"हे हरि! कवन जतन भ्रम भागै -तुलसीदास": अवतरणों में अंतर
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जेहि निसि सकल जीव सूतहिं तव कृपापात्र जन जागै। | जेहि निसि सकल जीव सूतहिं तव कृपापात्र जन जागै। | ||
निज करनी बिपरीत देखि मोहि, समुझि महाभय लागै॥3॥ | निज करनी बिपरीत देखि मोहि, समुझि महाभय लागै॥3॥ | ||
जद्यपि भग्न मनोरथ बिधिबस सुख इच्छित | जद्यपि भग्न मनोरथ बिधिबस सुख इच्छित दु:ख पावै। | ||
चित्रकार कर हीन जथा स्वारथ बिनु चित्र बनावै॥4॥ | चित्रकार कर हीन जथा स्वारथ बिनु चित्र बनावै॥4॥ | ||
ह्रषीकेस सुनि नाम जाउँ बलि अति भरोस जिय मोरे। | ह्रषीकेस सुनि नाम जाउँ बलि अति भरोस जिय मोरे। |
14:04, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
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हे हरि! कवन जतन भ्रम भागै। |
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