"यों मन कबहूँ तुमहिं न लाग्यो -तुलसीदास": अवतरणों में अंतर
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त्यों रघुपति-पद-पदुम-परसको तनु पातकी न तरस्यो॥4॥ | त्यों रघुपति-पद-पदुम-परसको तनु पातकी न तरस्यो॥4॥ | ||
ज्यों सब भाँति कुदेव कुठाकर सेये बपु बचन हिये हूँ। | ज्यों सब भाँति कुदेव कुठाकर सेये बपु बचन हिये हूँ। | ||
त्यों न राम, सकृतग्य जे सकुचत सकृत प्रनाम किये | त्यों न राम, सकृतग्य जे सकुचत सकृत प्रनाम किये हूँ॥5॥ | ||
चंचल चरन लोभ लगि लोलु द्वार-द्वार जग बागे। | चंचल चरन लोभ लगि लोलु द्वार-द्वार जग बागे। | ||
राम-सीय-आश्रमनि चलत त्यों भये न स्त्रमित अभागे॥६॥ | राम-सीय-आश्रमनि चलत त्यों भये न स्त्रमित अभागे॥६॥ |
11:21, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण
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यों मन कबहूँ तुमहिं न लाग्यो। |
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