नागवंश
नागवंश प्राचीन काल का एक राजकुल था। इस वंश के कुछ सिक्कों पर बृहस्पति नाग, देवनाग और गणपति नाग नाम लिखे प्राप्त हुए हैं। नागवंश का शासनकाल 150 से 250 विक्रम संवत के मध्य जान पड़ता है।[1]
प्रामाणिकता
प्राचीन काल में नागवंशियों का राज्य भारत के कई स्थानों में तथा सिंहल में भी था। पुराणों में स्पष्ट लिखा है कि सात नागवंशी राजा मथुरा भोग करेंगे, उसके पीछे गुप्त राजाओं का राज्य होगा। नौ नाग राजाओं के जो पुराने सिक्के मिले हैं, उन पर 'बृहस्पति नाग', 'देवनाग', 'गणपति नाग' इत्यादि नाम मिलते हैं। ये नागगण विक्रम संवत 150 और 250 के बीच राज्य करते थे। इन नव नागों की राजधानी कहाँ थी, इसका ठीक पता नहीं है, पर अधिकांश विद्वानों का मत यही है कि उनकी राजधानी 'नरवर' थी। मथुरा और भरतपुर से लेकर ग्वालियर और उज्जैन तक का भू-भाग नागवंशियों के अधिकार में था।[2]
पुराण उल्लेख
प्राचीन काल से ही भारत में नागों की पूजा की परंपरा रही है। माना जाता है कि 3000 ईसा पूर्व आर्य काल में भारत में नागवंशियों के कबीले रहा करते थे, जो सर्प की पूजा करते थे। उनके देवता सर्प थे। यही कारण था कि प्रमुख नाग वंशों के नाम पर ही जमीन पर रेंगने वाले नागों के नाम पड़े थे। पुराणों के अनुसार कश्मीर में कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू से उन्हें आठ पुत्र मिले थे, जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार थे-
कश्मीर का अनंतनाग इलाका अनंतनाग समुदायों का गढ़ था। उसी तरह कश्मीर के बहुत सारे अन्य इलाके भी कद्रु के दूसरे पुत्रों के अधीन थे। कुछ अन्य पुराणों के अनुसार नागों के प्रमुख पाँच कुल थे- अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक और पिंगला। जबकि कुछ और पुराणों ने नागों के अष्टकुल बताये हैं- वासुकी, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड़, महापद्म और धनंजय। अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन है, जिसमें वासुकी, तक्षक, पद्म, महापद्म प्रसिद्ध हैं। नागों का पृथक नागलोक पुराणों में बताया गया है। अनादिकाल से ही नागों का अस्तित्व देवी-देवताओं के साथ वर्णित है। जैन, बौद्ध देवताओं के सिर पर भी शेष छत्र होता है। असम, नागालैंड, मणिपुर, केरल और आंध्र प्रदेश में नागा जातियों का वर्चस्व रहा है। भारत में इन आठ कुलों का ही क्रमश: विस्तार हुआ, जिनके नागवंशी रहे थे- नल, कवर्धा, फणि-नाग, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि तनक, तुश्त, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अहि, मणिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना, गुलिका, सरकोटा इत्यादि।[3]
अन्य तथ्य
इतिहास में यह बात प्रसिद्ध है कि महाप्रतापी गुप्तवंशी राजाओं ने शक या नागवंशियों को परास्त किया था। प्रयाग के क़िले के भीतर जो स्तंभलेख है, उसमें स्पष्ट लिखा है कि महाराज समुद्रगुप्त ने गणपति नाग को पराजित किया था। इस गणपति नाग के सिक्के बहुत मिलते हैं। महाभारत में भी कई स्थानों पर नागों का उल्लेख है। पांडवों ने नागों के हाथ से मगध राज्य छीना था। खांडव वन जलाते समय भी बहुत से नाग नष्ट हुए थे। जनमेजय के सर्प-यज्ञ का भी यही अभिप्राय मालूम होता है कि पुरुवंशी आर्य राजाओं से नागवंशी राजाओं का विरोध था। इस बात का समर्थन सिकंदर के समय के प्राप्त वृत्त से होता है। जिस समय सिकंदर भारत में आया, तब उससे सबसे पहले तक्षशिला का नागवंशी राजा ही मिला था। उस राजा ने सिकंदर का कई दिनों तक तक्षशिला में आतिथ्य किया और अपने शत्रु पौरव राजा के विरुद्ध चढ़ाई करने में सहायता पहुँचाई। सिकंदर के साथियों ने तक्षशिला में राजा के यहाँ भारी-भारी साँप पले देखे थे, जिनकी नित्य पूजा होती थी। यह शक या नाग जाति हिमालय के उस पार की थी। अब तक तिब्बती भी अपनी भाषा को 'नागभाषा' कहते हैं।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 437 |
- ↑ 2.0 2.1 देखने की परिभाषा नागवंश (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 फ़रवरी, 2012।
- ↑ नागों के प्रमुख कुल (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 जनवरी, 2013।
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