"व्यतिरेक अलंकार": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
('जहाँ कारण बताते हुए उपमेय की श्रेष्ठता उपमान से बता...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
जहाँ कारण | जहाँ उपमान की अपेक्षा अधिक गुण होने के कारण उपमेय का उत्कर्ष हो, वहाँ '[[व्यतिरेक अलंकार]]' होता है। | ||
'व्यतिरेक' का शाब्दिक अर्थ है- 'आधिक्य'। व्यतिरेक में कारण का होना अनिवार्य है। [[रसखान]] के काव्य में व्यतिरेक की योजना कहीं-कहीं ही हुई है, किन्तु जो है, वह आकर्षक है। नायिका अपनी सखी से कह रही है कि- ऐसी कोई स्त्री नहीं है, जो [[कृष्ण]] के सुन्दर रूप को देखकर अपने को संभाल सके। हे सखी, मैंने 'ब्रजचन्द्र' के सलौने रूप को देखते ही लोकलाज को 'तज' दिया है, क्योंकि- | |||
का सरवरि तेहिं देउं मयंकू। चांद कलंकी वह निकलंकू।। | <blockquote><poem>खंजन मील सरोजनि की छबि गंजन नैन लला दिन होनो। | ||
मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूँ? चन्द्रमा में तो कलंक है, जबकि मुख निष्कलंक है। | भौंह कमान सो जोहन को सर बेधन प्राननि नंद को छोनो।</poem></blockquote> | ||
;अन्य उदाहरण- | |||
<blockquote><poem>का सरवरि तेहिं देउं मयंकू। चांद कलंकी वह निकलंकू।। | |||
मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूँ? चन्द्रमा में तो कलंक है, जबकि मुख निष्कलंक है।</poem></blockquote> | |||
10:00, 15 जुलाई 2014 के समय का अवतरण
जहाँ उपमान की अपेक्षा अधिक गुण होने के कारण उपमेय का उत्कर्ष हो, वहाँ 'व्यतिरेक अलंकार' होता है।
'व्यतिरेक' का शाब्दिक अर्थ है- 'आधिक्य'। व्यतिरेक में कारण का होना अनिवार्य है। रसखान के काव्य में व्यतिरेक की योजना कहीं-कहीं ही हुई है, किन्तु जो है, वह आकर्षक है। नायिका अपनी सखी से कह रही है कि- ऐसी कोई स्त्री नहीं है, जो कृष्ण के सुन्दर रूप को देखकर अपने को संभाल सके। हे सखी, मैंने 'ब्रजचन्द्र' के सलौने रूप को देखते ही लोकलाज को 'तज' दिया है, क्योंकि-
खंजन मील सरोजनि की छबि गंजन नैन लला दिन होनो।
भौंह कमान सो जोहन को सर बेधन प्राननि नंद को छोनो।
- अन्य उदाहरण-
का सरवरि तेहिं देउं मयंकू। चांद कलंकी वह निकलंकू।।
मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूँ? चन्द्रमा में तो कलंक है, जबकि मुख निष्कलंक है।
इन्हें भी देखें: अलंकार, रस एवं छन्द
|
|
|
|
|