"भोजेश्वर मंदिर": अवतरणों में अंतर

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;भोजपुर शिव मंदिर/ भोजेश्वर मंदिर (Bhojpur Shiv Temple/ Bhojeshwar temple)
'''भोजेश्वर मंदिर''' अथवा '''भोजपुर शिव मंदिर''' [[मध्य प्रदेश]] के [[विदिशा]] से कुछ दूरी पर [[रायसेन ज़िला|रायसेन ज़िले]] में वेत्रवती नदी के किनारे स्थित है। प्राचीन काल के इस मंदिर को यदि 'उत्तर भारत का सोमनाथ' भी कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। भोजपुर गाँव में पहाड़ी पर यह विशाल शिव मंदिर स्थापित है। भोजपुर मंदिर तथा उसके [[शिवलिंग]] की स्थापना [[धार]] के प्रसिद्ध [[परमार वंश|परमार]] [[राजा भोज]] द्वारा की गई थी। अत: राजा भोज के नाम पर ही इस स्थान को [[भोजपुर मध्य प्रदेश|भोजपुर]] और मंदिर को 'भोजपुर मंदिर' या 'भोजेश्वर मंदिर' कहा गया। मन्दिर की विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसका चबूतरा 35 मीटर लम्बा है।
भोजपुर का शिव मंदिर जिसे भोजेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। यह मध्य प्रदेश के विदिशा से कुछ दूरी पर रायसेन जिले में वेत्रवती नदी के किनारे स्थित है। प्राचीन काल के इस मंदिर को उत्तर भारत का सोमनाथ भी कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. भोजपुर गाँव में पहाड़ी पर यह विशाल शिव मंदिर स्थापित है। भोजपुर नगर तथा उसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज द्वारा सम्पन्न हो पाई अत: राजा के नाम पर ही इस स्थान को भोजपुर और मंदिर को इसे भोजपुर मंदिर या भोजेश्वर मंदिर कहते हैं।
==प्रसिद्धि==
भोजपुर के शिव मंदिर की प्रसिद्धि यहाँ स्थापित शिवलिंग की वजह से और भी अधिक है। पुरातत्व विभाग द्वारा इस मंदिर को विश्व धरोहर में शामिल कराने के प्रयास जारी हैं। [[कला]] और [[संस्कृति]] के दृष्टि से यहाँ की धरती प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रही है। स्थापत्य कला में भी भोजपुर नामक स्थान पर भोजेश्‍वर के नाम से विख्यात शिव मंदिर काफ़ी महत्वपूर्ण रहा है, जिस कारण इसे "पूर्व का सोमनाथ" कहा गया।
====इतिहास====
[[मध्य काल]] के आरंभ में महान राजा भोज ने 1010-1053 ई. में भोजपुर की स्थापना की तथा यहाँ पर भगवान [[शिव]] का एक भव्य मंदिर भी बनवाया। इस नगर को प्रसिद्धि देने में भोजपुर के 'भोजेश्वर शिव मंदिर' का भी प्रमुख योगदान रहा है। यह मंदिर निर्माण कला का अदभुत उदाहरण है। मंदिर वर्गाकार है, जिसका बाह्य विस्तार बहुत बडा़ है। मंदिर चार स्तंभों के सहारे पर खड़ा है। देखने पर इसका आकार [[हाथी]] की सूंड के समान लगता है। यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है। इसका निचला हिस्सा अष्टभुजाकार है, जिसमें फलक बने हुए हैं। शिव मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों पार्श्वों में दो सुंदर प्रतिमाएँ स्थापित हैं, जो सभी को आकृष्ट करती हैं।
==मंदिर का शिवलिंग==
भोजेश्वर शिव मंदिर में स्थापित [[शिवलिंग]] की ऊँचाई प्रभावित करने वाली है। अधिक ऊँचाई वाला यह शिवलिंग स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। शिवलिंग को वर्गाकार एवं विस्तृत फलक वाले चबूतरे पर पाषाण खंडों पर स्थापित किया गया है। मंदिर का शिखर अपूर्ण है, जो कभी भी पूरा नहीं बन पाया। इसको पूरा करने के लिए प्रयास अवशेष रूप में आज भी मौजूद हैं। भोजेश्‍वर मंदिर के पास ही [[जैन]] मंदिर भी हैं, जिसमें [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] की प्रतिमाएँ देखी जा सकती हैं। इतिहासकारों के अनुसार इसके निर्माण की अवधि भी भोजेश्‍वर मंदिर के समय की बताई जाती है।
==स्थापत्य==
[[चित्र:shiva-linga-at-bhojpur.jpg|thumb|200px|शिवलिंग]]
मंदिर का निर्माण रूप एवं शैली बहुत ही सुंदर एवं आकर्षक है। विस्तृत चबूतरे पर बना यह मंदिर कई भागों में विभाजित है। मंदिर को देखने पर भारतीय मंदिर की वास्तुकला के बारे में बहुत बातें ज्ञात होती हैं। जैसे इस [[हिन्दू]] मंदिर के गर्भगृह के ऊपर बना अधुरा गुम्बदाकार छत [[भारत]] में ही गुम्बद निर्माण के प्रचलन को दर्शाता है। कुछ इतिहासकार इसे भारत में सबसे पहले गुम्बदीय छत वाली इमारत भी कहते हैं। कुछ किवदंतियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण [[पांडव|पांडवों]] द्वारा [[कुंती|माता कुंती]] की [[पूजा]] के लिए किया गया था तथा इस शिवलिंग को एक रात्रि में निर्मित किया गया था। इस विश्व प्रसिद्घ शिवलिंग की ऊँचाई इक्कीस फिट से भी अधिक है। एक ही पत्थर से निर्मित इतनी बडी़ शिवलिंग अन्य कहीं देखने को नहीं मिलती।
==महत्व==
'भोजपुर शिव मंदिर' या 'भोजेश्वर मंदिर' [[मध्य प्रदेश]] के शिव मंदिरों में से मुख्य मंदिर है। इस मंदिर का विशाल एवं भव्य रूप देखकर हर कोई इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता। मंदिर के पास पश्चिम में एक बहुत बडी़ [[झील]] भी हुआ करती थी, जो आज केवल [[अवशेष]] रूप में ही मौजूद है। ऐसा कहा जाता है कि इस झील को [[हुशंगशाह]] ने नष्ट करवा दिया था। एक अन्य किंवदंती के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस झील के समाप्त हो जाने के कारण [[मालवा]] की जलवायु में भी परिवर्तन हो गया था। इस प्रसिद्घ स्थल पर [[वर्ष]] में दो बार वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है, जो '[[मकर संक्रांति]]' व '[[महाशिवरात्रि|महाशिवरात्रि पर्व]]' के समय होता है। इस धार्मिक उत्सव में भाग लेने के लिए दूर दूर से लोग यहाँ पहुँचते हैं।


भोजपुर के शिव मंदिर में का महत्व यहां स्थापित शिव लिंग की वजह से और भी ज्यादा है। पुरातत्व विभाग द्वारा इस मंदिर को विश्व धरोहर में शामिल कराने के प्रयास जारी हैं। कला और संस्कृति के दृष्टि से यहां की धरती प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रही है, स्थापत्य कला में भी भोजपुर नामक स्थान पर भोजेश्‍वर के नाम से विख्यात शिव मंदिर काफी महत्वपूर्ण रहा है जिस कारण इसे पूर्व का सोमनाथ कहा गया है।
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;भोजपुर शिव मंदिर इतिहास
मध्यकाल के आरंभ में महान राजा भोज ने ‘1010-53’ में भोजपुर की स्थापना की तथा यहां पर भगवान शिव का एक भव्य मंदिर भी बनवाया। इस नगर को प्रसिद्धि देने में भोजपुर के भोजेश्‍वर शिव मंदिर का भी प्रमुख योगदान रहा है। यह मंदिर निर्माण कला का अदभुत उदाहरण है, यह मंदिर वर्गाकार है जिसका बाह्य विस्तार बहुत बडा़ है, मंदिर चार स्तंभों के सहारे पर खड़ा है, देखने पर इसका आकार सूंड के समान लगता है। यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है इसका निचला हिस्सा अष्टभुजाकार है, जिसमें फलक बने हुए हैं शिव मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों पार्श्‍वों में दो सुंदर प्रतिमाएँ स्थापित हैं जो सभी को आकृष्ट करती हैं।
 
मंदिर में स्थापित शिवलिंग की ऊँचाई प्रभावित करने वाली है ऊँचाई वाला यह शिवलिंग स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है, शिवलिंग को वर्गाकार एवं विस्तृत फलक वाले चबूतरे पर पाषाण खंडों पर स्थापित किया गया है। मंदिर का शिखर अपूर्ण है जो कभी भी पूरा नहीं बन पाया। इसको पूरा करने के लिए प्रयास अवशेष रूप में आज भी मौजूद हैं। भोजेश्‍वर मंदिर के पास ही जैन मंदिर भी है जिसमें तीर्थकरों की प्रतिमाएँ देखी जा सकती हैं। इतिहासकारों के अनुसार इसके निर्माण की अवधि भी भोजेश्‍वर मंदिर के समय की बताई जाती है।
 
;भोजपुर शिव मंदिर स्थापत्य
[[चित्र:shiva-linga-at-bhojpur.jpg|thumb|250px|शिवलिंग]]
मंदिर का निर्माण रूप एवं शैली बहुत ही सुंदर एवं आकर्षक है। विस्तृत चबूतरे पर बना यह मंदिर कई भागों में विभाजित है, मंदिर को देखने पर भारतीय मंदिर की वास्तुकला के बारे में बहुत बातें ज्ञात होती हैं। जैसे इस हिंदू मंदिर के गर्भगृह के ऊपर बना अधुरा गुम्बदाकार छत भारत में ही गुम्बद निर्माण के प्रचलन को दर्शाता है।
 
कुछ इतिहास कार इसे भारत में सबसे पहले गुम्बदीय छत वाली इमारत भी कहते हैं। कुछ किवदंतीयों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा माता कुंती की पूजा के लिए किया गया था तथा इस शिवलिंग को एक रात्रि में निर्मित किया गया था इस विश्व प्रसिद्घ शिवलिंग की ऊंचाई इक्कीस फिट से ज्यादा की है एक ही पत्थर से निर्मित इतनी बडी़ शिव लिंग अन्य कहीं देखने को नहीं मिलती।
 
;भोजपुर शिव मंदिर महत्व 
भोजपुर मंदिर या भोजेश्‍वर मंदिर मध्यप्रदेश के शिव मंदिरों में से एक मुख्य मंदिर है इस मंदिर का विशाल एवं भव्य रूप देखकर हर कोई इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता, इस मंदिर के पास पश्चिम में एक बहुत बडी़ झील हुआ करती थी जो आज केवल अवशेष रूप में ही मौजूद है, कहा जाता है कि इस झील को होशंगशाह ने नष्ट कर दिया था. एक किंवदंती के अनुसार कहा जाता है कि इस झील के समाप्त हो जाने के कारण मालवा की  जलवायु में भी परिवर्तन हो गया था।
 
गाँव कि पहाड़ी पर स्थित यह एक अनुठा शिव मंदिर है जिसमें स्थापित शिवलिंग को मंदिरों के शिवलिंगों में से सबसे बडा़ माना जाता है। इस प्रसिद्घ स्थल में वर्ष में दो बार वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है जो मकर संक्रांति व महाशिवरात्रि पर्व के समय होता है। इस धार्मिक उत्सव में भाग लेने के लिए दूर दूर से लोग यहां पहुँचते हैं।
 
 
 
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
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==संबंधित लेख==
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14:05, 11 मई 2013 का अवतरण

भोजपुर शिव मंदिर/ भोजेश्वर मंदिर

भोजेश्वर मंदिर अथवा भोजपुर शिव मंदिर मध्य प्रदेश के विदिशा से कुछ दूरी पर रायसेन ज़िले में वेत्रवती नदी के किनारे स्थित है। प्राचीन काल के इस मंदिर को यदि 'उत्तर भारत का सोमनाथ' भी कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। भोजपुर गाँव में पहाड़ी पर यह विशाल शिव मंदिर स्थापित है। भोजपुर मंदिर तथा उसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज द्वारा की गई थी। अत: राजा भोज के नाम पर ही इस स्थान को भोजपुर और मंदिर को 'भोजपुर मंदिर' या 'भोजेश्वर मंदिर' कहा गया। मन्दिर की विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसका चबूतरा 35 मीटर लम्बा है।

प्रसिद्धि

भोजपुर के शिव मंदिर की प्रसिद्धि यहाँ स्थापित शिवलिंग की वजह से और भी अधिक है। पुरातत्व विभाग द्वारा इस मंदिर को विश्व धरोहर में शामिल कराने के प्रयास जारी हैं। कला और संस्कृति के दृष्टि से यहाँ की धरती प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रही है। स्थापत्य कला में भी भोजपुर नामक स्थान पर भोजेश्‍वर के नाम से विख्यात शिव मंदिर काफ़ी महत्वपूर्ण रहा है, जिस कारण इसे "पूर्व का सोमनाथ" कहा गया।

इतिहास

मध्य काल के आरंभ में महान राजा भोज ने 1010-1053 ई. में भोजपुर की स्थापना की तथा यहाँ पर भगवान शिव का एक भव्य मंदिर भी बनवाया। इस नगर को प्रसिद्धि देने में भोजपुर के 'भोजेश्वर शिव मंदिर' का भी प्रमुख योगदान रहा है। यह मंदिर निर्माण कला का अदभुत उदाहरण है। मंदिर वर्गाकार है, जिसका बाह्य विस्तार बहुत बडा़ है। मंदिर चार स्तंभों के सहारे पर खड़ा है। देखने पर इसका आकार हाथी की सूंड के समान लगता है। यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है। इसका निचला हिस्सा अष्टभुजाकार है, जिसमें फलक बने हुए हैं। शिव मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों पार्श्वों में दो सुंदर प्रतिमाएँ स्थापित हैं, जो सभी को आकृष्ट करती हैं।

मंदिर का शिवलिंग

भोजेश्वर शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग की ऊँचाई प्रभावित करने वाली है। अधिक ऊँचाई वाला यह शिवलिंग स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। शिवलिंग को वर्गाकार एवं विस्तृत फलक वाले चबूतरे पर पाषाण खंडों पर स्थापित किया गया है। मंदिर का शिखर अपूर्ण है, जो कभी भी पूरा नहीं बन पाया। इसको पूरा करने के लिए प्रयास अवशेष रूप में आज भी मौजूद हैं। भोजेश्‍वर मंदिर के पास ही जैन मंदिर भी हैं, जिसमें तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ देखी जा सकती हैं। इतिहासकारों के अनुसार इसके निर्माण की अवधि भी भोजेश्‍वर मंदिर के समय की बताई जाती है।

स्थापत्य

शिवलिंग

मंदिर का निर्माण रूप एवं शैली बहुत ही सुंदर एवं आकर्षक है। विस्तृत चबूतरे पर बना यह मंदिर कई भागों में विभाजित है। मंदिर को देखने पर भारतीय मंदिर की वास्तुकला के बारे में बहुत बातें ज्ञात होती हैं। जैसे इस हिन्दू मंदिर के गर्भगृह के ऊपर बना अधुरा गुम्बदाकार छत भारत में ही गुम्बद निर्माण के प्रचलन को दर्शाता है। कुछ इतिहासकार इसे भारत में सबसे पहले गुम्बदीय छत वाली इमारत भी कहते हैं। कुछ किवदंतियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा माता कुंती की पूजा के लिए किया गया था तथा इस शिवलिंग को एक रात्रि में निर्मित किया गया था। इस विश्व प्रसिद्घ शिवलिंग की ऊँचाई इक्कीस फिट से भी अधिक है। एक ही पत्थर से निर्मित इतनी बडी़ शिवलिंग अन्य कहीं देखने को नहीं मिलती।

महत्व

'भोजपुर शिव मंदिर' या 'भोजेश्वर मंदिर' मध्य प्रदेश के शिव मंदिरों में से मुख्य मंदिर है। इस मंदिर का विशाल एवं भव्य रूप देखकर हर कोई इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता। मंदिर के पास पश्चिम में एक बहुत बडी़ झील भी हुआ करती थी, जो आज केवल अवशेष रूप में ही मौजूद है। ऐसा कहा जाता है कि इस झील को हुशंगशाह ने नष्ट करवा दिया था। एक अन्य किंवदंती के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस झील के समाप्त हो जाने के कारण मालवा की जलवायु में भी परिवर्तन हो गया था। इस प्रसिद्घ स्थल पर वर्ष में दो बार वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है, जो 'मकर संक्रांति' व 'महाशिवरात्रि पर्व' के समय होता है। इस धार्मिक उत्सव में भाग लेने के लिए दूर दूर से लोग यहाँ पहुँचते हैं।


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