"कुलोत्तुंग तृतीय": अवतरणों में अंतर

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*पहले तो कुलोत्तुंग तृतीय ने [[पांड्य राजवंश|पांड्य]] नरेश जटावर्मन कुलेश्वर को बुरी तरह पराजित किया। बाद में उसने [[होयसल वंश|होयसल]] नरेश वल्लाल द्वितीय की सहायता से अपने राज्य पर अधिकार प्राप्त किया; किंतु उसे पांड्य नरेश की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी।
*पहले तो कुलोत्तुंग तृतीय ने [[पांड्य राजवंश|पांड्य]] नरेश जटावर्मन कुलेश्वर को बुरी तरह पराजित किया। बाद में उसने [[होयसल वंश|होयसल]] नरेश वल्लाल द्वितीय की सहायता से अपने राज्य पर अधिकार प्राप्त किया; किंतु उसे पांड्य नरेश की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी।
*उसकी ख्याति [[कुम्भकोणम]] के निकट त्रिभुवनम में 'कंपहरेश्वर का मंदिर' बनवाने के लिए हैं।
*उसकी ख्याति [[कुम्भकोणम]] के निकट त्रिभुवनम में 'कंपहरेश्वर का मंदिर' बनवाने के लिए हैं।
*कुलोत्तुंग तृतीय के दरबार में रहने वाले कवि [[कंबन]] का काल तमिल साहित्य का स्वर्ण काल माना जाता है। कुलोत्तुंग के ही शासन काल में कंबन ने 'रामावतारम्‌'<ref>तमिल रामायण</ref> की रचना की थी।
*कुलोत्तुंग तृतीय के दरबार में रहने वाले कवि [[कंबन]] का काल [[तमिल साहित्य]] का स्वर्ण काल माना जाता है। कुलोत्तुंग के ही शासन काल में कंबन ने 'रामावतारम्‌'<ref>तमिल रामायण</ref> की रचना की थी।


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12:27, 26 दिसम्बर 2014 का अवतरण

कुलोत्तुंग तृतीय (1205-1218 ई.) चोल राजवंश के शासकों में से एक था। इसके शासनकाल में चोल साम्राज्य के वैभव का अपकर्ष हो रहा था।

  • कुलोत्तुंग तृतीय चोल राज्य के वैभव के अपकर्षकाल का शासक था।[1]
  • पहले तो कुलोत्तुंग तृतीय ने पांड्य नरेश जटावर्मन कुलेश्वर को बुरी तरह पराजित किया। बाद में उसने होयसल नरेश वल्लाल द्वितीय की सहायता से अपने राज्य पर अधिकार प्राप्त किया; किंतु उसे पांड्य नरेश की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी।
  • उसकी ख्याति कुम्भकोणम के निकट त्रिभुवनम में 'कंपहरेश्वर का मंदिर' बनवाने के लिए हैं।
  • कुलोत्तुंग तृतीय के दरबार में रहने वाले कवि कंबन का काल तमिल साहित्य का स्वर्ण काल माना जाता है। कुलोत्तुंग के ही शासन काल में कंबन ने 'रामावतारम्‌'[2] की रचना की थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कुलोत्तुंग तृतीय (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 22 मार्च, 2014।
  2. तमिल रामायण

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