"हे हरि! कवन जतन भ्रम भागै -तुलसीदास": अवतरणों में अंतर
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कोउ भल कहौ देउ कछु कोउ असि बासना ह्रदयते न जाई॥2॥ | कोउ भल कहौ देउ कछु कोउ असि बासना ह्रदयते न जाई॥2॥ | ||
जेहि निसि सकल जीव सूतहिं तव कृपापात्र जन जागै। | जेहि निसि सकल जीव सूतहिं तव कृपापात्र जन जागै। | ||
निज करनी बिपरीत देखि मोहि, समुझि महाभय | निज करनी बिपरीत देखि मोहि, समुझि महाभय लागै॥3॥ | ||
जद्यपि भग्न मनोरथ बिधिबस सुख इच्छित दुख पावै। | जद्यपि भग्न मनोरथ बिधिबस सुख इच्छित दुख पावै। | ||
चित्रकार कर हीन जथा स्वारथ बिनु चित्र बनावै॥४॥ | चित्रकार कर हीन जथा स्वारथ बिनु चित्र बनावै॥४॥ |
10:11, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण
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हे हरि! कवन जतन भ्रम भागै। |
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