"भर्तृहरि का मन्दिर": अवतरणों में अंतर

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*[[राजस्थान]] के [[अलवर]] मे [[भर्तृहरि]] का मन्दिर है जिसे [[भारतीय पुरातत्व विभाग]] ने संरक्षित स्मारक घोषित किया है, इसे भर्तृहरि धाम भी कहा जाता है।  
[[राजस्थान]] के [[अलवर]] मे [[भर्तृहरि (राजा)|भर्तृहरि]] का मन्दिर है जिसे [[भारतीय पुरातत्व विभाग]] ने संरक्षित स्मारक घोषित किया है, इसे भर्तृहरि धाम भी कहा जाता है। उनकी समाधि अलवर राज्य के एक सघन वन में विद्यमान है। उसके सातवें दरवाजे पर एक अखण्ड [[दीपक]] जलता रहता है। उसे भर्तृहरि की ज्योति स्वीकार किया जाता है।   
*उनकी समाधि अलवर राज्य के एक सघन वन में विद्यमान है। उसके सातवें दरवाजे पर एक अखण्ड दीपक जलता रहता है। उसे भर्तृहरि की ज्योति स्वीकार किया जाता है।   
*यह अलवर शहर से 32 किमी दूर जयपुर अलवर मार्ग पर स्थित है ।  
*यह अलवर शहर से 32 किमी दूर जयपुर अलवर मार्ग पर स्थित है ।  
*राजा भर्तृहरि अपने भाई [[विक्रमादित्य]] को स्थापित कर अमर हो गए जिनके नाम पर विक्रम संवत की स्थापना हुई, जिसका शुभारंभ आज भी चैत्रमास के नवरात्र से आरंभ होता है।  
*राजा भर्तृहरि अपने भाई [[विक्रमादित्य]] को स्थापित कर अमर हो गए जिनके नाम पर [[विक्रम संवत]] की स्थापना हुई, जिसका शुभारंभ आज भी चैत्रमास के [[नवरात्र]] से आरंभ होता है।  
*यहाँ भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को मेला लगता है ।  
*यहाँ [[भाद्रपद]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[सप्तमी]] और [[अष्टमी]] को मेला लगता है ।  
*नाथपंथ की अलख जगाने वाले कनफडे नाथ साधुओं के लिए इस तीर्थ की विशेष मान्यता है।
*नाथपंथ की अलख जगाने वाले कनफडे नाथ साधुओं के लिए इस तीर्थ की विशेष मान्यता है।
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13:14, 28 फ़रवरी 2013 का अवतरण

राजस्थान के अलवर मे भर्तृहरि का मन्दिर
भर्तृहरि गुफा
भर्तृहरि समाधि

राजस्थान के अलवर मे भर्तृहरि का मन्दिर है जिसे भारतीय पुरातत्व विभाग ने संरक्षित स्मारक घोषित किया है, इसे भर्तृहरि धाम भी कहा जाता है। उनकी समाधि अलवर राज्य के एक सघन वन में विद्यमान है। उसके सातवें दरवाजे पर एक अखण्ड दीपक जलता रहता है। उसे भर्तृहरि की ज्योति स्वीकार किया जाता है।

  • यह अलवर शहर से 32 किमी दूर जयपुर अलवर मार्ग पर स्थित है ।
  • राजा भर्तृहरि अपने भाई विक्रमादित्य को स्थापित कर अमर हो गए जिनके नाम पर विक्रम संवत की स्थापना हुई, जिसका शुभारंभ आज भी चैत्रमास के नवरात्र से आरंभ होता है।
  • यहाँ भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को मेला लगता है ।
  • नाथपंथ की अलख जगाने वाले कनफडे नाथ साधुओं के लिए इस तीर्थ की विशेष मान्यता है।

इन्हें भी देखें: वेताल पच्चीसी एवं आदिगुरू गोरखनाथ की धूनी


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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