"परान्तक प्रथम": अवतरणों में अंतर
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आदित्य की मृत्यु के बाद उसका पुत्र परान्तक चोल राज्य का स्वामी बना। उसने दक्षिण की ओर आक्रमण कर पांड्य राज्य को जीत लिया, और कुमारी अन्तरीप तक अपनी शक्ति का विस्तार किया। वह समुद्र पार कर सिंहलद्वीप (लंका) को भी आक्रान्त करना चाहता था, पर इसमें उसे सफलता नहीं मिली। जिस समय परान्तक सुदूर दक्षिण के युद्ध में व्यापृत था, काञ्जी के पल्लव कुल ने अपने लुप्त गौरव की पुनः प्रतिष्ठा का प्रयत्न किया। पर चोलराज ने उसे बुरी तरह से कुचल डाला, और भविष्य में पल्लवों ने फिर कभी अपने उत्कर्ष का प्रयत्न नहीं किया। | *[[आदित्य (चोल वंश)|आदित्य]] की मृत्यु के बाद उसका पुत्र परान्तक चोल राज्य का स्वामी बना। | ||
यद्यपि परान्तक पल्लवों का पराभव करने में सफल हो गया, पर शीघ्र ही उसे एक नए शत्रु का सामना करना पड़ा। मान्यखेट का राष्ट्रकूट राज्य चोल राज्य के उत्तर में स्थित था, और वहाँ के राजा चोलों की बढ़ती शक्ति से बहुत चिन्तित थे। राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय (940-968) ने दक्षिण के इस नए शत्रु का सामना करने के लिए विजय यात्रा प्रारम्भ की, और काञ्जी को एक बार फिर राष्ट्रकूट साम्राज्य के अंतर्गत ला किया। पर कृष्ण तृतीय केवल काञ्जी की विजय से ही संतुष्ट नहीं हुआ। उसने दक्षिण दिशा में आगे बढ़कर तंजोर पर भी आक्रमण किया, जो इस समय चोल राज्य की राजधानी था। तंजोर को जीतकर उसने 'तैजजयुकोण्ड' की उपाधि धारण की, और कुछ समय के लिए चोल राज्य की स्वतंत्र सत्ता का अन्त कर दिया। चोलराज परान्तक के पुत्र राजादित्य ने राष्ट्रकूटों से युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की। राष्ट्रकूटों के उत्कर्ष के कारण दसवीं सदी के मध्य भाग में चोलों की शक्ति बहुत मन्द पड़ गई थी। यही कारण है, कि परान्तक प्रथम के पश्चात जिन अनेक राजाओं ने दसवीं सदी के अन्त तक तंजोर में शासन किया, उनकी स्थिति स्थानीय राजाओं के समान थी। | *उसने दक्षिण की ओर आक्रमण कर पांड्य राज्य को जीत लिया, और कुमारी अन्तरीप तक अपनी शक्ति का विस्तार किया। | ||
*वह समुद्र पार कर सिंहलद्वीप ([[लंका]]) को भी आक्रान्त करना चाहता था, पर इसमें उसे सफलता नहीं मिली। | |||
*जिस समय परान्तक सुदूर दक्षिण के युद्ध में व्यापृत था, [[कांची|काञ्जी]] के [[पल्लव वंश|पल्लव कुल]] ने अपने लुप्त गौरव की पुनः प्रतिष्ठा का प्रयत्न किया। पर चोलराज ने उसे बुरी तरह से कुचल डाला, और भविष्य में पल्लवों ने फिर कभी अपने उत्कर्ष का प्रयत्न नहीं किया। | |||
*यद्यपि परान्तक पल्लवों का पराभव करने में सफल हो गया, पर शीघ्र ही उसे एक नए शत्रु का सामना करना पड़ा। | |||
*[[मान्यखेट]] का राष्ट्रकूट राज्य चोल राज्य के उत्तर में स्थित था, और वहाँ के राजा चोलों की बढ़ती शक्ति से बहुत चिन्तित थे। | |||
*राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय (940-968) ने दक्षिण के इस नए शत्रु का सामना करने के लिए विजय यात्रा प्रारम्भ की, और काञ्जी को एक बार फिर राष्ट्रकूट साम्राज्य के अंतर्गत ला किया। | |||
*पर कृष्ण तृतीय केवल काञ्जी की विजय से ही संतुष्ट नहीं हुआ। | |||
*उसने दक्षिण दिशा में आगे बढ़कर तंजोर पर भी आक्रमण किया, जो इस समय चोल राज्य की राजधानी था। | |||
*तंजोर को जीतकर उसने 'तैजजयुकोण्ड' की उपाधि धारण की, और कुछ समय के लिए चोल राज्य की स्वतंत्र सत्ता का अन्त कर दिया। | |||
*चोलराज परान्तक के पुत्र 'राजादित्य' ने राष्ट्रकूटों से युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की। | |||
*राष्ट्रकूटों के उत्कर्ष के कारण दसवीं सदी के मध्य भाग में चोलों की शक्ति बहुत मन्द पड़ गई थी। | |||
*यही कारण है, कि परान्तक प्रथम के पश्चात जिन अनेक राजाओं ने दसवीं सदी के अन्त तक तंजोर में शासन किया, उनकी स्थिति स्थानीय राजाओं के समान थी। | |||
09:10, 29 सितम्बर 2010 का अवतरण
- आदित्य की मृत्यु के बाद उसका पुत्र परान्तक चोल राज्य का स्वामी बना।
- उसने दक्षिण की ओर आक्रमण कर पांड्य राज्य को जीत लिया, और कुमारी अन्तरीप तक अपनी शक्ति का विस्तार किया।
- वह समुद्र पार कर सिंहलद्वीप (लंका) को भी आक्रान्त करना चाहता था, पर इसमें उसे सफलता नहीं मिली।
- जिस समय परान्तक सुदूर दक्षिण के युद्ध में व्यापृत था, काञ्जी के पल्लव कुल ने अपने लुप्त गौरव की पुनः प्रतिष्ठा का प्रयत्न किया। पर चोलराज ने उसे बुरी तरह से कुचल डाला, और भविष्य में पल्लवों ने फिर कभी अपने उत्कर्ष का प्रयत्न नहीं किया।
- यद्यपि परान्तक पल्लवों का पराभव करने में सफल हो गया, पर शीघ्र ही उसे एक नए शत्रु का सामना करना पड़ा।
- मान्यखेट का राष्ट्रकूट राज्य चोल राज्य के उत्तर में स्थित था, और वहाँ के राजा चोलों की बढ़ती शक्ति से बहुत चिन्तित थे।
- राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय (940-968) ने दक्षिण के इस नए शत्रु का सामना करने के लिए विजय यात्रा प्रारम्भ की, और काञ्जी को एक बार फिर राष्ट्रकूट साम्राज्य के अंतर्गत ला किया।
- पर कृष्ण तृतीय केवल काञ्जी की विजय से ही संतुष्ट नहीं हुआ।
- उसने दक्षिण दिशा में आगे बढ़कर तंजोर पर भी आक्रमण किया, जो इस समय चोल राज्य की राजधानी था।
- तंजोर को जीतकर उसने 'तैजजयुकोण्ड' की उपाधि धारण की, और कुछ समय के लिए चोल राज्य की स्वतंत्र सत्ता का अन्त कर दिया।
- चोलराज परान्तक के पुत्र 'राजादित्य' ने राष्ट्रकूटों से युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की।
- राष्ट्रकूटों के उत्कर्ष के कारण दसवीं सदी के मध्य भाग में चोलों की शक्ति बहुत मन्द पड़ गई थी।
- यही कारण है, कि परान्तक प्रथम के पश्चात जिन अनेक राजाओं ने दसवीं सदी के अन्त तक तंजोर में शासन किया, उनकी स्थिति स्थानीय राजाओं के समान थी।
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