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*तार्किकरक्षा में वरदराज ने इस बात का विशृलेषण करने का प्रयास किया है कि द्रव्य-गुणों आदि पदार्थों का ज्ञान मोक्षप्राप्ति का साधन नहीं है, अत: गौतम ने उनका विस्तृत निरूपण नहीं किया।<ref>मोक्षे साक्षादनङ्गत्वादक्षपादैर्न लक्षितम्। ता. र.</ref> | *तार्किकरक्षा में वरदराज ने इस बात का विशृलेषण करने का प्रयास किया है कि द्रव्य-गुणों आदि पदार्थों का ज्ञान मोक्षप्राप्ति का साधन नहीं है, अत: गौतम ने उनका विस्तृत निरूपण नहीं किया।<ref>मोक्षे साक्षादनङ्गत्वादक्षपादैर्न लक्षितम्। ता. र.</ref> | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
12:54, 15 जून 2011 के समय का अवतरण
वरदराज रचित तार्किकरक्षा
- तार्किकरक्षा के रचयिता वरदराज का समय 1050 ई. के आसपास माना जाता है।
- वरदराज ने तार्किकरक्षा पर सार संग्रह नाम की एक स्वोपज्ञटीका भी लिखी।
- तार्किकरक्षा पर विष्णु स्वामी के शिष्य ज्ञानपूर्ण ने लघुदीपिका तथा मल्लिनाथ ने निष्कण्टका नामक टीका लिखी थी।
- माधवाचार्य 14वीं शती द्वारा विरचित सर्वदर्शन संग्रह में भी वरदराज का उल्लेख है।
- वरदराज का वैशिष्टय यह है कि इन्होंने वैशेषिक सूत्र परिगणित पदार्थों का प्रमेय में अन्तर्भाव करके उनका विश्लेषण किया है।
- इस ग्रन्थ में तीन परिच्छेद है-
- पहले में प्रमाण-लक्षण,
- दूसरे में जाति के भेद, और
- तीसरे में निग्रहस्थान और उसके भेदों का निरूपण किया गया हैं
- तार्किकरक्षा में वरदराज ने इस बात का विशृलेषण करने का प्रयास किया है कि द्रव्य-गुणों आदि पदार्थों का ज्ञान मोक्षप्राप्ति का साधन नहीं है, अत: गौतम ने उनका विस्तृत निरूपण नहीं किया।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मोक्षे साक्षादनङ्गत्वादक्षपादैर्न लक्षितम्। ता. र.