"माघ कवि": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{पुनरीक्षण}}
{{पुनरीक्षण}}
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=माघ|लेख का नाम=माघ (बहुविकल्पी)}}
[[संस्कृत]] [[भाषा]] के श्रेष्ठ कवियों में 'माघ' की गणना की जाती है। उनका समय लगभग 675 ई. निर्धारित किया गया है। उनकी सुप्रसिद्ध रचना ‘[[शिशुपालवध]]’ नामक [[महाकाव्य]] है। इसकी कथा भी [[महाभारत]] से ली गई है। इस ग्रन्थ में [[युधिष्ठिर]] के [[राजसूय यज्ञ]] के अवसर पर चेदि नरेश [[शिशुपाल]] की [[कृष्ण]] द्वारा वध करने की कथा का काव्यात्मक चित्रण किया गया है। माघ [[वैष्णव]] मतानुयायी थे। इनकी इच्छा अपने वैष्णव काव्य के माध्यम से [[शैव]] मतावलम्बी [[भारवि]] से आगे बढ़ जाने की थी। इसके निमित्त इन्होंने काफ़ी प्रयत्न भी किये। उन्होंने अपने ग्रन्थ की रचना [[किरातार्जुनीयम्]] की पद्धति पर की। ‘किरात’ की भाँति 'शिशुपालवध' का आरम्भ भी ‘श्री’ शब्द से होता है।
[[संस्कृत]] [[भाषा]] के श्रेष्ठ कवियों में 'माघ' की गणना की जाती है। उनका समय लगभग 675 ई. निर्धारित किया गया है। उनकी सुप्रसिद्ध रचना ‘[[शिशुपालवध]]’ नामक [[महाकाव्य]] है। इसकी कथा भी [[महाभारत]] से ली गई है। इस ग्रन्थ में [[युधिष्ठिर]] के [[राजसूय यज्ञ]] के अवसर पर चेदि नरेश [[शिशुपाल]] की [[कृष्ण]] द्वारा वध करने की कथा का काव्यात्मक चित्रण किया गया है। माघ [[वैष्णव]] मतानुयायी थे। इनकी इच्छा अपने वैष्णव काव्य के माध्यम से [[शैव]] मतावलम्बी [[भारवि]] से आगे बढ़ जाने की थी। इसके निमित्त इन्होंने काफ़ी प्रयत्न भी किये। उन्होंने अपने ग्रन्थ की रचना [[किरातार्जुनीयम्]] की पद्धति पर की। ‘किरात’ की भाँति 'शिशुपालवध' का आरम्भ भी ‘श्री’ शब्द से होता है।
;काव्य शैली के आचार्य
;काव्य शैली के आचार्य
पंक्ति 9: पंक्ति 10:




{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

06:02, 24 जुलाई 2011 का अवतरण

इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
माघ एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- माघ (बहुविकल्पी)

संस्कृत भाषा के श्रेष्ठ कवियों में 'माघ' की गणना की जाती है। उनका समय लगभग 675 ई. निर्धारित किया गया है। उनकी सुप्रसिद्ध रचना ‘शिशुपालवध’ नामक महाकाव्य है। इसकी कथा भी महाभारत से ली गई है। इस ग्रन्थ में युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के अवसर पर चेदि नरेश शिशुपाल की कृष्ण द्वारा वध करने की कथा का काव्यात्मक चित्रण किया गया है। माघ वैष्णव मतानुयायी थे। इनकी इच्छा अपने वैष्णव काव्य के माध्यम से शैव मतावलम्बी भारवि से आगे बढ़ जाने की थी। इसके निमित्त इन्होंने काफ़ी प्रयत्न भी किये। उन्होंने अपने ग्रन्थ की रचना किरातार्जुनीयम् की पद्धति पर की। ‘किरात’ की भाँति 'शिशुपालवध' का आरम्भ भी ‘श्री’ शब्द से होता है।

काव्य शैली के आचार्य

माघ अलंकृत काव्य शैली के आचार्य हैं तथा उन्होंने अलंकारों से सुसज्जित पदों का प्रयोग कुशलता से किया है। प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन करने में भी वे दक्ष थे। भारतीय आलोचक 'माघ' में कालिदास जैसी उपमा, भारवि जैसा अर्थगौरव तथा दण्डी जैसा पदलालित्य, इन तीनों गुणों को देखतें हैं।[1]

प्रकाण्ड पण्डित

माघ नवीन चमत्कारिक उपमाओं का सृजन करते हैं। माघ व्याकरण, दर्शन, राजनीति, काव्यशास्त्र, संगीत आदि के प्रकाण्ड पण्डित थे तथा उनके ग्रन्थ में ये सभी विशेषताएँ स्थान-स्थान पर देखने को मिलती हैं। उनका व्याकरण सम्बन्धी ज्ञान तो अगाध था। पदों की रचना में उन्होंने नये-नये शब्दों का चयन किया है। उनका काव्य शब्दों का विश्वकोश प्रतीत होता है। माघ के विषय में यह उक्ति प्रसिद्ध है कि शिशुपाल वध का नवाँ सर्ग समाप्त होने पर कोई नया शब्द शेष नहीं बचता है।[2] उनका शब्द विन्यास विद्वतापूर्ण होने के साथ-साथ मधुर एवं सुन्दर भी है। माघ की कविता में ललित विन्यास भी देखने को मिलता है। इस प्रकार माघ बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि थे। कालान्तर के कवियों ने उनकी अलंकृत शैली का अनुकरण किया।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ‘माघे सन्ति जयो गुणा:’
  2. नवसर्गगत माघे नवशब्दो न विद्यते।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख