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'''लीला सेठ''' ([[अंग्रेज़ी]]: '''Leila Seth''', जन्म- [[20 अक्टूबर]] [[1930]], [[लखनऊ]]) [[भारत]] में [[उच्च न्यायालय]] की मुख्य न्यायाधीश बनने वाली प्रथम महिला हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। यह देश की प्रथम ऐसी महिला भी हैं, जिन्होंने लंदन बार परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था। यह जांच आयोग की सदस्य भी रह चुकीं हैं। लीला जी [[2000]] तक विधि आयोग में रहीं और हिंदू सक्सेशन एक्ट में संशोधन का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। | '''लीला सेठ''' ([[अंग्रेज़ी]]: '''Leila Seth''', जन्म- [[20 अक्टूबर]] [[1930]], [[लखनऊ]]) [[भारत]] में [[उच्च न्यायालय]] की मुख्य न्यायाधीश बनने वाली प्रथम महिला हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। यह देश की प्रथम ऐसी महिला भी हैं, जिन्होंने लंदन बार परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था। यह जांच आयोग की सदस्य भी रह चुकीं हैं। लीला जी [[2000]] तक विधि आयोग में रहीं और हिंदू सक्सेशन एक्ट में संशोधन का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। | ||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
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महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ-साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही में अपनी पुस्तक 'ओवन बैलेंस' के हिंदी अनुवाद घर और आदालत मैं उन्होंने जिंदगी की कई खट्टी-मीठी यादों और घर परिवार से जुड़े कई कड़वे अनुभवों को उजागर किया है। लीला ने एक जगह लिखा है "मैंने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है" झगड़ा करके कभी मत सोना, रात के अंधेरे में यह और बढ़ता है, इसलिये हम हमेशा विवाद खत्म कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमों और नौकरशाही के बारे में अपना कटु अनुभव इन शब्दों में व्यक्त किया है" एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक न्यायाधीश होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व भारी भरकम कंपनी से लड़ने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो क़ानूनों की पेचीदगियों में फँसे उन आम लोगों को कितनी परेशानियों और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सत्ता तक पहुँच नहीं है या उनकी सुनने वाला कोई नहीं है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लड़ने के लिये पैसा और समय नहीं है या उन्हें यह जानकारी नहीं है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाज़ा खटखटाएं। | महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ-साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही में अपनी पुस्तक 'ओवन बैलेंस' के हिंदी अनुवाद घर और आदालत मैं उन्होंने जिंदगी की कई खट्टी-मीठी यादों और घर परिवार से जुड़े कई कड़वे अनुभवों को उजागर किया है। लीला ने एक जगह लिखा है "मैंने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है" झगड़ा करके कभी मत सोना, रात के अंधेरे में यह और बढ़ता है, इसलिये हम हमेशा विवाद खत्म कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमों और नौकरशाही के बारे में अपना कटु अनुभव इन शब्दों में व्यक्त किया है" एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक न्यायाधीश होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व भारी भरकम कंपनी से लड़ने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो क़ानूनों की पेचीदगियों में फँसे उन आम लोगों को कितनी परेशानियों और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सत्ता तक पहुँच नहीं है या उनकी सुनने वाला कोई नहीं है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लड़ने के लिये पैसा और समय नहीं है या उन्हें यह जानकारी नहीं है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाज़ा खटखटाएं। | ||
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[[1992]] में हिमाचल प्रदेश की मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवा निवृत हुईं लगभग 80 वर्षीय लीला सेठ अब भी कई संस्थाओं, बोर्डों, कमिशनों में अपना योगदान दे रही हैं भारतीय अंतर्राष्ट्रीय सेंटर, द नेशनल नॉलेज सेंटर, द पॉपुलर फ़ाउण्डेशन ऑफ़ इण्डिया, लेडी श्रीराम कॉलेज, मॉडर्न स्कूल बसंत विहार, मेयो कॉलेज से भी जुड़ी हुई हैं। शादी शुदा जिंदगी के खुश नुमा 60 साल बिता चुकीं लीला को बागवानी का बहुत शोक है और काफी | [[1992]] में हिमाचल प्रदेश की मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवा निवृत हुईं लगभग 80 वर्षीय लीला सेठ अब भी कई संस्थाओं, बोर्डों, कमिशनों में अपना योगदान दे रही हैं भारतीय अंतर्राष्ट्रीय सेंटर, द नेशनल नॉलेज सेंटर, द पॉपुलर फ़ाउण्डेशन ऑफ़ इण्डिया, लेडी श्रीराम कॉलेज, मॉडर्न स्कूल बसंत विहार, मेयो कॉलेज से भी जुड़ी हुई हैं। शादी शुदा जिंदगी के खुश नुमा 60 साल बिता चुकीं लीला जी को बागवानी का बहुत शोक है और काफी एजेंसियों के माध्यम से वे सामाजिक कार्यों से भी जुड़ी हुई हैं। | ||
==पुस्तक== | |||
इन्होंने अपनी एक पुस्तक 'ऑन बैलेंस' (On Balance) के हिंदी अनुवाद 'घर और आदालत' में जिंदगी की कई खट्टी-मीठी यादों और घर परिवार से जुड़े कई कड़वे अनुभवों को उजागर किया है।<ref>{{cite web |url=http://www.aazad.com/justice-leela-seth-.html |title=न्याय-पथ लीला सेठ (पूर्व चीफ जस्टिस) |accessmonthday=3 फ़रवरी|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=www.aazad.com |language=हिंदी}}</ref> | |||
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13:03, 3 फ़रवरी 2017 का अवतरण
रिंकू4
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पूरा नाम | लीला सेठ |
जन्म | 20 अक्टूबर, 1930 |
जन्म भूमि | लखनऊ उत्तर प्रदेश |
पति/पत्नी | प्रेम |
संतान | विक्रम सेठ |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | वकालत |
प्रसिद्धि | भारत की प्रथम महिला, जो उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश बनीं। |
विशेष योगदान | इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिस ड्यूटी, |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | विधि आयोग, दिल्ली उच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय हिमाचल प्रदेश। |
अन्य जानकारी | लड़कियों को पिता की सम्पति का बराबर की हिस्सेदार बनाने और राजन पिल्लै केश की जाँच में लीला सेठ की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। |
लीला सेठ (अंग्रेज़ी: Leila Seth, जन्म- 20 अक्टूबर 1930, लखनऊ) भारत में उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश बनने वाली प्रथम महिला हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। यह देश की प्रथम ऐसी महिला भी हैं, जिन्होंने लंदन बार परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था। यह जांच आयोग की सदस्य भी रह चुकीं हैं। लीला जी 2000 तक विधि आयोग में रहीं और हिंदू सक्सेशन एक्ट में संशोधन का श्रेय भी इन्हीं को जाता है।
परिचय
लीला सेठ का जन्म लखनऊ में 20 अक्टूबर 1930 में हुआ। बचपन में ही पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बड़ी और मुश्किलों का सामना करते हुई उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश जैसे पद तक पहुँचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था। भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रहीं लीला सेठ ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा उनकी अपनी खुद एक अलग पहचान है, लन्दन में बार की परीक्षा 1958 में शीर्ष पर रहने, भारत के 15वें विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलों में विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है। लीला जी का विवाह पारिवारिक माध्यम से बाटा कंपनी में सर्विस करने वाले प्रेम के साथ हुआ था। उस समय लीला स्नातक भी नहीं कर पायी थीं, बाद में प्रेम को इंग्लैंड में नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह उनके साथ गईं और वहीं से स्नातक किया। जब लीला जी इंग्लैंड में थी तब उनके लिये नियमित कॉलेज जाना संभव नहीं था। इसलिए उन्होंने सोचा कोई ऐसा पाठ्यक्रम हो जिसमें हजारी और रोज जाना जरुरी न हो। इसलिये उन्होंने विधि पाठ्यक्रम करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा में अवल रही।
कॅरियर की शुरुआत
कुछ समय बाद उनके पति को भारत लौटना पड़ा तो लीला ने यहाँ आकर वकालत का अभ्यास करने की ठानी, यह वे समय था जब नौकरियों में बहुत कम महिलायें होती थीं। कोलकता में उन्होंने शुरुआत की लेकिन बाद में पटना आकर उन्होंने अभ्यास शुरू किया। 1959 में उन्होंने बार में दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली में वकालत की।
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात में इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिस ड्यूटी और कस्टम सम्बंधी मामलों के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये। 1978 में वे दिल्ली उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनीं और बाद में 1991 में हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त की गईं। महिलाओं के साथ भेद-भाव के मामले, संयुक्त परिवार में लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिस्सेदार बनाने और पुलिस हिरासत में हुई राजन पिल्लै की मौत की जाँच जैसे मामलों में लीला सेठ की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। 1995 में उन्होंने पुलिस हिरासत में हुई राजन पिल्लै की मौत की जाँच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिम्मेदारी संभाली। 1998 से 2000 तक वे लॉ कमीशन ऑफ़ इंडिया की सदस्य रहीं और हिन्दू उत्तराधिकार कानूनों में संशोधन कराया जिसके तहत संयुक्त परिवार में बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया।
पारिवारिक दायित्व
महत्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ-साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई हाल ही में अपनी पुस्तक 'ओवन बैलेंस' के हिंदी अनुवाद घर और आदालत मैं उन्होंने जिंदगी की कई खट्टी-मीठी यादों और घर परिवार से जुड़े कई कड़वे अनुभवों को उजागर किया है। लीला ने एक जगह लिखा है "मैंने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है" झगड़ा करके कभी मत सोना, रात के अंधेरे में यह और बढ़ता है, इसलिये हम हमेशा विवाद खत्म कर के ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमों और नौकरशाही के बारे में अपना कटु अनुभव इन शब्दों में व्यक्त किया है" एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक न्यायाधीश होते हुई भी मुझे अपने पति को अड़ियल व भारी भरकम कंपनी से लड़ने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो क़ानूनों की पेचीदगियों में फँसे उन आम लोगों को कितनी परेशानियों और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा, जिनकी सत्ता तक पहुँच नहीं है या उनकी सुनने वाला कोई नहीं है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लड़ने के लिये पैसा और समय नहीं है या उन्हें यह जानकारी नहीं है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाज़ा खटखटाएं।
सेवा से निवृत
1992 में हिमाचल प्रदेश की मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवा निवृत हुईं लगभग 80 वर्षीय लीला सेठ अब भी कई संस्थाओं, बोर्डों, कमिशनों में अपना योगदान दे रही हैं भारतीय अंतर्राष्ट्रीय सेंटर, द नेशनल नॉलेज सेंटर, द पॉपुलर फ़ाउण्डेशन ऑफ़ इण्डिया, लेडी श्रीराम कॉलेज, मॉडर्न स्कूल बसंत विहार, मेयो कॉलेज से भी जुड़ी हुई हैं। शादी शुदा जिंदगी के खुश नुमा 60 साल बिता चुकीं लीला जी को बागवानी का बहुत शोक है और काफी एजेंसियों के माध्यम से वे सामाजिक कार्यों से भी जुड़ी हुई हैं।
पुस्तक
इन्होंने अपनी एक पुस्तक 'ऑन बैलेंस' (On Balance) के हिंदी अनुवाद 'घर और आदालत' में जिंदगी की कई खट्टी-मीठी यादों और घर परिवार से जुड़े कई कड़वे अनुभवों को उजागर किया है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ न्याय-पथ लीला सेठ (पूर्व चीफ जस्टिस) (हिंदी) www.aazad.com। अभिगमन तिथि: 3 फ़रवरी, 2017।
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