हरिगीतिका
हरिगीतिका चार चरणों वाला एक सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16 व 12 के विराम से 28 मात्रायें होती हैं तथा अंत में लघु गुरु आना अनिवार्य है। अधिकांशत: यह छंद ईश-वंदना में प्रयोग किया जाता है।[1] हरिगीतिका में 16 और 12 मात्राओं पर 'यति' होती है। प्रत्येक चरण के अन्त में 'रगण' (S। S) आना आवश्यक है।
- उदाहरण
मम मातृभूमिः भारतं धनधान्यपूर्णं स्यात् सदा ।
नग्नो न क्षुधितो कोऽपि स्यादिह वर्धतां सुख-सन्ततिः ।
स्युर्ज्ञानिनो गुणशालिनो ह्युपकार-निरता मानवः,
अपकारकर्ता कोऽपि न स्याद् दुष्टवृत्तिर्दांवः ॥
- 'हरिगीतिका' के चारों पदों में से कम से कम दो-दो पदों में 'तुक' मिलना चाहिए। यदि चारों में हो तो और भी अच्छा रहता है।
अन्य उदाहरण
- उदाहरण-1
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन, हरण भव भय दारुणम् ।
नवकंज लोचन कंज मुख कर, कंज पद कन्जारुणम ॥
कंदर्प अगणित अमित छवि नव, नील नीरज सुन्दरम ।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि, नौमि जनक सुतावरम ॥
- उदाहरण-2
प्रभु गोद जिसकी वह यशोमति, दे रहे हरि मान हैं ।
गोपाल बैठे आधुनिक रथ, पर सहित सम्मान हैं ॥
मुरली अधर धर श्याम सुन्दर, जब लगाते तान हैं ।
सुनकर मधुर धुन भावना में, बह रहे रसखान हैं ॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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