सदस्य:DrMKVaish
मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।
- महात्मा गांधी
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भारतवर्ष में कॉवर के त्योहार का बहुत ज़्यादा महत्व है। इस तौहार में आमलोग भगवन शिव की भक्ति में डुबकर कॉवर उठाते है। इन कॉवर उठाने वाले शिव भक्तो को कॉवरिया कहते है। यह त्योहार हिन्दी कैलेण्डर के अनुसार श्रावण ( सावन ) के महीने में पड़ता है। कॉवर के इस त्योहार में शिव भक्त एक निश्चित स्थान से गेरुआ वस्त्र धारण कर कन्धे पर कॉवर लेकर और कॉवर में गंगाजल रखकर उठाते है तथा कई किलोमीटर की नंगे पैर पैदल यात्रा करके एक निश्चित स्थान के शिव मंदिर में आकर भगवन शिव और माता पर्वती पर गंगाजल चढाते है। यह गंगाजल का अभिषेक श्रद्धा और विश्वास के महापर्व शिव रात्रि के दिन होता है। कॉवर का त्योहार भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है लेकिन विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, उत्तराँचल, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली, पश्चिम बंगाल के राज्यों में मनाया जाता है।
आषाढ़ी पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर तीर्थनगरी में गंगा स्नान करने व गुरु पूजन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, यूपी, दिल्ली के कोने-कोने से आज पूर्णिमा स्नान के साथ ही कस्बे में एक माह तक चलने वाला कॉवर मेला प्रारम्भ हो जाएगा। मकर संकंराति के अवसर पर बरमान से बांदकपुर भगवान भोलेशंकर के चरणों में जल चढ़ाने के लिए जा रहे कावडिय़ों का गुरुवार को तालसेमरा में संतश्री १०८ सीताराम महराज बादकपुर जाकर भगवान भोलेशंकर के चरणों में अर्पित करते हैं। कॉवरियों द्वारा यह सारी यात्रा पैदल ही की जाती है। स्वागत करने वालों में लक्ष्मीनारायण जारोलिया, पप्पू जारोलिया, हरदास पटेल, अशोक पटेल आदि शामिल हैं। बेवर: महाशिव रात्रि के पावन पर्व पर काबड़ियों ने फर्रुखाबाद से जल भरकर विभिन्न शिवालयों में चढ़ाकर मन्नत मांगी तो कुछ काबड़ियों ने भोलेनाथ से पुन: जल लेकर आने का वादा किया। श्रद्धा और विश्वास के महापर्व शिव रात्रि के दिन भोले बाबा के भक्तों ने घटिया घाट, श्रंगीरामपुर से जल भरकर पूरे मनोयोग के साथ पैदल चलकर कॉवर धारण कर मंछना, मैनपुरी हजारी मंदिर सरसईनावर में शिवालयों पर जल चढ़ाया। कॉबड़ियों की टोली, भोले तेरी बम बम बम भोले के जयकारे लगाते हुए चल रहे थे। कॉबरधारी पुनीत दुबे, रानू शाक्य, पुष्पेन्द्र राठौर, शोभाराम, मुन्ना सिंह, मूलचन्द्र ने बताया कि कॉवर धारण करना कठिन व्रत है। जिसमें बहुत से नियमों का पालन करना अनिवार्य है। भक्त जन होते हैं। एक तो ऐसे जिनकी मन्नत भोले बाबा पूरी कर चुके होते है तथा दूसरे जल चढ़ाकर मन्नत मांगकर पुन: आने का वादा करते है। जल भरकर दूध वाले वृक्षों के नीचे से चलना सर्वथा मना है। भोले नाथ बड़े दयालू है। जो भी शिवलिंग पर पूजा अर्चन कर जल चढ़ता है भोले नाथ उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। हम लोग लगभग 75 किमी पैदल चलकर जल चढ़ाएंगे। सर्वविदित है कि श्रावण के महीने में कॉवर चढ़ाना बेहद पुनीत माना जाता है। सच्ची भक्ति भावना से जो भी भोले बाबा के नाम की कॉवर चढ़ाता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। रांची, तैयार हो जाइए, बाबा भोले नाथ की पूजा में लीन होने के लिए। भगवान शिव का प्रसन्न करने के लिए। उनका जलाभिषेक करने का महीना आ गया है। भगवान शंकर को खुश करने का विशेष महीना श्रावण ( सावन ) आषढ खत्म होते ही शनिवार कृष्ण पक्ष 16 जुलाई से शुरु हो जायेगा। सावन की पहली सोमवारी 18 जुलाई को है। अगले सप्ताह से शुरु होने वाले सावन को लेकर शिवालयों और अन्य मंदिरों में विशेष तैयारियां की जा रही है। देवघर स्थित प्रसिध्द श्रावणी मेले की तैयारियों को भी अंतिम रुप दिया जा रहा है। इधर, राजधानी रांची स्थित पहाड़ी मंदिर में भी सावन महीने को लेकर विशेष तैयारियां की गयी है। मंदिर को आकर्षक तरीके से संजाने-संवारने का काम चल रहा है। खूंटी स्थित अमरेश्वरधाम में भी तैयारियों को अंतिम रुप दिया जा रहा है। इस सावन में चार सोमवारी अगस्त को चौथी सोमवारी पडेगी। धार्मिक मान्यता है कि सावन की सोमवारी बाबा भोलेनाथ को जल चढाने से बाबा की असीम कृपा भक्तों को मिलती है। श्रध्दालु भक्त बाबा को जल चढाने के लिए कॉवर लेकर मिलो पैदल भी चलते हैं। सबसे अधिक भक्तों की भीड बाबा की नगरी देवघर पहुँचती है। वहीं कई श्रध्दालु भक्त वाराणसी और तारकेश्वर (पश्चिम बंगाल) आदि सावन सात्विक होने का महीना सावन सात्विक हो कर बाबा की आराधना की विशेष महत्व है। मत्स्यपुराण के मुताबिक सावन में मछली को अंडा होता है यानि एक नये प्राणी का आगमन । इसी वजह से सावन में मछली खाने से लोग परहेज करते हैं। वहीं सावन माह में लहसून-प्याज को भी त्याग करते हैं। संजने लगी हैं कांवर की दुकानें सजने लगी हैं कॉवर की दुकानें, गेरुवा वस्त्र की सिलाई और नये स्टोक की बिक्री के लिए तैयार पूरे ज़िलों एवं ग्रामीण क्षेत्रों तक बाबा भोले की नगरी देवघर जाने की तैयारी के लिए श्रध्दालु भक्त कॉवर की ख़रीदारी करते हैं ऐसे में नये स्टोक आ चुके हैं। इस सप्ताह बिक्री परवान पर होगी वहीं गेरुवा वस्त्र की नये स्टोक भी दुकानों में पहुँच चुके है। लोग वस्त्रों के अलावा झोले टॉर्च आदि की ख़रीदारी में लग गये हैं। | ||||||||||||
संस्कृत सुभाषित एवं सूक्तियाँ हिन्दी में अर्थ सहित----
(१) न राज्यं न च राजासीत् , न दण्डो न च दाण्डिकः । स्वयमेव प्रजाः सर्वा , रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥ ( न राज्य था और ना राजा था , न दण्ड था और न दण्ड देने वाला । स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी ॥ ) (२) रत्नं रत्नेन संगच्छते । ( रत्न , रत्न के साथ जाता है ) (३) गुणः खलु अनुरागस्य कारणं , न बलात्कारः । ( केवल गुण ही प्रेम होने का कारण है , बल प्रयोग नहीं ) (४) निर्धनता प्रकारमपरं षष्टं महापातकम् । ( गरीबी दूसरे प्रकार से छठा महापातक है । ) (५) अपेयेषु तडागेषु बहुतरं उदकं भवति । ( जिस तालाब का पानी पीने योग्य नहीं होता , उसमें बहुत जल भरा होता है । ) (६) अङ्गुलिप्रवेशात् बाहुप्रवेश: | ( अंगुली प्रवेश होने के बाद हाथ प्रवेश किया जता है । ) (७) अति तृष्णा विनाशाय. ( अधिक लालच नाश कराती है । ) (८) अति सर्वत्र वर्जयेत् । ( अति ( को करने ) से सब जगह बचना चाहिये । ) (९) अजा सिंहप्रसादेन वने चरति निर्भयम्. ( शेर की कृपा से बकरी जंगल मे बिना भय के चरती है । ) (१०) अतिभक्ति चोरलक्षणम्. ( अति-भक्ति चोर का लक्षण है । ) (११) अल्पविद्या भयङ्करी. ( अल्पविद्या भयंकर होती है । ) (१२) कुपुत्रेण कुलं नष्टम्. ( कुपुत्र से कुल नष्ट हो जाता है । ) (१३) ज्ञानेन हीना: पशुभि: समाना:. ( ज्ञानहीन पशु के समान हैं । ) (१४) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे गर्दभी ह्यप्सरा भवेत्. ( सोलह वर्ष की होने पर गदही भी अप्सरा बन जाती है । ) (१५) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्. ( सोलह वर्ष की अवस्था को प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरण करना चाहिये । ) (१६) मधुरेण समापयेत्. ( मिठास के साथ ( मीठे वचन या मीठा स्वाद ) समाप्त करना चाहिये । ) (१७) मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना. ( हर व्यक्ति अलग तरह से सोचता है । ) (१८) शठे शाठ्यं समाचरेत् । ( दुष्ट के साथ दुष्टता का वर्ताव करना चाहिये । ) (१९) सत्यं शिवं सुन्दरम्. ( सत्य , कल्याणकारी और सुन्दर । ( किसी रचना/कृति या विचार को परखने की कसौटी ) ) (२०) सा विद्या या विमुक्तये. ( विद्या वह है जो बन्धन-मुक्त करती है । ) (२१) त्रियाचरित्रं पुरुषस्य भग्यं दैवो न जानाति कुतो नरम् । ( स्त्री के चरित्र को और पुरुष के भाग्य को भगवान् भी नहीं जानता , मनुष्य कहाँ लगता है । ) (२२) कामासक्त व्यक्ति की कोई चिकित्सा नहीं है। - नीतिवाक्यामृत-३।१२
जनम होत नंगे भये, चौपायों की चाल, न वाणी न वाक्य थे पशुवत पाये शरीर। धीरे धीरे बदल गये चौपायों से बन इंसान। वाक्य और वाणी मिली वस्त्र पहन कर हुये बने महान। जाति बनी और ज्ञान बढ़ा तो बॉंट दिया फिर इंसान। अंत समय नंगे फिर भये, गये सब वेद शास्त्र और ज्ञान।।
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वृक्ष तथा विभिन्न वनस्पतियां धारती पर हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी हैं। भारतीय संस्कृति में भी प्राचीन समय से ही वृक्षो तथा वनस्पतियों को पूजनीय माना जाता रहा हैं। विभिन्न वनस्पतियां हमारे स्वास्थ्य की रक्षा में भी सहायक सिद्ध होती हैं। ऐसा ही एक छोटा परन्तु बहुत महत्त्वपूर्ण पौधा तुलसी है। तुलसी को हजारों वर्षों से विभिन्न रोगों के इलाज के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जा रहा हैं। आयुर्वेद में भी तुलसी तथा उसके विभिन्न औषधीय प्रयोगों का विशेष स्थान हैं। आपके आंगन में लगा छोटा सा तुलसी का पौधा, अनेक बीमारियो का इलाज करने के आचर्यजनक गुण लिए हुए होता हैं।
सर्दी के मौसम में खांसी जुकाम होना एक आम समस्या हैं। इनसे बचे रहने का सबसे सरल उपाय है तुलसी की चाय। तुलसी की चाय बनाने के लिए, तुलसी की दस पन्द्रह ग्राम ताजी पत्रितयां लें और धो कर कुचल लें। फिर उसे एक कप पानी में डालें उसमें पीपला मूल, सौंठ, इलायची पाउड़र तथा एक चम्मच चीनी मिला लें, इस मिश्रण को उबालकर बिना छाने सुबह गर्मा-गर्म पीना चाहिये। इस प्रकार की चाय पीने से शरीर में चुस्ती स्फूर्ति आती है और भूख बढ़ती हैं। जिन लोगों को सर्दियों में बारबार चाय पीने की आदत है। उनके लिए तुलसी की चाय बहुत लाभदायक होगी। जो न केवल उन्हें स्वास्थ्य लाभ देगी अपितु उन्हें साधारण चाय के हानिकारक प्रभावो से भी बचाएगीं। सर्दी, जवर, अरूचि, सुस्ती, दाह, वायु तथा पित्त संबंधी विकारों को दूर करने के लिए भी तुलसी की औषधीय रचना और अपना महत्व हैं। इसके लिए तुलसी की दस पन्द्रह ग्राम ताजी धुली पत्तियों को लगभग 150 ग्राम पानी में उबाल लें। जब लगभग आधा या चौथाई पानी ही शेष रह जाए। तो उसमें उतनी ही मात्रा में दूध तथा जरूरत के अनुसार मिश्री मिला लें। यह अनेक रोगों को तो दूर करता ही है साथ ही क्षुधावर्धक भी होता हैं। इसी विधि के अनुसार काढ़ा बनाकर उसमें एक दो इलायची का चूर्ण और दस पन्द्रह सुधामूली डालकर सर्दियों में पीना बहुत लाभकारी होता हैं। इसमें शारीरिक पुष्टता बढ़ती हैं। तुलसी के पत्ते का चूर्ण बनाकर मर्तबान में रख लें, जब भी चाय बनाएं तो दस पन्द्रह ग्राम इस चूर्ण का प्रयोग करें यह चाय ज्वर, दमा, जुकाम, कफ तथा गले के रोगों के लिए बहुत लाभकारी हैं। तुलसी का काढ़ा बनाने के लिए तीन चार काली मिर्च के साथ तुलसी की सात आठ पत्रितयों को रगड़ लें और अच्छी तरह मिलाकर एक गिलास द्रव तैयार करें इक्कीस दिनों तक सुबह लगातार ख़ाली पेट इस काढ़े का सेवन करने से मस्तिष्क की गर्मी दूर होती है और उसे शांति मिलती हैं। क्योंकि यह काढ़ा हृदयोत्तेजक होता है, इसलिए यह हृदय को पुष्ट करता है और हृदय संबंधी रोगों से बचाव करता हैं। एसिडिटी संधिवात मधुमेह, स्थूलता, खुजली, यौन दुर्बलता, प्रदाह आदि अनेक बीमारियों के उपचार के लिए तुलसी की चटनी बनाई जा सकती हैं। इसके लिए लगभग दस-दस ग्राम धानिया, पुदिना लें उसमें थोड़ा सा लहसुन अदरख, सेंधा नमक, खजूर का गुड़, अंकुरित मेथी, अंकुरित चने, अंकुरित मूग, तिल और लगभग पांच ग्राम तुलसी के पत्ते मिलाकर महीन पीस लें। अब इसमें एक नींबू का रस और लगभग पन्द्रह ग्राम नारियल की छीन डाले। इस चटनी को रोटी के साथ या साग में मिलाकर खाया जा सकता हैं। चटनी से कैल्शियम, पोटेशियम, गंधाक, आयरन, प्रोटीन तथा एन्जाइम आदि हमारे शरीर को प्राप्त होते हैं। एक बात ध्यान रखें कि यह चटनी दो घांटे तक ही अच्छी रहती है। अत: इसका प्रयोग सदा ताजा बनाकर ही करें दो घांटे के बाद इसके गुण में परिवर्तन आ जाता हैं। इस चटनी को कभी फ्रिज में नहीं रखें। शीतऋतु में तुलसी का पाक भी एक गुणकारी औषधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता हैं। इसके लिए तुलसी के बीजों को निकाल कर आटे जैसा बारीक पीस लें अब लगभग 125 ग्राम चने के आटे में मोयन के लिए देसी घी व थोड़ा सा दूध डालकर उसे लोहे या पीतल की कड़ाही में घी डालकर धीमी आंच पर भूनें। बाद में लगभग 125 ग्राम खोआ डालकर, उसे भूनें इसके बात उसमें बादाम की गिरि व तुलसी के बीजों का चूर्ण मिला लें। जब लाल हो जाए, तो इसमें इलायची व काली मिर्च ड़ालकर इस मिश्रण को तुरंत उतार लें। अब मिश्री की चाशनी में केसर डालकर, इस मिश्रण को उसमें डाल दें और अच्छी तरह मिलाएं, गाढ़ा होने पर थाली में ठंड़ा कर टुकड़े करें सर्दी में प्रतिदिन 20 से 100 ग्राम मात्रा दूध के साथ खाने से बल वीर्य बढ़ता हैं। इससे पेट के रोग वातजन्य रोग, शीघ्रपतन, कामशीलता, मस्तिष्क की कमज़ोरी, पुराना जुकाम, कफ आदि में बहुत लाभ होता हैं। अरिष्ट आसव बनाने के लिए 100 ग्राम बबूल की छाल को लगभग डेढ़ किलो पानी में तब तक उबालें जब तक कि पानी एक चौथाई न हो जाएं। अब इसे छानकर इसमें लगभग अस्सी ग्राम तुलसी का चूर्ण, पांच सौ ग्राम गुड़, 10 ग्राम पीपल तथा 80 ग्राम आंवले के फूल मिला दें। काली मिर्च, जायफल, दालचीनी,ाीतलचीनी, नागकेसर, तमालपत्र तथा छोटी इलायचीं, | ||||||||||||
;टैगोर व मदर टेरेसा की जयंती पर विशेष डाक टिकट व ट्रेन
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विभिन्न क्षेत्रों भारत में प्रथम
6. फील्ड मार्शल- S.H.F.J. मानेकशा 9. वायसराय एक्जिक्यूटिव कौंसिल के प्रथम भारतीय सदस्य- एस. पी. सिन्हा 26. भारत में निर्मित प्रथम भारतीय फिल्म (silent film)- राजा हरिश्चन्द्र, 1913 में 27. भारत में निर्मित प्रथम भारतीय फिल्म (silent film) के निर्माण कर्ता- दादा साहेब फाल्के 28. प्रथम भारतीय रंगीन फिल्म- किशन कन्हैया (1937) 29. सिनेमास्कोप फिल्म- कागज के फूल (1959) 30. लाइफ टाइम अचिवमेंट के ऑस्कर पुरस्कार विजेता- सत्यजीत राय (1992) 31. बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइन ऑस्कर विजेता- भानु अथैया (1982) 39. किसी विधानसभा की प्रथम महिला अध्यक्ष- श्रीमती शन्नो देवी 45. ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतने वाली प्रथम भारोत्तोलक- कर्णम मल्लेश्वरी देवी (सिडनी, 2000) 46. शतरंज में प्रथम विश्व चैम्पियन भारतीय - विश्वनाथन आनंद 49. दलित वर्ग से प्रथम लोकसभा अध्यक्ष- G. M. C. बालयोगी 51. भारत की प्रथम महिला एयर वाईस मार्शल- पी. बंदोपाध्याय 59. प्रथम विश्व सुन्दरी (मिस वर्ड)- कु. रीता फारिया 62. अंतरराष्ट्रीय महिला क्रिकेट में 100 विकेट लेने वाली प्रथम महिला- डायना एडुलजी | ||||||||||||
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विषय सूची
योग्यता, कौशल (Ability)
सलाह, परामर्श, मशवरा (Advice)
क्रोध, ग़ुस्सा, ताव (Anger)
सौंदर्य, सुंदरता, शबाब (Beauty)
पुस्तक, किताब, ग्रंथ (Book)
परिवर्तन, बदलना, अस्थिर (Change)
चरित्र, स्वभाव, ख़ासियत (Character)
दया, सहानुभूति, मेहरबानी (Compassion)
प्रतियोगिता, मुक़ाबला (Competition)
आत्मविश्वास, निश्चय (Confidence)
साहस, हिम्मत, पराक्रम (Courage)
कायर (Coward)
सृजन, रचना, निर्माण (Creation)
मृत्यु, अंत, ख़तम, नाश (Death)
अनुशासन, आत्मसंयम (Discipline)
दान, चंदा (Donation)
सपना, ख़याल (Dream)
कर्तव्य, धर्म, फर्ज़ (Duty)
शिक्षा (Education)
दुश्मन, शत्रु, विरोधी (Enemy)
बुराई, दुष्ट (Evil)
डर, भय, ख़ौफ़ (Fear)
दोस्ती, मित्रता, मैत्री (Friendship)
मज़ाकिया, अजीब (Funny)
भगवान, प्रभु, अल्लाह (God)
भलाई, साधुता, भद्रता (Goodness)
सुख, आनंद, ख़ुशी (Happiness)
घृणा, नफ़रत, द्वेष (Hate)
स्वास्थ्य, सेहत (Health)
दिल, ह्रदय (Heart)
इतिहास, प्राचीन (History)
घर, कुटुंब, निवास (Home)
ईमानदारी, सच्चाई (Honesty)
मनुष्य, मानव (Human)
अन्याय, बेइंसाफी (Injustice)
प्रेरणादायक (Inspirational)
अपमान, तिरस्कार (Insult)
बुद्धिमान, मनीषी (Intelligent)
यात्रा, सैर (Journey)
न्याय, इंसाफ (Justice)
ज्ञान, विद्या, बोध (Knowledge)
भाषा, बोली (Language)
आलस्य, आलस (Laziness)
नेतृत्व, अगुआई, संचालन (Leadership)
सीखना, जानना, प्राप्त करना (Learn)
झूठ, असत्य, चालबाज़ी (Lie)
जीवन, प्राण (Life)
सुनना, श्रवण, ध्यान देना (Listen)
प्यार, प्रेम, मुहब्बत (Love)
भाग्य, तक़दीर, मुकद्द (Luck)
स्मृति, याद, स्मरणशक्ति (Memory)
ग़लती, भूल, दोष (Mistake)
नम्रता, विनयशीलता (Modesty)
धन, मुद्रा, स्र्पये, माल (Money)
मां, जननी, माता (Mother)
प्रेरक, उत्तेजित करना (Motivational)
प्रकृति, क़ुदरत (Nature)
नव वर्ष, नया साल (New Year)
अवसर, मौक़ा (Opportunity)
धैर्य, सब्र, सहनशीलता (Patience)धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है | ~ डिजराइली वह व्यक्ति महान है,जो शांतचित्त होकर धैर्यपूर्वक कार्य करता है | ~ डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन धैर्य और परिश्रम से हम वह प्राप्त कर सकते हैं, जो शक्ति और शीघ्रता से कभी नहीं कर सकते | ~ ला फाण्टेन
शांति, अमन, चैन (Peace)शांति, बौद्धिक क्षमता में कई गुना इजाफा करती है | ~ अज्ञात
व्यक्तिगत, निजी, आत्म (Personal)मनुष्य अपनी क्षमताओं की कभी कदर नहीं करता, वह हमेश उस चीज की आस लगाये रहता है जो उसके पास नहीं है | ~ हेलेन केलर कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं | ~ बालगंगाधर तिलक जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते | ~ महात्मा बुद्ध मन की दुर्बलता से अधिक भयंकर और कोई पाप नहीं है। -स्वामी विवेकानंद अपने विचारों पर नजर रखिए | किसी से यह अपेक्षा मत कीजिए की वह आपकी सहायता करेगा | आपका जन्म किसी अन्य की सनक को पूरा करने के लिए नहीं हुआ हैं | अपने विचारो और बातों मैं तालमेल रखें | हम हमेशा खुद को खोजते हुए दूसरों की कहानियों में प्रवेश कर जाते हैं | ~ एमरे करतेश सिद्धांत न त्यागें, चाहे ऐसा करने वाले आप अकेले क्यों न हों | ~ जॉन एडम्स मूर्खों से कभी तर्क मत कीजिये। क्योंकि पहले वे आपको अपने स्तर पर लायेंगे और फिर अपने अनुभवों से आपकी धुलाई कर देंगे। कष्ट सहने के फलस्वरूप ही हमें बुद्धि – विवेक की प्राप्ति होती है। – डा. राधाकृष्ण
राजनीतिक, सियासी (Political)चुनाव जनता को राजनीतिक शिक्षा देने का विश्वविधालय है | ~ जवाहरलाल नेहरू
गरीबी, निर्धनता, तंगी (Poverty)कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है | ~ चाणक्य गरीबों के बहुत से बच्चे होते हैं , अमीरों के सम्बन्धी | ~ एनॉन गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है । ~ महात्मा गाँधी गरीब वह है जिसकी अभिलाषायें बढी हुई हैं । ~ डेनियल निर्धनता से मनुष्य मे लज्जा आती है । लज्जा से आदमी तेजहीन हो जाता है । निस्तेज मनुष्य का समाज तिरस्कार करता है । तिरष्कृत मनुष्य में वैराग्य भाव उत्पन्न हो जाते हैं और तब मनुष्य को शोक होने लगता है । जब मनुष्य शोकातुर होता है तो उसकी बुद्धि क्षीण होने लगती है और बुद्धिहीन मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है । ~ वासवदत्ता , मृच्छकटिकम में
प्रशंसा, बड़ाई (Praise)आत्म-प्रशंसा ओछेपन का चिन्ह है | ~ वैस्कल जिन्हें कहीं से प्रशंसा नहीं मिलती, वे आत्म-प्रशंसा करते हैं | ~ अज्ञात अपनी प्रशंसा के गीत गाना स्वयं को हीन साबित करना है | सच्ची बड़ाई उसी की है, जिसकी शत्रु भी प्रशंसा करे | ~ अज्ञात जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है | ~ महात्मा गांधी
समस्या, मसला (Problem)विपत्ति मनुष्य को विचित्र साथियों से मिलाती है | मैं अति प्रतिभाशाली व्यक्ति नहीं हूं, लेकिन में निचित तौर पर अधिक जिज्ञासु हूं और किसी भी समस्या को सुलझाने में अधिक देर तक लगा रहता हूं | ~ अल्बर्ट आइंस्टीन आपतियां हमें आत्म-ज्ञान कराती हैं,ये हमें दिखा देती हैं कि हम किस मिट्टी के बने हैं | ~ जवाहरलाल नेहरु आपदा ही एक ऐसी स्थिति है,जो हमारे जीवन कि गहराइयों में अन्तर्दृष्टि पैदा करती है | ~ विवेकानन्द हमारी अधिकतर बाधाएं पिघल जाएंगी, अगर उनके सामने दुबकने की बजाय हम उनसे निडरतापूर्वक निपटने का मानस बनाएं| ~ ओरिसन स्वेट मार्डन हम अपनी समस्याओं को उसी सोच के साथ नहीं सुलझा सकतें, जिस सोच के साथ हमने उनका निर्माण किया था| ~ अल्बर्ट आइंस्टीन इस दुनिया की असली समस्या यह है कि मूर्ख और अड़ियल लोग तो अपने बारे में हमेशा पक्के होते हैं ( कि वे सही हैं ) किंतु बुद्धिमान लोग हमेशा संदेह में रहते हैं ( कि मैं गलत तो नहीं हूं ) | विकट परिस्थितियां ही महापुरुषों का विधालय है | ~ अरस्तू आनंद विनोद के सामने कठिनाईयां पिघल जाती है | ~ स्वेट मार्डेन आपात स्थिति में, मन को डांवाडोल नहीं होने देना चाहिए | ~ महावीर स्वामी मुसीबतों से दुखी न् हो, क्योंकि दुखी होना मूर्खों का काम है | ~ हजरत अली विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला | ~ मुंशी प्रेमचंद जब सपने और इच्छाएं पर्याप्त बड़े होते हैं, परिस्थितियों से कोई फर्क नहीं पड़ता है | बेहतर विकल्प के लिए समस्याओं से मुकाबला करना चाहिए | तभी आप में ‘स्किल’ आते हैं | परेशानियों से डरकर किसी दूसरे का सहारा लेने कि आदत न पाले तो बेहतर है |
वादा, वचन, प्रतिज्ञा (Promise)शाशक के पास वचन तोड़ने के हमेशा वैधानिक कारण होते हैं| ~ मैकियावेली
अभिमानी, घमंडी, दंभी, गर्व (Proud)वीर का असली दुश्मन उसका अहंकार है | ~ अज्ञात आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर है | ~ प्रेमचन्द जिसने गर्व किया, उसका पतन अवश्य हुआ है | ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती मनुष्य जितना छोटा होता है, उसका अंहकार उतना ही बड़ा होता है | ~ वाल्टेयर ज्यों-ज्यों अभिमान कम होता है, कीर्ति बढ़ती है | ~ यंग जो अहंकारपूर्वक प्रातः जलपान करता है, उसको सायंकाल का भोजन तिरस्कार से मिलता है | ~ फ्रेंकलिन
सज़ा, दंड (Punishment)दंड द्वारा प्रजा की रक्षा की जानी चाहिए लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिए | ~ रामायण
धर्म, मज़हब (Religion)जो उपकार करे, उसका प्रत्युपकार करना चाहिए, यही सनातन धर्म है | ~ वाल्मीकि प्रलोभन और भय का मार्ग बच्चों के लिए उपयोगी हो सकता है| लेकिन सच्चे धार्मिक व्यक्ति के दृष्टिकोण में कभी लाभ हानि वाली संकीर्णता नहीं होती| ~ आचार्य तुलसी मनुष्य की धार्मिक वृत्ति ही उसकी सुरक्षा करती है| ~ आचार्य तुलसी धार्मिक व्यक्ति दुःख को सुख में बदलना जानता है| ~ आचार्य तुलसी धार्मिक वृत्ति बनाये रखने वाला व्यक्ति कभी दुखी नहीं हो सकता और धार्मिक वृत्ति को खोने वाला कभी सुखी नहीं हो सकता| ~ आचार्य तुलसी अहिंसा ही धर्म है, वही जिंदगी का एक रास्ता है | ~ महात्मा गांधी अभागा वह है, जो संसार के सबसे पवित्र धर्म कृतज्ञता को भूल जाती है | ~ जयशंकर प्रसाद
संकल्प, प्रण (Resolution)इस संसार में प्रत्येक वस्तु संकल्प शक्ति पर निर्भर है | ~ डिजरायली
सम्मान, प्रतिष्ठा, आदर (Respect)आत्म सम्मान की रक्षा, हमारा सबसे पहला धर्म है | ~ प्रेमचन्द यदि सम्मान खोकर आय बढती हो, तो उससे निर्धनता श्रेयस्कर है | ~ शेख सादी दूसरों का सम्मान करो, लोग तुम्हारा भी सम्मान करेंगे | ~ कन्फ्यूशियस
क्रांति (Revolution)क्रांति का उदय सदा पीड़ितों के हृदय एवं त्रस्त व्यक्तियों के अन्तःकरण में हुआ करता है | ~ अज्ञात क्रांति का अर्थ होता है अतीत और भविष्य के बीच एक जबर्दस्त संघर्ष | ~ फिदेल कास्त्रो कुशासन के प्रति विद्रोह करना, ईश्वर की आज्ञा मानना है | ~ फ्रेंकलिन जहां कहीं अन्याय के चरण पड़ते हैं, वहां अंततः विद्रोह का ज्वालामुखी फूटता है | ~ अज्ञात “घूस का च्यवनप्राश खा कर न दीर्घायु बनो, ईमान की मिसाल अब मशाल बनके जल उठी” ~ राजीव चतुर्वेदी
त्याग, न्योछावर, बलिदान (Sacrifice)प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है | ~ जयशंकर प्रसाद महान त्याग से ही महान कार्य सम्भव है | ~ स्वामी विवेकानंद यश त्याग से मिलता है, धोखाधड़ी से नहीं | ~ प्रेमचन्द अच्छे व्यवहार छोटे-छोटे त्याग से बनते है | ~ एमर्सन
दुख, उदास, म्लान (Sad)दुःख की उपेक्षा करो, वह कम हो जाएगा | ~ सद्गुरु श्रीब्रह्मचेतन्य अन्याय सहने वाले से ज्यादा दुःखी, अन्याय करने वाला होता है | ~ प्लेटो किसी दुःखी व्यक्ति के लिए थोड़ी सहायता, ढेरों उपदेशों से कहीं ज्यादा अच्छी है | ~ बुलवर
विज्ञान (Science)धर्म, कला और विज्ञान वास्तव में एक ही वृक्ष की शाखा – प्रशाखाएं हैं | ~ अल्बर्ट आइंस्टीन
शांत, चुप, ख़ामोश (Silent)प्रत्येक स्थान और समय बोलने के योग्य नहीं होते, कभी-कभी मौन रह जाना बुरी बात नहीं | वाणी का वर्चस्व रजत है किंतु मौन का मूल्य स्वर्ण के समान है | कभी-कभी मौन रह जाना, सबसे तीखी आलोचना होती है | ~ अज्ञात धनुष से छूटा हुआ तीर ओर मुख से निकला हुआ शब्द कभी वापस नहीं लौटता | ~ अज्ञात इसका खेद अनेक बार हुआ कि में बोल क्यों पड़ा | ~ पाइथोगोरस बोलने में समझदारी से काम लेना, वाक्पटुता से अच्छा है | ~ बेकन थोड़ा पढ़ना और अधिक सोचना, कम बोलना और अधिक सुनना, यही बुद्धिमान बनने का उपाय है | जो झुकना जानता है, दुनिया उसे उठाती है, जो केवल अकड़ना जानता है, दुनिया उसे उखाड़ फेंकती है | खामोश रहो या ऐसी बात कहो जो ख़ामोशी से बेहतर हो | ~ पाइथोगोरस मौन बातचीत की एक महान् कला है | ~ हैजलिट तुम्हे प्रत्येक का उपदेश सुनना चाहिए जबकि अपना उपदेश कुछ ही व्यक्तियों को दो | जितना दिखाते हो उससे ज्यादा तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए |
मुसकान, मुसकुराहट (Smile)मुस्कान प्रेम की भाषा है | ~ हेवर मुस्कान एक शक्तिशाली हथियार हैं आप इस से फोलाद भी तोड़ सकते हैं| हंसी प्रकृति की सबसे बड़ी नियामत है | ~ डॉ. लक्ष्मणपति वार्ष्णेय हंसी मन की गांठें बड़ी आसानी से खोल देती है | ~ महात्मा गांधी
आत्मा, रूह (Soul)सबसे खतरनाक वह दिशा होती है, जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए | ~ अवतार सिंह पाश अन्तरात्मा हमें न्यायाधीश के समान दण्ड देने से पूर्व मित्र की भांति चेतावनी देती है | ~ अज्ञात आवेश कोई भावनात्मक ऊर्जा नहीं, बल्कि आत्मा और बाहरी दुनिया का टकराव है।- आंद्रेई तारकोव्स्की हमेशा अपनी आत्मा की आवाज सुनो | शरीर के मामले में जो स्थान साबुन का है, वही आत्मा के संदर्भ में आंसू का है | ~ यहूदी कहावत जो अवगुण तुम्हे दूसरों में दृष्टिगत होते हैं, उसे अपने भीतर न रहने दो | ~ स्प्रैट कोई अभियोक्ता इतना शक्तिशाली नहीं है, जितना कि अपना अन्तःकरण | ~ सोफोक्लीज अन्तःकरण आत्मा की वाणी है | ~ जे. जे. रूसो सबसे उत्तम तीर्थ निश्चल मन है | ~ शंकराचार्य हमें लोहे के पुट्ठे और इस्पात के स्नायु चाहिए, जिनमें वज्र सा मन निवास करे |~ स्वामी विवेकानंद
अध्ययन, पढ़ना (Study)दिमाग के लिए अध्ययन कि उतनी ही जरूरत है,जितनी शरीर को व्यायाम कि | ~ जोसफ एडिसन इतिहास के अध्ययन से मनुष्य बुद्धिमान बनता है | ~ बेकन चरित्रहीन शिक्षा, मानवताविहीन विज्ञान ओर नैतिकताविहीन व्यापार खतरनाक होते हैं | ~ सत्य साईंबाबा अध्ययन से सरल कोई मनोरंजन नहीं, न कोई आनन्द इतना चिरस्थायी है | ~ लेडी मौण्टेग्यू सरस्वती से बढ़कर कोई वैध नहीं और उसकी साधना से बढ़कर कोई औषध नहीं | ~ अज्ञात वस्तुएं बल से छीनी या धन से खरीदी जा सकती हैं, किंतु ज्ञान केवल अध्ययन से ही प्राप्त हो सकता है | जितना अध्ययन करते हैं, उतना ही हमें अपने अज्ञान का आभास होता जाता है | ~ स्वामी विवेकानंद प्रकृति की अपेक्षा अध्ययन के द्वारा अधिक मनुष्य महान बने हैं | ~ सिसरो भविष्य का अनुमान लगाने के लिए अतीत का अध्ययन करो | ~ कन्फ्यूशियस
सफलता, विजय (Success)समस्त सफलताएं कर्म की नींव पर आधारित होती हैं | ~ एंथनी रॉबिन्स जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते | ~ गौत्तम बुद्ध जो अकले चलते हैं, वे शीघ्रता से बढ़ते हैं | ~ नेपोलियन सफलता का कोई रहस्य नहीं है, वह केवल अत्यधिक परिश्रम चाहती है | ~ हेनरी जिस व्यक्ति में सफलता के लिए आशा और आत्मविश्वास है, वही व्यक्ति उच्च शिखर पर पहुंचते हैं | लगातार प्रयत्न करने वाले लोगों की गोद में सफलता स्वयं आकर बैठ जाती हैं | ~ भारवि कुछ लोग सफलता के सपने देखते हैं जबकि अन्य व्यक्ति जागते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं| ~ महात्मा गांधी सच्चा प्रयास कभी निष्फल नहीं होता | ~ विल्सन वही सफल होता है, जिसका काम उसे निरन्तर आनन्द देता है | ~ थोरो ध्येय की सफलता के लिए पूर्ण एकाग्रता और समर्पण आवश्यक है | ~ ब्राउन सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है | ~ प्रेमचन्द अपने ऊपर विजय प्राप्त करना, सबसे बड़ी विजय है | ~ अज्ञात एक सफ़ल मनुष्य होने के लिये सुदृढ़ व्यक्तित्व की आवश्यकता है | ~ अज्ञात असफलता का मतलब यह नहीं कि आप असफल हैं, इसका मतलब सिर्फ इतना है कि आप अब तक सफल नहीं हो पाए हैं| ~ रॉबर्ट शुलर हमें अपनी असफलताओं पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए | सफलता के बारे में दूसरे बात करें तो ज्यादा अच्छा होता है| लोग आपसे आपकी असफलता के बारें में नहीं पूछते, यह सवाल तो आपको अपने आप से पूछना होता है| ~ बोमन ईरानी ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है। महान संकल्प ही महान फल का जनक होता है | ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी एकाग्रता से ही विजय मिलती है। सफलता अत्यधिक परिश्रम चाहती है। जीवन में सफलता का रहस्य, हर आने वाले अवसर के लिए तैयार रहना है | ~ डिजरायली आत्मविश्वास सफलता का प्रमुख रहस्य है | ~ इमर्सन असफलता केवल यह सिद्ध करती है कि प्रयत्न पूरे मन से नहीं हुआ | ~ श्रीराम शर्मा आचार्य जो पढ़ते हो, उसे अमल में लाना सीखो, यही उन्नति का मार्ग है | ~ स्वामी रामतीर्थ सिर्फ सपनों से कुछ नहीं होता, सफलता प्रयासों से हासिल होती है | ~ अज्ञात पारस्परिक व्यवहार प्रगति का सार है | ~ बक्टन यदि आप सफल होना चाहते हैं, तो अपना ध्यान समस्या खोजने में नहीं समाधान खोजने में लगाइए | सफलता कर्म करने से मिलती है | अपनी असफलताओं को खुद पर हावी मत होने दो, बल्कि असफलताओं को ही अपनी सफलता की सीढी के रूप में इस्तेमाल करो | दुनिया आपको मुफ्त में कुछ नहीं देती | सफलता जैसी बेशकीमती चीज तो बिलकुल नहीं | अतः सफलता का पकवान चखने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी | सफल व्यक्ति वही है जो सुबह उठकर पहले यह तय करता है कि आज उसे क्या-क्या काम करने है और रात तक वह उन सारे कामों को कई परेशानियों के बाद भी पूरा कर लेता है |
प्रतिभा, योग्यता, कौशल (Talent)जब जादू के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं होता तो वह कला बन जाता हैं | ~ बेन ओकरी एश्वर्य उपाधि में नहीं वरन् इस चेतना में है कि हम उसके योग्य हैं | ~ अरस्तू वास्तव में बड़ा वह है जो, उदार है |
लक्ष्य, योजना, गंतव्य (Target)लक्ष्य प्राप्ति के लिये सहज प्रव्त्तियों को होम कर देना होता है | ~ सम्पूर्णानन्द सब मनुष्यों के कर्मों का लक्ष्य उन्नति कि चरम सीमा को प्राप्त करना है | ~ सत्य साईं बाबा अपने लक्ष्यों को पूरा होते देखने का सिद्धान्त जीवन के सभी क्षेत्रों में काम करता है | जब भी लक्ष्य तय करो, उसके लिए जुनूनी होना होगा | नाकामियों का आप पर नकारात्मक असर नहीं होना चाहिए | लक्ष्य को हासिल करने में कितना समय लग रहा है, उससे विचलित होने की जरुरत नहीं है | सार्थकता हासिल करने के लिए स्पष्ट तस्वीर बिल्कुल अनिवार्य है | जहां संकल्प बड़ा होता हैं, वहां विपदा और संकट बड़े नहीं हो सकते | ~ मैकियावेली लक्ष्य जितना बड़ा होता है, उसका रास्ता भी उतना ही लंबा और बीहड़ होता है | ~ साने गुरूजी सबकी सुनने और मानने वाला किसी नतीजे पर नहीं पहुंचता | अपने जीवन का कोई लक्ष्य बनाइये, क्योंकि लक्ष्यविहीन जीवन बिना पतवार की नाव के समान इधर-उधर भटकता रहता है | हमारा जीवन पक्षी है, केवल थोड़ी ही दूर तक उड़ सकता है, इसने पंख फैला दिए है, देखो, जल्दी से इसकी दिशा सोच लो |
शिक्षक, अध्यापक, उस्ताद, गुरु (Teacher)माता-पिता जीवन देते हैं, लेकिन जीने की कला तो शिक्षक ही सिखाते हैं | ~ अरस्तु गुरु की डांट-डपट पिता के प्यार से अच्छी है | ~ शेख सादी अपने विवेक को अपना शिक्षक बनाओ |
सोच, ख़याल, विचार, मत (Thinking)उस विचार को रोक पाना नामुमकिन है, जिसका वक्त आ गया हो | ~ विक्टर ह्यूगो संसार में न कोई तुम्हारा मित्र है न शत्रु | तुम्हारा अपना विचार ही, इसके लिए उत्तरदायी है | ~ चाणक्य व्यक्ति के पास जितने अधिक विचार होते हैं, उतने ही कम शब्दों में वह उनको अभिव्यक्त कर देता है | अच्छे विचार रखना भीतरी सुन्दरता है | ~ स्वामी रामतीर्थ मनुष्य अपने ह्रदय में जैसा विचारता है, वैसा ही बन जाता है | ~ बाइबिल महान विचार कार्यरूप में परिणत होकर महान कृतियां बन जाते हैं | ~ हेजलिट अपराधी : दुनिया के बाकी लोगों जैसा ही मनुष्य, सिवाय इसके कि वह पकड़ा गया है। कंजूस : वह व्यक्ति जो जिंदगी भर गरीबी में रहता है ताकि अमीरी में मर सके। अवसरवादी : वह व्यक्ति, जो गलती से नदी में गिर पड़े तो नहाना शुरू कर दे। अनुभव : भूतकाल में की गई गलतियों का दूसरा नाम । कूटनीतिज्ञ : वह व्यक्ति जो किसी स्त्री का जन्मदिन तो याद रखे पर उसकी उम्र कभी नहीं। दूसरी शादी : अनुभव पर आशा की विजय। मनोवैज्ञानिक : वह व्यक्ति, जो किसी खूबसूरत लड़की के कमरे में दाखिल होने पर उस लड़की के सिवाय बाकी सबको गौर से देखता है। नयी साड़ी : जिसे पहनकर स्त्री को उतना ही नशा हो जितना पुरुष को शराब की एक पूरी बोतल पीकर होता है। आशावादी : वह शख्स है जो सिगरेट मांगने पहले अपनी दियासलाई जला ले। राजनेता : ऐसा आदमी जो धनवान से धन और गरीबों से वोट इस वादे पर बटोरता है कि वह एक की दूसरे से रक्षा करेगा। आमदनी : जिसमें रहा न जा सके और जिसके बगैर भी रहा न जा सके। सभ्य व्यवहार : मुंह बन्द करके जम्हाई लेना । ज्ञानी : वह शख्स जिसे प्रभावी ढंग से, सीधी बात को उलझाना आता है। मनोचिकित्सक : जो भारी फीस लेकर आपसे ऐसे सवाल पूछता है, जैसे आपकी पत्नी आपसे यूं ही पूछती रहती है| समिति : वह व्यक्ति जो अकेले कुछ नहीं कर सकते, लेकिन यह निर्णय मिलकर करते है की साथ-साथ कुछ नहीं किया जा सकता| ईमानदार नेता : वह जिसे एक बार ख़रीद लिया जाए तो फिर जाए तो फिर वह ख़रीदा हुआ ही रहे| जिसके साथ श्रेष्ठ विचार रहते हैं, वह कभी भी अकेला नहीं रह सकता | ~स्वामी विवेकानंद हम दुनिया को नहीं बदल सकते, मगर दुनिया के प्रति अपना दृष्टिकोण तो बदल सकते हैं | ~ स्वामी रामदास
समय, काल, वक़्त (Time)समय पर कार्य नहीं करने से व्यक्ति लाभ और उन्नति से कोसों दूर हो जाता है | ~ बाबा फरीद भविष्य वर्तमान के द्वारा क्रय किया जाता है | ~ जॉनसन जो समय बचाते हैं, वे धन बचाते हैं और बचाया हुआ धन, कमाएं हुए धन के बराबर है | ~ महात्मा गांधी जो समय का ज्यादा दुरुपयोग करते हैं, वे ही समय की कमी की सबसे ज्यादा शिकायत करते हैं | ~ ब्रूयर समय पर किया हुआ थोड़ा सा भी कार्य उपकारी होता है | ~ योगवशिष्ठ बिता हुआ समय और मुख से निकले शब्द कदापि वापस नहीं आते | ~ कहावत जो अपने समय का सबसे ज्यादा दुरूपयोग करते हैं, वे ही समय की कमी की सबसे ज्यादा शिकायत करते हैं। -ब्रूयर जीवन छोटा ही क्यों न हो, समय की बर्बादी से वह और भी छोटा हो जाता है | ~ जॉनसन वर्तमान परिस्थिति में हम क्या करते, सोचते और विश्वास करते हैं, उसी से हमारा भविष्य तय होता है | सिर्फ अतीत की जुगाली करने से कोई लाभ नहीं हैं| सोने का प्रत्येक धागा मूल्यवान होता है, इसी प्रकार समय का प्रत्येक क्षण भी मूल्यवान होता है। -मेसन समय किसी की प्रतीक्षा नही करता। बीता हुआ समय और कहे हुए शब्द कदापि वापस नहीं आ सकते। -कहावत प्रकृति के सब काम धीरे-धीरे होते है। समय का उचित उपयोग करना समय को बचाना है। -बेकन समय महान चिकित्सक है। एक युग विशाल नगरों का निर्माण करता है, एक क्षण उसका ध्वंस कर देता है। -सेनेका हर दिन वर्ष का सर्वोत्तम दिन है। राजा: कुछ ऐसा लिखो जिसे पढ़ कर ख़ुशी में गम हो और गम में पढ़ो तो ख़ुशी हो? वजीर: यह समय बीत जायेगा! दौड़ना काफी नहीं है, समय पर चल पड़ना चाहिए | ~ फ़्रान्सीसी कहावत समय पर थोड़ा सा प्रयत्न भी आगे की बहुत-से परेशानियों को बचाता है। -कहावत बुद्धिमान लोग अतीत की घटनाओं पर नहीं पछताते, वे भविष्य की चिन्ता नहीं करते, केवल वर्तमान जगत में पूर्णतया कर्म करते हैं | सही काम करने के लिए समय हर वक्त ही ठीक होता हैं | – मार्टिन लूथर किंग जूनीयर जैसे नदी बह जाती है और लौटकर नहीं आती, उसी प्रकार रात और दिन मनुष्य की आयु लेकर चले जाते हैं, फिर नहीं आते। – महाभारत मैंने समय को नष्ट किया है। अब समय मुझको नष्ट कर रहा है। -शेक्सपीयर समय फिरने पर मित्र भी शत्रु हो जाते हैं। -गोस्वामी तुलसीदास हर संत का एक अतीत होता है और हर पापी का एक भविष्य| ~ ऑस्कर वाइल्ड सही टाइमिंग पर लगभग हर बात सकारात्मक तरीके से कही जा सकती है | हम आज अच्छे हैं, ये भी एक किस्म का पागलपन है | ~ एडवर्ड यंग वक्त को बर्बाद न् करो, क्योंकि जिन्दगी इसी से बनी है | ~ फ्रेंकलिन
विश्वास, यक़ीन, भरोसा (Trust)विश्वास से आश्चर्य-जनक प्रोत्साहन मिलता है। विश्वास करना एक गुण है, अविश्वास दुर्बलता कि जननी है | ~ महात्मा गांधी असन्तोष अपने ऊपर अविश्वास का फल है, यह कमजोर इच्छा का रूप है | ~ एमर्सन वह नास्तिक है, जो अपने आप में विश्वास नहीं रखता | ~ स्वामी विवेकानंद वे ही विजयी हो सकते है, जिन्हें विश्वास है कि वे विजयी होंगे | ~ वर्जिल विश्वास का अभाव अज्ञान है | ~ स्वामी रामतीर्थ विश्वास जीवन कि शक्ति है | ~ टालस्टाय
सच, सत्य, साँच (Truth)अगर आप सच बोलते हैं, तो आपको ज्यादा कुछ याद रखने की जरुरत नहीं है | ~ मार्क ट्वेन सत्य स्वयं सिद्ध नहीं है, उसे सिद्ध करना पड़ता है | वस्तुगत यथार्थ वास्तव में स्वप्न के भीतर एक और स्वप्न की तरह है | ~ एडगर एलन पो डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है | ~ प्रेमचंद असत् का अस्तित्व नहीं है और सत् का नाश नहीं है | ~ योगीराज श्रीकृष्ण
समझना, सुबोध (Understanding)ईश्वर ने समझ की कोई सीमा नहीं रखी है। - बेकन संघर्ष और उथल-पुथल के बिना जीवन बिल्कुल नीरस हो जाता है। इसलिए जीवन में आने वाली विषमताओं को सह लेना ही समझदारी है। – विनोबा भावे समझ मस्तिष्क का प्रकाश है। – विल्स
एकता, योग, मेल (Unity)एकता से हमारा अस्तित्व कायम रहता है, विभाजन से हमारा पतन होता है | ~ जॉन डिकिन्सन
विजेता, विजय, जीत (Winner)जीतता वह है जिसमें शौर्य,धैर्य,साहस,सत्व और धर्म होता है | ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
अक़्लमंद, चतुर, होशियार (Wise)सतर्कता तभी सार्थक होती है, जब सदैव बरती जाए | उपदेश देना सरल है, पर उपाय बताना कठिन | ~ रवीन्द्रनाथ टैगोर दुसरों के अनुभवों से लाभ उठाने वाला बुद्धिमान होता है | ~ जवाहरलाल नेहरू रोग, शत्रु और कर्ज अपने आप बढ़ते हैं। इन्हें तुंरत जड़ से ख़त्म कर देना चाहिए। आदत को अगर नहीं रोका जाय तो शीघ्र ही वे लत बन जाती हैं। प्रतिष्ठा बनाने में कई वर्ष लग जाते हैं, कलंक एक क्षण में लग जाता है | ~ अज्ञात गुस्सा आपको छोटा बनाता है, क्षमा आपको विस्तार देती है। परामर्श तो अनेक प्राप्त करते है,किन्तु उससे लाभ उठाना बुद्धिमानों को ही आता है | ~ साइरस सावधानी बुद्धिमानी की सबसे बड़ी संतान है | ~ विक्टर ह्यूगो निन्दा से बचने का अचूक एवं शीघ्र उपचार स्वयं को सुधार लेना ही है | ~ डिमास्थनीज किसी मित्र को अपना ऐसा भेद मत बताओ , जिसके जाहिर हो जाने पर बदनामी हो | ~ थेल्स नीतिसम्मत है कि स्वार्थवश भी दुर्जन व्यक्ति को साथ नहीं लेना चाहिए | ~ अज्ञात चतुर मनुष्य अपना ज्ञान छिपाकर रखता है, पर मूर्ख अपनी मूर्खता का प्रदर्शन करता है | ~ बाइबिल ना तो इतने कड़वे बनो की कोई थूक दे और ना ही इतने मीठे बनो की कोई निगल जाये | ~ टॉल्स्टॉय प्रेम सबसे करो, विश्वास कुछ पर करो, बुरा किसी का मत करो |
महिला, स्री (Woman)जीवन की कला को अपने हाथों से साकार कर नारी ने सभ्यता और संस्कृति का रूप निखारा है, नारी का अस्तित्व ही सुन्दर जीवन का आधार है | स्त्री की उन्नति या अवनति पर ही राष्ट्र की उन्नति निर्भर है | ~ अरस्तू सुयोग्य स्त्री परिवार की शोभा तथा गृह की लक्ष्मी है | ~ मनु स्त्रियों की मान-हानि साक्षात् लक्ष्मी और सरस्वती की मान हानि है | ~ सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
काम, कार्य, कृत्य (Work)परिश्रम वह चाबी है,जो किस्मत का दरवाजा खोल देती है | ~ चाणक्य किसी कार्य को खूबसूरती से करने के लिए मनुष्य को उसे स्वयं करना चाहिए | ~ नेपोलियन ईमानदारी और बुद्धिमानी के साथ किया हुआ काम कभी व्यर्थ नहीं जाता | ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी मनुष्य जन्म से नहीं बल्कि कर्म से शूद्र या ब्राह्मण होता है | ~ गौतम बुद्ध जो श्रम से लजाता है, वह सदैव परतंत्र रहता है | ~ शरण कार्य की अधिकता से उकताने वाला व्यक्ति, कभी कोई बड़ा कार्य नहीं कर सकता | ~ अब्राहम लिंकन अपने से हो सके, वह काम दूसरे से न कराना | ~ महात्मा गांधी सच्चा काम अहंकार और स्वार्थ को छोड़े बिना नहीं होता | ~ स्वामी रामतीर्थ काम की अधिकता नहीं, अनियमितता आदमी को मार डालती है | ~ महात्मा गांधी महान कार्य शक्ति से नहीं, अपितु उधम से सम्पन्न होते हैं | ~ जॉनसन पहले कहना और बाद में करना, इसकी अपेक्षा पहले करना और फिर कहना अधिक श्रेयस्कर है | ~ अज्ञात कमजोर आदमी हर काम को असम्भव समझता है जबकि वीर साधारण | ~ मदनमोहन मालवीय प्रतिभा एक प्रतिशत प्रेरणा और निन्यानवे प्रतिशत श्रम है | ~ एडीसन अच्छे कार्य करने के लिए कभी शुभ मुहूर्त मत पूछो | ~ अज्ञात बड़े कार्य, छोटे कार्यों से आरम्भ करना चाहिए | ~ शेक्सपियर स्वतंत्र वही है, जो अपना काम स्वयं कर लेता है | ~ विनोबा भावे योग्यता से बिताए हुए जीवन को,हमें वर्षों से नहीं बल्कि कर्मों के पैमाने से तौलना चाहिए | ~ शेरिडेन जागरण का अर्थ है कर्म में अवतीर्ण करना | ~ जयशंकर प्रसाद जो काम आ पड़े, साधना समझ कर पूरा करो | ~ स्वामी रामदास कहने की प्रकृति छोडो, करने का अभ्यास करो | ~ अज्ञात प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नजर आता है। जो अपने योग्य कर्म में जी जान से लगा रहता है,वही संसार में प्रशंसा का पात्र होता है | ~ ब्राह्मण ग्रन्थ कार्य उद्यम से सिद्ध होते है, मनोरथो से नही। गलत काम करने का कोई सही तरीका नहीं हैं | जीवन में सबसे ज्यादा आनंद उसी काम को करने में है जिसके बारे में लोग कहते हैं कि तुम नहीं कर सकते हो। आपकी बुद्धि ही आपका गुरु है। कीर्ति वीरोचित कार्यो की सुगन्ध है। जीवन में ऐसा काम करो कि परिवार, गुरु और परमात्मा तीनों तुमसे खुश रहें। – स्वामी ज्योतिनंद कर्म करने मे ही अधिकार है, फल मे नही। कर्म सरल है, विचार कठिन। अपने काम में सुन्दरता तलाशो| उससे सुंदर और कुछ हों ही नहीं सकता| ~ रूमी हमारे लिए चींटी से बढ़कर और कोई उपदेशक नहीं है। वह काम करती है और खामोश रहती है। अगर कुछ महत्व रखता है तो वह है कर्म और प्रेम| ~ सिगमंड फ्रोयड
चिंता, आकुलता (Worry)कार्य की अधिकता मनुष्य को नहीं मारती, बल्कि चिंता मारती है। – स्वेट मार्डेन अगर इन्सान सुख-दुःख की चिंता से ऊपर उठ जाए, तो आसमान की ऊंचाई भी उसके पैरों तले आ जाय। – शेख सादी चिंताएं, परेशानियां, दुःख और तकलीफें परिस्थितियों से लड़ने से नहीं दूर हो सकतीं, वे दूर होंगी अपनी अंदरूनी कमजोरी दूर करने से जिसके कारण ही वे सचमुच पैदा हुईं है। – स्वामी रामतीर्थ प्राणियों के लिए चिंता ही ज्वर है। – शंकराचार्य बिस्तर पर चिंताओं को ले जाना, पीठ पर गट्ठर बाँध कर सोना है। -हैली बर्टन चिंता रोग का मूल है। – प्रेमचंद चिंता करता हूँ मैं जितनी उस अतीत की, उस सुख की, उतनी ही अनंत में बनती जातीं रेखाएं दुःख की। – जयशंकर प्रसाद चिंता एक काली दिवार की भांति चारों ओर से घेर लेती है, जिसमें से निकलने की फिर कोई गली नहीं सूझती। – प्रेमचंद
युवा, जवानी (Youth)युवा होने का सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि भावनाओं का पुंज और उत्साह का स्त्रोत हो | ~ गणेश शंकर
Other Quotesस्वार्थ ही अशुभ संकल्पों को जन्म देता है | ~ गुरु गोविन्द सिंह स्वार्थ की माया अत्यन्त प्रबल है | ~ प्रेमचंद गरीबों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है | ~ सरदार वल्लभभाई पटेल महान वह है जो दृढतम निश्चय के साथ सत्य का अनुसरण करता है | ~ सेनेका महापुरुष की महत्ता इसी में है कि वह कभी भी निराश न हो | ~ थॉमसन जिसने कष्ट नहीं भोगा, वह अपनी शक्ति से अनभिज्ञ रहता है | क्षमा से बढ़कर ओर किसी बात में पाप को पुण्य बनाने की शक्ति नहीं है | ~ जयशंकर प्रसाद ईर्ष्या अपनी हीनता के बोध से जन्म लेती है | वह उसे दूर नहीं करती, सिर्फ दबाती है | ~ जैनेन्द्र अपराध करने के बाद भय उत्पन्न होता है ओर यही उसका दण्ड है | ~ वाल्टेयर किसी के अस्तित्व को मत मिटाओ | शांतिपूर्वक जियो ओर दूसरों को भी जीने दो | ~ महावीर स्वामी आपके पास जो है, उसके लिए कृतज्ञ रहने का विकल्प चुने……… आज ही, अभी | दुर्भाग्य घोड़े पर सवार होकर आता है और पैदल वापस जाता है | ~ फ़्रांसीसी लोकोक्ति आवश्यकता आविष्कार की जननी है | ~ कहावत संतुलित व्यक्ति दूसरों के गुणों को स्वीकार करते हैं, परंतु अपने महत्व को भी कम नहीं आंकते | संकल्प और सकारात्मक आत्म-चर्चा तभी तक उपयोगी है, जब तक कि हम अपनी अराधना ही न करने लगें | पूर्ण या आदर्श बनाने की कोशिश करने के बजाय तारीफ़ करना ज्यादा अच्छा होता है | सच तो यह है कि आशावाद और अपेक्षा के एहसास से भरे लोग शायद ही कभी निराश होते हैं | हमारी रूचि हमारे जीवन कि परख और हमारे मनुष्यत्व की पहचान है | ~ रस्किन अधिकारों का उपयोग नहीं करना, खुद के शोषण को आमंत्रण देना है | ~ विलियम पिट उपहार और विरोध तो सुधारक के पुरस्कार हैं | ~ प्रेमचंद प्रेम के बाद सहानुभूति मानव ह्रदय की पवित्रतम भावना है | ~ बर्क पूर्ण या आदर्श बनाने की कोशिश करने की बजाए तारीफ करना ज्यादा अच्छा होता है | जो दान अपनी कीर्ति-गाथा गाने को उतावला हो उठता है, वह अहंकार एवं आडम्बर मात्र रह जाता है | ~ हुट्टन उड़ान भरने की अपेक्षा, जब हम झुकते हैं, तब विवेक के अधिक निकट होते हैं | ~ वर्ड्सवर्थ बातचीत प्रिय हो, पर ओछी न हो, आश्चर्यजनक हो, पर असत्य न हो | ~ शेक्सपियर विश्व, रेखागणित के लिए भारत का ऋणी है, यूनान का नहीं | ~ डॉ. थिवो स्वयं को वश में रखने से ही मनुष्यत्व प्राप्त होता है | ~ हर्बर्ट स्पेन्सर विश्व ही महापुरुष हो खोजता है न कि महापुरुष विश्व को | ~ कालिदास महान लेखक, अपने पाठक का मित्र और शुभचिन्तक होता है | ~ मेकाले सद्व्यवहार से अच्छी और सस्ती कोई अन्य वस्तु नहीं | ~ एनन शक्ति का उपयोग परहित में करना चाहिए | ~ अज्ञात शब्द की शक्ति, हमारी सारी उन्नति का आधार है | ~ जैनेन्द्र कुमार
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ओ३म् (ॐ) नाम में हिन्दू, मुस्लिम या ईसाइ जैसी कोई बात नहीं है। यह सोचना कि ओ३म् किसी एक धर्म की निशानी है, ठीक बात नहीं, अपितु यह तो तब से चला आया है जब कोई अलग धर्म ही नहीं बना था। बल्कि ओ३म् तो किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है। यह तो अच्छाई, शक्ति, ईश्वर भक्ति और आदर का प्रतीक है। उदाहरण के लिए अगर हिन्दू अपने सब मन्त्रों और भजनों में इसको शामिल करते हैं तो ईसाई और यहूदी भी इसके जैसे ही एक शब्द आमेन का प्रयोग धार्मिक सहमति दिखाने के लिए करते हैं। मुस्लिम इसको आमीन कह कर याद करते हैं, बौद्ध इसे ओं मणिपद्मे हूं कह कर प्रयोग करते हैं। सिख मत भी इक ओंकार अर्थात एक ओ३म के गुण गाता है। अंग्रेज़ी का शब्द omni, जिसके अर्थ अनंत और कभी ख़त्म न होने वाले तत्त्वों पर लगाए जाते हैं (जैसे omnipresent, omnipotent) भी वास्तव में इस ओ३म् शब्द से ही बना है। इतने से यह सिद्ध है कि ओ३म् किसी मत, मज़हब या सम्प्रदाय से न होकर पूरी इंसानियत का है। ठीक उसी तरह जैसे कि हवा, पानी, सूर्य, ईश्वर, वेद आदि सब पूरी इंसानियत के लिए हैं न कि केवल किसी एक सम्प्रदाय के लिए।
यजुर्वेद [2/13, 40/15, 17] ऋग्वेद [1/3/7] आदि स्थानों पर तथा इसके अलावा गीता और उपनिषदों में ओ३म् का बहुत गुणगान हुआ है। मांडूक्य उपनिषद तो इसकी महिमा को ही समर्पित है।
वैदिक साहित्य इस बात पर एकमत है कि ओ३म् ईश्वर का मुख्य नाम है। योग दर्शन [1/27, 28] में यह स्पष्ट है। यह ओ३म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है - अ, उ, म । प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है। जैसे अ से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है। उ से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है। म से अनंत, अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है। ये तो बहुत थोड़े से उदाहरण हैं जो ओ३म् के प्रत्येक अक्षर से समझे जा सकते हैं। वास्तव में अनंत ईश्वर के अनगिनत नाम केवल इस ओ३म् शब्द में ही आ सकते हैं, और किसी में नहीं। वास्तव में हरेक ध्वनि हमारे मन में कुछ भाव उत्पन्न करती है। सृष्टि की शुरूआत में जब ईश्वर ने ऋषियों के हृदयों में वेद प्रकाशित किये तो हरेक शब्द से सम्बंधित उनके निश्चित अर्थ ऋषियों ने ध्यान अवस्था में प्राप्त किये। ऋषियों के अनुसार ओ३म् शब्द के तीन अक्षरों से भिन्न भिन्न अर्थ निकलते हैं, जिनमें से कुछ ऊपर दिए गए हैं। ऊपर दिए गए शब्द-अर्थ सम्बन्ध का ज्ञान ही वास्तव में वेद मन्त्रों के अर्थ में सहायक होता है और इस ज्ञान के लिए मनुष्य को योगी अर्थात ईश्वर को जानने और अनुभव करने वाला होना चाहिए। परन्तु दुर्भाग्य से वेद पर अधिकतर उन लोगों ने कलम चलाई है जो योग तो दूर, यम नियमों की परिभाषा भी नहीं जानते थे। सब पश्चिमी वेद भाष्यकार इसी श्रेणी में आते हैं। तो अब प्रश्न यह है कि जब तक साक्षात ईश्वर का प्रत्यक्ष ना हो तब तक वेद कैसे समझें ? तो इसका उत्तर है कि ऋषियों के लेख और अपनी बुद्धि से सत्य असत्य का निर्णय करना ही सब बुद्धिमानों को अत्यंत उचित है। ऋषियों के ग्रन्थ जैसे उपनिषद्, दर्शन, ब्राह्मण ग्रन्थ, निरुक्त, निघंटु, सत्यार्थ प्रकाश, भाष्य भूमिका इत्यादि की सहायता से वेद मन्त्रों पर विचार करके अपने सिद्धांत बनाने चाहियें और इसमें यह भी है कि पढने के साथ साथ यम नियमों का कड़ाई से पालन बहुत जरूरी है। वास्तव में वेदों का सच्चा स्वरुप तो समाधि अवस्था में ही स्पष्ट होता है, जो कि यम नियमों के अभ्यास से आती है। व्याकरण मात्र पढने से वेदों के अर्थ कोई भी नहीं कर सकता। वेद समझने के लिए आत्मा की शुद्धता सबसे आवश्यक है। उदाहरण के लिए संस्कृत में गो शब्द का वास्तविक अर्थ है गतिमान। इससे इस शब्द के बहुत से अर्थ जैसे पृथ्वी, नक्षत्र आदि दिखने में आते हैं। परन्तु मूर्ख और हठी लोग हर स्थान पर इसका अर्थ गाय ही कहते हैं और मंत्र के वास्तविक अर्थ से दूर हो जाते हैं। वास्तव में किसी शब्द के वास्तविक अर्थ के लिए उसके मूल को जानना जरूरी है, और मूल बिना समाधि को जाना नहीं जा सकता। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि हम वेद का अभ्यास ही न करें। किन्तु अपने सर्व सामर्थ्य से कर्मों में शुद्धता से आत्मा में शुद्धता धारण करके वेद का अभ्यास करना सबका कर्त्तव्य है। यह शब्द अर्थ सम्बन्ध योगाभ्यास से स्पष्ट होता जाता है। परन्तु कुछ उदाहरण तो प्रत्यक्ष ही हैं। जैसे म से ईश्वर के पालन आदि गुण प्रकाशित होते हैं। पालन आदि गुण मुख्य रूप से माता से ही पहचाने जाते हैं। अब विचारना चाहिए कि सब संस्कृतियों में माता के लिए क्या शब्द प्रयोग होते हैं। संस्कृत में माता, हिन्दी में माँ, उर्दू में अम्मी, अंग्रेज़ी में मदर, मम्मी, मॉम आदि, फ़ारसी में मादर, चीनी भाषा में माकुन इत्यादि, सो इतने से ही स्पष्ट हो जाता है कि पालन करने वाले मातृत्व गुण से म का और सभी संस्कृतियों से वेद का कितना अधिक सम्बन्ध है। एक छोटा बच्चा भी सबसे पहले इस म को ही सीखता है और इसी से अपने भाव व्यक्त करता है। इसी से पता चलता है कि ईश्वर की सृष्टि और उसकी विद्या वेद में कितना गहरा सम्बन्ध है। यम नियम -- यम नियमों का अभ्यास इसका सबसे बड़ा साधन है, यम व नियम संक्षेप से नीचे दिए जाते हैं।
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मुझे हिन्दुस्तानी, हिन्दू और हिन्दी भाषी होने का गर्व है | |