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हिन्दी साहित्य
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विवरण | 'हिन्दी साहित्य' हिन्दी भाषा का रचना संसार है। हिन्दी भारत और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। |
प्रकार | तीन (गद्य, पद्य और चम्पू) |
पहली गद्य रचना | हिंदी की पहली रचना कौन सी है इस विषय में विवाद है लेकिन ज़्यादातर साहित्यकार देवकीनन्दन खत्री द्वारा लिखे गये उपन्यास चंद्रकांता को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं। |
प्रमुख रचनाएँ | पृथ्वीराज रासो, पद्मावत, आल्हाखण्ड, रामचरितमानस, गोदान आदि |
संबंधित लेख | भक्तिकाल, रीतिकाल, आधुनिक काल |
अन्य जानकारी | समकालीन साहित्यकारों में नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, निर्मल वर्मा, भीष्म साहनी, मन्नू भंडारी, नासिरा शर्मा, ज्ञानरंजन, विनोद कुमार शुक्ल, मंगलेश डबराल, वीरेन डंगवाल, उदय प्रकाश आदि अनेक महत्त्वपूर्ण नाम हैं। |
हिन्दी साहित्य हिन्दी भाषा का रचना संसार है। हिन्दी भारत और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। उसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा में तलाशी जा सकती हैं। परंतु हिन्दी साहित्य की जड़ें मध्ययुगीन भारत की ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली और मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य में पाई जाती हैं। हिंदी में गद्य का विकास बहुत बाद में हुआ और इसने अपनी शुरुआत कविता के माध्यम से जो कि ज्यादातर लोकभाषा के साथ प्रयोग कर विकसित की गई। हिंदी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है। गद्य, पद्य और चम्पू। हिंदी की पहली रचना कौन सी है इस विषय में विवाद है लेकिन ज़्यादातर साहित्यकार देवकीनन्दन खत्री द्वारा लिखे गये उपन्यास चंद्रकांता को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं।
इतिहास
बाबर, हुमायूँ और शेरशाह के समय में हिन्दी को राजकीय संरक्षण प्राप्त नहीं हुआ, किन्तु व्यक्तिगत प्रयासों से ‘पद्मावत’ जैसे श्रेष्ठ ग्रन्थ की रचना हुई। मुग़ल सम्राट अकबर ने हिन्दी साहित्य को संरक्षण प्रदान किया। मुग़ल दरबार से सम्बन्धित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि राजा बीरबल, मानसिंह, भगवानदास, नरहरि, हरिनाथ आदि थे। व्यक्तिगत प्रयासों से हिन्दी साहित्य को मज़बूती प्रदान करने वाले कवियों में महत्त्वपूर्ण थे- नन्ददास, विट्ठलदास, परमानन्द दास, कुम्भन दास आदि। तुलसीदास एवं सूरदास मुग़ल काल के दो ऐसे विद्वान थे, जो अपनी कृतियों से हिन्दी साहित्य के इतिहास में अमर हो गये। अर्ब्दुरहमान ख़ानख़ाना और रसखान को भी इनकी हिन्दी की रचनाओं के कारण याद किया जाता है। इन सबके महत्त्वपूर्ण योगदान से ही ‘अकबर के काल को 'हिन्दी साहित्य का स्वर्ण काल’ कहा गया है। अकबर ने बीरबल को ‘कविप्रिय’ एवं नरहरि को ‘महापात्र’ की उपाधि प्रदान की। जहाँगीर का भाई दानियाल हिन्दी में कविता करता था।
शाहजहाँ के समय में सुन्दर कविराय ने ‘सुन्दर शृंगार’, ‘सेनापति ने ‘कवित्त रत्नाकर’, कवीन्द्र आचार्य ने ‘कवीन्द्र कल्पतरु’ की रचना की। इस समय के कुछ अन्य महान कवियों का सम्बन्ध क्षेत्रीय राजाओं से था, जैसे- बिहारी महाराजा जयसिंह से, केशवदास ओरछा से सम्बन्धित थे। केशवदास ने ‘कविप्रिया’, ‘रसिकप्रिया’ एवं ‘अलंकार मंजरी’ जैसी महत्त्वपूर्ण रचनायें की। अकबर के दरबार में प्रसिद्ध ग्रंथकर्ता कश्मीर के मुहम्मद हुसैन को ‘जरी कलम’ की उपाधि दी गई। बंगाल के प्रसिद्ध कवि मुकुन्दराय चक्रवर्ती को प्रोफ़ेसर कॉवेल ने ‘बंगाल का क्रैब’ कहा है। हिन्दी में पहली प्रमुख पुस्तक 12वीं सदी में लाहौर के चंदबरदाई का पृथ्वीराजरासो महाकाव्य है, जिसमें इस्लामी आक्रमण से पहले दिल्ली के अंतिम हिंदू राजा पृथ्वीराज के साहसिक कार्यों का वर्णन किया गया है, यह पुस्तक राजपूतों के दरबार की भाट परंपरा पर आधारित है, फ़ारसी कवि अमीर ख़ुसरो की कविताएँ भी उल्लेखनीय हैं, जिन्होंने अवधी में लिखा। हिन्दी में अधिकतर प्रारंभिक साहित्य की प्रेरणा धर्म पर आधारित है।
आदिकाल
हिन्दी साहित्य के आदिकाल को आलोचक 1400 इसवी से पूर्व का काल मानते हैं जब हिन्दी का उद्भव हो ही रहा था। हिन्दी का विकास दिल्ली, कन्नौज और अजमेर क्षेत्रों में हुआ माना जाता है। पृथ्वीराज चौहान का उस वक़्त दिल्ली में शासन था और चंदबरदाई नामक उसका एक दरबारी कवि हुआ करता था। कन्नौज का अंतिम राठौड़ शासक जयचंद था जो संस्कृत का बहुत बड़ा संरक्षक था।
भक्तिकाल
हिन्दी के महान कवि तुलसीदास राजापुर के ब्राह्मण थे, जिन्होंने जीवन के शुरू में ही संसार त्याग दिया और बनारस (वर्तमान वाराणसी) में भक्त के रूप में दिन व्यतीत किए। उन्होंने अधिकतर लेखन कार्य अवधी भाषा में किया और राम की पूजा को हिंदू धर्म का केंद्र बनाया, उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण रचना रामचरितमानस है, जो संस्कृत रामायण से प्रेरित है। यह हिन्दीभाषी क्षेत्र का पवित्र हिंदू ग्रंथ बन गया है तथा प्रत्येक साल लोकप्रिय रामलीला के रूप में इसका मंचन होता है।
मध्ययुग
मध्ययुग में दार्शनिक एवं भक्तिमार्ग के समर्थक वल्लभ अनुयायियों में नेत्रहीन कवि सूरदास सर्वश्रेष्ठ हैं, जिन्होंने कृष्ण और राधा की स्तुति में अनगिनत भजन रचे। इन्हें सूरसागर में संकलित किया गया है, हालांकि भक्त कवियों में से अनेक सामान्य परिवारों से थे, लेकिन जोधपुर की राजकुमारी मीराबाई अपवाद थीं, जिन्होंने हिन्दी और गुजराती, दोनों में अपने प्रसिद्ध गीत लिखे। पूर्व अवध प्रांत के मुस्लिम कवि जायसी द्वारा रचित धार्मिक महाकाव्य पद्मावत (1540) अत्यंत महत्त्वपूर्ण रचना है। अवधी में रचित यह महाकाव्य संस्कृत काव्य शैली के अनुरूप रचा गया है। इस युग के अन्य रचनाकारों में रहीम, रसखान, केशवदास, नंददास के नाम उल्लेखनीय हैं।
रीतिकाल
भक्तिकाल के बाद रीतिकाल का सूत्रपात हुआ, जिसके रचनाकारों ने समकालीन ऐतिहासिक संवेदनाओं को अभिव्यक्ति दी। भोग-विलास, प्रेम-सौंदर्य और शृंगारिकता से परिपूर्ण इस युग की कविताओं को जिन रचनाकारों ने रूप दिया, उनमें मतिराम, केशव, बिहारी, घनानंद, बोधा आदि का नाम उल्लेखनीय है। प्रेमचंद के साहित्य एवं लघु कहानियों में सामान्य ग्रामीण जीवन का वर्णन है तथा बनारस के भारतेंदु हरिश्चंद्र, जिन्होंने ब्रजभाषा में लिखा।
आधुनिक काल
आधुनिक हिन्दी साहित्य की जड़े कविता एवं नाटक में भारतेंदु हरिश्चंद्र के साहित्य में, आलोचना और अन्य गद्य लेखन में महावीर प्रसाद द्विवेदी तथा कथा साहित्य में प्रेमचंद के साहित्य में हैं, 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध की इस अवधि में मुख्य रूप से संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी से अनुवाद का ज़ोर रहा। राष्ट्रवाद एवं आर्य समाज के सामाजिक सुधार आंदोलन से प्रभावित होकर लंबी वर्णनात्मक कविताएं, जैसे मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद द्वारा नाटक तथा चतुरसेन शास्त्री एवं वृंदावनलाल वर्मा द्वारा ऐतिहासिक उपन्यास रचे गए। इन उपन्यासों की पृष्ठभूमि मुख्यत: मौर्य, गुप्त एवं मुग़लकालीन थी।
सत्याग्रह एवं असहयोग आंदोलन
इस अवधि के बाद महात्मा गांधी के सत्याग्रह एवं असहयोग आंदोलनों का दौर आया, जिसने माखनलाल चतुर्वेदी, मैथिलीशरण गुप्त एवं सुभद्रा कुमारी चौहान जैसे कवियों तथा प्रेमचंद व जैनेंद्र कुमार जैसे उपन्यासकारों को प्रेरित किया। अतंत: गांधीवादी प्रयोग से मोहभंग तथा यूरोपीय साहित्य पर मार्क्सवाद के बढ़ते प्रभाव ने यशपाल, रांगेय राघव और नागार्जुन जैसे लेखकों को प्रभावित किया। 1930 के दशक के सर्जनात्मक कवियों सुमित्रानंदन पंत, प्रसाद, निराला और महादेवी वर्मा ने अंग्रेज़ी एवं बांग्ला कविता की स्वच्छंदतावादी तथा मध्यकालीन हिन्दी कविता की रहस्यवादी परंपरा से प्रेरणा ली। प्रतिक्रियास्वरूप मार्क्सवादी कवि रामविलास शर्मा और नागार्जुन तथा हीरानंद सच्चिदानंद वात्स्यायन अज्ञेय एवं भारत भूषण अग्रवाल जैसे प्रयोगवादी कवि सामने आए। निराला, जिनका विकास रहस्यवादी, स्वच्छंदतावादी से यथार्थवादी एवं प्रयोगवादी कवि के रूप में हुआ। 1950 के दशक के सर्वश्रेष्ठ कवि थे। 1960 के दशक में मुक्तिबोध, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना एवं रघुवीर सहाय जैसे मौलिक कवि हुए।
आधुनिक साहित्य की दिशा
प्रेमचंद एवं जैनेंद्र कुमार के साहित्य का प्रतिनिधित्व करने वाली दो प्रवृत्तियाँ हिन्दी कथा साहित्य को दो भिन्न दिशाओं में ले गईं। जबकि सामाजिक यथार्थवादियों जैसे यशपाल, उपेंद्रनाथ अश्क, अमृतलाल नागर, मोहन राकेश, राजेंद्र यादव, कमलेश्वर, नागार्जुन एवं फणीश्वरनाथ रेणु ने भारतीय समाज के बदलते परिवेश का ईमानदारी से विश्लेषण किया। 1930 एवं 1940 के दशकों के नाटककारों में गोविंद बल्लभ पंत और सेठ गोविंद दास भी थे। उनकी अत्यधिक संस्कृत युक्त भाषा के कारण उनके नाटकों के दर्शक सीमित थे। अन्य साहित्यकारों में नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, निर्मल वर्मा, भीष्म साहनी, मन्नू भंडारी, नासिरा शर्मा, ज्ञानरंजन, विनोद कुमार शुक्ल, मंगलेश डबराल, वीरेन डंगवाल, उदय प्रकाश आदि अनेक महत्त्वपूर्ण नाम हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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