"हे हरि! कवन जतन भ्रम भागै -तुलसीदास": अवतरणों में अंतर
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निज करनी बिपरीत देखि मोहि, समुझि महाभय लागै॥3॥ | निज करनी बिपरीत देखि मोहि, समुझि महाभय लागै॥3॥ | ||
जद्यपि भग्न मनोरथ बिधिबस सुख इच्छित दुख पावै। | जद्यपि भग्न मनोरथ बिधिबस सुख इच्छित दुख पावै। | ||
चित्रकार कर हीन जथा स्वारथ बिनु चित्र | चित्रकार कर हीन जथा स्वारथ बिनु चित्र बनावै॥4॥ | ||
ह्रषीकेस सुनि नाम जाउँ बलि अति भरोस जिय मोरे। | ह्रषीकेस सुनि नाम जाउँ बलि अति भरोस जिय मोरे। | ||
तुलसीदास इन्द्रिय सम्भव दुख, हरे बनहि प्रभु तोरे॥५॥ | तुलसीदास इन्द्रिय सम्भव दुख, हरे बनहि प्रभु तोरे॥५॥ |
10:45, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण
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हे हरि! कवन जतन भ्रम भागै। |
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