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कविता1
जग्गी वासुदेव
जग्गी वासुदेव
पूरा नाम सद्गुरु जग्गी वासुदेव
जन्म 3 सितम्बर, 1957
जन्म भूमि मैसूर, कर्नाटक
संतान राधे
गुरु श्रीराघवेन्द्र राव
कर्म भूमि भारत
भाषा अंग्रेज़ी
शिक्षा स्‍नातक
विद्यालय मैसूर विश्‍वविद्यालय
पुरस्कार-उपाधि पद्म विभूषण, 2017
नागरिकता भारतीय

सद्गुरु जग्गी वासुदेव (अंग्रेज़ी: Jaggi Vasudev, जन्म: 3 सितम्बर, 1957, मैसूर, कर्नाटक) विश्व प्रसिद्ध रहस्यवादी और भारतीय मूल के योगी हैं। वह बहुत प्रसिद्ध कवि थे। जीवन में उनका उद्देश्य लोगों की अपनी आध्यात्मिकता को प्रकट करने में मदद करना है। सद्गुरु जग्गी वासुदेव के कई योग केंद्र हैं, जो कि भारत के विभिन्न शहरों और संयुक्त राज्य अमेरिका में भी स्थापित किए गए हैं। वह संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी विश्व शांति सम्मेलन का एक प्रतिनिधि और उन्होंने 2006 और 2007 में विश्व आर्थिक मंच में भी भाग लिया। भारत सरकार ने इन्हें 25 जनवरी, 2017 को पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया।

प्रारंभिक जीवन

सद्गुरु जग्गी वासुदेव का जन्‍म 3 सितंबर 1957 को कर्नाटक राज्‍य के मैसूर शहर में हुआ। उनके पिता एक डॉक्टर थे। बचपन से ही वासुदेव दूसरों की तुलना में काफी अलग थे। तेरह साल की उम्र में उन्होंने श्रीराघवेन्द्र राव, जिन्‍हें मल्‍लाडिहल्‍लि स्वामी के नाम से जाना जाता है, से प्राणायाम और आसन जैसे योग सीखे।। मैसूर विश्‍वविद्यालय से उन्‍होंने अंग्रेज़ी भाषा में स्‍नातक की उपाधि प्राप्‍त की। जब वासुदेव पच्चीस वर्ष के थे, तो उन्होंने एक असामान्य घटना देखी, जो उन्हें जीवन और भौतिक वस्तुओं दूर और त्याग की ओर ले गयी।

आध्यात्मिक अनुभव

सद्गुरु जग्गी वासुदेव को 25 वर्ष की उम्र में अनायास ही बड़े विचित्र रूप से गहन आत्‍म अनुभूति हुई, जिसने उनके जीवन की दिशा को ही बदल दिया। एक दोपहर, जग्गी वासुदेव मैसूर में चामुंडी पहाड़ियों पर चढ़े और एक चट्टान पर बैठ गए। तब उनकी आँखे पूरी खुली हुई थीं। अचानक, उन्‍हें शरीर से परे का अनुभव हुआ। उन्हें लगा कि वह अपने शरीर में नहीं हैं, बल्कि हर जगह फैल गए हैं, चट्टानों में, पेड़ों में, पृथ्वी में। जब तक वह अपने होश में वापस आये, उससे पहले से ही शाम हो गई थी। उसके बाद के दिनों में, वासुदेव ने एक बार फिर से इसी स्थिति का अनुभव किया। वह अगले तीन या चार दिनों के लिए भोजन और नींद त्याग देते थे। इस घटना ने पूरी तरह से उनके जीवन जीने का तरीका बदल दिया। जग्गी वासुदेव ने अपना पूरा जीवन अपने अनुभवों को साझा करने के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया।[1]

ईशा योग केंद्र की स्थापना

सद्गुरु जग्गी वासुदेव तथा उनके अनुयायियों ने 1992 में ईशा योग केंद्र और आश्रम की स्थापना की। यह कोयम्बटूर के निकट पुण्डी में पवित्र वेल्लिगिरि पर्वतों की तलहटी पर स्थित है। यह केंद्र 50 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है और यहाँ एक विशाल 13 फ़ीट ध्यान करने के लिए एक ध्यान मंदिर है। इस परिसर में एक बहु-धार्मिक मंदिर भी है, जिसे 1999 में पूरा किया गया था।

ईशा योग मूल रूप से विज्ञान का एक रूप है, जो तीव्र और बहुत शक्तिशाली है। यह उस सिद्धांत पर आधारित है जिसमें शरीर को आत्मा का मंदिर समझा जाता है। साथ ही, अच्छे स्वास्थ्य को शारीरिक और आध्यात्मिक विकास के लिए मौलिक माना जाता है। ईशा योग का मुख्य उद्देश्य शांति और शांति के साथ, सर्वोत्तम संभव स्वास्थ्य को विकसित करना और बढ़ावा देना है। यह हर व्यक्ति में प्रकट होने की प्राकृतिक प्रक्रिया को सहायता करता है। इसमें शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक ब्लॉकों को छोड़ने के लिए किसी व्यक्ति के आंतरिक रसायन शास्त्र को बदल दिया जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सद्गुरु जग्गी वासुदेव (हिंदी) www.1hindi.com। अभिगमन तिथि: 13 अगस्त, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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