"हे हरि! कवन जतन भ्रम भागै -तुलसीदास": अवतरणों में अंतर
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चित्रकार कर हीन जथा स्वारथ बिनु चित्र बनावै॥4॥ | चित्रकार कर हीन जथा स्वारथ बिनु चित्र बनावै॥4॥ | ||
ह्रषीकेस सुनि नाम जाउँ बलि अति भरोस जिय मोरे। | ह्रषीकेस सुनि नाम जाउँ बलि अति भरोस जिय मोरे। | ||
तुलसीदास इन्द्रिय सम्भव दुख, हरे बनहि प्रभु | तुलसीदास इन्द्रिय सम्भव दुख, हरे बनहि प्रभु तोरे॥5॥ | ||
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11:20, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण
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हे हरि! कवन जतन भ्रम भागै। |
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