"किरणावली": अवतरणों में अंतर
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अत: उनका समय 906 शक अर्थात् 984 ई. माना जा सकता है। इस पाठ के आधार पर वह [[श्रीधर]] के कुछ पूर्ववर्ती या समकालीन सिद्ध होते हैं। यद्यपि इस उद्धरण को कुछ | अत: उनका समय 906 शक अर्थात् 984 ई. माना जा सकता है। इस पाठ के आधार पर वह [[श्रीधर]] के कुछ पूर्ववर्ती या समकालीन सिद्ध होते हैं। यद्यपि इस उद्धरण को कुछ विद्वान् प्रक्षिप्त मानते हैं, फिर भी इसकी चर्चा म.म. [[गोपीनाथ कविराज]] जैसे अनेक आधुनिक विद्वानों ने भी सहमतिपूर्वक की है। उदयन का जन्म [[मिथिला]] में [[कनका नदी]] के तीर पर स्थित मङ्गरौनी ग्राम में हुआ था। | ||
डी.सी. भट्टाचार्य का यह कथन है कि उपर्युक्त पाठ शुद्ध नहीं है। वह उदयनाचार्य का समय 976 शक अर्थात् 1054 ई. मानने के पक्ष में हैं। उनका तर्क यह है कि उदयन के साथ श्रीहर्ष के पिता का शास्त्रार्थ हुआ था। श्रीहर्ष का समय 1125 से 1150 के बीच है। उनके पिता का शास्त्रार्थ उदयन के साथ तभी सम्भव माना जा सकता है, जबकि उदयनाचार्य का समय 11वीं शती का उत्तरार्ध माना जाए। यह तो प्रसिद्ध है कि श्रीहर्ष ने अपने पिता की हार का बदला चुकाने के लिए खण्डन खण्डखाद्य में उदयन के मत का खण्डन किया। | डी.सी. भट्टाचार्य का यह कथन है कि उपर्युक्त पाठ शुद्ध नहीं है। वह उदयनाचार्य का समय 976 शक अर्थात् 1054 ई. मानने के पक्ष में हैं। उनका तर्क यह है कि उदयन के साथ श्रीहर्ष के पिता का शास्त्रार्थ हुआ था। श्रीहर्ष का समय 1125 से 1150 के बीच है। उनके पिता का शास्त्रार्थ उदयन के साथ तभी सम्भव माना जा सकता है, जबकि उदयनाचार्य का समय 11वीं शती का उत्तरार्ध माना जाए। यह तो प्रसिद्ध है कि श्रीहर्ष ने अपने पिता की हार का बदला चुकाने के लिए खण्डन खण्डखाद्य में उदयन के मत का खण्डन किया। |
14:28, 6 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
उदयनाचार्य का समय
न्याय के समान वैशेषिक में भी उदयनाचार्य का अपना विशिष्ट महत्त्व है। उदयनाचार्य ने स्वयं लक्षणावली के निर्माणकाल का उल्लेख करते हुए यह कहा है:—
तर्काम्बरांकप्रमितेष्वतीतेषु शकान्तत:।
वर्षेषूदयनश्चक्रे सुबोधां लक्षणावलीम्॥
अत: उनका समय 906 शक अर्थात् 984 ई. माना जा सकता है। इस पाठ के आधार पर वह श्रीधर के कुछ पूर्ववर्ती या समकालीन सिद्ध होते हैं। यद्यपि इस उद्धरण को कुछ विद्वान् प्रक्षिप्त मानते हैं, फिर भी इसकी चर्चा म.म. गोपीनाथ कविराज जैसे अनेक आधुनिक विद्वानों ने भी सहमतिपूर्वक की है। उदयन का जन्म मिथिला में कनका नदी के तीर पर स्थित मङ्गरौनी ग्राम में हुआ था।
डी.सी. भट्टाचार्य का यह कथन है कि उपर्युक्त पाठ शुद्ध नहीं है। वह उदयनाचार्य का समय 976 शक अर्थात् 1054 ई. मानने के पक्ष में हैं। उनका तर्क यह है कि उदयन के साथ श्रीहर्ष के पिता का शास्त्रार्थ हुआ था। श्रीहर्ष का समय 1125 से 1150 के बीच है। उनके पिता का शास्त्रार्थ उदयन के साथ तभी सम्भव माना जा सकता है, जबकि उदयनाचार्य का समय 11वीं शती का उत्तरार्ध माना जाए। यह तो प्रसिद्ध है कि श्रीहर्ष ने अपने पिता की हार का बदला चुकाने के लिए खण्डन खण्डखाद्य में उदयन के मत का खण्डन किया।
उदयनाचार्य के ग्रन्थ
उदयनाचार्य ने न्याय शास्त्र पर न्यायवार्तिक तात्पर्य टीका परिशुद्धि, न्याय कुसुमांजलि, आत्मा तत्त्व विवेक जैसे सुप्रसिद्ध ग्रन्थ लिखे और बौद्ध दार्शनिकों से शास्त्रार्थ करके न्याय दर्शन को प्रतिष्ठापित किया। वैशेषिक दर्शन के संदर्भ में उदयनाचार्य के दो ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं-
- किरणावली तथा
- लक्षणावली।
किरणावली प्रशस्तपाद भाष्य की प्रौढ़ व्याख्या है और लक्षणावली एक स्वतंत्र वैशेषिक ग्रन्थ। किरणावली बुद्धि प्रकरण तक ही प्रकाशित हुई है। इस पर कई व्याख्याएँ लिखी गईं, जिनमें से वर्धमान का किरणावली प्रकाश और पद्मनाभी मिश्र का किरणावली-भाष्कर प्रसिद्ध है।
किरणावली का वैशिष्ट्य
किरणावली प्रशस्तपाद भाष्य की एक महत्त्वपूर्ण व्याख्या है। इसमें क्षणभंगवाद, परिणामवाद, आरम्भवाद, सांख्यमत, चार्वाक मत, अयोद्वाद तथा मीमांसक मत का खण्डन किया गया है। इसमें विभाग निरूपण के अवसर पर भासर्वज्ञ के मत का तथा निरूपण के अवसर पर भूषणकार के मतों का निर्देश उपलब्ध होता है।
किरणावली की टीका-प्रटीकाएँ
किरणावली प्रशस्तपाद भाष्य की बहुत प्रौढ़ व्याख्या हें इसमें वैशेषिक के सिद्धान्तों को बड़े पाण्डित्यपूर्ण ढंग से स्पष्ट किया गया है। यह बुद्धि प्रकरण पर्यन्त ही उपलब्ध होती है। इस पर अनेक व्याख्याएँ लिखी गईं, जिनमें वर्धमान का किरणावली प्रकाश तथा पद्मनाभ मिश्र का किरणावलीभाष्कर प्रसिद्ध है।
किरणावली-प्रकाश
इसके रचयिता वर्धमानोपाध्याय हैं। वर्धमानोपाध्याय ने इस व्याख्या में मीमांसकों, वेदान्तियों, बौद्धों आदि के मतों का खण्डन तथा अन्वीक्षातत्त्वबोध, न्यायनिबन्धप्रकाश, आत्मतत्त्वविवेक जैसे ग्रन्थों एवं अपने पितृचरण के रूप में गङ्गेशोपाध्याय का उल्लेख किया है। वर्धमानोपाध्याय का समय 1400 ई. माना जाता है।
विवेकाख्या किरणावली प्रकाश व्याख्या
महादेव मिश्र के पुत्र एवं हरिमिश्र के शिष्य पक्षधर मिश्र द्वारा विवेकाख्या एक व्याख्या किरणावली प्रकाश पर लिखी गई थी, जिस पर पक्षधर मिश्र के शिष्य हरिदत्त मिश्र ने 'किरणावली प्रकाश व्याख्या विवृति' लिखी, जो कि द्रव्य गुण पर्यन्त ही मुद्रित है। इसी प्रकार पक्षधर के एक अन्य शिष्य भगीरथ ठक्कुर (1511 ई.) ने भी भावप्रकाशिका नाम की एक व्याख्या की रचना की। मथुरानाथ तर्क वागीश (1600 ई.) ने भी रहस्यनाम्नी एक व्याख्या किरणावली प्रकाश पर लिखी। रघुनाथ शिरोमणि (1475 ई.) द्वारा भी दीक्षिति नाम्नी एक व्याख्या किरणावली प्रकाश पर रची गई। मथुरानाथ ने दीधिति की व्याख्या विवृत्ति के रूप में की। पधुनाथशिरोमणि के शिष्य देवीदास के पुत्र, रामकृष्ण भट्टाचार्य ने किरणावली प्रकाश दीधिति पर प्रकाशाख्या व्याख्या की रचना की। रुद्रन्यायवाचस्पति (1700 ई.) ने किरणावली प्रकाश दीधिति की परीक्षाख्या व्याख्या लिखी। इसी प्रकार मधुसूदन ठक्कुर के शिष्य गुणानन्द ने भी किरणावली प्रकाश पर तात्पर्य संदर्भा व्याख्या लिखी। कुल मिलाकर यहाँ कहा जा सकता है कि किरणावली प्रकाश व्याख्या पर एक अच्छे उपटीका-साहित्य की रचना हुई।
किरणावली व्याख्या—रससार
यह किरणावली के गुणखण्ड का व्याख्या ग्रन्थ है। इसके आत्मविचार प्रकरण में श्रीधराचार्य का तथा पृथ्वी निरूपण प्रकरण में भूषणकार का उल्लेख मिलता है। इसकी रचना शंकरकिंकर अपर नाम से ख्यातवादीन्द्र गुरु (1200-1300 ई.) ने की। रससारनाम्नी यह किरणावली व्याख्या रायल एशियाटिक सोसाइटी ग्रन्थमाला तथा सरस्वती भवन ग्रन्थमाला में प्रकाशित है। रामतर्कालंकार के पुत्र श्री रघुनाथ शिरोमणि के शिष्य और तत्त्वचिन्तामणि के व्याख्याकार, मथुरानाथ तर्कवागीश द्वारा (1600 ई.) भी रहस्याख्या किरणावली व्याख्या की रचना की गई है।
न्यायरहस्य के रचयिता जगदीश भट्टाचार्य के गुरु, भवनाथ के पुत्र, रामभद्रसार्वभौम ने भी किरणावली गुण खण्ड व्याख्या रहस्याख्या लिखी। इसकी भी सारमञ्जरीनाम्नी व्याख्या माधवदेव भट्टाचार्य (1700 ई.) ने लिखी थी। सारमंजरी की भी व्याख्या लक्ष्मण के शिष्य, किसी अज्ञातनामा व्यक्ति द्वारा लिखी गई, जो कि तंजौर पुस्तकालय में उपलब्ध है।
उदयनाचार्य रचित लक्षणावली
उदयनाचार्य द्वारा रचित इस ग्रन्थ में भाव और अभाव के भेद से पदार्थों का विभाग किया गया हैं। भाव के अन्तर्गत
- द्रव्य
- गुण
- कर्म
- सामान्य
- विशेष और
- समवाय नामक छ: पदार्थों की गणना करके अभाव को अलग हसे पदार्थ माना गया है और उसके प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अत्यन्ताभाव और अन्योन्याभाव नामक चार भेद माने गये हैं। लक्षणावली वैशेषिक दर्शन का एक प्रौढ़ और स्वतन्त्र ग्रन्थ है।
लक्षणावली पर जो व्याख्याएँ लिखी गई हैं। उनका विवरण इस प्रकार हैं-
- लक्षणावली न्यायमुक्तावली— इस टीका के रचयिता शेष शार्ङगधर का समय 1500 ई. माना जाता है। सन् 1900 ई. में इसको सम्पादित कर वाराणसी से प्रकाशित किया गया।
- लक्षणावलीप्रकाश – आचार्य विश्वनाथ झा द्वारा रचित इस टीका का प्रकाश दरभंगा से 1822 शक (1897 ई.) में हुआ।
- लक्षणावलीप्रकाश – सरस्वती भवन पुस्तकालय के पाण्डुलिपि विभाग में सुरक्षित इस टीका के लेखक महादेव हैं।
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