया है-<poem>‘ओं नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नम:।’</poem>
====पुराणों में गंगा के पुनीत स्थल का विस्तार====
कुछ पुराणों में गंगा के पुनीत स्थल के विस्तार के विषय में व्यवस्था दी हुई है। नारद पुराण<ref>[[नारद पुराण]]  (उत्तर, 43|119-120)</ref> में आया है- गंगा के तीर से एक गव्यूति तक क्षेत्र कहलाता है, इसी क्षेत्र सीमा के भीतर रहना चाहिए, किन्तु तीर पर नहीं, गंगातीर का वास ठीक नहीं है। क्षेत्र सीमा दोनों तीरों से एक योजन की होती है अर्थात् प्रत्येक तीर से दो कोस तक क्षेत्र का विस्तार होता है।<ref>तीराद् गव्यूतिमात्रं तु परित: क्षेत्रमुच्यते। तीरं वसेत्क्षेत्रे तीरे वासो न चेष्यते।। एकयोजनविस्तीर्णा क्षेत्रसीमा तटद्वयात्। [[नारद पुराण]] (उत्तर, 43|119-120)। प्रथम को तीर्थचि. (पृष्ठ 266) ने [[स्कन्द पुराण]] से उदधृत किया है और व्याख्या की है-‘उभयतटे प्रत्येकं कोशदयं क्षेत्रम्।’ अन्तिम पाद को तीर्थचि. (पृष्ठ 267) एवं [[गंगावाक्यावली]] (पृष्ठ 136) ने [[भविष्य पुराण]] से उदधृत किया है। ‘गव्यूति’ दूरी या लम्बाई की माप है जो सामान्यत: दो क्रोश (कोस) के बराबर है। लम्बाई के मापों के विषय में कुछ अन्तर है। अमरकोश के अनुसार ‘गव्यूति’ दो क्रोश के बराबर है, यथा- ‘गव्यूति: स्त्री क्रोशयुगम्।’ [[वायु पुराण]] (8|105 एवं 101|122-123) एवं [[ब्रह्माण्ड पुराण]] (2|7|96-101) के अनुसार 24 अंगुल=एक हस्त, 96 अंगुल=एक धनु (अर्थात् ‘दण्ड’, ‘युग’ या ‘नाली’); 2000 धनु (या दण्ड या युग या नालिका)=गव्यूति एवं 8000 धनु=योजन। [[मार्कण्डेय पुराण]] (46|37-40) के अनुसार 4 हस्त=धनु या दण्ड या युग या नालिका; 2000 धनु=क्रोश, 4 क्रोश=गव्यूति (जो योजन के बराबर है)। और देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड 3, अध्याय 5।</ref> यम ने एक सामान्य नियम यह दिया है कि वनों, पर्वतों, पवित्र नदियों एवं तीर्थों के स्वामी नहीं होते, इन पर किसी का भी प्रभुत्व (स्वामी रूप से) नहीं हो सकता।
ब्रह्मपुराण का कथन है कि नदियों से चार हाथ की दूरी तक नारायण का स्वामित्व होता है और मरते समय भी (कण्ठगत प्राण होने पर भी) किसी को भी उस क्षेत्र में दान नहीं लेना चाहिए। गंगाक्षेत्र के गर्भ (अन्तर्वत्त), तीर एवं क्षेत्र में अन्तर प्रकट किया गया है। गर्भ वहाँ तक विस्तृत हो जाता है, जहाँ तक भाद्रपद के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तक धारा पहुँच जाती है और उसके आगे तीर होता है, जो गर्भ से 150 हाथ तक फैला हुआ रहता है तथा प्रत्येक तीर से दो कोस तक क्षेत्र विस्तृत रहता है।
==गंगा स्नान विधि==
गंगा स्नान के लिए संकल्प करने के विषय में निबन्धों ने कई विकल्प दिये हैं। [[प्रायश्चित्ततत्त्व]]<ref>[[प्रायश्चित्ततत्त्व]] (पृष्ठ 497-498)</ref> में विस्तृत संकल्प दिया हुआ है। [[गंगावाक्यावली]]<ref>अद्यामुके मासि अमुकपक्षे अमुकतिथौ सद्य:पापप्रणाशपूर्वकं सर्वपुण्यप्राप्तिकामोगंगाया स्नानमहं करिष्ये। [[गंगावाक्यावली]] (पृष्ठ 141)। और देखिए तीर्थचि. (पृष्ठ 206-207), जहाँ गंगास्नान के पूर्वक लिंक संकल्पों के कई विकल्प दिये हुए हैं।</ref> [[मत्स्य पुराण]]<ref>[[मत्स्य पुराण]] (102)</ref> में जो स्नान विधि दी हुई है वह सभी वर्णों एवं [[वेद]] के विभिन्न शाखानुयायियों के लिए समान है। मत्स्यपुराण<ref>[[मत्स्यपुराण]] (अध्याय 102)</ref> के वर्णन का निष्कर्ष यों है- बिना स्नान और शरीर की शुद्धि एवं शुद्ध विचारों का अस्तित्व नहीं होता। इसी से मन को शुद्ध करने के लिए सर्वप्रथम स्नान की व्याख्या होती है। कोई किसी कूप या धारा से पात्र में जल लेकर स्नान कर सकता है या बिना इस विधि से भी स्नान कर सकता है। ‘नमो नारायणाय’ मंत्र के साथ बुद्धिमान लोगों को तीर्थस्थल का ध्यान करना चाहिए। हाथ में दर्भ (कुश) लेकर, पवित्र एवं शुद्ध होकर आचमन करना चाहिए। चार वर्गहस्त स्थल को चुनना चाहिए और निम्न मंत्र के साथ गंगा का आवाहन करना चाहिए।<blockquote>"तुम विष्णु के चरण से उत्पन्न हुई हो, तुम विष्णु से भक्ति रखती हो, तुम विष्णु की पूजा करती हो, अत: जन्म से मरण तक किये गए पापों से मेरी रक्षा करो। स्वर्ग, अन्तरिक्ष एवं पृथ्वी में 35 करोड़ तीर्थ हैं; हे जाह्नवी गंगा, ये सभी देव तुम्हारे हैं। देवों में तुम्हारा नाम नन्दिनी (आनन्द देने वाली) और नलिनी भी है तथा तुम्हारे अन्य नाम भी हैं, यथा- दक्षा, पृथ्वी, विहगा, विश्वकाया, अमृता, शिवा, विद्याधरी, सुप्रशान्ता, शान्तिप्रदायिनी।"<ref>स्मृतिचन्द्रिका (1, पृष्ठ 182) ने [[मत्स्य पुराण]] (102) के श्लोक (1-8) उद्धृत किये हैं। स्मृतिचन्द्रिका ने वहीं गंगा के 12 विभिन्न नाम दिए हैं। [[पद्म पुराण]] (4|81|17-19) में [[मत्स्य पुराण]] के नाम पाये जाते हैं। इस अध्याय के आरम्भ में गंगा के सहस्र नामों की ओर संकेत किया जा चुका है।</ref></blockquote> स्नान करते समय इन नामों का उच्चारण करना चाहिए। तब तीन लोकों में बहने वाली गंगा पास में चली आयेगी (भले ही व्यक्ति घर पर ही स्नान कर रहा हो)। व्यक्ति को उस जल को, जिस पर सात बार मंत्र पढ़ा गया हो, तीन या चार या पाँच या सात बार सिर पर छिड़कना चाहिए। नदी के नीचे की मिट्टी का मंत्र पाठ के साथ लेप करना चाहिए। इस प्रकार स्नान एवं आचमन करके व्यक्ति को बाहर आना चाहिए और दो श्वेत एवं पवित्र वस्त्र धारण करने चाहिए।
====तर्पण====
इसके उपरान्त उसे तीन लोकों के सन्तोष के लिए [[देवता|देवों]], [[ऋषि|ऋषियों]] एवं पितरों का यथाविधि तर्पण करना चाहिए। तर्पण के दो प्रकार हैं-
#प्रधान
#गौण
प्रधान विद्याध्ययन समाप्त किये हुए द्विजों द्वारा देवों, ऋषियों एवं पितरों के लिए प्रतिदिन किया जाता है। गौण स्नान के अंग के रूप में किया जाता है।<ref>नित्यं नैमित्तिकं काम्यं त्रिविधं स्नानमुच्यते। तर्पणं तु भवेत्तस्य अंगत्त्वेन प्रकीर्तितम्।। [[ब्रह्माण्ड पुराण]] (गंगाभक्ति., 162)</ref> तर्पण स्नान एवं ब्रह्मयज्ञ दोनों का अंग है।  तर्पण अपनी वेद शाखा के अनुसार होता है। दूसरा नियम यह है कि तर्पण तिलयुक्त जल से किसी तीर्थस्थल, [[गया]] में, पितृपक्ष (आश्विन के कृष्णपक्ष) में किया जाता है। विधवा भी किसी तीर्थ में अपने पति या सम्बन्धी के लिए तर्पण कर सकती है। संन्यासी ऐसा नहीं करता। पिता वाला व्यक्ति भी तर्पण नहीं करता। किन्तु विष्णुपुराण के मत से वह तीन अंजिली देवों, तीन ऋषियों को एवं एक प्रजापति (‘देवास्तुप्यन्ताम्’ के रूप में) को देता है। एक अन्य नियम यह है कि-<blockquote>‘श्राद्धे हवनकाले च पाणिनैकेन दीयते। तर्पणे तूभयं कुर्यादिष एव विधि:स्मृत।।<ref>अर्थात एक हाथ (दाहिने) से [[श्राद्ध]] में या [[अग्नि]] में आहुति दी जाती है, किन्तु तर्पण में दोनों हाथों से जल स्नान करने वाली नदी में डाला जाता है या फिर भूमि पर छोड़ा जाता है। [[नारदीय पुराण]] (उत्तर, 57|62-63)’</ref></blockquote> <blockquote>आब्रह्मस्तम्बपर्यन्त देवर्षिपितृमानवा:। तृप्यन्तु पितर: सर्वे मातृमातामहादय:।। अतीतकुलकोटीनां सप्तद्वीपनिवासिनाम्। आब्रह्मयुभ-नाल्लोकादिदमस्तु तिलोदकम्।। <ref>अर्थात यदि कोई विस्तृत विधि से तर्पण न कर सके तो वह निम्न मंत्रों के साथ (जो [[वायु पुराण]], 110|21-22 में दिये हुए हैं) तिल एवं कुश से मिश्रित जल की तीन अंजलियाँ दे सकता है</ref></blockquote> इसके पश्चात [[सूर्य देवता|सूर्य]] को नमस्कार एवं तीन बार प्रदक्षिणा कर तथा किसी [[ब्राह्मण]], [[सोना]] एवं [[गाय]] का स्पर्श कर स्नानकर्ता को विष्णु मंदिर (या अपने घर, पाठांतर के अनुसार) में जाना चाहिए।
यहाँ यह ज्ञातव्य है कि मत्स्य पुराण<ref> [[मत्स्य पुराण]] (102|2-31)</ref> के श्लोक, जिनका निष्कर्ष ऊपर दिया गया है, कुछ अन्तरों के साथ पद्म पुराण<ref>[[पद्म पुराण]] (पातालखण्ड 81|12-42 एवं सृष्टिखण्ड 20|145-176)</ref> में भी पाये जाते हैं। प्रायश्चित्ततत्त्व<ref>([[प्रायश्चित्ततत्त्व]] पृष्ठ 502)</ref> में गंगा स्नान के समय के मंत्र दिये हुए हैं।<ref>विष्णुपादाब्जसम्भूते गंगे त्रिपथगामिनि। धर्मव्रतेति विख्याते पापं में हर जाह्नवी।। श्रद्धया भक्तिसम्पन्ने श्रीमातर्देवि जाह्नवि। अमृतेनाम्बुना देवि भागीरथी पुनीह माम्।। स्मृतिचंद्रिका (1|131); [[प्रायश्चित्ततत्त्व]] (502); त्वं देव सरितां नाथ त्वं देवि सरितां वरे। उभयो: संगमे स्नात्वा मुञ्चामि दुरितानि वै।। वही। और देखिए [[पद्म पुराण]] (सृष्टिखण्ड, 60|60)</ref>
==आठ वसुओं की माँ==
गंगा-यमुना के मध्य का समस्त भूभाग ययाति ने पुरु को दिया था। गंगा आठ वसुओं की माँ हैं। वसुओं ने गंगा से कहा था कि [[शान्तनु]] से उनके गर्भ धारण करने के उपरान्त उनके जन्मते ही जल में प्रवाहित कर देना। गंगा ने शान्तनु से उत्पन्न सात वसु जल में प्रवाहित कर दिए। आठवें वसु ([[भीष्म]]) को शान्तनु ने बचा लिया। <ref>([[महाभारत]], [[आदि पर्व महाभारत|आदिपर्व]], अध्याय 2, 3, 61, 63, 67, 70, 87, 95-10।)</ref>
==साहित्यिक उल्लेख==
==साहित्यिक उल्लेख==
[[चित्र:Ganga-River-Aarti.jpg|आरती, गंगा नदी, [[वाराणसी]]<br /> Aarti, Ganga River, Varanasi|thumb|250px]]
[[चित्र:Ganga-River-Aarti.jpg|आरती, गंगा नदी, [[वाराणसी]]<br /> Aarti, Ganga River, Varanasi|thumb|250px]]
भारत की राष्ट्र-नदी गंगा जल ही नहीं, अपितु भारत और हिन्दी साहित्य की मानवीय चेतना को भी प्रवाहित करती है।<ref>{{cite web |url= http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/2009/hindikavyameganganadii.htm|title=हिन्दी काव्य में गंगा नदी|accessmonthday=[[30 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=अभिव्यक्ति|language=}}</ref> ऋग्वेद, महाभारत, रामायण एवं अनेक पुराणों में गंगा को पुण्य सलिला, पाप-नाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी, सरित्श्रेष्ठा एवं महानदी कहा गया है। संस्कृत कवि जगन्नाथ राय ने गंगा की स्तुति में 'श्रीगंगालहरी'<ref>{{cite web |url= http://sujalam.blogspot.com/2007/11/blog-post_73.html|title=गंगा की उपस्थिति |accessmonthday=[[22 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=सुजलाम्|language=}}</ref> नामक काव्य की रचना की है। हिन्दी के आदि [[महाकाव्य]] [[पृथ्वीराज रासो]] {{Ref_label|पृथ्वीराज रासो|क|none}}  तथा [[वीसलदेव रास]]{{Ref_label|वीसलदेव रास|ख|none}} ([[नरपति नाल्ह]]) में गंगा का उल्लेख है। आदिकाल का सर्वाधिक लोक विश्रुत ग्रंथ [[जगनिक]] रचित [[आल्हखण्ड]]{{Ref_label|आल्हखण्ड|ग|none}} में गंगा, [[यमुना नदी|यमुना]] और [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] का उल्लेख है। कवि ने प्रयागराज की इस त्रिवेणी को पापनाशक बतलाया है। शृंगारी कवि [[विद्यापति]]{{Ref_label|विद्यापति|घ|none}}, [[कबीर]] वाणी और [[जायसी]] के [[पद्मावत]] में भी गंगा का उल्लेख है, किन्तु [[सूरदास]]{{Ref_label|सूरदास|ङ|none}}, और [[तुलसीदास]] ने भक्ति भावना से गंगा-माहात्म्य का वर्णन विस्तार से किया है। गोस्वामी तुलसीदास ने [[कवितावली]] के [[उत्तरकाण्ड]] में ‘श्री गंगा माहात्म्य’ का वर्णन तीन छन्दों में किया है- इन छन्दों में कवि ने गंगा दर्शन, गंगा स्नान, गंगा जल सेवन, गंगा तट पर बसने वालों के महत्त्व को वर्णित किया है।{{Ref_label|तुलसीदास|च|none}} [[रीतिकाल]] में [[सेनापति]] और [[पद्माकर]] का गंगा वर्णन श्लाघनीय है। पद्माकर ने गंगा की महिमा और कीर्ति का वर्णन करने के लिए गंगालहरी<ref>{{cite web |url=http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/bund0016.htm|title=बुन्देली काव्य का ऐतिहासिक संदर्भ  
भारत की राष्ट्र-नदी गंगा जल ही नहीं, अपितु भारत और हिन्दी साहित्य की मानवीय चेतना को भी प्रवाहित करती है।<ref>{{cite web |url= http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/2009/hindikavyameganganadii.htm|title=हिन्दी काव्य में गंगा नदी|accessmonthday=[[30 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=अभिव्यक्ति|language=}}</ref> ऋग्वेद, महाभारत, रामायण एवं अनेक पुराणों में गंगा को पुण्य सलिला, पाप-नाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी, सरित्श्रेष्ठा एवं महानदी कहा गया है। संस्कृत कवि जगन्नाथ राय ने गंगा की स्तुति में 'श्रीगंगालहरी'<ref>{{cite web |url= http://sujalam.blogspot.com/2007/11/blog-post_73.html|title=गंगा की उपस्थिति |accessmonthday=[[22 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=सुजलाम्|language=}}</ref> नामक काव्य की रचना की है। हिन्दी के आदि महाकाव्य [[पृथ्वीराज रासो]]<ref>इंदो किं अंदोलिया अमी ए चक्कीवं गंगा सिरे। .................एतने चरित्र ते गंग तीरे</ref> तथा वीसलदेव रास<ref>कइ रे हिमालइ माहिं गिलउं। कइ तउ झंफघडं गंग-दुवारि।..................बहिन दिवाऊँ राइ की। थारा ब्याह कराबुं गंग नइ पारि</ref> (नरपति नाल्ह) में गंगा का उल्लेख है। आदिकाल का सर्वाधिक लोक विश्रुत ग्रंथ जगनिक रचित [[आल्हाखण्ड]]<ref>प्रागराज सो तीरथ ध्यावौं। जहँ पर गंग मातु लहराय।। / एक ओर से जमुना आई। दोनों मिलीं भुजा फैलाय।। / सरस्वती नीचे से निकली। तिरबेनी सो तीर्थ कहाय।।</ref> में गंगा, [[यमुना नदी|यमुना]] और [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] का उल्लेख है। कवि ने प्रयागराज की इस त्रिवेणी को पापनाशक बतलाया है। श्रृंगारी कवि विद्यापति,<ref>कज्जल रूप तुअ काली कहिअए, उज्जल रूप तुअ बानी। / रविमंडल परचण्डा कहिअए, गंगा कहिअए पानी।।</ref> [[कबीर]] वाणी और [[जायसी]] के पद्मावत में भी गंगा का उल्लेख है, किन्तु [[सूरदास]],<ref>सुकदेव कह्यो सुनौ नरनाह। गंगा ज्यौं आई जगमाँह।। / कहौं सो कथा सुनौ चितलाइ। सुनै सो भवतरि हरि पुर जाइ।।</ref> और [[तुलसीदास]] ने भक्ति भावना से गंगा-माहात्म्य का वर्णन विस्तार से किया है। गोस्वामी तुलसीदास ने कवितावली के उत्तरकाण्ड में ‘श्री गंगा माहात्म्य’ का वर्णन तीन छन्दों में किया है- इन छन्दों में कवि ने गंगा दर्शन, गंगा स्नान, गंगा जल सेवन, गंगा तट पर बसने वालों के महत्त्व को वर्णित किया है।<poem><ref>देवनदी कहँ जो जन जान किए मनसा कहुँ कोटि उधारे। / देखि चले झगरैं सुरनारि, सुरेस बनाइ विमान सवाँरे।
|accessmonthday=[[23 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=टीडीआईएल|language=}}</ref> नामक ग्रंथ की रचना की है। सेनापति{{Ref_label|सेनापति|छ|none}} [[कवित्त रत्नाकर]] में गंगा माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि पाप की नाव को नष्ट करने के लिए गंगा की पुण्यधारा तलवार सी सुशोभित है। [[रसखान]], [[रहीम]]{{Ref_label|रहीम|ज|none}}  आदि ने भी गंगा प्रभाव का सुन्दर वर्णन किया है। आधुनिक काल के कवियों में [[जगन्नाथदास रत्नाकर]] के ग्रंथ [[गंगावतरण]] में कपिल मुनि द्वारा शापित सगर के साठ हज़ार पुत्रों के उद्धार के लिए [[भगीरथ]] की 'भगीरथ-तपस्या' से गंगा के भूमि पर अवतरित होने की कथा है। सम्पूर्ण ग्रंथ तेरह सर्गों में विभक्त और रोला छन्द में निबद्ध है। अन्य कवियों में [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]], [[सुमित्रानन्दन पन्त]] और [[श्रीधर पाठक]] आदि ने भी यत्र-तत्र गंगा का वर्णन किया है।<ref>{{cite book |last=सिंह|first=डॉ. राजकुमार  |title=विचार विमर्श|year=जुलाई  |publisher=सागर प्रकाशन|location=मथुरा |id= |page=13-23  |accessday=22 |accessmonth=जून|accessyear=2009 }}</ref>  छायावादी कवियों का प्रकृति वर्णन हिन्दी साहित्य में उल्लेखनीय है। सुमित्रानन्दन पन्त ने ‘नौका विहार’<ref>{{cite web |url=http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0_/_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%A8_%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%A4|title=नौका-विहार / सुमित्रानंदन पंत|accessmonthday=[[22 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=कविताकोश|language=}}</ref> में ग्रीष्म कालीन तापस बाला गंगा का जो चित्र उकेरा है, वह अति रमणीय है। उन्होंने गंगा<ref>{{cite web |url=http://www.anubhuti-hindi.org/gauravgram/snp/ganga.htm|title=गंगा|accessmonthday=[[22 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=अनुभूति|language=}}</ref> नामक कविता भी लिखी है। गंगा नदी के कई प्रतीकात्मक अर्थों का वर्णन जवाहर लाल नेहरू ने अपनी पुस्तक ''भारत एक खोज'' (डिस्कवरी ऑफ इंडिया) में किया है।{{Ref_label|नेहरू|झ|none}} गंगा की पौराणिक कहानियों को [[महेन्द्र मित्तल]] अपनी कृति ''माँ गंगा'' में संजोया है।<ref>{{cite web |url=http://www.pustak.org/bs/home.php?bookid=3944|title=माँ गंगा|accessmonthday=[[30 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=भारतीय साहित्य संग्रह|language=}}</ref>
पूजा को साजु विरंचि रचैं तुलसी जे महातम जानि तिहारे। / ओक की लोक परी हरि लोक विलोकत गंग तरंग तिहारे।।(कवितावली-उत्तरकाण्ड 145)
ब्रह्म जो व्यापक वेद कहैं, गमनाहिं गिरा गुन-ग्यान-गुनी को। / जो करता, भरता, हरता, सुर साहेबु, साहेबु दीन दुखी को।
सोइ भयो द्रव रूप सही, जो है नाथ विरंचि महेस मुनी को। / मानि प्रतीति सदा तुलसी, जगु काहे न सेवत देव धुनी को।।(कवितावली-उत्तरकाण्ड 146)
बारि तिहारो निहारि मुरारि भएँ परसें पद पापु लहौंगो। / ईस ह्वै सीस धरौं पै डरौं, प्रभु की समताँ बड़े दोष दहौंगो।
बरु बारहिं बार सरीर धरौं, रघुबीर को ह्वै तव तीर रहौंगो।  / भागीरथी बिनवौं कर जोरि, बहोरि न खोरि लगै सो कहौंगो।।</ref></poem> रीतिकाल में [[सेनापति]] और पद्माकर का गंगा वर्णन श्लाघनीय है। पद्माकर ने गंगा की महिमा और कीर्ति का वर्णन करने के लिए गंगालहरी<ref>{{cite web |url=http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/bund0016.htm|title=बुन्देली काव्य का ऐतिहासिक संदर्भ  
|accessmonthday=[[23 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=टीडीआईएल|language=}}</ref> नामक ग्रंथ की रचना की है। सेनापति<ref>पावन अधिक सब तीरथ तैं जाकी धार, जहाँ मरि पापी होत सुरपुर पति है।  / देखत ही जाकौ भलो घाट पहचानियत, एक रूप बानी जाके पानी की रहति है।</ref> कवित्त रत्नाकर में गंगा माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि पाप की नाव को नष्ट करने के लिए गंगा की पुण्यधारा तलवार सी सुशोभित है। [[रसखान]], [[रहीम]]<ref>अच्युत चरण तरंगिणी, शिव सिर मालति माल। हरि न बनायो सुरसरी, कीजौ इंदव भाल।।--रहीम</ref> आदि ने भी गंगा प्रभाव का सुन्दर वर्णन किया है। आधुनिक काल के कवियों में जगन्नाथदास रत्नाकर के ग्रंथ गंगावतरण में कपिल मुनि द्वारा शापित सगर के साठ हज़ार पुत्रों के उद्धार के लिए [[भगीरथ]] की 'भगीरथ-तपस्या' से गंगा के भूमि पर अवतरित होने की कथा है। सम्पूर्ण ग्रंथ तेरह सर्गों में विभक्त और रोला छन्द में निबद्ध है। अन्य कवियों में [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]], [[सुमित्रानन्दन पन्त]] और श्रीधर पाठक आदि ने भी यत्र-तत्र गंगा का वर्णन किया है।<ref>{{cite book |last=सिंह|first=डॉ. राजकुमार  |title=विचार विमर्श|year=जुलाई  |publisher=सागर प्रकाशन|location=मथुरा |id= |page=13-23  |accessday=22 |accessmonth=जून|accessyear=2009 }}</ref>  छायावादी कवियों का प्रकृति वर्णन हिन्दी साहित्य में उल्लेखनीय है। सुमित्रानन्दन पन्त ने ‘नौका विहार’<ref>{{cite web |url=http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0_/_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%A8_%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%A4|title=नौका-विहार / सुमित्रानंदन पंत|accessmonthday=[[22 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=कविताकोश|language=}}</ref> में ग्रीष्म कालीन तापस बाला गंगा का जो चित्र उकेरा है, वह अति रमणीय है। उन्होंने गंगा<ref>{{cite web |url=http://www.anubhuti-hindi.org/gauravgram/snp/ganga.htm|title=गंगा|accessmonthday=[[22 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=अनुभूति|language=}}</ref> नामक कविता भी लिखी है। गंगा नदी के कई प्रतीकात्मक अर्थों का वर्णन जवाहर लाल नेहरू ने अपनी पुस्तक ''भारत एक खोज'' (डिस्कवरी ऑफ इंडिया) में किया है।<ref>"The Ganga, especially, is the river of India, beloved of her people, round which are interwined her memories, her hopes and fears, her songs of triumph, her victories and her defeats. She has been a symbol of India's age long culture and civilization, ever changing , ever flowing, and yet ever the same Ganga." -जवाहरलाल नेहरू</ref> गंगा की पौराणिक कहानियों को महेन्द्र मित्तल अपनी कृति ''माँ गंगा'' में संजोया है।<ref>{{cite web |url=http://www.pustak.org/bs/home.php?bookid=3944|title=माँ गंगा|accessmonthday=[[30 जून]]|accessyear=[[2009]]|format=|publisher=भारतीय साहित्य संग्रह|language=}}</ref>


{{Seealso|गंगा चालीसा|गंगा माता जी की आरती}}
{{Seealso|गंगा चालीसा|गंगा माता जी की आरती}}
पंक्ति 62: पंक्ति 179:
{{संदर्भ ग्रंथ}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<div style=font-size:85%;>
'''क.'''&nbsp;&nbsp;&nbsp; {{Note_label|पृथ्वीराज रासो|क|none}} इंदो किं अंदोलिया अमी ए चक्कीवं गंगा सिरे। .................एतने चरित्र ते गंग तीरे।
<br>
'''ख.'''&nbsp;&nbsp;&nbsp; {{Note_label|वीसलदेव रास|ख|none}} कइ रे हिमालइ माहिं गिलउं। कइ तउ झंफघडं गंग-दुवारि।..................बहिन दिवाऊँ राइ की। थारा ब्याह कराबुं गंग नइ पारि।
<br>
'''ग.'''&nbsp;&nbsp;&nbsp; {{Note_label|आल्हखण्ड|ग|none}}प्रागराज सो तीरथ ध्यावौं। जहँ पर गंग मातु लहराय।। / एक ओर से जमुना आई। दोनों मिलीं भुजा फैलाय।। / सरस्वती नीचे से निकली। तिरबेनी सो तीर्थ कहाय।।
<br>
'''घ.'''&nbsp;&nbsp;&nbsp; {{Note_label|विद्यापति|घ|none}}कज्जल रूप तुअ काली कहिअए, उज्जल रूप तुअ बानी। / रविमंडल परचण्डा कहिअए, गंगा कहिअए पानी।।
<br>
'''ङ.'''&nbsp;&nbsp;&nbsp; {{Note_label|सूरदास|ङ|none}}सुकदेव कह्यो सुनौ नरनाह। गंगा ज्यौं आई जगमाँह।। / कहौं सो कथा सुनौ चितलाइ। सुनै सो भवतरि हरि पुर जाइ।।
<br>
'''च.'''&nbsp;&nbsp;&nbsp; {{Note_label|तुलसीदास|च|none}}देवनदी कहँ जो जन जान किए मनसा कहुँ कोटि उधारे। / देखि चले झगरैं सुरनारि, सुरेस बनाइ विमान सवाँरे।
<br>&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;पूजा को साजु विरंचि रचैं तुलसी जे महातम जानि तिहारे। / ओक की लोक परी हरि लोक विलोकत गंग तरंग तिहारे।।(कवितावली-उत्तरकाण्ड 145)
<br>&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;ब्रह्म जो व्यापक वेद कहैं, गमनाहिं गिरा गुन-ग्यान-गुनी को। / जो करता, भरता, हरता, सुर साहेबु, साहेबु दीन दुखी को।
<br>&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;सोइ भयो द्रव रूप सही, जो है नाथ विरंचि महेस मुनी को। / मानि प्रतीति सदा तुलसी, जगु काहे न सेवत देव धुनी को।।(कवितावली-उत्तरकाण्ड 146)
<br>&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;बारि तिहारो निहारि मुरारि भएँ परसें पद पापु लहौंगो। / ईस ह्वै सीस धरौं पै डरौं, प्रभु की समताँ बड़े दोष दहौंगो।
<br>&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;बरु बारहिं बार सरीर धरौं, रघुबीर को ह्वै तव तीर रहौंगो।  / भागीरथी बिनवौं कर जोरि, बहोरि न खोरि लगै सो कहौंगो।।(कवितावली-उत्तरकाण्ड 147)<ref>{{cite book |last=तुलसीदास|first=|title=कवितावली|year=संवत 2058|publisher=गीताप्रेस|location=गोरखपुर |id= |page=136 से 137  |accessday=23 |accessmonth=जून|accessyear=2009 }}</ref>
<br>
'''छ.'''&nbsp;&nbsp;&nbsp; {{Note_label|सेनापति|छ|none}}पावन अधिक सब तीरथ तैं जाकी धार, जहाँ मरि पापी होत सुरपुर पति है।  / देखत ही जाकौ भलो घाट पहचानियत, एक रूप बानी जाके पानी की रहति है।
<br>&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;&nbsp;बड़ी रज राखै जाकौं महाधीर तरसत, सेनापति ठौर-ठौर नीकीयै बहति है।  / पाप पतवारि के कतल करिबे को गंगा, पुण्य की असील तरवारि सी लसति है।।--सेनापति
<br>
'''ज.'''&nbsp;&nbsp;&nbsp; {{Note_label|रहीम|ज|none}}अच्युत चरण तरंगिणी, शिव सिर मालति माल। हरि न बनायो सुरसरी, कीजौ इंदव भाल।।--रहीम
<br>
'''झ.'''&nbsp;&nbsp;&nbsp; {{Note_label|नेहरू|झ|none}}"The Ganga, especially, is the river of India, beloved of her people, round which are interwined her memories, her hopes and fears, her songs of triumph, her victories and her defeats. She has been a symbol of India's age long culture and civilization, ever changing , ever flowing, and yet ever the same Ganga." -जवाहरलाल नेहरू
</div>
==संदर्भ==
{{Reflist|2}}
<div style=font-size:90%;>
<references/>
<references/>
</div>
{{top}}
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{भारत की नदियाँ}}
{{भारत की नदियाँ}}

12:14, 17 मई 2011 का अवतरण

गंगा नदी, हरिद्वार
Ganga River, Haridwar

भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी गंगा, उत्तर भारत के मैदानों की विशाल नदी है। गंगा भारत और बांग्लादेश में मिलकर 2,510 किलोमीटर की दूरी तय करती हुई उत्तरांचल में हिमालय से निकलकर बंगाल की खाड़ी में भारत के लगभग एक-चौथाई भूक्षेत्र को अपवाहित करती है तथा अपने बेसिन में बसे विराट जनसमुदाय के जीवन का आधार बनती है। जिस गंगा के मैदान से होकर यह प्रवाहित होती है, वह इस क्षेत्र का हृदय स्थल है, जिसे हिन्दुस्तान कहते हैं। यहाँ तीसरी सदी में अशोक महान के साम्राज्य से लेकर 16वीं सदी में स्थापित मुग़ल साम्राज्य तक सारी सभ्यताएँ विकसित हुईं। गंगा नदी अपना अधिकांश सफ़र भारतीय इलाक़े में ही तय करती है, लेकिन उसके विशाल डेल्टा क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा बांग्लादेश में है। गंगा के प्रवाह की सामान्यत: दिशा उत्तर-पश्चिमोत्तर से दक्षिण-पूर्व की तरफ है और डेल्टा क्षेत्र में प्रवाह आमतौर से दक्षिण मुखी है।

भारतीय भाषाओं में तथा अधिकृत रूप से गंगा नदी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके अंग्रेज़ीकृत नाम ‘द गैजिज़’ से ही जाना जाता है। गंगा सहस्राब्दियों से हिन्दुओं की पवित्र तथा पूजनीय नदी रही है। अपने अधिकांश मार्ग में गंगा एक चौड़ी व मंद धारा है और विश्व के सबसे ज़्यादा उपजाऊ और घनी आबादी वाले इलाक़ों से होकर बहती है। इतने महत्व के बावज़ूद इसकी लम्बाई 2,510 किलोमीटर है, जो एशिया या विश्व स्तर की तुलना में कोई बहुत ज़्यादा नहीं है।

गंगा की धारा, जो पहाड़ों में मंदाकिनी और अलकनन्दा की धाराओं के सम्मिलन से बनती है, हिमालय में अत्यन्त क्षीण है और हरिद्वार के ऊपर कनखल के समीप उत्तरी मैदान में प्रशस्त होकर बहती है और बरसात में उसके जल का वेग भयावह हो उठता है। गंगा नदी देश की प्राकृतिक संपदा ही नहीं, जन जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। 2,071 किलोमीटर तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। 100 फीट (31 मीटर) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ और देवी के रूप में की जाती है। अपने सौंदर्य और महत्त्व के कारण एक ओर जहाँ पुराण और साहित्य में इसका उल्लेख बार बार मिलता है, वहीं विदेशी साहित्य में भी गंगा नदी के प्रति प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णनों की कमी नहीं।

भारत की विशाल नदी गंगा में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पाई ही जाती हैं और मीठे पानी वाले दुर्लभ डालफिन भी पाए जाते हैं। यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बाँध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से संबंधित ज़रूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस असीमित शुद्धीकरण क्षमता और सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसका प्रदूषण रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवंबर, 2008 में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी[1][2] तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (1600 किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग- को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है।[3]

पतितपावनी

भारत की पावन नदी, जिसकी जलधारा में स्नान से पापमुक्ति और जलपान से शुद्धि होती है। यह प्रसिद्ध नदी, हिमाचल प्रदेश में गंगोत्री से निकलकर मध्यदेश से होती हुई पश्चिम बंगाल के परे गंगासागर में मिलती है। गंगा की घाटी संसार की उर्वरतम घाटियों में से एक है और सरयू, यमुना, सोन आदि अनेक नदियाँ उससे आ मिलती हैं। उसकी घाटी भारतीय सभ्यता के विकास में अन्यतम रही हैं। गंगा को भारतीय संस्कृति में विशिष्ट योगदान के कारण ही उसे असाधारण महिमा मिली है, जिससे वह ‘पतितपावनी’ कहलाती है।

ऋग्वेद के नदीसूक्त में गंगा की स्तुति हुई है और पुराणों ने उसकी महिमा का अनन्त बखान किया है। गंगा की धारा, जो पहाड़ों में मंदाकिनी और अलकनन्दा की धाराओं के सम्मिलन से बनती है, हिमालय में अत्यन्त क्षीण है और हरिद्वार के ऊपर कनखल के समीप उत्तरी मैदान में प्रशस्त होकर बहती है और बरसात में उसके जल का वेग भयावह हो उठता है।

भौतिक विशेषताएँ

भू-आकृति

गंगा का उद्गम दक्षिणी हिमालय में तिब्बत सीमा के भारतीय हिस्से से होता है। इसकी पाँच आरम्भिक धाराओं भागीरथी, अलकनन्दा, मंदाकिनी, धौलीगंगा तथा पिंडर का उद्गम उत्तराखण्ड क्षेत्र, जो उत्तर प्रदेश का एक संभाग था (वर्तमान उत्तरांचल राज्य) में होता है। दो प्रमुख धाराओं में बड़ी अलकनन्दा का उद्गम हिमालय के नंदा देवी शिखर से 48 किलोमीटर दूर तथा दूसरी भागीरथी का उद्गम हिमालय की गंगोत्री नामक हिमनद के रूप में 3, 050 मीटर की ऊँचाई पर बर्फ़ की गुफ़ा में होता है। गंगोत्री हिन्दुओं का एक तीर्थ स्थान है। वैसे गंगोत्री से 21 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व स्थित गोमुख को गंगा का वास्तविक उद्गम स्थल माना जाता है।

गंगा नदी की प्रधान शाखा भागीरथी है जो कुमायूँ में हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है।[4] गंगा के इस उद्गम स्थल की ऊँचाई 3140 मीटर है। यहाँ गंगा जी को समर्पित एक मंदिर भी है। गंगोत्री तीर्थ, शहर से 19 किलोमीटर उत्तर की ओर 3892 मीटर (12,770 फीट) की ऊँचाई पर इस हिमनद का मुख है। यह हिमनद 25 किलोमीटर लंबा व 4 किलोमीटर चौड़ा और लगभग 40 मीटर ऊँचा है। इसी ग्लेशियर से भागीरथी एक छोटे से गुफ़ानुमा मुख पर अवतरित होती है।

गंगोत्री हिमनद में गौमुख
Gomukh in Gangotri Himnad

इसका जल स्रोत 5000 मीटर ऊँचाई पर स्थित एक बेसिन है। इस बेसिन का मूल पश्चिमी ढलान की संतोपंथ की चोटियों में है। गौमुख के रास्ते में 3600 मीटर ऊँचे चिरबासा ग्राम से विशाल गोमुख हिमनद के दर्शन होते हैं। इस हिमनद में नंदा देवी पर्वत, कामत पर्वत एवं त्रिशूल पर्वत का हिम पिघल कर आता है। अलकनंदा नदी की सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी है। धौली गंगा का अलकनंदा से विष्णु प्रयाग में संगम होता है। यह 1372 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। फिर 2805 मीटर ऊँचे नंद प्रयाग में अलकनन्दा का नंदाकिनी नदी से संगम होता है। इसके बाद कर्ण प्रयाग में अलकनन्दा का कर्ण गंगा या पिंडर नदी से संगम होता है। फिर ऋषिकेश से 139 किलोमीटर दूर स्थित रुद्र प्रयाग में अलकनंदा मंदाकिनी से मिलती है। इसके बाद भागीरथी व अलकनन्दा 1500 फीट पर स्थित देव प्रयाग में संगम करती हैं यहाँ से यह सम्मिलित जल-धारा गंगा नदी के नाम से आगे प्रवाहित होती है। इन पांच प्रयागों को सम्मिलित रूप से पंच प्रयाग कहा जाता है।[4] इस प्रकार 200 कि.मी. का संकरा पहाड़ी रास्ता तय करके गंगा नदी ऋषिकेश होते हुए प्रथम बार मैदानों का स्पर्श हरिद्वार में करती है।

देव प्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी का संगम होने के बाद यह गंगा के रूप में दक्षिण हिमालय से ऋषिकेश के निकट बाहर आती है और हरिद्वार के बाद मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है। हरिद्वार भी हिन्दुओं का तीर्थ स्थान है। नदी के प्रवाह में मौसम के अनुसार आने वाले थोड़े बहुत परिवर्तन के बावज़ूद इसके जल की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि तब होती है, जब इसमें अन्य सहायक नदियाँ मिलती हैं तथा यह अधिक वर्षा वाले इलाक़े में प्रवेश करती है। एक तरफ अप्रॅल से जून के बीच हिमालय में पिघलने वाली बर्फ़ से इसका पोषण होता है, वहीं दूसरी ओर जुलाई से सितम्बर के बीच का मानसून इसमें आने वाली बाढ़ों का कारण बनता है। उत्तर प्रदेश राज्य में इसके दाहिने तट की सहायक नदियाँ, यमुना राजधानी दिल्ली होते हुए इलाहाबाद में गंगा में शामिल होती है तथा टोन्स नदी है, जो मध्य प्रदेश के विंध्याचल से निकलकर उत्तर की तरफ़ प्रवाहित होती है और शीघ्र ही गंगा में शामिल हो जाती हैं। उत्तर प्रदेश में बाईं तरफ़ की सहायक नदियाँ रामगंगा, गोमती तथा घाघरा हैं।

इसके बाद गंगा बिहार राज्य में प्रवेश करती है, जहाँ इसकी मुख्य सहायक नदियाँ हिमालय क्षेत्र की तरफ़ से गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी तथा घुघरी हैं। दक्षिण की तरफ़ से इसकी मुख्य सहायक नदी सोन है। यहाँ से यह नदी राजमहल पहाड़ियों का चक्कर लगाती हुई दक्षिण-पूर्व में फरक्का तक पहुँचती है, जो इस डेल्टा का सर्वोच्च बिन्दु है। यहाँ से गंगा भारत में अन्तिम राज्य पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है, जहाँ उत्तर की तरफ़ से इसमें महानंदा मिलती है (समूचे पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में स्थानीय आबादी गंगा को पद्मा कहकर पुकारती है)। गंगा के डेल्टा की सुदूर पश्चिमी शाखा हुगली है, जिसके तट पर महानगर कोलकाता (भूतपूर्व कलकत्ता) बसा हुआ है। स्वयं हुगली में पश्चिम से आकर उसकी दो सहायक नदियाँ दामोदर व रूपनारायण शामिल होती हैं। बांग्लादेश में ग्वालंदो घाट के निकट गंगा में विशाल ब्रह्मपुत्र शामिल होती है (इन दोनों के संगम के 241 किलोमीटर पहले तक इसे फिर यमुना के नाम से बुलाया जाता है)। गंगा और ब्रह्मपुत्र की संयुक्त धारा ही पद्मा कहलाने लगती है और चाँदपुर के निकट वह मेघना में शामिल हो जाती है। इसके बाद यह विराट जलराशि अनेक प्रवाहों में विभाजित होकर बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। बांग्लादेश की राजधानी ढाका धालेश्वदी नदी की सहायक नदी बूढ़ी गंगा के तट पर स्थित है। जिन नदी शाखाओं से गंगा का डेल्टा बनता है, उसकी हुगली और मेघना के अलावा अन्य शाखाएँ पश्चिम बंगाल में जलांगी और बांग्लादेश में मातागंगा, भैरब, काबाडक, गराई-मधुमती तथा अरियल खान हैं।

  • डेल्टा क्षेत्र में स्थित गंगा की सभी सहायक नदियाँ और शाखाएँ मौसम में परिवर्तनों के कारण अक्सर अपना रास्ता बदल लेती हैं। ये परिवर्तन इधर, विशेषकर 1750 ई. के बाद से ज़्यादा होने लगे हैं। ब्रह्मपुत्र 1785 ई. तक मैमनसिंह शहर के पास से बहती थी, अब यह वहाँ से 64 किलोमीटर पश्चिम में गंगा में मिलती है।
  • गंगा तथा ब्रह्मपुत्र की नदी घाटियों से बहकर आई हुई गाद से बने डेल्टा का क्षेत्रफल 60,000 वर्ग किलोमीटर है तथा उसका निर्माण मिट्टी, रेत तथा खड़िया की क्रमिक परतों से हुआ है। यहाँ पर सड़ी-गली वनस्पति (पीट) लिग्नाइट (भूरे कोयले) की परतें भी उन इलाक़ों में मिलती हैं, जहाँ पहले घने वन हुआ करते थे। डेल्टा में नहरों के आसपास बाद में प्राकृतिक रूप से बहुत-सा खादर भी जमा हुआ है।
  • गंगा डेल्टा की दक्षिणी सतह का निर्माण तेज़ गति से तथा तुलनात्मक रूप से हाल में बहकर आई गाद की भारी मात्रा से हुआ है। पूरब में समुद्र की तरफ़ इसी गाद के कारण बड़ी तेज़ी से नए-नए भूक्षेत्र (नदी द्वीप) बनते जा रहे हैं, जिन्हें ‘चार’ कहते हैं। वैसे डेल्टा का पश्चिमी समुद्री तट 18वीं सदी के बाद से लगभग अपरिवर्तित है।
  • पश्चिम बंगाल की नदियों का प्रवाह बहुत धीमा है और उनसे काफ़ी कम पानी समुद्र में प्रवाहित होता है। बांग्लादेशी डेल्टा क्षेत्र में नदियाँ चौड़ी तथा गतिमान हैं और उनमें पानी विपुल मात्रा में बहता है। ये नदियाँ अनेक संकरी पहाड़ियों से परस्पर जुड़ी हुई हैं।
  • वर्षा ऋतु (जून से अक्टूबर) में इस इलाक़े में कृत्रिम रूप से निर्मित उच्चभूमि पर बसाए गए गाँव कई फ़ीट पानी में डूब जाते हैं। इस मौसम में इन बस्तियों के बीच आवागमन का एकमात्र साधन नौकाएँ ही होती हैं।
  • समूचे डेल्टा क्षेत्र का समुद्रतटीय इलाक़ा दलदली है। यह पूरा क्षेत्र सुन्दरवन कहलाता है और भारतबांग्लादेश, दोनों ने इसे संरक्षित क्षेत्र घोषित कर रखा है।
  • इस डेल्टा के कुछ हिस्सों में जंगली वनस्पतियों तथा धान से निर्मित पीट की परतें हैं। अनेक प्राकृतिक खाइयों (बिलों) में उस पीट के बनने की क्रिया जारी है। जिसका उपयोग स्थानीय किसान खाद, सुखाकर घरेलू तथा औद्योगिक ईधन के रूप में करते हैं।

जलवायु

गंगा के बेसिन में इस उपमहाद्वीप की विशालतम नदी प्रणाली स्थित है। यहाँ जल की आपूर्ति मुख्यत: जुलाई से अक्टूबर के बीच दक्षिण-पश्चिमी मानसून तथा अप्रॅल से जून के बीच ग्रीष्म ऋतु के दौरान पिघलने वाली हिमालय की बर्फ़ से होती है। नदी के बेसिन में मानसून के उन कटिबंधीय तूफ़ानों से भी वर्षा होती है, जो जून से अक्टूबर के बीच बंगाल की खाड़ी में पैदा होते हैं। दिसम्बर और जनवरी में बहुत कम मात्रा में वर्षा होती है। औसत वार्षिक वर्षा बेसिन के पश्चिमी सिरे में 760 मिलीमीटर से लेकर पूर्वी सिरे पर 2,286 मिलीमीटर के बीच होती है (उत्तर प्रदेश में गंगा के ऊपरी कछार में जहाँ औसत वर्षा 762 से 1,016 मिलीमीटर होती है, वहीं बिहार के मध्यवर्ती मैदान में यह औसत 1,016 से 1,524 मिलीमीटर तथा डेल्टा क्षेत्र में 1,524 से 2,540 मिलीमीटर के बीच है)। डेल्टा क्षेत्र में मानसून के प्रारम्भ (मार्च से मई) तथा मानसून के अन्त (सितम्बर से अक्टूबर) में ज़ोरदार चक्रवाती समुद्री तूफ़ान आते हैं। इनसे काफ़ी बड़ी मात्रा में मानव जीवन, सम्पत्ति, फ़सलों तथा पशुओं का नुक़सान होता है। ऐसा ही एक भीषण विनाशकारी तूफ़ान नवम्बर, 1970 में आया था, जिसमें कम से कम दो लाख और अधिक से अधिक पाँच लाख लोगों की मौत हुई थी।

चूँकि गंगा के मैदान में उतार-चढ़ाव लगभग न के बराबर है, अत: नदी प्रवाह की गति धीमी है। दिल्ली में यमुना नदी से लेकर बंगाल की खाड़ी के 1,609 किलोमीटर के सम्पूर्ण फ़ासले में भूतल की ऊँचाई में मात्र 213 मीटर की कमी आती है। गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान का कुल विस्तार 7,77,000 वर्ग किलोमीटर है। इस मैदान में मिट्टी की सतह, जो कहीं-कहीं 1,829 मीटर से भी ज़्यादा है, सम्भवत: 10 हज़ार वर्ष से अधिक पुरानी नहीं है।

वनस्पति

गंगा-यमुना के इलाक़े में कभी घने जंगल हुआ करते थे। ऐतिहासिक ग्रन्थों से पता चलता है कि 16वीं और 17वीं सदी तक यहाँ जंगली हाथी, गौर, बारहसिंगा, गैंडा, बाघ तथा शेर का शिकार होता था। गंगा के सम्पूर्ण बेसिन से वहाँ की मूल प्राकृतिक वनस्पतियाँ लुप्त हो गई हैं और वहाँ अब लगातार बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए व्यापक रूप में खेती की जाती है। हिरन, जंगली सूअर, जंगली बिल्लियाँ तथा कुछ भेड़िए, भालू, सियार और लोमड़ी को छोड़कर जंगली जानवर बहुत कम हैं। डेल्टा के सुन्दरवन इलाक़े में बंगाल टाइगर (शेर), मगरमच्छ तथा दलदली हिरन अब भी मिल जाते हैं। नदियों में, ख़ासतौर से डेल्टा क्षेत्र में मछलियाँ विपुल मात्रा में पाई जाती हैं और स्थानीय निवासियों के भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ पर मैना, तोता, कौआ, चील, तीतर और मुर्ग़ाबी जैसे पक्षियों की भी कई क़िस्में पाई जाती हैं। जाड़े के मौसम में बत्तख़ और चाहा पक्षी ऊँचे हिमालय को पार करके दक्षिण में पानी से घिरे क्षेत्रों की तरफ़ प्रवास करते हैं। बंगाल के इलाक़े में आमतौर से पाई जाने वाली मछलियों में फ़ेदर बैक (नोटोप्टेरिडी), वॉकिंग कैटफ़िश, गोरामि (एनाबैंटिडी) तथा मिल्कफ़िश (चैनिडी), बार्ब (सिप्राइनिडी) आदि प्रमुख हैं।

जनजीवन

गंगा के बेसिन के निवासी नृजातीय रूप से मिश्रित मूल के हैं। पश्चिम और मध्य बेसिन में वे मूलत: आर्य पूर्वजों की सन्तान थे। बाद में तुर्क, मंगोल, अफ़ग़ानी, फ़ारसी तथा अरब लोग पश्चिम से आय और अंतमिश्रित हो गए। पूरब और दक्षिण, ख़ासतौर से बंगाल के इलाक़े में तिब्बती, बर्मी तथा विविध नस्ल के पहाड़ी लोग भी मिलते हैं। इनसे भी बाद में आने वाले यूरोपीय लोग यहाँ न तो बसे और न ही स्थानीय लोगों के साथ विवाह सम्बन्ध बनाये।

गंगा का मैदान

गंगोत्री झरना, गढ़वाल
Gangotri Waterfall, Garhwal

गंगा, इलाहाबाद (प्रयाग) हरिद्वार से लगभग 800 किलोमीटर मैदानी यात्रा करते हुए गढ़मुक्तेश्वर,सोरों, फर्रुखाबाद, कन्नौज, बिठूर, कानपुर होते हुए पहुँचती है। यहाँ इसका संगम यमुना नदी से होता है। यह संगम स्थल हिन्दुओं का एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। इसे तीर्थराज प्रयाग कहा जाता है। इसके बाद हिन्दू धर्म की प्रमुख मोक्षदायिनी नगरी काशी (वाराणसी) में गंगा एक वक्र लेती है, जिससे यह यहाँ उत्तरवाहिनी कहलाती है। यहाँ से मीरजापुर, पटना, भागलपुर होते हुए पाकुर पहुँचती है। इस बीच इसमें बहुत-सी सहायक नदियाँ, जैसे सोन, गंडक, घाघरा, कोसी आदि मिल जाती हैं। भागलपुर में राजमहल की पहाड़ियों से यह दक्षिणवर्ती होती है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले के गिरिया स्थान के पास गंगा नदी दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है-भागीरथी और पद्मा। भागीरथी नदी गिरिया से दक्षिण की ओर बहने लगती है जबकि पद्मा नदी दक्षिण-पूर्व की ओर बहती फरक्का बैराज (1974 निर्मित) से छनते हुई बंगला देश में प्रवेश करती है। यहाँ से गंगा का डेल्टाई भाग शुरू हो जाता है। मुर्शिदाबाद शहर से हुगली शहर तक गंगा का नाम भागीरथी नदी तथा हुगली शहर से मुहाने तक गंगा का नाम हुगली नदी है। गंगा का यह मैदान मूलत: एक भू-अभिनति गर्त है जिसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय पर्वतमाला निर्माण प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग 6-4 करोड़ वर्ष पहले हुआ था। तब से इसे हिमालय और प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ लाए हुए अवसादों से पाट रही हैं। इन मैदानों में जलोढ़ की औसत गहराई 1000 से 2000 मीटर है। इस मैदान में नदी की प्रौढ़ावस्था में बनने वाली अपरदनी और निक्षेपण स्थलाकॄतियाँ, जैसे- बालू-रोधका, विसर्प, गोखुर झीलें और गुंफित नदियाँ पाई जाती हैं।[5]

गंगा के मैदान में अनेक नगर बसे, जिनमें मुख्य रूप से रूड़की, सहारनपुर, मेरठ, आगरा (मशहूर मक़बरे ताजमहल का शहर), मथुरा (भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली के रूप में पूजनीय), अलीगढ़, कानपुर, बरेली, लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी (पवित्र शहर बनारस), पटना, भागलपुर, राजशाही, मुर्शिदाबाद, बर्दवान (वर्द्धमान), कलकत्ता, हावड़ा, ढाका, खुलना और बारीसाल उल्लेखनीय हैं। डेल्टा क्षेत्र में कलकत्ता और उसके उपनगर हुगली के दोनों किनारों पर लगभग 80 किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं व भारत के जनसंख्या, व्यापार तथा उद्योग को दृष्टि से सबसे घने बसे हुए इलाक़ों में गिने जाते हैं।

ऐतिहासिक रूप से गंगा के मैदान से ही हिन्दुस्तान का हृदय स्थल निर्मित है और वही बाद में आने वाली विभिन्न सभ्यताओं का पालना बना। अशोक के ई. पू. के साम्राज्य का केन्द्र पाटलिपुत्र (पटना), बिहार में गंगा के तट पर बसा हुआ था। महान मुग़ल साम्राज्य के केन्द्र दिल्ली और आगरा भी गंगा के बेसिन की पश्चिमी सीमाओं पर स्थित थे। सातवीं सदी के मध्य में कानपुर के उत्तर में गंगा तट पर स्थित कन्नौज, जिसमें अधिकांश उत्तरी भारत आता था, हर्ष के सामन्तकालीन साम्राज्य का केन्द्र था। मुस्लिम काल के दौरान, यानी 12वीं सदी से मुसलमानों का शासन न केवल मैदान, बल्कि बंगाल तक फैला हुआ था। डेल्टा क्षेत्र के ढाका और मुर्शिदाबाद मुस्लिम सत्ता के केन्द्र थे। अंग्रेज़ों ने 17वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुगली के तट पर कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) की स्थापना करने के बाद धीरे-धीरे अपने पैर गंगा की घाटी में फैलाए और 19वीं सदी के मध्य में दिल्ली तक जा पहुँचे।

गंगा की इस घाटी में एक ऐसी सभ्यता का उद्भव और विकास हुआ जिसका प्राचीन इतिहास अत्यन्त गौरवमयी और वैभवशाली है। जहाँ ज्ञान, धर्म, अध्यात्म व सभ्यता-संस्कृति की ऐसी किरण प्रस्फुटित हुई जिससे न केवल भारत बल्कि समस्त संसार आलोकित हुआ। पाषाण या प्रस्तर युग का जन्म और विकास यहाँ होने के अनेक साक्ष्य मिले हैं। इसी घाटी में रामायण और महाभारत कालीन युग का उद्भव और विलय हुआ। शतपथ ब्राह्मण, पंचविश ब्राह्मण, गौपथ ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक, कौशितकी आरण्यक, सांख्यायन आरण्यक, वाजसनेयी संहिता और महाभारत इत्यादि में वर्णित घटनाओं से उत्तर वैदिककालीन गंगा घाटी की जानकारी मिलती है। प्राचीन मगध महाजनपद का उद्भव गंगा घाटी में ही हुआ जहाँ से गणराज्यों की परंपरा विश्व में पहली बार प्रारंभ हुई। यहीं भारत का वह स्वर्ण युग विकसित हुआ जब मौर्य और गुप्त वंशीय राजाओं ने यहाँ शासन किया।

सुंदरवन डेल्टा

हुगली नदी कोलकाता, हावड़ा होते हुए सुंदरवन के भारतीय भाग में सागर से संगम करती है। पद्मा में ब्रह्मपुत्र से निकली शाखा नदी जमुना नदी एवं मेघना नदी मिलती हैं। अंततः ये 350 कि.मी. चौड़े सुंदरवन डेल्टा में जाकर बंगाल की खाड़ी में सागर-संगम करती है। यह डेल्टा गंगा एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा लाई गई नवीन जलोढ़ से 1,000 वर्षों में निर्मित समतल एवं निम्न मैदान है। यहाँ गंगा और बंगाल की खाड़ी के संगम पर एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ है जिसे गंगा-सागर-संगम कहते हैं।[6] विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा (सुंदरवन) बहुत सी प्रसिद्ध वनस्पतियों और प्रसिद्ध बंगाल टाईगर का निवास स्थान है।[6]

गंगा नदी, हरिद्वार
Ganga River, Haridwar

यह डेल्टा धीरे धीरे सागर की ओर बढ़ रहा है। कुछ समय पहले कोलकाता सागर तट पर ही स्थित था और सागर का विस्तार राजमहल तथा सिलहट तक था, परन्तु अब यह तट से 15-20 मील (24-32 किलोमीटर) दूर स्थित लगभग 1,80,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। जब डेल्टा का सागर की ओर निरन्तर विस्तार होता है तो उसे प्रगतिशील डेल्टा कहते हैं।[7] सुंदरवन डेल्टा में भूमि का ढाल अत्यन्त कम होने के कारण यहाँ गंगा अत्यन्त धीमी गति से बहती है और अपने साथ लाई गयी मिट्टी को मुहाने पर जमा कर देती है जिससे डेल्टा का आकार बढ़ता जाता है और नदी की कई धाराएँ एवं उपधाराएँ बन जाती हैं। इस प्रकार बनी हुई गंगा की प्रमुख शाखा नदियाँ जालंगी नदी, इच्छामती नदी, भैरव नदी, विद्याधरी नदी और कालिन्दी नदी हैं। नदियों के वक्र गति से बहने के कारण दक्षिणी भाग में कई धनुषाकार झीलें बन गयी हैं। ढाल उत्तर से दक्षिण है, अतः अधिकांश नदियाँ उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं। ज्वार के समय इन नदियों में ज्वार का पानी भर जाने के कारण इन्हें ज्वारीय नदियाँ भी कहते हैं। डेल्टा के सुदूर दक्षिणी भाग में समुद्र का खारा पानी पहुँचने का कारण यह भाग नीचा, नमकीन एवं दलदली है तथा यहाँ आसानी से पनपने वाले मैंग्रोव जाति के वनों से भरा पड़ा है। यह डेल्टा चावल की कृषि के लिए अधिक विख्यात है। यहाँ विश्व में सबसे अधिक कच्चे जूट का उत्पादन होता है। कटका अभयारण्य सुंदरवन के उन इलाकों में से है जहाँ का रास्ता छोटी-छोटी नहरों से होकर गुज़रता है। यहाँ बड़ी तादाद में सुंदरी पेड़ मिलते हैं जिनके नाम पर ही इन वनों का नाम सुंदरवन पड़ा है। इसके अलावा यहाँ पर देवा, केवड़ा, तर्मजा, आमलोपी और गोरान वृक्षों की ऐसी प्रजातियाँ हैं, जो सुंदरवन में पाई जाती हैं। यहाँ के वनों की एक ख़ास बात यह है कि यहाँ वही पेड़ पनपते या बच सकते हैं, जो मीठे और खारे पानी के मिश्रण में रह सकते हों।[8]

सहायक नदियाँ

मानचित्र में गंगा और यमुना का संगम, इलाहाबाद (1885)

गंगा में उत्तर की ओर से आकर मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियाँ यमुना, रामगंगा, करनाली (घाघरा), ताप्ती, गंडक, कोसी और काक्षी हैं तथा दक्षिण के पठार से आकर इसमें मिलने वाली प्रमुख नदियाँ चंबल, सोन, बेतवा, केन, दक्षिणी टोस आदि हैं। यमुना गंगा की सबसे प्रमुख सहायक नदी है जो हिमालय की बन्दरपूँछ चोटी के आधार पर यमुनोत्री हिमखण्ड से निकली है।[9] हिमालय के ऊपरी भाग में इसमें टोंस[10] तथा बाद में लघु हिमालय में आने पर इसमें गिरि और आसन नदियाँ मिलती हैं। चम्बल, बेतवा, शारदा और केन यमुना की सहायक नदियाँ हैं। चम्बल इटावा के पास तथा बेतवा हमीरपुर के पास यमुना में मिलती हैं। यमुना इलाहाबाद के निकट बायीं ओर से गंगा नदी में जा मिलती है। रामगंगा मुख्य हिमालय के दक्षिणी भाग नैनीताल के निकट से निकलकर बिजनौर ज़िले से बहती हुई कन्नौज के पास गंगा में मिलती है। करनाली नदी मप्सातुंग नामक हिमनद से निकलकर अयोध्या, फैजाबाद होती हुई बलिया ज़िले के सीमा के पास गंगा में मिल जाती है। इस नदी को पर्वतीय भाग में कौरियाला तथा मैदानी भाग में घाघरा कहा जाता है। गंडक हिमालय से निकलकर नेपाल में शालीग्राम नाम से बहती हुई मैदानी भाग में नारायणी नदी का नाम पाती है। यह काली गंडक और त्रिशूल नदियों का जल लेकर प्रवाहित होती हुई सोनपुर के पास गंगा में मिलती है। कोसी की मुख्यधारा अरुण है जो गोसाई धाम के उत्तर से निकलती है। ब्रह्मपुत्र के बेसिन के दक्षिण से सर्पाकार रूप में अरुण नदी बहती है जहाँ यारू नामक नदी इससे मिलती है। इसके बाद हिमालय के कंचनजंघा शिखरों के बीच से बहती हुई यह दक्षिण की ओर 90 किलोमीटर बहती है जहाँ पश्चिम से सूनकोसी तथा पूरब से तामूर कोसी नामक नदियाँ इसमें मिलती हैं। इसके बाद कोसी नदी के नाम से यह शिवालिक को पार करके मैदान में उतरती है तथा बिहार राज्य से बहती हुई गंगा में मिल जाती है। अमरकंटक पहाड़ी से निकलकर सोन नदी पटना के पास गंगा में मिलती है। मध्य-प्रदेश के मऊ के निकट जनायाब पर्वत से निकलकर चम्बल नदी इटावा से 38 किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी में मिलती है। बेतवा नदी मध्य प्रदेश में भोपाल से निकलकर उत्तर हमीरपुर के निकट यमुना में मिलती है। भागीरथी नदी के दायें किनारे से मिलने वाली अनेक नदियों में बाँसलई, द्वारका, मयूराक्षी, रूपनारायण, कंसावती और रसूलपुर प्रमुख हैं। जलांगी और माथा भाँगा या चूनीं बायें किनारे से मिलती हैं जो अतीत काल में गंगा या पद्मा की शाखा नदियाँ थीं। किन्तु ये वर्तमान समय में गंगा से पृथक होकर वर्षाकालीन नदियाँ बन गई हैं।

जीव-जन्तु

ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि 16वीं तथा 17वीं शताब्दी तक गंगा-यमुना प्रदेश घने वनों से ढका हुआ था। इन वनों में जंगली हाथी, भैंस, गेंडा, शेर, बाघ तथा गवल का शिकार होता था। गंगा का तटवर्ती क्षेत्र अपने शांत व अनुकूल पर्यावरण के कारण रंग-बिरंगे पक्षियों का संसार अपने आंचल में संजोए हुए है। इसमें मछलियों की 140 प्रजातियाँ, 35 सरीसृप तथा इसके तट पर 42 स्तनधारी प्रजातियाँ पाई जाती हैं।[11] यहाँ की उत्कृष्ट पारिस्थितिकी संरचना में कई प्रजाति के वन्य जीवों जैसे नीलगाय, सांभर, खरगोश, नेवला, चिंकारा के साथ सरीसृप-वर्ग के जीव-जन्तुओं को भी आश्रय मिला हुआ है। इस इलाके में ऐसे कई जीव-जन्तुओं की प्रजातियाँ हैं जो दुर्लभ होने के कारण संरक्षित घोषित की जा चुकी हैं। गंगा के पर्वतीय किनारों पर लंगूर, लाल बंदर, भूरे भालू, लोमड़ी, चीते, बर्फीले चीते, हिरण, भौंकने वाले हिरण, सांभर, कस्तूरी मृग, सेरो, बरड़ मृग, साही, तहर आदि काफ़ी संख्या में मिलते हैं। विभिन्न रंगों की तितलियां तथा कीट भी यहाँ पाए जाते हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या के दबाव में धीरे-धीरे वनों का लोप होने लगा है और गंगा की घाटी में सर्वत्र कृषि होती है फिर भी गंगा के मैदानी भाग में हिरण, जंगली सूअर, जंगली बिल्लियाँ, भेड़िया, गीदड़, लोमड़ी की अनेक प्रजातियाँ काफ़ी संख्या में पाए जाते हैं। डालफिन की दो प्रजातियाँ गंगा में पाई जाती हैं। जिन्हें गंगा डालफिन और इरावदी डालफिन के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा गंगा में पाई जाने वाले शार्क की वजह से भी गंगा की प्रसिद्धि है जिसमें बहते हुये पानी में पाई जानेवाली शार्क के कारण विश्व के वैज्ञानिकों की काफ़ी रुचि है। इस नदी और बंगाल की खाड़ी के मिलन स्थल पर बनने वाले मुहाने को सुंदरवन के नाम से जाना जाता है जो विश्व की बहुत-सी प्रसिद्ध वनस्पतियों और प्रसिद्ध बंगाल टाईगर का गृहक्षेत्र है।[12]

आर्थिक महत्त्व

वाराणसी में गंगा नदी के घाट
Ghats of Ganga River in Varanasi

गंगा अपनी उपत्यकाओं में भारत और बांग्लादेश के कृषि आधारित अर्थ में भारी सहयोग तो करती ही है, यह अपनी सहायक नदियों सहित बहुत बड़े क्षेत्र के लिए सिंचाई के बारहमासी स्रोत भी हैं। इन क्षेत्रों में उगाई जाने वाली प्रधान उपज में मुख्यतः धान, गन्ना, दाल, तिलहन, आलू एवं गेहूँ हैं। जो भारत की कृषि आज का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा के तटीय क्षेत्रों में दलदल एवं झीलों के कारण यहाँ लेग्यूम, मिर्च, सरसों, तिल, गन्ना और जूट की अच्छी फ़सल होती है। नदी में मत्स्य उद्योग भी बहुत जोरों पर चलता है। गंगा नदी प्रणाली भारत की सबसे बड़ी नदी प्रणाली है। इसमें लगभग 375 मत्स्य प्रजातियाँ उपलब्ध हैं। वैज्ञानिकों द्वारा उत्तर प्रदेशबिहार में 111 मत्स्य प्रजातियों की उपलब्धता बतायी गयी है।[13] फरक्का बांध बन जाने से गंगा नदी में हिल्सा मछली के बीजोत्पादन में सहायता मिली है। [14] गंगा का महत्त्व पर्यटन पर आधारित आय के कारण भी है। इसके तट पर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तथा प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर कई पर्यटन स्थल है जो राष्ट्रीय आय का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा नदी पर रैफ्टिंग के शिविरों का आयोजन किया जाता है। जो साहसिक खेलों और पर्यावरण द्वारा भारत के आर्थिक सहयोग में सहयोग करते हैं। गंगा तट के तीन बड़े शहर हरिद्वार, इलाहाबाद एवं वाराणसी जो तीर्थ स्थलों में विशेष स्थान रखते हैं। इस कारण यहाँ श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या निरंतर बनी रहती है और धार्मिक पर्यटन में महत्त्वपूर्ण योगदान करती है। गर्मी के मौसम में जब पहाड़ों से बर्फ़ पिघलती है, तब नदी में पानी की मात्रा व बहाव अच्छा होता है, इस समय उत्तराखंड में ऋषिकेश - बद्रीनाथ मार्ग पर कौडियाला से ऋषिकेश के मध्य रैफ्टिंग, क्याकिंग व कैनोइंग के शिविरों का आयोजन किया जाता है, जो साहसिक खोलों के शौक़ीनों और पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित कर के भारत के आर्थिक सहयोग में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।[15]

बाँध एवं नदी परियोजनाएँ

गंगा नदी पर निर्मित अनेक बाँध भारतीय जन-जीवन तथा अर्थ व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनमें प्रमुख हैं फ़रक्का बाँध, टिहरी बाँध, तथा भीमगोडा बाँध। फ़रक्का बांध (बैराज) भारत के पश्चिम बंगाल प्रान्त में स्थित गंगा नदी पर बनाया गया है। इस बाँध का निर्माण कोलकाता बंदरगाह को गाद (सिल्ट) से मुक्त कराने के लिये किया गया था जो कि 1950 से 1960 तक इस बंदरगाह की प्रमुख समस्या थी। कोलकाता हुगली नदी पर स्थित एक प्रमुख बंदरगाह है। ग्रीष्म ऋतु में हुगली नदी के बहाव को निरंतर बनाये रखने के लिये गंगा नदी के जल के एक बड़े हिस्से को फ़रक्का बाँध के द्वारा हुगली नदी में मोड़ दिया जाता है। गंगा पर निर्मित दूसरा प्रमुख बाँध टिहरी बाँध टिहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है जो उत्तराखंड प्रान्त के टिहरी ज़िले में स्थित है। यह बाँध गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई 261 मीटर है जो इसे विश्व का पाँचवाँ सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। इस बाँध से 2400 मेगावाट विद्युत उत्पादन, 270,000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर-प्रदेश एवं उत्तरांचल को उपलब्ध कराना प्रस्तावित है। तीसरा प्रमुख बाँध भीमगोडा बाँध हरिद्वार में स्थित है जिसको सन 1840 में अंग्रेजो ने गंगा नदी के पानी को विभाजित कर ऊपरी गंगा नहर में मोड़ने के लिये बनवाया था। यह नहर हरिद्वार के भीमगोडा नामक स्‍थान से गंगा नदी के दाहिने तट से निकलती है। प्रारम्‍भ में इस नहर में जलापूर्ति गंगा नदी में एक अस्‍थायी बॉंध बनाकर की जाती थी। वर्षाकाल प्रारम्‍भ होते ही अस्‍थायी बॉंध टूट जाया करता था तथा मानसून अवधि में नहर में पानी चलाया जाता था। इस प्रकार इस नहर से केवल रबी की फ़सलों की ही सिंचाई हो पाती थी। अस्‍थायी बॉंध निर्माण स्‍थल के डाउनस्‍ट्रीम में वर्ष 1978-1984 की अवधि में भीमगोडा बैराज का निर्माण करवाया गया। इसके बन जाने के बाद ऊपरी गंगा नहर प्रणाली से खरीफ की फ़सल में भी पानी दिया जाने लगा।

अर्थव्यवस्था

सिंचाई

सिंचाई के लिए गंगा के पानी का उपयोग, चाहे बाढ़ का पानी हो या फिर नहरों का, पुरातन काल से ही प्रचलित है। इस तरह की सिंचाई का उल्लेख धर्मग्रन्थों तथा 2,000 से भी ज़्यादा वर्ष पहले लिखे पुराणों में मिलता है। चौथी सदी में यूनान से भारत आए राजदूत मेगस्थनीज़ ने यहाँ सिंचाई के उपयोग का उल्लेख किया है। 12वीं सदी से मुस्लिम काल में सिंचाई प्रणाली बहुत विकसित थी और मुग़ल बादशाहों ने बाद में बहुत सी नहरों का निर्माण किया। बाद में ब्रिटिश शासकों ने सिंचाई प्रणाली का और भी विस्तार किया।

उत्तर प्रदेश और बिहार स्थित गंगा घाटी के कृषि क्षेत्रों को सिंचाई नहरों की प्रणाली से बहुत लाभ हुआ है। ख़ासतौर से इस विकसित सिंचाई प्रणाली के कारण गन्ना, कपास और तिलहन जैसी नक़दी फ़सलों की पैदावार में वृद्धि सम्भव हुई। पुरानी नहरें मुख्यत: गंगा-यमुना के दौआब इलाक़े में हैं। ऊपरी गंगा नहर हरिद्वार से शुरू होती है और अपनी सहायक नहरों सहित 9,524 किलोमीटर लम्बी है। निचली गंगा नहर की लम्बाई अपनी सहायक नहरों सहित 8,238 किलोमीटर है और यह नरोरा से प्रारम्भ होती है। शारदा नहर से उत्तर प्रदेश में अयोध्या की भूमि सींची जाती है। गंगा के उत्तर में भूमि की ऊँचाई अधिक होने से नहरों के द्वारा सिंचाई करना कठिन होने के कारण भूमिगत जल पम्प द्वारा खींचकर सतह पर लाया जाता है। उत्तर प्रदेश और बिहार के काफ़ी बड़े इलाक़े में हाथ से खोदे हुए कुओं से निकली नहरों के द्वारा सिंचाई की जाती है। बांग्लादेश में गंगा-कबाडाक योजना मुख्यत: सिंचाई के लिए ही है और उसमें खुलना, जेशोर और कुश्तिया ज़िलों के वे हिस्से आते हैं, जो डेल्टा के कमज़ोर हिस्से हैं, जहाँ नदियों का मार्ग गाद और घनी झाड़ियों के कारण अवरुद्ध हो चुका है। इस इलाक़े में कुल वार्षिक वर्षा सामान्यत: 1,524 मिलीमीटर से कम होती है तथा शीत ऋतु तुलनात्मक रूप से शुष्क रहती है। यहाँ की सिंचाई प्रणाली भी नहरों तथा भूमिगत जल खींचने वाले विद्युतचालित उपकरणों पर आधारित है।

नौकायन

प्राचीन काल में गंगा और इसकी कुछ सहायक नदियाँ, ख़ासतौर से पूरब में, नौकायन के उपयुक्त थीं। मेगस्थनीज़ के अनुसार, चौथी शताब्दी ई. पू. में गंगा और इसकी प्रमुख सहायक नदियों में नौकायन होता था। गंगा के बेसिन में अंतर्देशीय नदी नौकायन 14वीं शताब्दी तक भी फल-फूल रहा था। 19वीं सदी के आते-आते सिंचाई तथा नौकायन के लिए उपयुक्त नहरों की जल परिवहन प्रणाली के प्रमुख मार्ग बन चुके थे। पैंडल स्टीमरों के आगमन से अंतर्देशीय परिवहन में भी जो क्रान्ति आई, उससे बंगाल और बिहार के नील उद्योग को बहुत बढ़ावा मिला। गंगा में कलकत्ता से इलाहाबाद और उससे आगे यमुना में आगरा तक तथा उधर ब्रह्मपुत्र तक नियमित स्टीमर सेवाएँ चलने लगीं।

19वीं सदी के मध्य में रेलमार्गों के बनने से बड़े पैमाने पर जल परिवहन में गिरावट शुरू हो गई। सिंचाई हेतु पानी बहुत अधिक मात्रा में खींच लिए जाने से भी नौकायन विपरीत रूप से प्रभावित हुआ। अब तो नौकायन केवल इलाहाबाद के आसपास के मध्य गंगा बेसिन तक ही सीमित होकर रह गया है, जिसमें से अधिकांश देसी नौकाओं पर आधारित हैं।

पश्चिम बंगाल तथा बांग्लादेश अब भी जूट, घास, चाय, अनाज तथा अन्य कृषि और ग्रामीण उत्पादों के परिवहन के लिए जलमार्गों पर निर्भर हैं। बांग्लादेश में चालना, खुलना, बारीसाल, चाँदपुर, नारायणगंज, ग्वालंदो घाट, सिरसागंज, भैरव बाज़ार तथा फेंचूगंज और भारत में कोलकाता, गोलपाड़ा, धुबुरी और डिब्रूगढ़ प्रमुख नदी बंदरगाह हैं। 1947 में भारत के विभाजन से बड़े दूरगामी परिवर्तन हुए। कलकत्ता से असम तक अंतर्देशीय जलमार्गों के द्वारा पहले बड़े पैमाने पर होने वाला व्यापार लगभग बन्द ही हो गया।

बांग्लादेश में अंतर्देशीय जल परिवहन की ज़िम्मेदारी अंतर्देशीय जल परिवहन प्राधिकरण की है। भारत में अंतर्देशीय जलमार्गों का नीति निर्धारण केन्द्रीय अंतर्देशीय जल परिवहन मण्डल (सेंट्रल वॉटर ट्रांसपोर्ट बोर्ड) करता है। लेकिन राष्ट्रीय जलमार्गों की व्यापक प्रणाली का विकास एवं रख-रखाव अंतर्देशीय जलमार्ग (इनलैंड वॉटरवेज़ अथॉरिटी) प्राधिकरण करता है। गंगा के बेसिन में इलाहाबाद से लेकर हल्दिया तक लगभग 1,607 किलोमीटर लम्बा जलमार्ग इस प्रणाली में शामिल है।

डेल्टा के मुख पर भारत की सीमा के ठीक भीतर फ़रक्का बाँध का निर्माण बांग्लादेश और भारत के बीच विवाद का कारण बन गया है। भारत का कहना है कि गाद के जमने तथा खारा पानी घुस आने की वजह से कोलकाता बंदरगाह का पतन हो गया है। कोलकाता की स्थिति में सुधार के लिए खारे पानी को निकालकर और जलस्तर को बढ़ाकर भारत ने फ़रक्का बैराज से गंगा को मोड़कर ताज़ा पानी हासिल करने की कोशिश की है। अब एक बड़ी नहर द्वारा पानी भागीरथी नदी में लाया जाता है, जो कोलकाता से परे हुगली नदी में समाहित होता है।

बांग्लादेश का कहना है कि नदियों के तटवर्ती देशों की परस्पर समृद्धि के लिए यह ज़रूरी है कि अंतर्देशीय नदियों के पानी पर उनका संयुक्त नियंत्रण होना चाहिए। सिंचाई, नौकायन तथा खारे पानी की रोकथाम के लिए गंगा का पानी बांग्लादेश में भी उतना ही आवश्यक है, जितना भारत के लिए। बांग्लादेश के अनुसार, फ़रक्का बाँध ने उसे पानी के एक ऐसे बहुमूल्य स्रोत से वंचित कर दिया है, जो कि उसकी समृद्धि के लिए आवश्यक है। दूसरी तरफ़ भारत गंगाजल की समस्या के बारे में द्विपक्षीय रवैया अपनाये जाने के पक्ष में है। दोनों देशों के बीच कई अंतरिम समझौते हुए हैं, लेकिन अभी तक इस विवाद का कोई स्थायी हल नहीं निकल पाया है। भारत के असम में ब्रह्मपुत्र के पानी को बांग्लादेश से होकर एक नहर द्वारा गंगा में मोड़ने के प्रस्ताव के जवाब में बांग्लादेश ने सुझाया है कि पूर्वी नेपाल, पश्चिम बंगाल होते हुए एक नहर बांग्लादेश तक बनाई जाए। किसी भी प्रस्ताव को सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। 1987 तथा 1988 में बांग्लादेश में आई प्रलयंकारी बाढ़ों, जिसमें 1988 की बाढ़ उस देश के इतिहास की सर्वाधिक विनाशकारी बाढ़ थी, इसको देखते हुए विश्व बैंक ने इस क्षेत्र के लिए अब बाढ़ नियंत्रण की एक दूरगामी योजना बनाई है।

पनबिजली योजना

गंगा की लगभग 130 लाख किलोवाट की अनुमानित जलविद्युत क्षमता का 2/5 हिस्सा भारत में तथा शेष नेपाल में है। इस क्षमता में से कुछ का दोहन भारत ने चंबल और रिहंद नदियों द्वारा किया है। गंगा का मैदान दुनिया की सबसे घनी आबादी वाला तथा उपजाऊ इलाक़ों में से एक है। चूँकि इस मैदानी क्षेत्र में अवरोध न के बराबर है, इसीलिए गंगा की धारा अधिकांश इलाक़े में चौड़ी व धीमी गति से प्रवाहित है। उसके कुल अपवाह बेसिन का 9,75,900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल, यानी भारत के कुल क्षेत्र का लगभग चौथाई हिस्सा है और उस पर लगभग 50 करोड़ की आबादी निर्भर करती है। इस बेसिन की भूमि पर गहन खेती होती है। गंगा प्रणाली की जलापूर्ति आंशिक रूप से जुलाई से अक्टूबर के बीच होने वाली मानसून की वर्षा और अप्रॅल से जून के बीच हिमालय पर गर्मी से पिघलने वाली बर्फ़ पर निर्भर करती हैं।

भारतीय उपमहाद्वीप का यह विस्तृत उत्तर-मध्य खण्ड, जिसे उत्तर भारतीय मैदान भी कहा जाता है, पश्चिम में ब्रह्मपुत्र नदी घाटी और गंगा के डेल्टा से लेकर सिंधु नदी घाटी तक फैला हुआ है। इस इलाक़े में इस उपमहाद्वीप के सबसे समृद्ध और सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं। इस मैदान का अधिकांश हिस्सा गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के द्वारा पूर्व में सिंध नदी द्वारा पश्चिम में बहकर लाई गई कछारी मिट्टी से बना हुआ है। मैदान के पूर्वी हिस्सों में कम बारिश या सर्दियाँ शुष्क होती हैं। किन्तु मानसून की वर्षा इतनी अधिक होती है कि बड़े-बड़े इलाक़ों में दलदल या उथली झीलें बन जाती हैं। ज्यों-ज्यों पश्चिम की ओर बढ़ते हैं, यह मैदान शुष्क होता चला जाता है और अन्त में थार के रेगिस्तान में बदल जाता है।

प्रदूषण एवं पर्यावरण

गंगा नदी विश्व भर में अपनी शुद्धीकरण क्षमता के कारण जानी जाती है। लंबे समय से प्रचलित इसकी शुद्धीकरण की मान्यता का वैज्ञानिक आधार भी है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। नदी के जल में प्राणवायु (ऑक्सीजन) की मात्रा को बनाए रखने की असाधारण क्षमता है। किंतु इसका कारण अभी तक अज्ञात है।

गंगा नदी, वाराणसी
Ganga River, Varanasi

एक राष्ट्रीय सार्वजनिक रेडियो कार्यक्रम के अनुसार इस कारण हैजा और पेचिश जैसी बीमारियाँ होने का खतरा बहुत ही कम हो जाता है, जिससे महामारियाँ होने की संभावना बड़े स्तर पर टल जाती है।[16] लेकिन गंगा के तट पर घने बसे औद्योगिक नगरों के नालों की गंदगी सीधे गंगा नदी में मिलने से गंगा का प्रदूषण पिछले कई सालों से भारत सरकार और जनता की चिंता का विषय बना हुआ है। औद्योगिक कचरे के साथ-साथ प्लास्टिक कचरे की बहुतायत ने गंगा जल को भी बेहद प्रदूषित किया है। वैज्ञानिक जांच के अनुसार गंगा का बायोलाजिकल ऑक्सीजन स्तर 3 डिग्री (सामान्य) से बढ़कर 6 डिग्री हो चुका है। गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषित कचरा प्रतिदिन गिर रहा है। विश्व बैंक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर-प्रदेश की 12 प्रतिशत बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा जल है। यह घोर चिन्तनीय है कि गंगा-जल न स्नान के योग्य रहा, न पीने के योग्य रहा और न ही सिंचाई के योग्य। गंगा के पराभव का अर्थ होगा, हमारी समूची सभ्यता का अन्त।[17] गंगा में बढ़ते प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए घड़ियालों की मदद ली जा रही है।[18] शहर की गंदगी को साफ करने के लिए संयंत्रों को लगाया जा रहा है और उद्योगों के कचरों को इसमें गिरने से रोकने के लिए क़ानून बने हैं। इसी क्रम में गंगा को राष्ट्रीय धरोहर भी घोषित कर दिया गया है और गंगा एक्शन प्लान व राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना लागू की गई हैं। हांलांकि इसकी सफलता पर प्रश्नचिह्न भी लगाए जाते रहे हैं।[19] जनता भी इस विषय में जागृत हुई है। इसके साथ ही धार्मिक भावनाएँ आहत न हों इसके भी प्रयत्न किए जा रहे हैं।[20] इतना सबकुछ होने के बावजूद गंगा के अस्तित्व पर संकट के बादल छाए हुए हैं। 2007 की एक संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के अनुसार हिमालय पर स्थित गंगा की जलापूर्ति करने वाले हिमनद की 2030 तक समाप्त होने की संभावना है। इसके बाद नदी का बहाव मानसून पर आश्रित होकर मौसमी ही रह जाएगा। [21]

धार्मिक महत्त्व

भारत की अनेक धार्मिक अवधारणाओं में गंगा नदी को देवी के रूप में निरुपित किया गया है। बहुत से पवित्र तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे पर बसे हुये हैं जिनमें वाराणसी और हरिद्वार सबसे प्रमुख हैं। गंगा नदी को भारत की पवित्र नदियों में सबसे पवित्र माना जाता है एवं यह मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सारे पापों का नाश हो जाता है।[22] मरने के बाद लोग गंगा में अपनी राख विसर्जित करना मोक्ष प्राप्ति के लिये आवश्यक समझते हैं, यहाँ तक कि कुछ लोग गंगा के किनारे ही प्राण विसर्जन या अंतिम संस्कार की इच्छा भी रखते हैं।

कुम्भ मेला, इलाहाबाद
Kumb Fair, Allahabad

इसके घाटों पर लोग पूजा अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं। गंगाजल को पवित्र समझा जाता है तथा समस्त संस्कारों में उसका होना आवश्यक है। पंचामृत में भी गंगाजल को एक अमृत माना गया है। अनेक पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा संबंध है। उदाहरण के लिए मकर संक्राति, कुंभ और गंगा दशहरा के समय गंगा में नहाना या केवल दर्शन ही कर लेना बहुत महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। इसके तटों पर अनेक प्रसिद्ध मेलों का आयोजन किया जाता है और अनेक प्रसिद्ध मंदिर गंगा के तट पर ही बने हुए हैं। महाभारत के अनुसार मात्र प्रयाग में माघ मास में गंगा-यमुना के संगम पर तीन करोड़ दस हज़ार तीर्थों का संगम होता है। ये तीर्थ स्थल सम्पूर्ण भारत में सांस्कृतिक एकता स्थापित करते हैं।[23] गंगा को लक्ष्य करके अनेक भक्ति ग्रंथ लिखे गए हैं। जिनमें श्रीगंगासहस्रनामस्तोत्रम्[24] और आरती[25] सबसे लोकप्रिय हैं। अनेक लोग अपने दैनिक जीवन में श्रद्धा के साथ इनका प्रयोग करते हैं। गंगोत्री तथा अन्य स्थानों पर गंगा के मंदिर और मूर्तियाँ भी स्थापित हैं जिनके दर्शन कर श्रद्धालु स्वयं को कृतार्थ समझते हैं। उत्तराखंड के पंच प्रयाग तथा प्रयागराज जो इलाहाबाद में स्थित है गंगा के वे प्रसिद्ध संगम स्थल हैं जहाँ वह अन्य नदियों से मिलती हैं। ये सभी संगम धार्मिक दृष्टि से पूज्य माने गए हैं।

गंगा नदी का धार्मिक महत्व सम्भवत: विश्व की किसी भी अन्य नदी से ज़्यादा है। आदिकाल से ही यह पूजी जाती रही है और आज भी हिन्दुओं के लिए यह सबसे पवित्र नदी है। इसे देवी स्वरूप माना जाता है। एक किंवदन्ती के अनुसार, महान तपस्वी भगीरथ की प्रार्थना पर देवी गंगा को स्वयं भगवान विष्णु ने इस धरती पर भेजा। लेकिन गंगा जिस वेग से धरती पर अवतरित हुईं, उससे उनके मार्ग में आने वाली हर वस्तु के जलप्लावित होने का ख़तरा था। इसीलिए भगवान शिव ने पहले ही उन्हें अपनी जटाओं में लपेटकर उनके वेग को नियंत्रित और शान्त किया। मुक्ति चाहने वाले उसके बाद ही उसमें स्नान कर पाए। हिन्दुओं के तीर्थस्थल वैसे तो समूचे उपमहाद्वीप में फैल हुए हैं, तथापि गंगा तट पर बसे तीर्थ हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। इनमें प्रमुख हैं, इलाहाबाद में गंगा और यमुना का संगम, जहाँ एक निश्चित अन्तराल पर जनवरी-फ़रवरी में कुम्भ मेला आयोजित होता है। इस अनुष्ठान के समय लाखों तीर्थयात्री गंगा में स्नान करते हैं। पवित्र स्नान की दृष्टि से अन्य तीर्थ हैं, वाराणसी, काशी और हरिद्वार। कलकत्ता में हुगली नदी भी पवित्र मानी जाती है। तीर्थयात्रा की दृष्टि से गंगा तट पर गंगोत्री और अलकनन्दा और भागीरथी का संगम भी महत्वपूर्ण है। हिन्दू अपने मृतकों की भस्म एवं अस्थियाँ यह मानते हुए यहाँ विसर्जित करते हैं कि ऐसा करने से मृतक सीधे स्वर्ग में जाता है। इसीलिए गंगा के तट पर कई स्थानों पर शवदाह हेतु विशेष घाट बने हुए हैं।

गंगा पुनीततम नदी है और इसके तटों पर हरिद्वार, कनखल, प्रयाग एवं काशी जैसे परम प्रसिद्ध तीर्थ अवस्थित हैं। प्रसिद्ध नदीसूक्त[26] में सर्वप्रथम गंगा का ही आह्वान किया गया है। ऋग्वेद[27] में ‘गंगय’ शब्द आया है जिसका सम्भवत: अर्थ है ‘गंगा पर वृद्धि करता हुआ।’[28] शतपथ ब्राह्मण[29] एवं ऐतरेय ब्राह्मण [30] में गंगा एवं यमुना के किनारे पर भरत दौष्यंति की विजयों एवं यज्ञों का उल्लेख हुआ है। शतपथ ब्राह्मण[31] में एक प्राचीन गाथा का उल्लेख है- ‘नाडपित् पर अप्सरा शकुन्तला ने भरत को गर्भ में धारण किया, जिसने सम्पूर्ण पृथ्वी को जीतने के उपरान्त इन्द्र के पास यज्ञ के लिए एक सहस्र से अधिक अश्व भेजे।’ महाभारत[32] एवं पुराणों[33] में गंगा की महत्ता एवं पवित्रीकरण के विषय में सैकड़ों प्रशस्तिजनक श्लोक हैं। स्कन्द पुराण[34] में गंगा के एक सहस्र नामों का उल्लेख है। यहाँ पर उपर्युक्त ग्रन्थों में दिये गये वर्णनों का थोड़ा अंश भी देना सम्भव नहीं है। अधिकांश भारतीयों के मन में गंगा जैसी नदियों एवं हिमालय जैसे पर्वतों के दो स्वरूप घर कर बैठे हैं-

  1. भौतिक
  2. आध्यात्मिक

विशाल नदियों के साथ दैवी जीवन की प्रगाढ़ता संलग्न हो ही जाती है। टायलर ने अपने ग्रन्थ ‘प्रिमिटिव कल्चर’[35] में लिखा है-

‘जिन्हें हम निर्जीव पदार्थ कहते हैं, यथा नदियाँ, पत्थर, वृक्ष, अस्त्र-शस्त्र आदि। वे जीवित, बुद्धिशाली हो उठते हैं, उनसे बातें की जाती हैं, उन्हें प्रसन्न किया जाता है और यदि वे हानि पहुँचाते हैं तो उन्हें दण्डित भी किया जाता है।’

गंगा के महात्म्य एवं उसकी तीर्थयात्रा के विषय में पृथक-पृथक ग्रन्थ प्रणीत हुए हैं। यथा- गणेश्वर (1350 ई.) का गंगापत्तलक, मिथिला के राजा पद्मसिंह की रानी विश्वासदेवी की गंगावाक्यावली, गणपति की गंगाभक्तितरंगिणी एवं वर्धमान की गंगाकृत्यविवेक। इन ग्रन्थों की तिथियाँ इस महाग्रन्थ के अन्त में दी हुई हैं।

वन पर्व

वन पर्व[36] ने गंगा की प्रशस्ति में कई श्लोक[37] दिये हैं, जिनमें से कुछ का अनुवाद इस प्रकार है- "जहाँ भी कहीं स्नान किया जाए, गंगा कुरुक्षेत्र के बराबर है। किन्तु कनखल की अपनी विशेषता है और प्रयाग में इसकी परम महत्ता है। यदि कोई सैकड़ों पापकर्म करके गंगाजल का अवसिंचन करता है तो गंगाजल उन दुष्कृत्यों को उसी प्रकार जला देता है, जिस प्रकार से अग्नि ईधन को जला देती है। सत युग में सभी स्थल पवित्र थे, त्रेता युग में पुष्कर सबसे अधिक पवित्र था, द्वापर युग में कुरुक्षेत्र एवं कलियुग में गंगा। नाम लेने पर गंगा पापी को पवित्र कर देती है। इसे देखने से सौभाग्य प्राप्त होता है। जब इसमें स्नान किया जाता है या इसका जल ग्रहण किया जाता है तो सात पीढ़ियों तक कुल पवित्र हो जाता है। जब तक किसी मनुष्य की अस्थि गंगा जल को स्पर्श करती रहती है, तब तक वह स्वर्गलोक में प्रसन्न रहता है। गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है और केशन के समान कोई देव। वह देश जहाँ गंगा बहती है और वह तपोवन जहाँ पर गंगा पाई जाती है, उसे सिद्धिक्षेत्र कहना चाहिए, क्योंकि वह गंगातीर को छूता रहता है।"

अनुशासन पर्व

अनुशासन पर्व[38] में आया है कि वे जनपद एवं देश, वे पर्वत एवं आश्रम, जिनसे होकर गंगा बहती है, पुण्य का फल देने में महान हैं। वे लोग, जो जीवन के प्रथम भाग में पापकर्म करते हैं, यदि गंगा की ओर जाते हैं तो परम पद प्राप्त करते हैं। जो लोग गंगा में स्नान करते हैं उनका फल बढ़ता जाता है। वे पवित्रात्मा हो जाते हैं और ऐसा पुण्यफल पाते हैं जो सैकड़ों वैदिक यज्ञों के सम्पादन से भी नहीं प्राप्त होता।

भगवदगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि धाराओं में मैं गंगा हूँ।[39] मनु[40] ने साक्षी को सत्योच्चारण के लिए जो कहा है उससे प्रकट होता है कि मनुस्मृति के काल में गंगा एवं कुरुक्षेत्र सर्वोच्च पुनीत स्थल थे।[41]

पौराणिक महत्त्व

गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। कुछ पुराणों ने गंगा को मन्दाकिनी के रूप में स्वर्ग में, गंगा के रूप में पृथ्वी पर और भोगवती के रूप में पाताल में प्रवाहित होते हुए वर्णित किया है।[42] विष्णु आदि पुराणों ने गंगा को विष्णु के बायें पैर के अँगूठे के नख से प्रवाहित माना है।[43] कुछ पुराणों में ऐसा आया है कि शिव ने अपनी जटा से गंगा को सात धाराओं में परिवर्तित कर दिया, जिनमें तीन (नलिनी, ह्लदिनी एवं पावनी) पूर्व की ओर, तीन (सीता, चक्षुस एवं सिन्धु) पश्चिम की ओर प्रवाहित हुई और सातवीं धारा भागीरथी हुई (मत्स्य पुराण 121|38-41; ब्रह्माण्ड पुराण 2|18|39-41 एवं 1|3|65-66)। कूर्म पुराण (1|46|30-31) एवं वराह पुराण (अध्याय 82, गद्य में) का कथन है कि गंगा सर्वप्रथम सीता, अलकनंदा, सुचक्ष एवं भद्रा नामक चार विभिन्न धाराओं में बहती है। अलकनंदा दक्षिण की ओर बहती है, भारतवर्ष की ओर आती है और सप्तमुखों में होकर समुद्र में गिरती है।[44] ब्रह्माण्ड पुराण (73|68-69) में गंगा को विष्णु के पाँव से एवं शिव के जटाजूट में अवस्थित माना गया है।

एक दूसरे पौराणिक आख्यान के अनुसार गंगा हिमालय और मैना की पुत्री तथा उमा की भगिनी थीं। महाभारत की एक कथा उसे कुरुराज शान्तनु की पत्नी और भीष्म की माता बताती है। जिसमें भीष्म का दूसरा नाम गांगेय भी है। गंगा का सम्बन्ध कार्तिकेय के मातृत्व से भी है। हिन्दुओं के जितने तीर्थ इस नदी के तीर पर हैं, उतने कहीं पर नहीं और उसकी पवित्रता का प्रभाव तो भारतीयों पर इतना गहरा पड़ा कि उन्होंने अनेक दूसरी नदियों के नाम भी गंगा रख दिये। जहाँ-जहाँ भारतीय संस्कृति का विस्तार हुआ, वहाँ-वहाँ गंगा की पवित्रता का विविध रूप से उल्लेख हुआ। गंगा की मकर पर आरूढ़ चँवर अथवा कलश धारिणी मूर्तियाँ भी गुप्तकाल में बनने लगी थीं।[45]

पुराणों के अनुसार विवद्गंगा, आकाशगंगा अथवा स्वर्गगंगा विष्णु के अँगूठे से निकली हैं, जिसका पृथ्वी पर अवतरण भगीरथ के स्तवन से कपिल मुनि द्वारा भस्मीकृत राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों को पवित्र करने के लिए हुआ। भगीरथ के साथ इसी संयोग के कारण गंगा का दूसरा नाम भागीरथी पड़ा। पौराणिक परम्परा है कि स्वर्ग से उतरने के कारण गंगा अत्यन्त कुपित हो उठी थीं और उसके कोप के कारण पृथ्वी पर उसकी धारा पड़ते ही उनके बहकर नष्ट हो जाने के भय से शिव ने अपनी जटा में उसे समेट लिया, जिससे उनकी जटाओं में उलझ जाने के कारण धारा पृथ्वी पर सीधी नहीं पड़ी और गंगा की गति मन्द हो गई। इसी सम्बन्ध में शिव का एक नाम गंगाधर भी पड़ा। गंगा का अवतरण तपस्वी जह्नु के यज्ञ के लिए घातक हुआ, जिससे क्रुद्ध होकर उस तापस ने गंगा को पी डाला और प्रार्थना के बाद उसने कान से गंगा की धारा निकाल दी, जिससे वह जाह्नवी कहलाई हैं।

गंगा नदी, वाराणसी
Ganga River, Varanasi

विष्णु पुराण

विष्णु पुराण[46] ने गंगा की प्रशस्ति इस प्रकार की है- जब इसका नाम श्रवण किया जाता है, जब कोई इसके दर्शन की अभिलाषा करता है, जब यह देखी जाती है या स्पर्श की जाती है या जब इसका जल ग्रहण किया जाता है या जब कोई उसमें डुबकी लगाता है या जब इसका नाम लिया जाता है (या इसकी स्तुति की जाती है) तो गंगा दिन-प्रतिदिन प्राणियों को पवित्र करती है। जब सहस्रों योजन दूर रहने वाले लोग गंगा नाम का उच्चारण करते हैं, तो तीन जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।[47]

भविष्य पुराण

भविष्य पुराण में भी ऐसा ही आया है।[48] मत्स्य, कूर्म, गरुड़ एवं पद्म पुराणों का कहना है कि गंगा में पहुँचना सब स्थानों में सरल है, केवल गंगाद्वार (हरिद्वार), प्रयाग एवं वहाँ जहाँ यह समुद्र में मिलती है, पहुँचना कठिन है। जो लोग यहाँ पर स्नान करते हैं, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है और जो लोग यहाँ पर मर जाते हैं, वे पुन: जन्म नहीं पाते हैं।[49]

नारद पुराण

नारद पुराण का कथन है कि गंगा सभी स्थानों में दुर्लभ है, किन्तु तीन स्थानों पर अत्यधिक दुर्लभ है। वह व्यक्ति जो चाहे या अनचाहे गंगा के पास पहुँच जाता है और मर जाता है, स्वर्ग जाता है और नरक नहीं देखता।[50]

कूर्म पुराण

कूर्म पुराण का कथन है कि गंगा वायु पुराण द्वारा घोषित स्वर्ग, अन्तरिक्ष एवं पृथ्वी में स्थित 35 करोड़ पवित्र स्थलों के बराबर है और वह उनका प्रतिनिधित्व करती है।[51]

पद्म पुराण

पद्मपुराण ने प्रश्न किया है- ‘बहुत धन के व्यय वाले यज्ञों एवं कठिन तपों से क्या लाभ, जब कि सुलभ रूप से प्राप्त होने वाली एवं स्वर्ग मोक्ष देने वाली गंगा उपस्थित है!’ नारदीय पुराणों में भी आया है-‘आठ अंगों वाले योग, तपों एवं यज्ञों से क्या लाभ? गंगा का निवास इन सभी से उत्तम है।’[52]

पद्मपुराण[53] में आया है कि विष्णु सभी देवों का प्रतिनिधित्व करते हैं और गंगा विष्णु का। इसमें गंगा की प्रशस्ति इस प्रकार की गई है-‘पिता, पति, मित्रों एवं सम्बन्धियों के व्यभिचारी, पतित, दुष्ट, चाण्डाल एवं गुरुघाती हो जाने पर या सभी प्रकार के पापों एवं द्रोहों से संयुक्त होने पर क्रम से पुत्र, पत्नियाँ, मित्र एवं सम्बन्धि उनका त्याग कर देते हैं, किन्तु गंगा उन्हें परित्यक्त नहीं करती[54]

मत्स्य पुराण

मत्स्य पुराण[55] के दो श्लोक यहाँ वर्णन के योग्य हैं- "पाप करने वाला व्यक्ति भी सहस्रों योजन दूर रहता हुआ गंगा स्मरण से परम पद प्राप्त कर लेता है। गंगा के नाम-स्मरण एवं उसके दर्शन से व्यक्ति क्रम से पापमुक्त हो जाता है एवं सुख पाता है। उसमें स्नान करने एवं जल के पान से वह सात पीढ़ियों तक अपने कुल को पवित्र कर देता है।" काशीखण्ड[56] में ऐसा आया है कि गंगा के तट पर सभी काल शुभ हैं, सभी देश शुभ हैं और सभी लोग दान ग्रहण करने के योग्य हैं।

वराह पुराण

वराह पुराण[57] में गंगा की व्युत्पत्ति ‘गां गता’ (जो पृथ्वी की ओर गई हो) है। पद्मपुराण[58] ने गंगा के विषय में निम्न मूलमंत्र दिया है-

‘ओं नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नम:।’

पुराणों में गंगा के पुनीत स्थल का विस्तार

कुछ पुराणों में गंगा के पुनीत स्थल के विस्तार के विषय में व्यवस्था दी हुई है। नारद पुराण[59] में आया है- गंगा के तीर से एक गव्यूति तक क्षेत्र कहलाता है, इसी क्षेत्र सीमा के भीतर रहना चाहिए, किन्तु तीर पर नहीं, गंगातीर का वास ठीक नहीं है। क्षेत्र सीमा दोनों तीरों से एक योजन की होती है अर्थात् प्रत्येक तीर से दो कोस तक क्षेत्र का विस्तार होता है।[60] यम ने एक सामान्य नियम यह दिया है कि वनों, पर्वतों, पवित्र नदियों एवं तीर्थों के स्वामी नहीं होते, इन पर किसी का भी प्रभुत्व (स्वामी रूप से) नहीं हो सकता।

ब्रह्मपुराण का कथन है कि नदियों से चार हाथ की दूरी तक नारायण का स्वामित्व होता है और मरते समय भी (कण्ठगत प्राण होने पर भी) किसी को भी उस क्षेत्र में दान नहीं लेना चाहिए। गंगाक्षेत्र के गर्भ (अन्तर्वत्त), तीर एवं क्षेत्र में अन्तर प्रकट किया गया है। गर्भ वहाँ तक विस्तृत हो जाता है, जहाँ तक भाद्रपद के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तक धारा पहुँच जाती है और उसके आगे तीर होता है, जो गर्भ से 150 हाथ तक फैला हुआ रहता है तथा प्रत्येक तीर से दो कोस तक क्षेत्र विस्तृत रहता है।

गंगा स्नान विधि

गंगा स्नान के लिए संकल्प करने के विषय में निबन्धों ने कई विकल्प दिये हैं। प्रायश्चित्ततत्त्व[61] में विस्तृत संकल्प दिया हुआ है। गंगावाक्यावली[62] मत्स्य पुराण[63] में जो स्नान विधि दी हुई है वह सभी वर्णों एवं वेद के विभिन्न शाखानुयायियों के लिए समान है। मत्स्यपुराण[64] के वर्णन का निष्कर्ष यों है- बिना स्नान और शरीर की शुद्धि एवं शुद्ध विचारों का अस्तित्व नहीं होता। इसी से मन को शुद्ध करने के लिए सर्वप्रथम स्नान की व्याख्या होती है। कोई किसी कूप या धारा से पात्र में जल लेकर स्नान कर सकता है या बिना इस विधि से भी स्नान कर सकता है। ‘नमो नारायणाय’ मंत्र के साथ बुद्धिमान लोगों को तीर्थस्थल का ध्यान करना चाहिए। हाथ में दर्भ (कुश) लेकर, पवित्र एवं शुद्ध होकर आचमन करना चाहिए। चार वर्गहस्त स्थल को चुनना चाहिए और निम्न मंत्र के साथ गंगा का आवाहन करना चाहिए।

"तुम विष्णु के चरण से उत्पन्न हुई हो, तुम विष्णु से भक्ति रखती हो, तुम विष्णु की पूजा करती हो, अत: जन्म से मरण तक किये गए पापों से मेरी रक्षा करो। स्वर्ग, अन्तरिक्ष एवं पृथ्वी में 35 करोड़ तीर्थ हैं; हे जाह्नवी गंगा, ये सभी देव तुम्हारे हैं। देवों में तुम्हारा नाम नन्दिनी (आनन्द देने वाली) और नलिनी भी है तथा तुम्हारे अन्य नाम भी हैं, यथा- दक्षा, पृथ्वी, विहगा, विश्वकाया, अमृता, शिवा, विद्याधरी, सुप्रशान्ता, शान्तिप्रदायिनी।"[65]

स्नान करते समय इन नामों का उच्चारण करना चाहिए। तब तीन लोकों में बहने वाली गंगा पास में चली आयेगी (भले ही व्यक्ति घर पर ही स्नान कर रहा हो)। व्यक्ति को उस जल को, जिस पर सात बार मंत्र पढ़ा गया हो, तीन या चार या पाँच या सात बार सिर पर छिड़कना चाहिए। नदी के नीचे की मिट्टी का मंत्र पाठ के साथ लेप करना चाहिए। इस प्रकार स्नान एवं आचमन करके व्यक्ति को बाहर आना चाहिए और दो श्वेत एवं पवित्र वस्त्र धारण करने चाहिए।

तर्पण

इसके उपरान्त उसे तीन लोकों के सन्तोष के लिए देवों, ऋषियों एवं पितरों का यथाविधि तर्पण करना चाहिए। तर्पण के दो प्रकार हैं-

  1. प्रधान
  2. गौण

प्रधान विद्याध्ययन समाप्त किये हुए द्विजों द्वारा देवों, ऋषियों एवं पितरों के लिए प्रतिदिन किया जाता है। गौण स्नान के अंग के रूप में किया जाता है।[66] तर्पण स्नान एवं ब्रह्मयज्ञ दोनों का अंग है। तर्पण अपनी वेद शाखा के अनुसार होता है। दूसरा नियम यह है कि तर्पण तिलयुक्त जल से किसी तीर्थस्थल, गया में, पितृपक्ष (आश्विन के कृष्णपक्ष) में किया जाता है। विधवा भी किसी तीर्थ में अपने पति या सम्बन्धी के लिए तर्पण कर सकती है। संन्यासी ऐसा नहीं करता। पिता वाला व्यक्ति भी तर्पण नहीं करता। किन्तु विष्णुपुराण के मत से वह तीन अंजिली देवों, तीन ऋषियों को एवं एक प्रजापति (‘देवास्तुप्यन्ताम्’ के रूप में) को देता है। एक अन्य नियम यह है कि-

‘श्राद्धे हवनकाले च पाणिनैकेन दीयते। तर्पणे तूभयं कुर्यादिष एव विधि:स्मृत।।[67]

आब्रह्मस्तम्बपर्यन्त देवर्षिपितृमानवा:। तृप्यन्तु पितर: सर्वे मातृमातामहादय:।। अतीतकुलकोटीनां सप्तद्वीपनिवासिनाम्। आब्रह्मयुभ-नाल्लोकादिदमस्तु तिलोदकम्।। [68]

इसके पश्चात सूर्य को नमस्कार एवं तीन बार प्रदक्षिणा कर तथा किसी ब्राह्मण, सोना एवं गाय का स्पर्श कर स्नानकर्ता को विष्णु मंदिर (या अपने घर, पाठांतर के अनुसार) में जाना चाहिए।

यहाँ यह ज्ञातव्य है कि मत्स्य पुराण[69] के श्लोक, जिनका निष्कर्ष ऊपर दिया गया है, कुछ अन्तरों के साथ पद्म पुराण[70] में भी पाये जाते हैं। प्रायश्चित्ततत्त्व[71] में गंगा स्नान के समय के मंत्र दिये हुए हैं।[72]

आठ वसुओं की माँ

गंगा-यमुना के मध्य का समस्त भूभाग ययाति ने पुरु को दिया था। गंगा आठ वसुओं की माँ हैं। वसुओं ने गंगा से कहा था कि शान्तनु से उनके गर्भ धारण करने के उपरान्त उनके जन्मते ही जल में प्रवाहित कर देना। गंगा ने शान्तनु से उत्पन्न सात वसु जल में प्रवाहित कर दिए। आठवें वसु (भीष्म) को शान्तनु ने बचा लिया। [73]

साहित्यिक उल्लेख

आरती, गंगा नदी, वाराणसी
Aarti, Ganga River, Varanasi

भारत की राष्ट्र-नदी गंगा जल ही नहीं, अपितु भारत और हिन्दी साहित्य की मानवीय चेतना को भी प्रवाहित करती है।[74] ऋग्वेद, महाभारत, रामायण एवं अनेक पुराणों में गंगा को पुण्य सलिला, पाप-नाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी, सरित्श्रेष्ठा एवं महानदी कहा गया है। संस्कृत कवि जगन्नाथ राय ने गंगा की स्तुति में 'श्रीगंगालहरी'[75] नामक काव्य की रचना की है। हिन्दी के आदि महाकाव्य पृथ्वीराज रासो[76] तथा वीसलदेव रास[77] (नरपति नाल्ह) में गंगा का उल्लेख है। आदिकाल का सर्वाधिक लोक विश्रुत ग्रंथ जगनिक रचित आल्हाखण्ड[78] में गंगा, यमुना और सरस्वती का उल्लेख है। कवि ने प्रयागराज की इस त्रिवेणी को पापनाशक बतलाया है। श्रृंगारी कवि विद्यापति,[79] कबीर वाणी और जायसी के पद्मावत में भी गंगा का उल्लेख है, किन्तु सूरदास,[80] और तुलसीदास ने भक्ति भावना से गंगा-माहात्म्य का वर्णन विस्तार से किया है। गोस्वामी तुलसीदास ने कवितावली के उत्तरकाण्ड में ‘श्री गंगा माहात्म्य’ का वर्णन तीन छन्दों में किया है- इन छन्दों में कवि ने गंगा दर्शन, गंगा स्नान, गंगा जल सेवन, गंगा तट पर बसने वालों के महत्त्व को वर्णित किया है।

रीतिकाल में सेनापति और पद्माकर का गंगा वर्णन श्लाघनीय है। पद्माकर ने गंगा की महिमा और कीर्ति का वर्णन करने के लिए गंगालहरी[82] नामक ग्रंथ की रचना की है। सेनापति[83] कवित्त रत्नाकर में गंगा माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि पाप की नाव को नष्ट करने के लिए गंगा की पुण्यधारा तलवार सी सुशोभित है। रसखान, रहीम[84] आदि ने भी गंगा प्रभाव का सुन्दर वर्णन किया है। आधुनिक काल के कवियों में जगन्नाथदास रत्नाकर के ग्रंथ गंगावतरण में कपिल मुनि द्वारा शापित सगर के साठ हज़ार पुत्रों के उद्धार के लिए भगीरथ की 'भगीरथ-तपस्या' से गंगा के भूमि पर अवतरित होने की कथा है। सम्पूर्ण ग्रंथ तेरह सर्गों में विभक्त और रोला छन्द में निबद्ध है। अन्य कवियों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, सुमित्रानन्दन पन्त और श्रीधर पाठक आदि ने भी यत्र-तत्र गंगा का वर्णन किया है।[85] छायावादी कवियों का प्रकृति वर्णन हिन्दी साहित्य में उल्लेखनीय है। सुमित्रानन्दन पन्त ने ‘नौका विहार’[86] में ग्रीष्म कालीन तापस बाला गंगा का जो चित्र उकेरा है, वह अति रमणीय है। उन्होंने गंगा[87] नामक कविता भी लिखी है। गंगा नदी के कई प्रतीकात्मक अर्थों का वर्णन जवाहर लाल नेहरू ने अपनी पुस्तक भारत एक खोज (डिस्कवरी ऑफ इंडिया) में किया है।[88] गंगा की पौराणिक कहानियों को महेन्द्र मित्तल अपनी कृति माँ गंगा में संजोया है।[89]

इन्हें भी देखें: गंगा चालीसा एवं गंगा माता जी की आरती

वीथिका

बाहरी कड़ियाँ

गंगा आरती विडियो


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गंगा को भारत की राष्ट्रीय नदी (एचटीएम) बिहार टुडे। अभिगमन तिथि: नवंबर, 2008
  2. गंगा -भारत की राष्ट्रीय नदी (एचटीएम) वॉयस ऑफ अमेरिका। अभिगमन तिथि: 4 नवंबर, 2008
  3. (अप्रॅल 2003) समकालीन भारत। नई दिल्ली: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद। अभिगमन तिथि: 23 जून, 2009
  4. 4.0 4.1 उत्तरांचल-एक परिचय (एचटीएम) टीडीआईएल। अभिगमन तिथि: 28 अप्रॅल, 2008
  5. भारत की भौतिक संरचना पर्यावरण के विभिन्न घटक। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009
  6. 6.0 6.1 गंगा रिवर (अंग्रेज़ी) (एचटीएम) इण्डिया नेट ज़ोन। अभिगमन तिथि: 14 जून, 2009
  7. सिहं, सविन्द्र (जुलाई 2002) भौतिक भूगोल। गोरखपुर: वसुन्धरा प्रकाशन। अभिगमन तिथि: 3 जून, 2009
  8. सुंदरवन के मुहाने पर (एचटीएम) बीबीसी। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009
  9. भारत के बारे में जानो भारत सरकार। अभिगमन तिथि: 21 जून, 2009
  10. उत्तराखंड की प्रमुख नदियाँ इंडिया वाटर पोर्टल। अभिगमन तिथि: 21 जून, 2009
  11. हमारी नदियों पर मंडराता खतरा (एच.टी.एम.एल) जज्बात। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009
  12. गंगा सुजलामा। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009
  13. प्रशिक्षण एवं प्रसार संबंधी मैनुअल (एचटीएम) मत्स्य विभाग, उत्तर प्रदेश (2007)।
  14. हिल्सा ब्रीडिंग एण्ड हिल्साह हैचेरी (अंग्रेज़ी) सी.आई.एफ.आर.आई.।
  15. राफ्टिंग (एचटीएमएल) उत्तराखंड पोर्टल (2007)। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009।
  16. बैक्टीरियोफेज का स्व-शुद्धिकरण प्रभाव, ऑक्सीजन रिटेन्शन रहस्य: मिस्ट्री फ़ैक्टर गिव्स गैन्जेस ए क्लीन रेप्युटेशन जूलियन क्रैन्डा-2 हॉल्लिक. नेशनल पब्लिक रेडियो।
  17. खतरे में गंगा का अस्तित्व (एएसपीएक्स) पत्रिका। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009
  18. गंगा को प्रदूषण से बचाएंगे 71 घड़ियाल नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009
  19. अब गंगा प्रदूषण मामला राज्य सरकार जिम्मेवार लोकमंच। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009
  20. अब मूर्ति विसर्जन से नहीं होगी गंगा मैली जोश। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009
  21. बोस्टन.कॉम पर देखें- वैश्विक ऊष्मीकरण का उ.प्र. की गंगा पर प्रभाव।
  22. भारत की मुख्य नदियाँ हिन्दी ब्लाग। अभिगमन तिथि: 21 जून, 2009
  23. सिंह, डॉ. राजकुमार (जुलाई) विचार विमर्श। मथुरा: सागर प्रकाशन। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009
  24. श्रीगंगासहस्त्रनामस्तोत्रम भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009
  25. श्रीगंगाजी की आरती वेबदुनया। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009
  26. (ऋग्वेद 10, 75, 5-6)
  27. ऋग्वेद (6|45|31)
  28. अधि बृबु: पणीनां वर्षिष्ठे मूर्धन्नस्थात्। उरु:कक्षो न गाङग्य:।। ऋग्वेद (6|45|31)। अन्तिम पद का अर्थ है ‘गंगा के तटों पर उगी हुई घास या झाड़ी के समान।’
  29. शतपथ ब्राह्मण (13|5|4|11 एवं 13)
  30. ऐतरेय ब्राह्मण (39, 9)
  31. शतपथ ब्राह्मण (13, 5, 4,11 एवं 13)
  32. महाभारत (अनुशासन. 26|26-103)
  33. पुराण (नारदीय, उत्तरार्ध, अध्याय 38-45 एवं 51|1-48; पद्म पुराण 5|60|1-127; अग्नित्र अध्याय 110; मत्स्य पुराण, अध्याय 180-185; पद्म पुराण, आदिखण्ड, अध्याय 33-37)
  34. स्कन्द पुराण (काशीखण्ड, अध्याय 33-37)
  35. प्रिमिटिव कल्चर (द्वितीय संस्करण, पृष्ठ 477)
  36. वन पर्व (अध्याय 85)
  37. वन पर्व (श्लोक 88-97)
  38. अनुशासन पर्व (36|26, 30-31)
  39. (स्रोतसामस्मि जाह्नवी, 10|31)
  40. मनु (8|92)
  41. यमो वैवस्वतो देवो यस्तवैष हृदि स्थित:। तेन चेदविवादस्ते मा गंगा मा कुरून्गम:।। मनु (8|92)।
  42. (पद्म पुराण 6|267|47)
  43. वामपादाम्बुजांगुष्ठनखस्रोतोविनिर्गताम्। विष्णोर्बभर्ति यां भक्त्या शिरसाहनिंशं ध्रुव:।। विष्णु पुराण (2|8|109); कल्पतरु (तीर्थ, पृष्ठ 161) ने ‘शिव:’ पाठान्तर दिया है। ‘नदी सा वैष्णवी प्रोक्ता विष्णुपादसमुदभवा।’ पद्म पुराण (5|25|188)।
  44. तथैवालकनंदा च दक्षिणादेत्य भारतम्। प्रयाति सागरं भित्त्वा सप्तभेदा द्विजोत्तम:।। कूर्म पुराण (1|46|31)।
  45. (महाभारत, वन पर्व, अध्याय 12, 42, 47, 83-88, 90, 93, 95, 99, 107-109 आदि।)
  46. विष्णु पुराण (2|8|120-121)
  47. श्रुताभिलषिता दृष्टा स्पृष्टा पीतावगाहिता। या पावयति भूतानि कीर्तिता च दिने दिने।। गंगा गंगेति यैनमि योजनानां शतेष्वपि। स्थितैरुच्चारितं हन्ति पापं जन्मत्रयार्जितम्।। विष्णु पुराण (2|8|120-121); गंगावाक्यावली (पृष्ठ 110), तीर्थचि. (पृष्ठ 202), गंगाभक्तितरंगिणी (पृष्ठ 9)। दूसरा श्लोक पद्म पुराण (6|21|8 एवं 23|12) एवं ब्रह्माण्ड पुराण (175|82) में कई प्रकार से पढ़ा गया है, यथा- गंगा........यो ब्रूयाद्योजनानां शतैरपि। मुच्यते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति।। पद्य पुराण (1|31|77) में आया है......शतैरपि। नरो न नरकं याति किं तया सदृशं भवेत्।।
  48. दर्शनार्त्स्शनात्पानात् तथा गंगेति कीर्तनात्। स्मरणदेव गंगाया: सद्य: पापै: प्रमुच्यते।। भविष्य पुराण (तीर्थचि. पृष्ठ 198; गंगावाक्यावली पृष्ठ 12 एवं गंगाभक्तितरंगिणी पृष्ठ 9)। प्रथम पाद अनुशासन पर्व (26|64) एवं अग्नि पुराण (110|6) में आया है। गच्छंस्तिष्ठञ् जपन्ध्यायन् भुञ्जञ् जाग्रत स्वपन् वदन्। य: स्मरेत् सततं गंगां सोऽपि मुच्येत बन्धनात्।। स्कन्द पुराण (काशीखण्ड, पूर्वार्ध 27|37) एवं नारदीय पुराण (उत्तर, 39|16-17)।
  49. सर्वत्र सुलभा गंगा त्रिषु स्थानेषु दुर्लभा। गंगाद्वारे प्रयागे च गंगासागरसंगमे।। तत्र स्नात्वा दिवं यान्ति ये मृतास्तेऽपुनर्भवा:।। मत्स्य पुराण (106|54);कूर्म पुराण (1|37|34); गरुड़ पुराण (पूर्वार्ध, 81|1-2); पद्म पुराण (5|60|120)। नारदीय पुराण (40|26-27) में ऐसा पाठान्तर है- ‘सर्वत्र दुर्लभा गंगा त्रिषु स्थानेषु चाधिका। गंगाद्वारे.......संगमे।। एषु स्नाता दिवं.......र्भवा:।।’
  50. (मत्स्य पुराण 107|4)
  51. तिस्र: कोट्योर्धकोटी च तीर्थानां वायुरब्रवीत्। दिवि भुव्यन्तरिक्षे च तत्सर्व जाह्नवी स्मृता।। कूर्म पुराण (1|39|8); पद्म पुराण (1|47|7 एवं 5|60|59); मत्स्य पुराण (102|5, तानि ते सन्ति जाह्नवि)।
  52. किं यज्ञैर्बहुवित्ताढ्यै: किं तपोभि: सुदुष्करै:। स्वर्ग्मोक्षप्रदा गंगा सुखसौभाग्यपूजिता।। पद्म पुराण (5|60|39); किमष्टांगेन योगेन किं तपोभि: किमध्वरै:। वास एव हि गंगायां सर्वतोपि विशिष्यते।। नारदीय पुराण (उत्तर, 38|38); तीर्थचि. (पृष्ठ 194, गंगायां ब्रह्मज्ञानस्य कारणम्); प्रायश्चित्ततत्त्व (पृष्ठ 494)।
  53. पद्म पुराण (सृष्टि. 60|65)
  54. (पद्म पुराण, सृष्टिखण्ड, 60|25-26)।’
  55. मत्स्य पुराण (104|14-15)
  56. काशीखण्ड (27|69)
  57. वराह पुराण (अध्याय 82)
  58. पद्म पुराण(सृष्टि खण्ड, 60|64-65)
  59. नारद पुराण (उत्तर, 43|119-120)
  60. तीराद् गव्यूतिमात्रं तु परित: क्षेत्रमुच्यते। तीरं वसेत्क्षेत्रे तीरे वासो न चेष्यते।। एकयोजनविस्तीर्णा क्षेत्रसीमा तटद्वयात्। नारद पुराण (उत्तर, 43|119-120)। प्रथम को तीर्थचि. (पृष्ठ 266) ने स्कन्द पुराण से उदधृत किया है और व्याख्या की है-‘उभयतटे प्रत्येकं कोशदयं क्षेत्रम्।’ अन्तिम पाद को तीर्थचि. (पृष्ठ 267) एवं गंगावाक्यावली (पृष्ठ 136) ने भविष्य पुराण से उदधृत किया है। ‘गव्यूति’ दूरी या लम्बाई की माप है जो सामान्यत: दो क्रोश (कोस) के बराबर है। लम्बाई के मापों के विषय में कुछ अन्तर है। अमरकोश के अनुसार ‘गव्यूति’ दो क्रोश के बराबर है, यथा- ‘गव्यूति: स्त्री क्रोशयुगम्।’ वायु पुराण (8|105 एवं 101|122-123) एवं ब्रह्माण्ड पुराण (2|7|96-101) के अनुसार 24 अंगुल=एक हस्त, 96 अंगुल=एक धनु (अर्थात् ‘दण्ड’, ‘युग’ या ‘नाली’); 2000 धनु (या दण्ड या युग या नालिका)=गव्यूति एवं 8000 धनु=योजन। मार्कण्डेय पुराण (46|37-40) के अनुसार 4 हस्त=धनु या दण्ड या युग या नालिका; 2000 धनु=क्रोश, 4 क्रोश=गव्यूति (जो योजन के बराबर है)। और देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड 3, अध्याय 5।
  61. प्रायश्चित्ततत्त्व (पृष्ठ 497-498)
  62. अद्यामुके मासि अमुकपक्षे अमुकतिथौ सद्य:पापप्रणाशपूर्वकं सर्वपुण्यप्राप्तिकामोगंगाया स्नानमहं करिष्ये। गंगावाक्यावली (पृष्ठ 141)। और देखिए तीर्थचि. (पृष्ठ 206-207), जहाँ गंगास्नान के पूर्वक लिंक संकल्पों के कई विकल्प दिये हुए हैं।
  63. मत्स्य पुराण (102)
  64. मत्स्यपुराण (अध्याय 102)
  65. स्मृतिचन्द्रिका (1, पृष्ठ 182) ने मत्स्य पुराण (102) के श्लोक (1-8) उद्धृत किये हैं। स्मृतिचन्द्रिका ने वहीं गंगा के 12 विभिन्न नाम दिए हैं। पद्म पुराण (4|81|17-19) में मत्स्य पुराण के नाम पाये जाते हैं। इस अध्याय के आरम्भ में गंगा के सहस्र नामों की ओर संकेत किया जा चुका है।
  66. नित्यं नैमित्तिकं काम्यं त्रिविधं स्नानमुच्यते। तर्पणं तु भवेत्तस्य अंगत्त्वेन प्रकीर्तितम्।। ब्रह्माण्ड पुराण (गंगाभक्ति., 162)
  67. अर्थात एक हाथ (दाहिने) से श्राद्ध में या अग्नि में आहुति दी जाती है, किन्तु तर्पण में दोनों हाथों से जल स्नान करने वाली नदी में डाला जाता है या फिर भूमि पर छोड़ा जाता है। नारदीय पुराण (उत्तर, 57|62-63)’
  68. अर्थात यदि कोई विस्तृत विधि से तर्पण न कर सके तो वह निम्न मंत्रों के साथ (जो वायु पुराण, 110|21-22 में दिये हुए हैं) तिल एवं कुश से मिश्रित जल की तीन अंजलियाँ दे सकता है
  69. मत्स्य पुराण (102|2-31)
  70. पद्म पुराण (पातालखण्ड 81|12-42 एवं सृष्टिखण्ड 20|145-176)
  71. (प्रायश्चित्ततत्त्व पृष्ठ 502)
  72. विष्णुपादाब्जसम्भूते गंगे त्रिपथगामिनि। धर्मव्रतेति विख्याते पापं में हर जाह्नवी।। श्रद्धया भक्तिसम्पन्ने श्रीमातर्देवि जाह्नवि। अमृतेनाम्बुना देवि भागीरथी पुनीह माम्।। स्मृतिचंद्रिका (1|131); प्रायश्चित्ततत्त्व (502); त्वं देव सरितां नाथ त्वं देवि सरितां वरे। उभयो: संगमे स्नात्वा मुञ्चामि दुरितानि वै।। वही। और देखिए पद्म पुराण (सृष्टिखण्ड, 60|60)
  73. (महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 2, 3, 61, 63, 67, 70, 87, 95-10।)
  74. हिन्दी काव्य में गंगा नदी अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 30 जून, 2009
  75. गंगा की उपस्थिति सुजलाम्। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009
  76. इंदो किं अंदोलिया अमी ए चक्कीवं गंगा सिरे। .................एतने चरित्र ते गंग तीरे
  77. कइ रे हिमालइ माहिं गिलउं। कइ तउ झंफघडं गंग-दुवारि।..................बहिन दिवाऊँ राइ की। थारा ब्याह कराबुं गंग नइ पारि
  78. प्रागराज सो तीरथ ध्यावौं। जहँ पर गंग मातु लहराय।। / एक ओर से जमुना आई। दोनों मिलीं भुजा फैलाय।। / सरस्वती नीचे से निकली। तिरबेनी सो तीर्थ कहाय।।
  79. कज्जल रूप तुअ काली कहिअए, उज्जल रूप तुअ बानी। / रविमंडल परचण्डा कहिअए, गंगा कहिअए पानी।।
  80. सुकदेव कह्यो सुनौ नरनाह। गंगा ज्यौं आई जगमाँह।। / कहौं सो कथा सुनौ चितलाइ। सुनै सो भवतरि हरि पुर जाइ।।
  81. देवनदी कहँ जो जन जान किए मनसा कहुँ कोटि उधारे। / देखि चले झगरैं सुरनारि, सुरेस बनाइ विमान सवाँरे।
    पूजा को साजु विरंचि रचैं तुलसी जे महातम जानि तिहारे। / ओक की लोक परी हरि लोक विलोकत गंग तरंग तिहारे।।(कवितावली-उत्तरकाण्ड 145)
    ब्रह्म जो व्यापक वेद कहैं, गमनाहिं गिरा गुन-ग्यान-गुनी को। / जो करता, भरता, हरता, सुर साहेबु, साहेबु दीन दुखी को।
    सोइ भयो द्रव रूप सही, जो है नाथ विरंचि महेस मुनी को। / मानि प्रतीति सदा तुलसी, जगु काहे न सेवत देव धुनी को।।(कवितावली-उत्तरकाण्ड 146)
    बारि तिहारो निहारि मुरारि भएँ परसें पद पापु लहौंगो। / ईस ह्वै सीस धरौं पै डरौं, प्रभु की समताँ बड़े दोष दहौंगो।
    बरु बारहिं बार सरीर धरौं, रघुबीर को ह्वै तव तीर रहौंगो। / भागीरथी बिनवौं कर जोरि, बहोरि न खोरि लगै सो कहौंगो।।
  82. बुन्देली काव्य का ऐतिहासिक संदर्भ टीडीआईएल। अभिगमन तिथि: 23 जून, 2009
  83. पावन अधिक सब तीरथ तैं जाकी धार, जहाँ मरि पापी होत सुरपुर पति है। / देखत ही जाकौ भलो घाट पहचानियत, एक रूप बानी जाके पानी की रहति है।
  84. अच्युत चरण तरंगिणी, शिव सिर मालति माल। हरि न बनायो सुरसरी, कीजौ इंदव भाल।।--रहीम
  85. सिंह, डॉ. राजकुमार (जुलाई) विचार विमर्श। मथुरा: सागर प्रकाशन। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009
  86. नौका-विहार / सुमित्रानंदन पंत कविताकोश। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009
  87. गंगा अनुभूति। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2009
  88. "The Ganga, especially, is the river of India, beloved of her people, round which are interwined her memories, her hopes and fears, her songs of triumph, her victories and her defeats. She has been a symbol of India's age long culture and civilization, ever changing , ever flowing, and yet ever the same Ganga." -जवाहरलाल नेहरू
  89. माँ गंगा भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 30 जून, 2009

संबंधित लेख