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'''नागवंश''' प्राचीन काल का एक राजकुल था। इस वंश के कुछ सिक्कों पर बृहस्पति नाग, देवनाग और गणपति नाग नाम लिखे प्राप्त हुए हैं। नागवंश का शासनकाल 150 से 250 विक्रमी संवत के मध्य जान पड़ता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2|लेखक=|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002|संकलन= |संपादन=प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र|पृष्ठ संख्या=437|url=}}</ref> | '''नागवंश''' प्राचीन काल का एक राजकुल था। इस वंश के कुछ सिक्कों पर बृहस्पति नाग, देवनाग और गणपति नाग नाम लिखे प्राप्त हुए हैं। नागवंश का शासनकाल 150 से 250 विक्रमी संवत के मध्य जान पड़ता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2|लेखक=|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002|संकलन= |संपादन=प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र|पृष्ठ संख्या=437|url=}}</ref> | ||
====प्रामाणिकता==== | ====प्रामाणिकता==== | ||
प्राचीन काल में नागवंशियों का राज्य [[भारत]] के कई स्थानों में तथा [[सिंहली|सिंहल]] में भी था। [[पुराण|पुराणों]] में स्पष्ट लिखा है कि सात नागवंशी राजा [[मथुरा]] भोग करेंगे, उसके पीछे [[गुप्त]] राजाओं का राज्य होगा। नौ नाग राजाओं के जो पुराने सिक्के मिले हैं, उन पर 'बृहस्पति नाग', 'देवनाग', 'गणपति नाग' इत्यादि नाम मिलते हैं। ये नागगण [[विक्रम संवत]] 150 और 250 के बीच राज्य करते थे। इन नव नागों की राजधानी कहाँ थी, इसका ठीक पता नहीं है, पर अधिकांश विद्वानों का मत यही है कि उनकी राजधानी '[[नरवर]]' थी। [[मथुरा]] और [[भरतपुर]] से लेकर [[ग्वालियर]] और [[उज्जैन]] तक का भू-भाग नागवंशियों के अधिकार में था। | प्राचीन काल में नागवंशियों का राज्य [[भारत]] के कई स्थानों में तथा [[सिंहली|सिंहल]] में भी था। [[पुराण|पुराणों]] में स्पष्ट लिखा है कि सात नागवंशी राजा [[मथुरा]] भोग करेंगे, उसके पीछे [[गुप्त]] राजाओं का राज्य होगा। नौ नाग राजाओं के जो पुराने सिक्के मिले हैं, उन पर 'बृहस्पति नाग', 'देवनाग', 'गणपति नाग' इत्यादि नाम मिलते हैं। ये नागगण [[विक्रम संवत]] 150 और 250 के बीच राज्य करते थे। इन नव नागों की राजधानी कहाँ थी, इसका ठीक पता नहीं है, पर अधिकांश विद्वानों का मत यही है कि उनकी राजधानी '[[नरवर]]' थी। [[मथुरा]] और [[भरतपुर]] से लेकर [[ग्वालियर]] और [[उज्जैन]] तक का भू-भाग नागवंशियों के अधिकार में था।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://www.definition-of.net/%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6 |title=देखने की परिभाषा नागवंश|accessmonthday=15 फ़रवरी|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
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12:10, 15 फ़रवरी 2012 का अवतरण
नागवंश प्राचीन काल का एक राजकुल था। इस वंश के कुछ सिक्कों पर बृहस्पति नाग, देवनाग और गणपति नाग नाम लिखे प्राप्त हुए हैं। नागवंश का शासनकाल 150 से 250 विक्रमी संवत के मध्य जान पड़ता है।[1]
प्रामाणिकता
प्राचीन काल में नागवंशियों का राज्य भारत के कई स्थानों में तथा सिंहल में भी था। पुराणों में स्पष्ट लिखा है कि सात नागवंशी राजा मथुरा भोग करेंगे, उसके पीछे गुप्त राजाओं का राज्य होगा। नौ नाग राजाओं के जो पुराने सिक्के मिले हैं, उन पर 'बृहस्पति नाग', 'देवनाग', 'गणपति नाग' इत्यादि नाम मिलते हैं। ये नागगण विक्रम संवत 150 और 250 के बीच राज्य करते थे। इन नव नागों की राजधानी कहाँ थी, इसका ठीक पता नहीं है, पर अधिकांश विद्वानों का मत यही है कि उनकी राजधानी 'नरवर' थी। मथुरा और भरतपुर से लेकर ग्वालियर और उज्जैन तक का भू-भाग नागवंशियों के अधिकार में था।[2]
अन्य तथ्य
इतिहास में यह बात प्रसिद्ध है कि महाप्रतापी गुप्तवंशी राजाओं ने शक या नागवंशियों को परास्त किया था। प्रयाग के क़िले के भीतर जो स्तंभलेख है, उसमें स्पष्ट लिखा है कि महाराज समुद्रगुप्त ने गणपति नाग को पराजित किया था। इस गणपति नाग के सिक्के बहुत मिलते हैं। महाभारत में भी कई स्थानों पर नागों का उल्लेख है। पांडवों ने नागों के हाथ से मगध राज्य छीना था। खांडव वन जलाते समय भी बहुत से नाग नष्ट हुए थे। जनमेजय के सर्प-यज्ञ का भी यही अभिप्राय मालूम होता है कि पुरुवंशी आर्य राजाओं से नागवंशी राजाओं का विरोध था। इस बात का समर्थन सिकंदर के समय के प्राप्त वृत्त से होता है। जिस समय सिकंदर भारत में आया, तब उससे सबसे पहले तक्षशिला का नागवंशी राजा ही मिला था। उस राजा ने सिकंदर का कई दिनों तक तक्षशिला में आतिथ्य किया और अपने शत्रु पौरव राजा के विरुद्ध चढ़ाई करने में सहायता पहुँचाई। सिकंदर के साथियों ने तक्षशिला में राजा के यहाँ भारी-भारी साँप पले देखे थे, जिनकी नित्य पूजा होती थी। यह शक या नाग जाति हिमालय के उस पार की थी। अब तक तिब्बती भी अपनी भाषा को 'नागभाषा' कहते हैं।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 437 |
- ↑ 2.0 2.1 देखने की परिभाषा नागवंश (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 फ़रवरी, 2012।
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