"बिनती भरत करत कर जोरे -तुलसीदास": अवतरणों में अंतर
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दिनबन्धु दीनता दीनकी कबहुँ परै जनि भोरे॥1॥ | दिनबन्धु दीनता दीनकी कबहुँ परै जनि भोरे॥1॥ | ||
तुम्हसे तुम्हहिं नाथ मोको, मोसे, जन तुम्हहि बहुतेरे। | तुम्हसे तुम्हहिं नाथ मोको, मोसे, जन तुम्हहि बहुतेरे। | ||
इहै जानि पहिचानि प्रीति छमिये अघ औगुन | इहै जानि पहिचानि प्रीति छमिये अघ औगुन मेरे॥2॥ | ||
यों कहि सीय-राम-पाँयन परि लखन लाइ उर लीन्हें। | यों कहि सीय-राम-पाँयन परि लखन लाइ उर लीन्हें। | ||
पुलक सरीर नीर भरि लोचन कहत प्रेम पन कीन्हें॥३॥ | पुलक सरीर नीर भरि लोचन कहत प्रेम पन कीन्हें॥३॥ |
10:03, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण
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बिनती भरत करत कर जोरे। |
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