राम शरण शर्मा

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राम शरण शर्मा (जन्म- 26 नवम्बर, 1919, बेगुसराय, बिहार; मृत्यु- 20 अगस्त, 2011, पटना) भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार थे। वे समाज को हकीकत से रु-ब-रु कराने वाले, अन्तराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त भारतीय इतिहासकारों में से एक थे। रामशरण शर्मा 'भारतीय इतिहास' को वंशवादी कथाओं से मुक्त कर सामाजिक और आर्थिक इतिहास लेखन की प्रक्रिया की शुरुआत करने वालों में गिने जाते थे। वर्ष 1970 के दशक में 'दिल्ली विश्वविद्यालय' के इतिहास विभाग के डीन के रूप में प्रोफेसर आर. एस. शर्मा के कार्यकाल के दौरान विभाग का व्यापक विस्तार किया गया था। विभाग में अधिकांश पदों की रचना का श्रेय भी प्रोफेसर शर्मा के प्रयासों को ही दिया जाता है।

जन्म तथा शिक्षा

राम शरण शर्मा का जन्म 26 नवम्बर, 1919 ई. को बिहार (ब्रिटिश भारत) के बेगुसराय ज़िले के बरौनी फ्लैग गाँव के एक निर्धन परिवार में हुआ था।[1] यह इलाका समृद्ध खेती के साथ-साथ 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' के नेतृत्व में सामंतवाद विरोधी संघर्ष के लिए भी जाना जाता था। इसे लोग "बिहार का लेनिनग्राद" कहते थे। इनके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। राम शरण शर्मा के दादा और पिता बरौनी ड्योडी वाले के यहाँ चाकरी करते थे। इनके पिता को अपनी रोजी-रोटी के लिए काफ़ी संघर्ष करना पड़ा था। पिता ने बड़ी मुश्किल से अपने पुत्र की मैट्रिक तक की शिक्षा की व्यवस्था की थी। राम शरण शर्मा प्रारम्भ से ही मेधावी छात्र रहे थे और अपनी बुद्धिमत्ता से वे लगातार छात्रवृत्ति प्राप्त करते रहे। यहाँ तक कि अपनी शिक्षा में सहयोग के लिए उन्होंने निजी ट्यूशन भी पढ़ाई। उन्होंने 1937 में अपनी मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और 'पटना कॉलेज' में दाखिला लिया। यहाँ उन्होंने इंटरमीडिएट से लेकर स्नातकोत्तर कक्षाओं में छ: वर्षों तक अध्ययन किया और वर्ष 1943 में इतिहास में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। राम शरण शर्मा ने पीएचडी की उपाधि 'लंदन विश्वविद्यालय' के 'स्कूल ऑफ़़ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज' से प्रोफेसर आर्थर लेवेलिन बैशम के अधीन पूर्ण की थी।

इतिहास लेखक

इतिहास के जाने-माने लेखक राम शरण शर्मा ने पंद्रह भाषाओं में सौ से भी अधिक किताबें लिखीं। उनकी लिखी गयी प्राचीन इतिहास की किताबें देश की उच्च शिक्षा में काफ़ी अहमियत रखती हैं। प्राचीन इतिहास से जोड़कर हर सम-सामयिक घटनाओं को जोड़कर देखने में शर्मा जी को महारथ हासिल थी। रामशरण शर्मा के द्वारा लिखी गयी पुस्तक "प्राचीन भारत के इतिहास" को पढ़कर छात्र 'संघ लोक सेवा आयोग' जैसी प्रतिष्ठित परीक्षाओं की तैयारी करते हैं।

रचनाएँ

राम शरण शर्मा ने इतिहास लेखन के क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान देकर उसे समृद्ध बनाया। उनकी इतिहास की रचनाएँ उच्च स्तर की प्रतियोगी परीक्षाओं में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। राम शरण शर्मा की कुछ प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

राम शरण शर्मा की प्रमुख रचनाएँ
रचना वर्ष
'आर्य एवं हड़प्पा संस्कृतियों की भिन्नता'[2]
'भारतीय सामंतवाद'
'शूद्रों का प्राचीन इतिहास'
'प्राचीन भारत में राजनीतिक विचार एवं संस्थाएँ
'भारत के प्राचीन नगरों का इतिहास'
'आर्यों की खोज'
'प्रारंभिक मध्यकालीन भारतीय समाज: सामंतीकरण का एक अध्ययन'
'कम्युनल हिस्ट्री एंड रामा'ज अयोध्या'
'विश्व इतिहास की भूमिका'[1] 1951-52
'सम इकानामिकल एस्पेक्ट्स ऑफ़ द कास्ट सिस्टम इन एंशिएंट इंडिया' 1951
'रोल ऑफ़ प्रोपर्टी एंड कास्ट इन द ओरिजिन ऑफ़ द स्टेट इन एंशिएंट इंडिया' 1951-52
'शुद्राज इन एनसिएंट इंडिया एवं आस्पेक्ट्स ऑफ़ आइडियाज़ एंड इंस्टिट्यूशन इन एंशिएंट इंडिया' 1958
'आस्पेक्ट्स ऑफ़ पोलिटिकल आइडियाज एंड इंस्टीच्यूशन इन एंशिएंट इंडिया' 1959
'इंडियन फयूडलीजम' 1965
'रोल ऑफ़ आयरन इन ओरिजिन ऑफ़ बुद्धिज्म' 1968
'प्राचीन भारत के पक्ष में' 1978
'मेटेरियल कल्चर एंड सोशल फार्मेशन इन एंशिएंट इंडिया' 1983
'पर्सपेक्टिव्स इन सोशल एंड इकोनौमिकल हिस्ट्री ऑफ़ अर्ली इंडिया' 1983
'अर्बन डीके इन इंडिया-300 एडी से 1000 एडी' 1987
'सांप्रदायिक इतिहास और राम की अयोध्या' 1990-91
'राष्ट्र के नाम इतिहासकारों की रपट' 1991
'लूकिंग फॉर द आर्यन्स' 1995
'एप्लायड साइंसेस एंड टेक्नोलाजी' 1996
'एडवेंट ऑफ़ द आर्यन्स इन इंडिया' 1999
'अर्ली मेडीएवल इंडियन सोसाइटी:ए स्टडी इन फ्यूडलाईजेशन' 2001

मार्क्सवाद का अध्ययन

राम शरण शर्मा किसी भी राजनीतिक दल के सदस्य नहीं थे, किन्तु मार्क्सवाद का अध्ययन, चिंतन, मनन इनके प्रमुख कार्यों में से एक था, जिसका सीधा प्रभाव उनके लेखन में देखने को मिलता है। 'भारतीय इतिहास' के लेखन में 1940 में प्रकाशित 'आधे भारतीय एवं आधे स्वीडिश', ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव रजनी पाम दत्त की 'पुस्तक इंडिया टुडे', 1956 में दामोदर धर्मानंद कोसाम्बी की 'एन इंट्रोडक्शन टू द स्टडी ऑफ़ इडियन हिस्ट्री' एवं 1958 में रामशरण शर्मा की 'शुद्राज इन एनसिएंट इंडिया' और 'आस्पेक्ट्स ऑफ़ आइडियाज़ एंड इंस्टिट्यूशन इन एंशिएंट इंडिया' एवं 1965 में इरफान हबीब की औरंगज़ेब की कट्टर धार्मिकता पर केंद्रित 'द अग्रेरियान सिस्टम ऑफ़ मुग़ल्स' आदि पुस्तकों को 'भारतीय इतिहास' को मार्क्सवादी प्रभाव के परिपेक्ष में देखने का एक सफल प्रयास के रूप में माना जाता है, जिसकी पुरज़ोर स्थापना सन 1965 प्रकाशित रामशरण शर्मा की पुस्तक 'इंडियन फ्यूडलिज्म' से हो जाती है, ऐसा कई इतिहासकारों का मानना है।[1]

विवाद

राम शरण शर्मा की रचना "प्राचीन भारत" को कृष्ण की ऐतिहासिकता और महाभारत महाकाव्य की घटनाओं की आलोचना के लिए 1978 में जनता पार्टी सरकार की ओर से प्रतिबंधित कर दिया गया था। अयोध्या के विवाद पर भी उन्होंने बहुत कुछ लिखा था, जिसको लेकर देश भर में बहस छिड़ गयी थी। वर्ष 2002 के गुजरात दंगों को युवाओं की समझ बढ़ाने के लिए 'सामाजिक रूप से प्रासंगिक विषय' बताते हुए इसे विद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल करने का समर्थन किया था। यह उनकी टिप्पणी ही थी, जब एनसीईआरटी ने गुजरात के दंगों और अयोध्या विवाद को 1984 के सिक्ख विरोधी दंगों के साथ बारहवी कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तकों में शामिल करने का फैसला किया, जिसका तर्क यह दिया गया कि इन घटनाओं ने आजादी के बाद देश में राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित किया था।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 सामाजिक परिवर्तन का इतिहासकार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 25 मई, 2013।
  2. 2.0 2.1 राम शरण शर्मा का निधन (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 25 मई, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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