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'''हरि वासुदेवन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Hari Vasudevan'', जन्म- [[1952]]; मृत्यु- [[10 मई]], [[2020]]) भारतीय [[इतिहासकार]] थे। उन्हें एनसीईआरटी (NCERT) की सामाजिक विज्ञान पाठ्य-पुस्तकों के निर्माता के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने [[जामिया मिलिया इस्लामिया]] में सेंट्रल एशियन प्रोग्राम को शुरू करने में उल्लेखनीय भूमिका तो निभाई ही, इसके साथ ही मौलाना अबुल कलाम आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज़ के निदेशक के रूप में उन्होंने [[कोलकाता]] स्थित इस संस्थान की अकादमिक गतिविधियों और सक्रियता को बढ़ाने में अप्रतिम योगदान दिया।
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==परिचय==
==परिचय==
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==महत्त्वपूर्ण योगदान==
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16:02, 11 मई 2020 के समय का अवतरण

हरि वासुदेवन
हरि वासुदेवन
हरि वासुदेवन
पूरा नाम हरि वासुदेवन
जन्म 1952
मृत्यु 10 मई, 2020
कर्म भूमि भारत
मुख्य रचनाएँ ‘शैडोज़ ऑफ सब्सटेन्स : इंडो-रसियन ट्रेड एंड मिलिट्री टेक्निकल को-ऑपरेशन सिंस 1991’, ‘इन द फुटस्टेप्स ऑफ अफनासी निकितीन : ट्रैवेल्स थ्रू यूरेशिया एंड इंडिया इन द ट्वेंटी-फर्स्ट सेंचुरी’ आदि।
विद्यालय कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय
शिक्षा पीएचडी
प्रसिद्धि इतिहासकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के फ़ेलो होने के साथ-साथ हरि वासुदेवन कोलकाता स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ डिवेलपमेंट स्टडीज़ के अध्यक्ष भी रहे।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

हरि वासुदेवन (अंग्रेज़ी: Hari Vasudevan, जन्म- 1952; मृत्यु- 10 मई, 2020) भारतीय इतिहासकार थे। उन्हें एनसीईआरटी (NCERT) की सामाजिक विज्ञान पाठ्य-पुस्तकों के निर्माता के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया में सेंट्रल एशियन प्रोग्राम को शुरू करने में उल्लेखनीय भूमिका तो निभाई ही, इसके साथ ही मौलाना अबुल कलाम आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज़ के निदेशक के रूप में उन्होंने कोलकाता स्थित इस संस्थान की अकादमिक गतिविधियों और सक्रियता को बढ़ाने में अप्रतिम योगदान दिया।

परिचय

सन 1952 में एक मलयाली परिवार में पैदा हुए हरि वासुदेवन ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी की। इसके बाद वे कलकत्ता विश्वविद्यालय में यूरोपीय इतिहास के प्राध्यापक नियुक्त हुए और दशकों तक उन्होंने वहाँ अध्यापन कार्य किया। रूस समेत समूचे मध्य एशिया के इतिहास में उनकी गहरी दिलचस्पी और विशेषज्ञता ने उन्हें भारतीय इतिहासकारों में विशिष्ट स्थान दिलाया।[1]

महत्त्वपूर्ण योगदान

वर्ष 2005 की राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के अनुरूप एनसीईआरटी की सामाजिक-विज्ञान की पाठ्य-पुस्तकों के निर्माण में उनके योगदान के लिए भी उन्हें याद किया जाएगा। सामाजिक विज्ञान पाठ्यपुस्तक सलाहकार समिति के अध्यक्ष के रूप में हरि वासुदेवन ने नीलाद्रि भट्टाचार्य, योगेन्द्र यादव, सुहास पलशीकर, तापस मजूमदार सरीखे विद्वानों के साथ काम करते हुए इतिहास, राजनीति, अर्थशास्त्र आदि की बेहतरीन पाठ्य-पुस्तकें तैयार कराने में अग्रणी योगदान दिया।

इतिहासकार होने के साथ-साथ हरि वासुदेवन एक विज़नरी अकादमिक भी थे। उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया में सेंट्रल एशियन प्रोग्राम को शुरू करने में उल्लेखनीय भूमिका तो निभाई ही। साथ ही, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज़ के निदेशक के रूप में उन्होंने कोलकाता स्थित इस संस्थान की अकादमिक गतिविधियों और सक्रियता को बढ़ाने में अप्रतिम योगदान दिया।

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के फ़ेलो होने के साथ-साथ हरि वासुदेवन कोलकाता स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ डिवेलपमेंट स्टडीज़ के अध्यक्ष भी रहे। हरि वासुदेवन कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में गायत्री चक्रवर्ती स्पीवाक द्वारा शुरू किए गए ‘रेडिएटिंग ग्लोबलिटीज़’ प्रोजेक्ट से भी जुड़े रहे। भारत-रूस सम्बन्धों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझने के उनके अकादमिक प्रयासों ने उन्हें एशियाटिक सोसाइटी द्वारा शुरू किए गए ‘रसियन आर्काइव प्रोजेक्ट’ से भी जोड़ा।[1]

प्रमुख पुस्तकें

हरि वासुदेवन की प्रमुख पुस्तकें निम्न प्रकार हैं-

  1. ‘शैडोज़ ऑफ सब्सटेन्स : इंडो-रसियन ट्रेड एंड मिलिट्री टेक्निकल को-ऑपरेशन सिंस 1991’
  2. ‘इन द फुटस्टेप्स ऑफ अफनासी निकितीन : ट्रैवेल्स थ्रू यूरेशिया एंड इंडिया इन द ट्वेंटी-फर्स्ट सेंचुरी’

इसके अलावा उन्होंने ‘कमर्शियलाइज़ेशन एंड एग्रीकल्चर इन लेट इंपीरियल रशिया’ और ‘इंडो-रशियन रिलेशंस, 1917-1947’ सरीखी पुस्तकों का सम्पादन भी किया था। हाल ही में उन्होंने अपनी माँ श्रीकुमारी मेनन के संस्मरणों पर आधारित पुस्तक ‘मेमायर्स ऑफ ए मालाबार लेडी’ भी पूरी की थी।

मृत्यु

इतिहासकार हरि वासुदेवन का 10 मई, 2020 को कोरोना विषाणु से संक्रमण की वजह से कोलकाता में निधन हो गया। प्रख्यात कला इतिहासकार ताप्ती गुहा-ठाकुरता उनकी पत्नी हैं। इतिहासकार हरि वासुदेवन को भारत और मध्य एशिया के ऐतिहासिक अंतरसंबंधों के सूत्र तलाशने, एशियाई अध्ययन से जुड़ी भारतीय संस्थाओं को दिशा देने और स्कूली बच्चों को समाज-विज्ञान से परिचित कराने वाली एनसीईआरटी की बेहतरीन पाठ्यपुस्तकों के निर्माण में सूत्रधार की भूमिका निभाने के लिए याद किया जाएगा।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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